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जैव विविधता और पर्यावरण

उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022: UNEP

  • 28 Oct 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022, पेरिस समझौता, महामारी, GHG, COP-26, उत्सर्जन कम करने की पहल।

मेन्स के लिये:

उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, UNEP ।

चर्चा में क्यों? 

COP27 से पहले संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने उत्सर्जन गैप रिपोर्ट 2022: द क्लोज़िग विंडो- क्लाइमेट क्राइसिस कॉल्स फॉर रैपिड ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ सोसाइटीज़' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

  • यह UNEP उत्सर्जन गैप रिपोर्ट का 13वाँ संस्करण है। इसके तहत वर्ष 2030 में अनुमानित उत्सर्जन और पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2 डिग्री सेल्सियस लक्ष्यों के स्तरों के बीच के अंतर का आकलन किया जाता है। हर साल इस रिपोर्ट में अंतराल को कम करने की सिफारिस की जाती है।

निष्कर्ष: 

  • शीर्ष 7 उत्सर्जक (चीन, EU27, भारत, इंडोनेशिया, ब्राज़ील, रूसी संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका) के साथ अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की वर्ष 2020 में वैश्विक GHG उत्सर्जन में 55% भागीदारी रही। 
    • इन देशों में GHG उत्सर्जन वर्ष 2021 में फिर से बढ़ गया, जो कि पूर्व-महामारी (वर्ष 2019)  के स्तर से अधिक है।
  • सामूहिक रूप से, G20 सदस्य देश वैश्विक GHG (ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन) उत्सर्जन के 75% के लिये ज़िम्मेदार हैं। 
  • वर्ष 2020 में औसत प्रति व्यक्ति वैश्विक GHG उत्सर्जन 6.3 टन CO2 समतुल्य (tCO2e) था।  
    • भारत विश्व औसत 2.4 tCO2e से काफी नीचे है।
  • विश्व वर्ष 2015 में अपनाए गए पेरिस जलवायु समझौते में निर्धारित लक्ष्यों से पीछे रहा है, जिससे 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य तक पहुँचने का कोई विश्वसनीय मार्ग नहीं दिख रहा है।
    • पेरिस समझौते ने पूर्व-औद्योगिक स्तर (अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस) से ऊपर 2 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग सीमा को परिभाषित किया, जिसे पार करने पर अत्यधिक हीटवेब, सूखा, जल का अभाव आदि जैसी चरम मौसमी घटनाएँ हो सकती हैं।
  • COP26 (ग्लासगो, यूके) के बाद से राष्ट्रीय प्रतिज्ञाएँ 2030 उत्सर्जन की भविष्यवाणी करने के लिये एक नगण्य अंतर बनाती हैं।

सिफारिशें:

  • विश्व को अगले आठ वर्षों में ग्रीनहाउस गैसों को अभूतपूर्व स्तर तक कम करने की आवश्यकता है।
  • वैश्विक इस्पात उत्पादन की कार्बन तीव्रता में वृद्धि को कम करने के लिये भारी उद्योग में वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता है।
  • वर्ष 2030 तक जीएचजी उत्सर्जन को सीमित करने के लिये भारी कटौती करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • बिना शर्त और सशर्त राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) से मौज़ूदा नीतियों की तुलना में वर्ष 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को क्रमशः 5% और 10% कम करने की उम्मीद है।
    • ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस या 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये सबसे अधिक लागत प्रभावी बनाकर इन प्रतिशतों को 30% और 45% तक पहुँचाना चाहिये।

भारत में उत्सर्जन कम करने हेतु पहलें:

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम:

  • परिचय:
    • यह 5 जून, 1972 को स्थापित एक प्रमुख वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है।
    • यह वैश्विक पर्यावरण एजेंडा निर्धारित करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर सतत् विकास को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण संरक्षण के लिये एक आधिकारिक एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
    • मुख्यालय: नैरोबी, केन्या।
    • प्रमुख रिपोर्ट: एमिशन गैप रिपोर्ट, एडेप्टेशन गैप रिपोर्ट, ग्लोबल एन्वायरनमेंट आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इन हेल्दी प्लैनेट।
    • प्रमुख अभियान: बीट पॉल्यूशन, UN75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. UNEP द्वारा समर्थित 'कॉमन कार्बन मीट्रिक' को किसके लिये विकसित किया गया है? 

(A) दुनिया भर में निर्माण कार्यों के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन
(B) दुनिया भर में वाणिज्यिक फैनिंग संस्थाओं को कार्बन उत्सर्जन व्यापार में प्रवेश करने में सक्षम बनाना
(C) सरकारों को अपने देशों के कारण समग्र कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करने में सक्षम बनाना
(D) एक इकाई समय में दुनिया द्वारा जीवाश्म ईंधन के उपयोग के कारण होने वाले समग्र कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करना 

उत्तर: (a) 


मेन्स 

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने हेतु नियंत्रण उपायों की व्याख्या कीजिये। (2022)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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