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‘कृषि-वानिकी पर उप-मिशन’ योजना

  • 09 Mar 2021
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) योजना के अंतर्गत रेशम क्षेत्र में कृषि वानिकी को प्रोत्साहित करने के लिये एक कन्वर्जेंस मॉडल (Convergence Model) पर केंद्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board) के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • भारत सरकार ने देश में सेरीकल्चर के विकास के लिये अपनी केंद्र प्रायोजित योजना ’सिल्क समग्र’ (Silk Samagra) हेतु तीन वर्ष यानी वर्ष 2017-2020 के लिये 2161.68 करोड़ रुपए आवंटित किये थे।

प्रमुख बिंदु

कन्वर्जेंस मॉडल:

  • उद्देश्य:
    • इस मॉडल का उद्देश्य किसानों को रेशम पालन आधारित कृषि वानिकी मॉडल अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना है, जिससे प्रधानमंत्री के मेक इन इंडिया (Make in India) एवं मेक फॉर द वर्ल्ड (Make for the World) दृष्टिकोण में योगदान मिल सकेगा।
  • कन्वर्जेंस मॉडल के विषय में:
    • यह लिंकेज उत्पादकों को बेहतर रिटर्न देने के लिये कृषि वानिकी में एक नया आयाम जोड़ेगा तथा साथ ही अनेक प्रकार के रेशम, जिसके लिये भारत प्रसिद्ध है, के उत्पादन में सहायक सिद्ध होगा।
    • भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला केंद्रीय रेशम बोर्ड (Central Silk Board) रेशम क्षेत्र में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
      • केंद्रीय रेशम बोर्ड एक वैधानिक निकाय है जिसे वर्ष 1948 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था।
    • रेशम पालन क्षेत्र में सहयोग को औपचारिक रूप देने की पहल विशेष रूप से रेशम कीट पालन वाले पौधों (मलबरी, असन, अर्जुन, सोम, सलू, केसरू, बड़ा केसरू, इत्यादि) को प्रोत्साहित करने के लिये लक्षित है ताकि खेतों पर ब्लॉक पौधारोपण या परिधीय वृक्षारोपण दोनों के रूप में खेती की जा सके। 
  • महत्त्व:
    • खेत की मेड़ों पर रेशम आधारित वृक्ष प्रजातियों के रोपण और रेशम कीटों के पालन में किसानों के लिये कृषि गतिविधियों से आय के नियमित स्रोत के अलावा अतिरिक्त आय के अवसर पैदा करने की क्षमता है।
    • यह वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण में योगदान देगा।

कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) योजना:

  • परिचय
    • कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (DAC & FW) वर्ष 2016-17 से ‘नेशनल एग्रोफोरेस्ट्री पॉलिसी’ (वर्ष 2014) की सिफारिश के हिस्से के रूप में कृषि-वानिकी पर उप-मिशन (SMAF) योजना को लागू कर रहा है।
      • इस नीति को फरवरी, 2014 में दिल्ली में आयोजित ‘वर्ल्ड एग्रोफोरेस्ट्री काॅन्ग्रेस में लॉन्च किया गया था और भारत इस प्रकार की व्यापक नीति वाला पहला देश है।
    • यह योजना केवल उन राज्यों में लागू की गई है, जिन्होंने लकड़ी के परिवहन के लिये ट्रांज़िट नियमों को उदार बनाया है और इसे अन्य राज्यों में तब विस्तारित किया जाएगा, जब इस प्रकार के नियम उन राज्यों द्वारा अधिसूचित किये जाएंगे।
      • वर्तमान में यह योजना 20 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में लागू की जा रही है।
    • यह योजना औषधीय महत्त्व वाली स्थानिक प्रजातियों या वृक्ष प्रजातियों को बढ़ावा देती है।
      • योजना द्वारा विदेशी प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया जाता है।
  • उद्देश्य
    • किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत प्रदान करने तथा खाद्य भंडारों में वृद्धि के लिये जलवायु अनुकूल कृषि फसलों के साथ बहु-उद्देश्यीय वृक्ष लगाने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करना।
  • वित्तपोषण:
    • यह योजना सभी राज्यों में 60:40 (केंद्र:राज्य) के वित्तपोषण पैटर्न पर आधारित है, परंतु उत्तर-पूर्व क्षेत्र के 8 राज्य, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों के लिये यह वित्तपोषण पैटर्न 90:10 पर आधारित है। केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में शत-प्रतिशत वित्तीय सहायता केंद्र सरकार द्वारा प्रदान की जाती है।
  • लाभार्थी:
    • योजना के तहत संबंधित हस्तक्षेपों के लिये कृषकों को हस्तक्षेप की वास्तविक लागत का 50 प्रतिशत (मूल्य मानदंडों के अनुसार अनुमानित लागत की 50 % सीमा तक) तक समर्थन दिया जाएगा।
    • किसान समूह/सहकारी समितियाँ और किसान उत्पादक संगठन (FPO) भी इस कार्यक्रम का लाभ उठा सकते हैं, लेकिन किसानों को यह सहायता निर्धारित मापदंडों और प्रावधानों के अनुरूप ही दी जाएगी।
    • आवंटन का कम-से-कम 50 प्रतिशत हिस्सा लघु और सीमांत किसानों के लिये उपयोग किया जाना आवश्यक है, जिनमें से कम-से-कम 30 प्रतिशत महिला लाभार्थी/किसान होनी अनिवार्य हैं। इसके अलावा विशेष घटक योजना (SCP) और जनजाति उप-योजना (TSP) के लिये कुल आवंटन का क्रमशः 16 प्रतिशत और 8 प्रतिशत अथवा ज़िले में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की कुल आबादी के अनुपात में आवंटन का एक विशेष हिस्सा उपयोग में लाया जाएगा।
    • इस कार्यक्रम के तहत लाभ पाने के लिये किसानों के पास मृदा स्वास्थ्य कार्ड होना अनिवार्य है।

किसानों से संबंधित अन्य पहलें:

कृषि वानिकी

  • कृषि वानिकी, सामाजिक वानिकी का महत्त्वपूर्ण भाग है। इसके अंतर्गत किसान खेतों में फसल उगाने के साथ-साथ पेड़, चारा उत्पादक पौधे, घास व फलीदार फसलें भी उगाते हैं। 
  • कृषि वानिकी में पेड़ों को फसल की श्रेणी में ही रखा जाता है। इसके अंतर्गत पेड़ों को खेतों की मेड़, बाँधों पर, जलाक्रांत क्षेत्रों में और सड़कों के किनारे चरागाहों में उगाया जाता है। 

रेशम उत्पादन

  • रेशम उत्पादन के विषय में:
    • यह कृषि आधारित उद्योग है।
    • इस उद्योग में कच्चे रेशम के उत्पादन के लिये रेशम के कीड़ों का पालन किया जाता है।
    • रेशम उत्पादन के मुख्य क्रिया-कलापों में रेशम कीटों के आहार के लिये खाद्य पौधों की कृषि तथा कीटों द्वारा बुने हुए कोकूनों से रेशम तंतु निकालना, इसका प्रसंस्करण तथा बुनाई आदि की प्रक्रिया सन्निहित है।
      • कच्चा रेशम बनाने के लिये रेशम के कीटों का पालन सेरीकल्चर या रेशमकीट पालन कहलाता है।
    • घरेलू रेशम के कीड़ों (बॉम्बेक्स मोरी) को सेरीकल्चर के उद्देश्य से पाला जाता है।
  • भारत में रेशम उत्पादन:
    • रेशम के कीड़ों की विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त वाणिज्यिक महत्त्व के रेशम के कुल पाँच प्रमुख प्रकार होते हैं।
      • ये हैं- मलबरी (Mulberry), ओक टसर (Oak Tasar), ट्रॉपिकल टसर (Tropical Tasar), मूंगा (Muga) और एरी (Eri)।
    • मलबरी के अलावा रेशम की अन्य किस्में जंगली प्रकार की किस्में होती हैं, जिन्हें सामान्य रूप में ‘वन्या’ (Vanya) कहा जाता है। 
    • भारत में रेशम की इन सभी वाणिज्यिक किस्मों का उत्पादन होता है।
    • दक्षिण भारत देश का प्रमुख रेशम उत्पादक क्षेत्र है और यह क्षेत्र कांचीपुरम, धर्मावरम, आर्नी आदि बुनाई के लिये भी काफी प्रसिद्ध है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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