लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

शासन व्यवस्था

वैश्विक समाज में कर न्याय

  • 19 Oct 2021
  • 16 min read

यह लेख 18/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘The pursuit of tax justice’’ लेख पर आधारित है। इसमें मानवाधिकारों के लिये वैश्विक संघर्ष के एक अंग के रूप में कर दुरुपयोग को समाप्त करने की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

हाल ही में पेंडोरा पेपर्स जाँच से खुलासा हुआ कि विश्व के कई सर्वाधिक अमीर लोगों द्वारा कराधान से बचने के लिये टैक्स हेवेन्स और अन्य भ्रष्ट तरीकों का इस्तेमाल किया गया। इसने ‘कर न्याय’ (Tax Justice) की अवधारणा पर प्रकाश डाला है और कर दुरुपयोग तथा टैक्स हेवेन्स की समाप्ति को मानवाधिकार से जुड़े मुद्दे के रूप में देखने हेतु मज़बूर किया है।   

‘कर न्याय’ का सरल अर्थ यह है कि उन लोगों द्वारा कर का भुगतान किया जाना चाहिये जिन पर यह देय है। ’कर न्याय’ की अवधारणा में यह शामिल है कि उनमें से प्रत्येक व्यक्ति द्वारा समान रूप से कर का भुगतान किया जाना चाहिये, जो इसके भागी हैं।

वर्तमान परिदृश्य

  • वार्षिक वैश्विक हानि: ‘टैक्स जस्टिस इंस्टिट्यूट’ द्वारा प्रकाशित ‘स्टेट ऑफ टैक्स जस्टिस रिपोर्ट 2000’ के अनुसार, कर दुरुपयोग (कर चोरी और कर परिहार) के कारण लगभग 427 बिलियन डॉलर की वार्षिक वैश्विक हानि हुई। इसमें से लगभग 245 बिलियन डॉलर की हानि बहुराष्ट्रीय निगमों (MNCs) द्वारा अपने लाभ को ‘टैक्स हेवेन्स’ में स्थानांतरित करने से हुई है, जबकि 182 बिलियन डॉलर की हानि अमीर व्यक्तियों द्वारा बाहरी मुल्कों (Offshore) में अपनी अघोषित संपत्तियों और आय को छुपाने के कारण हुई।
  • असमान प्रभाव: कर चोरी का प्रभाव निम्न-आय वाले देशों पर अधिक होता है; वे उच्च-आय वाले देशों की तुलना में बहुत अधिक समतुल्य अनुपात की हानि उठाते हैं। 
  • उच्च-आय वाले देशों की भूमिका: यद्यपि, उच्च-आय वाले देशों को कर राजस्व में वार्षिक रूप से 382 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है, किंतु वे ही वैश्विक कर हानियों के 98% हिस्से को सुविधाजनक बनाने हेतु उत्तरदायी भी हैं।
    • ‘टैक्स जस्टिस इंस्टिट्यूट’ द्वारा प्रकाशित ‘कॉर्पोरेट टैक्स हेवन इंडेक्स, 2021’ ने पाया है कि ‘आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन’ (Organisation for Economic Co-operation and Development- OECD) के सदस्य देश संयुक्त रूप से विश्व के कॉर्पोरेट टैक्स दुरूपयोग जोखिमों के 68% के लिये उत्तरदायी हैं।    
  • भारत: भारत को टैक्स जस्टिस इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित ‘वित्तीय गोपनीयता सूचकांक’ (Financial Secrecy Index) में 47वाँ स्थान प्रदान किया गया।     
    • वैश्विक कर दुरुपयोग के कारण भारत को प्रतिवर्ष 10 बिलियन डॉलर का नुकसान होता है। यह भारत की वार्षिक जीडीपी के 0.41% के बराबर है।      
    • मॉरीशस, सिंगापुर और नीदरलैंड वे प्रमुख देश हैं, जिनके माध्यम से सर्वाधिक कर दुरुपयोग होता है।     
    • एक सकारात्मक पक्ष यह है कि भारत किसी भी वैश्विक सूचकांक में कॉर्पोरेट ‘टैक्स हेवन’ के रूप में शामिल नहीं है। इस प्रकार, भारत किसी अन्य देश को कोई कर हानि नहीं पहुँचाता है।  

कर चोरी को नियंत्रित करने हेतु उठाए गए कदम

वैश्विक कदम:

  • OECD का ‘इन्क्लूसिव फ्रेमवर्क स्टेटमेंट’: इसके तहत ‘टू-पिलर सलूशन’ को अंगीकार किया गया है।   
    • पहला स्तंभ लगभग 100 सबसे बड़ी और सर्वाधिक लाभदायक बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लागू होता है और वे अपने लाभ का एक हिस्सा उन देशों को पुनःआवंटित करते हैं जहाँ वे अपने उत्पादों की बिक्री करते हैं और अपनी सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • दूसरे स्तंभ के अंतर्गत 750 मिलियन यूरो से अधिक के वार्षिक राजस्व वाली कोई भी कंपनी शामिल है, जो अब 15 प्रतिशत की प्रभावी न्यूनतम दर के अधीन होगी।    
    • OECD के अनुसार, वैश्विक न्यूनतम कर प्रति वर्ष अतिरिक्त वैश्विक कर राजस्व में लगभग 150 बिलियन डॉलर का सृजन कर सकता है। 

भारत द्वारा उठाए गए कदम:

आगे की राह

  • कर न्याय के ‘ABCs’ उपाय: सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को कॉर्पोरेट और निजी कर दुरुपयोग तथा अन्य भ्रष्टाचार से निपटने के लिये डिज़ाइन किये गए तीन पारदर्शिता उपायों को लागू करना चाहिये। ये तीन ‘ABC’ उपाय हैं: ‘सूचना का स्वचालित आदान-प्रदान’ (Automatic exchange of information), ‘लाभ-प्राप्तकर्त्ता स्वामित्व पंजीकरण’ (Beneficial ownership registration) और ‘देश-दर-देश रिपोर्टिंग’ (Country by country reporting)। 
    • ‘सूचनाओं का स्वत: आदान-प्रदान’ देशों के बीच डेटा साझा करने का एक अभ्यास है, जो प्रत्येक देश में सीमा पार लेनदेन करने वाले निगमों और व्यक्तियों के बारे में सूचना के आदान-प्रदान की अनुमति देता है। 
    • ‘लाभ-प्राप्तकर्त्ता स्वामित्व पंजीकरण’ का आशय कंपनियों और अन्य इकाइयों के लाभ-प्राप्तकर्त्ता स्वामियों की पहचान करने के एक अभ्यास से है। एक लाभ-प्राप्तकर्त्ता स्वामी वह वास्तविक व्यक्ति होता है, जो अंतिम रूप से किसी कंपनी या कानूनी इकाई का स्वामी होता है, उसका नियंत्रण करता है या उससे लाभ प्राप्त करता है। यह उस कॉर्पोरेट परदे को उठाएगा, जिसके पीछे कई लोग जवाबदेही से बचने के लिये छिपे रहते हैं।     
    • ‘देश-दर-देश’ सार्वजनिक रिपोर्टिंग एक लेखांकन अभ्यास है जिसे उन बहुराष्ट्रीय निगमों को बेनकाब करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जो निम्न कर भुगतान करने के उद्देश्य से अपने लाभ को ‘टैक्स हेवन’ में स्थानांतरित कर रहे हैं।     
  • एकात्मक कराधान (Unitary Taxation): यह बहुराष्ट्रीय निगमों पर कर अधिरोपित करने हेतु उनके द्वारा स्थापित शेल कंपनियों (यानी टैक्स हेवेन) की अवस्थिति के बजाय उनकी वास्तविक अवस्थिति (यानी जहाँ वे कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं, कारखानों का संचालन करते हैं, वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री करते हैं) के आधार पर कर लगाने का एक तरीका है। 
  • संयुक्त राष्ट्र कर अभिसमय (UN Convention on Tax): ’संयुक्त राष्ट्र कर अभिसमय’ की स्थापना से अंतर्राष्ट्रीय कर नियमों को विश्व भर के देशों की आवश्यकता और आकांक्षा के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र में एक वास्तविक प्रतिनिधि प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित किया जा सकेगा। संयुक्त राष्ट्र कर अभिसमय दुनिया भर के देशों को कॉर्पोरेट कराधान, वित्तीय पारदर्शिता और कर न्याय के कानूनी रूप से बाध्यकारी और न्यायसंगत मानदंडों के लिये एकसूत्र कर सकता है।    
  • ग्लोबल एसेट रजिस्टर: यह समग्र धन और संपत्तियों की एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय रजिस्ट्री बनाने का प्रस्ताव है, जो नीति निर्माताओं और जनता को वैश्विक कर दुरुपयोग से निपटने और असमानता को दूर करने के लिये आवश्यक डेटा प्रदान करेगा।
  • भारत-विशिष्ट सुझाव:
    • कंपनियों द्वारा इस संबंध में अधिकाधिक प्रकटीकरण किया जाना चाहिये कि वे कितना लाभ कमाते हैं और जिन देशों में वे सक्रिय हैं, उनमें से प्रत्येक देश में कितने कर का भुगतान करते हैं।  
    • भारतीय वित्त संहिता (Indian Finance Code): भारत में कराधान कानूनों के सरलीकरण की आवश्यकता है। इस संदर्भ में ’वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग’ (Financial Sector Legislative Reforms Commission) की सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता है।  
      • आयोग ने भारतीय वित्त संहिता का प्रस्ताव किया है, जिसमें भारतीय वित्तीय प्रणाली के लिये नए कानून शामिल होंगे।
    • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम अभ्यास को अपनाना: भारत अपने कर कानूनों को संशोधित करने के विकल्प पर विचार कर सकता है, ताकि इसे अंतर्राष्ट्रीय अभ्यासों के साथ संरेखित किया जा सके और निष्पक्ष एवं न्यायसंगत उपचार के संरक्षण के पारंपरिक मानक को इसमें शामिल किया जा सके।   
      • इसके साथ ही, भारत को ’मॉडल द्विपक्षीय निवेश संधि’ (Model BIT) में ओपन-एंडेड खुली शर्तों को स्पष्ट करना चाहिये। इससे भारत को विवादों का न्यूनतम सामना करना पड़ेगा।

निष्कर्ष

  • कॉर्पोरेट कर दुरुपयोग असमानता को बढ़ावा देता है, भ्रष्टाचार का पोषण करता है और लोकतंत्र को कमज़ोर करता है। इस अन्यायपूर्ण परिदृश्य में सुधार के लिये हमें सर्वाधिक अमीर बहुराष्ट्रीय निगमों की इच्छाओं को प्राथमिकता देने के बजाय समाज के सभी सदस्यों की आवश्यकताओं को समान महत्त्व देने हेतु अपनी कर और वित्तीय प्रणालियों को नया रूप प्रदान करना चाहिये।       
  • भारत और अन्य विकासशील देशों को अपने कर राजस्व में वृद्धि की विशेष आवश्यकता हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे अपनी आवश्यक गतिविधियों के लिये व्यय कर सकने में सक्षम हों। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये यह आवश्यक है कि कर न्याय की प्राप्ति के लिये एक न्यायसंगत कर प्रणाली स्थापित की जाए।

अभ्यास प्रश्न: विश्व भर में कर चोरी और बढ़ती असमानता के मामलों के साथ एक वैश्विक कराधान व्यवस्था की मांग ज़ोर पकड़ रही है। टिप्पणी कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2