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शासन व्यवस्था

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र

  • 13 Sep 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, प्रधानमंत्री फॉर्मलाइज़ेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइज़ेज़

मेन्स के लिये:

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की स्थिति, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहलें

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

मुंबई में आयोजित ANUTEC - इंटरनेशनल फूडटेक इंडिया के 17वें संस्करण में उद्योग और सरकार की प्रमुख हस्तियों ने भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपार संभावनाओं पर प्रकाश डाला। भारत इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की राह पर है और यह देश की अर्थव्यवस्था के प्रमुख चालकों में से एक बनने के लिये तत्पर है।

भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की स्थिति:

  • खाद्य प्रसंस्करण- परिचय: 
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र समग्र खाद्य आपूर्ति शृंखला का एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
      • इसमें कच्चे कृषीय और पशुधन उत्पादों को उपभोग के लिये उपयुक्त प्रसंस्कृत व मूल्यवर्द्धित खाद्य उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।
    • इस क्षेत्र में गतिविधियों, प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं की एक विस्तृत शृंखला शामिल है जिसका उद्देश्य खाद्य उत्पादों को सुरक्षित, अधिक सुविधाजनक और लंबे समय तक टिकाउ बनाने के साथ-साथ उनके स्वाद एवं पोषण मूल्य में वृद्धि करना है।
  • भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र: 
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान है, इसका निर्यात में 13% और औद्योगिक निवेश में 6% का योगदान है।
      • इस क्षेत्र ने पर्याप्त प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investments- FDI) को आकर्षित किया है, जिससे वर्ष 2014 से 2020 तक 4.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश हुआ है, जो इस क्षेत्र की आगामी संभावनाओं का संकेत है।
    • इससे वर्ष 2024 तक 9 मिलियन रोज़गार उत्पन्न होने की उम्मीद है। इसके अलावा वर्ष 2030 तक भारत विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा खाद्य और खाद्य प्रौद्योगिकी उपभोक्ता बनने के लिये तैयार है, क्योंकि घरेलू खपत चौगुनी हो जाएगी। 
      • यह इस क्षेत्र की अपार विकास क्षमता को रेखांकित करता है।
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित सरकारी पहल:
  • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ:
    • कोल्ड चेन और भंडारण की कमी: अपर्याप्त कोल्ड स्टोरेज और परिवहन सुविधाओं के परिणामस्वरूप फसल के बाद खराब होने वाली वस्तुओं की  अत्यधिक हानि होती है। इससे न केवल भोजन की गुणवत्ता प्रभावित होती है बल्कि किसानों की आय पर भी असर पड़ता है।
    • खंडित आपूर्ति शृंखला: भारत में आपूर्ति शृंखला अत्यधिक खंडित है, जिससे बढ़ी हुई लागत के साथ ही अपर्याप्तता की स्थिति उत्पन्न होती है। खराब सड़क और रेल बुनियादी ढाँचे के परिणामस्वरूप परिवहन में देरी और नुकसान हो सकता है।
    • जटिल नियम: खाद्य प्रसंस्करण उद्योग नियमों, लाइसेंस और परमिट के एक जटिल जाल के अधीन है, जिसका समाधान करना व्यवसायों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
      • नियमों के असंगत प्रवर्तन से अनुचित प्रतिस्पर्द्धा और गुणवत्ता संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
    • खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आपूर्ति शृंखला में अंतराल के कारण खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करना एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। दूषित या मिलावटी खाद्य उत्पाद सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकते हैं तथा क्षेत्र की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • अनुसंधान और विकास: अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में सीमित निवेश नवाचार और नए, मूल्य वर्द्धित उत्पादों के विकास मे बाधा उत्पन्न करता है।
      • प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का अनुसंधान और विकास (R&D) व्यय-GDP अनुपात 0.7% है जो कि बहुत कम है और विश्व औसत 1.8% से काफी नीचे है।

आगे की राह

  • स्मार्ट फूड प्रोसेसिंग हब: इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ब्लॉकचेन जैसी उन्नत तकनीकों से लैस स्मार्ट फूड प्रोसेसिंग हब की स्थापना की जानी चाहिये। ये केंद्र गुणवत्ता, अनुसंधान क्षमता और दक्षता सुनिश्चित करते हुए खेत से लेकर थाली तक/ फार्म से लेकर भोजन की टेबल तक संपूर्ण खाद्य आपूर्ति शृंखला की निगरानी कर सकते हैं।
  • न्यूट्रास्यूटिकल इनोवेशन: विशिष्ट स्वास्थ्य आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यात्मक और न्यूट्रास्यूटिकल खाद्य पदार्थों की एक शृंखला का विकास करना। इनमें भारतीय आबादी में प्रचलित स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं को दूर करने के लिये आवश्यक पोषक तत्त्वों, प्रोबायोटिक्स और बायोएक्टिव यौगिकों से भरपूर खाद्य पदार्थ शामिल किये जा सकते हैं।
  • शून्य-अपशिष्ट प्रसंस्करण: शून्य-अपशिष्ट प्रसंस्करण तकनीकों को लागू करना ताकि कच्चे माल के प्रत्येक भाग का उपयोग किया जा सके। उदाहरण के लिये खाद्य अपशिष्ट को जैव ईंधन में परिवर्तित करना या जैव-प्लास्टिक या पशु चारा जैसे नए उत्पाद बनाने हेतु खाद्य उपोत्पादों का उपयोग करना।
  • समुदाय-आधारित प्रसंस्करण केंद्र: ग्रामीण क्षेत्रों में समुदाय-आधारित खाद्य प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किये जाने चाहिये। ये केंद्र स्थानीय किसानों के लिये उनकी उपज को संसाधित करने, फसल के बाद के नुकसान को कम करने और ग्रामीण रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने के केंद्र के रूप में कार्य कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत सरकार मेगा फूड पार्क की अवधारणा को किस/किन उद्देश्य/उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है? (2011)

  1. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्तम अवसंरचना सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु। 
  2. खराब होने वाले पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रसंस्करण करने और अपव्यय घटाने हेतु। 
  3. उद्यमियों के लिये उद्यमी और पारिस्थितिकी के अनुकूल आहार प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध कराने हेतु।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. लागत प्रभावी छोटी प्रक्रमण इकाई की अल्प स्वीकार्यता के क्या कारण हैं? खाद्य प्रक्रमण इकाई गरीब किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने में किस प्रकार सहायक होगी? (2017)

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