इन्फोग्राफिक्स
भारतीय अर्थव्यवस्था
लुईस मॉडल और भारत
प्रिलिम्स के लिये:लुईस मॉडल, अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार, भारत की GDP में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा, प्रच्छन्न बेरोज़गारी, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन, स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया 2.0 मेन्स के लिये:भारत में लुईस मॉडल के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ, भारत के लिये लुईस मॉडल के विकल्प। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
लुईस मॉडल चीन के लिये सफल साबित हुआ है हालाँकि कृषि से औद्योगीकरण में संक्रमण के दौरान चुनौतियों का सामना करने के कारण भारत इसके कार्यान्वयन से जूझ रहा है।
- इसके अतिरिक्त उच्च पूंजी तीव्रता की ओर विनिर्माण रुझान के कारण भारत प्रतिक्रिया में 'फार्म-एज़-फैक्टरी' श्रम मॉडल में स्थानांतरित होने पर विचार कर रहा है।
लुईस मॉडल:
- परिचय:
- वर्ष 1954 में अर्थशास्त्री विलियम आर्थर लुईस ने "श्रम की असीमित आपूर्ति के साथ आर्थिक विकास" को प्रस्तावित किया।
- इस कार्य के लिये लुईस को वर्ष 1979 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला।
- मॉडल के सार ने सुझाव दिया कि कृषि में अतरिक्त श्रम को विनिर्माण क्षेत्र में पुनर्निर्देशित किया जा सकता है, इसके लिये श्रमिकों को कृषि क्षेत्र से दूर आकर्षित करने के लिये पर्याप्त मज़दूरी का प्रस्ताव देना आवश्यक है।
- यह बदलाव, सैद्धांतिक रूप से, औद्योगिक विकास को उत्प्रेरित करेगा, उत्पादकता बढ़ाएगा और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा।
- वर्ष 1954 में अर्थशास्त्री विलियम आर्थर लुईस ने "श्रम की असीमित आपूर्ति के साथ आर्थिक विकास" को प्रस्तावित किया।
- लुईस मॉडल और चीन:
- चीन में इस मॉडल का अनुप्रयोग सफल रहा। चीन ने एक दोहरे ट्रैक दृष्टिकोण का उपयोग किया, जिसने अपनी जनसंख्या लाभ और अधिशेष ग्रामीण श्रम का उपयोग करते हुए, राज्य की योजना के साथ बाज़ार की शक्तियों को जोड़ा।
- इस रणनीति ने विदेशी निवेश को आकर्षित किया तथा निर्यात एवं घरेलू उद्योगों को बढ़ावा दिया।
- बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और अनुसंधान एवं विकास में व्यापक निवेश ने चीन की उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप तेज़ी से औद्योगीकरण हुआ, गरीबी में कमी आई और अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव आया।
- चीन में इस मॉडल का अनुप्रयोग सफल रहा। चीन ने एक दोहरे ट्रैक दृष्टिकोण का उपयोग किया, जिसने अपनी जनसंख्या लाभ और अधिशेष ग्रामीण श्रम का उपयोग करते हुए, राज्य की योजना के साथ बाज़ार की शक्तियों को जोड़ा।
- लुईस मॉडल और भारत:
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कृषि, जो ऐतिहासिक रूप से भारत के अधिकांश कार्यबल को रोज़गार देती है, ने इस सन्दर्भ में कमी का अनुभव किया है।
- अपेक्षाओं के विपरीत, इस बदलाव से मुख्य रूप से विनिर्माण क्षेत्र को लाभ नहीं हुआ है, जिसने रोज़गार के हिस्से में केवल मामूली वृद्धि का अनुभव किया है।
- विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार वर्ष 2011-12 में अपने उच्चतम स्तर 12.6% से घटकर वर्ष 2022-23 में 11.4% हो गया है।
- विनिर्माण रोज़गार में कमी मुख्य रूप से सेवाओं और निर्माण में श्रम के बढ़ने की प्रवृत्ति को दर्शाती है, जो अर्थशास्त्री लुईस द्वारा उल्लिखित अपेक्षित संरचनात्मक परिवर्तन के विपरीत है।
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भारत में लुईस मॉडल के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ:
- कम वेतन संबंधी बाधाएँ: शहरी विनिर्माण सुविधाओं में कम वेतन और अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा, शहरी जीवन की उच्च लागत को देखते हुए, ग्रामीण कृषि मज़दूरों को स्थानांतरित करने के लिये लुभाने में विफल रही है तथा इसने लुईस मॉडल के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न की है।
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विनिर्माण में तकनीकी बदलाव: विनिर्माण उद्योग तेज़ी से पूंजी-गहन हो रहे हैं, जो रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी श्रम-विस्थापन प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता को दर्शाते हैं।
- यह परिवर्तन श्रम-गहन क्षेत्रों द्वारा अधिशेष कृषि श्रमिकों को समायोजित करने की नियोजन क्षमता को प्रतिबंधित करता है।
- प्रच्छन्न बेरोज़गारी: भारत को कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोज़गारी के परिदृश्य का सामना करना पड़ता है, जहाँ अतिरिक्त श्रमिक उन गतिविधियों में संलग्न है जो उत्पादकता अथवा आय में वृद्धि में योगदान नहीं देती हैं।
- अतिरिक्त श्रम की इस स्थिति के कारण श्रमिकों का अन्य उद्योगों में स्थानांतरण जटिल हो जाता है।
- कौशल भिन्नता: कार्यबल का कौशल और जो कौशल उद्योग तलाशते हैं, दोनों में भिन्नता होती है।
- वर्तमान शिक्षा प्रणाली आधुनिक नौकरी बाज़ार की मांगों के लिये व्यक्तियों को पूर्ण रूप से तैयार नहीं कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप कौशल में अंतर की स्थिति उत्पन्न होती है जो उद्योगों में श्रमिकों के नियोजन में बाधा डालता है।
- व्हाइट कॉलर जॉब पर अत्यधिक ज़ोर: आमतौर पर समाज में व्हाइट कॉलर जॉब्स को तकनीकी अथवा व्यावसायिक कौशल से अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
- ब्लू-कॉलर जॉब के प्रति यह पूर्वाग्रह कुशल व्यव्सायों और तकनीकी नौकरियों के लिये कार्यबल की उपलब्धता को सीमित कर सकता है, जिससे औद्योगिक विकास प्रभावित हो सकता है।
भारत में औद्योगिक क्षेत्र के विकास हेतु हालिया सरकारी पहलें:
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव- PLI) - इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाना है।
- PM गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान - यह एक मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजना है।
- भारतमाला परियोजना- इसका उद्देश्य उत्तर पूर्व भारत के साथ कनेक्टिविटी में सुधार करना है।
- स्टार्ट-अप इंडिया- इसका प्रमुख कार्य भारत में स्टार्टअप संस्कृति में बढ़ावा देना है।
- मेक इन इंडिया 2.0- इसका लक्ष्य भारत को एक वैश्विक डिज़ाइन और विनिर्माण केंद्र में परिवर्तित करना है।
नोट: जैसे-जैसे भारत अपने औद्योगिक क्षेत्र की उन्नति का प्रयास कर रहा है, उसे अपने विकास पथ को बढ़ाने के लिये पूरक विकल्पों की भी तलाश करनी चाहिये।
भारत के लिये लुईस मॉडल के अतिरिक्त अन्य विकल्प:
- फार्म-एज़-फैक्टरी मॉडल: यह मॉडल श्रमिकों को कृषि से विनिर्माण क्षेत्र में स्थानांतरित करने के बजाय भारत के कृषि क्षेत्र के भीतर मूल्य संवर्धन और उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव देता है।
- कृषि व्यवसाय, जैव-ईंधन और खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने पर ज़ोर देकर इस दृष्टिकोण का उद्देश्य ग्रामीण श्रमिकों के लिये रोज़गार के अवसर, आय सृजन तथा नवाचार को बढ़ावा देना है।
- कृषि व्यवसाय, जैव-ईंधन और खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने पर ज़ोर देकर इस दृष्टिकोण का उद्देश्य ग्रामीण श्रमिकों के लिये रोज़गार के अवसर, आय सृजन तथा नवाचार को बढ़ावा देना है।
- इस मॉडल के अनुसार, सेवाओं में भारत के तुलनात्मक लाभ का उपयोग देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये किया जाना चाहिये।
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सूचना प्रौद्योगिकी, बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग, पर्यटन, स्वास्थ्य देखभाल और मनोरंजन जैसे क्षेत्रों में भारत की उपस्थिति मज़बूत है।
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ये क्षेत्र उच्च कौशल वाले रोज़गार उत्पन्न कर सकते हैं, निर्यात को बढ़ावा दे सकते हैं और विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकते हैं।
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- अमर्त्य सेन का क्षमता दृष्टिकोण: केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अमर्त्य सेन का क्षमता दृष्टिकोण व्यक्तियों की क्षमताओं और स्वतंत्रता को बढ़ाने पर ज़ोर देता है।
- शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक समर्थन को प्राथमिकता देकर, इस दृष्टिकोण का उद्देश्य व्यक्तियों को उसकी पसंद एवं अवसरों के साथ आगे बढ़ाना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइए। औद्योगिक नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अन्तरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) प्रश्न. श्रम प्रधान निर्यातों के लक्ष्य को प्राप्त करने में विनिर्माण क्षेत्रक की विफलता का कारण बताइए। पूंजी-प्रधान निर्यातों की अपेक्षा अधिक श्रम-प्रधान निर्यातों के लिये उपायों को सुझाइए। (2017) |
सामाजिक न्याय
सरोगेसी कानून
प्रिलिम्स के लिये:सरोगेसी कानून, सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021, परोपकारी सरोगेसी, वाणिज्यिक सरोगेसी, संविधान का अनुच्छेद 21। मेन्स के लिये:सरोगेसी कानून तथा संबद्ध चुनौतियाँ, तंत्र, कानून, कमज़ोर वर्गों की सुरक्षा और बेहतरी के लिये गठित संस्थाएँ एवं निकाय। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत सरोगेसी का लाभ उठाने वाली महिलाओं की पात्रता के साथ उनकी वैवाहिक स्थिति के संबंध पर सवाल उठाया है।
- याचिकाकर्त्ता ने सरोगेसी अधिनियम की धारा 2(1)(s) को चुनौती दी, जो 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच भारतीय विधवाओं या तलाकशुदा महिलाओं के सरोगेसी का लाभ उठाने के अधिकार को सीमित करती है।
- याचिकाकर्त्ता की याचिका में उस नियम को भी चुनौती दी गई है जो एकल महिला (विधवा या तलाकशुदा) को सरोगेसी के लिये स्वयं के डिम्ब/अण्डाणु का उपयोग करने के लिये मज़बूर करता है। कई मामलों में महिला की उम्र अधिक होती है, इस स्थिति में उसके स्वयं के युग्मकों का उपयोग चिकित्सकीय रूप से अनुचित है तथा वह मादा युग्मकों के लिये एक दाता की तलाश करती है।
सरोगेसी:
- परिचय:
- सरोगेसी एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें एक महिला (सरोगेट) किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) की ओर से बच्चे को जन्म देने के लिये सहमत होती है।
- सरोगेट, जिसे कभी-कभी गर्भकालीन वाहक भी कहा जाता है, वह महिला होती है जो किसी अन्य व्यक्ति या जोड़े (इच्छित माता-पिता) के लिये गर्भ धारण करती है और बच्चे को जन्म देती है।
- परोपकारी सरोगेसी:
- इसमें गर्भावस्था के दौरान चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ के अतिरिक्त सरोगेट माँ के लिये किसी मौद्रिक मुआवज़े को शामिल नहीं किया गया है।
- वाणिज्यिक सरोगेसी:
- इसमें बुनियादी चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज़ से अधिक मौद्रिक लाभ या इनाम (नकद या वस्तु के रूप में) के लिये की गई सरोगेसी या उससे संबंधित प्रक्रियाएँ शामिल हैं।
सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021:
- प्रावधान:
- सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अनुसार, 35 से 45 वर्ष के बीच की आयु की विधवा या तलाकशुदा महिला तथा कानूनी रूप से विवाहित महिला और पुरुष के रूप में परिभाषित युगल सरोगेसी का लाभ उठा सकते है।
- सरोगेसी के लिये इच्छित जोड़ा कानूनी रूप से विवाहित भारतीय पुरुष एवं महिला का होगा, पुरुष की आयु 26-55 वर्ष के बीच होगी तथा महिला की आयु 25-50 वर्ष के बीच होगी और उनका पहले से कोई जैविक, गोद लिया हुआ या सरोगेट बच्चा नहीं होगा।
- यह व्यावसायिक सरोगेसी पर भी प्रतिबंध लगाता है, जिसके लिये 10 वर्ष का काराग्रह और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
- कानून केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है जहांँ कोई पैसे का आदान-प्रदान नहीं होता है, साथ ही सरोगेट मांँ का/की आनुवंशिक रूप से बच्चे की तलाश करने वालों के साथ कोई सम्बन्ध/ जान-पहचान होनी चाहिये।
- सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अनुसार, 35 से 45 वर्ष के बीच की आयु की विधवा या तलाकशुदा महिला तथा कानूनी रूप से विवाहित महिला और पुरुष के रूप में परिभाषित युगल सरोगेसी का लाभ उठा सकते है।
- चुनौतियाँ:
- सरोगेट और बच्चे का शोषण: व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध अधिकार-आधारित दृष्टिकोण से आवश्यकता-आधारित दृष्टिकोण की ओर बढ़ता है, जिससे महिलाओं की अपने प्रजनन संबंधी निर्णय लेने की स्वायत्तता और मातृत्त्व का अधिकार समाप्त हो जाता है। यद्यपि कोई यह तर्क दे सकता है कि राज्य को सरोगेसी के तहत गरीब महिलाओं का शोषण रोकना चाहिये और बच्चे के जन्म के अधिकार की रक्षा करनी चाहिये। हालाँकि वर्तमान अधिनियम इन दोनों हितों को संतुलित करने में विफल रहे हैं।
- पितृसत्तात्मक मानदंडों की सुदृढ़ता: यह अधिनियम हमारे समाज के पारंपरिक पितृसत्तात्मक मानदंडों को सुदृढ़ करता है जो महिलाओं के कार्य को कोई आर्थिक मूल्य नहीं देते हैं और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन के लिये महिलाओं के मौलिक अधिकारों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।
- भावनात्मक जटिलताएँ: परोपकारी सरोगेसी में सरोगेट माँ के रूप में कोई दोस्त अथवा रिश्तेदार न केवल भावी माता-पिता के लिये बल्कि सरोगेट बच्चे के लिये भी भावनात्मक जटिलताएँ उत्पन्न कर सकता है क्योंकि सरोगेसी की अवधि और जन्म के बाद बच्चे से उनके रिश्ते को लेकर समस्याएँ हो सकती हैं।
- परोपकारी सरोगेसी इच्छुक दंपत्ति के लिये सरोगेट माँ चुनने के विकल्प को भी सीमित कर देती है क्योंकि बहुत ही सीमित रिश्तेदार इस प्रक्रिया में शामिल होने के लिये तैयार होंगे।
- तीसरे पक्ष की भागीदारी न होना: परोपकारी सरोगेसी में किसी तीसरे पक्ष की भागीदारी नहीं होती है। तीसरे पक्ष की भागीदारी यह सुनिश्चित करती है कि इच्छित युगल सरोगेसी प्रक्रिया के दौरान चिकित्सा और अन्य विविध खर्चों को वहन करेगा तथा उसका समर्थन करेगा।
- कुल मिलाकर, एक तीसरा पक्ष इच्छित युगल और सरोगेट माँ दोनों को जटिल प्रक्रिया से गुज़रने में मदद करता है, जो परोपकारी सरोगेसी के मामले में संभव नहीं हो सकता है।
- सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने से संबंधित कुछ शर्तें:
- सरोगेसी सेवाओं का लाभ उठाने के लिये अविवाहित महिलाओं, एकल पुरुषों, लिव-इन पार्टनर्स और समान-लिंग वाले युग्मों को बाहर रखा गया है।
- यह वैवाहिक स्थिति लिंग एवं यौन रुझान के आधार पर भेदभाव है और उन्हें अपनी इच्छा का परिवार बनाने के अधिकार से वंचित करता है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में किये गये बदलाव:
- मार्च 2023 में एक सरकारी अधिसूचना ने प्रदाता युग्मकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाते हुए कानून में संशोधन किया।
- इसमें कहा गया है कि "इच्छुक जोड़ों" को सरोगेसी के लिये अपने स्वयं के युग्मकों का उपयोग करना होगा।
- इस संशोधन को महिला के मातृत्व के अधिकार का उल्लंघन बताकर चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी।
- न्यायालय के अनुसार, शिशु का माता या पिता से आनुवंशिक संबंध होना चाहिये।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि गर्भकाल में सरोगेसी की अनुमति देने वाला कानून "महिला-केंद्रित" है, जिसका अर्थ है कि सरोगेट शिशु को जन्म देने का निर्णय महिला की चिकित्सीय या जन्मजात स्थिति के कारण माँ बनने में असमर्थता पर आधारित है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब सरोगेसी नियमों का नियम 14(a) लागू होता है, जो चिकित्सा या जन्मजात स्थितियों को सूचीबद्ध करता है तथा एक महिला को गर्भकालीन/जेस्टेशनल सरोगेसी का विकल्प चुनने की अनुमति देता है, तो बच्चा इच्छित जोड़े, विशेषकर पिता से संबंधित होना चाहिये।
- जेस्टेशनल सरोगेसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक महिला दूसरे व्यक्ति या जोड़े के लिये एक बच्चे को जन्म देती है। इसमें सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल माँ नहीं होती है, बल्कि वह सिर्फ बच्चे को जन्म देती है। इस गर्भाधान में होने वाले अथवा डोनर/प्रदाता पिता के शुक्राणु और माता के अंडाणु का टेस्ट-ट्यूब के तहत निषेचन कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के गर्भाशय में ट्रांसप्लांट किया जाता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उन महिलाओं के लिये सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के नियम 7 को प्रतिबंधित किया है जो मेयर-रोकितांस्की-कुस्टर-हॉसर (MRKH) सिंड्रोम (एक असामान्य जन्मजात विकार जो महिला प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करता है) से पीड़ित हैं, ताकि पीड़ित महिला को प्रदाता डिम्ब/अंडाणु का प्रयोग करके सरोगेसी के क्रियान्वयन की अनुमति दी जा सके।
- सरोगेसी अधिनियम का नियम 7 प्रक्रिया के लिये प्रदाता डिम्ब/अंडाणु के उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है।
आगे की राह
- समावेशिता, नैतिकता और चिकित्सा प्रगति पर ध्यान केंद्रित करके भारत सरोगेसी के लिये एक ऐसा मज़बूत कानूनी ढाँचा स्थापित कर सकता है जो व्यक्तियों के अधिकारों का सम्मान करता है, इसमें शामिल सभी पक्षों की भलाई सुनिश्चित करता है तथा सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से परिवार शुरू करने के इच्छुक लोगों का समर्थन करता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
OECD रिपोर्ट में भारतीय किसानों के कराधान पर प्रकाश
प्रिलिम्स के लिये:आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD), बाज़ार समर्थन मूल्य (MPS) मेन्स के लिये:सरकारी खरीद और वितरण, सरकारी नीतियों एवं पहलों का प्रभाव |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की कृषि नीति निगरानी तथा मूल्यांकन, 2023 नामक एक नवीनतम रिपोर्ट ने वर्ष 2022 में भारतीय किसानों के अंतर्निहित कराधान पर अपना स्पष्टीकरण दिया है।
- एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में भारतीय किसानों पर 169 अरब अमेरिकी डॉलर का टैक्स लगाया गया।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- भारत का नकारात्मक MPS प्रभुत्व:
- वर्ष 2022 में OECD रिपोर्ट में विश्लेषण किये गए 54 देशों के बीच भारत के नकारात्मक बाज़ार समर्थन मूल्य (MPS) का वैश्विक स्तर पर 80% से अधिक ऐसे करों के लिये योगदान था।
- 54 देशों में किसानों के लिये कुल अंतर्निहित कराधान लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। भारतीय किसानों पर लगाया गया अंतर्निहित कराधान आश्चर्यजनक रूप से 169 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिससे भारत इस परिदृश्य में एक अग्रणी राष्ट्र बन गया।
बाज़ार समर्थन मूल्य (MPS):
- इसे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के बीच मूल्य अंतर उत्पन्न करने वाले नीतिगत उपायों के कारण "उपभोक्ताओं एवं करदाताओं द्वारा कृषि उत्पादकों को सकल हस्तांतरण के वार्षिक मौद्रिक मूल्य" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- यह किसानों द्वारा अनुभव किये गए लाभ या हानि का माप है जब घरेलू कीमतें वैश्विक कीमतों से भिन्न होती हैं।
- उभरती अर्थव्यवस्थाओं में ऑफसेट प्रयास:
- नकारात्मक MPS वाली कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने बाह्य बजट समर्थन के माध्यम से MPS की भरपाई की है।
- हालाँकि, भारत के मामले में, परिवर्तनीय इनपुट उपयोग के लिये बड़ी सब्सिडी के रूप में किसानों को विभिन्न बजटीय हस्तांतरण, जैसे उर्वरक, विद्युत और सिंचाई जल, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) ने घरेलू विपणन नियमों और व्यापार नीति उपायों के मूल्य-दबाने के प्रभाव को कम नहीं किया।
- नकारात्मक MPS वाली कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने बाह्य बजट समर्थन के माध्यम से MPS की भरपाई की है।
- भारतीय किसानों पर प्रभाव:
- जबकि बजटीय हस्तांतरण सकल कृषि प्राप्तियों का 11% था तथा विभिन्न वस्तुओं के लिये नकारात्मक MPS 27.5% था।
- इस विसंगति के परिणामस्वरूप किसानों को सकल कृषि प्राप्तियों का 15% नकारात्मक शुद्ध समर्थन प्राप्त हुआ, जो उनके लिये एक चिंताजनक स्थिति है।
- जबकि बजटीय हस्तांतरण सकल कृषि प्राप्तियों का 11% था तथा विभिन्न वस्तुओं के लिये नकारात्मक MPS 27.5% था।
- वर्ष 2022 में निर्यात नीतियाँ:
- वर्ष 2022 में भारत ने मुख्य रूप से यूक्रेन में युद्ध और वर्ष 2022 हीटवेव की प्रतिक्रिया के रूप में कई वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंध, शुल्क और परमिट प्रस्तुत किये।
- इन नीतियों का उद्देश्य घरेलू कीमतों में उतार-चढ़ाव को रोकना था, लेकिन ऐसा करने से किसानों की प्राप्ति में कमी आई है।
- इन निर्यात नीतियों से प्रभावित वस्तुओं में विभिन्न प्रकार के चावल, गेहूँ, चीनी, प्याज और संबंधित उत्पाद, जैसे- गेहूँ का आटा, शामिल हैं।
- निर्यात प्रतिबंधों ने एक आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की विश्वसनीयता को सीधे प्रभावित किया और न्यून कृषि आय की चुनौती को बढ़ा दिया।
- इन नीतियों ने न केवल घरेलू बाज़ारों को बल्कि वैश्विक कृषि उत्पादक के रूप में देश की स्थिति को भी प्रभावित किया।
- वर्ष 2022 में भारत ने मुख्य रूप से यूक्रेन में युद्ध और वर्ष 2022 हीटवेव की प्रतिक्रिया के रूप में कई वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंध, शुल्क और परमिट प्रस्तुत किये।
- वैश्विक परिप्रेक्ष्य:
- OECD रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सत्र 2020-2022 के दौरान 54 देशों में कृषि क्षेत्र को प्राप्त उत्पादक समर्थन सालाना औसतन 851 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो कि कोविड -19 महामारी, मुद्रास्फीति के दबाव और यूक्रेन युद्ध के नतीजों की प्रतिक्रिया के कारण पर्याप्त वृद्धि को प्रदर्शित करता है।
- विरूपण की संभावना:
- 54 देशों में से उत्पादकों को दिये गए दो-तिहाई सकारात्मक समर्थन ने व्यापार और उत्पादन के लिये "संभावित रूप से सबसे अधिक विकृत" माने जाने वाले उपायों का रूप लिया।
- इन रूपों में आउटपुट पर आधारित भुगतान तथा परिवर्तनीय इनपुट का अप्रतिबंधित उपयोग शामिल है, जिससे अक्षमता और लक्षित समर्थन की कमी हो सकती है।
- अंतर्राष्ट्रीय असमानताएँ:
- उभरती अर्थव्यवस्थाओं में संभावित रूप से अधिक विकृत नीतियाँ व्याप्त थीं, जिससे वर्ष 2020-2022 के दौरान उत्पादकों को सकारात्मक समर्थन (सकल कृषि प्राप्तियों का 10%) और अंतर्निहित कराधान (सकल कृषि प्राप्तियों का 6%) उत्पन्न हुए।
- इसके विपरीत OECD देशों में संभावित रूप से विकृत करने वाली नीतियों का स्तर कम था, लेकिन वे उत्पादकों पर परोक्ष रूप से कर नहीं लगाते थे।
किसानों से संबंधित भारत की पहल
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)
- किसान क्रेडिट कार्ड (KCC)
- उत्तर पूर्वी क्षेत्र हेतु मिशन जैविक मूल्य शृंखला विकास (MOVCDNER)
- सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन
- परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
- एग्री-टेक (AgriStack)
- डिजिटल कृषि मिशन
आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD):
- परिचय:
- OECD एक अंतरसरकारी आर्थिक संगठन है जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति और विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
- अधिकांश OECD सदस्य राष्ट्र उच्च आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ हैं जिनका मानव विकास सूचकांक (HDI) बहुत उच्च है और उन्हें विकसित देश माना जाता है।
- नींव:
- इसके मुख्यालय की स्थापना वर्ष 1961 में पेरिस, फ्राँस में की गई थी और इसमें कुल 38 सदस्य देश हैं।
- OECD में शामिल होने वाले सबसे हालिया देश अप्रैल 2020 में कोलंबिया और मई 2021 में कोस्टा रिका थे।
- भारत इसका सदस्य नहीं है, बल्कि एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।
- OECD द्वारा रिपोर्ट और सूचकांक:
- सरकार एक नज़र में
- बेहतर जीवन सूचकांक
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर:C प्रश्न. 'राष्ट्रीय कृषि बाज़ार' (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) स्कीम को क्रियान्वित करने का/के क्या लाह है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C मेन्सप्रश्न. भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन एवं विपणन में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? (2020) |
शासन व्यवस्था
भारत में सड़क दुर्घटनाएँ-2022
प्रिलिम्स के लिये:मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019, भारत में सड़क दुर्घटनाएँ- 2022, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, एशिया एवं प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक आयोग (UNESCAP), राष्ट्रीय राजमार्ग और एक्सप्रेसवे मेन्स के लिये:भारत में सड़क दुर्घटनाएँ- 2022, विभिन्न क्षेत्रों में विकास हेतु सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप एवं उनकी रूपरेखा तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: पी.आई.बी
हाल ही में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 'भारत में सड़क दुर्घटनाएँ- 2022' शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जो सड़क दुर्घटनाओं और इससे होने वाली मृत्यु से संबंधित मामलों पर प्रकाश डालती है।
- यह रिपोर्ट एशिया प्रशांत सड़क दुर्घटना डेटा (APRAD) आधार परियोजना के अंतर्गत एशिया और प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (UNESCAP) द्वारा प्रदान किये गए मानकीकृत प्रारूपों में कैलेंडर वर्ष के आधार पर राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के पुलिस विभागों से प्राप्त डेटा/जानकारी पर आधारित है।
- APRAD एक सॉफ्टवेयर टूल है जिसे विशेष रूप से UNESCAP और उसके सदस्य देशों के लिये एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सदस्य देशों द्वारा सड़क दुर्घटना डेटाबेस को विकसित करने, अद्यतन करने, बनाए रखने एवं प्रबंधित करने में सहायता करने के लिये विकसित किया गया है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- सड़क दुर्घटनाओं की संख्या:
- वर्ष 2022 में भारत में कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 1,68,491 लोगों ने अपनी जान गँवाई और कुल 4,43,366 लोग घायल हो गए।
- विगत वर्षों की तुलना में दुर्घटनाओं में 11.9 प्रतिशत, मृत्यु में 9.4 प्रतिशत और घायल लोगों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2022 में भारत में कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें 1,68,491 लोगों ने अपनी जान गँवाई और कुल 4,43,366 लोग घायल हो गए।
- सड़क दुर्घटना वितरण:
- वर्ष 32.9% दुर्घटनाएँ राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर, 23.1% राज्य राजमार्गों पर एवं शेष 43.9% अन्य सड़कों पर हुईं।
- 36.2% मौतें राष्ट्रीय राजमार्गों पर, 24.3% राज्य राजमार्गों पर और 39.4% अन्य सड़कों पर हुईं।
- जनसांख्यिकीय प्रभाव:
- वर्ष 2022 में दुर्घटना का शिकार होने वाले लोगों में 18 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के युवा वयस्कों की संख्या 66.5% थी।
- इसके अतिरिक्त 18-60 वर्ष के कामकाज़ी आयु वर्ग के व्यक्ति सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली कुल मौतों का 83.4% हिस्सा थे।
- ग्रामीण बनाम शहरी दुर्घटनाएँ:
- वर्ष 2022 में सड़क दुर्घटना में लगभग 68% मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं, जबकि देश में कुल दुर्घटना मौतों में शहरी क्षेत्रों का योगदान 32% है।
- वाहन श्रेणियाँ:
- लगातार दूसरे वर्ष 2022 में कुल दुर्घटनाओं और मृत्यु दर दोनों में दोपहिया वाहनों की हिस्सेदारी सर्वाधिक रही।
- कार, जीप और टैक्सियों सहित हल्के वाहन दूसरे स्थान पर रहे।
- सड़क-उपयोगकर्ता श्रेणियाँ:
- सड़क-उपयोगकर्ता श्रेणियों में कुल मृत्यु के मामलों में दोपहिया सवारों की हिस्सेदारी सबसे अधिक थी, जो वर्ष 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए 44.5% व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करती है।
- 19.5% मौतों के साथ पैदल सड़क उपयोगकर्ताओं दूसरे स्थान पर रहे।
- राज्य-विशिष्ट डेटा:
- वर्ष 2022 में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएँ तमिलनाडु में दर्ज़ की गईं, कुल दुर्घटनाओं में से 13.9%, इसके बाद 11.8% के साथ मध्य प्रदेश का स्थान आता है।
- सड़क दुर्घटनाओं के कारण सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश (13.4%) में हुईं, उसके बाद तमिलनाडु (10.6%) का स्थान रहा। लक्षित हस्तक्षेपों के लिये राज्य-विशिष्ट रुझानों को समझना आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तुलना:
- सड़क दुर्घटनाओं के कारण मरने वाले कुल व्यक्तियों की संख्या भारत में सबसे अधिक है, इसके बाद चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान है।
- वेनेज़ुएला में प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर मारे गए व्यक्तियों की दर सबसे अधिक है।
भारतीय सड़क नेटवर्क की स्थिति:
- सत्र 2018-19 में भारत का सड़क घनत्व 1,926.02 प्रति 1,000 वर्ग किमी. क्षेत्र कई विकसित देशों की तुलना में अधिक था, हालाँकि सड़क की कुल लंबाई का 64.7% हिस्सा सतही/पक्की सड़क है, जो विकसित देशों की तुलना में तुलनात्मक रूप से कम है।
- वर्ष 2019 में देश की कुल सड़क की लंबाई का 2.09% हिस्सा राष्ट्रीय राजमार्गों का था।
- शेष सड़क नेटवर्क में राज्य राजमार्ग (2.9%), ज़िला सड़कें (9.6%), ग्रामीण सड़कें (7.1%), शहरी सड़कें (8.5%) और परियोजना सड़कें (5.4%) शामिल हैं।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा सड़क दुर्घटना न्यूनीकरण उपाय:
- शिक्षा के उपाय:
- सड़क सुरक्षा के बारे में प्रभावी जन जागरूकता बढ़ाने के लिये मंत्रालय द्वारा सोशल मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के माध्यम से विभिन्न प्रचार उपाय एवं जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।
- इसके अलावा मंत्रालय सड़क सुरक्षा समर्थन के संचालन हेतु विभिन्न एजेंसियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये एक योजना लागू करता है।
- इंजीनियरिंग उपाय:
- योजना स्तर पर सड़क सुरक्षा को सड़क डिज़ाइन का एक अभिन्न अंग बनाया गया है। सभी राजमार्ग परियोजनाओं का सभी चरणों में सड़क सुरक्षा ऑडिट (RSA) अनिवार्य कर दिया गया है।
- मंत्रालय ने वाहन की अगली सीट पर ड्राइवर के बगल में बैठे यात्री के लिये एयरबैग के अनिवार्य प्रावधान को अधिसूचित किया है।
- प्रवर्तन उपाय:
- मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019।
- सड़क सुरक्षा नियमों की इलेक्ट्रॉनिक निगरानी और प्रवर्तन {इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन उपकरणों (स्पीड कैमरा, बॉडी वियरेबल कैमरा, डैशबोर्ड कैमरा आदि के माध्यम से) के व्यवहार के लिये विस्तृत प्रावधान को निर्दिष्ट करना}।
सड़क सुरक्षा से संबंधित पहल:
- वैश्विक:
- सड़क सुरक्षा पर ब्राज़ीलिया घोषणा (2015):
- इस घोषणा पर ब्राज़ील में आयोजित सड़क सुरक्षा पर दूसरे वैश्विक उच्च-स्तरीय सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षर किये गए। भारत भी इस घोषणापत्र का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- देशों की योजना सतत् विकास लक्ष्य 3.6 अर्थात् वर्ष 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली वैश्विक मौतों और चोटों की संख्या को आधा करने की है।
- सड़क सुरक्षा के लिये कार्रवाई का दशक 2021-2030:
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2030 तक कम-से-कम 50% सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों और चोटों को रोकने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ "वैश्विक सड़क सुरक्षा में सुधार" संकल्प को अपनाया।
- वैश्विक योजना सड़क सुरक्षा के लिये समग्र दृष्टिकोण के महत्त्व पर बल देते हुए स्टॉकहोम घोषणा के अनुरूप है।
- अंतर्राष्ट्रीय सड़क मूल्यांकन कार्यक्रम (iRAP):
- यह एक पंजीकृत चैरिटी है जो सुरक्षित सड़कों के माध्यम से लोगों की जान बचाने के लिये समर्पित है।
- सड़क सुरक्षा पर ब्राज़ीलिया घोषणा (2015):
- भारत:
- मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019:
- यह अधिनियम यातायात उल्लंघन, दोषपूर्ण वाहन, नाबलिकों द्वारा वाहन चलाने आदि के लिये दंड में वृद्धि करता है।
- यह अधिनियम मोटर वाहन दुर्घटनाओं हेतु सहायक निधि प्रदान करता है तथा भारत में कुछ विशेष प्रकार की दुर्घटनाओं पर सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को अनिवार्य बीमा कवरेज प्रदान करता है।
- यह दुर्घटना के समय करने वाले व्यक्तियों के संरक्षण का भी प्रावधान करता है।
- सड़क मार्ग द्वारा वाहन अधिनियम, 2007:
- यह अधिनियम सामान्य माल वाहकों के विनियमन से संबंधित प्रावधान प्रदान करता है, उनकी देयता को सीमित करता है और उन्हें वितरित किये गए माल के मूल्य की घोषणा करता है ताकि ऐसे सामानों के नुकसान या क्षति के लिये उनकी देयता का निर्धारण किया जा सके, जो लापरवाही या आपराधिक कृत्यों के कारण स्वयं, उनके नौकरों या एजेंटों की गलती से/जानबूझकर हुआ हो।
- राष्ट्रीय राजमार्ग नियंत्रण (भूमि और यातायात) अधिनियम, 2000:
- यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के भीतर भूमि का नियंत्रण, रास्ते का अधिकार और राष्ट्रीय राजमार्गों पर यातायात का नियंत्रण करने संबंधी प्रावधान प्रदान करता है तथा साथ ही उन पर अनधिकृत कब्ज़े को हटाने का भी प्रावधान करता है।
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1998:
- यह अधिनियम राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिये एक प्राधिकरण के गठन तथा उससे जुड़े या उसके आनुषंगिक मामलों से संबंधित प्रावधान प्रस्तुत करता है।
- मोटर वाहन संशोधन अधिनियम, 2019:
आंतरिक सुरक्षा
राष्ट्रपति ने भारतीय सेना के एक मेजर की सेवाएँ समाप्त कीं
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रपति, सामरिक बल कमान, अनुच्छेद 310, सेना अधिनियम- 1950, सैन्य खुफिया (MI) निदेशालय, सैन्य खुफिया महानिदेशालय (DGMI), पाकिस्तान इंटेलिजेंस ऑपरेटिव (PIO) मेन्स के लिये:राष्ट्रों की आंतरिक सुरक्षा और संप्रभुता पर सुरक्षा बलों के विश्वासघाती रवैये का प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत के राष्ट्रपति ने सामरिक बल कमान (Strategic Forces Command- SFC) इकाई में तैनात भारतीय सेना के एक मेजर को सैन्य जाँच के बाद गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा उल्लंघनों में शामिल होने के कारण बर्खास्त कर दिया है।
- राष्ट्रपति ने उनकी सेवाओं को तुरंत समाप्त करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 310 और अन्य प्रासंगिक शक्तियों के साथ-साथ सेना अधिनियम, 1950 के तहत अपने अधिकार का उपयोग किया।
सेना के मेजर के कार्यों और उसके बाद बर्खास्तगी में शामिल नैतिक चिंताएँ:
- नैतिक उल्लंघन और राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताएँ:
- मार्च 2022 में शुरू की गई एक सैन्य जाँच में मेजर द्वारा की गई गलतियों और नैतिक उल्लंघनों का खुलासा हुआ, जिसमें वर्गीकृत जानकारी साझा करना, संदिग्ध वित्तीय लेनदेन और सोशल मीडिया के माध्यम से एक पाकिस्तानी खुफिया ऑपरेटर के साथ संबंध होना शामिल थे।
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मेजर के पास इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं उनके दुर्लभ उपयोग पर गुप्त दस्तावेज़ मिलना भी सैन्य नियमों के खिलाफ था। इन कार्रवाइयों ने महत्त्वपूर्ण नैतिक चिंताएँ उत्पन्न कीं जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरे की स्थिति बन गई है।
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- मार्च 2022 में शुरू की गई एक सैन्य जाँच में मेजर द्वारा की गई गलतियों और नैतिक उल्लंघनों का खुलासा हुआ, जिसमें वर्गीकृत जानकारी साझा करना, संदिग्ध वित्तीय लेनदेन और सोशल मीडिया के माध्यम से एक पाकिस्तानी खुफिया ऑपरेटर के साथ संबंध होना शामिल थे।
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राष्ट्रपति का अधिकार और कानूनी आधार:
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राष्ट्रपति ने सैन्य अधिनियम, 1950 की धारा 18 द्वारा प्रदत्त शक्तियों और अन्य प्रासंगिक सक्षम शक्तियों के अनुसार, मेजर की सेवाओं को तुरंत समाप्त करने के आदेश जारी किये।
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यह कार्रवाई स्थापित कानूनी प्रावधानों के ढाँचे के भीतर कार्यकारी प्राधिकार के प्रयोग को प्रदर्शित करती है। यह नैतिक मानकों को बनाए रखने और सैन्य अखंडता को बनाए रखने की प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करता है।
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व्यापक निहितार्थ और जारी जाँच:
- सेवा समाप्ति के आदेश सशस्त्र बलों में नैतिक आचरण, अखंडता और राष्ट्रीय सुरक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हैं।
- उल्लेखनीय है कि सेना ने आचार संहिता के महत्त्व को बढ़ाने वाले इस समूह में उनकी सदस्यता से संबंधित सोशल मीडिया नीति के उल्लंघन के लिये एक ब्रिगेडियर और एक लेफ्टिनेंट कर्नल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की है।
- यह मामला सुरक्षा के संभावित उल्लंघनों और कर्तव्यनिष्ठा की कमी को दूर करने में सेना की सतर्कता एवं सक्रियता पर ज़ोर देता है।
- वर्गीकृत सैन्य जानकारी और खुफिया-विरोधी चिंताओं की सुरक्षा के लिये चल रहे प्रयास सेना के लिये एक महत्त्वपूर्ण फोकस बने हुए हैं, जिनमें से कम से कम उच्च नैतिक मानक स्थापित करना तथा संविधान के अनुसार मौलिक कर्तव्यों का पालन करना शामिल है।
सिविल सेवाओं से संबंधित भारतीय संविधान के अनुच्छेद 309, 310 और 311:
- भारत के संविधान का भाग XIV संघ और राज्य के अधीन सेवाओं से संबंधित है।
- अनुच्छेद 309 संसद और राज्य विधायिका को क्रमशः संघ या किसी राज्य के मामलों के संबंध में सार्वजनिक सेवाओं तथा पदों पर नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती एवं सेवा की शर्तों को विनियमित करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 310 के अनुसार, संविधान द्वारा प्रदान किये गए प्रावधानों को छोड़कर संघ में एक सिविल सेवक राष्ट्रपति की इच्छा से कार्य करता है और राज्य के अधीन एक सिविल सेवक उस राज्य के राज्यपाल की इच्छा से कार्य करता है।
- लेकिन सरकार की यह शक्ति निरपेक्ष नहीं है।
- लेकिन सरकार की यह शक्ति निरपेक्ष नहीं है।
- अनुच्छेद 311:
- अनुच्छेद 311 (1) कहता है कि अखिल भारतीय सेवा या राज्य सरकार के किसी भी सरकारी कर्मचारी को अपने अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा बर्खास्त किया या हटाया नहीं जाएगा, जिसने उसे नियुक्त किया था।
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अनुच्छेद 311 (2) के अनुसार, किसी भी सिविल सेवक को ऐसी जाँच के बाद ही पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा अथवा रैंक में अवनत किया जाएगा जिसमें अधिकारी को उसके विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई है तथा उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तिसंगत अवसर प्रदान किया गया है।
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अनुच्छेद 311(2) के अपवाद:
- 2 (a) - इसमें एक व्यक्ति को उसके आचरण के आधार पर बर्खास्त, पद से हटाया अथवा उसकी रैंक में कमी की जाती है जिसके कारण उसे आपराधिक आरोप में दोषी ठहराया गया है; अथवा
- 2 (b) - जब किसी व्यक्ति को बर्खास्त करने अथवा पद से हटाने अथवा उसकी रैंक को कम करने का अधिकार क्षेत्र रखने वाला प्राधिकारी यह निर्धारित करता है कि किसी कारण से जाँच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है, जिसे उस प्राधिकारी द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिये;अथवा
- 2 (c) - जहाँ राष्ट्रपति या राज्यपाल, जिस स्तर का भी मामला हो, संतुष्ट हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में ऐसी जाँच करना उचित नहीं है।
सेना अधिनियम, 1950 के प्रमुख प्रावधान:
- भर्ती और सेवा की शर्तें:
- यह भर्ती की प्रक्रियाओं और सेना कर्मियों के लिये सेवा की शर्तों को निर्दिष्ट करता है, जिसमें भर्ती, प्रशिक्षण और सेवानिवृत्ति की शर्तें शामिल हैं।
- अनुशासन और आचरण: सेना अधिनियम, सेना के भीतर अनुशासन बनाए रखने के लिये एक विस्तृत रूपरेखा प्रदान करता है। इसमें कदाचार के लिये विभिन्न अपराधों और दंडों की रूपरेखा दी गई है, जिसमें अनधीनता, परित्याग, अवज्ञा तथा एक सैनिक के लिये अशोभनीय आचरण शामिल हैं।
- यह भर्ती की प्रक्रियाओं और सेना कर्मियों के लिये सेवा की शर्तों को निर्दिष्ट करता है, जिसमें भर्ती, प्रशिक्षण और सेवानिवृत्ति की शर्तें शामिल हैं।
- कोर्ट-मार्शल:
- यह अधिनियम अपराधों के अभियुक्त सैन्य कर्मियों पर मुकदमा चलाने के लिये संयोजक कोर्ट-मार्शल के लिये वैधानिक ढाँचा स्थापित करता है। इसमें विभिन्न प्रकार के कोर्ट-मार्शल को शामिल किया जाता है, जैसे जनरल कोर्ट-मार्शल (GCM), डिस्ट्रिक्ट कोर्ट-मार्शल (DCM), और समरी जनरल कोर्ट-मार्शल (SGCM)।
- अभियुक्तों के वैधानिक अधिकार: यह अधिनियम कोर्ट-मार्शल का सामना करने वाले अभियुक्तों के लिये वैधानिक अधिकारों और सुरक्षा उपायों की रूपरेखा तैयार करता है, जिसमें वैधानिक प्रतिनिधित्व का अधिकार, मौन रहने का अधिकार और अपील करने का अधिकार शामिल है।
- यह अधिनियम अपराधों के अभियुक्त सैन्य कर्मियों पर मुकदमा चलाने के लिये संयोजक कोर्ट-मार्शल के लिये वैधानिक ढाँचा स्थापित करता है। इसमें विभिन्न प्रकार के कोर्ट-मार्शल को शामिल किया जाता है, जैसे जनरल कोर्ट-मार्शल (GCM), डिस्ट्रिक्ट कोर्ट-मार्शल (DCM), और समरी जनरल कोर्ट-मार्शल (SGCM)।
- निरोध (Detention):
- यह अधिनियम कुछ परिस्थितियों में सैन्य कर्मियों को सेना की सुरक्षा अथवा अनुशासन के लिये खतरा माने जाने की परिस्थिति में हिरासत में लेने का प्रावधान करता है।
- सेवा अधिकरण: सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007 द्वारा सशस्त्र बल अधिकरण की स्थापना की गई, जो सैन्य मामलों से संबंधित अपील और याचिकाओं की सुनवाई के लिये एक विशेष न्यायिक निकाय है।
- यह अधिनियम कुछ परिस्थितियों में सैन्य कर्मियों को सेना की सुरक्षा अथवा अनुशासन के लिये खतरा माने जाने की परिस्थिति में हिरासत में लेने का प्रावधान करता है।
- विविध प्रावधान: इस अधिनियम में विभिन्न विविध प्रावधान शामिल हैं, जिनमें किसी साक्षी की सुरक्षा, न्यायाधीश अधिवक्ताओं की नियुक्ति और शपथ दिलाने के नियम शामिल हैं।
सामरिक बल कमान:
- वर्तमान में दो त्रि-सेवा कमांड हैं, स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (SFC) और अंडमान एवं निकोबार कमांड (ANC), जिसका नेतृत्व 3 सेवाओं के अधिकारियों द्वारा रोटेशन के आधार पर किया जाता है।
- SFC (रणनीतिक बल कमान), देश की परमाणु संपत्तियों की डिलीवरी और परिचालन नियंत्रण की देखभाल करता है। इसे वर्ष 2003 में बनाया गया था, क्योंकि इसकी कोई विशिष्ट भौगोलिक ज़िम्मेदारी और निर्दिष्ट भूमिका नहीं है, इसलिये यह एक एकीकृत थिएटर कमांड के रूप में नहीं बल्कि एक एकीकृत कार्यात्मक कमांड के रूप में कार्य करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. भारत के राष्ट्रपति के चुनाव के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
जैव विविधता और पर्यावरण
वन्यजीव तस्करी एवं संगठित अपराध का संबंध, WJC रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध वन्यजीव व्यापार, अवैध रेत खनन, संगठित अपराध, पैंगोलिन, गैंडे का अवैध शिकार मेन्स के लिये:संगठित अपराध और वन्यजीव तस्करी, रेत खनन, वन्यजीव संरक्षण |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
संगठित अपराध से निपटने हेतु समर्पित एक गैर-लाभकारी संगठन, वन्यजीव न्याय आयोग (Wildlife Justice Commission- WJC) ने एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसका शीर्षक है संगठित अपराध के अन्य रूपों के साथ वन्यजीव अपराध का अभिसरण: 2023 की समीक्षा (Convergence of Wildlife Crime with Other Forms of Organised Crime: A 2023 Review)।
- यह वर्ष 2021 में प्रकाशित पहली रिपोर्ट की अनुवर्ती है, जिसमें वन्यजीव तस्करी को मानव तस्करी, धोखाधड़ी, प्रवासी तस्करी, अवैध दवाओं, भ्रष्टाचार एवं मनी लॉन्ड्रिंग से जोड़ने वाले 12 केस अध्ययनों का उल्लेख किया गया है।
- इस रिपोर्ट में पहली बार अवैध रेत खनन के पर्यावरणीय अपराध का भी वर्णन किया गया है।
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
- वन्यजीव अपराध और संगठित अपराध में वृद्धि:
- रिपोर्ट वन्यजीव तस्करी और संगठित अपराध के विभिन्न रूपों के बीच मज़बूत संबंधों को उजागर करती है।
- इन कनेक्शनों में संरक्षण रैकेट, ज़बरन वसूली, हत्या, मनी लॉन्ड्रिंग, अवैध ड्रग्स, कर अपवंचन और भ्रष्टाचार शामिल हैं।
- इन कनेक्शनों में संरक्षण रैकेट, ज़बरन वसूली, हत्या, मनी लॉन्ड्रिंग, अवैध ड्रग्स, कर अपवंचन और भ्रष्टाचार शामिल हैं।
- रिपोर्ट वन्यजीव तस्करी और संगठित अपराध के विभिन्न रूपों के बीच मज़बूत संबंधों को उजागर करती है।
- अवैध रेत खनन:
- पहली बार रिपोर्ट अवैध रेत खनन को एक पर्यावरणीय अपराध के रूप में पहचानती है।
- रेत, एक कच्चा माल तथा विश्व में दूसरा सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला संसाधन है जिसका उपयोग कंक्रीट, डामर एवं काँच बनाने के लिये किया जाता है।
- प्रत्येक वर्ष लगभग 40-50 बिलियन टन रेत संसाधनों का दोहन किया जाता है, लेकिन उनके निष्कर्षण का प्रबंधन कई देशों में अनुपयुक्त तरीके से नियंत्रित और प्रबंधित होता है।
- रिपोर्ट अनियमित रेत निष्कर्षण के प्रतिकूल प्रभावों पर प्रकाश डालती है, जो विश्व स्तर पर एक महत्त्वपूर्ण कच्चा माल है।
- रेत खनन का पर्यावरणीय प्रभाव:
- अंधाधुंध रेत खनन से क्षरण होता है, जिससे समुदायों और उनकी आजीविका पर नकारात्मक र्रोप से प्रभाव पड़ता है।
- इसके कारण जलभृतों, तूफान से संरक्षण, डेल्टा, मीठे जल और समुद्री मत्स्यपालन, भूमि उपयोग तथा जैवविविधता पर गंभीर परिणाम देखे जाते हैं।
- हिंसक रेत माफियाओं की संलिप्तता:
- रिपोर्ट इस बात पर भी बल देती है कि अवैध रेत-खनन कार्य प्रायः हिंसक रेत माफियाओं द्वारा संचालित किये जाते हैं।
- रिपोर्ट में उदाहरण के तौर पर उन व्यक्तियों की भी पहचान की गई है, जो अवैध रेत खनन का विरोध करने के कारण मारे गए, जिनमें पत्रकार, कार्यकर्त्ता और सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं।
- इस तरह की घटनाएँ न केवल भारत में बल्कि इंडोनेशिया, केन्या, गाम्बिया, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको सहित अन्य देशों में भी दर्ज की गईं।
- पहली बार रिपोर्ट अवैध रेत खनन को एक पर्यावरणीय अपराध के रूप में पहचानती है।
- मामले का अध्ययन:
- वर्ष 2021 के 12 मामलों के अध्ययन के अलावा रिपोर्ट में दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और मध्य अमेरिका से तीन मामलों को दर्ज किया गया है।
- पहले मामले के अध्ययन में दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका में पैंगोलिन शल्क, अवैध रेत खनन, सुरक्षा रैकेट एवं गजदंत (हाथी दाँत) जैसी वस्तुओं के अपयोजन को दर्शाया गया है।
- अफ्रीका के दूसरे मामले में भ्रष्टाचार, गैंडे का अवैध शिकार और मनी लॉन्ड्रिंग के बीच अंतर्निहित अभिसरण शामिल था।
- मध्य अमेरिका के तीसरे अध्ययन में नशीली दवाओं की तस्करी के नेटवर्क और समुद्री खीरा/ सी-क्युकम्बर तथा शार्क से जुड़े समुद्री भोजन व्यवसायों के बीच लेन-देन संबंधी अभिसरण पाया गया, जो अवैध दवाओं की तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग, कर अपवंचन और भ्रष्टाचार से गहनता से जुड़ा हुआ है।
- वर्ष 2021 के 12 मामलों के अध्ययन के अलावा रिपोर्ट में दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और मध्य अमेरिका से तीन मामलों को दर्ज किया गया है।
- कानून प्रवर्तन और नीति निर्माताओं का मार्गदर्शन:
- यह रिपोर्ट वन्यजीवों की तस्करी की बढ़ती गंभीरता पर प्रकाश डालती है, साथ ही गंभीर आपराधिक गतिविधियों से निपटने में महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
- सामान्य तौर पर संगठित अपराध एवं वन्यजीव अपराध से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये अपराध अभिसरण पर अच्छी तरह से शोध किया जाना चाहिये और इसे रणनीति में शामिल किया जाना चाहिये।
- रिपोर्ट का उद्देश्य टाइपोलॉजी एवं रणनीतियाँ प्रदान करना है ताकि अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध से अधिक प्रभावी ढंग से निपटने के प्रयासों में कानून प्रवर्तन और नीति निर्माताओं को मदद मिल सके।
- यह रिपोर्ट वन्यजीवों की तस्करी की बढ़ती गंभीरता पर प्रकाश डालती है, साथ ही गंभीर आपराधिक गतिविधियों से निपटने में महत्त्वपूर्ण हो सकती है।
संगठित अपराध:
- परिचय:
- संगठित अपराध गतिविधियाँ आर्थिक या अन्य लाभ प्राप्त करने के इरादे से किसी गिरोह या सिंडिकेट के सदस्यों द्वारा संयुक्त रूप से या अलग-अलग किये गए कार्यों को संदर्भित करती हैं।
- संगठित अपराध के प्रकार:
- संगठित गिरोहों की आपराधिकता, रैकेटियरिंग, सिंडिकेट अपराध, मादक पदार्थों की तस्करी, साइबर अपराध, मानव तस्करी, मनी लॉन्ड्रिंग, हिंसा, लोगों की तस्करी, ज़बरन वसूली, जालसाज़ी।
- ये कानून प्रवर्तन और विनियमों में कमियों का फायदा उठाकर गुप्त रूप से काम करते हैं।
- संगठित अपराध पर भारत में वैधानिक स्थिति:
- भारत में राष्ट्रीय स्तर पर संगठित अपराध से निपटने के लिये कोई विशिष्ट कानून नहीं है। मौजूदा कानून, जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 एवं स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 अपर्याप्त हैं क्योंकि वे व्यक्तियों को लक्षित करते हैं, न कि आपराधिक समूहों या उद्यमों को।
- गुजरात (गुजरात संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2015), कर्नाटक (कर्नाटक संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2000) और उत्तर प्रदेश (उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम, 2017) जैसे राज्यों ने संगठित अपराध से निपटने के लिये अपने कानून बनाए हैं।
- इसके अतिरिक्त भारत कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों और संधियों का हस्ताक्षरकर्त्ता है, जैसे:
- अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNTOC)
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCAC)
- ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC)
मेन्स वैल्यू एडीशन: वन्यजीव अपराध से निपटने में हिम्मता राम भंभू का योगदान।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. वाणिज्य में प्राणिजात और वनस्पति-जात के व्यापार-संबंधी विश्लेषण (ट्रेड रिलेटेड एनालिसिस ऑफ फौना एंड फ्लौरा इन कॉमर्स/TRAFFIC) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न. तटीय बालू खनन, चाहे वैध हो अथवा अवैध, हमारे पर्यावरण के सामने सबसे बड़े खतरों में से एक है। भारतीय तटों पर हो रहे बालू खनन के प्रभाव का विशिष्ट उदाहरणों का हवाला देते हुए विश्लेषण कीजिये। (2019) |