डेली न्यूज़ (01 May, 2023)



सामान्य रिपोर्टिंग मानक: OECD

प्रिलिम्स के लिये:

सामान्य रिपोर्टिंग मानक, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development- OECD), सूचना का स्वचालित आदान-प्रदान (Automatic Exchange of Information- AEIO), G20, कर चोरी, आधार क्षरण एवं लाभ हस्तांतरण (Base Erosion and Profit Shifting- BEPS)।

मेन्स के लिये:

सामान्य रिपोर्टिंग मानक के बढ़ते दायरे की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों?

भारत आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (Organisation for Economic Cooperation and Development- OECD) देशों के बीच सूचना के स्वचालित आदान-प्रदान (Automatic Exchange of Information- AEIO) के तहत अचल संपत्तियों जैसे गैर-वित्तीय परिसंपत्तियों को शामिल करने के लिये G20 समूह में सामान्य रिपोर्टिंग मानक (Common Reporting Standard- CRS) के दायरे को बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है।

  • भारत में वर्तमान में स्वचालित रूप से सूचना भेजने के लिये 78 अधिकार क्षेत्र और वित्तीय जानकारी प्राप्त करने हेतु AEIO के साथ 108 अधिकार क्षेत्र है।
  • AEOI अनिवासी बैंक खातों की जानकारी को खाताधारक के गृह देश में कर अधिकारियों के साथ साझा करने में सक्षम बनाता है। यह कर चोरी की संभावना को कम करता है।

सामान्य रिपोर्टिंग मानक:

  • परिचय:
    • G20 देशों के प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए CRS को विकसित किया गया था और 15 जुलाई, 2014 को OECD परिषद द्वारा इसका अनुमोदन किया गया था।
    • यह क्षेत्राधिकारों के अंतर्गत अपने वित्तीय संस्थानों से जानकारी प्राप्त करने और वार्षिक आधार पर अन्य क्षेत्राधिकारों के साथ स्वचालित रूप से उस जानकारी का आदान-प्रदान का प्रावधान करता है।
    • इसमें वित्तीय खाते की जानकारी साझा करना, रिपोर्टिंग किये जाने योग्य वित्तीय संस्थान, कवर किये गए खातों और करदाताओं के प्रकार, साथ ही वित्तीय संस्थानों के लिये एहतियाती मानक तरीके, इन सभी का इसमें उल्लेख किया गया है।
  • वर्तमान रूपरेखा:
    • वर्तमान में OECD की स्वचालित सूचना आदान-प्रदान (AEOI) रूपरेखा कर चोरी संबंधी जाँच के उद्देश्य से हस्ताक्षरकर्त्ता देशों के बीच वित्तीय खाता विवरण साझा करने में सहायता प्रदान करती है।
      • कर संबंधी सूचनाओं के स्वचालित आदान-प्रदान को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अगस्त 2022 में OECD ने क्रिप्टो-एसेट रिपोर्टिंग फ्रेमवर्क (CARF) को भी मंज़ूरी दी जो क्रिप्टो-एसेट्स में लेन-देन संबंधी जानकारी की रिपोर्टिंग को एक मानकीकृत स्वरूप प्रदान करता है।

AEIO के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता:

  • AEOI के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता है ताकि सूचना का उपयोग न केवल कर चोरी की जाँच के लिये किया जा सके, बल्कि अन्य गैर-कर कानून लागू करने के उद्देश्यों हेतु भी किया जा सके।
  • जोखिम न केवल वित्तीय संपत्तियों पर है, बल्कि गैर-वित्तीय संपत्तियों जैसे रियल एस्टेट तथा अन्य संपत्तियों को लेकर भी कर चोरी का जोखिम है, इसलिये वित्तीय से अन्य गैर-वित्तीय खातों में CRS का विस्तार किया जाना आवश्यक है।
    • OECD की टैक्स ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान भू-राजनीतिक और ऋण संकट के बीच, विशेष रूप से उन एशियाई देशों द्वारा की गई कर चोरी और अवैध वित्तीय प्रवाह की जाँच किये जाने की आवश्यकता है, जिन्हें वर्ष 2016 में राजस्व में 25 बिलियन यूरो का नुकसान होने का अनुमान है।
    • एक अध्ययन अनुसार, OECD की रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि एशिया की 1.2 ट्रिलियन यूरो की वित्तीय संपत्ति का 4% ऑफशोर आयोजित किया गया था, जिससे वर्ष 2016 में इस क्षेत्र को 25 बिलियन यूरो का संभावित वार्षिक राजस्व का नुकसान हुआ।

कर चोरी को प्रबंधित करने के प्रयास:

आगे की राह

  • वित्तीय और गैर-वित्तीय जानकारी के आदान-प्रदान का विस्तार, कर संग्रह एवं गैर-कर कानून प्रवर्तन प्रयासों के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
  • इन पहलों को प्राथमिकता देने की G20 की प्रतिबद्धता से वैश्विक वित्तीय प्रणालियों में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ सकती है, जिससे अंततः सभी को लाभ होगा।
  • सूचना साझाकरण तंत्र को बेहतर बनाने और किसी भी संभावित गोपनीयता चिंताओं को दूर करने के साथ-साथ उनकी प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये सीमाओं के पार सहयोगपूर्ण कार्य जारी रखना आवश्यक है। ऐसा करके हम एक निष्पक्ष तथा अधिक स्थायी वैश्विक अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकते हैं जो सभी व्यक्तियों और राष्ट्रों को लाभान्वित करेगी।

स्रोत: द हिंदू


राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का चिकित्सा उपकरण क्षेत्र, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2021, प्रधानमंत्री गति शक्ति, PPP, PLI

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति 2023, भारत के चिकित्सा उपकरण क्षेत्र का परिदृश्य।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण (NMD) नीति, 2023 को मंज़ूरी दी है।

  • यह नीति चिकित्सा उपकरण क्षेत्र के त्वरित विकास के लिये एक रोडमैप निर्धारित करती है ताकि निम्नलिखित मिशनों, एक्सेस एवं सार्वभौमिकता, सामर्थ्य, गुणवत्ता, रोगी केंद्रित तथा गुणवत्तापूर्ण देखभाल, निवारक एवं प्रोत्साहक स्वास्थ्य, सुरक्षा, अनुसंधान और नवाचार एवं कुशल जनशक्ति को प्राप्त किया जा सके।

NMD नीति, 2023 की प्रमुख विशेषताएँ:

  • नियामक संचालन: रोगी सुरक्षा और उत्पाद नवाचार को संतुलित करते हुए अनुसंधान तथा व्यवसाय को आसान बनाने के लिये चिकित्सा उपकरणों के लाइसेंस हेतु "सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम" बनाया जाएगा।
    • इस प्रणाली में सभी प्रासंगिक विभाग और संगठन शामिल होंगे, जैसे- MeitY (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) तथा DAHD (पशुपालन और डेयरी विभाग)।
  • अवसंरचना को सक्षम बनाना: आर्थिक क्षेत्रों के पास विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के साथ बड़े चिकित्सा उपकरण पार्क स्थापित किये जाएंगे।
  • अनुसंधान एवं विकास और नवोन्मेष को सुगम बनाना: नीति का उद्देश्य भारत में अनुसंधान तथा विकास को बढ़ावा देना है, जो फार्मा-मेडटेक क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और नवोन्मेष पर प्रस्तावित राष्ट्रीय नीति का पूरक है।
    • इसका उद्देश्य अकादमिक और अनुसंधान संस्थानों, नवोन्मेष केंद्रों, 'प्लग एंड प्ले' बुनियादी ढाँचे में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करना तथा स्टार्ट-अप को समर्थन देना है।
  • निवेश बढ़ाना: यह नीति मेक इन इंडिया, आयुष्मान भारत कार्यक्रम, हील-इन-इंडिया और स्टार्ट-अप मिशन जैसी मौजूदा योजनाओं के पूरक के लिये निजी निवेश एवं सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करती है।
    • मानव संसाधन विकास: नीति का उद्देश्य कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के माध्यम से कौशल, पुनर्कौशल और अपस्किलिंग कार्यक्रम प्रदान करके चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में एक कुशल कार्यबल सुनिश्चित करना है।
    • यह भविष्य की प्रौद्योगिकियों, विनिर्माण और अनुसंधान के लिये कुशल जनशक्ति तैयार करने हेतु मौजूदा संस्थानों में चिकित्सा उपकरणों के लिये समर्पित बहु-विषयक पाठ्यक्रमों का भी समर्थन करेगा।
  • ब्रांड पोज़िशनिंग और जागरूकता निर्माण: नीति विभाग के तहत क्षेत्र के लिये एक समर्पित निर्यात संवर्द्धन परिषद के निर्माण की परिकल्पना करती है जो विभिन्न बाज़ार पहुँच से जुड़े मुद्दों से निपटने में सक्षम होगी।

नीति का महत्त्व:

  • इस नीति से चिकित्सा उपकरण उद्योग को एक प्रतिस्पर्द्धी, आत्मनिर्भर, सशक्त और अभिनव उद्योग के रूप में मज़बूत करने के लिये आवश्यक समर्थन एवं दिशा-निर्देश प्रदान किये जाने की उम्मीद है, जो न केवल भारत बल्कि दुनिया की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम हो।
  • इसका उद्देश्य चिकित्सा उपकरण क्षेत्र को रोगियों की बढ़ती स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ विकास के त्वरित पथ पर लाना है।
  • इसका लक्ष्य रोगी-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ त्वरित विकास पथ और अगले 25 वर्षों में बढ़ते वैश्विक बाज़ार में 10-12 प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल करके चिकित्सा उपकरणों के निर्माण एवं नवाचार में वैश्विक अग्रणी के रूप में उभरना है।
    • नई नीति के साथ केंद्र का लक्ष्य अगले कुछ वर्षों में भारत की आयात निर्भरता को लगभग 30% तक कम करना और शीर्ष पाँच वैश्विक विनिर्माण केंद्रों में से एक बनना है।
  • इस नीति से वर्ष 2030 तक चिकित्सा उपकरण क्षेत्र को वर्तमान 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने में मदद मिलने की उम्मीद है।

भारतीय चिकित्सा उपकरण क्षेत्र का परिदृश्य:

  • परिचय:
    • भारत में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र एक उभरता क्षेत्र है और स्वास्थ्य सेवा उद्योग का एक महत्त्वपूर्ण घटक है जो तेज़ी से बढ़ रहा है।
    • कोविड-19 महामारी के दौरान यह क्षेत्र काफी तीव्र गति से विकसित हुआ जब भारत ने बड़े पैमाने पर चिकित्सा उपकरणों और वेंटिलेटर, RT-PCR किट तथा PPE किट जैसे नैदानिक किट का वृहत स्तर पर उत्पादन किया था।
    • यह एक बहु-उत्पाद क्षेत्र है, इसका व्यापक वर्गीकरण इस प्रकार है:
      • इलेक्ट्रॉनिक उपकरण
      • प्रत्यारोपण
      • उपभोग्य और डिस्पोज़ेबल
      • इन विट्रो डायग्नोस्टिक्स (IVD) अभिकर्मक
      • सर्जिकल उपकरण
    • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO) द्वारा चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 तैयार किये जाने तक यानी वर्ष 2017 तक यह क्षेत्र काफी हद तक अनियमित रहा।
  • स्थिति:
    • जापान, चीन और दक्षिण कोरिया के बाद भारत एशियाई चिकित्सा उपकरणों का चौथा सबसे बड़ा बाज़ार है तथा वैश्विक स्तर पर शीर्ष 20 चिकित्सा उपकरण बाज़ारों में से है।
    • चिकित्सा उपकरण श्रेणी में वैश्विक स्तर पर भारत की वर्तमान बाज़ार हिस्सेदारी वर्ष 2020 में 1.5% के रूप में 11 बिलियन अमेरिकी डॉलर (यानी 90,000 करोड़ रुपए) है।
    • संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी 40%, जो कि सबसे अधिक है, इसके बाद यूरोप और जापान की हिस्सेदारी क्रमशः 25% और 15% है।
  • सरकारी पहलें:
    • चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना कार्यरत है। NMDP 2023 मौजूदा PLI योजनाओं के अतिरिक्त है।
      • भारत सरकार ने पहले ही चिकित्सा उपकरणों के लिये PLI योजना का कार्यान्वयन शुरू कर दिया है और चार चिकित्सा उपकरण पार्कों, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु तथा उत्तर प्रदेश प्रत्येक में एक की स्थापना में योगदान दिया है।
      • चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देने का उद्देश्य चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहित करना है।
      • जून 2021 में भारतीय गुणवत्ता परिषद (Quality Council of India- QCI) और चिकित्सा उपकरणों के भारतीय निर्माताओं के संघ (AiMeD) ने चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता, सुरक्षा एवं प्रभावकारिता का सत्यापन करने के लिये चिकित्सा उपकरणों के भारतीय प्रमाणन (Indian Certification of Medical Devices- ICMED) हेतु 13485 प्लस योजना शुरू की है।

चिकित्सा उपकरण क्षेत्र संबंधी चुनौतियाँ:

  • असंगत विनियम:
    • जटिल विनियामक वातावरण चिकित्सा उपकरण उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली सबसे गंभीर चुनौतियों में से एक है।
    • निर्माताओं को असंगत नियमों का पालन करना पड़ता है जो अलग-अलग मानकों और शब्दों का उपयोग करते हैं, जिससे आवश्यकताओं को समझना एवं उनका पालन करना मुश्किल हो जाता है।
  • अनुसंधान और विकास संबंधी चुनौतियाँ:
    • भारतीय चिकित्सा उपकरण क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्लाउड कंप्यूटिंग और रोबोटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग अभी भी सीमित है।
    • इन तकनीकों को अपनाने से कंपनियों को अनुसंधान और विकास, उत्पादन एवं वितरण से संबंधित चुनौतियों से निपटने में मदद मिल सकती है।
  • आयात निर्भरता:
    • भारत चिकित्सा उपकरणों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जिससे उच्च आयात लागत और स्वास्थ्य देखभाल की लागत बढ़ जाती है। आयात निर्भरता को कम करने के लिये भारत को चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने तथा क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
  • पूंजी तक सीमित पहुँच:
    • भारत में चिकित्सा उपकरण स्टार्ट-अप्स हेतु वित्त की उपलब्धता गंभीर चुनौती है क्योंकि निवेशक प्रायः दीर्घकालिक और नियामक अनिश्चितताओं वाले क्षेत्र में निवेश करने से हिचकिचाकते हैं।

आगे की राह

  • भारत में नीति निर्माताओं को चिकित्सा उपकरणों/प्रौद्योगिकी आयात पर देश की निर्भरता को कम करने हेतु कार्ययोजना तैयार करने की आवश्यकता है।
  • भारत को अपनी चिकित्सा उपकरण कंपनियों को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों हेतु विनिर्माण केंद्र के रूप में विकसित करना चाहिये, स्वदेशी विनिर्माण के साथ संयोजन में भारत-आधारित नवाचार करना चाहिये, मेक इन इंडिया एवं इनोवेट इन इंडिया योजनाओं में सहयोग करना चाहिये, साथ ही छोटे घरेलू बाज़ारों को प्रोत्साहित करने के लिये निम्न से मध्यम प्रौद्योगिकी उत्पादों का उत्पादन करना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.


कमांड साइबर ऑपरेशंस और सपोर्ट विंग्स

प्रिलिम्स के लिये:

कमांड साइबर ऑपरेशंस और सपोर्ट विंग्स (CCOSW), टेक्निकल एंट्री स्कीम मॉडल, साइबर सुरक्षा

मेन्स के लिये:

भारतीय सेना की साइबर सुरक्षा में CCOSWs का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सेना कमांडरों के सम्मेलन (Army Commanders’ Conference- ACC) में भारतीय सेना ने अपनी साइबर सुरक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने, नेटवर्क की रक्षा करने और साइबर स्पेस के प्रमुख डोमेन में खतरों का मुकाबला करने के लिये कमांड साइबर ऑपरेशंस एंड सपोर्ट विंग्स (Command Cyber Operations and Support Wings- CCOSW) को संचालित करने का निर्णय लिया।

सेना कमांडरों का सम्मेलन (ACC):

  • ACC एक द्विवार्षिक संस्थागत कार्यक्रम है जो भारतीय सेना के लिये महत्त्वपूर्ण नीतियों पर उच्च स्तरीय वैचारिक चर्चा और निर्णय लेने हेतु एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • हाल ही में हुए सम्मेलन में विभिन्न एजेंडा बिंदुओं, सेना मुख्यालय द्वारा प्राप्त अद्यतन सूचनाओं, परिवर्तन पहलों की प्रगति और बजट प्रबंधन पर चर्चा की गई।

कमांड साइबर ऑपरेशंस और सपोर्ट विंग्स:

  • परिचय:
    • CCOSWs भारतीय सेना की एक विशेष इकाई है जो अनिवार्य साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता करेगी।
      • यह इकाई नेटवर्क सुरक्षा और भारतीय सेना की साइबर सुरक्षा बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी।
    • यह भारतीय सेना में आधुनिक संचार प्रणालियों और नेटवर्क के बेहतर उपयोग की सुविधा भी प्रदान करेगी।
  • महत्त्व:
    • नेटवर्क केंद्रितता की ओर पलायन और आधुनिक संचार प्रणालियों पर बढ़ती निर्भरता को देखते हुए CCOSW काफी महत्त्वपूर्ण है।
      • CCOSW भारतीय सेना को ग्रे ज़ोन और साइबर युद्ध में अपने विरोधियों से एक कदम आगे रहने एवं मुकाबला करने में मदद करेगा।
    • भारतीय सेना संबंधी गोपनीयता, अखंडता और महत्त्वपूर्ण जानकारी की उपलब्धता को बनाए रखने में CCOSW की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
    • CCOSW भारतीय सेना के संचार नेटवर्क को साइबर हमलों से सुरक्षित रखने, भारतीय सेना के नेटवर्क के लिये साइबर खतरों की पहचान करने और उन्हें कम करने में मदद करेगा।

सम्मेलन के अन्य प्रमुख बिंदु:

  • प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी का समन्वय:
    • सभी सुरक्षा बलों में बेहतर आधुनिक संचार प्रणालियों और नेटवर्क की सुविधा प्रदान करना।
  • बल संरचना और अनुकूलन:
    • बल संरचना और अनुकूलन, आधुनिकीकरण एवं प्रौद्योगिकी समावेशन, प्रक्रियाओं तथा कार्यों, मानव संसाधन प्रबंधन और एकीकरण की सहायता से प्रमुख क्षेत्रों में जारी परिवर्तनकारी पहलों की प्रगति निर्धारित करना।
    • अग्निपथ योजना के कुशल कार्यान्वयन पर विचार-विमर्श।
    • जनवरी 2024 से मौजूदा (5-वर्षीय) 1+3+1 वर्ष की तकनीकी प्रविष्टि योजना (TES) मॉडल से (4-वर्ष) 3 + 1 TES मॉडल में संक्रमण।
      • बी.टेक स्नातकों के रूप में अधिकारी प्रवेश के लिये मौजूदा पाँच वर्षीय TES मॉडल 1999 से लागू है।
        • मौजूदा मॉडल के तहत 1 वर्ष का सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है, इसके बाद कैडेट ट्रेनिंग विंग्स (CTWs) में 3 वर्ष की बी.टेक डिग्री और सेना के तीन इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक में 1 वर्ष की डिग्री दी जाती है।
      • आगामी नए मॉडल में CTWs में 3 वर्ष का तकनीकी प्रशिक्षण होगा, इसके बाद 1 वर्ष की बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग (BMT) होगी।
  • पैरालिंपिक आयोजन:
    • पैरालिंपिक आयोजनों के लिये चयनित प्रेरित सैनिकों की पहचान करना और उन्हें प्रशिक्षण देना।

साइबर युद्ध से निपटने हेतु भारत की पहल:

  • रक्षा साइबर एजेंसी:
    • यह साइबर मुद्दों से निपटने वाला एक त्रि-सेवा अभिकरण है और राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन जैसे अन्य अभिकरणों के साथ समन्वय करता है।
    • यह अभिकरण रक्षा बलों के लिये साइबर सिद्धांत, रणनीति और नीति तैयार करने के लिये उत्तरदायी है। यह साइबर क्षेत्र में संयुक्त प्रशिक्षण, अभ्यास एवं संचालन का भी आयोजन करता है।
  • भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (Indian Computer Emergency Response Team- CERT-In):
    • यह साइबर सुरक्षा संबंधी घटनाओं के मामले में तीव्रता से कारवाई करने और विभिन्न क्षेत्रों को साइबर सुरक्षा सेवाएँ प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय नोडल एजेंसी है।
  • राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (National Critical Information Infrastructure Protection Centre- NCIIPC):
    • यह देश की महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना, जैसे- विद्युत, बैंकिंग, रक्षा आदि की सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय एजेंसी है।
  • साइबर स्वच्छता केंद्र (बोटनेट क्लीनिंग एंड मालवेयर एनालिसिस सेंटर):
    • यह संक्रमित उपकरणों का पता लगाने और वायरस को हटाने तथा मैलवेयर विश्लेषण रिपोर्ट प्रदान करने हेतु एक मंच है।

आगे की राह

  • एक ऐसी व्यापक साइबर सुरक्षा रणनीति विकसित करना जो भारतीय सशस्त्र बलों में अन्य साइबर सुरक्षा क्षमताओं के साथ CCOSW को एकीकृत करे, ताकि साइबर हमलों हेतु सहज समन्वय एवं प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित की जा सके।
  • भारतीय सेना के सभी कर्मियों हेतु साइबर सुरक्षा प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रमों को प्राथमिकता देते हुए आधुनिक संचार प्रणालियों एवं नेटवर्क में निवेश करना जारी रखना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे साइबर खतरों की पहचान करने तथा उनका सामना करने के लिये आवश्यक कौशल से युक्त हों।
  • उभरते सुरक्षा परिदृश्यों के आलोक में साइबर सुरक्षा नीतियों और प्रक्रियाओं की नियमित समीक्षा एवं अद्यतन करना, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारतीय सेना भविष्य में साइबर खतरों से निपटने हेतु तैयार रहे।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में किसी व्यक्ति के लिये साइबर बीमा कराने पर निधि की हानि की भरपाई एवं अन्य लाभों के अतिरिक्त सामान्यतः निम्नलिखित में से कौन-कौन से लाभ दिये जाते हैं? (2020)

  1. यदि कोई मैलवेयर कंप्यूटर तक पहुँच बाधित कर देता है, तो कंप्यूटर प्रणाली को पुनः प्रचालित करने में लगने वाली लागत।
  2. यदि यह प्रमाणित हो जाता है कि किसी शरारती तत्त्व द्वारा जान-बूझकर कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाया गया है तो नए कंप्यूटर की लागत।
  3. यदि साइबर बलात्-ग्रहण होता है तो इस हानि को न्यूनतम करने के लिये विशेषज्ञ परामर्शदाता की सेवाएँ लेने पर लगने वाली लागत।
  4. यदि कोई तीसरा पक्ष मुकदमा दायर करता है तो न्यायालय में बचाव करने में लगने वाली लागत।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 4
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017)

  1. सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर)
  2. डेटा सेंटर
  3. कॉरपोरेट निकाय (बॉडी कॉरपोरेट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक एक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022)

स्रोत: द हिंदू


सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल

प्रिलिम्स के लिये:

सतत् विमानन ईंधन (SAF), यूनाइटेड स्टेट्स फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन क्लियरिंग हाउस, ASTM D4054 प्रमाणन, ASTM इंटरनेशनल, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, अंतर्राष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (ICAO), वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम्स क्लीन स्काई फॉर टुमॉरो इनिशिएटिव।

मेन्स के लिये:

शुद्ध शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को प्राप्त करने में सतत् विमानन ईंधन (SAF) का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) की एक प्रयोगशाला, भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (Indian Institute of Petroleum- IIP) ने बोइंग, इंडिगो, स्पाइसजेट और तीन टाटा एयरलाइंस- एयर इंडिया, विस्तारा और एयरएशिया इंडिया के साथ सतत् विमानन ईंधन के उत्पादन के लिये साझेदारी की है।

सतत् विमानन ईंधन/सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल:

  • परिचय:
    • इसे बायो-जेट फ्यूल भी कहा जाता है, इसके उत्पादन राष्ट्रीय स्तर पर विकसित तकनीकों का उपयोग करके किया जाता है जिसमें खाना पकाने के तेल और उच्च तेल वाले पौधों के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।
    • ASTM इंटरनेशनल द्वारा ASTM D4054 प्रमाणीकरण के लिये आवश्यक मानकों को पूरा करने हेतु संस्थानों द्वारा उत्पादित इस ईंधन के नमूनों का संयुक्त राष्ट्र फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन क्लीयरिंग हाउस में सख्त परीक्षण किया जा रहा है।
  • उत्पादन का स्रोत:
    • CSIR-IIP ने गैर-खाद्य और खाद्य तेलों के साथ-साथ खाना पकाने के लिये उपयोग में लाए जाने वाले तेल जैसे विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके ईंधन तैयार किया है।
    • उन्होंने पाम स्टीयरिन, सैपियम ऑयल, पाम फैटी एसिड डिस्टिलेट्स, शैवाल तेल, करंजा और जेट्रोफा सहित विभिन्न स्रोतों का इस्तेमाल किया।
  • भारत में सतत् विमानन ईंधनउत्पादन के लाभ:
    • भारत में SAF के उत्पादन और उपयोग को बढ़ाने से GHG उत्सर्जन को कम करने, वायु गुणवत्ता में सुधार, ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में रोज़गार सृजित करने तथा संधारणीय विकास को बढ़ावा देने सहित कई लाभ मिल सकते हैं।
    • यह विमानन उद्योग को अपने पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में योगदान करने में भी मदद कर सकता है।
    • विमानन के लिये जैव ईंधन को नियमित जेट ईंधन के साथ मिलाकर उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है जो वायु प्रदूषण को कम कर सकता है और शुद्ध शून्य उत्सर्जन को प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य में योगदान दे सकता है।
    • विमानन हेतु जैव ईंधन को नियमित जेट ईंधन के साथ मिलाकर एक साथ उपयोग किया जा सकता है। पारंपरिक ईंधन की तुलना में इसमें सल्फर की मात्रा कम होती है, जो वायु प्रदूषण को कम कर सकता है एवं नेट ज़ीरो (शुद्ध शून्य) उत्सर्जन प्राप्त करने के भारत के लक्ष्य का समर्थन कर सकता है।

ASTM प्रमाणन:

  • ASTM इंटरनेशनल, जिसे पहले अमेरिकन सोसाइटी फॉर टेस्टिंग एंड मैटेरियल्स के नाम से जाना जाता था, एक वैश्विक संगठन है जो उत्पादों, सामग्रियों एवं प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला हेतु तकनीकी मानकों को विकसित तथा प्रकाशित करता है।
  • ASTM मानकों का उपयोग उद्योग, सरकारों और अन्य संगठनों द्वारा उत्पादों एवं प्रक्रियाओं में गुणवत्ता, सुरक्षा तथा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने हेतु किया जाता है।
  • ASTM प्रमाणन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी उत्पाद या सामग्री का परीक्षण और प्रासंगिक ASTM मानकों के खिलाफ मूल्यांकन किया जाता है।
  • प्रमाणन का उपयोग यह प्रदर्शित करने हेतु किया जा सकता है कि कोई उत्पाद या सामग्री कुछ आवश्यकताओं को पूरा करती है, जैसे- प्रदर्शन विनिर्देश, सुरक्षा मानक या पर्यावरण नियम आदि।

विश्व में SAF को बढ़ावा देने हेतु पहल:

  • CORSIA प्रोग्राम: अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) ने विमानन उत्सर्जन को उजागर करने हेतु कार्बन ऑफसेटिंग एंड रिडक्शन स्कीम फॉर इंटरनेशनल एविएशन (CORSIA) की स्थापना की है।
    • CORSIA एयरलाइनों को वर्ष 2020 के स्तर से ऊपर किसी भी उत्सर्जन को ऑफसेट करने की आवश्यकता है और यह प्राथमिक रूप से उत्सर्जन को कम करने हेतु SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • क्लीन स्काई फॉर टुमारो पहल: विश्व आर्थिक मंच ने क्लीन स्काई फॉर टुमारो पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य SAF के उत्पादन और उपयोग में तेज़ी लाना है।
    • यह पहल SAF उत्पादन को विकसित करने और बढ़ाने में सहयोग करने हेतु विमानन, ईंधन एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के हितधारकों को एक साथ लाती है।
  • SAF सम्मिश्रण लक्ष्य:
    • यूरोपीय संघ ने विमानन से GHG उत्सर्जन को कम करने हेतु स्थायी विमानन ईंधन हेतु सम्मिश्रण लक्ष्य स्थापित किये हैं जिसका उद्देश्य समय के साथ विमानन ईंधन में SAF के उपयोग को बढ़ाना है।
    • वर्ष 2025 से गैसोलीन और मिट्टी तेल से बने पारंपरिक जेट ईंधन के साथ SAF का सम्मिश्रण 2 प्रतिशत से शुरू होगा।
      • वर्ष 2050 में 63 प्रतिशत SAF सम्मिश्रण तक पहुँचने के लक्ष्य के साथ सम्मिश्रण लक्ष्य प्रत्येक पाँच साल में बढ़ेगा।
  • सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट और SAF उत्पादन प्रोत्साहन:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में सतत् विमानन ईंधन (SAF) के उपयोग और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये अमेरिकी कॉन्ग्रेस ने मई 2021 में सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट पेश किया।
    • सस्टेनेबल स्काइज़ एक्ट अमेरिका में SAF-उत्पादक सुविधाओं की संख्या बढ़ाने के लिये पाँच वर्षों में 1 बिलियन डॉलर का अनुदान प्रदान करता है।
  • नोट: ईंधन के कुछ अन्य स्थायी स्रोत जिन पर भारत काम कर रहा है, में शामिल हैं:

SAF से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • उच्च लागत: SAF के उत्पादन की लागत वर्तमान में पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में अधिक है, जिससे एयरलाइनों के लिये SAF उत्पादन और उपयोग में निवेश करना आर्थिक रूप से कम व्यवहार्य हो जाता है।
  • संसाधन उपलब्धता: SAF के उत्पादन, भंडारण और वितरण के लिये सीमित बुनियादी ढाँचा है, जिससे SAF के उत्पादन एवं आपूर्ति को बढ़ाना मुश्किल हो जाता है।
  • फीडस्टॉक उपलब्धता: SAF उत्पादन के लिये फीडस्टॉक की उपलब्धता सीमित है और खाद्य तथा कृषि क्षेत्रों जैसे अन्य उद्योगों के बीच संसाधनों के लिये प्रतिस्पर्द्धा है।
  • प्रमाणन: SAF के लिये प्रमाणन प्रक्रिया जटिल और समय लेने वाली है तथा SAF उत्पादन के लिये विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त मानकों की कमी है।
  • जन जागरूकता: सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने और SAF के लाभों की समझ बढ़ाने तथा नीति निर्माताओं एवं निवेशकों से अधिक समर्थन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • निवेश में वृद्धि: सरकारों, एयरलाइंस और निवेशकों को लागत कम करने तथा उपलब्धता बढ़ाने के लिये SAF उत्पादन एवं बुनियादी ढाँचे में निवेश बढ़ाने की जरूरत है। इसमें R&D के वित्तपोषण के साथ-साथ नई सुविधाओं का निर्माण करना और SAF के उत्पादन हेतु मौजूदा सुविधाओं को जारी रखना शामिल है।
  • समर्थन नीति और नियामक ढाँचे: सरकारें SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करने वाली नीति और नियामक ढाँचे को लागू कर सकती हैं, जैसे- कर प्रोत्साहन, सब्सिडी और SAF के एक निश्चित प्रतिशत का उपयोग करने के लिये एयरलाइनों हेतु आदेश।
  • सहयोग को प्रोत्साहित करना: एयरलाइंस, ईंधन उत्पादकों और अनुसंधान संस्थानों सहित हितधारकों के बीच सहयोग से अधिक एकीकृत और कुशल SAF आपूर्ति शृंखला बनाने में मदद मिल सकती है।
  • जन जागरूकता को बढ़ावा देना: यह SAF के लाभों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता और टिकाऊ विमानन की आवश्यकता की मांग बढ़ाने तथा नीति निर्माताओं एवं निवेशकों को अधिक समर्थन के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करना: SAF उत्पादन के लिये नए फीडस्टॉक स्रोत विकसित करने हेतु अनुसंधान में निवेश, जैसे- नगरपालिका ठोस अपशिष्ट और कृषि अपशिष्ट, फीडस्टॉक उपलब्धता बढ़ाने तथा अन्य उद्योगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को कम करने में मदद कर सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


टी फोर्टिफिकेशन

प्रिलिम्स के लिये:

फोर्टिफिकेशन, फोलेट और विटामिन B12, एनीमिया, भारत में फोर्टिफिकेशन प्रोग्राम

मेन्स के लिये:

भोजन के फोर्टिफिकेशन से जुड़े मुद्दे और आगे की राह

चर्चा में क्यों?

फोलेट और विटामिन B12 के साथ फोर्टिफाइंग टी/चाय के प्रभाव का आकलन करने हेतु 43 महिलाओं पर महाराष्ट्र में हाल ही में किये गए एक अध्ययन में फोलेट एवं विटामिन B12 के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। इसने हीमोग्लोबिन के स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि पर भी प्रकाश डाला।

  • हालाँकि अध्ययन अपने नमूने के आकार के कारण ज़्यादातर गलत साबित हुआ है।

टी फोर्टिफिकेशन प्रभावकारी परिवर्तन/गेम-चेंजर:

  • एनीमिया और NTD से मुकाबला: नए अध्ययन के अनुसार, फोलेट और विटामिन B12 के साथ फोर्टिफाइंग चाय भारतीय महिलाओं में एनीमिया और NTD का मुकाबला करने में मदद कर सकती है क्योंकि चाय भारत में पिया जाने वाला सबसे आम पेय पदार्थ है।
    • अधिकांश भारतीय महिलाओं द्वारा खराब आहार फोलेट और विटामिन B12 का सेवन किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी विटामिन की स्थिति लगातार कम होती है, जो एनीमिया को बढ़ाता है, यही कारण है कि भारत में फोलेट-उत्तरदायी न्यूरल-ट्यूब दोष (Neural-Tube Defects- NTD) की उच्च घटनाएँ होती हैं।
      • शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन हेतु विटामिन B12 और फोलेट दोनों महत्त्वपूर्ण हैं।
      • शरीर में फोलेट के उचित अवशोषण और उपयोग हेतु विटामिन B12 आवश्यक है क्योंकि फोलेट की कमी से गंभीर जन्म दोष (NTDs) हो सकते हैं।

नोट: न्यूरल ट्यूब की समस्या तब होती है जब भ्रूण के विकास के दौरान न्यूरल ट्यूब पूरी तरह से बंद नहीं होती है। न्यूरल ट्यूब अंततः मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और आसपास के ऊतकों का निर्माण करती है।

  • टी फोर्टिफिकेशन संबंधी मुद्दे:
    • सीमित खेती: चाय बड़े पैमाने पर केवल 4 राज्यों असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में उगाई एवं संसाधित की जाती है।
    • अवसरंचना की कमी: कई चाय उगाने वाले क्षेत्रों में फोर्टीफाइड चाय के प्रसंस्करण और पैकेजिंग के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे कमी है।
      • इसमें चाय के सम्मिश्रण और पैकेजिंग के साथ-साथ परिवहन और भंडारण के बुनियादी ढाँचे की सुविधाएँ शामिल हैं।
    • आहार संबंधी बाधाएँ: लगभग 70 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है, जहाँ अनाज अधिक बार उगाया एवं साफ किया जाता है तथा स्थानीय स्तर पर खरीदा जाता है। सांस्कृतिक, धार्मिक एवं जातीय मतभेदों व विश्वासों के अनुसार आहार प्रकृति काफी भिन्न होती है।

फूड फोर्टिफिकेशन:

  • परिचय:
    • चावल, दूध और नमक जैसे प्रमुख खाद्य पदार्थों में आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A और D जैसे प्रमुख विटामिन तथा खनिजों को शामिल करना फोर्टिफिकेशन है, ताकि उनकी पोषण सामग्री में सुधार हो सके। प्रसंस्करण से पहले ये पोषक तत्त्व भोजन में मूल रूप से मौजूद हो भी सकते हैं और नहीं भी।
  • भारत में फूड फोर्टिफिकेशन की स्थिति:
    • चावल: खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) "चावल के फोर्टिफिकेशन और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से इसके वितरण पर केंद्र प्रायोजित पायलट योजना" चला रहा है।
      • योजना को तीन साल के पायलट अवधि के लिये वर्ष 2019-20 में शुरू किया गया था।
      • यह योजना वर्ष 2023 तक चलेगी और लाभार्थियों को 1 रुपए किलो की दर से चावल की आपूर्ति की जाएगी।
    • गेहूँ: गेहूँ के फोर्टिफिकेशन पर निर्णय की घोषणा वर्ष 2018 में की गई थी और बच्चों, किशोरों, गर्भवती माताओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं के पोषण में सुधार के लिये भारत के प्रमुख पोषण अभियान के तहत 12 राज्यों में इसे लागू किया जा रहा है।
    • खाद्य तेल: वर्ष 2018 में FSSAI द्वारा देश भर में खाद्य तेल का फोर्टिफिकेशन अनिवार्य कर दिया गया था।
    • दूध: वर्ष 2017 में भारतीय राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) ने कंपनियों को विटामिन D मिलाने के लिये प्रोत्साहित करके दूध के फोर्टिफिकेशन की शुरुआत की।
  • महत्त्व:
    • व्यापक जनसंख्या स्वास्थ्य सुधार: चूँकि व्यापक रूप से उपभोग किये जाने वाले प्रमुख खाद्य पदार्थों में पोषक तत्त्वों का योग किया जाता है, यह आबादी के एक बड़े हिस्से के स्वास्थ्य में एक साथ सुधार लाने का एक उत्कृष्ट तरीका है।
    • सुरक्षित तरीका: फोर्टिफिकेशन लोगों के बीच पोषण में सुधार का एक सुरक्षित तरीका है।
      • यदि मिलाई गई मात्रा को निर्धारित मानकों के अनुसार अच्छी तरह से विनियमित किया जाता है तो पोषक तत्त्वों की अधिक मात्रा की संभावना नहीं होती है।
    • खाने की आदतों पर कोई प्रभाव नहीं: इसे खाने की आदतों और लोगों के पैटर्न में किसी भी बदलाव की आवश्यकता नहीं होती है और यह लोगों को पोषक तत्त्व प्रदान करने का एक सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य तरीका है।
      • यह भोजन की विशेषताओं- स्वाद, स्पर्श, रूप में भी परिवर्तन नहीं करता है।
    • लागत प्रभावी: यह विधि लागत प्रभावी है, विशेष रूप से यदि मौजूदा प्रौद्योगिकी और वितरण प्लेटफॉर्म का समुचित लाभ उठाया जाता है।
      • कोपेनहेगन सहमति (Copenhagen Consensus) का अनुमान है कि फूड फोर्टिफिकेशन पर व्यय किया गया प्रत्येक 1 रुपया अर्थव्यवस्था के लिये 9 रुपए का लाभ उत्पन्न करता है।
  • चुनौतियाँ:
    • भारत में केवल कुछ खाद्य पदार्थों (गेहूँ, चावल, नमक) के लिये खाद्य पदार्थों का फोर्टीफिकेशन किया जाता है, कई अन्य खाद्य पदार्थों को फोर्टिफाइड नहीं किया जाता है, जिससे पोषक तत्त्वों का सेवन अपर्याप्त हो जाता है।
    • सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को मिलाने की प्रक्रिया प्राकृतिक खाद्य पदार्थों जैसे- फाइटोकेमिकल्स और पॉलीअनसैचुरेटेड वसा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
    • गर्भवती महिलाओं द्वारा अधिक आयरन का सेवन करने से भ्रूण के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है और जन्म के समय बच्चों में पुरानी बीमारियों के होने का खतरा बढ़ सकता है।
    • फोर्टीफिकेशन, बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये एक गारंटीकृत बाज़ार प्रदान कर सकता है, जो पूरे भारत में छोटे व्यवसायों की आजीविका को संभावित रूप से नुकसान पहुँचा सकता है।
    • जोड़े गए विटामिन और खनिजों की अस्थिरता के कारण दूध एवं तेल जैसे कुछ खाद्य पदार्थों के फोर्टिफिकेशन में तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

टी फोर्टिफिकेशन से संबंधित चुनौतियों से निपटने हेतु आवश्यक कदम:

  • सरकार का हस्तक्षेप: चाय के पोषण में वृद्धि करने के लिये नीतियों और विनियमों को लागू करके सरकार टी फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • उदाहरण के लिये सरकार चाय निर्माताओं हेतु आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन B जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा में वृद्धि करना अनिवार्य कर सकती है।
  • उद्योग की भागीदारी को बढ़ावा देना: चाय निर्माता अनुसंधान एवं शोध में निवेश करके और बाज़ार में फोर्टिफाइड चाय उत्पादों को पेश करके चाय के फोर्टिफिकेशन को बढ़ावा देने का कार्य कर सकते हैं।
    • वे फोर्टिफाइड चाय के लाभों को बढ़ावा देने के लिये सरकार और गैर-लाभकारी संगठनों के साथ भी सहयोग कर सकते हैं।
  • उपभोक्ता जागरूकता बढ़ाना: उपभोक्ताओं को फोर्टिफाइड चाय के लाभों के बारे में शिक्षित करने से इसकी खपत को बढ़ावा देने में काफी मदद मिल सकती है।
    • यह विभिन्न माध्यमों जैसे विज्ञापन अभियान, सोशल मीडिया और स्कूलों एवं कॉलेजों में जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से किया जा सकता है।
  • रसद में सुधार: बड़े पैमाने पर चाय के फोर्टिफिकेशन को लागू करने के लिये एक मज़बूत रसद प्रणाली का होना आवश्यक है।
    • इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि पोषण तत्त्वों के किसी भी नुकसान के बिना फोर्टिफाइड चाय लक्षित आबादी तक समय पर और कुशल तरीके से पहुँचे।

स्रोत: द हिंदू


ठोस अपशिष्ट प्रबंधन

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, लैंडफिल, यूएनईपी, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016, पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम

मेन्स के लिये:

आवारा कुत्तों और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित मुद्दे, आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

श्रीनगर में आवारा कुत्तों के हमलों की एक हालिया घटना ने स्ट्रीट डॉग्स के हमलों और खराब ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के बीच संबंध को उजागर किया है।

खराब अपशिष्ट प्रबंधन और स्ट्रीट डॉग्स द्वारा बढ़ते हमलों में संबंध:

  • भारतीय घरों ने औसतन 2019 में प्रति व्यक्ति 50 किलोग्राम खाद्य अपशिष्ट उत्पन्न किया, जो भूखे-पीड़ित, खुले में घूमने वाले कुत्तों के लिये भोजन के स्रोत के रूप में काम करता है जिससे वे शहरों में घनी आबादी वाले क्षेत्रों की ओर बढ़ते हैं।
    • यह भोजन अक्सर शहरी क्षेत्रों में भूख से पीड़ित आवारा कुत्तों के लिये भोजन का स्रोत बन जाता है, जो भोजन की तलाश में लैंडफिल या अपशिष्ट डंप जैसे कचरा डंपिंग साइटों के आसपास घूम रहे होते हैं।
  • जबकि इसका कोई प्रमाण नहीं है किंतु नगर निगम के कचरे और इसके कुप्रबंधन ने सीधे तौर पर कुत्तों के काटने, सुस्त पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों और अपर्याप्त बचाव केंद्रों के साथ-साथ खराब अपशिष्ट प्रबंधन में वृद्धि की, जिसके परिणामस्वरूप भारत में सड़क पर रहने वाले जानवरों का प्रसार हुआ और जिसके कारण हमले हुए।

भारत के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के साथ क्या समस्या है?

  • परिदृश्य:
    • ठोस अपशिष्ट में ठोस या अर्द्ध-ठोस घरेलू अपशिष्ट जैसे सैनिटरी वेस्ट, कमर्शियल वेस्ट, इंस्टीट्यूशनल वेस्ट, खानपान और बाज़ार का अपशिष्ट और अन्य गैर-आवासीय वेस्ट, सड़क की सफाई, सतही नालियों से निकाली गई गाद, बागवानी वेस्ट, कृषि और डेयरी वेस्ट, औद्योगिक अपशिष्ट को छोड़कर उपचारित बायोमेडिकल अपशिष्ट, बायो-मेडिकल वेस्ट तथा ई-वेस्ट, बैटरी वेस्ट, रेडियो-एक्टिव वेस्ट आदि शामिल हैं।
    • भारत में विश्व की आबादी का लगभग 18% और वैश्विक नगरपालिका अपशिष्ट उत्पादन में 12% का योगदान है।
      • भारत प्रतिवर्ष 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पादन करता है। इनमें से लगभग 43 मिलियन टन (70%) एकत्र किया जाता है, जिसमें से लगभग 12 मिलियन टन को उपचारित किया जाता है तथा 31 मिलियन टन लैंडफिल साइट्स में फेंक दिया जाता है।
    • खपत के बदलते पैटर्न और तेज़ी से आर्थिक विकास के साथ यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 में शहरी नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पादन बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाएगा।
  • मुद्दा:
    • नियमों का खराब क्रियान्वयन:
      • वर्ष 2020 के एक शोध पत्र में कहा गया है कि अधिकांश मेट्रो शहरों में अपशिष्ट को संग्रह करने वाले डिब्बे या तो पुराने हैं या क्षतिग्रस्त हैं या ठोस अपशिष्ट को रखने के लिये अपर्याप्त हैं।
      • अध्ययनों से पता चलता है कि शहरी स्थानीय निकाय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के तहत नियमों को लागू करने और बनाए रखने में संघर्ष कर रहे हैं, जैसे- घर-घर जाकर अलग-अलग प्रकार के अपशिष्ट का संग्रह करना।
      • नियमों के तहत कचरा संग्रह स्थल निर्धारित हैं, लेकिन नियमों के कार्यान्वयन और जागरूकता की कमी है।
      • इसके कारण इधर-उधर बिखरा अपशिष्ट देखा जाता है।
    • मलिन बस्तियों के साथ डंपिंग साइट्स की निकटता:
      • अधिकांश लैंडफिल और डंपिंग साइट शहरों की परिधि में, झुग्गी बस्तियों और बस्ती कॉलोनियों के बगल में स्थित हैं।
      • मुंबई में सबसे सस्ते आवास देवनार के पास पाए जा सकते हैं जो 256 झुग्गियों और 13 पुनर्वास कॉलोनियों के निकट स्थित हैं।
      • शहरी मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों में कुत्ते के काटने के मामले बेहिसाब आते रहते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2021 में पुणे के शिवनेरी नगर झुग्गी में रहने वाले 300 लोगों ने इलाके में आवारा कुत्तों के काटने की शिकायत की थी।
    • डेटा संग्रह तंत्र का अभाव:
      • भारत में ठोस अथवा तरल अपशिष्ट के संबंध में समयबद्ध डेटा अथवा पैनल डेटा की कमी है, जिससे निजी संस्थाओं के लिये अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों की लागत और लाभों के बीच संबंध को समझना मुश्किल हो जाता है।

अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित पहल:

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016:
    • ये कानून, जो नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) कानून, 2000 को प्रतिस्थापित करते हैं, स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण, सैनिटरी और पैकेजिंग अपशिष्ट के निपटान हेतु निर्माता की ज़िम्मेदारी एवं बल्क जनरेटर से संग्रह, निपटान तथा प्रसंस्करण के लिये उपयोगकर्त्ता शुल्क पर ज़ोर देते हैं।
  • वेस्ट टू वेल्थ पोर्टल:
    • इसका उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने, सामग्रियों का पुनर्चक्रण करने और कचरे के उपचार हेतु प्रौद्योगिकियों की पहचान, विकास और तैनाती करना है।
  • अपशिष्ट से ऊर्जा:
    • अपशिष्ट-से-ऊर्जा या ऊर्जा-से-अपशिष्ट संयंत्र औद्योगिक प्रसंस्करण के लिये नगरपालिका एवं औद्योगिक ठोस अपशिष्ट को विद्युत और/या ऊष्मा में परिवर्तित करता है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016:
    • यह प्लास्टिक कचरे के उत्पादन को कम करने, प्लास्टिक अपशिष्ट को फैलने से रोकने और अन्य उपायों के बीच स्रोत पर अपशिष्ट का अलग भंडारण सुनिश्चित करने के लिये कदम उठाने पर ज़ोर देता है।
    • फरवरी 2022 में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022 को अधिसूचित किया गया था।
  • प्रोजेक्ट रिप्लान (REPLAN):
    • इसका उद्देश्य 20:80 के अनुपात में कपास के रेशों के साथ प्रसंस्कृत एवं उपचारित प्लास्टिक अपशिष्ट को मिलाकर कैरी बैग बनाना है।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022:
    • नियम विभिन्न हितधारकों जैसे- निर्माताओं, आयातकों, खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं की ज़िम्मेदारियों को निर्दिष्ट करते हैं। इन सभी हितधारकों को यह सुनिश्चित करने में भूमिका निभानी है कि प्लास्टिक अपशिष्ट का उचित प्रबंधन किया जाए एवं इससे पर्यावरण प्रदूषित न हो।

आगे की राह

  • सार्वजनिक स्थानों पर अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार और बेकरियों के आसपास भोजन को विनियमित करने से पर्यावरण की वहन क्षमता कम हो सकती है।
  • ऐसी घटनाओं को कम करने हेतु अपशिष्ट निपटान सुविधाओं में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि केवल कुत्तों की नसबंदी और टीकों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा।
  • सामुदायिक स्तर पर विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियाँ शुरू की जा सकती हैं ताकि एक केंद्रीकृत स्थान पर बड़ी मात्रा में नगर निगम के कचरे को संभालने का बोझ कम किया जा सके। अनौपचारिक श्रमिकों के लिये नौकरी के अवसर प्रदान किये जा सकें और परिवहन एवं भंडारण लागत को कम किया जा सके।
  • अपशिष्ट प्रबंधन में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये विश्वविद्यालय और स्कूल स्तर पर अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से प्रौद्योगिकी-संचालित रीसाइक्लिंग को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुसार, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? (2019)

(a) अपशिष्ट उत्पादक को पाँच कोटियों में अपशिष्ट अलग-अलग करने होंगे।
(b) ये नियम केवल अधिसूचित नगरीय स्थानीय निकायों, अधिसूचित नगरों तथा सभी औद्योगिक नगरों पर ही लागू होंगे।
(c) इन नियमों में अपशिष्ट भराव स्थलों तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं के लिये सटीक और विस्तृत मानदंड उपबंधित हैं।
(d) अपशिष्ट उत्पादक के लिये यह आज्ञापक होगा कि किसी एक ज़िले में उत्पादित अपशिष्ट, किसी अन्य ज़िले में न ले जाया जाए।

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)

स्रोत: द हिंदू