अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका की नीतियों में परिवर्तन का भारत पर प्रभाव
- 24 Jan 2025
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प्रिलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, विश्व स्वास्थ्य संगठन, वैश्विक न्यूनतम कर, H-1B वीज़ा, ग्रीनहाउस गैसें, जीवाश्म ईंधन, वैश्विक दक्षिण, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन, टैक्स हेवेन, क्वाड गठबंधन, BRICS मेन्स के लिये:अमेरिकी नीति में परिवर्तन और भारत पर इसका प्रभाव, जन्मसिद्ध नागरिकता, नीतिगत परिवर्तन के पश्चात् वैश्विक जलवायु कार्यवाही, कराधान और वैश्विक अर्थव्यवस्था |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कई कार्यपालक आदेशों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें जन्मसिद्ध नागरिकता समाप्त करना, पेरिस समझौते से हटना, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से बाहर निकलना और वैश्विक कॉर्पोरेट न्यूनतम कर (GCMT) समझौते को खारिज़ करना शामिल है।
- इन निर्णयों का भारत, जलवायु नीति और अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
जन्मसिद्ध नागरिकता के निरसन का क्या प्रभाव है?
- अमेरिका में जन्मसिद्ध नागरिकता: अमेरिका में दो प्रकार की जन्मसिद्ध नागरिकता है- वंश-आधारित और जन्मस्थान-आधारित (jus soli) (मातृभूमि का अधिकार), जिसके अंतर्गत माता-पिता की राष्ट्रीयता को दृष्टिगत न रखते हुए अमेरिका की धरती पर जन्म लेने वाले व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान की जाती है।
- कार्यपालक आदेश: आदेश के अनुसार गैर-नागरिक (अन्यदेशीय) माता-पिता से जन्म लेने वाले बच्चे अमेरिकी अधिकैर्ता के अध्यधीन नहीं हैं और इसलिये वे स्वतः नागरिकता के योग्य नहीं हैं।
- कार्यपालक आदेश का एक मुख्य उद्देश्य "बर्थ टूरिज़्म" को कम करना है, जहाँ महिलाएँ अपने बच्चों के लिये स्वतः नागरिकता प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्हें जन्म देने हेतु अमेरिका की यात्रा करती हैं।
- यह नीति विशेष रूप से भारत और मैक्सिको जैसे देशों के परिवारों को प्रभावित करेगी, जहाँ बर्थ टूरिज़्म प्रचलित है।
- प्रभाव:
- H-1B वीज़ा धारकों पर प्रभाव: भारतीय H-1B वीज़ा धारकों और ग्रीन कार्ड आवेदकों के अमेरिका में जन्मे बच्चों की नागरिकता स्वतः समाप्त हो सकती है, जिससे परिवारों के लिये अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- मिश्रित नागरिकता वाले परिवारों को स्वजन से अलगाव का सामना करना पड़ सकता है या उन्हें अमेरिका में अपने भविष्य पर पुनर्विचार करने के लिये विवश होना पड़ सकता है।
- इस नीतिगत बदलाव से कुशल श्रमिकों द्वारा दीर्घावधि का प्रवासन करने और परिवार नियोजन किये जाने को लेकर हतोत्साहित हो सकते हैं
- भारतीय नागरिक कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में प्रवास का विकल्प चुन सकते हैं, जहाँ आव्रजन नीतियाँ अधिक अनुकूल हैं।
- निर्वासन में वृद्धि: अमेरिका में लगभग 7.25 लाख अवैध भारतीय नागरिकों को निर्वासन का खतरा बढ़ गया है।
- कानूनी चुनौतियाँ: जन्मसिद्ध नागरिकता का निरसन अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन के विपरीत है, जो अमेरिकी धरती पर जन्मे सभी लोगों को नागरिकता की गारंटी प्रदान करता है। न्यायालय में चुनौती दिये जाने की संभावना है।
- अमेरिका पर आर्थिक प्रभाव: कुशल प्रवासी नवाचार, स्वास्थ्य सेवा और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- ऐसी नीतियों से अमेरिका में प्रतिभाओं की कमी हो सकती है तथा भारतीय पेशेवरों पर निर्भर व्यवसायों में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
- H-1B वीज़ा धारकों पर प्रभाव: भारतीय H-1B वीज़ा धारकों और ग्रीन कार्ड आवेदकों के अमेरिका में जन्मे बच्चों की नागरिकता स्वतः समाप्त हो सकती है, जिससे परिवारों के लिये अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
पेरिस समझौते से अमेरिका के अलग होने के क्या निहितार्थ हैं?
- पेरिस समझौता: वर्ष 2015 में पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में 196 देशों (भारत सहित) द्वारा अपनाया गया, यह जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक समझौता है।
- इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5°C तक सीमित रखना है, तथा इसे 3.6°F (2°C) से नीचे रखने का लक्ष्य है।
- राष्ट्रों को अधिकाधिक महत्त्वाकांक्षी उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य निर्धारित करने के लिये प्रोत्साहित करना।
- इसमें अमेरिका सहित विकसित देशों से यह अपेक्षा की गई है कि वे विकासशील देशों में जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों के लिये वित्त मुहैया कराने के लिये प्रतिबद्ध हों।
- अमेरिकी वापसी के कारण: ट्रंप ने कहा कि पेरिस समझौता अमेरिकी मूल्यों को प्रतिबिंबित नहीं करता है और करदाताओं के वित्त को उन देशों की ओर पुनर्निर्देशित करता है जिन्हें वित्तीय सहायता की "आवश्यकता नहीं है या वे इसके पात्र नहीं हैं।"
- निहितार्थ: ग्रीनहाउस गैसों के दूसरे सबसे बड़े उत्सर्जक के रूप में अमेरिका, उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पेरिस समझौते से अलग होने से अंतर्राष्ट्रीय जलवायु वित्त पर प्रभाव पड़ेगा, तथा भारत सहित विकासशील देशों में शमन और अनुकूलन प्रयासों के लिये धन में कटौती होगी।
- निजी जलवायु वित्तपोषण में कटौती, जो कि अमेरिका से अत्यधिक प्रभावित है, नवीकरणीय ऊर्जा और हरित परियोजनाओं के लिये संसाधनों को सीमित कर सकती है।
- इसके अतिरिक्त, जीवाश्म ईंधन पर अमेरिका के ध्यान और ऊर्जा विनियमनों को वापस लेने से चार वर्षों में 4 बिलियन टन अतिरिक्त उत्सर्जन हो सकता है, जिससे वैश्विक जलवायु के समक्ष चुनौतियाँ और भी बढ़ जाएंगी।
WHO से अमेरिका के अलग होने का क्या प्रभाव होगा?
- अमेरिका के पीछे हटने के कारण: ट्रंप ने कोविड-19 महामारी से निपटने में WHO की लापरवाही, त्वरित सुधारों को लागू करने में विफलता और राजनीतिक प्रभाव, विशेष रूप से चीन के प्रति संवेदनशीलता को अमेरिका के पीछे हटने के कारणों के रूप में उद्धृत किया।
- चीन की बड़ी जनसंख्या के बावजूद, अमेरिका द्वारा चीन की तुलना में दिये जाने वाले असंगत वित्तीय योगदान पर चिंता व्यक्त की गई।
- अमेरिका ने WHO के कुल वित्तपोषण में लगभग 20% का योगदान दिया, जो कि निर्धारित एवं स्वैच्छिक दोनों प्रकार से था।
- प्रभाव:
- WHO पर प्रभाव: अमेरिका के हटने से वित्तपोषण में कमी आएगी, जो पोलियो उन्मूलन और महामारी की तैयारी सहित वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बाधित कर सकती है।
- कार्यकारी आदेश में सभी अमेरिकी कर्मियों और ठेकेदारों को वापस बुलाने का आदेश दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप वैक्सीन अनुसंधान, रोग नियंत्रण और स्वास्थ्य नीति जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विशेषज्ञता का नुकसान हुआ, जिससे विश्व स्तर पर WHO की सलाहकार भूमिका कमज़ोर हो गई।
- अमेरिका के लिये घरेलू निहितार्थ: WHO से हटने से अमेरिकियों की वैश्विक स्वास्थ्य खुफिया जानकारी तक पहुँच सीमित हो सकती है और अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों पर अमेरिका का प्रभाव कम हो सकता है।
- भारत पर प्रभाव: विश्व स्वास्थ्य संगठन से अमेरिका के बाहर निकलने से भारत के स्वास्थ्य कार्यक्रम धीमे हो सकते है, जिसमें ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस (HIV) और तपेदिक जैसी बीमारियों पर किये जाने वाले प्रयास भी शामिल हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के वित्त पोषण और विशेषज्ञता में कमी के कारण, भारत और अन्य ग्लोबल साउथ देशों से वैश्विक स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभाने की उम्मीद की जा रही है, तथा भारत विकासशील देशों के बीच अधिक सहयोग की वकालत करने वाले एक नेता के रूप में उभर रहा है।
- WHO पर प्रभाव: अमेरिका के हटने से वित्तपोषण में कमी आएगी, जो पोलियो उन्मूलन और महामारी की तैयारी सहित वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को बाधित कर सकती है।
वैश्विक कॉर्पोरेट न्यूनतम कर समझौते को अमेरिका द्वारा अस्वीकार किये जाने का क्या प्रभाव होगा?
- GCMT समझौता: आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) के ढाँचे के तहत किये गए इस समझौते में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये ग्लोबई मॉडल नियमों के तहत वैश्विक न्यूनतम कर (GMT) दर निर्धारित की गई।
- यह सुनिश्चित करता है कि वे प्रत्येक क्षेत्राधिकार में न्यूनतम कर का भुगतान करें, लाभ स्थानांतरण को कम करें और कॉर्पोरेट कर दरों में "रेस टू द बॉटम" को समाप्त करें, जिसका उद्देश्य देशों को व्यापार को आकर्षित करने के लिये कर दरों में कटौती करने से रोकना है, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः न्यूनतम कर राजस्व प्राप्त होता है।
- अपने दो-स्तंभीय समाधान के साथ इस समझौते का उद्देश्य कर चोरी, टैक्स हेवेन पर अंकुश लगाना और वैश्विक कर प्रतिस्पर्द्धा को स्थिर करना है।
- स्तंभ 1: यह घटक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लाभांश को उन क्षेत्रों में पुनः आवंटित करने पर केंद्रित है जहाँ से वे राजस्व सृजित करती हैं।
- स्तंभ 2: इसमें 15% GMT दर निर्धारित की गई है, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कंपनियाँ करों का उचित भुगतान करें, चाहे वे कहीं भी परिचालन करती हों।
- अमेरिकी अस्वीकृति के कारण: राष्ट्रपति ट्रंप ने तर्क दिया कि 15% की GMT दर अमेरिकी संप्रभुता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता का उल्लंघन करती है, और दावा किया कि इससे अमेरिकी प्रणाली की तुलना में अधिक करों के कारण अमेरिकी व्यवसायों को नुकसान होगा।
- वर्ष 2017 के टैक्स कट्स एंड जॉब्स एक्ट के तहत, अमेरिका में 10% वैश्विक न्यूनतम कर था।
- प्रभाव:
- वैश्विक सहमति पर प्रभाव: समझौते से अमेरिका के हटने से वैश्विक कर नियमों पर आम सहमति तक पहुँचने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में बाधा आ सकती है।
- भारत पर प्रभाव: विशेषज्ञों का सुझाव है कि वैश्विक कर समझौते से अमेरिका के बाहर होने से भारत की कर नीतियों एवं कर संग्रहण प्रणालियों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- भारत ने "प्रतीक्षा करो और देखो" का दृष्टिकोण अपनाया है तथा GloBE नियमों से संबंधित विशिष्ट कानून बनाने से परहेज किया है।
- परिणामस्वरूप, देश का कर परिदृश्य फिलहाल अप्रभावित बना हुआ है।
भारत किस प्रकार उभरती अमेरिकी नीतियों के आलोक में सामंजस्य स्थापित कर सकता है?
- वकालत और कूटनीति: भारत को अपने आप्रवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिये सक्रिय रूप से कूटनीतिक उपायों को अपनाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि भारतीयों को विकसित होती अमेरिकी नीतियों के तहत संरक्षित किया जाए।
- अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने से ऐसी नीतियों की वकालत करने में मदद मिल सकती है जो भारतीय प्रवासियों के लिये अधिक समावेशी और सहायक हों जिससे अधिक निष्पक्ष वातावरण सुनिश्चित हो सके।
- अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ क्वाड गठबंधन को मज़बूत करने से क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ाने के साथ-साथ चीन के प्रभाव को संतुलित किया जा सकता है।
- जलवायु कार्यवाही में तेज़ी लाना: भारत को जलवायु नेतृत्व प्रदर्शित करने के लिये राष्ट्रीय सौर मिशन और राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 के तहत अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों में तेज़ी लानी चाहिये।
- यूरोपियन यूनियन, जापान और पेरिस समझौते के अन्य हस्ताक्षरकर्त्ताओं के साथ सहयोग करने से नवीकरणीय ऊर्जा विकास को बढ़ावा देने के लिये हरित परियोजनाओं के लिये वैकल्पिक वित्तपोषण सुरक्षित करने में मदद मिल सकती है।
- वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में भूमिका: भारत अपनी फार्मास्युटिकल एवं स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञता का लाभ (जैसा कि कोविड-19 वैक्सीन कूटनीति के दौरान प्रदर्शित किया गया है) उठा सकता है, ताकि विश्व स्वास्थ्य संगठन में अमेरिका की कम भागीदारी से उत्पन्न अंतराल को भरा जा सके।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन में प्रमुख पदों पर अधिक भारतीय पेशेवरों की नियुक्ति पर बल देकर, भारत वैश्विक स्वास्थ्य प्रशासन में अपना नेतृत्व बढ़ा सकता है तथा अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों को आकार देने में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।
- बहुपक्षीय मंचों पर कार्य करना: अमेरिकी नीतिगत बदलावों से प्रभावित देशों (जैसे यूरोपीय संघ और BRICS सदस्यों) के साथ साझेदारी करके, सामूहिक कार्यवाही हेतु गठबंधन बनाया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक शासन एवं भारत के हितों के संबंध में अमेरिकी नीतिगत बदलावों के व्यापक निहितार्थ हैं। इनके प्रभाव का समालोचनात्मक परीक्षण करते हुए सुझाव दीजिये कि भारत इस संदर्भ में रणनीतिक रूप से किस प्रकार प्रतिक्रिया दे सकता है। |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा , विगत वर्ष प्रश्नमेन्स:प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |