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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के सौर ऊर्जा क्षमता को पुनर्जीवित करना

  • 16 Dec 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 15/12/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “An energy conundrum: On India betting big on solar power” लेख पर आधारित है। इसमें भारत की सौर ऊर्जा क्षमता और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत की अपनी आबादी और तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये ऊर्जा प्रावधान बढ़ाने की आवश्यकता एक विकट चुनौती पेश करती है, जिसे समग्र ऊर्जा मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाने हेतु देश के लिये एक वृहत अवसर और आवश्यकता दोनों के रूप में देखा जाता है।

  • सौर ऊर्जा (Solar Energy) भारत को स्वच्छ ऊर्जा (Cleaner Energy) उत्पादन प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण की ओर ले जा रही है। वर्ष 2010 में 10 मेगावाट (MW) से भी कम क्षमता से आगे बढ़ते हुए भारत ने पिछले एक दशक में उल्लेखनीय सौर ऊर्जा का योग किया है और वर्ष 2022 तक 50 गीगावाट (GW) से अधिक की क्षमता हासिल कर ली है।
  • वैश्विक जलवायु संकट को संबोधित करने की प्रतिबद्धता को आधार बनाते हुए भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से अपनी लगभग आधी ऊर्जा आवश्यकता पूरी करने का संकल्प लिया है और लघु अवधि में अपनी नवीकरणीय ऊर्जा का कम से कम 60% सौर ऊर्जा से प्राप्त करने का निश्चय किया है।
  • इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिये सौर ऊर्जा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के साथ-साथ इसकी वहनीयता एवं पहुँच पर ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है।

सौर ऊर्जा की क्या आवश्यकता है?

  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत की ऊर्जा मांग बड़े पैमाने पर ऊर्जा के गैर-नवीकरणीय स्रोतों से पूरी की जाती है। इन जीवाश्म संसाधनों की कमी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की आवश्यकता पर बल देती है।
    • सौर ऊर्जा की प्रचुरता भारत की स्वच्छ ऊर्जा मांगों को पूरा कर सकती है।
  • आर्थिक विकास: चूँकि भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है, इसके औद्योगिक विकास और कृषि के लिये बिजली की उपयुक्त आवश्यकता है।
    • भारत को बिजली उत्पादन में आत्मनिर्भरता एवं न्यूनतम लागत के साथ ही सुनिश्चित नियमित आपूर्ति की भी आवश्यकता है, जिससे इसके उद्योगों और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।
  • सामाजिक विकास: ‘पावर कट’ और बिजली की अनुपलब्धता की समस्या (विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में) अनुपयुक्त मानव विकास की ओर ले जाती है।
    • ऊर्जा की अधिकांश मांग सब्सिडीयुक्त किरासन तेल से पूरी की जाती है, जिससे सरकारी खजाने को नुकसान होता है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंता: भारत की ऊर्जा मांग का एक बड़ा भाग तापीय ऊर्जा द्वारा पूरा किया जाता है जो वृहत रूप से जीवाश्म ईंधन पर निर्भर है।
    • इससे पर्यावरण प्रदूषण भी होता है। सौर ऊर्जा ऊर्जा संसाधन का एक स्वच्छ रूप है, जो एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिये सरकार की प्रमुख योजनाएँ

भारत में सौर क्षेत्र से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • विद्युत क्षेत्र में अपर्याप्त योगदान: स्थापित सौर क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद देश के विद्युत उत्पादन में सौर ऊर्जा का योगदान उस गति से नहीं बढ़ा है।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019-20 में सौर ऊर्जा ने भारत के 1390 बिलियन यूनिट कुल बिजली उत्पादन में केवल 3.6% (50 बिलियन यूनिट) का योगदान किया।
    • इसके अलावा, जबकि भारत ने यूटिलिटी-स्केल खंड में सौर ऊर्जा उत्पादन के लिये रिकॉर्ड निम्न टैरिफ हासिल किया है, यह अंतिम उपभोक्ताओं के लिये सस्ती बिजली उपलब्ध कराने के रूप में फलित नहीं हुआ है।
  • उच्च आयात निर्भरता: भारत की वर्तमान सोलर मॉड्यूल निर्माण क्षमता ~15 GW प्रति वर्ष तक सीमित है। इसके अलावा, भारत के पास सोलर वेफर्स (solar wafers) और पॉलीसिलिकॉन इंगोट्स (polysilicon ingots) के लिये कोई निर्माण क्षमता उपलब्ध नहीं है और मौजूदा तैनाती स्तरों पर भी इसे अभी 100% सिलिकॉन वेफर्स और लगभग 80% सेल का आयात करना पड़ता है।
    • आपूर्ति शृंखला के शस्त्रीकरण का जोखिम: विशेष रूप से सिलिकॉन वेफर—जो सबसे महँगी कच्ची सामग्री है, भारत में विनिर्मित नहीं होती है। चूँकि वर्तमान में दुनिया का 90% से अधिक सोलर वेफर का विनिर्माण में चीन में होता है, भारत और चीन के बीच मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव भविष्य में आपूर्ति शृंखला के शस्त्रीकरण का कारण बन सकता है।
  • जगह की कमी: सौर परियोजनाओं को स्थापित करने के लिये बहुत अधिक जगह/भूमि की आवश्यकता होती है और भारत में भूमि की उपलब्धता कम है।
    • भूमि के एक छोटे से टुकड़े के लिये सबस्टेशनों के पास स्थित सोलर सेल्स को अन्य भूमि-आधारित आवश्यकताओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी पड़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय समुदायों के साथ संघर्ष की स्थिति बन सकती है।
  • सौर अपशिष्ट: अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत का सौर अपशिष्ट 1.8 मिलियन टन तक बढ़ जाएगा। वर्तमान में ई-अपशिष्ट नियम (e-waste rules) सौर सेल निर्माताओं के लिये अनिवार्य नहीं हैं, जो प्रति वर्ष वृहत मात्रा में सौर अपशिष्ट के उत्पादन का कारण बनता है।
  • लागत और T&D (पारेषण और वितरण) में घाटे: सौर ऊर्जा को लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और ऊर्जा के अन्य स्रोतों के साथ प्रतिस्पर्द्धा की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है।
    • T&D घाटों की लागत लगभग 40% है जो सौर ऊर्जा स्रोतों के माध्यम से उत्पादन को अत्यधिक अव्यावहारिक बना देती है।

आगे की राह

  • सौर ऊर्जा क्षेत्र में विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): भारत विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) के संबंध में उचित दिशा-निर्देश विकसित करने पर विचार कर सकता है, जिसका अर्थ है सौर उत्पादों के पूरे जीवन चक्र के लिये निर्माताओं को जवाबदेह ठहराना और अपशिष्ट पुनर्चक्रण के लिये मानकों की स्थापना करना।
    • यह घरेलू विनिर्माताओं को एक प्रतिस्पर्द्धी लाभ की स्थिति पहुँचा सकता है और अपशिष्ट प्रबंधन तथा आपूर्ति पक्ष की बाधाओं को दूर करने में दीर्घकालिक योगदान कर सकता है।
  • सौर ऊर्जा में आत्मनिर्भरता: ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विज़न के एक भाग के रूप में भारत को एक मज़बूत घरेलू सौर ऊर्जा बाज़ार विकसित करना चाहिये। सोलर पीवी विनिर्माण को बढ़ावा देने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि अपस्ट्रीम स्टार्ट अप्स कंपनियों को प्रत्यक्ष समर्थन दिया जाए, जहाँ डिज़ाइन एवं उत्पादन के लिये उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन दिया जा सकता है।
    • भारत सूक्ष्मजीवी प्रकाश-संश्लेषक एवं श्वसन प्रक्रियाओं (Microbial Photosynthetic and Respiration Processes) से बिजली पैदा करके जैव सौर कोशिकाओं के उपयोग की दिशा में भी आगे कदम बढ़ा सकता है।
  • स्थानीयकृत सौर ऊर्जा उत्पादन: मिनी-ग्रिड और सामुदायिक रूफटॉप सोलर इंस्टॉलेशन भारत में सौर ऊर्जा की दिशा में संक्रमण को सुविधाजनक बना सकते हैं, जबकि पंचायतों और नगर निकायों द्वारा कार्यान्वित स्थानीयकृत सौर ऊर्जा उत्पादन एवं उपयोग (Localised Solar Energy Production And Utilisation) वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य भारत (Net-Zero India) के हमारे लक्ष्य की पूर्ति हेतु आधारशिला का निर्माण कर सकते हैं।
  • सौर कूटनीति: वर्ष 2015 में कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP-21) में भारत और फ्राँस द्वारा स्थापित अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) निवेश जुटाने, क्षमता निर्माण, आपूर्ति शृंखला के विविधीकरण और वैश्विक कल्याण के लिये सौर ऊर्जा को समर्थन जैसे विषयों पर दुनिया के देशों को एक साथ लाने का एक मंच बन सकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन से संबद्ध चुनौतियों की विवेचना कीजिये और विचार कीजिये कि अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा में किस प्रकार योगदान दे सकता है।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्र. इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?  (वर्ष 2015)

  1. यह एक पब्लिक लिमिटेड सरकारी कंपनी है।
  2. यह एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1
 (B) केवल 2
 (C) 1 और 2 दोनों
 (D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (C)


मुख्य परीक्षा

प्र. "सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिए सस्ती, भरोसेमंद, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी करें।  (वर्ष 2018)

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