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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का सेवा क्षेत्र

  • 24 Jul 2024
  • 22 min read

यह एडिटोरियल 22/07/2024 को ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Services sector can power up the job engine” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि भारत का सेवा क्षेत्र किस तरह से इसकी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है और इसके लाभों को पूरी तरह से साकार करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24, ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स, स्किल इंडिया, मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप इंडिया, स्टैंड-अप इंडिया। 

मेन्स के लिये:

भारत के सेवा क्षेत्र का अर्थव्यवस्था में योगदान, भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले प्रमुख क्षेत्र।

भारत में इस बात को लेकर चर्चाएँ जारी हैं कि वह आर्थिक रूप से किस दिशा में आगे बढ़ रहा है और वह अपने वांछित विकास लक्ष्यों को किस प्रकार प्राप्त कर सकता है। इस बात पर भी बहस चल रही है कि क्या भारत औद्योगिक (विनिर्माण क्षेत्र) विकास के बजाय सेवा क्षेत्र के विकास को प्राथमिकता देकर आगे बढ़ेगा और विकास करेगा।

हाल के समय में सेवा क्षेत्र—जिसमें वित्त, स्वास्थ्य सेवा, सूचना प्रौद्योगिकी और पर्यटन जैसे उद्योग शामिल हैं, विकास एवं नवाचार के एक गतिशील इंजन के रूप में उभरा है। वर्तमान में विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने धीरे-धीरे अपने आर्थिक संसाधनों को कृषि से विनिर्माण की ओर और फिर सेवाओं की ओर मोड़ दिया है। चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान जैसी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में यह प्रवृत्ति अधिक प्रमुखता से प्रकट हुई है।

भारत के आर्थिक संदर्भ में भी, हालाँकि विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने में उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है, सेवा क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। भारत डिजिटल अवसंरचना में निवेश कर, कौशल विकास को बढ़ाकर और नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित कर अपने सेवा क्षेत्र की क्षमता का और अधिक दोहन कर सकता है, जिससे आर्थिक प्रगति और सामाजिक उन्नति को बढ़ावा मिलेगा।

भारत की अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र का क्या योगदान है?

  • केंद्रीय वित्त एवं कॉर्पोरेट कार्य मंत्री द्वारा हाल ही में प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में पिछले तीन दशकों में भारत की आर्थिक वृद्धि में सेवा क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया है।
  • वित्त वर्ष 24 में भारत की अर्थव्यवस्था में लगभग 55% का योगदान देने वाला यह क्षेत्र नीतिगत सुधारों, बेहतर आधारभूत संरचना और लॉजिस्टिक्स के कारण फल-फूल रहा है।
    • ऑनलाइन भुगतान, ई-कॉमर्स और मनोरंजन प्लेटफॉर्म सहित विभिन्न डिजिटल सेवाओं की ओर तेज़ी से संक्रमण के साथ एक महत्त्वपूर्ण रूपांतरण घटित हुआ है।
  • सेवा क्षेत्र ने विकास को लगातार गति प्रदान की है, जहाँ इसके सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) योगदान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वित्त वर्ष 2024 में, इस क्षेत्र में 7.6% की वृद्धि हुई, जबकि सकल GST संग्रह 241.27 बिलियन अमेरिकी डॉलर (20.18 लाख करोड़ रुपए) तक पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2023 से 11.7% की वृद्धि को प्रकट करता है।
  • सर्वेक्षण के अनुसार, कोरोना महामारी के बाद से सेवाओं के निर्यात में स्थिर गति बनी हुई है और वित्त वर्ष 24 में भारत के कुल निर्यात में इसका योगदान 44% रहा। सेवाओं के निर्यात में भारत विश्व में पाँचवें स्थान पर रहा, जबकि शीर्ष चार स्थानों पर यूरोपीय संघ (अंतरा-यूरोपीय संघ व्यापार को छोड़कर), संयुक्त राज्य अमेरिका, यूके और चीन रहे।
  • सेवा क्षेत्र का विकास आमतौर पर चिकित्सा, विधिक, मनोरंजन, लेखा (अकाउंटिंग) और अन्य व्यक्तिगत सेवाओं की बढ़ती मांग के माध्यम से होता है। इन मांगों में वृद्धि निवासियों की बढ़ती व्यक्तिगत आय के साथ-साथ फर्मों द्वारा व्यवसाय प्रक्रियाओं की आउटसोर्सिंग में वृद्धि का परिणाम होती है।

भारत के प्रमुख सेवा क्षेत्रों की संभावना:

  • पर्यटन क्षेत्र:
    • पर्यटन क्षेत्र—जिसने वर्ष 2020-21 में भारत के रोज़गार में लगभग 13% का योगदान दिया, रोज़गार सृजन के एक प्रमुख संभावित स्रोत के रूप में सामने आया है। यह क्षेत्र आतिथ्य, यात्रा और सांस्कृतिक, विरासत एवं धार्मिक पर्यटन को दायरे में लेते हुए टूर गाइड, ट्रैवल एजेंट और स्थानीय कारीगरों के लिये विविध भूमिकाएँ प्रदान करता है, जहाँ निम्न एवं मध्यम-कुशल कामगारों के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर उत्पन्न होता है।
      • इन भूमिकाओं में सफलता मज़बूत अंतर-वैयक्तिक, प्रबंधन संबंधी और अनुभवात्मक क्षमताओं पर निर्भर करती है, जो सेवा की गुणवत्ता और आगंतुक संतुष्टि में सुधार के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में इको-टूरिज्म से लेकर वाराणसी में सांस्कृतिक पर्यटन, केरल में बैकवाटर आधारित पर्यटन और गोवा में एडवेंचर पर्यटन तक भारत का पर्यटन क्षेत्र विकास एवं रोज़गार को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
  • विमानन क्षेत्र:
    • विमानन (Aviation) एक अन्य ऐसा क्षेत्र है जहाँ अपार संभावनाएँ मौजूद हैं, जो वृहत एयरपोर्ट परियोजनाओं और बढ़ी हुई क्षमता से प्रेरित है। लैंगिक विविधता के मामले में भी भारत का विमानन उद्योग वैश्विक औसत से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। भारतीय पायलटों में 15% महिलाएँ हैं (वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना अधिक)।
    • इस उद्योग के विस्तार के साथ बढ़ते बेड़े को समर्थन देने के लिये अधिक संख्या में चालक दल सदस्यों, ग्राउंड स्टाफ और फ्लाइट अटेंडेंट की आवश्यकता होगी, जिससे इस क्षेत्र के भविष्य के लिये प्रशिक्षण एवं भर्ती में निरंतर निवेश करना महत्त्वपूर्ण है।
  • ई-कॉमर्स:
    • अर्थव्यवस्था के 10% से अधिक और कार्यबल के लगभग 8% का प्रतिनिधित्व करने वाले खुदरा क्षेत्र में डिजिटल क्रांति घटित हो रही है, जहाँ ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स जैसे प्लेटफॉर्म छोटे खुदरा विक्रेताओं के उपभोक्ताओं के साथ जुड़ने के तरीके को बदल रहे हैं।
    • ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों से जुड़कर छोटे खुदरा विक्रेता अपनी बाज़ार पहुँच का विस्तार कर सकते हैं, दक्षता बढ़ा सकते हैं और लॉजिस्टिक्स, ग्राहक सेवा एवं प्रौद्योगिकी में रोज़गार के नए अवसर पैदा कर सकते हैं।
  • वित्तीय और तकनीकी सेवाएँ:
    • वित्तीय, व्यावसायिक और तकनीकी सेवा क्षेत्र उच्च-कौशल रोज़गार का प्रदर्शन कर रहे हैं, जहाँ नवाचार और स्टार्ट-अप के लिये वृहत अवसर मौजूद हैं। पिछले दशक में डिजिटलीकरण, तकनीकी प्रगति और समर्थनकारी सरकारी पहलों के कारण व्यावसायिक सेवाओं में रोज़गार लगभग दोगुना हो गया है।
    • हालाँकि AI भारत की सेवा निर्यात वृद्धि को धीमा कर सकता है, जो एक चुनौती है, लेकिन यह साइबर सुरक्षा, डेटा निजता और उन्नत विश्लेषण (advanced analytics) में नए कौशल की मांग भी पैदा करेगा।

सेवा क्षेत्र के विकास के संबंध में चिंता के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?

  • कुशल कार्यबल की कमी: सेवा क्षेत्र में तेज़ी से हो रहे डिजिटलीकरण के कारण तकनीकी प्रगति के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये कुशल कार्यबल की आवश्यकता है। हालाँकि, प्रासंगिक डिजिटल और उच्च-तकनीक कौशल रखने वाले कामगारों की उपलब्धता में कमी की स्थिति पाई जाती है।
    • भारत में वर्तमान में लगभग 2.2 मिलियन STEM स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी उत्पन्न करता हैं। दुर्भाग्य से, उनमें से अधिकांश में (उन्हें प्राप्त प्रशिक्षण के बावजूद) रोज़गार योग्यता की कमी है।
    • भारत सरकार कार्यबल को आवश्यक कौशल से लैस करने के लिये ‘स्किल इंडिया’ और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से कौशल विकास पहलों पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
  • खंडित सेवा क्षेत्र: भारत में वर्तमान सेवा क्षेत्र अत्यंत खंडित है। इसकी उत्पादन वृद्धि मुख्य रूप से उच्च-तकनीक सेवाओं में है, जबकि इसका रोज़गार सृजन मुख्यतः निम्न मूल्य वर्धित एवं निम्न कौशल सेवाओं में है।
    • बैक-ऑफिस आधारित सेवा क्षेत्र आने वाले समय में बड़ी संख्या में रोज़गार पैदा करने में सक्षम हो सकता है। हालाँकि, इसे एक व्यवहार्य विकल्प बनने में अभी भी 10-15 वर्ष लगेंगे।
  • वित्तीय संसाधनों तक पहुँच: वित्त तक पहुँच, विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में कार्यरत लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये, जटिल सिद्ध हो सकती है।
    • क्रेडिट तक पहुँच को सुगम बनाने के लिये  मुद्रा योजना, स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इंडिया जैसी कई पहलें क्रियान्वित की गई हैं।
    • ऋण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, ऋण गारंटी योजनाओं की पहुँच का विस्तार करना, वैकल्पिक ऋण मूल्यांकन पद्धतियों को अपनाना और आपूर्ति शृंखला वित्तपोषण में नवीनता लाना ऐसे कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • जटिल विनियामक ढाँचा: सेवा क्षेत्र में विनियामक परिदृश्य, यद्यपि सकारात्मक परिवर्तनों से गुज़र रहा है, फिर भी अत्यंत जटिल है।
    • GST सरलीकरण, स्टार्ट-अप इंडिया और रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम जैसी पहलों ने अधिक अनुकूल कारोबारी माहौल की दिशा में प्रगति की है, लेकिन आगे और प्रयास किये जाने आवश्यक हैं।
    • एकल खिड़की प्रणाली के माध्यम से प्रक्रियाओं को सरल बनाना, कानूनी प्रावधानों को सुव्यवस्थित करना और सभी प्रशासनिक स्तरों पर सरकारी प्रक्रियाओं का डिजिटलीकरण करना आर्थिक दक्षता को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने की राह की प्रमुख बाधाएँ बनी हुई हैं।
  • डेटा सुरक्षा: सेवाओं के बढ़ते डिजिटलीकरण के साथ डेटा निजता और साइबर सुरक्षा गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं । इसे देखते हुए, सरकार डेटा सुरक्षा कानूनों और साइबर सुरक्षा नीतियों को बढ़ावा दे रही है ताकि उपभोक्ता डेटा की सुरक्षा हो सके और सेवा क्षेत्र में साइबर सुरक्षा उपायों को मज़बूत किया जा सके।
    • मज़बूत सुरक्षा उपायों को अपनाना, निजता संबंधी विनियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना और सुरक्षा प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देना वे प्रमुख चुनौतियाँ हैं जिनका समाधान किया जाना चाहिये ताकि प्रौद्योगिकीय प्रगति को आत्मविश्वास के साथ अपनाया जा सके।
  • बाह्य आर्थिक अनिश्चितताएँ: अल्पावधि में, अनिश्चित वैश्विक आर्थिक परिदृश्य और वस्तु मूल्य अनिश्चितताएँ इनपुट लागत और सेवाओं की मांग के लिये गंभीर चुनौती पेश कर रही हैं।
    • इस प्रकार, सकारात्मक मांग प्रवृत्तियों को बनाए रखना तथा बढ़ती लागतों एवं प्रतिस्पर्द्धी दबावों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करना आने वाले वर्ष में सेवा क्षेत्र की निरंतर वृद्धि और प्रत्यास्थता के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

आगे की राह:

  • मूल्य संवर्द्धन, उच्च उत्पादकता और युवाओं के लिये कौशल उन्नयन: कौशल उन्नयन पर अधिक ध्यान देने के साथ-साथ संसाधनों के बेहतर आवंटन की आवश्यकता है।
    • एक सुशिक्षित और स्वस्थ जनसंख्या व्यक्तिगत और राष्ट्रीय उत्पादकता की नींव है।
      • इससे उत्पादकता बढ़ेगी और मूल्य संवर्द्धन की दिशा में अधिक सार्थक योगदान संभव होगा। वृहत मूल्य संवर्द्धन से अधिक प्रभावी उत्पाद या सेवाओं का सृजन होता है, जिससे विभिन्न उद्योगों में मूल्य संवर्द्धन होता है।
  • क्षेत्रवार अवसंरचना का उन्नयन: किसी विशिष्ट क्षेत्र के लिये आवश्यक कौशल को प्रभावी रोज़गार अवसरों और उद्योग विकास में परिवर्तित करने के लिये क्षेत्रवार अवसंरचना का उन्नयन आवश्यक है।
    • उदाहरण के लिये, पर्यटन क्षेत्र के लिये ‘हुनर से रोज़गार तक’ जैसी कौशल पहल और ‘अतुल्य भारत पर्यटन सुविधाप्रदाता प्रमाणपत्र कार्यक्रम’ सही दिशा में उठाए गए कदम हैं।
    • पर्यटन परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण की वृद्धि और ‘स्वदेश पर्यटन’ एवं ‘प्रसाद’ (PRASHAD) योजनाओं की शुरूआत के साथ अवसंरचना विकास में भी तेज़ी आ रही है। 
  • ई-कॉम सेक्टर को बढ़ावा देने के लिये मार्गदर्शन: ऑनलाइन खुदरा विक्रेता ऑनलाइन बिक्री, कैटलॉगिंग और डेटा निजता से जुड़ी तकनीकी समस्याओं का सामना करते हैं, जिससे वे डिजिटल अर्थव्यवस्था का पूरा लाभ नहीं उठा पाते हैं। इसे संबोधित करने के लिये ‘व्यापार ज्ञान केंद्र’ (कृषि विज्ञान केंद्र की तरह) जैसी सहायक प्रणालियाँ मार्गदर्शन प्रदान कर सकती हैं, ऑन-बोर्डिंग को सरल बना सकती है, तथा निरंतर सहायता प्रदान कर सकती हैं।
    • ये केंद्र खुदरा विक्रेताओं को डिजिटल की ओर संक्रमण में मदद करेंगे और सुनिश्चित करेंगे कि उन्हें ई-कॉमर्स से लाभ मिले तथा वे अधिक समावेशी आर्थिक परिदृश्य में योगदान कर सकें।
  • लॉजिस्टिक्स संबंधी चिंताओं को संबोधित करना: लॉजिस्टिक्स क्षेत्र मध्यम-कुशल कामगारों के लिये पर्याप्त रोज़गार प्रदान करता है। परिवहन में नवोन्मेषी रणनीतियों को अपनाना, जैसे अंतर्देशीय जलमार्गों का उपयोग करना और मार्ग अनुकूलन, गतिशील माल बुकिंग, स्वचालित कार्गो प्रबंधन एवं सुव्यवस्थित यात्री शेड्यूलिंग के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करना, लॉजिस्टिक्स अवसंरचना को बदल सकता है।
  • सेवाओं के लिये उत्पादकता-आधारित आय योजना: औद्योगिक नीति के दृष्टिकोण से, विशेष रूप से सेवा उद्योगों के लिये, उत्पादकता-आधारित आय योजना को संस्थागत बनाने की आवश्यकता है।
    • इसके तहत, किसी भी सेवा उद्योग में ऐसी कंपनियों को, जो श्रम उत्पादकता में विशिष्ट वृद्धि प्रदर्शित करती हैं (वह भी कामगारों के पलायन के माध्यम से नहीं, बल्कि सचेत कौशल एवं प्रशिक्षण पहलों के माध्यम से या अग्रणी अनुसंधान एवं विकास और नवाचार की सहायता से), बिक्री/राजस्व पर कर लाभ प्रदान किया जाना चाहिये।
    • इससे सेवा उद्योगों को बड़े पैमाने पर कौशल विकास हेतु अधिक नवोन्मेषी विकल्प की तलाश करने का प्रोत्साहन मिलेगा; इस प्रकार, मौजूदा कार्यबल और संभावित कार्यबल को उत्पादकता बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • नवीनतम प्रौद्योगिकियों के साथ तालमेल बनाए रखना: सेवा क्षेत्र में उभरती रोज़गार मांग के लिये वृहत और अधिक केंद्रित कौशल की आवश्यकता है। विश्व आर्थिक मंच (WEF) की एक रिपोर्ट से उजागर हुआ है कि संज्ञानात्मक क्षमताओं (जैसे जटिल समस्या-समाधान और रचनात्मक सोच), डिजिटल साक्षरता और AI एवं बिग डेटा में दक्षता पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
    • यह बदलाव व्यवसायों और कार्यबल के लिये प्रौद्योगिकीय प्रगति के अनुकूल होने तथा वैश्विक बाज़ार की मांगों को पूरा कर सकने की रणनीतिक अनिवार्यता को रेखांकित करता है।
    • फोकस क्षेत्रों में ब्लॉकचेन, AI, मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), साइबर सुरक्षा, क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा एनालिटिक्स, ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी, 3D प्रिंटिंग और वेब एवं मोबाइल विकास शामिल होना चाहिये।

निष्कर्ष

यदि सही तरीके से उपयोग किया जाए तो सेवा क्षेत्र व्यापक रोज़गार सृजन कर सकता है, जहाँ नवाचार एवं अवसर का मेल होगा और आर्थिक विकास में हर तरह के कौशल को मौका मिलेगा। इसे साकार करने के लिये उद्योग, शैक्षणिक एवं कौशल संस्थानों और विभिन्न स्तरों पर सरकारों के बीच निर्बाध एवं निरंतर अंतःक्रिया और समन्वय की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: भारत की विकास यात्रा में सेवा क्षेत्र की संभावना पर विचार कीजिये। संबद्ध चिंता के प्रमुख क्षेत्रों की चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न: विभिन्न सेवा क्षेत्रकों के बीच सहयोग की आवश्यकता विकास प्रवचन का एक अंतर्निहित घटक रहा है। साझेदारी क्षेत्रकों के बीच पुल बनाती है। यह 'सहयोग' और 'टीम भावना' की संस्कृति को भी गति प्रदान कर देती है। उपरोक्त कथनों के प्रकाश में भारत के विकास प्रक्रम का परीक्षण कीजिये। (2019)

प्रश्न. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अन्तरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुक़ाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)

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