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डेली न्यूज़

  • 01 Feb, 2023
  • 55 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

PLI और भारत का विकास पारिस्थितिकी तंत्र

प्रिलिम्स के लिये:

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive scheme-PLI),  विनिर्माण क्षेत्र, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस, 5G, ग्रीन टेक्नोलॉजी, कार्बन फुटप्रिंट, फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स, वन-डिस्ट्रिक्ट-वन-प्रोडक्ट, SFURTI

मेन्स के लिये:

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना के तहत उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन, भारत के विकास पथ में PLI का योगदान

चर्चा में क्यों?  

दुनिया कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र एक नए आर्थिक वातावरण के साथ समायोजित हो रही है, ऐसे समय में भारत वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में खुद को एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करने के लिये इसे रणनीतिक अवसर के तौर पर देख रहा है। 

  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना के लिये विनिर्माण उद्योग की सकारात्मक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप श्रम बल कौशल को उन्नत करने, पुरानी मशीनरी को बदलने, उत्पादन बढ़ाने, सुव्यवस्थित रसद और संचालन सुनिश्चित किया जाने की संभावना है, जिससे भारत को विनिर्माण क्षेत्र में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में उभरने का अवसर प्राप्त होगा।   

FAR

उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना (PLI):

  • परिचय:
    • भारत सरकार द्वारा 14 प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों में PLI योजना की शुरुआत विनिर्माण उद्योग के लिये अपने रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।  
      • 1.97 लाख करोड़ रुपए के बजट के साथ यह योजना विभिन्न प्रोत्साहनों और सहयोग उपायों के माध्यम से लक्षित उद्योग के विकास और स्थिरता को प्रोत्साहित करने के लिये अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई है। 
    • मार्च 2020 में शुरू की गई इस योजना ने प्रारंभ में तीन उद्योगों को लक्षित किया: 
      • मोबाइल और संबद्ध घटक विनिर्माण
      • विद्युत घटक विनिर्माण 
      • चिकित्सीय उपकरण
  • लक्षित क्षेत्र: 
    • इसके तहत लक्षित 14 क्षेत्र इस प्रकार हैं- मोबाइल विनिर्माण, चिकित्सा उपकरणों का निर्माण, ऑटोमोबाइल और ऑटो घटक, फार्मास्यूटिकल्स, दवाएँ, विशेष इस्पात, दूरसंचार और नेटवर्किंग/संजाल उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, एसी और एलईडी, खाद्य उत्पाद, वस्त्र उत्पाद, सौर पीवी मॉड्यूल, उन्नत रसायन विज्ञान सेल (Advanced Chemistry Cell-ACC) बैटरी और ड्रोन एवं ड्रोन संबंधित घटक
  • योजना के तहत प्रोत्साहन: 
    • दिये जाने वाले प्रोत्साहनों की गणना बढ़ी हुई बिक्री के आधार पर की जाती है। 
      • उन्नत रसायनिक सेल बैटरी, वस्त्र उत्पाद और ड्रोन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्रों में दिये जाने वाले प्रोत्साहनों की गणना पाँच वर्ष की अवधि में की गई बिक्री, प्रदर्शन तथा स्थानीय मूल्यवर्द्धन के आधार पर की जाएगी। 
    • अनुसंधान एवं विकास हेतु निवेश पर ज़ोर दिये जाने से किसी भी उद्योग को वैश्विक रुझानों के साथ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बने रहने में मदद मिलेगी।

भारत के विकास पारिस्थितिकी तंत्र में PLI की भूमिका: 

  • आयात निर्भरता में कमी: विनिर्माण परिदृश्य में यह बदलाव वैश्विक व्यापार पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है, साथ ही एकल-स्रोत देश पर निर्भरता को कम कर सकता है और उत्पादन के स्रोतों में विविधता ला सकता है।
  • मांग की आपूर्ति: 4G और 5G उत्पादों को तेज़ी से अपनाने के साथ खासकर दूरसंचार एवं नेटवर्किंग क्षेत्रों में उत्पादन की मात्रा में हुई वृद्धि उपभोक्ताओं की मांग को पूरा कर रही है।
    • बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण (Large-Scale Electronics Manufacturing- LSEM) क्षेत्र में PLI योजना के सफल परिणाम देखे गए हैं, भारत में उपयोग किये जाने वाले 97% मोबाइल फोन्स का निर्माण अब भारत में ही किया जा रहा है। PLI योजना के तहत सितंबर 2022 तक LSEM क्षेत्र के लिये 4,784 करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित किया गया और 41,000 अतिरिक्त नौकरियाँ सृजित की गईं।
  • कार्बन फुटप्रिंट में कमी: PLI योजना के तहत हरित प्रौद्योगिकियों पर ज़ोर दिये जाने से कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद मिलेगी और भारत, हरित नीति कार्यान्वयन में अग्रणी के रूप में स्थापित होगा।
  • मुक्त व्यापार समझौतों को बढ़ावा देना: बेहतर उत्पादकता बेहतर बाज़ार पहुँच के लिये मुक्त व्यापार समझौतों को बढ़ावा दे रही है और बिक्री में वृद्धि से बेहतर लॉजिस्टिक कनेक्टिविटी की मांग बढ़ रही है। 
  • ग्रामीण भारत के विकास को आगे बढ़ावा देना: भारत सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के उद्योगों और कारीगरों को देश की विकास गाथा का हिस्सा बनने में मदद करने के लिये राज्यों के साथ मिलकर काम कर रही है।
    • यह कार्य स्थानीय व्यवसायों का समर्थन करने के लिये "एक ज़िला-एक-उत्पाद" और पारंपरिक उद्योगों को बेहतर बनाने हेतु "स्फूर्ति (SFURTI)” जैसी पहलों के माध्यम से किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

UNSC, UNSC की सदस्यता, संयुक्त राष्ट्र का शांति मिशन, मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR)

मेन्स के लिये:

UNSC के कामकाज से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) अपने "वर्तमान स्वरूप" में "पंगु" और "निष्क्रिय" हो गई है क्योंकि यह रूस-यूक्रेन युद्ध पर कोई निर्णय लेने में अक्षम रही है।

संयुक्त राष्ट्र में सुधार में बाधाएँ:

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा हमेशा से विभाजित सी रही है। 193 देशों में वार्ता समूह की संख्या 5 है और वे केवल एक-दूसरे को संतुलित करने का कार्य कर रहे हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में सुधार सुनिश्चित करने के लिये महासभा का कामकाज़ उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि UNSC के स्थायी सदस्य का।
  • संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में सुधार को लेकर इसके स्थायी सदस्यों में बीते काफी समय से ही उत्साह की कमी देखी गई, लेकिन वे सभी इस बात पर सहमत हुए हैं कि सुरक्षा परिषद में बदलाव लाना आवश्यक है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद:

  • सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी।
    • यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
  • UNSC में सदस्यों की संख्या 15 हैं: 5 स्थायी सदस्य (P5) और 10 गैर-स्थायी सदस्य 2 वर्ष की अवधि के लिये चुने जाते हैं।
    • 5 स्थायी सदस्य हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम।
  • भारत ने UNSC में सात बार गैर-स्थायी सदस्य के रूप में कार्य किया है और जनवरी 2021 में 8वीं बार पुनः अस्थायी सदस्य के रूप में चुना गया है।

Unity-Security-council

UNSC से संबंधित मुद्दे:

  • पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व का अभाव:
    • कई वक्ताओं द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कम प्रभावी है क्योंकि यह कम प्रतिनिधिक है। 54 देशों के महाद्वीप अफ्रीका की अनुपस्थिति इसमें सर्वाधिक प्रासंगिक है।
    • वर्तमान वैश्विक मुद्दे जटिल और परस्पर संबद्ध हैं। भू-राजनीतिक एवं भू-आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण देशों के प्रतिनिधित्त्व की कमी के कारण विश्व के एक बड़े भाग के लोग विश्व के सर्वोच्च सुरक्षा शिखर सम्मेलन में अपनी राय अभिव्यक्त करने से वंचित हैं।
    • इसके अलावा यह चिंता का विषय है कि भारत, जर्मनी, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका जैसे विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण देशों का UNSC के स्थायी सदस्यों की सूची में प्रतिनिधित्त्व नहीं है।
  • वीटो पावर का दुरुपयोग:
    • कई विशेषज्ञों के साथ-साथ अधिकांश देशों द्वारा वीटो पावर की सदैव आलोचना की गई है जो इसे ‘विशेषाधिकार प्राप्त देशों के स्व-चयनित क्लब’ और गैर-लोकतांत्रिक व्यवस्था के रूप में देखते हैं। P5 देशों में से किसी की भी असंतुष्टि की स्थिति में परिषद आवश्यक निर्णय लेने में सक्षम नहीं है।
    • यह वर्तमान वैश्विक सुरक्षा वातावरण के लिये उपयुक्त नहीं है कि यह निर्णय लेने वाली विशिष्ट या अभिजात संरचनाओं द्वारा निर्देशित हो।
  • P5 देशों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता:
    • स्थायी सदस्यों के बीच भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने वैश्विक मुद्दों से निपटने के लिये एक प्रभावी तंत्र का विकास करने की UNSC की राह को अवरुद्ध कर रखा है।
    • P5 सदस्य देशों के रूप में वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को देखें तो इनमें से तीन देश- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन ऐसे देश हैं जो कुछ वैश्विक भू-राजनीतिक मुद्दों के केंद्र बिंदु हैं जैसे- ताइवान मुद्दा और रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा
  • राज्य की संप्रभुता के लिये खतरा:
    • अंतर्राष्ट्रीय शांति स्थापना और संघर्ष समाधान के प्रमुख अंग के रूप में UNSC शांति बनाए रखने तथा संघर्ष के प्रबंधन हेतु ज़िम्मेदार है। इसके निर्णय (जिन्हें संकल्प कहा जाता है) महासभा के विपरीत सभी सदस्य देशों पर बाध्यकारी होते हैं।
    • इसका अर्थ यह है कि प्रतिबंध लगाने जैसी कार्रवाई कर यदि आवश्यक हो तो किसी भी राज्य की संप्रभुता का अतिक्रमण किया जा सकता है।

आगे की राह

  • UNSC का लोकतंत्रीकरण:
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में P5 और अन्य देशों के बीच शक्ति असंतुलन को तत्काल दूर करने की आवश्यकता है ताकि परिषद को अधिक लोकतांत्रिक बनाया जा सके और अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा एवं व्यवस्था को नियंत्रित करने में इसकी वैधता बढ़ाई जा सके।
  • UNSC का विस्तार:
    • शांति और सुरक्षा के लिये वैश्विक शासन की बदलती आवश्यकताओं को देखते हुए UNSC में महत्त्वपूर्ण सुधारों की आवश्यकता है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिये जटिल और उभरती चुनौतियों से बेहतर ढंग से निपटने हेतु अपनी स्थायी तथा गैर-स्थायी सीटों का विस्तार करना शामिल है।
  • समान प्रतिनिधित्त्व:
    • UNSC में सभी क्षेत्रों का समान प्रतिनिधित्त्व राष्ट्रों पर इसकी शासन शक्ति और अधिकार के विकेंद्रीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • UNSC की निर्णय लेने की प्रक्रियाओं का विकेंद्रीकरण इसे एक अधिक प्रतिनिधित्त्व, सहभागी निकाय के रूप में स्थापित करेगा।
  • भारत की भूमिका:
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के वर्तमान गैर-स्थायी सदस्य के रूप में भारत UNSC में सुधार के प्रस्तावों के व्यापक सेट वाले एक संकल्प का मसौदा तैयार कर सकता है।
    • सितंबर 2022 में भारत ने UN महासभा के मौके पर न्यूयॉर्क में दो अलग-अलग समूहों G-4 और L-69 की बैठक की मेज़बानी करते हुए UNSC में सुधार पर ज़ोर दिया।
    • जैसा कि भारत ग्लोबल साउथ का नेतृत्त्व करता है, उसे UNSC में अपनी शांति और सुरक्षा चिंताओं को स्पष्ट कर "ग्लोबल साउथ" में अपने पारंपरिक भागीदारों के साथ मज़बूती से पुनः जुड़ने की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्य महासभा द्वारा कितनी अवधि के लिये चुने जाते हैं? (2009)

(a) 1 वर्ष
(b) 2 वर्ष
(c) 3 वर्ष
(d) 5 वर्ष

उत्तर: (b)


प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता लेने हेतु भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों पर वैश्विक रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग, विश्व स्वास्थ्य संगठन।

मेन्स के लिये:

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों से निपटने हेतु भारत के प्रयास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग 2023 पर एक वैश्विक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सबसे गरीब आबादी को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है।

  • विश्व उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग दिवस प्रतिवर्ष 30 जनवरी को मनाया जाता है। इसे 74वीं विश्व स्वास्थ्य सभा (2021) में घोषित किया गया था।

उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Diseases- NTD):

  • परिचय:
    • NTD संक्रमणों का एक समूह है जो अफ्रीका, एशिया और अमेरिका के विकासशील क्षेत्रों में सीमांत समुदायों में सबसे आम है।
    • यह विभिन्न प्रकार के रोगजनकों के कारण होता है, जैसे- वायरस, बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ और परजीवी कीट।
    • NTD विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में आम हैं जहाँ लोगों के पास स्वच्छ जल या मानव अपशिष्ट के निपटान के सुरक्षित तरीकों की सुविधा नहीं है।
    • आमतौर पर इन बीमारियों के अनुसंधान एवं उपचार के लिये तपेदिक, HIV-एड्स और मलेरिया जैसी बीमारियों की तुलना में कम धन आवंटित होता है।

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रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • अवलोकन:
    • वैश्विक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) के भार में 16 देशों की हिस्सेदारी लगभग 80% है।
    • वैश्विक स्तर पर लगभग 1.65 बिलियन लोगों को कम-से-कम एक NTD के लिये उपचार की आवश्यकता का अनुमान है।
    • कोविड-19 ने समुदाय आधारित पहल, स्वास्थ्य सुविधाओं और स्वास्थ्य सेवाओं की आपूर्ति शृंखलाओं तक पहुँच को प्रभावित किया। परिणामस्वरूप वर्ष 2019 और 2020 के बीच 34% कम व्यक्तियों ने NTD के लिये उपचार प्राप्त किया।
  • सिफारिशें:
    • विलंब को दूर करने और वर्ष 2030 तक NTD रोडमैप लक्ष्यों की दिशा में प्रगति में तेज़ी लाने हेतु अधिक प्रयासों एवं निवेश की आवश्यकता है।
    • WHO ने इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये बहु-क्षेत्रीय सहयोग और साझेदारी का आग्रह किया है।
    • अंतर्राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर NTD कार्यों के पूर्ण पैमाने पर कार्यान्वयन हेतु अतिरिक्त भागीदारों और निवेशकों को प्रोत्साहित करना तथा अंतराल को कम करना व समाप्त करना समय की आवश्यकता है।

वैश्विक पहल:

  • 2021-2030 के लिये WHO का नया रोडमैप:
    • NTD रोडमैप 2021-2030 संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के संदर्भ में NTD के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक प्रयासों हेतु WHO का खाका है।
    • ब्लूप्रिंट निम्नलिखित उपायों की सिफारिश करता है:
      • प्रक्रिया और प्रभाव का मापन।
      • रोग-विशिष्ट योजना और उसके संचालन से लेकर क्षेत्रों में सहयोगात्मक कार्य तक।
      • बाह्य रूप से संचालित एजेंडा उन कार्यक्रमों पर निर्भर हैं जो देश के स्वामित्त्व वाले और देश द्वारा वित्तपोषित हैं।
  • NTD पर लंदन घोषणा: इसे 30 जनवरी, 2012 को NTD के वैश्विक भार को पहचानने के लिये अपनाया गया था।

NTD को समाप्त करने हेतु भारतीय पहल:

  • लसीका फाइलेरियासिस (Accelerated Plan for Elimination of Lymphatic Filariasis-APELF) के उन्मूलन के लिये त्वरित योजना वर्ष 2018 में NTD के उन्मूलन की दिशा में गहन प्रयासों के हिस्से के रूप में शुरू की गई थी।
  • वर्ष 2005 में भारत, बांग्लादेश और नेपाल की सरकारों द्वारा सबसे संवेदनशील आबादी के शीघ्र रोग निदान और उपचार में तेज़ी लाने तथा रोग निगरानी में सुधार एवं कालाज़ार को नियंत्रित करने के लिये WHO समर्थित एक क्षेत्रीय गठबंधन का गठन किया गया है।
    • भारत पहले ही कई अन्य NDTs को समाप्त कर चुका है, जिसमें गिनी वर्म, ट्रेकोमा और यॉज़ शामिल हैं।
  • जन औषधि प्रशासन (Mass Drug Administration- MDA) जैसे निवारक तरीकों का उपयोग समय-समय पर स्थानिक क्षेत्रों में किया जाता है, जिसमें जोखिम वाले समुदायों को फाइलेरिया रोधी (Anti-filaria) दवाएँ मुफ्त प्रदान की जाती हैं।
  • सैंडफ्लाई प्रजनन (Sandfly Breeding) को रोकने के लिये स्थानिक क्षेत्रों में घरेलू स्तर पर अवशिष्ट छिड़काव जैसे वेक्टर जनित रोकथाम उपाय किये जाते हैं।
  • सरकार द्वारा लिम्फोएडेमा (Lymphoedema) और हाइड्रोसील (Hydrocele) से प्रभावित लोगों के लिये रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता रोकथाम उपाय भी सुनिश्चित किये जाते हैं।
  • केंद्र और राज्य सरकारों ने कालाज़ार (Kala-Azar) और इसकी अगली कड़ी (ऐसी स्थिति जो पिछली बीमारी या चोट का परिणाम है) से पीड़ित लोगों के लिये वेतन मुआवज़ा योजनाएँ (Wage Compensation Schemes) शुरू की हैं, जिन्हें पोस्ट-कालाज़ार डर्मल लीशमैनियासिस (Post-Kala Azar Dermal Leishmaniasis) के रूप में भी जाना जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23

चर्चा में क्यों?   

केंद्रीय वित्त मंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद वित्त वर्ष 2022-23 के लिये आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया।  

  • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि महामारी से भारत की अर्थव्यवस्था बाहर निकल चुकी है और आने वाले वित्तीय वर्ष 2023-24 में अर्थव्यवस्था के 6% से 6.8% के मध्य बढ़ने की उम्मीद है। 

आर्थिक सर्वेक्षण: 

  • भारत का ‘आर्थिक सर्वेक्षण’ वित्त मंत्रालय द्वारा जारी एक वार्षिक दस्तावेज़ है। इसे प्रायः संसद में केंद्रीय बजट पेश किये जाने से एक दिन पहले प्रस्तुत किया जाता है।
  • इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार के मार्गदर्शन में आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) के अर्थशास्त्र विभाग द्वारा तैयार किया जाता है।
  • यह पिछले 12 महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की समीक्षा करता है और चालू वित्त वर्ष के लिये आर्थिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
  • यह भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को भी दर्शाता है, जिसमें सकल घरेलू उत्पाद (GDP), मुद्रास्फीति, रोज़गार और व्यापार पर डेटा शामिल है।
  • भारत में पहला आर्थिक सर्वेक्षण वर्ष 1950-51 में प्रस्तुत किया गया था।
  • वर्ष 1964 तक इसे केंद्रीय बजट के साथ पेश किया जाता था। इसके बाद से इसे बजट से अलग कर दिया गया है।

वर्ष 2022-23 में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति:

GDP

भारत का मध्यम अवधि विकास परिदृश्य:

  • संदर्भ:  
    • वर्तमान दशक वर्ष 1998-2002 के समान है, जहाँ परिवर्तनकारी सुधारों की वजह से अस्थायी झटकों के कारण विकास प्रतिफल प्राप्त करने में देरी हुई थी लेकिन संरचनात्मक सुधारों का प्रतिफल बाद में विकास लाभांश के रूप प्राप्त हुआ।
  • वर्ष 2014-2022 की अवधि:  
    • वर्ष 2014-2022 भारत के आर्थिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण अवधि है जिनमें विभिन्न सुधारों का उद्देश्य जीवन को सरल और व्यवसाय को आसान बनाना है।
    • ये सुधार सार्वजनिक उत्पाद बनाने, विश्वसनीय शासन, निजी क्षेत्र के साथ सह-भागीदारी और कृषि उत्पादकता बढ़ाने पर आधारित थे।
    • हालाँकि बैलेंस शीट संबंधी तनाव और वैश्विक अस्थिरता के कारण इस अवधि के दौरान प्रमुख मैक्रोइकोनॉमिक घटक (Variables) नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए।
  • परिदृश्य 2023-2030:  
    • महामारी से पहले के वर्षों की तुलना में विकास का परिदृश्य बेहतर है और भारतीय अर्थव्यवस्था मध्यम अवधि में अपनी क्षमता से बढ़ने हेतु तैयार है।

Shocks-to-the-economy

राजस्व से संबंधित प्रमुख राजकोषीय विकास:  

  • संदर्भ:
    • प्रत्यक्ष करों और वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) राजस्व में वृद्धि जैसे विभिन्न कारकों के कारण वित्तीय वर्ष 2023 में लचीलापन देखा गया।
  • राजस्व वृद्धि और प्रदर्शन:  
    • अप्रैल से नवंबर 2022 तक सकल कर राजस्व में 15.5% की साल-दर-साल वृद्धि हुई, जो मुख्य रूप से प्रत्यक्ष करों और GST दोनों की मज़बूत वृद्धि से प्रेरित थी। 
    • GST ने खुद को केंद्र और राज्य सरकारों के लिये राजस्व के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में स्थापित किया है, जैसा कि अप्रैल से दिसंबर 2022 तक 24.8% की सालाना वृद्धि से प्रदर्शित होता है।
    • पिछले कुछ वर्षों में केंद्र का पूंजीगत व्यय GDP (वित्त वर्ष 2009 से वित्त वर्ष 2020) के 1.7% से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 अनंतिम वास्तविक (Provisional Actual) में 2.5% हो गया है। 
      • पूंजीगत व्यय पर खर्च को प्राथमिकता देने हेतु केंद्र ने ब्याज मुक्त ऋण और उधार सीमा में वृद्धि के माध्यम से राज्य सरकारों को प्रोत्साहित किया। 
      • विशेष रूप से सड़क और राजमार्ग, रेलवे, आवास तथा शहरी मामलों जैसे बुनियादी ढाँचे एवं गहन क्षेत्रों में बढ़े हुए पूंजीगत व्यय का मध्यम अवधि के विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 
  • सतत् ऋण-से-जीडीपी अनुपात की ओर:
    • पूंजीगत व्यय आधारित वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने की सरकार की रणनीति से वृद्धि-ब्याज दर अंतर सकारात्मक रहेगा, जिसके परिणामस्वरूप मध्यम अवधि में एक स्थायी ऋण-जीडीपी अनुपात प्राप्त होगा। 

मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता की स्थिति:

  • संदर्भ:  
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2022 में अपना सख्त  मौद्रिक चक्र शुरू किया और तब से उन्होंने रेपो दर में 225 आधार अंकों की वृद्धि की है।
      • इससे अधिशेष तरलता में कमी आई है और वित्तीय संस्थानों की बैलेंस शीट में सुधार हुआ है जिससे उनके लिये पैसा उधार देना आसान हो गया है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि निजी पूंजीगत व्यय में वृद्धि क्रेडिट वृद्धि में विस्तार का समर्थन जारी रखेगी, जिससे एक सकारात्मक निवेश चक्र शुरू होगा।
  • प्रदर्शन और वृद्धि: 

वर्ष 2022-23 में कीमतों और मुद्रास्फीति नियंत्रित:  

  • संदर्भ:  
    • वर्ष 2022 में भारत ने उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति के तीन चरणों का सामना किया। पहले चरण के दौरान जनवरी से अप्रैल तक रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध तथा देश के कुछ हिस्सों में हीट वेव के कारण फसल उत्पादकता में कमी की वजह से मुद्रास्फीति 7.8% पर पहुँच गई।
      • हालाँकि सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक की त्वरित कार्रवाई ने दिसंबर तक 5.7% की गिरावट के साथ मुद्रास्फीति को नियंत्रण में लाने में मदद की। 
  • बाधाएँ:  
  • विनियामक उपाय:
    • सरकार ने कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिये एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें शामिल थे- पेट्रोल और डीज़ल के निर्यात शुल्क को कम करना, प्रमुख आदानों पर आयात शुल्क को शून्य पर लाना, गेहूँ उत्पादों पर निर्यात प्रतिबंध व चावल पर निर्यात शुल्क लगाना, कच्चे और परिष्कृत पाम तेल पर मूल शुल्क (Basic Duty) को कम करना।
    • कम आवास ऋण ब्याज दरों के साथ-साथ आवास क्षेत्र में सरकार के समय पर नीतिगत हस्तक्षेप ने किफायती आवास खंड की मांग में वृद्धि की तथा वित्त वर्ष 2023 में अधिक खरीदारों को आकर्षित किया।
  • RBI का पूर्वानुमान:  
    • RBI ने निकट भविष्य में अनाज, मसालों और दूध के लिये उच्च घरेलू कीमतों का अनुमान लगाया है, मुख्य रूप से आपूर्ति की कमी और बढ़ती फीड लागत के कारण।  
      • बदलती जलवायु भी विश्व भर में उच्च खाद्य कीमतों के जोखिम को बढ़ा रही है

वर्ष 2022-23 के दौरान भारत में सामाजिक बुनियादी ढाँचे और रोज़गार की स्थिति:

  • संदर्भ:  
    • सरकार ने सामाजिक क्षेत्र पर खर्च बढ़ाया। मानव पूंजी निर्माण हेतु  शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जुड़वाँ स्तंभों को मज़बूत किया जा रहा है।  
      • कुल मिलाकर सरकार का सामाजिक क्षेत्र का खर्च वित्त वर्ष 2016 में 9.1 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 23 में 21.3 लाख करोड़ रुपए हो गया
  • सामाजिक अवसंरचना:  
    • शिक्षा:  
      • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 से देश के वृद्धि और विकास की संभावनाओं के समृद्ध होने की उम्मीद है।
      • सरकार के प्रयासों से स्कूलों में नामांकन अनुपात और लैंगिक समानता में सुधार हुआ है।
    • स्वास्थ्य देखभाल: 
      • वित्त वर्ष 2023 में स्वास्थ्य क्षेत्र पर सरकार का बजट खर्च GDP का 2.1% था, जो वित्त वर्ष 2021 में 1.6% था।
      • 4 जनवरी, 2023 तक आयुष्मान भारत योजना से लगभग 22 करोड़ लोग लाभान्वित हुए हैं और देश भर में 1.54 लाख से अधिक स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र स्थापित किये गए हैं।
    • गरीबी उन्मूलन:   
      • वर्ष 2030 तक गरीबी को कम करने के सतत् विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में प्रगति इस तथ्य से प्रदर्शित होती है कि संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी गरीबी सूचकांक के अनुसार, वर्ष 2005-06 और 2019-21 के बीच 41 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा से बाहर निकल चुके हैं।
    • आधार और को-विन: 
      • आधार ने को-विन (Co-WIN) प्लेटफॉर्म को विकसित करने और 2 बिलियन से अधिक वैक्सीन खुराक देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
    • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम: 
  • रोज़गार:  
    • श्रम बल की भागीदारी: श्रम बाज़ार कोविड-19 के प्रभाव से उबर चुके हैं, साथ ही बेरोज़गारी दर वर्ष 2018-19 में 5.8% से गिरकर 2020-21 में 4.2% हो गई है।
      • ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर वर्ष 2018-19 में 19.7% से बढ़कर 2020-21 में 27.7% हो गई है, जो एक सकारात्मक विकास है।
    • ई-श्रम पोर्टल: असंगठित श्रमिकों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिये ई-श्रम पोर्टल बनाया गया था और 31 दिसंबर, 2022 तक 28.5 करोड़ से अधिक श्रमिकों को पंजीकृत किया गया था।
    • जैम ट्रिनिटी और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण: जैम (JAM) ट्रिनिटी, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के साथ संयुक्त रूप से हाशिये पर पड़े लोगों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में शामिल कर उन्हें सशक्त बनाया गया है।

G20

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण में भारत का आर्थिक प्रदर्शन:  

UNEP

  • प्रदर्शन और लक्ष्य:
    • भारत अब वर्ष 2030 तक 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करने का एक और लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
      • भारत ने वर्ष 2030 से पहले गैर-जीवाश्म ईंधन से 40% स्थापित विद्युत क्षमता का लक्ष्य प्राप्त कर लिया है और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से स्थापित क्षमता 500GW से अधिक होने की संभावना है।
      • इससे वर्ष 2029-30 तक (2014-15 की तुलना में) औसत उत्सर्जन दर में लगभग 29% की गिरावट आएगी।
    • संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (UNFCCC COP26) के अवसर पर ग्लासगो जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए लोगों को व्यक्तिगत रूप से शामिल करने के लिये "LiFE (पर्यावरण हेतु जीवनशैली)"  अभियान का शुभारंभ किया गया।
    • नवंबर 2022 में भारत का पहला सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड (SGrBs) फ्रेमवर्क जारी किया गया था। RBI ने 4000 करोड़ रुपए के सॉवरेन गोल्‍ड बॉण्ड फ्रेमवर्क की दो किस्‍तों की नीलामी की।
    • सर्वेक्षण में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के माध्यम से हरित हाइड्रोजन पर निर्भर होकर वर्ष 2047 तक ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की भारत की योजनाओं पर भी प्रकाश डाला गया।
    • सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत पिछले 7 वर्षों में 78.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ नवीकरणीय ऊर्जा के लिये एक पसंदीदा स्थान बना हुआ है।
      • अक्तूबर 2022 तक राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत एक प्रमुख मीट्रिक, स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता 61.6 GW थी।

कृषि और खाद्य प्रबंधन में भारत का आर्थिक प्रदर्शन: 

  • संदर्भ:  
    • भारत के कृषि क्षेत्र में पिछले छह वर्षों में 4.6% की औसत वार्षिक वृद्धि दर देखी गई है। इसने कृषि को देश के समग्र प्रगति, विकास और खाद्य सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बनाया है।
  • प्रदर्शन:  
    • हाल के वर्षों में भारत कृषि उत्‍पादों के सकल निर्यातक के रूप में उभरा है और वर्ष 2021-22 में निर्यात 50.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के रिकॉर्ड स्‍तर पर पहुँचा है।
    • सरकार द्वारा किये गए निम्नलिखित उपायों के कारण कृषि क्षेत्र में तेज़ी देखी गई:
  • वर्ष 2020-21 में कृषि में निजी निवेश बढ़कर 9.3% हो गया। कृषि क्षेत्र के लिये संस्थागत ऋण वर्ष 2021-22 में बढ़कर 18.6 लाख करोड़ रुपए हो गया।
  • भारत में खाद्यान्न उत्पादन में निरंतर वृद्धि देखी गई और यह वर्ष 2021-22 में 315.7 मिलियन टन रहा।
  • राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) योजना ने किसानों को उनकी उपज (1.74 करोड़ किसानों और 2.39 लाख व्यापारियों को कवर करते हुए) के लिये लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने हेतु एक ऑनलाइन, प्रतिस्पर्द्धी, पारदर्शी बोली प्रणाली स्थापित की है।
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के माध्यम से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा वर्ष 2021 में अपने 75वें सत्र में 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष (IYM) घोषित किये जाने के बाद भारत पोषक अनाज को बढ़ावा देने में अग्रणी है।

औद्योगिक क्षेत्र में भारत का आर्थिक प्रदर्शन:

  • संदर्भ:  
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में औद्योगिक क्षेत्र (वित्त वर्ष 22-23 की पहली छमाही के लिये) द्वारा सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) में 3.7% की वृद्धि देखी गई है, जो पिछले दशक की पहली छमाही में हासिल 2.8% की औसत वृद्धि से अधिक है। 
  • प्रदर्शन:  
    • निजी अंतिम उपभोग व्यय में मज़बूत वृद्धि, वर्ष की पहली छमाही के दौरान निर्यात प्रोत्साहन, सार्वजनिक पूंजीगत व्यय में वृद्धि से निवेश मांग में वृद्धि और मज़बूत बैंक तथा कॉर्पोरेट बैलेंस शीट ने औद्योगिक विकास के लिये मांग प्रोत्साहन प्रदान किया है। 
      • माँग प्रोत्साहन हेतु उद्योग की आपूर्ति प्रतिक्रिया मज़बूत रही है।
    • जुलाई 2021 से क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) दोनों में प्रक्षेपित रूप से वृद्धि हो रही है
  • MSMEs और बड़े उद्योगों दोनों के ऋण में दो अंकों की वृद्धि देखने को मिली है (जनवरी 2022 से MSMEs में 30% की वृद्धि)।
  • वित्त वर्ष 2019 में 4.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से लेकर वित्त वर्ष 2022 में 11.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात लगभग तीन गुना बढ़ गया है, भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है।
  • फार्मा उद्योग में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह चार गुना बढ़ गया है, अतः यह वित्त वर्ष 2019 के 180 मिलियन अमेरिकी डॉलर से वित्त वर्ष 2022 में 699 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
  • भारत को वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में शामिल करने के लिये अगले पाँच वर्षों में 4 लाख करोड़ रुपए के अनुमानित कैपेक्स (Capex) के साथ 14 श्रेणियों में उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजनाएँ (पीएलआई) भी शुरू की गई है।
  • कंपनी अधिनियम 2013 में संशोधन करके जनवरी 2023 तक 39,000 से अधिक प्रावधानों को कम तथा 3500 से अधिक प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला में भारत के एकीकरण को और बढ़ावा देने के लिये 'मेक इन इंडिया 2.0' अब 27 क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें 15 विनिर्माण क्षेत्र एवं 12 सेवा क्षेत्र शामिल हैं।

सेवा क्षेत्र में भारत का आर्थिक प्रदर्शन:

  • संदर्भ:  
    • भारत में सेवा क्षेत्र वित्त वर्ष 2022 में 8.4% (YoY) की तुलना में वित्त वर्ष 2023 में 9.1% की दर से बढ़ने की उम्मीद है।
  • प्रदर्शन:
    • जुलाई 2022 से क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI) सेवाओं में सर्वाधिक विस्तार देखा गया है।
    • विश्व वाणिज्यिक सेवाओं के निर्यात में 4% की हिस्सेदारी के साथ भारत वर्ष 2021 में शीर्ष दस सेवा निर्यातक देशों में शामिल था।
    • डिजिटल समर्थन, क्लाउड सेवाओं और बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण की उच्च मांग के कारण भारत का सेवा क्षेत्र कोविड-19 महामारी के दौरान तथा भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के कारण लचीला रहा है।
    • रियल-एस्टेट क्षेत्र में निरंतर वृद्धि हुई है, जिससे वर्ष 2021 और 2022 के बीच 50% की वृद्धि के साथ महामारी-पूर्व आवास बिक्री के स्तर में वृद्धि देखने को मिली है।
    • पर्यटन क्षेत्र में होटल अधिभोग दर अप्रैल 2021 में 30-32% के सुधार के साथ नवंबर 2022 में 68-70% हो गई है, जिससे वित्त वर्ष 2023 में विदेशी पर्यटकों के आगमन में वृद्धि के साथ पुनरुद्धार के संकेत देखने को मिल रहे है।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म भारत की वित्तीय सेवाओं में बदलाव ला रहे हैं; भारत का ई-कॉमर्स बाज़ार वर्ष 2025 तक सालाना 18% के दर से बढ़ने का अनुमान है।  

बाह्य क्षेत्रक में भारत का प्रदर्शन  

  • संदर्भ:  
    • हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के कारण, भारत के बाह्य क्षेत्रक वैश्विक रूप से  अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों का सामना कर रहा है।
    • तथापि भारत ने अपने बाज़ारों में विविधता लाने कार्य किया है और ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका तथा सऊदी अरब को किये जाने वाले अपने निर्यात में वृद्धि की है।
  • प्रदर्शन:  
    • वित्तीय वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही (Q2) में भारत के चालू खाता शेष (CAB) में 36.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 4.4%) का घाटा दर्ज किया गया, जबकि वित्तीय वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में 9.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर (GDP का 1.3%) का घाटा था।
      • इसका प्रमुख कारण 83.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उच्च व्यापारिक व्यापार घाटा और शुद्ध निवेश आय में वृद्धि था।
    • अपने बाज़ार का आकार बढ़ाने और बेहतर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2022 में, भारत ने संयुक्त अरब अमीरात के साथ CEPA और ऑस्ट्रेलिया के साथ ECTA पर हस्ताक्षर किये।
    • वर्ष 2022 में भारत 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रेषण प्राप्त करने के साथ विश्व में प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता बना।
      • सेवा निर्यात के बाद प्रेषण बाह्य वित्तपोषण का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है।
    • दिसंबर 2022 तक, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 9.3 महीनों के आयात को कवर करते हुए 563 बिलियन अमेरिकी डॉलर था (यह वित्तीय वर्ष 21-22 में आयात के 13 महीनों की तुलना में कम है)।
      • इसके बावजूद भारत विश्व का छठा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार धारक था।

Index

 डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर में भारत का आर्थिक प्रदर्शन 

  • संदर्भ:  
    • भारत का डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर (DPI) भारत की संभावित GDP विकास दर में लगभग 60-100 आधार अंक (BPS) जोड़ सकता है।
    • निकट भविष्य में, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC), ओपन क्रेडिट एनेबलमेंट नेटवर्क (OCEN) जैसे प्लेटफॉर्म छोटे व्यवसायों हेतु ई-कॉमर्स बाज़ार तक पहुँच और क्रेडिट उपलब्धता के मार्ग खोलेंगे तथा अपेक्षित आर्थिक विकास को मज़बूती प्रदान करेंगे।
  • प्रदर्शन:  
    • यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI): 
      • UPI-आधारित लेनदेन ने वर्ष 2019-22 के बीच मूल्य (121%) एवं मात्रा (115%) दोनों ही दृष्टि से वृद्धि की, जिसके चलते इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ।
    • टेलीफोन तथा रेडियो- डिजिटल सशक्तीकरण के लिये
      • ग्रामीण भारत में 44.3% उपभोक्ताओं के साथ, भारत में कुल टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या 117.8 करोड़ (सितंबर 2022 तक) है।
        • कुल टेलीफोन उपभोक्ताओं में से 98% से अधिक वायरलेस रूप से जुड़े हुए हैं।  
        • मार्च 2022 तक भारत में कुल टेलीडेंसिटी (प्रति 100 लोगों पर टेलीफोन कनेक्शन की संख्या) 84.8% थी।  
  • आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में 5G सेवाओं का शुभारंभ दूरसंचार के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि थी। 
  • प्रसार भारती, भारत का स्वायत्त सार्वजनिक सेवा प्रसारक, को 479 स्टेशनों से 23 भाषाओं और 179 बोलियों में प्रसारित किया जाता है और भारत के कुल क्षेत्रफल के 92% तथा प्रसारण कुल आबादी के 99.1% को कवर करता है। 
  • डिजिटल सार्वजनिक गुड्स:
    • माईस्कीम, TrEDS, GEM, ई-नाम, उमंग जैसी योजनाओं ने भारत के बाज़ार स्थान को बदल दिया है और नागरिकों को विभिन्न क्षेत्रों में सेवाओं तक पहुँच हेतु सक्षम बनाया है।  
    • ओपन क्रेडिट एनैबलमेंट नेटवर्क का उद्देश्य एंड-टू-एंड डिजिटल ऋण अनुप्रयोगों की अनुमति देते हुए ऋण परिचालन का लोकतंत्रीकरण करना है।
    • राष्ट्रीय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पोर्टल ने 1520 लेख, 262 वीडियो और 120 सरकारी पहल प्रकाशित किये हैं, भाषायी बाधा को दूर करने के लिये इसे एक उपकरण के रूप में देखा जा रहा है।
    • ई-रूपी, ई-वे बिल आदि जैसे डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर उत्पादों ने उत्पादकों के लिये अनुपालन बोझ को कम करते हुए उपभोक्ताओं हेतु मुद्रा के वास्तविक मूल्य को  सुनिश्चित किया है।

स्रोत: इकोनॉमिक सर्वे


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