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भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24

  • 24 Jul 2024
  • 25 min read

प्रिलिम्स के लिये:

आर्थिक सर्वेक्षण, मुख्य आर्थिक सलाहकार, चालू खाता घाटा, खुदरा मुद्रास्फीति, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ, वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट: RBI, सकल गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ (GNPA) अनुपात, दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, खाद्य मुद्रास्फीति, बाह्य ऋण से GDP अनुपात, विश्व बैंक लॉजिस्टिक्स सूचकांक, PM-AWAS-ग्रामीण, ग्राम सड़क योजना, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, महिला श्रम-बल भागीदारी, किसान क्रेडिट कार्ड, DigiLocker, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

मेन्स के लिये:

मुद्रास्फीति, NPA, GDP वृद्धि, बाह्य ऋण, बेरोज़गारी दर, भारत के विकास को आगे बढ़ाने वाले क्षेत्र, प्रमुख सरकारी पहल से संबंधित मुख्य डेटा। 

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने संसद में सत्र 2023-24 के लिये आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। यह भारत के आर्थिक प्रदर्शन और भविष्य की संभावनाओं का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।

आर्थिक सर्वेक्षण क्या है?

  • परिचय: आर्थिक सर्वेक्षण अर्थव्यवस्था की स्थिति की समीक्षा करने के लिये केंद्रीय बजट से पहले सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला एक वार्षिक दस्तावेज़ है।
    • इसे मुख्य आर्थिक सलाहकार (वर्तमान में वी. अनंत नागेश्वरन) की देखरेख में वित्त मंत्रालय में आर्थिक कार्य विभाग के आर्थिक प्रभाग द्वारा तैयार किया जाता है।
    • इसे केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाता है।
  • उद्देश्य:
    • विगत 12 महीनों में भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए विकास की समीक्षा करना।
    • प्रमुख विकास कार्यक्रमों पर प्रदर्शन का सारांश प्रस्तुत करना।
    • सरकार की नीतिगत पहलों पर प्रकाश डालना।
    • आर्थिक रुझानों का विश्लेषण करना और आगामी वर्ष के लिये एक अवेक्षण/आउटलुक प्रदान करना।
    • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • पहली बार सत्र 1950-51 में प्रस्तुत किया गया।
    • प्रारंभ में, यह बजट दस्तावेज़ों का एक हिस्सा था।
    • वर्ष 1964 में इसे एक अलग खंड बना दिया गया।

सत्र 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण से मुख्य निष्कर्ष क्या हैं? 

  • अर्थव्यवस्था की स्थिति:
    • वास्तविक GDP वृद्धि: वित्त वर्ष 2024 में भारत की वास्तविक GDP में 8.2% वृद्धि हुई, जो वित्त वर्ष 24 की चार तिमाहियों में से तीन में 8% के आँकड़े को पार कर गई।
    • खुदरा मुद्रास्फीति: खुदरा मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2023 में 6.7% से घटकर वित्त वर्ष 2024 में 5.4% हो गई।
    • चालू खाता घाटा (CAD): CAD वित्त वर्ष 2023 में 2.0% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में GDP का 0.7% हो गया।
    • कर राजस्व: प्रत्यक्ष करों ने कुल कर राजस्व का 55% योगदान दिया, जबकि अप्रत्यक्ष करों ने शेष 45% का योगदान दिया।
    • पूंजीगत व्यय: सरकार ने पूंजीगत व्यय में उत्तरोत्तर वृद्धि की और 81.4 करोड़ लोगों को निशुल्क खाद्यान्न उपलब्ध कराया।
  • मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता - स्थिरता ही मुख्य शब्द 
    • मौद्रिक नीति: RBI ने पूरे वित्त वर्ष 2024 में 6.5% पर स्थिर नीति रेपो दर बनाए रखी।
      • परिणामस्वरूप, अप्रैल 2022 से जून 2024 तक कोर मुद्रास्फीति में लगभग 4% की गिरावट आई।
    • ऋण वृद्धि: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (SCB) द्वारा ऋण वितरण 164.3 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जो मार्च 2024 तक 20.2% बढ़ गया।
    • बैंकिंग क्षेत्र: सकल और निवल गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ कई वर्षों के निचले स्तर पर हैं तथा बैंक परिसंपत्ति की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।
      • RBI की जून 2024 की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट के डेटा से पता चलता है कि SCB की परिसंपत्ति गुणवत्ता में सुधार हुआ है, सकल गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ (GNPA) अनुपात मार्च 2024 में घटकर 2.8% हो गया है, जो 12 वर्षों का निचला स्तर है।
      • दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता को दोहरे बैलेंस शीट/तुलन-पत्र की समस्या के लिये एक प्रभावी समाधान के रूप में मान्यता दी गई है, पिछले 8 वर्षों में, मार्च 2024 तक 13.9 लाख करोड़ रुपए के मूल्य वाले 31,394 कॉर्पोरेट देनदारों का निपटान किया गया है।
        • ट्विन बैलेंस शीट समस्या भारी कर्ज में डूबे निगमों और बैंकों को संदर्भित करती है जो अशोध्य ऋणों के बोझ तले दबे हुए हैं, जिससे आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करने वाला एक दुष्चक्र बन गया है।
    • पूंजी बाज़ार: प्राथमिक पूंजी बाज़ारों ने वित्त वर्ष 2023 में निजी और सार्वजनिक कॉरपोरेट्स के सकल स्थायी पूंजी निर्माण का लगभग 29%, 10.9 लाख करोड़ रुपए का पूंजी निर्माण किया।
    • बीमा और माइक्रोफाइनेंस: भारत सबसे तेज़ी से बढ़ते बीमा बाज़ारों में से एक बनने की ओर अग्रसर है और वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा माइक्रोफाइनेंस क्षेत्र है।
  • कीमतें और मुद्रास्फीति - नियंत्रण में:
    • मुद्रास्फीति के रुझान:
      • वित्त वर्ष 2024 में 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मुद्रास्फीति 6% से कम दर्ज की गई।
      • वित्त वर्ष 2024 में कोर सेवाओं की मुद्रास्फीति नौ वर्षों के निचले स्तर पर आ गई।
      • वित्त वर्ष 2023 में खाद्य मुद्रास्फीति 6.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 7.5% हो गई। 
      • एलपीजी, पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में कटौती से खुदरा ईंधन मुद्रास्फीति को अपेक्षाकृत कम रखने में मदद मिली।
    • भविष्य के अनुमान: RBI ने वित्त वर्ष 2025 में मुद्रास्फीति के 4.5% और वित्त वर्ष 2026 में 4.1% तक गिरने का अनुमान लगाया है।
  • बाह्य/विदेशी क्षेत्र - प्रचुरता के बीच स्थिरता:
    • निर्यात: वित्त वर्ष 2024 में भारत का सेवा निर्यात 4.9% बढ़कर 341.1 बिलियन अमेरीकी डॉलर हो गया, जिसमें IT/सॉफ्टवेयर और अन्य व्यावसायिक सेवाओं का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
    • प्रेषण: भारत वर्ष 2023 में कुल 120 बिलियन अमेरीकी डॉलर के प्रेषण के साथ शीर्ष वैश्विक प्राप्तकर्त्ता बना हुआ है।
    • बाह्य ऋण: मार्च 2024 तक भारत का बाह्य ऋण और GDP अनुपात 18.7% था।
    • लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन: विश्व बैंक लॉजिस्टिक्स सूचकांक में भारत की रैंक वर्ष 2014 में 44वें स्थान से बढ़कर वर्ष 2023 में 38वें स्थान पर पहुँच गई।
    • पर्यटन: विश्व पर्यटन प्राप्तियों में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2021 के 1.38% से बढ़कर वर्ष 2022 में 1.58% हो गई है।
  • मध्यम अवधि का दृष्टिकोण - नए भारत के लिये विकास रणनीति:
    • विकास रणनीति: 7%+ की विकास दर को बनाए रखने के लिये केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और निजी क्षेत्र के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते की आवश्यकता है।
    • मुख्य फोकस क्षेत्र: कौशल एवं रोज़गार सृजन, कृषि, MSME में चुनौतियाँ, हरित ऊर्जा संक्रमण तथा शिक्षा-रोज़गार अंतर को समाप्त करना आदि मध्यम अवधि के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संक्रमण - समझौताकारी समन्वयन से निपटना:
    • नवीकरणीय ऊर्जा: मई 2024 तक, गैर-जीवाश्म स्रोतों की स्थापित विद्युत ऊर्जा उत्पादन क्षमता में 45.4% हिस्सेदारी रही।
    • ऊर्जा आवश्यकताएँ: भारत की ऊर्जा आवश्यकताएँ वर्ष 2047 तक 2 से 2.5 गुना बढ़ने का अनुमान है।
    • स्वच्छ ऊर्जा में निवेश: स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में वर्ष 2014 से 2023 के दौरान 8.5 लाख करोड़ रुपए का निवेश आकर्षित हुआ।
  • सामाजिक क्षेत्र - लाभ जो सशक्त बनाते हैं:
    • कल्याण व्यय: वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2024 के दौरान यह 12.8% की CAGR से बढ़ा।
    • स्वास्थ्य सेवा: 34.7 करोड़ से अधिक आयुष्मान भारत कार्ड जारी किये गए हैं।
    • आवास: पिछले 9 वर्षों में PM-AWAS-ग्रामीण के तहत 2.63 करोड़ आवास बनाए गए।
    • ग्रामीण बुनियादी ढाँचा: सत्र 2014-15 से ग्राम सड़क योजना के तहत 15.14 लाख किलोमीटर सड़कें बनाई गईं।
  • रोज़गार और कौशल विकास - गुणवत्ता की ओर:
  • कृषि और खाद्य प्रबंधन
    • कृषि विकास: इस क्षेत्र ने पिछले पाँच वर्षों में स्थिर कीमतों पर 4.18% की औसत वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की।
    • ऋण और सूक्ष्म सिंचाई: कृषि के लिये वितरित ऋण राशि 22.84 लाख करोड़ रुपए थी। 
      • वित्त वर्ष 2015-16 से 90 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सूक्ष्म सिंचाई के अंतर्गत शामिल किया गया।
    • किसान क्रेडिट कार्ड: 9.4 लाख करोड़ रुपए की सीमा के साथ 7.5 करोड़ कार्ड जारी किये  गए।
  • उद्योग – मध्यम एवं लघु दोनों अपरिहार्य:
    • औद्योगिक विकास: वित्त वर्ष 2024 में 8.2 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि को 9.5 प्रतिशत की औद्योगिक विकास दर से समर्थन मिला।
    • फार्मास्युटिकल और वस्त्र क्षेत्र: भारत का फार्मास्युटिकल बाज़ार (जिसका वर्तमान मूल्य 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर है) अपनी मात्रा के अनुसार विश्व का तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार है।
      • यह वैश्विक स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र निर्माता है, जिसका वस्त्र और परिधान निर्यात वित्त वर्ष 24 में 2.97 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण: भारत का इलेक्ट्रॉनिकी विनिर्माण क्षेत्र, वैश्विक बाज़ार हिस्सेदारी का अनुमानित 3.7 प्रतिशत है।
      • वित्त वर्ष 23 में घरेलू उत्पादन बढ़कर 8.22 लाख करोड़ रुपए हो गया, जबकि निर्यात बढ़कर 1.9 लाख करोड़ रुपए हो गया।
  • सेवाएँ- विकास के अवसरों को बढ़ावा देना:
    • क्षेत्र का योगदान: वित्त वर्ष 24 में सेवा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में 55 प्रतिशत हिस्सेदारी थी और इस वर्ष के दौरान इसमें 7.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।  
    • डिजिटल सेवाएँ: डिजिटल माध्यम से दी जाने वाली सेवाओं के निर्यात में वैश्विक स्तर पर भारत की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2023 में बढ़कर 6 प्रतिशत हो गई।
      • वैश्विक स्तर पर भारत का सेवा निर्यात वित्त वर्ष 2022 में विश्व के वाणिज्यिक सेवा निर्यात का 4.4 प्रतिशत था और वित्त वर्ष 24 में भारत के कुल निर्यात का 44 प्रतिशत था।  
    • विमानन: वित्त वर्ष 2024 में कुल हवाई यात्रियों की संख्या में 15 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि हुई।
    • ई-वाणिज्य: भारत के ई-वाणिज्य उद्योग का वित्त वर्ष 2030 तक 350 अरब अमेरिकी डॉलर पार कर जाने की उम्मीद है।
    • स्टार्ट-अप: भारत में टेक्नोलॉजी संबंधी स्टार्ट-अप वर्ष 2014 में लगभग 2,000 थे, जो बढ़कर 2023 में लगभग 31,000 हो गए हैं।
  • अवसंरचना – संभावित वृद्धि को बढ़ाना:
    • राष्ट्रीय राजमार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण की औसत रफ्तार वित्त वर्ष 14 में 11.7 किलोमीटर प्रतिदिन करीब 3 गुना बढ़कर वित्त वर्ष 2024 तक प्रतिदिन करीब 34 किलोमीटर हो गई।
    • रेलवे: पिछले पाँच वर्षों में रेलवे पर पूंजीगत व्यय में 77 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
    • विमानन: वित्त वर्ष 2024 में 21 हवाई अड्डों पर नई टर्मिनल इमारतें चालू की गई हैं।
    • लॉजिस्टिक्स: अंतर्राष्ट्रीय शिपमेंट कैटेगरी में भारत, वर्ष 2014 के 44वें स्थान से वित्त वर्ष 2023 में 22वें स्थान पर हो गया है।
    • अंतरिक्ष: भारत में 55 सक्रिय अंतरिक्ष परिसंपत्तियाँ हैं, जिनमें 18 संचार, 9 नेविगेशन, 5 वैज्ञानिक, 3 मौसम विज्ञान और 20 पृथ्वी अवलोकन उपग्रह शामिल हैं। 
    • डिजिटल अवसंरचना: डिजिलॉकर प्लेटफॉर्म पर 26.28 करोड़ से ज़्यादा पंजीकृत उपयोगकर्त्ता हैं और 674 करोड़ से ज़्यादा जारी किये गए दस्तावेज़ हैं। 
    • दूरसंचार: भारत में कुल टेलीडेंसिटी (प्रति 100 जनसंख्या पर टेलीफोन की संख्या) मार्च 2014 के 75.2% से बढ़कर मार्च 2024 में 85.7% हो गई।
      • मार्च 2024 में इंटरनेट घनत्व भी बढ़कर 68.2 प्रतिशत हो गया।
  • जलवायु परिवर्तन और भारत:
    • जलवायु परिवर्तन के लिये वर्तमान वैश्विक रणनीतियाँ त्रुटिपूर्ण हैं और सार्वभौमिक रूप से लागू करने योग्य नहीं है।
      • पश्चिम का जो दृष्टिकोण समस्या की जड़ यानि अत्यधिक खपत का समाधान नहीं निकालना चाहता, बल्कि अत्यधिक खपत को हासिल करने के दूसरे विकल्प चुनना चाहता है।
      • ‘एक उपाय सभी के लिये सही’, कार्य नहीं करेगा और विकासशील देशों को अपने रास्ते चुनने की छूट दिये जाने की ज़रूरत है।
    • भारतीय लोकाचार प्रकृति के साथ सौहार्दपूर्ण संबंधों पर ज़ोर देते हैं, इसके विपरीत विकसित देशों में अत्याधिक खपत की संस्कृति को अहमियत दी जाती है।
      • ‘कई पीढ़ियों वाले पारंपरिक परिवारों’ पर ज़ोर से सतत् आवास की ओर मार्ग प्रशस्त होगा।
      • “मिशन लाइफ” मानव-प्रकृति सामंजस्य पर ध्यान केंद्रित करता है, जो वैश्विक जलवायु परिवर्तन समस्या की जड़ में मौजूद अति उपभोग के बजाय सचेत उपभोग को बढ़ावा देता है।
      • मिशन लाइफअत्याधिक खपत की तुलना में सावधानी के साथ खपत को बढ़ावा देने के मानवीय स्वभाव पर बल देता है। अत्याधिक खपत वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की समस्या की जड़ है।

आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में उल्लिखित प्रमुख चुनौतियाँ और अनुशंसित समाधान क्या हैं?

  • पहचानी गई प्रमुख चुनौतियाँ:
    • वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियाँ और FDI: विकसित देशों में उच्च ब्याज दरों के कारण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की संभावनाएँ बहुत आशाजनक नहीं हैं, जिससे भारत जैसे विकासशील देशों में वित्तपोषण की लागत और निवेश की अवसर लागत बढ़ जाती है।
      • इसके अलावा विकसित देशों में औद्योगिक नीतियाँ जो घरेलू निवेश के लिये पर्याप्त सब्सिडी प्रदान करती हैं, प्रतिस्पर्द्धी परिदृश्य को और भी जटिल बनाती हैं।
      • भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ भी चुनौतियाँ उत्पन्न करती हैं।
    • चीन पर निर्भरता: भारत विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में आयात हेतु चीन पर बहुत अधिक निर्भर है।
      • इसके अलावा चीन निम्न-कौशल विनिर्माण क्षेत्र पर अपना प्रभुत्व बनाए हुए है, जिसे भारत हासिल करना चाहता है।
    • AI खतरा: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उदय संभावित रूप से दूरसंचार और इंटरनेट-संचालित बिज़नेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) क्षेत्र को बाधित कर सकता है, जिसमें उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
    • निजी निवेश में कमी: पूंजी निर्माण को बढ़ावा देने के लिये सितंबर 2019 में लागू किये गए कर कटौती के बावजूद कॉर्पोरेट क्षेत्र की प्रतिक्रिया निराशाजनक रही है।
      • कर-पूर्व कॉर्पोरेट लाभ में वृद्धि हुई है, लेकिन नियुक्ति और पारिश्रमिक में वृद्धि नहीं हुई है।
    • रोज़गार संबंधी अनिवार्यता: रोज़गार से संबंधित उच्च गुणवत्ता वाले और समयबद्ध आँकड़ों की कमी है। यह कमी प्रभावी श्रम बाज़ार विश्लेषण और नीति निर्माण में बाधा डालती है।
      • बढ़ते कार्यबल को समायोजित करने के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्ष 2030 तक गैर-कृषि क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगभग 7.85 मिलियन नौकरियाँ  प्रदान की जाएँगी।
    • जीवनशैली संबंधी नुकसान: सोशल मीडिया, अत्यधिक स्क्रीन समय, गतिहीन जीवनशैली तथा अस्वास्थ्यकर भोजन विकल्प को ऐसे कारकों के रूप में पहचाना गया है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और उत्पादकता को कमज़ोर कर सकते हैं, जिससे भारत की आर्थिक क्षमता प्रभावित हो सकती है।
  • अनुशंसित समाधान:
    • निजी क्षेत्र द्वारा रोज़गार सृजन: सर्वेक्षण के अनुसार रोज़गार सृजन में अधिक सक्रिय भूमिका निभाना कॉर्पोरेट क्षेत्र के सर्वोत्तम हित में है, क्योंकि अब उसे अतिरिक्त आय का अनुभव हो रहा है।
    • निजी क्षेत्र द्वारा जीवनशैली में परिवर्तन: भारतीय व्यवसायों को पारंपरिक जीवनशैली प्रथाओं और स्वस्थ भोजन व्यंजनों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है, जो न केवल वैश्विक रुझानों के अनुरूप हैं, बल्कि इससे नए वाणिज्यिक अवसर भी मिलते हैं।
    • कृषि क्षेत्र को पुनर्जीवित करना: विनिर्माण और सेवाओं में चुनौतियों को देखते हुए, सर्वेक्षण में कृषि पद्धतियों और नीतियों में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने का सुझाव दिया गया है।
      • इसमें मूल्य संवर्द्धन बढ़ाना, किसानों की आय बढ़ाना तथा खाद्य प्रसंस्करण एवं निर्यात में अवसर प्रदान करना शामिल है।
    • विनियामक बाधाओं को दूर करना: यह विधेयक व्यवसायों, विशेष रूप से मध्यम, लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों (MSME) पर विनियामक बोझ को कम करने का समर्थन करता है।
      • लाइसेंसिंग, निरीक्षण और अनुपालन आवश्यकताओं को सुव्यवस्थित करना महत्त्वपूर्ण है।
    • प्रशासनिक सुदृढ़ीकरण: बड़े पैमाने पर सुधारों के बजाय, सर्वेक्षण में प्रभावी कार्यान्वयन और प्रबंधन के माध्यम से भारत की प्रगति को समर्थन देने तथा गति प्रदान करने के लिये राज्य क्षमता को मज़बूत करने का आह्वान किया गया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निरपेक्ष और प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ते हैं। 

उत्तर: (c)


प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत में कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखा अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर है, क्योंकि:(2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत-स्तर अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणता अलग-अलग राज्य में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न.1 "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक ​​सक्षम हैं? (2017)

प्रश्न. 2 क्या आप सहमत हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने हाल ही में V-आकार के पुनरुत्थान का अनुभव किया है? कारण सहित अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। (2021)

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