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जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में समुद्र तटीय कटाव

  • 19 Aug 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये

उत्तर-पूर्वी मानसूनी वर्षा, नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च, दक्षिण-पश्चिम मानसून, चक्रवात

मेन्स के लिये 

भारत में समुद्र तटीय कटाव/ अपरदन के कारण, तटीय प्रबंधन के लिये भारतीय पहलें, पश्चिमी तट की तुलना में पूर्वी तट में अधिक कटाव क्यों

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च (NCCR) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें कहा गया है कि भारत के समुद्र तट का एक-तिहाई हिस्सा 28 वर्षों में समुद्री क्षरण/कटाव से प्रभावित हुआ है।

  • वर्ष 1990 से  वर्ष 2018 के बीच भारत के समुद्र तट के 32% हिस्से में समुद्र का कटाव हुआ तथा 27% का विस्तार हुआ।

प्रमुख बिंदु 

रिपोर्ट के परिणाम :

  • भारत की तटरेखा :
    • देश की तटरेखा 6,631.53 किमी. लंबी है जो पश्चिम में अरब सागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण में हिंद महासागर से घिरी हुई है।
      • 2,135.65 किमी. तक कटाव के अलग-अलग रूप विद्यमान थे  तथा इस अवधि के दौरान 1,760.06 किमी. का विस्तार हुआ।
      • लगभग 2,700 किमी. समुद्र तट रेखा स्थायी रूप से मौजूद है।
    • भारत की लंबी तटरेखा कांडला, मुंबई, न्हावा शेवा, मैंगलोर, कोचीन, चेन्नई, तूतीकोरिन, विशाखापत्तनम और पारादीप जैसे कई प्रमुख बंदरगाहों से युक्त है।
  • तटीय कटाव : 
    • इस अवधि के दौरान पश्चिम बंगाल के समुद्र तट के 60% हिस्से का कटाव हुआ, इसके बाद पुद्दुचेरी (56%), केरल और तमिलनाडु में क्रमशः 41% और 41% का क्षरण हुआ।
    • पश्चिमी तट की तुलना में पूर्वी तट में अधिक कटाव :
      • पूर्वी तट पर बहुत अधिक वर्षा होती है, जो वर्ष के अधिकांश समय समुद्र को अस्थिर रखती है। दक्षिण-पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) के अतिरिक्त अक्तूबर से दिसंबर के पूर्वोत्तर मानसून का प्रभाव पूर्वी तट पर भी होता है और तटीय आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु में वर्षा का कारण बनता है।
      •  पश्चिमी तट (काफी हद तक स्थिर रहा) की तुलना में पिछले तीन दशकों में बंगाल की खाड़ी से लगातार चक्रवाती गतिविधियों के कारण पूर्वी तट में अधिक कटाव हुआ है।
  • भूमि अभिवृद्धि
    • पूर्वी तट पर ओडिशा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ तटीय मृदा क्षरण में 50% से अधिक की वृद्धि हुई है।
    • उसके बाद आंध्र प्रदेश का तट है, जिसमें 48% का विस्तार हुआ; कर्नाटक (26%) आदि।

समुद्रतटीय क्षरण/अपरदन:

  • अर्थ: तटीय अपरदन वह प्रक्रिया है जिसमें मज़बूत लहरों की क्रियाओं द्वारा तटीय क्षेत्र में आई बाढ़ अपने साथ चट्टानों, मिट्टी और/या रेत को नीचे (समुद्र में) की और ले जाती है जिसके कारण  स्थानीय समुद्र का जल स्तर बढ़ता है। 
  • अपरदन और अभिवृद्धि: क्षरण और अभिवृद्धि एक-दूसरे के पूरक हैं। रेत और तलछट एक तरफ से बहकर कहीं और तट पर जाकर जमा हो जाते हैं। 
    • मृदा अपरदन के कारण भूमि और मानव आवासों का ह्रास होता है क्योंकि समुद्र का पानी समुद्र तट के साथ मृदा क्षेत्र को भी अपने साथ बहा कर ले जाता है।
    • दूसरी ओर, मृदा अभिवृद्धि से भूमि क्षेत्र में वृद्धि होती है।
    • हालांँकि यदि डेल्टा, मुहाना और खाड़ी में अभिवृद्धि होती है, तो मिट्टी इन क्षेत्रों में समुद्री जल के प्रवाह को रोक देगी जो जलीय वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों के प्रजनन स्थल हैं।
  • प्रभाव: मनोरंजक गतिविधियाँ (सूर्य स्नान, पिकनिक, तैराकी, सर्फिंग, मछली पकड़ना, नौका विहार, गोताखोरी आदि) प्रभावित हो सकती हैं यदि मौजूदा समुद्र तटों की चौड़ाई कम हो जाए या वे पूरी तरह से गायब हो जाएँ। साथ ही तटीय समुदायों की आजीविका पर भी असर पड़ सकता है।
  • उपाय: मैंग्रोव, कोरल रीफ और लैगून समुद्री तूफानों और कटाव के खिलाफ सबसे अच्छे बचाव साधन माने जाते हैं, क्योंकि वे समुद्री तूफानों की अधिकांश ऊर्जा को विक्षेपित और अवशोषित कर लेते हैं,  इसलिये तट सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिये इन प्राकृतिक आवासों को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। 

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तटीय कटाव की स्थिति पैदा करने वाले कारक:

  • प्राकृतिक घटनाएँ:
    • तरंग ऊर्जा को तटीय क्षरण का प्राथमिक कारण माना जाता है।
    • जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप महाद्वीपीय हिमनदों और बर्फ की चादरों के पिघलने के कारण चक्रवात, समुद्री जल का थर्मल विस्तार, तूफान, सुनामी जैसे प्राकृतिक खतरे क्षरण को तेज़ करते हैं।
  • तटीय बहाव:
    • तटवर्ती रेत के बहाव को भी तटीय कटाव के प्रमुख कारणों में से एक माना जा सकता है।
      • तटीय बहाव का अर्थ है प्रचलित हवाओं के कारण उत्पन्न लहरों द्वारा समुद्र या झील के किनारे से लगी तलछट की प्राकृतिक गति।
  • मानवजनित गतिविधियाँ:
    • रेत खनन और प्रवाल खनन ने तटीय क्षरण में योगदान दिया है जिससे तलछट में  कमी देखी गई है।
    • नदी के मुहाने से तलछट के प्रवाह को कम करने वाली नदियों और बंदरगाहों के जलग्रहण क्षेत्र में बनाए गए मछली पकड़ने के बंदरगाहों तथा बाँधों ने तटीय क्षरण को बढ़ावा दिया है।
  • भारी वर्षा: 
    • भारी वर्षा मिट्टी की संतृप्ति को बढ़ा सकती है, जिसके कारण मिट्टी की पकड़ में कमी आती है और भूस्खलन  की संभावना में वृद्धि होती है।

तटीय प्रबंधन के लिये भारतीय पहलें:

  • राष्ट्रीय सतत् तटीय प्रबंधन केंद्र:
    • इसका उद्देश्य पारंपरिक तटीय और द्वीप समुदायों के लिये लाभ सुनिश्चित करने हेतु भारत में तटीय और समुद्री क्षेत्रों के एकीकृत एवं सतत् प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना:
    • यह स्थिरता प्राप्त करने हेतु भौगोलिक और राजनीतिक सीमाओं सहित तटीय क्षेत्र के सभी पहलुओं के संबंध में एक एकीकृत दृष्टिकोण का उपयोग कर तटीय प्रबंधन संबंधी एक प्रक्रिया है।
  • तटीय विनियमन क्षेत्र:
    • भारत के तटीय क्षेत्रों में गतिविधियों को विनियमित करने के लिये पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) संबंधी अधिसूचना वर्ष 1991 में जारी की गई थी।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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