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इलेक्ट्रिक वाहन: भविष्य का परिवहन

  • 02 Nov 2021
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 30/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘India ready for a world where electric vehicles will dominate transportation?’ लेख पर आधारित है। इसमें इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रसार से संबद्ध चुनौतियों और बाज़ार में उनकी पैठ बढ़ाने के उपायों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

विश्व के 10 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में स्थित हैं। ग्रेटर नोएडा, नोएडा, लखनऊ और दिल्ली सहित ये सभी शहर उत्तर भारत में स्थित यद्यपि वातावरण और मानव स्वास्थ्य के लिये अत्यंत हानिकारक इस प्रदूषण में कई कारकों का योगदान है, वाहनों से होने वाला प्रदूषण इसमें एक उल्लेखनीय भूमिका निभाता है।

इसलिये यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत में धीरे-धीरे लेकिन निरंतर रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रसार को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके साथ ही, परिवहन की अपनी सक्षमता के मामले में हम फिर से पूर्व की यथास्थिति पर लौट चले हैं। 1900 के दशक में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) के पक्ष में पूरी बहस ईंधन-आधारित वाहनों के समक्ष घुटने टेक देने को मज़बूर हुई थी, लेकिन उम्मीद है कि अब ऐसा नहीं होगा। 

वर्ष 1886 में एक जर्मन इंजीनियर कार्ल बेंज़ (Carl Benz) ने अपने ‘गैस इंजन से संचालित वाहन' के लिये आवेदन किया था और उन्हें पेटेंट (37435) भी प्रदान की गई थी। इसके कुछ ही माह बाद ‘बेंज़ मोटर’ कार का व्यावसायिक उत्पादन शुरू हो गया। अधिकांश साक्ष्यों के अनुसार यहीं से गैस इंजनों से संचालित वाहनों के व्यावसायिक उत्पादन की शुरुआत हुई थी।

गौरतलब है कि बेंज द्वारा पेटेंट प्राप्त करने से कुछ वर्ष पूर्व अमेरिका के ‘आयोवा प्रांत’ के एक रसायनज्ञ विलियम मॉरिसन (William Morrison) को भी छह सीटों वाले इलेक्ट्रिक वाहन को संचालित करने में सफलता मिली थी। वर्ष 1900 तक अमेरिका में बिकने वाले सभी वाहनों में इलेक्ट्रिक कारों की हिस्सेदारी एक तिहाई से अधिक हो चुकी थी। इलेक्ट्रिक कारों की इस प्रगति को एक बड़ा धक्का तब लगा, जब फोर्ड ने व्यापक स्तर पर ऑटोमोबाइल का उत्पादन शुरू कर दिया, जिसकी कीमतें भी अपेक्षाकृत कम थीं। 1900 के दशक की शुरुआत में व्यापक उत्पादन के कारण कारों की कम कीमत और ईंधन की निम्न लागत के कारण वर्तमान में मोटरकार और बाइक अंधाधुंध हमारी सड़कों पर दौड़ रहे हैं।

नए परिदृश्य में, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये बढ़ते समर्थन के साथ भारत को बेहतर चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, बैटरी निर्माण फैक्ट्रियों और इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने हेतु कार कंपनियों एवं उपभोक्ताओं के लिये प्रोत्साहन के साथ स्वयं को तैयार करने की ज़रूरत है।

इलेक्ट्रिक वाहन (EVs)

  • इलेक्ट्रिक वाहन आंतरिक दहन इंजन के बजाय इलेक्ट्रिक मोटर से संचालित होते हैं और इनमें ईंधन टैंक के बजाय बैटरी लगी होती है। 
  • सामान्य तौर पर, इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत कम होती है, क्योंकि इनकी संचालन प्रक्रिया सरल होती है और ये पर्यावरण के लिये भी अनुकूल होते हैं।
  • भारत में, इलेक्ट्रिक वाहन के लिये ईंधन की लागत लगभग 80 पैसे प्रति किलोमीटर है। इसकी तुलना में, आज भारतीय शहरों में 100 रुपए प्रति लीटर से अधिक के पेट्रोल मूल्य के साथ पेट्रोल-संचालित वाहनों पर 7-8 रुपए प्रति किलोमीटर का खर्च आता है।

भारत में संभावनाएँ

  • निजी क्षेत्र ने इलेक्ट्रिक वाहनों की अनिवार्यता का स्वागत किया है।
  • अमेज़न, स्विगी और ज़ोमैटो जैसी कंपनियाँ अपने डिलीवरी कार्यों के लिये EVs का अधिकाधिक प्रयोग कर रही हैं।
  • महिंद्रा जैसी कार निर्माता कंपनी की ओला जैसी उपभोक्ता सेवाप्रदाता कंपनी के साथ और टाटा मोटर्स की ब्लू स्मार्ट मोबिलिटी के साथ साझेदारी से अधिकाधिक इलेक्ट्रिक वाहन डिलीवरी और राइड-हेलिंग सेवाओं की सुनिश्चितता होगी। 

Component-Industry

संबद्ध चुनौतियाँ

  • चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: इलेक्ट्रिक वाहनों से संबंधित सर्वाधिक गंभीर चुनौती भारत में चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है।
    • इलेक्ट्रिक वाहन आमतौर पर लिथियम-आधारित बैटरी द्वारा संचालित होते हैं।  इन बैटरियों को आमतौर पर प्रत्येक 200-250 किलोमीटर पर चार्ज करने की आवश्यकता होती है। इसलिये चार्जिंग पॉइंट्स के सघन प्रसार की आवश्यकता है। 
  • धीमी चार्जिंग की समस्या: निजी लाइट-ड्यूटी स्लो चार्जर का उपयोग कर घर पर EVs को फुल चार्ज करने में 12 घंटे तक का समय लगता है। घर पर धीमी चार्जिंग की इस तकनीकी समस्या के विकल्प के रूप में देश भर में चुनिंदा चार्जिंग स्टेशन ही उपलब्ध हैं। 
    • भारत जैसे बड़े और घनी आबादी वाले देश के लिये इन चार्जिंग स्टेशनों की संख्या बेहद अपर्याप्त है।
  • इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन के लिये एक स्थिर नीति का अभाव: इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन एक पूँजी गहन क्षेत्र है, जहाँ एकसमानता और लाभ प्राप्ति के लिये दीर्घकालिक योजना की आवश्यकता है। इलेक्ट्रिक वाहन उत्पादन से संबंधित सरकारी नीतियों की अनिश्चितता इस उद्योग में निवेश को हतोत्साहित करती है।
  • तकनीकी चुनौतियाँ: भारत इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन के मामले में तकनीकी रूप से पिछड़ा हुआ है, जबकि बैटरी, सेमीकंडक्टर्स, कंट्रोलर आदि इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। 
  • संबद्ध अवसंरचना समर्थन का अभाव: ‘एसी बनाम डीसी’ चार्जिंग स्टेशनों, ग्रिड स्थिरता और ‘रेंज एंग्जायटी’ (यह भय कि बैटरी जल्द ही खत्म हो जाएगी) के संबंध में स्पष्टता की कमी कुछ अन्य कारक हैं, जो इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग के विकास को बाधित कर रहे हैं।
  • घरेलू उत्पादन के लिये सामग्री की उपलब्धता में कमी: बैटरी इलेक्ट्रिक वाहनों का सबसे महत्त्वपूर्ण घटक है। भारत में लिथियम और कोबाल्ट का कोई ज्ञात भंडार नहीं है, जो बैटरी उत्पादन के लिये आवश्यक है। भारत लिथियम आयन बैटरी के आयात के लिये जापान और चीन जैसे देशों पर निर्भर है।
  • कुशल कामगारों की कमी: EVs को लगातार सर्विसिंग की आवश्यकता होती है और सर्विसिंग के लिये उच्च स्तर के कौशल की आवश्यकता होती है। भारत में ऐसे कौशल विकास के लिये समर्पित प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का अभाव है। 

आगे की राह

  • इलेक्ट्रिक वाहन में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ाना: भारतीय बाज़ार को स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के लिये प्रोत्साहन की आवश्यकता है, जो रणनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टिकोण से भारत के अनुकूल हों। 
    • चूँकि कीमतों को कम करने के लिये स्थानीय अनुसंधान एवं विकास में निवेश आवश्यक है, इसलिये स्थानीय विश्वविद्यालयों और मौजूदा औद्योगिक केंद्रों का सहयोग लेना उपयुक्त होगा।
    • भारत को यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये और इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास को सुसंगत बनाना चाहिये।
  • लोगों को जागरूक करना: पुराने मानदंडों को तोड़ना और एक नए उपभोक्ता व्यवहार का निर्माण करना हमेशा चुनौतीपूर्ण होता है। इसलिये, भारतीय बाज़ार में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने और इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिये लोगों को जागरूक और सुग्राही बनाने की आवश्यकता है।
  • व्यवहार्य बिजली मूल्य निर्धारण: बिजली की मौजूदा कीमतों को देखते हुए ‘होम चार्जिंग’ भी एक समस्या हो सकता है। बिजली की कीमतों को कम करने के लिये कोयले पर आधारित थर्मल पावर प्लांट के बदले अन्य विकल्प आजमाने होंगे। 
    • इस प्रकार, इलेक्ट्रिक कारों के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिये संपूर्ण बिजली उत्पादन परिदृश्य में भी परिवर्तन लाए जाने की आवश्यकता है।
    • इस संदर्भ में सुखद है कि भारत वर्ष 2025 तक विश्व के सबसे बड़े सौर एवं ऊर्जा भंडारण बाज़ारों में से एक बनने की राह पर है।
    • सौर ऊर्जा से संचालित ग्रिड समाधानों का संयोजन एक हरित विकल्प के रूप में पर्याप्त चार्जिंग अवसंरचना को सुनिश्चित करेगा।
  • क्लोज़्ड-लूप मोबिलिटी इकोसिस्टम का निर्माण करना: इलेक्ट्रिक आपूर्ति शृंखला के लिये विनिर्माण को सब्सिडी प्रदान करने से निश्चित रूप से भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों के विकास परिदृश्य में सुधार होगा।
    • चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही एक सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला की स्थापना की भी आवश्यकता होगी।
    • इसके अलावा, बैटरी के रीसाइक्लिंग स्टेशनों को बैटरी से धातुओं (जिनका उपयोग इलेक्ट्रिफिकेशन के लिये किया जाता है) को पुनर्प्राप्त करने की आवश्यकता होगी, ताकि ‘क्लोज़-लूप’ का निर्माण हो सके।
  • ज्ञात हो कि चीन और दक्षिण कोरिया की कंपनियाँ लिथियम-आधारित ईवी बैटरी की सबसे बड़ी आपूर्तिकर्त्ता हैं। ऐसे में पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) की जगह लेने के लिये एक नई वैश्विक व्यवस्था उभर सकती है। 
    • बेहतर चार्जिंग अवसंरचना, बैटरी निर्माण फैक्ट्रियों और कार कंपनियों एवं उपभोक्ताओं को इलेक्ट्रिक अपनाने के लिये स्मार्ट प्रोत्साहन प्रदान करने के साथ भारत को इस नई व्यवस्था में अपना उपयुक्त स्थान प्राप्त करने के लिये योजना तैयार करनी होगी।

अभ्यास प्रश्न: 'इलेक्ट्रिक वाहन परिवहन क्षेत्र का भविष्य हैं।' इस कथन के आलोक में भारतीय बाज़ार में इलेक्ट्रिक वाहनों की पैठ बढ़ाने से संबद्ध चुनौतियों और उपायों पर चर्चा कीजिये।

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