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जैव विविधता और पर्यावरण

हरित प्रौद्योगिकी में निवेश

  • 05 Jan 2022
  • 9 min read

भारत ने COP-26 में जलवायु कार्रवाई के लिये महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धताएँ की हैं। इनमें वर्ष 2030 तक अपनी ऊर्जा आवश्यकता का 50% अक्षय ऊर्जा के माध्यम से पूरा करना और अपनी गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता को 500 GW तक लाना शामिल है। इसके लिये हरित प्रौद्योगिकियों में भारी निवेश की आवश्यकता होगी और बड़े कॉर्पोरेट इस कार्य के लिये कमर कस रहे हैं।  वर्ष 2000 के बाद से सौर और पवन ऊर्जा की कीमतों में 90% से अधिक की गिरावट आई है, जबकि केवल मामूली सब्सिडी द्वारा इन क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया गया है। हालाँकि सौर और पवन ऊर्जा निरंतरता में नहीं प्राप्त होती है अतः 24 घंटे बिजली सुनिश्चित करने हेतु उनके सस्ते भंडारण की आवश्यकता है। 

  • वाणिज्यिक लाभप्रदता के आधार पर कुछ दशकों में नई बैटरी और नवीकरणीय ऊर्जा दुनिया को शक्ति प्रदान करने के लिये तैयार हैं। ई-मोबिलिटी को लेकर भारत का दृष्टिकोण है कि  वर्ष 2030 तक सभी वाणिज्यिक कारों का 70 प्रतिशत, निजी कारों का 30 प्रतिशत, बसों का 40 प्रतिशत, दोपहिया और तिपहिया वाहनों की 80 प्रतिशत बिक्री इलेक्ट्रिक वाहनों की होगी। 100 मिलियन से अधिक इलेक्ट्रिक वाहन और इसके लिये लगभग 12.5 लाख करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता होगी। 
  • हाइड्रोजन भी ऊर्जा के एक महत्त्वपूर्ण स्रोत के रूप में उभर रहा है क्योंकि इसमें शून्य कार्बन उत्सर्जन होता है और यह 75-85 प्रतिशत तक ऊर्जा का एक गैर-प्रदूषणकारी स्रोत है।  हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ने से भारत न केवल तेल, कोयले और प्राकृतिक गैस के आयात को कम कर सकता है बल्कि यूरोप और एशिया के अन्य देशों में हाइड्रोजन निर्यात करने में भी सक्षम होगा।

हरित ऊर्जा:

  • हरित ऊर्जा अक्षय ऊर्जा स्रोतों एवं शून्य उत्सर्जन स्रोतों से प्राप्त होती है, जिससे वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। साथ ही इसके अंतर्गत ऊर्जा दक्षता उपायों द्वारा बचत की गई ऊर्जा भी आती है। 
  • स्वच्छ ऊर्जा उन स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा है जिनमें कुछ हद तक वायु प्रदूषक शामिल होते हैं, जबकि हरित ऊर्जा प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त ऊर्जा है।
  • स्वच्छ ऊर्जा और हरित या नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के बीच कुछ समानता हैं लेकिन वे बिल्कुल समान नहीं हैं।
  • सही मायने में स्वच्छ ऊर्जा हरित ऊर्जा एवं अक्षय ऊर्जा से मिलकर बनती है।
  • स्वच्छ ऊर्जा स्रोत:
    • सौर ऊर्जा
    • पवन ऊर्जा
    • जलीय ऊर्जा
    • भूतापीय उर्जा
    • बायोमास
  • स्वच्छ ऊर्जा नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जित किये बिना बिजली का उत्पादन करती है। पवन ऊर्जा, जलीय ऊर्जा और सौर ऊर्जा सहित स्वच्छ ऊर्जा नवीकरणीय भी है।

हरित ऊर्जा हेतु वित्तीय तंत्र की आवश्यकता:

  • पेरिस जलवायु समझौते के लिये प्रारंभिक प्रतिबद्धताओं के हिस्से के रूप में भारत ने अपनी कार्बन उत्सर्जन तीव्रता, सकल घरेलू उत्पाद के प्रति इकाई उत्सर्जन, को 2005 के स्तर से 15 वर्षों में 33-35% कम करने की योजना बनाई है।
  • यह वर्ष 2030 तक अपने बिजली उपयोग का 40% उत्पादन गैर-जीवाश्म ईंधन से करने की दिशा में काम कर रहा है। इससे भारत कोयला आधारित बिजली उत्पादन से अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित बिजली उत्पादन की तरफ आगे बढ़ेगा।
  • इन चुनौतीपूर्ण आँकड़ों को प्राप्त करने के लिये भारत को वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, बायोमास से 10 गीगावाट और लघु जल विद्युत ऊर्जा से 5 गीगावाट का उत्पादन करना होगा। वर्ष 2022 तक भारत की नवीकरणीय क्षमता दोगुनी से अधिक हो जाएगी।
  • विश्व बैंक के अनुसार, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 70% बुनियादी ढाँचे के विकास, निर्माण, बिजली संयंत्रों और परिवहन प्रणाली से होता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि प्रमुख बुनियादी ढाँचा उद्योगों से उत्सर्जन के हानिकारक प्रभावों के कारण होने वाली मौतों की संख्या मौजूदा 150,000 प्रतिवर्ष से बढ़कर वर्ष 2030 तक 250,000 हो जाएगी।
  • इसलिये विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के सामने चुनौती यह है कि कैसे समाजों का आधुनिकीकरण किया जाए, गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढाँचे का निर्माण किया जाए और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करते हुए कुशल परिवहन सेवाएँ प्रदान की जाएँ।

हरित परियोजनाएँ: केवल सौर या पवन ऊर्जा?

  • "हरित परियोजनाओं" को केवल सौर या पवन ऊर्जा तक सीमित नहीं रखा जा सकता है। सतत् भूमि उपयोग, जल और शहरी अपशिष्ट प्रबंधन, हरित भवन, स्वच्छ परिवहन, प्रदूषण रोकथाम नियंत्रण प्रणाली, ऊर्जा दक्षता परियोजनाएँ कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जो वैश्विक स्तर पर हरित ऊर्जा के क्षेत्र में वित्तपोषण प्राप्त करने के योग्य हैं।
  • इलेक्ट्रिक वाहन जैव ईंधन के लिये एक पूरक भूमिका निभाते हैं, जो परिवहन में अक्षय ऊर्जा खपत में 80% वृद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।  हालाँकि  कुल सड़क परिवहन ऊर्जा खपत में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी सीमित है, जो वर्ष 2016 में मात्र 4% से बढ़कर वर्ष 2022 में लगभग 5% हो गई है।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों की सफलता से ऐसी स्थिति हो सकती है जहां सड़क परिवहन जीवाश्म ईंधन से मुक्त हो।  कार्बन मुक्त अर्थव्यवस्था की स्थिति भी बन की संभावना है।
  • भारत को रणनीतिक रूप से सोचना और कार्य करना है तथा इस दिशा में सबसे आगे रहने का प्रयास करना है।  वर्तमान में भारत के अधिकांश सौर उपकरण चीन से आयात किये जाते हैं।
  • हालाँकि  भारत पवन ऊर्जा का उत्पादन करता है, जिससे पर्याप्त ऊर्जा ज़रूरतें पूरी नहीं हो सकती है।

निजी क्षेत्र द्वारा निवेश की भूमिका:

  • यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2016 और वर्ष 2030 के बीच जलवायु परिवर्तन की चुनौती को संबोधित करने के लिये वैश्विक विकास की अनिवार्यताओं के लिये लगभग 100 ट्रिलियन डॉलर के अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होगी।
  • बैंक और वित्तीय संस्थान उन निवेशकों के बीच प्रमुख मध्यस्थ हैं जो अपना वित्त कम कार्बन उत्सर्जन वाली टिकाऊ परियोजनाओं में लगाने के इच्छुक हैं।
  • विश्व स्तर पर पर्यावरण के अनुकूल और जलवायु-लचीली परियोजनाओं के लिये हरित वित्त को प्रमुखता दी जा रही है।
  • यूरोपीय और अमेरिकी निवेशकों के ज़रिये हरित निवेश के अवसर बढ़ रहे हैं। ऐसे निवेशक विशेष रूप से अपनी जलवायु-संबंधी होल्डिंग्स को बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।

निष्कर्ष

अतः कहा जा सकता है कि यदि भारत को COP-26 में की हुई प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है तो उसे बहुत जल्द कार्बन आधारित ऊर्जा से नवीकरणीय ऊर्जा आधारित अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ना होगा। इसके लिये उसे पर्याप्त वित्त एवं प्रौद्योगिकी की आवश्यकता होगी जिसके लिये सरकार एवं निजी क्षेत्रों के साथ ही वैश्विक स्तर पर निवेशकों को भी साथ लाना होगा।

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