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मेक इन इंडिया की उपलब्धियाँ

  • 24 Oct 2024
  • 20 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मेक इन इंडिया पहल,मेक इन इंडिया 2.0,पीएलआई योजनाएँ, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI),सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम ,स्टार्टअप इंडिया पहल,राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम   

मेन्स के लिये:

मेक इन इंडिया: उपलब्धियाँ,चुनौतियाँ और आगे का राह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 25 सितम्बर 2014 को शुरू की गई मेक इन इंडिया पहल ने 10 वर्ष पूर्ण किये, जो उस समय धीमी वृद्धि से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये एक रणनीतिक प्रतिक्रिया के रूप में उभरी।

मेक इन इंडिया पहल क्या है?

  • लक्ष्य एवं उद्देश्य:
    • इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी पूंजी को आकर्षित करके,रचनात्मकता को बढ़ावा देकर और उच्चस्तरीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण करके भारत को विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनाना था।
    • इसका उद्देश्य भारत की औद्योगिक क्षमता को बढ़ाना तथा विदेशी उत्पादों पर निर्भरता कम करने के लिये 'वोकल फॉर लोकल' अवधारणा को बढ़ावा देना था।
    • इसके अतिरिक्त,इस पहल का उद्देश्य भारत के युवा कार्यबल के लिये रोज़गार के अवसर सृजित करने के साथ-साथ आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना था
  • मेक इन इंडिया 2.0: 
    • 27 क्षेत्रों को शामिल करते हुए चल रहा "मेक इन इंडिया 2.0" चरण, कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहा है, जिससे वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता के रूप में भारत की भूमिका मज़बूत हो रही है।
  • पहल के अंतर्गत लक्षित क्षेत्र: 
    • यह पहल विभिन्न क्षेत्रों को लक्षित करती है,जिन्हें दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया गया है: विनिर्माण क्षेत्र एवं सेवा क्षेत्र

    विनिर्माण क्षेत्र

            सेवा क्षेत्र

एयरोस्पेस और रक्षा

सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और आईटी-सक्षम सेवाएँ (ITeS)

ऑटोमोटिव और ऑटो कंपोनेंट्स

पर्यटन एवं आतिथ्य

फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरण

मेडिकल वैल्यू ट्रैवल (चिकित्सा हस्तक्षेप के माध्यम से स्वास्थ्य को बनाए रखने, सुधारने या बहाल करने के लिये यात्रा)

जैव प्रौद्योगिकी

परिवहन एवं रसद

पूंजीगत वस्तुएँ

लेखांकन, कानूनी, वित्तीय और दृश्य-श्रव्य सेवाएँ

वस्त्र एवं परिधान

संचार और पर्यावरण सेवाएँ

रसायन एवं पेट्रोरसायन

निर्माण-संबंधी इंजीनियरिंग सेवाएँ

इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एवं विनिर्माण

शिक्षा सेवाएँ

चमड़ा एवं फुटवियर 

खाद्य प्रसंस्करण

रत्न और आभूषण

शिपिंग, रेलवे, निर्माण एवं नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा

  • पहल के चार स्तंभ:
    • नई प्रक्रियाएँ: इस स्तंभ का उद्देश्य विनियमों को सरल बनाते हुए नौकरशाही बाधाओं को कम करके भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में वृद्धि करना है।
      • सरकार ने स्टार्टअप और स्थापित उद्यमों दोनों के लिये व्यावसायिक वातावरण को अधिक अनुकूल बनाने के लिये सुधार प्रस्तुत किये हैं।
    • नवीन अवसंरचना: यह पहल औद्योगिक गलियारों,स्मार्ट शहरों और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी बुनियादी ढाँचे के विकास पर ज़ोर देती है।
      • इन विकासों का उद्देश्य नवाचार को समर्थन देना,पंजीकरण प्रक्रियाओं को सरल बनाना तथा एक मज़बूत बौद्धिक संपदा अधिकार ढाँचा सुनिश्चित करना है।
    • नये क्षेत्र: रक्षा,बीमा,चिकित्सा उपकरण एवं रेलवे सहित कई क्षेत्रों को खोलने के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नियमों को उदार बनाया गया । 
      • इस दृष्टिकोण ने अंतर्राष्ट्रीय निवेश को बढ़ावा दिया है,परिणामस्वरूप आर्थिक विकास को गति मिली है।
    • नई मानसिकता: सरकार ने अपनी भूमिका को नियामक से बदलकर सुविधा प्रदाता की भूमिका में बदल दिया है, जो आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये उद्योगों के साथ सहयोग कर रही है। मानसिकता में यह बदलाव एक अधिक व्यापार-अनुकूल वातावरण बनाने का प्रयास करता है।

मेक इन इंडिया के अंतर्गत प्रमुख कार्यक्रम तथा योजनाएँ क्या हैं?

  • प्रोडक्शन लिंक्ड इनिशिएटिव (PLI) योजनाएँ: 1.97 लाख करोड़ रुपए (लगभग 26 बिलियन अमरीकी डॉलर) के आवंटन के साथ PLI योजनाओं का उद्देश्य मोबाइल फोन,चिकित्सा उपकरण तथा ऑटोमोबाइल सहित 14 प्रमुख क्षेत्रों में विनिर्माण को बढ़ावा देना है। 
    • जुलाई 2024 तक 755 आवेदन स्वीकृत किये जा चुके हैं, जिसके परिणामस्वरूप 1.23 लाख करोड़ रुपए का निवेश होगा और साथ ही 8 लाख लोगों के लिये रोज़गार भी सृजित होंगे।
  • पीएम गतिशक्ति: अक्टूबर 2021 में लॉन्च की गई,पीएम गतिशक्ति रेलवे,सड़क,बंदरगाहों,हवाई अड्डों एवं जन परिवहन जैसे क्षेत्रों में मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी को एकीकृत करते हुए समग्र बुनियादी ढाँचे के विकास पर केंद्रित है। 
  • सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम: वर्ष 2021 में 76,000 करोड़ रुपए के बजट के साथ स्वीकृत,सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य एक स्थायी सेमीकंडक्टर के साथ डिस्प्ले विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करना है। 
    • महत्त्वपूर्ण परियोजनाओं में सेमीकंडक्टर विनिर्माण में माइक्रोन का 22,000 करोड़ रुपए का निवेश शामिल है।
  • राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP): सितंबर 2022 में लॉन्च की गई राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति का उद्देश्य भारत के लॉजिस्टिक्स नेटवर्क में सुधार के साथ-साथ लागत में कमी करना और देश की लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक रैंकिंग में वृद्धि करना शामिल है। यह नीति पीएम गतिशक्ति की बुनियादी ढाँचा पहलों का पूरक है।
    • औद्योगीकरण एवं शहरीकरण: राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम भारत में औद्योगीकरण और शहरीकरण को आगे बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कार्यक्रम औद्योगिक गलियारों को शहरी नियोजन के साथ एकीकृत करता है,जिससे स्मार्ट शहरों एवं औद्योगिक केंद्रों के विकास को बढ़ावा मिलता है। 
      • हाल ही में स्वीकृत की गई परियोजनाओं में 28,602 करोड़ रुपए की 12 परियोजनाएँ शामिल हैं, जिनका उद्देश्य भारत को वैश्विक विनिर्माण गंतव्य के रूप में स्थापित करना है।
    • स्टार्टअप इंडिया पहल: वर्ष 2016 में प्रारंभ की गई स्टार्टअप इंडिया पहल द्वारा उद्यमशीलता को समर्थन देने वाला एक मज़बूत पारिस्थितिकीय तंत्र का निर्माण किया है, जिसके परिणामस्वरूप 148,931 से अधिक स्टार्टअप स्थापित हुए हैं और 15.5 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार भी सृजित हुए हैं। 
    • कर सुधार: वर्ष 2017 में वस्तु और सेवा कर (GST) की शुरूआत से भारत की कर संरचना एकीकृत हुई और साथ ही अनुपालन भी सरल हुआ तथा विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता में वृद्धि हुई।
    • यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI): भारत के UPI डिजिटल भुगतान में वैश्विक अग्रणी के रूप में उभरा है,जो वैश्विक आधार पर 46% वास्तविक समय भुगतान लेनदेन को संभालता है। 
      • अप्रैल से जुलाई 2024 तक UPI द्वारा 81 लाख करोड़ रुपए के लेनदेन दर्ज किये गए, जिससे डिजिटल अर्थव्यवस्था के विकास को विशेष समर्थन प्राप्त हुआ।
  • ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस: निवेशकों के विश्वास में उल्लेखनीय सुधार इस बात से भी प्रदर्शित हुआ कि भारत व्यापार सुगमता(ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस) रैंकिंग में वर्ष 2014 में 142वें स्थान से वर्ष 2019 में 63वें स्थान पर आ गया, जो नियमों को सरल बनाने और नौकरशाही बाधाओं को कम करने के प्रयासों को दर्शाता है।
  • भारतीय विनिर्माण को समर्थन देने के लिये FDI में वृद्धि: मेक इन इंडिया पहल को उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई है, जो उच्चस्तरीय FDI प्रवाह एवं ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस में सुधार के कारण संभव हुई है। 
  • FDI, वर्ष 2014-15 में 45.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 84.83 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया,जिसमें अप्रैल 2014 से मार्च 2024 के बीच कुल 667.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया। वित्त वर्ष 2023-2024 में FDI 70.95 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो दुनिया भर में निवेश गंतव्य के रूप में भारत के आकर्षण को प्रदर्शित करता है।

मेक इन इंडिया पहल के अंतर्गत प्रमुख उपलब्धियाँ क्या हैं?

  • स्वास्थ्य सेवा: भारत कोविड-19 टीकों का एक प्रमुख निर्यातक के रूप में उभरा है,जो वैश्विक वैक्सीन आवश्यकताओं का 60% आपूर्ति करता है।
  • रेलवे: स्वदेशी वंदे भारत ट्रेनों ने भारत की स्थानीय विनिर्माण क्षमताओं को प्रदर्शित किया है।
  • रक्षा उत्पादन: भारत के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत का जलावतरण रक्षा आत्मनिर्भरता में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण: भारत दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है,जिसका इलेक्ट्रॉनिक्स बाज़ार वित्त वर्ष 2023 में 155 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • व्यापारिक निर्यात: वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का व्यापारिक निर्यात 437.06 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा,जो वैश्विक व्यापार में इसकी बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।
  • वस्त्र एवं रोज़गार: इस क्षेत्र ने लगभग 14.5 करोड़ रोज़गार सृजित किये हैं,जो रोज़गार सृजन में महत्त्वपूर्ण योगदान दर्शाता है।
  • खिलौने एवं खेल के सामान का विनिर्माण: भारत प्रतिवर्ष 400 मिलियन खिलौनों का उत्पादन करता है और कश्मीर विलो क्रिकेट बल्ले जैसी लोकप्रिय वस्तुओं का निर्यात करता है।

मेक इन इंडिया पहल से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • बुनियादी ढाँचे में अंतराल: सुधारों के बावजूद,भारत का बुनियादी ढाँचे,जिसमें सड़क, रेलवे और बंदरगाह शामिल हैं, अभी भी विकसित देशों से पीछे है,परिणामस्वरूप वस्तुओं की सुचारू आवाजाही प्रभावित हो रही है।
  • नियामकीय एवं नौकरशाही संबंधी बाधाएँ: हालाँकि भारत ने ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस मामले में प्रगति की है, लेकिन विनियामक एवं नौकरशाही बाधाएँ अभी भी बनी हुई हैं। जिससे यह जटिल स्वीकृति प्रक्रियाओं एवं लालफीताशाही परियोजना निष्पादन में देरी कर सकती हैं।
    • पुराने कानूनों और लंबी कानूनी प्रक्रियाओं के कारण भूमि अधिग्रहण एक बोझिल प्रक्रिया बनी हुई है ।
  • कार्यबल में कौशल अंतराल: कार्यबल में उपलब्ध कौशल और विनिर्माण उद्योगों में आवश्यक कौशल के बीच अंतराल बना हुआ है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स एवं जैव प्रौद्योगिकी जैसे उच्च तकनीक उद्योगों को विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, लेकिन भारत में कुशल तकनीशियनों और इंजीनियरों की कमी है। उदाहरण के लिये, एक प्रमुख आईटी हब होने के बावजूद, भारत को कुशल श्रम की कमी के कारण उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स में अपनी विनिर्माण क्षमता का विस्तार करने में संघर्ष करना पड़ा है।
  • प्रमुख आदानों के लिये आयात पर निर्भरता: भारत महत्त्वपूर्ण घटकों तथा कच्चे माल के लिये आयात पर बहुत अधिक निर्भर है, जो घरेलू विनिर्माण की वृद्धि को सीमित करता है।
    • मोबाइल फोन निर्माण सहित इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग चीन तथा ताइवान जैसे देशों से सेमीकंडक्टर चिप्स और अन्य प्रमुख घटकों के आयात पर निर्भर करता है। यह निर्भरता आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को कमज़ोर कर देती है।

आगे की राह:

  • बुनियादी ढाँचा विकास को बढ़ावा देना: लागत कम करने और दक्षता में सुधार करने के लिये परिवहन, रसद एवं उपयोगिता बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक तथा निजी निवेश में वृद्धि करना। इसमें सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और विद्युत आपूर्ति को उन्नत करना शामिल है।
    • निजी क्षेत्र की विशेषज्ञता और वित्तपोषण का लाभ उठाते हुए बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में तीव्रता लाने के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना।
  • विनियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना: नौकरशाही संबंधी देरी को कम करने के लिये व्यावसायिक विनियमन के साथ-साथ अनुमोदन को सरल बनाना,और साथ ही अनुमोदन के लिये सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम लागू करना।
    • विनियामक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिये ई-गवर्नेंस और डिजिटल प्लेटफॉर्म को बढ़ावा देना ।
  • कौशल विकास पहल: उद्योगों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रम प्रारंभ करना। कौशल अंतराल की पहचान करने और प्रासंगिक प्रशिक्षण मॉड्यूल बनाने के लिये उद्योग जगत के अभिकर्त्ताओं के साथ सहयोग करना।
    • उभरती प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियों के लिये कार्यबल को तैयार करने हेतु व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ प्रशिक्षण कार्यक्रमों को मजबूत बनाना।
  • स्थानीय साधनों एवं आपूर्ति शृंखला विकास को बढ़ावा देना: ऐसी नीतियों को लागू करना जो स्थानीय आपूर्तिकर्त्ताओं और निर्माताओं के उपयोग को प्रोत्साहित करें, जिससे महत्त्वपूर्ण घटकों के लिये आयात पर निर्भरता कम हो।
    • एकीकृत आपूर्ति शृंखला पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना जो रसद, घटक उत्पादन और वितरण नेटवर्क सहित घरेलू विनिर्माण का समर्थन करता हो।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'वस्तु एवं सेवा कर (GST)' को लागू करने के सबसे संभावित लाभ क्या हैं/हैं? (2017)

  1. यह कई प्राधिकरणों द्वारा एकत्र किये गए विभिन्न करों की जगह लेगा और इस प्रकार भारत में एकल बाज़ार स्थापित करेगा।
  2.  यह भारत के 'चालू खाता घाटा' को काफी कम कर देगा और इसे अपने विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में सक्षम बनाएगा।
  3.  यह भारत की अर्थव्यवस्था के विकास और आकार में अत्यधिक वृद्धि करेगा एवं निकट भविष्य में इसे चीन से आगे निकलने में सक्षम बनाएगा।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. “मेक इन इंडिया कार्यक्रम की सफलता कौशल भारत कार्यक्रम और क्रांतिकारी श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तार्किक तर्कों के साथ चर्चा कीजिये। (2019)

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