जैव विविधता और पर्यावरण
2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया जाएगा
- 18 Jan 2025
- 20 min read
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र, ग्लेशियर, भूमध्य रेखा, एंडीज, ग्रीनहाउस गैस, फाइटोप्लांकटन, जलीय खाद्य शृंखला, समुद्री जैव विविधता, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण, यूनेस्को, WMO, हिंदू कुश हिमालय, क्रायोस्फीयर, हिमनदीय झील विस्फोट बाढ़, संयुक्त राष्ट्र महासभा, जैव विविधता हॉटस्पॉट, तटीय क्षरण, चक्रवात, ध्रुवीय भंवर, जेट स्ट्रीम, उत्तरी समुद्री मार्ग, अग्रणी प्रजातियाँ, अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन, वैश्विक पर्यावरण सुविधा (JEF), स्थानीय और स्वदेशी ज्ञान प्रणाली (लिंक्स)। मेन्स के लिये:ग्लेशियरों के संरक्षण का महत्त्व, ग्लेशियरों से उत्पन्न खतरे। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र 2025 को ग्लेशियरों के संरक्षण का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष मानेगा, तथा वर्ष 2025 से प्रतिवर्ष 21 मार्च को विश्व ग्लेशियर दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
ग्लेशियर क्या हैं?
- परिचय: सदियों से जमी बर्फ से धीरे-धीरे विशाल बर्फ के पिंडों का निर्माण होता है, जिन्हें ग्लेशियर के रूप में जाना जाता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: अधिकांश ग्लेशियर विशाल बर्फ की चादरों के रूप में पाए जाते हैं, जो हिमयुग (लगभग 10,000 वर्ष पूर्व) के दौरान पृथ्वी में पाई जाती थीं।
- पृथ्वी के इतिहास में कई ऐसे अन्तर-हिमनदी काल रहे हैं जब ग्लेशियर पिघले, तथा हिमयुग (जिन्हें हिमयुग भी कहा जाता है) का निर्माण हुआ।
- वैश्विक वितरण: अधिकांश ग्लेशियर ध्रुवीय क्षेत्रों जैसे ग्रीनलैंड, कनाडा आर्कटिक और अंटार्कटिका में पाए जाते हैं, क्योंकि उच्च अक्षांशों पर सौर विकिरण कम होता है।
- उष्णकटिबंधीय ग्लेशियर भूमध्य रेखा के पास पर्वत शृंखलाओं में मौजूद हैं, जैसे दक्षिण अमेरिका में एंडीज पर्वतमाला बहुत ऊँचाई पर स्थित है।
- पृथ्वी का लगभग 2% जल ग्लेशियरों में संग्रहित है।
- ग्लेशियरों का पिघलना: बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन ने विशेष रूप से ध्रुवों पर तापमान बढ़ा दिया है, जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हो रही हैं।
- उत्सर्जन में बड़ी कटौती के बावजूद, 2100 तक विश्व के एक तिहाई से अधिक ग्लेशियर पिघल जायेंगे।
- महत्त्व:
- जल आपूर्ति: ग्लेशियर लाखों लोगों के लिये पीने के पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में।
- ग्रीष्म ऋतु के अंत में ग्लेशियर अमु दरिया की नदी के प्रवाह का 27% तक प्रदान करते हैं , जबकि ला पाज़ (बोलीविया की राजधानी) शुष्क अवधि के दौरान ग्लेशियरों के पिघले पानी पर निर्भर रहती है ।
- ग्रीष्म ऋतु के अंत में, ग्लेशियर अमु दरिया के नदी प्रवाह का 27% तक आपूर्ति करते हैं, जबकि शुष्क अवधि के दौरान, बोलीविया की राजधानी ला पाज़, ग्लेशियर के पिघलने पर निर्भर रहती है।
- भारत स्थित लद्दाख के कृत्रिम हिमनदों में, जिन्हें बर्फ स्तूप कहते हैं, शीत ऋतु में जल संग्रहीत होता है और वसंत ऋतु के दौरान शीत मरुस्थलीय क्षेत्रों की फसलों की सिंचाई की जलापूर्ति इससे की जाती है।
- जल आपूर्ति: ग्लेशियर लाखों लोगों के लिये पीने के पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं, विशेष रूप से शुष्क क्षेत्रों में।
- पोषक चक्रण: हिमनदों से ऐसे पोषक तत्त्व निर्मुक्त होते हैं जो फाइटोप्लांकटन की वृद्धि में सहायक होते हैं, जो जलीय खाद्य शृंखलाओं का आधार हैं तथा समुद्री जैवविविधता और मत्स्य पालन को प्रभावित करते हैं।
- जलवायु नियंत्रण: ग्लेशियर सूर्य प्रकाश को परावर्तित कर (अल्बेडो प्रभाव) पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करने में भूमिका निभाते हैं, जिससे ग्रह का शीतलन करने में में मदद मिलती है।
- ऊर्जा उत्पादन: नॉर्वे, कनाडा और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में जलविद्युत शक्ति उत्पन्न करने के लिये हिमनदों के पिघले जल का उपयोग किया जाता है।
- पर्यटन: क्रायो जैवविविधता को बढ़ावा देने तथा अनुसंधान और शिक्षा के अवसरों के साथ हिमनदों से पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटक आकर्षित होते हैं।
हिमनदों की वर्तमान स्थिति क्या है?
- वैश्विक परिदृश्य: विश्व हिमनद अनुवीक्षण सर्विस (WGMS) जो 210,000 हिमनदों का अनुवीक्षण करती है, के अनुसार वर्ष 1976 से 2023 की अवधि में हाल के वर्षों में वृहद स्तर पर विहिमनदन (ग्लेशियरों का पिघलना) दर्ज किया गया है।
- WGMS समग्र विश्व में ग्लेशियरों की स्थिति की निगरानी और उनका आकलन करता है और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण, UNESCO और WMO के तत्त्वावधान में कार्य करता है।
- क्षेत्रीय ग्लेशियर: हिंदू कुश हिमालयी क्रायोस्फीयर का तापन वैश्विक औसत दर से दोगुनी गति से हो रहा है।
- यह क्षेत्र हिमनदीय झील बहिर्स्फोट बाढ़ जैसी हिम आपदाओं के प्रति सबसे अधिक सुभेद्य है।
- क्रायोस्फीयर का आशय पृथ्वी तंत्र के हिमशीतित जल वाले भाग से है, जिसमें वे सभी क्षेत्र शामिल हैं जहाँ जल ठोस अवस्था में मौजूद है।
- ग्लेशियरों का निवर्तन: विशेषज्ञों का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक कई महत्त्वपूर्ण ग्लेशियर लुप्त हो जाएंगे तथा कई बड़े ग्लेशियर छोटे ग्लेशियरों में खंडित हो जाएंगे।
- उदाहरण के लिये, नेपाल की लांगटांग घाटी में याला ग्लेशियर और पश्चिमी कनाडा में पेयतो ग्लेशियर का निवर्तन हुआ।
- वेनेज़ुएला में हम्बोल्ट ग्लेशियर की सघनता अत्यंत कम हो गई है और अब इसे हिम क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- ग्लेशियरों के निवर्तन का अर्थ उनकी सघनता में कमी आना और उनका लोपन हो जाना है।
- उदाहरण के लिये, नेपाल की लांगटांग घाटी में याला ग्लेशियर और पश्चिमी कनाडा में पेयतो ग्लेशियर का निवर्तन हुआ।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया: दिसंबर 2022 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ग्लेशियर के ह्रास की तात्कालिकता पर प्रकाश डालने और वैश्विक जागरूकता को बढ़ावा देने के लिये एक प्रस्ताव अपनाया।
- इसके संबंध में अंतर्राष्ट्रीय ग्लेशियर वर्ष और विश्व ग्लेशियर दिवस जैसी पहल की गई हैं।
नोट: संपूर्ण विश्व में 275,000 से अधिक ग्लेशियर हैं, जो लगभग 700,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत हैं।
- हिम परतों में विश्व के लगभग 70% अलवणीय जल का भंडारण है, जो वैश्विक जल आपूर्ति हेतु ग्लेशियरों के महत्त्व को उजागर करती है।
हिंदू कुश हिमालय
- हिंदू कुश हिमालय एक पर्वत शृंखला है जो 3500 किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है और आठ देशों अर्थात् अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, नेपाल, म्याँमार और पाकिस्तान के अनुदिश है।
- इसमें विश्व के 7,000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले सभी शिखर मौजूद हैं।
- ग्लेशियर: आर्कटिक और अंटार्कटिका से इतर HKH ऐसा क्षेत्र है जहाँ हिमपात और हिम की मात्रा सर्वाधिक है, जिसके कारण इसे प्रायः तीसरा ध्रुव कहते हैं।
- एशिया का जल टॉवर: इसे 'एशिया का जल टॉवर' कहते हैं क्योंकि यह 10 प्रमुख (सीमापारिक) नदियों सहित 12 नदी घाटियों के लिये जल का महत्त्वपूर्ण स्रोत है:
- अमु दरिया, ब्रह्मपुत्र, गंगा, सिंधु, इरावदी, मेकांग, साल्विन, तारिम, यांग्त्से, और पीला (हुआंग हे)।
- ये एशिया के 16 देशों से होकर बहती हैं तथा HKH क्षेत्र में निवास कर रहे 240 मिलियन लोगों तथा निम्न क्षेत्रों में रहने वाले 1.65 बिलियन लोगों के लिये स्वच्छ जल के स्रोत हैं।
- पारिस्थितिकी: यहाँ 330 पक्षी और जैवविविधता क्षेत्र पाए जाते हैं, जिसमें चार वैश्विक जैवविविधता हॉटस्पॉट शामिल हैं, अर्थात् हिमालय, इंडो-बर्मा, दक्षिण-पश्चिम चीन पर्वत और मध्य एशिया पर्वत।
पिघलते ग्लेशियरों के क्या प्रभाव हैं?
- नकारात्मक प्रभाव:
- समुद्र स्तर में वृद्धि: पिघलते ग्लेशियर (विशेष रूप से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका) से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होने से तटीय अपरदन के साथ अधिक तीव्र चक्रवात आते हैं।
- यदि सभी ग्लेशियर और बर्फ की चादरें पिघल जाएँ तो वैश्विक समुद्र का स्तर 195 फीट (60 मीटर) से अधिक बढ़ जाएगा।
- मौसम पैटर्न में व्यवधान: पिघलती बर्फ से मौसम पैटर्न के साथ सामान्य महासागरीय परिसंचरण बाधित होता है।
- इससे वैश्विक मौसम पैटर्न प्रभावित होता है, जिसमें ध्रुवीय भंवर और जेट स्ट्रीम में परिवर्तन शामिल है जिसके परिणामस्वरूप अधिक चरम मौसमी घटनाएँ होती हैं।
- मनुष्यों पर प्रभाव: महासागरों का उष्मण बढ़ने से मछलियों के प्रजनन पैटर्न में बदलाव आता है, जिससे स्वस्थ मत्स्य पालन पर निर्भर उद्योगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने के साथ खाद्य सुरक्षा और आजीविका बाधित होती है।
- तटीय समुदाय बाढ़ और खारे जल के प्रवेश के प्रति संवेदनशील होते जा रहे हैं।
- वन्यजीव हानि: आर्कटिक क्षेत्र में समुद्री बर्फ पिघलने से वालरस और ध्रुवीय भालू जैसी प्रजातियाँ भूमि पर जाने को मज़बूर हो रही हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष बढ़ रहा है।
- आर्कटिक समुद्री बर्फ के पिघलने से वर्ष 2100 तक ध्रुवीय भालू विलुप्त हो सकते हैं।
- क्रायोस्फीयर से विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्रों को सहारा मिलता है, जैसे आर्कटिक टुंड्रा (ध्रुवीय भालू, आर्कटिक लोमड़ी), अंटार्कटिक बर्फ की चादरें (पेंगुइन, सील) और अल्पाइन क्षेत्र ( हिम तेंदुए और शंकुधारी वृक्ष)।
- समुद्र स्तर में वृद्धि: पिघलते ग्लेशियर (विशेष रूप से ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका) से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होने से तटीय अपरदन के साथ अधिक तीव्र चक्रवात आते हैं।
- सकारात्मक प्रभाव (अल्पकालिक):
- नवीन ऊर्जा स्रोत: ज्वालामुखीय गतिविधि वाले क्षेत्रों जैसे, कमचटका प्रायद्वीप में अधिक भूतापीय ऊर्जा स्रोतों की खोज हो सकती है।
- नौवहन मार्ग का विस्तार: पिघलती बर्फ से उत्तरी समुद्री मार्ग जैसे मार्ग खुलने से यूरोप और एशिया के बीच की यात्रा अवधि काफी कम हो सकती है।
- नवीन जल एवं भूमि संसाधन: उन क्षेत्रों में नये जल स्रोत उपलब्ध हो सकते हैं जहाँ पहले मीठे जल की आपूर्ति सीमित थी।
- साइबेरिया जैसे बर्फ से ढके क्षेत्र, खेती के लिये उपयुक्त हो सकते हैं।
- जैवविविधता की संभावना: ग्लेशियर के पिघलने से अग्रणी प्रजातियों के लिए नए आवास निर्मित हो सकते हैं जिससे समय के साथ अधिक विविध पारिस्थितिकी तंत्र विकसित हो सकते हैं।
ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए प्रस्तावित प्रमुख गतिविधियाँ क्या हैं?
- ग्लोबल आउटरीच: यह ग्लेशियरों के महत्त्व और उनके नुकसान के प्रभाव के बारे में जनता और हितधारकों को शिक्षित करने के लिए एक मीडिया अभियान है।
- इसमें आउटरीच प्रयासों को बढ़ाने के लिए युवा राजदूतों सहित वैश्विक हस्तियों के साथ कार्य करना शामिल है।
- इसके तहत ग्रीनहाउस गैसों, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) में कमी लाने के लिए अन्य वैश्विक निकायों के साथ समन्वय करना शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन: वर्ष 2025 का ताजिकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और वैश्विक पर्यावरण सुविधा (GEF) का अंतर्राष्ट्रीय जल सम्मेलन (IWC11) 2025, ग्लेशियरों के संरक्षण के लिए नवीन दृष्टिकोण पर केंद्रित है।
- क्षमता निर्माण: स्थानीय समुदायों, नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों के लिए ग्लेशियर गतिशीलता एवं संरक्षण के सर्वोत्तम तरीकों की समझ में सुधार करने के क्रम में लक्षित क्षमता निर्माण कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- अनुसंधान एवं निगरानी: ग्लेशियर के पिघलने, वैश्विक क्रायोस्फीयर डेटा प्रणालियों के विकास और संवर्द्धन तथा निगरानी एवं निर्णय लेने में सुधार हेतु स्थानीय और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों (LINKS) को शामिल करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- नीति एकीकरण: राष्ट्रीय और क्षेत्रीय जलवायु रणनीतियों, जल प्रबंधन नीतियों एवं आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) ढाँचे में ग्लेशियर संरक्षण को शामिल करने पर बल दिया गया है।
- वित्तपोषण पहल: ग्लेशियर निगरानी के साथ अनुसंधान और संरक्षण परियोजनाओं को समर्थन देने के क्रम में सरकारों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, निजी क्षेत्रों एवं परोपकारी संस्थाओं से वित्तपोषण प्राप्त करने पर बल दिया गया है।
संबंधित शब्दावलियाँ
- बर्फ की चादर (Ice Sheet): बर्फ की चादर का आशय भूमि पर स्थित हिमनद बर्फ से है जो 50,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में विस्तारित हो सकती है।
- वर्तमान में पृथ्वी पर केवल दो बर्फ की चादरें हैं, जिसमें से एक के द्वारा विश्व के सबसे बड़े द्वीप (ग्रीनलैंड) के अधिकांश हिस्से को कवर किया गया है और दूसरी अंटार्कटिक महाद्वीप पर विस्तारित है।
- आइस कैप: इसका आशय एक ऐसे गुंबदाकार ग्लेशियर से है जिसका क्षेत्रफल 50,000 वर्ग किलोमीटर से कम हो और जिसका सभी दिशाओं में प्रवाह हो।
- आइस कैप उच्च अक्षांशीय ध्रुवीय और उपध्रुवीय पर्वतीय क्षेत्रों में मिलती हैं।
- बर्फ क्षेत्र: यह कुछ हद तक आइस कैप के समान होता है लेकिन आमतौर पर छोटा होता है और इसमें गुंबद जैसी आकृति नहीं होती है।
- हिमखंड: हिमखंड बर्फ के बड़े तैरते हुए टुकड़े होते हैं, जो किसी ग्लेशियर से अलग होकर किसी झील या महासागर में प्रवाहित होते हैं।
- छोटे हिमखंडों को बर्गी, बिट्स और ग्रोलर्स के नाम से जाना जाता है।
निष्कर्ष
वैश्विक जल संसाधनों को बनाए रखने, जलवायु को विनियमित करने तथा जैवविविधता का समर्थन करने के लिए ग्लेशियरों का संरक्षण महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के कारण इनके तेज़ी से पिघलने से समुद्र के जल स्तर, पारिस्थितिकी तंत्र तथा मानव आबादी के संबंध में जोखिम होता है, जिससे संरक्षण एवं धारणीय प्रबंधन हेतु अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: ग्लेशियर वैश्विक जल आपूर्ति और जलवायु विनियमन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं। ग्लेशियरों के पिघलने के क्या प्रभाव हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से किस घटना ने जीवों के विकास को प्रभावित किया होगा? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. जब आप हिमालय में यात्रा करेंगे, तो आपको निम्नलिखित दिखाई देगा: (2012)
उपर्युक्त में से किसे हिमालय के युवा वलित पर्वत होने का प्रमाण कहा जा सकता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: D मेन्सप्रश्न. विश्व की प्रमुख पर्वत श्रृंखलाओं के संरेखण का संक्षेप में उल्लेख कीजिये तथा उनके स्थानीय मौसम पर पड़े प्रभावों का सोदाहरण वर्णन कीजिये। (2021) प्रश्न. हिमालय के हिमनदों के पिघलने का भारत के जल संसाधनों पर किस प्रकार दूरगामी प्रभाव होगा? (2020) |