भारतीय अर्थव्यवस्था
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार, 2023
- 11 Oct 2023
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार 2023, श्रम बाज़ार में लैंगिक विषमता, औद्योगीकरण, लैंगिक वेतन अंतराल, गर्भनिरोधक गोलियाँ। मेन्स के लिये:अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार 2023, भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधन जुटाने, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हार्वर्ड विश्वविद्यालय की प्रोफेसर क्लॉडिया गोल्डिन को उनके शोध के लिये अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार, 2023 प्रदान किया गया है, यह शोध श्रम बाज़ार में स्त्री पुरुष के बीच भेदभाव संबंधी समझ को बेहतर बनाता है।
- गोल्डिन इस पुरस्कार से सम्मानित होने वाली तीसरी महिला हैं। इनसे पूर्व वर्ष 2009 में यह पुरस्कार एलिनोर ओस्ट्रोम और ओलिवर ई. विलियमसन को दिया गया था। वर्ष 2019 में एस्थर डुफ्लो तथा उनके सहयोगी अभिजीत बनर्जी और माइकल क्रेमर को यह पुरस्कार दिया गया था।
अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार:
- अर्थशास्त्र के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1968 में स्वेरिग्स रिक्सबैंक (स्वीडन का केंद्रीय बैंक) द्वारा डायनामाइट के आविष्कारक और नोबेल पुरस्कार के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में की गई थी।
- इसे आधिकारिक तौर पर अल्फ्रेड नोबेल की स्मृति में अर्थशास्त्र में स्वेरिग्स रिक्सबैंक पुरस्कार कहा जाता है।
- मूल रूप से नोबेल पुरस्कार भौतिकी, रसायन विज्ञान, चिकित्सा, साहित्य और शांति जैसे क्षेत्रों में दिये जाते हैं जो नोबेल की इच्छा से स्थापित किये गए थे, अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मूल रूप से दिये जाने वाले नोबेल पुरस्कारों में से नहीं है।
- यह पुरस्कार बाद में अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान का सम्मान करने के लिये स्थापित किया गया था।
- यह पुरस्कार व्यक्तियों अथवा संगठनों को उनके असाधारण शोध, खोज अथवा योगदान के लिये सम्मान देता है जिन्होंने अर्थशास्त्र की समझ और वास्तविक विश्व की समस्याओं के लिये इसके अनुप्रयोग को उन्नत किया है।
अर्थव्यवस्था में नोबेल पुरस्कार के लिये क्लाउडिया का चयन:
- क्लाउडिया गोल्डिन:
- गोल्डिन अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका का अध्ययन करने में अग्रणी रही हैं और उन्होंने इस विषय पर कई किताबें लिखी हैं, जैसे: अंडरस्टैंडिंग द जेंडर गैप: एन इकोनॉमिक हिस्ट्री ऑफ अमेरिकन वुमेन (ऑक्सफोर्ड, 1990) और करियर एंड फैमिली: वुमेन सेंचुरी- लॉन्ग जर्नी टुवर्ड इक्विटी (प्रिंसटन यूनिवर्सिटी प्रेस, 2021)।
- क्लाउडिया का कार्य:
- गोल्डिन ने "सदियों से महिलाओं की आय और श्रम बाज़ार में भागीदारी का पहला संपूर्ण विश्लेषण" पेश किया है।
- उनके शोध से परिवर्तन के कारणों के साथ-साथ शेष लैंगिक अंतर के मुख्य स्रोतों का भी पता चलता है।
- गोल्डिन के इस पथप्रदर्शक कार्य ने पिछले 200 वर्षों में श्रम बाज़ार में महिलाओं की भागीदारी पर प्रकाश डाला है, साथ ही यह भी विश्लेषण किया है कि आखिर पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन अंतर क्यों बना हुआ है, जबकि उच्च आय वाले देशों में कई महिलाएँ पुरुषों की तुलना में बेहतर रूप से शिक्षित होने की संभावनाएँ रखती हैं।
- यद्यपि उनका शोध अमेरिका पर केंद्रित था, लेकिन उनके निष्कर्ष कई अन्य देशों पर लागू होते हैं।
- कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित क्लाउडिया के शोध के निष्कर्ष:
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: औद्योगीकरण से पूर्व महिलाओं की कृषि और कुटीर उद्योगों से संबंधित आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने की अधिक संभावनाएँ होती थीं।
- हालाँकि औद्योगीकरण और फैक्टरी-आधारित कार्य के बढ़ने के साथ महिलाओं को काम/नौकरी करने के लिये घर छोड़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
- सेवा क्षेत्र की भूमिका: 20वीं सदी के प्रारंभ में सेवा क्षेत्र के विकास ने उच्च शिक्षा और रोज़गार के अवसरों तक महिलाओं की पहुँच में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इस क्षेत्र ने महिलाओं को कार्यबल में प्रवेश के अधिक अवसर प्रदान किये।
- विवाहित महिलाओं की भागीदारी: 20वीं सदी की शुरुआत तक कार्यबल में कुल महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 20% थी, किंतु विवाहित महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 5% थी।
- गोल्डिन ने कहा कि "वैवाहिक प्रतिबंध" कानून अक्सर विवाहित महिलाओं को शिक्षक अथवा कार्यालय कर्मी के रूप में कार्यरत रहने अथवा रोज़गार से जुड़े रहने के लिये प्रतिबंधित करता है।
- श्रमबल की बढ़ती मांग के बावजूद भी श्रम बाज़ार के कुछ हिस्सों से विवाहित महिलाओं को बाहर रखा गया है।
- कॅरियर विकल्पों की भूमिका: अपने भविष्य और कॅरियर को लेकर महिलाओं की अपेक्षाओं की लैंगिक वेतन अंतराल में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
- अपनी माताओं के अनुभवों का महिलाओं के कॅरियर संबंधी निर्णय पर काफी प्रभाव पड़ा, जिस कारण कई महिलाओं को काफी बार ऐसे विकल्प का चयन करना पड़ा जो ज़रूरी नहीं कि दीर्घकालिक, निर्बाध और फलदायी हों।
- गर्भनिरोधक गोलियों की भूमिका: 1960 के दशक के अंत तक उपयोग में आसान गर्भनिरोधक गोलियों की उपलब्धता से महिलाओं को प्रसव पर अधिक नियंत्रण रखने तथा अपने कॅरियर और परिवार बढ़ाने की योजना का निर्माण करने में मदद की।
- इससे बड़ी संख्या में महिलाओं ने कानून, अर्थशास्त्र और चिकित्सा जैसे विषयों का अध्ययन किया तथा रोज़गार के विभिन्न क्षेत्रों जुड़ीं।
- पेरेंटहुड/माता-पिता बनने के बाद वेतन अंतराल पर प्रभाव: महिलाओं के शिक्षा और रोज़गार के अवसरों में सुधार के बावजूद, लैंगिक वेतन में अभी भी एक बड़ा अंतराल मौजूद है।
- प्रारंभ में पुरुषों और महिलाओं के बीच आमदनी में अंतर काफी कम होता है, किंतु एक बच्चा आने तथा परिवार बढ़ने का महिलाओं की आमदनी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और समान शिक्षा तथा पेशे के बावजूद महिलाओं की आमदनी में पुरुषों की आमदनी के समान दर से वृद्धि नहीं हो पाती है।
- वेतन अंतराल को बढ़ाने में पेरेंटहुड की बड़ी भूमिका रही है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: औद्योगीकरण से पूर्व महिलाओं की कृषि और कुटीर उद्योगों से संबंधित आर्थिक गतिविधियों में शामिल होने की अधिक संभावनाएँ होती थीं।