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नाटो की 75वीं वर्षगाँठ

  • 05 Apr 2024
  • 24 min read

यह एडिटोरियल 04/04/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “West Against the Rest” लेख पर आधारित है। इसमें नाटो (NATO) की 75वीं वर्षगाँठ और अपनी सैन्य क्षमताओं के माध्यम से पश्चिमी आधिपत्य को बनाए रखने में एक उपकरण के रूप में इसकी भूमिका के साथ-साथ इस गठबंधन से संबंधित अन्य महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार किया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोप में पारंपरिक सशस्त्र बलों पर संधि, नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन), शीत युद्ध, वारसा संधि, द्वितीय विश्व युद्ध, उत्तरी अटलांटिक संधि, फिनलैंड, यूक्रेन

मेन्स के लिये:

NATO की कार्यप्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ, पश्चिमी देशों के लिये नाटो का महत्त्व।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन या नाटो (North Atlantic Treaty Organisation (NATO) 4 अप्रैल को अपनी स्थापना की 75वीं वर्षगाँठ धूमधाम से मनाई। वर्ष 1949 में इसी दिन पश्चिमी देश एक-दूसरे की रक्षा की प्रतिबद्धता जताने के लिये वाशिंगटन डीसी में एकत्र हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के अभी भी हरे रहे घाव और मंडराते नए खतरों के परिदृश्य में उन्होंने अपने लोगों की स्वतंत्रता की रक्षा करने की शपथ ली थी। नाटो की 75वीं वर्षगाँठ के अवसर पर लोकतंत्र, स्वतंत्रता एवं विधि के शासन जैसे गठबंधन के मूल मूल्यों के प्रति पुनः प्रतिबद्धता जताने, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण जैसी उभरती सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने और नाटो के भविष्य के अनुकूलन के लिये मार्ग की रूपरेखा तैयार करने जैसे प्रमुख विषयों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

नाटो (NATO):

  • परिचय:
    • उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन या नाटो वर्ष 1949 में गठित एक अंतर-सरकारी सैन्य गठबंधन है। इसे संभावित आक्रामकता, विशेष रूप से शीत युद्ध काल के दौरान सोवियत संघ की ओर से संभावित आक्रामकता, के विरुद्ध सामूहिक रक्षा प्रदान करने के प्राथमिक लक्ष्य के साथ स्थापित किया गया था। समय के साथ नाटो अपने मूल अधिदेश से आगे बढ़ते हुए विभिन्न सुरक्षा चुनौतियों से निपटने हेतु विकसित हुआ है।
  • इतिहास:
    • गठन: यूरोप और उत्तरी अमेरिका के 12 संस्थापक सदस्य देशों द्वारा वाशिंगटन डीसी में उत्तरी अटलांटिक संधि (North Atlantic Treaty) पर हस्ताक्षर के साथ 4 अप्रैल 1949 को नाटो की स्थापना की गई।
    • शीत युद्ध काल: शीत युद्ध के दौरान नाटो ने सोवियत विस्तारवाद के विरुद्ध एक निवारक शक्ति के रूप में कार्य किया, जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपने यूरोपीय सहयोगियों को महत्त्वपूर्ण सैन्य सहायता प्रदान की गई।
    • सोवियत संघ के विघटन के बाद नाटो ने अपने दायरे का विस्तार करते हुए संकट प्रबंधन, संघर्ष की रोकथाम और सहकारी सुरक्षा प्रयासों जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित किया।
  • सदस्यता:
    • मूल सदस्य: नाटो के मूल 12 संस्थापक सदस्यों में बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्राँस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल थे।
    • विस्तार: स्थापना के बाद से नाटो का विस्तार हुआ है जहाँ अलग-अलग दौर में नए सदस्य देश शामिल किये गए। गठबंधन में वर्तमान में 32 सदस्य देश शामिल हैं।
  • मिशन और उद्देश्य:
    • सामूहिक रक्षा: नाटो का प्राथमिक मिशन सामूहिक रक्षा है  जैसा कि उत्तरी अटलांटिक संधि के अनुच्छेद 5 में उल्लिखित है। इस अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी एक सदस्य देश पर हमला सभी पर हमला माना जाएगा और सदस्य सामूहिक रूप से प्रतिक्रिया देंगे।
    • संकट प्रबंधन: नाटो सामूहिक रक्षा के अलावा दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष की रोकथाम, शांति स्थापना और स्थिरीकरण प्रयासों सहित विभिन्न संकट प्रबंधन गतिविधियों में संलग्न है।
  • संरचना:
    • राजनीतिक नेतृत्व: उत्तरी अटलांटिक परिषद (North Atlantic Council- NAC) नाटो के प्रमुख राजनीतिक निर्णयकारी निकाय के रूप में कार्य करती है, जिसमें सभी सदस्य देशों के राजदूत शामिल होते हैं।
    • सैन्य कमान संरचना: नाटो की सैन्य कमान संरचना में परिचालन योजना एवं निष्पादन के लिये उत्तरदायी रणनीतिक कमान (Strategic Commands)—उदाहरण के लिये, एलाइड कमांड ऑपरेशंस (Allied Command Operations), के साथ-साथ क्षेत्रीय कमान (Regional Commands) और बल मुख्यालय (Force Headquarters) शामिल हैं।
    • एकीकृत सैन्य बल: नाटो एकीकृत सैन्य बलों को बनाए रखता है, जहाँ सदस्य देशों को नाटो कमान के तहत सामूहिक रक्षा प्रयासों में कर्मियों और संसाधनों का योगदान करने की अनुमति मिलती है।

नाटो की कार्यप्रणाली से संबंधित विभिन्न चिंताएँ:

  • अनियंत्रित रूप से आक्रामक:
    • नाटो की स्थापना इसके सदस्य देशों को किसी भी संभावित आक्रामकता से बचाने के लिये की गई थी। जैसा कि तथ्य बताते हैं, इसे कभी किसी आक्रामकता या आक्रामकता के खतरे का सामना नहीं करना पड़ा। इसके विपरीत, अपने सदस्य देशों की रक्षा के नाम पर स्वयं नाटो ही आक्रामक हो गया। पिछले सात दशकों में इसने दुनिया भर में 200 से अधिक सैन्य संघर्षों की शुरुआत की या उनमें भाग लिया, जिनमें 20 बड़े सैन्य संघर्ष भी शामिल हैं।
  • पूर्वी यूरोपीय, मध्य-पूर्व और एशियाई देशों में उसके दुस्साहसिक कदम:
    • यूगोस्लाविया पर बमबारी, इराक पर आक्रमण, लीबिया की राज्य सत्ता की तबाही, सीरिया में गैर-कानूनी सैन्य हस्तक्षेप और अफगानिस्तान में आतंकवाद से संघर्ष इनमें से कुछ प्रमुख मामले हैं।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध को भड़काना:
    • वर्ष 1991 के बाद से नाटो के विस्तार के पाँच दौर (जबकि ऐसा नहीं करने का आश्वासन दिया गया था) और यूक्रेन को रूस के विरुद्ध ‘स्प्रिंगबोर्ड’ में बदल देना (यानी उसे रूस के विरुद्ध गतिविधियों के लिये एक रणनीतिक लॉन्चपैड के रूप में उपयोग करना) अब तक का सबसे बड़ी भड़काने वाली कार्रवाई सिद्ध हुई।
    • गठबंधन ने रूस के साथ संवाद तंत्र को नष्ट कर दिया और मैड्रिड में वर्ष 2022 में आयोजित नाटो शिखर सम्मेलन में इस रणनीतिक अवधारणा को अपनाया कि मास्को यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में मित्र देशों की सुरक्षा, शांति एवं स्थिरता के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण एवं प्रत्यक्ष खतरा है, जबकि रूस ने ऐसा रुख कभी नहीं रखा है।
  • पश्चिमी आधिपत्य को बनाए रखना:
    • कठोर वास्तविकता यह है कि नाटो, जबकि अपनी शांतिपूर्ण आकांक्षाओं की घोषणा करता है, ऐसे किसी भी राज्य के विरुद्ध युद्ध में उतर जाता है या उस पर हमला करने की धमकी देता है जो पतनशील उदार ‘नियम-आधारित व्यवस्था’ को स्वीकार करने से इनकार करता है।
      • इस अर्थ में, नाटो की सैन्य क्षमता उन देशों पर पश्चिम के आधिपत्य को बनाए रखने के लिये एक प्रभावी उपकरण की स्थिति रखती है जिन्हें सैन्य खतरे के रूप में नहीं देखा जाता है।
    • यह नाटो के बारे में यह धारणा स्थापित करता है कि यह यूरो-अटलांटिक शासकों द्वारा निर्धारित लोकतंत्र, मानवाधिकार एवं स्वतंत्रता के नारों के तहत आधुनिक रूप में औपनिवेशिक अभ्यासों की ही निरंतरता है।
  • अनुचित विस्तार:
    • इस गठबंधन की क्षमताओं का निर्माण बाह्य अंतरिक्ष और साइबरस्पेस में किया जा रहा है। नाटो के ‘पूर्वी अंग’ को समायोजित क्षेत्रीय सैन्य योजनाओं हेतु तैयार करने के लिये नए संसाधनों और सैन्य बलों से सुसज्जित किया गया है। नाटो का आक्रामक व्यवहार रूस तक ही सीमित नहीं है। यह अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में नए साझेदारों की तलाश कर रहा है।
    • नाटो की नज़र अब व्यापक रूप से उत्तर-सोवियत परिदृश्य एवं यूरेशिया की ओर है जहाँ वह विभिन्न देशों के बीच अलगाव बढ़ाने और उनके पारंपरिक रूप से घनिष्ठ संबंधों को क्षति पहुँचाने पर केंद्रित है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उत्पन्न खतरे का लाभ उठाना:
    • यूरो-अटलांटिक और इंडो-पैसिफिक क्षेत्रों में सुरक्षा की अविभाज्यता के नारे के तहत पूरे पूर्वी गोलार्द्ध पर अपनी ज़िम्मेदारी बढ़ाने के नाटो के प्रयासों में इस मंच के विस्तारवाद की एक नई अभिव्यक्ति को देखा जा सकता है।
    • इस उद्देश्य से संयुक्त राज्य अमेरिका AUKUS, ‘यूएस-जापान-दक्षिण कोरिया ट्रोइका’ और टोक्यो-सियोल-कैनबरा-वेलिंगटन क्वार्टेट जैसे छोटे, अनौपचारिक, लघु-पक्षीय गठबंधनों के निर्माण में व्यस्त रहा है ताकि उन्हें नाटो के साथ व्यावहारिक सहयोग के लिये घसीटा जा सके।

नाटो की प्रमुख सफलताएँ और असफलताएँ:

  • सफलताएँ:
    • शीत युद्ध:
      • शीत युद्ध के दौरान नाटो के प्रयास तीन लक्ष्यों पर केंद्रित रहे थे: सोवियत संघ को नियंत्रित करना, संपूर्ण यूरोप में उग्रवादी राष्ट्रवाद एवं साम्यवाद पर रोक रखना और वृहत यूरोपीय राजनीतिक एकता स्थापित करना।
      • गठबंधन ने शीत युद्ध की तनावपूर्ण शांति को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाई कि शीत युद्ध ‘शीत’ ही बना रहे। इस युद्ध की समाप्ति के साथ नाटो ने शांति बनाए रखने की दिशा में कार्य किया।
      • इस क्रम में उत्तरी अटलांटिक सहयोग परिषद (North Atlantic Cooperation Council) की स्थापना की गई और वर्ष 1997 में नाटो ने ‘फाउंडिंग एक्ट’ (Founding Act) के माध्यम से अमेरिका एवं रूस के बीच द्विपक्षीय चर्चा को प्रोत्साहित किया।
    • आधुनिक समय में सुरक्षा:
      • नाटो अपने सदस्यों को सुरक्षा प्रदान करने में अभी तक सफल रहा है। इसकी स्थापना के बाद से केवल एक बार ऐसा हुआ है जब नाटो के किसी सदस्य पर हमला किया गया (अमेरिका पर 9/11 हमला) और अनुच्छेद 5 (सामूहिक सुरक्षा और परस्पर सहयोग) को औपचारिक रूप से सक्रिय या प्रभावी किया गया।
      • सदस्य देशों को सामूहिक सुरक्षा प्रदान की जाती है, जैसा कि मूल रूप से नाटो का लक्ष्य था। इसके अतिरिक्त, नाटो ने दुनिया भर में 40 से अधिक देशों और अन्य भागीदारों का एक वैश्विक नेटवर्क बनाया है, जिसमें अफ्रीकी संघ (AU) से लेकर OSCE (Organization for Security and Cooperation in Europe) तक कई समूह शामिल हैं।
      • यह नेटवर्क नाटो को उसके संकट प्रबंधन कार्यों में सहायता प्रदान करता है। वर्ष 2005 के कश्मीर भूकंप के बाद राहत आपूर्ति जैसे सहायता कार्यों से लेकर भूमध्य सागर और सोमालिया के तट पर आतंकवाद विरोधी अभियानों तक इसके कई उदाहरण हैं।
    • यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान करना:
      • नाटो ने सार्वजनिक रूप से यूक्रेन पर रूसी आक्रमण की निंदा की है और नाटो के सदस्य देशों एवं सहयोगियों ने यूक्रेन को पर्याप्त सहायता प्रदान की है। अमेरिका ने यूक्रेन को लगभग 54 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता दी है।
      • अन्य देशों ने युद्ध के 5 मिलियन से अधिक शरणार्थियों के लिये मानवीय सहायता एवं सहयोग प्रदान किया है। यूक्रेन युद्ध ने नाटो के महत्त्व की पुष्टि की है और यहाँ तक कि फिनलैंड एवं स्वीडन को गठबंधन में शामिल होने के अपने प्रयासों को तेज़ करने के लिये प्रेरित किया है।
      • इन देशों की सदस्यता हवाई और पनडुब्बी क्षमताओं की वृद्धि के माध्यम से नाटो को सैन्य रूप से मज़बूत करेगी, जिससे नाटो को रूसी आक्रामकता को और कम करने की अनुमति मिलेगी।
  • विफलताएँ:
    • वित्तपोषण संबंधी मुद्दे:
      • वर्ष 2006 में नाटो सदस्य देशों के रक्षा मंत्री इस प्रतिबद्धता पर सहमत हुए कि उनके देशों के सकल घरेलू उत्पाद का 2% रक्षा व्यय के लिये आवंटित किया जाएगा। हालाँकि, नाटो के अधिकांश सदस्य इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर रहे हैं। वर्तमान में गठबंधन के रक्षा व्यय का दो-तिहाई से अधिक भाग अमेरिका से प्राप्त होता है।
    • अफगानिस्तान:
      • 9/11 हमले के बाद अफगानिस्तान में नाटो की व्यापक उपस्थिति रही और उनके सैन्य बल ने अफगान सरकार को महत्त्वपूर्ण समर्थन प्रदान किया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा वर्ष 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते के बाद नाटो और अमेरिकी सैन्य बलों की अफगानिस्तान से वापसी हुई।
      • इसके तुरंत बाद ही तालिबान के हाथों अफगान सरकार का पतन हो गया। नाटो की अफगानिस्तान में दो दशकों तक उपस्थिति के बावजूद कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं निकला और उनने बाहर निकलते ही देश की पूर्व सरकार का पतन हो गया।
    • दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद:
      • संपूर्ण यूरोप में दक्षिणपंथी राष्ट्रवाद के प्रसार के साथ नाटो और यूरोपीय संघ जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है। यदि यूरोप में दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी आंदोलनों की लोकप्रियता बढ़ती रही तो विभिन्न देशों में नाटो जैसी संस्थाओं को छोड़ने की मांग बढ़ सकती है। नाटो के सामने वर्तमान में चुनौती यह है कि वह अपनी आलोचना का मुक़ाबला और उसे संबोधित कैसे करे, जबकि विभाजित यूरोप को एकजुट कैसे किया जाए।
    • रूसी आक्रमण:
      • नाटो द्वारा रूस से इस कथित मौखिक वादे के बावजूद कि वह पूर्व की ओर विस्तार नहीं करेगा, उसने सोवियत संघ के पतन के बाद से वारसॉ संधि के कई पूर्व सदस्यों को गठबंधन में शामिल किया है।
      • नाटो सदस्यों की सीमा रूस से लगने तथा आगे इसके और विस्तार के वादे के साथ रूस अपने लिये अधिकाधिक खतरा अनुभव करने लगा है। यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की संभावना को रूस-यूक्रेन संघर्ष में रूसी कार्रवाइयों के लिये एक महत्त्वपूर्ण कारण के रूप में उद्धृत किया गया है।

नोट:

  • भारत नाटो और रूस के बीच एक सुचिंतित रुख रखता है, जहाँ रक्षा एवं आर्थिक क्षेत्रों में गुटनिरपेक्षता और द्विपक्षीय सहयोग पर बल देते हुए दोनों के साथ रणनीतिक हितों को संतुलित करता है।

नाटो को अधिक प्रभावी एवं कुशल बनाने के लिये आवश्यक सुधार:

  • सलाह की गुणवत्ता, सुसंगतता और समयसीमा:
    • नाटो के अंदर पाँच प्रमुख नीति समितियों—सैन्य समिति, राजनीतिक समिति, नीति समन्वय समूह, कार्यकारी कार्य समूह और सीनियर रिसोर्स बोर्ड के महत्त्व एवं कार्यों को उन्नत बनाएँ।
    • इन समितियों के बीच समन्वय में सुधार करें, जहाँ उनके एजेंडे को परिषद की प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करें। इससे सैन्य और नागरिक दोनों नाटो निकायों के लिये परिषद के मार्गदर्शन को प्रभावी एवं समयबद्ध सलाह में बदलने में मदद मिलेगी।
  • नाटो का गैर-सैन्य आयाम:
    • यह सुनिश्चित किया जाए कि जब सहयोगी देश नाटो को परिचालनात्मक रूप से संलग्न करने का निर्णय लें तो इसे राजनीतिक स्तर पर नागरिक विशेषज्ञता और ज़मीनी स्तर पर व्यवहार्य क्षमताओं का लाभ प्राप्त हो। साझा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और स्थानियों अभिकर्ताओं के साथ सहयोग भी आवश्यक है। इसके लिये नाटो के अंदर एक नागरिक सुरक्षा समिति या ऐसी किसी संरचना के निर्माण की आवश्यकता हो सकती है।
  • संगठनात्मक सामंजस्य और आंतरिक तालमेल:
    • न केवल नाटो मुख्यालय को बल्कि ब्रुसेल्स के अंदर एवं बाहर के नाटो निकायों की एक सुव्यवस्थित शृंखला को बदलती रणनीतिक प्राथमिकताओं के अनुरूप उन्मुख करना होगा ताकि गठबंधन में पारदर्शिता, दृश्यता और उद्देश्य की समानता को बढ़ावा दिया जा सके।
  • एक समावेशी और संयुक्त गठबंधन:
    • संस्थागत व्यवस्थाओं को गठबंधन सुरक्षा की अविभाज्यता को प्रतिबिंबित करना चाहिये, जो गठबंधन की एकता एवं सामंजस्य को बनाए रखने और उसे सुदृढ़ करने पर लक्षित हो तथा उद्देश्य की एक साझा भावना को बढ़ावा देता हो।
      • इस प्रकार, नाटो संरचनाओं और प्रक्रियाओं को मुख्य रूप से सभी सहयोगियों के हितों, चिंताओं, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सैन्य क्षमताओं को एकजुट करना चाहिये,ताकि सर्वसम्मति-निर्माण और सामूहिक कार्रवाइयों को सक्षम किया जा सके।
    • जहाँ भी संभव हो, संरचनाओं एवं प्रक्रियाओं को सहयोगियों और गैर-नाटो देशों की बढ़ती संख्या के बीच राजनीतिक संवाद, परामर्श, संयुक्त योजना, प्रशिक्षण, अभ्यास एवं संचालन को प्रोत्साहित और सुविधाजनक बनाना चाहिये।
  • नाटो का विशिष्ट चरित्र बनाये रखना:
    • जबकि नाटो को व्यापक दृष्टिकोण के माध्यम से जटिल संकटों से निपटने के लिये अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सक्रिय रूप से एकीकृत होना चाहिये, यह सूक्ष्म रणनीतियों के साथ मज़बूत सैन्य क्षमताओं को संयोजित करने की इसकी मूल शक्ति को कम नहीं करे।
  • गैर-पारंपरिक खतरों पर ध्यान देना:
    • जबकि क्षेत्रीय रक्षा नाटो का एक प्रमुख कार्य बना रहे, कई लोगों का तर्क है कि नाटो को आतंकवाद, साइबर हमलों, दुष्प्रचार अभियानों और आपूर्ति शृंखला सुरक्षा को खतरों जैसे गैर-पारंपरिक खतरों से निपटने के लिये और अधिक अनुकूलित होना चाहिये।

निष्कर्ष:

जब वर्ष 2024 में नाटो अपनी 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है, यह अपने उपलब्धिपूर्ण इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। नाटो ने एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के माध्यम से अपने सदस्यों की स्वतंत्रता एवं सुरक्षा की रक्षा के अपने मुख्य मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया है। हालाँकि, पिछले कुछ दशक तेज़ी से विकसित हो रहे वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य के साक्षी बने हैं, जहाँ महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता, अंतर्राष्ट्रीय खतरों और जटिल आधुनिक चुनौतियों का पुनः उभार हुआ है।

नाटो को शांति एवं स्थिरता के एक प्रभावशाली रक्षक के रूप में अपनी भूमिका बनाए रखने के लिये रक्षा क्षमताओं में वृहत निवेश करने, निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष एवं प्रौद्योगिकीय श्रेष्ठता जैसे क्षेत्रों को दायरे में लेने के माध्यम से अपना सुधार करने तथा नए परिदृश्यों के प्रति अनुकूलित होने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: वैश्विक सुरक्षा समीकरण पर नाटो विस्तार के प्रभाव और गैर-नाटो देशों के लिये इसके निहितार्थ का मूल्यांकन कीजिये। समकालीन भू-राजनीति में नाटो की भूमिका और भारत के रणनीतिक हितों के लिये इसके महत्त्व की भी चर्चा कीजिये।

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