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डेली न्यूज़

  • 28 Jan, 2025
  • 60 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-इंडोनेशिया संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

इंडोनेशिया, गणतंत्र दिवस 2025, व्यापक रणनीतिक साझेदारी, पूर्व गरुड़ शक्ति (सेना), पूर्व समुद्र शक्ति (नौसेना), AITIGA, स्थानीय मुद्रा निपटान प्रणाली, जैव ईंधन, पारंपरिक चिकित्सा, डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, क्वांटम संचार, उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग, काशी सांस्कृतिक मार्ग, इंडो-पैसिफिक पर आसियान आउटलुक, NAM, वर्ष 1955 बांडुंग सम्मेलन, 'लुक ईस्ट पॉलिसी’ 1991, 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ 2014, दक्षिण चीन सागर, UNCLOS, ब्रह्मोस, मलक्का जलडमरूमध्य, पंचशिला। 

मेन्स के लिये:

भारत-इंडोनेशिया संबंधों का विकास, भारत के लिये इंडोनेशिया का महत्त्व।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत के 76वें गणतंत्र दिवस समारोह में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति मुख्य अतिथि थे, जो भारत-इंडोनेशिया राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगाँठ का प्रतिबिंब था।

  • दोनों देशों ने स्वास्थ्य सहयोग, डिजिटल बुनियादी ढाँचे और रक्षा सहयोग जैसे क्षेत्रों को कवर करते हुए कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये।

भारत-इंडोनेशिया संबंधों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • व्यापक रणनीतिक साझेदारी: दोनों नेताओं ने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिये अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की, जिसे वर्ष 2018 में व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत किया गया।
  • रक्षा सहयोग: नेताओं ने समन्वित गश्त, गरुड़ शक्ति (सेना) और समुद्र शक्ति (नौसेना) जैसी पहलों के माध्यम से रक्षा संबंधों को मज़बूत करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की।
    • दोनों ने द्विपक्षीय समुद्री वार्ता और साइबर सुरक्षा वार्ता स्थापित करने पर सहमति व्यक्त की।
  • व्यापार सहयोग: दोनों राष्ट्रों का लक्ष्य द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना है, जो वर्ष 2022-2023 में 38.8 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुँच गया, और व्यापार बाधाओं को हल करने तथा AITIGA समीक्षा में तेज़ी लाने पर सहमत हुए।
  • ऊर्जा और स्वास्थ्य सुरक्षा: दोनों देश जैव ईंधन और निकल और बॉक्साइट जैसे महत्त्वपूर्ण खनिजों के संयुक्त अन्वेषण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
    • स्वास्थ्य सहयोग और पारंपरिक चिकित्सा गुणवत्ता आश्वासन पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए, जिसमें डिजिटल स्वास्थ्य और स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • तकनीकी सहयोग: भारत ने इंडोनेशिया के साथ डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना, क्वांटम संचार और उच्च प्रदर्शन कंप्यूटिंग में अपनी विशेषज्ञता साझा करने की पेशकश की।
  • सांस्कृतिक सहयोग: भारत ने जी-20 संस्कृति मंत्रियों की बैठक में "काशी सांस्कृतिक मार्ग" की अवधारणा को दोहराया तथा इंडोनेशिया के प्रमबानन मंदिर के जीर्णोद्धार में मदद की आशा व्यक्त की।
    • काशी सांस्कृतिक पथ का उद्देश्य विरासत संरचनाओं को पुनर्स्थापित करना और सांस्कृतिक कलाकृतियों को उनके मूल देशों में वापस भेजना है।
  • बहुपक्षीय सहयोग: दोनों देशों ने आसियान की केंद्रीयता और क्षेत्रीय मुद्दों पर सहयोग के महत्त्व पर ज़ोर दिया, जैसे कि इंडो-पैसिफिक पर आसियान आउटलुक, भारत-इंडोनेशिया-ऑस्ट्रेलिया त्रिपक्षीय और इंडो-पैसिफिक ओसियन इनिशिएटिव (IPOI), ब्रिक्स और हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA)

भारत-इंडोनेशिया संबंध समय के साथ कैसे विकसित हुए?

  • स्वतंत्रता के बाद का प्रारंभिक काल (1940-1950 का दशक): प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत ने डच औपनिवेशिक शासन  से स्वतंत्रता के लिये इंडोनेशिया की लड़ाई का पुरजोर समर्थन किया ।
    • दोनों देशों ने 1951 में मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये और व्यापार, संस्कृति और सैन्य मामलों में सहयोग बढ़ा। 
    • दोनों राष्ट्र गुटनिरपेक्षता , उपनिवेशवाद-विरोध और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर एकमत थे, जिसके परिणामस्वरूप 1955 के बांडुंग सम्मेलन में उनकी सक्रिय भागीदारी हुई और 1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन का गठन हुआ।
  • संबंधों में गिरावट (1960 का दशक): वर्ष 1950-60 के दशक में संबंध तनावपूर्ण हो गए क्योंकि वर्ष 1959 के विद्रोह और 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत के चीन के साथ संबंध खराब हो गए, जबकि इंडोनेशिया चीन के साथ सौहार्दपूर्ण रहा।
    • वर्ष 1960 के दशक में, इंडोनेशिया ने वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान पाकिस्तान का साथ दिया, एकजुटता दिखाई और सैन्य सहायता प्रदान की।
  • शीत युद्ध काल (1966-1980): राष्ट्रपति सुहार्तो के नेतृत्व में इंडोनेशिया ने चीन के साथ अपने पिछले संबंधों को तोड़ दिया तथा भारत के साथ संबंधों को पुनः बेहतर बनाने का प्रयास किया।
    • इंडोनेशिया और भारत ने वर्ष 1977 के समुद्री सीमा समझौते और सुहार्तो की वर्ष 1980 की भारत यात्रा जैसे प्रमुख समझौतों के साथ संबंधों में सुधार किया।
  • 'पूर्व की ओर देखो' नीति 1991 (1990 का दशक): भारत की 'पूर्व की ओर देखो' नीति 1991 के तहत व्यापार में वृद्धि हुई और दोनों देशों ने आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक सहयोग को शामिल करते हुए एक व्यापक साझेदारी विकसित की।
    • वर्ष 1991 की "पूर्व की ओर देखो" नीति (1990 का दशक): व्यापार में वृद्धि हुई और दोनों देशों ने वर्ष 1991 की भारत की "पूर्व की ओर देखो" रणनीति के तहत आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक सहयोग को शामिल करते हुए एक व्यापक गठबंधन विकसित किया।
    • भारत की वर्ष 2014 की 'एक्ट ईस्ट' नीति ने दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंधों को मज़बूत किया, जिससे इंडोनेशिया एक प्रमुख क्षेत्रीय साझेदार बन गया।
  • हालिया घटनाक्रम (2000 के दशक से): इंडोनेशिया अब आसियान क्षेत्र में भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है (पहला-सिंगापुर), तथा व्यापार वर्ष 2005-06 में 4.3 बिलियन अमेरिका डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 38.84 बिलियन अमेरिका डॉलर हो गया है। इंडोनेशिया में भारतीय निवेश 1.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
    • भारत और इंडोनेशिया ने संयुक्त रूप से समुद्री विवादों को सुलझाने और UNCLOS सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार दक्षिण चीन सागर आचार संहिता को अंतिम रूप देने का आह्वान किया।
    • इंडोनेशिया भारत के साथ ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली खरीदने के लिये संवाद कर रहा है, जिसकी कीमत पर व्यापक सहमति बन गई है, जिसका अनुमान 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर है।

इंडोनेशिया भारत के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • सामरिक महत्त्व: इंडोनेशिया का भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, जिसका मलक्का, सुंडा और लोंबोक जलडमरूमध्य जैसे प्रमुख समुद्री मार्गों पर नियंत्रण है, जो इसे संबद्ध क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा और व्यापार के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करने में एक महत्त्वपूर्ण साझेदार बनाता है।

Indonesia

  • प्राकृतिक संसाधन: पाम ऑयल, टिन, रबर, कोको, कॉफी, निकल, ताँबा, लकड़ी, सोना और कोयला जैसे संसाधनों से समृद्ध इंडोनेशिया वैश्विक बाज़ारों के लिये एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है और ऊर्जा, कृषि और बुनियादी ढाँचे में भारत के लिये अवसर सर्जित करता है।
  • रक्षा सहयोग: संभावित 450 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ब्रह्मोस मिसाइल सौदा और बढ़ते रक्षा संबंध इंडोनेशिया और भारत के बीच आर्थिक सहयोग को उजागर करते हैं। 
    • दोनों देशों की रक्षा साझेदारी उभरती चुनौतियों जैसे- साइबर खतरों, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद-रोध के निवारण में सहायक हो सकती है।
  • राजनीति और शासन: विश्व की सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला इंडोनेशिया अपने अद्वितीय पंचशिला संविधान के माध्यम से धर्मनिरपेक्षता का पालन करता है।
    • इंडोनेशिया ने सैन्य बल का उपयोग न करते हुए सदैव पुलिस बल के माध्यम से आतंकवाद का निवारण किया है। दोनों देशों के सामने विद्यमान साझा चुनौतियों को देखते हुए भारत इस दृष्टिकोण से सीख ले सकता है।
  • वैश्विक प्रभाव: ASEAN में इंडोनेशिया का नेतृत्व भारत के साथ उसके सहयोग को सुदृढ़ बनाता है, जो क्षेत्रीय स्थिरता और आपसी हितों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • इंडोनेशिया एक क्षेत्रीय धुरी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती शक्ति है और भारत के लिये एक मूल्यवान भागीदार है।

निष्कर्ष

व्यापार, रक्षा और समुद्री सुरक्षा में सुदृढ़ संबंधों के साथ भारत की क्षेत्रीय रणनीति में इंडोनेशिया की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। दोनों देशों का लक्ष्य तकनीकी, सांस्कृतिक और बहुपक्षीय प्रयासों के माध्यम से सहयोग बढ़ाना, अपनी व्यापक रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ बनाना और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को प्रतिबलित करना है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. समय के साथ भारत-इंडोनेशिया सहयोग में किस प्रकार विकास हुआ है तथा भारत की वर्तमान विदेश नीति में इंडोनेशिया का क्या सामरिक महत्त्व है?

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G-20 के सदस्य हैं? (2020)

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2009) 

  1. ब्रुनेई दारुस्सलाम
  2. पूर्वी तिमोर
  3. लाओस

उपर्युक्त में से कौन-कौन आसियान (ए.एस.इ.ए.एन.) का सदस्य है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (c) 


मेन्स:

प्रश्न. दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में भारतीय प्रवासियों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिये। (2017)

प्रश्न. इंडोनेशियाई और फिलीपींस द्वीपसमूह में हज़ारों द्वीपों के विचरण की व्याख्या कीजिये। (2014)


भारतीय इतिहास

लौह युग और नगरीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

लौह युग, सिंधु घाटी सभ्यता, कांस्य युग, अर्थशास्त्र, NBPW संस्कृति, विंध्य, मेगालिथिक संस्कृति, शहरीकरण, गंगा घाटी

मेन्स के लिये:

भारत में लौह युग, राज्य निर्माण और नगरीकरण में लौह प्रौद्योगिकी की भूमिका

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

'एंटिक्विटी ऑफ आयरन: रीसेंट रेडियोमेट्रिक डेट्स फ्रॉम तमिलनाडू ("Antiquity of Iron: Recent Radiometric Dates from Tamil Nadu") शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तमिलनाडु में लोहे का उपयोग चौथी शताब्दी ईसा पूर्व की पहली तिमाही से शुरू हो गया था।

  • ऐसा माना जाता है कि भारत में लौह युग का उदय 1500 और 2000 ईसा पूर्व के मध्य हुआ, जो सिंधु घाटी सभ्यता (कांस्य युग) के ठीक बाद का समय है।

लौह युग क्या है?

  • लौह युग: कांस्य युग के बाद का लौह युग एक प्रागैतिहासिक काल है, जिसकी विशेषता औज़ारों, हथियारों और अन्य उपकरणों के लिये लोहे के व्यापक उपयोग थी।
    • लौह धातुकर्म में अयस्क प्राप्ति और उपकरण निर्माण सहित कई चरण शामिल हैं।
  • भारत में लोहे की प्राचीनता:
    • ऋग्वैदिक काल: इस काल में लोहे का ज्ञान नहीं था।
    • प्रारंभिक ऐतिहासिक काल: लौह शिल्पकला का उल्लेख प्रारंभिक बौद्ध साहित्य और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
  • महत्त्वपूर्ण उत्खनन स्थल: 
    • राजा नल का टीला (उत्तर-मध्य भारत): पूर्व-NBP (उत्तरी काली पॉलिश) उत्खनन (1400-800 ईसा पूर्व) में पाए गए लौह उपकरण और धातु के तलछट।
    • मल्हार (चंदौली, उत्तर प्रदेश): लौह औज़ारों, भट्टियों और धातु के तलछट के साक्ष्य से पता चलता है कि यह एक महत्त्वपूर्ण लौह धातुकर्म केंद्र था।
  • सांस्कृतिक संघ:
    • काले और लाल मृदभांड (BRW): इस प्रकार के मृदभांडों की विशेषता यह है कि इनके अन्दरूनी भाग काले तथा बाहरी भाग लाल होते हैं, जो इनवर्टिंग फायरिंग तकनीक से पकाए जाने के कारण होते हैं।
      • यह हड़प्पा संस्कृति (गुजरात), प्री-PGW संस्कृति (उत्तरी भारत) और मेगालिथिक संस्कृति (दक्षिणी भारत) में पाए जाते है।
    • चित्रित धूसर मृदभांड (PGW) संस्कृति: काले ज्यामितीय पैटर्न के साथ धूसर (ग्रे) मृदभांड इनकी विशेषता है।
      • गंगा घाटी और दक्षिण भारतीय मेगालिथ (प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व) के कई स्थलों पर लोहे की उपस्थिति के साक्ष्य प्राप्त हुए।
    • उत्तरी कलि पॉलिश वाले मृदभांड (NBPW) संस्कृति: पहिये से बने मृदभांड जो बारीक, काले और अत्यधिक पॉलिश वाले होते हैं, जो उत्तर भारत में महत्त्वपूर्ण मृदभांड हैं।
      • 700 ईसा पूर्व-100 ईसा पूर्व ( NBPW संस्कृति) के दौरान, गंगा घाटी में राज्यों का गठन तथा नगरीकरण का उदय हुआ।
      • NBPW संस्कृति गंगा घाटी में द्वितीय नगरीकरण (6ठी शताब्दी ईसा पूर्व) से संबंधित थी, जिसके दौरान बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ।
    • अहार ताम्रपाषाण संस्कृति:
      • मध्य चरण (2500-2000 ईसा पूर्व): लौह कलाकृतियों के साक्ष्य।
      • अंतिम चरण (2000-1700 ई.पू.): अधिक मात्र में लोहे का उपयोग।
    • मेगालिथिक संस्कृति: लोहे से जुड़े मेगालिथ ( प्रागैतिहासिक संरचना के निर्माण के लिये बड़े पत्थर का उपयोग), विंध्य (दक्षिणी उत्तर प्रदेश), विदिशा क्षेत्र तथा दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों में पाए जाते हैं। 

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मेगालिथिक संस्कृति का लोहे से संबंध

  • मेगालिथिक संस्कृति: यह एक प्रागैतिहासिक चरण है, जो दफनाने, पवित्र स्थानों और अनुष्ठानों के लिये उपयोग किये जाने वाले बड़े पत्थर की संरचनाओं द्वारा चिह्नित है।
    • दक्षिण भारत में मेगालिथिक संस्कृति का लोहे के उपयोग की शुरुआत से गहरा संबंध है।
  • लोहे का उपयोग: मेगालिथिक काल की कब्रों से लगभग 33 प्रकार के लोहे के औजारों की पहचान की गई है। इनका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जाता था:
    • कृषि : कुदालें, दरांती और कुल्हाड़ी।
    • घरेलू उपयोग: बर्तन/मृद भाड़ और तिपाई स्टैंड।
    • कारीगरी गतिविधियाँ : छेनी और कीलें।
    • युद्ध और शिकार: तलवारें, खंजर, भाले और तीर।
  • लोहे के उपयोग के उल्लेखनीय साक्ष्य:
    • नाइकुंड (विदर्भ): लोहा गलाने वाली भट्टी की खोज।
    • माहुरझारी (नागपुर): तांबे की चादरों और लोहे की घुंडियों से बने घोड़े के सिर के आभूषणों को माहुरझरी (नागपुर) के नाम से जाना जाता है।
    • पैयमपल्ली (तमिलनाडु): भारी मात्रा में लौह धातुमल, जो स्थानीय लौह प्रगलन के साक्ष्य को दर्शता है।
  • लौह प्रौद्योगिकी में उन्नति: लोगों द्वारा आग पर नियंत्रण तथा अयस्क से लोहा निकालने जैसी प्रमुख तकनीकी का प्रयोग। 

गंगा घाटी में नगरीकरण में लौह प्रौद्योगिकी ने कैसे मदद की?

  • नगरीकरण : इतिहासकार और पुरातत्वविद् गॉर्डन वी. चाइल्ड के अनुसार, शहरीकरण अधिशेष उत्पादन पर निर्भर करता है, जिसके परिणामस्वरूप शासक वर्ग, सामाजिक स्तरीकरण और स्मारकीय वास्तुकला का विकास होता है।
    • इसका तात्पर्य कृषि -आधारित अर्थव्यवस्थाओं से उद्योगों, सेवाओं और व्यापार को आय के प्राथमिक स्रोत के रूप में अपनाने से है।
  • लौह प्रौद्योगिकी की भूमिका: गंगा घाटी में द्वितीय शहरीकरण (6 वीं शताब्दी ईसा पूर्व) बस्तियों के प्रसार द्वारा चिह्नित था तथा लौह प्रौद्योगिकी ने इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई:
    • वनों की कटाई: लोहे के औज़ारों के कारण वनों की कटाई संभव हुई, जिससे कृषि योग्य भूमि का निर्माण हुआ।
    • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: लौह के हल से दक्षता और उत्पादकता में वृद्धि हुई।
    • कृषि अधिशेष: उत्पादकता में वृद्धि ने बड़ी आबादी और समाजों को सहारा प्रदान किया।
    • भारत में पहला नगरीकरण (2500 और 1900 ईसा पूर्व) सिंधु घाटी सभ्यता के दौरान हुआ था।
  • नगरीकरण पर प्रभाव: इसके कारण भारतीय उपमहाद्वीप में 16 महाजनपदों का विकास हुआ।
  • जनसंख्या वृद्धि: कृषि अधिशेष ने जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा दिया, जो शहरी केंद्रों के विकास के लिये आवश्यक था।
  • बस्तियों का विकास: बस्तियों की संख्या और जटिलता में वृद्धि हुई, जिससे एक स्पष्ट पदानुक्रम देखने को मिला।
  • सामाजिक स्तरीकरण और राज्य गठन: अधिशेष उत्पादन ने शासक वर्गों, सामाजिक पदानुक्रम (जैसे, वर्ण व्यवस्था) और केंद्रीकृत शक्ति संरचनाओं के उद्भव को सक्षम किया।
  • व्यापार और शिल्प विशेषज्ञता: अधिशेष ने लोगों को व्यापार और शिल्प जैसी गैर-कृषि गतिविधियों में संलग्न होने की अनुमति दी, जिससे आर्थिक विविधीकरण तथा  शहरी विकास को बढ़ावा मिला।

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निष्कर्ष:

प्राचीन भारत में शहरी केंद्रों के विकास में लौह प्रौद्योगिकी ने,  खासकर गंगा घाटी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने कृषि उत्पादकता को बढ़ावा दिया, जनसंख्या वृद्धि का समर्थन किया, और सामाजिक पदानुक्रम तथा राज्य गठन को बढ़ावा दिया, जो दूसरे नगरीकरण चरण के दौरान शहरीकरण की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: गंगा घाटी के नगरीयकरण में लौह प्रौद्योगिकी की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  पीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रीलिम्स:

प्रश्न: ऋग्वैदिक आर्यों और सिंधु घाटी के लोगों की संस्कृति के बीच अंतर के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (2017) 

  1. ऋग्वैदिक आर्य युद्ध में हेलमेट और कोट का इस्तेमाल करते थे जबकि सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा इनके इस्तेमाल का कोई सबूत नहीं मिलता है।
  2.  ऋग्वैदिक आर्य सोना, चाँदी और तांबा से परिचित थे, जबकि सिंधु घाटी के लोग केवल तांबा और लोहे से।
  3.  ऋग्वैदिक आर्यों ने घोड़े को पालतू बनाया था, जबकि सिंधु घाटी के लोगों द्वारा इस जानवर के उपयोग के बारे में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं होता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और  3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2और 3 

उत्तर: C 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य बुद्ध के जीवन से जुड़ा था? (2014)

  1. अवंती
  2. गांधार
  3. कोशल
  4. मगध 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) 1, 2 और 3 
(b) 2 और 4 
(c) केवल 3 और 4 
(d) 1, 3 और 4

उत्तर: (C)


मेन्स

Q. ‘‘भारत की प्राचीन सभ्यता मिस्र, मेसोपोटामिया और ग्रीस की सभ्यताओं से इस बात में भिन्न है कि भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराएँ आज तक भंग हुए बिना परिरक्षित की गई है।’’ टिप्पणी कीजिये। (2015)


जैव विविधता और पर्यावरण

रैट-होल माइनिंग

प्रिलिम्स के लिये:

रैट-होल माइनिंग, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT),  अनुच्छेद 371A, कोयला

मेन्स के लिये:

अनुच्छेद 371A की सीमाएँ और चुनौतियाँ, सतत् खनन प्रथाएँ, रैट-होल खनन, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वर्तमान प्रतिबंधों के बावजूद, असम के दीमा हसाओ ज़िले में हुई  रैट-होल माइनिंग की दुर्घटना, जिसमें बाढ़ के बाद नौ खनिक एक अवैध कोयला खदान में फंस गए थे, अनियमित खनन के लगातार जारी खतरों को उजागर करती है। 

  • इसके अलावा, केरल के पलक्कड़ में कुट्टुपथ ट्रेंचिंग ग्राउंड में बायोमाइनिंग का कार्य किया जा रहा है।

रैट-होल माइनिंग क्या है?

  • परिचय:
    • रैट-होल माइनिंग कोयला खनन की एक आदिम, अपरिष्कृत, श्रम-प्रधान तथा खतरनाक तकनीक है।
  • इसमें ज़मीन में बहुत छोटी सुरंगें खोदी जाती हैं, जो आमतौर पर केवल 3-4 फीट गहरी और 2 से 3 फीट चौड़ी होती हैं, जिसमें श्रमिक, अधिकतर बच्चों कि मदद कोयला निकाला जाता हैं।
    • यह प्रथा आमतौर पर पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर मेघालय और असम में प्रचलित है। 
  • निष्कर्षण की विधियाँ:
    • साइड-कटिंग प्रक्रिया: इसमें पतली कोयला परतों तक पहुँचने के लिये पहाड़ी ढलानों में संकरी सुरंगें खोदना शामिल है, जो आमतौर पर 2 मीटर से कम ऊँचाई की होती हैं तथा क्षेत्र के पहाड़ी इलाकों में पाई जाती हैं।
    • बॉक्स-कटिंग: इस विधि में, पहले एक आयताकार होल बनाया जाता है, उसके बाद एक ऊर्ध्वाधर गड्ढा खोदा जाता है। 
      • फिर कोयला निकालने के लिये चूहे के बिल जैसी क्षैतिज सुरंगें खोदी जाती हैं।
  • रैट-होल माइनिंग के कारण:
    • गरीबी: सीमित आजीविका विकल्पों के कारण, स्थानीय जनजातीय समुदाय अक्सर जीवित रहने के साधन के रूप में रैट-होल माइनिंग की ओर रुख करते हैं।
      • उच्च जोखिम के बावजूद, निकाले गए कोयले को बेचने से होने वाला तत्काल वित्तीय लाभ, आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे लोगों के लिये एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है।
    • भूमि स्वामित्व संबंधी मुद्दे: भूमि के स्वामित्व में अस्पष्टता और उचित विनियमन का अभाव, अवैध खनन परिचालनों के लिये शासन में खामियों का फायदा उठाने तथा बिना किसी जवाबदेही के जारी रहने के अवसर उत्पन्न करता है।
    • कोयले की मांग: कोयले की कानूनी और अवैध दोनों तरह की निरंतर मांग इस प्रथा को कायम रखती है।
      • बिचौलिये और अवैध व्यापारी अवैध रूप से खनन किये गए कोयले के लिये बाज़ार बनाकर इस चक्र को और आगे बढ़ाते हैं।

रैट-होल खनन से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • सुरक्षा जोखिम: संकरी सुरंगों के ढहने का खतरा रहता है, जिससे प्रायः खनिक फंस जाते हैं, जबकि खराब वेंटिलेशन के कारण दम घुटने की समस्या होती हैसुरक्षा उपायों के अभाव के कारण अक्सर दुर्घटनाएँ होती हैं, खनिकों को चोट लगती है और प्राण घातक रोग होते हैं।
    • उदाहरण: नगालैंड में वर्ष 2024 के वोखा खदान विस्फोट में 6 लोगों की मृत्यु हुई, जबकि मेघालय में वर्ष 2018 के कसन खदान में बाढ़ आने से 17 खनिकों की मृत्यु हुई।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: रैट-होल खनन से वनोन्मूलन, मृदा अपरदन और जल प्रदूषण में वृद्धि होती है। 
    • खनन कार्यों से उत्पन्न अपशिष्ट का उचित निपटान न करने से अम्लीय अपवाह (एसिड माइन ड्रेनेज, या AMD) होता है, जो जल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और समीपवर्ती पारिस्थितिकी तंत्र में जैवविविधता को नुकसान पहुँचाता है।
    • उदाहरण: मेघालय में, AMD से लुखा जैसी नदियाँ अम्लीय हो गई हैं, जबकि नगालैंड में, खनन से वोखा और मोन ज़िलों की उपजाऊ भूमि का नाश हुआ तथा जल प्रदूषित हुआ।
  • सामाजिक मुद्दे: इससे बाल श्रम और अल्प वेतन वाले श्रमिकों का शोषण होता है। इसके साथ ही, स्थानीय समुदायों का विस्थापन भी होता है।
    • गैर सरकारी संगठन इम्पल्स की रिपोर्ट के अनुसार 70,000 बाल श्रमिक, मुख्य रूप से बांग्लादेश और नेपाल के, खदानों के छोटे आकार के कारण संकरी सुरंगों में से कोयले निकालने हेतु नियोजित किये गए थे।

रैट होल खनन का विनियमन किस प्रकार किया जाता है?

  • भारत में विनियमन:
    • भारत में स्थिति:
      • रैट होल खनन अवैध है और विधि तथा व्यवस्था के विषय के रूप में इसका समाधान किये जाने पर राज्य/ज़िला प्रशासन की अधिकारिता है।
    • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) द्वारा प्रतिबंध:
      • वर्ष 2014 में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने अनेक दुर्घटनाएँ होने के कारण, विशेषकर मानसून ऋतु में, रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था।
      • जुलाई 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मेघालय में रैट होल खनन पर प्रतिबंध को मान्य ठहराया, जो मूल रूप से NGT द्वारा वर्ष 2014 में लगाया गया था। 
        • सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि खान और खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत इस प्रकार खनन विधिविरुद्ध था।
    • नगालैंड में रैट-होल खनन का विनियमन: नगालैंड कोयला नीति, 2006 के अंतर्गत कठोर शर्तों के तहत व्यक्तिगत भू स्वामियों को लघु पॉकेट डिपॉज़िट लाइसेंस (SPDL)  प्रदान कर रैट-होल खनन का विनियमन किया जाता है।
      • अनुच्छेद 371A के तहत नगालैंड को भूमि, संसाधनों और प्रथागत कानूनों की रक्षा के लिये स्वायत्तता प्रदान की गई है, जिससे खनन प्रथाओं को विनियमित करने में विधिक बाधाएँ उत्पन्न होती हैं।
  • छठी अनुसूची: छठी अनुसूची स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) के माध्यम से मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा और असम में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करती है, जिससे खनन विनियमन जटिल हो जाता है। 
    • स्थानीय जनजातीय समुदायों के पास भूमि और खनिज दोनों का स्वामित्व है, जिससे राष्ट्रीय खनन और पर्यावरण कानूनों पर केंद्रीय निगरानी तथा प्रवर्तन सीमित हो जाता है।
    • भूमि और संसाधनों पर विधान निर्मित करने के ADC के अधिकार का प्रायः MMDR अधिनियम, 1957 के तहत केंद्रीय विनियमनों के साथ संघर्ष होता है, जिससे विनियामक अस्पष्टताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ: रैट-होल खनन से संबंधित कोई विशिष्ट अंतर्राष्ट्रीय कानून नहीं है।
    • हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय नियमों में सतत् खनन विधियों को बढ़ावा दिया गया है और श्रमिक सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से सदस्य देश समान प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रभावित होते हैं।

बायोमाइनिंग क्या है?

  • परिचय: 
    • बायोमाइनिंग का तात्पर्य सूक्ष्मजीवों जैसे बैक्टीरिया, आर्किया, कवक या पौधों का उपयोग करके अयस्कों और अन्य ठोस पदार्थों से धातुओं के निष्कर्षण से है।
    • यह एक पर्यावरण-अनुकूल तकनीक है जिसका प्रयोग धातु प्रदूषकों से प्रदूषित स्थलों के उपचार के लिये भी किया जा सकता है।
    • इससे धातुओं को ऑक्सीकरण द्वारा निकाला जाता है जिससे ये अधिक घुलनशील हो जाती हैं और उन्हें पुनः प्राप्त करना आसान हो जाता है। इसकी दो मुख्य प्रक्रियाएँ हैं:
      • बायोलीचिंग: सूक्ष्मजीव लक्षित धातु को सीधे ही घोल देते हैं, जिससे निष्कर्षण आसान हो जाता है।
      • जैवऑक्सीकरण: सूक्ष्मजीव आसपास के खनिजों को तोड़ते हैं, जिससे लक्षित धातु का निष्कर्षण सुगम हो जाता है।
  • बायोमाइनिंग के माध्यम से निष्कर्षित धातुएँ
    • बायोमाइनिंग से मुख्य रूप से तांबा, यूरेनियम, निकल और सोना जैसी धातुओं का निष्कर्षण किया जाता है, जो आमतौर पर सल्फाइड खनिजों में पाई जाती हैं। 
  • बायोमाइनिंग के लाभ:
    • पर्यावरणीय स्थिरता: पारंपरिक खनन की तुलना में इससे न्यूनतम खतरनाक अपशिष्ट के साथ कार्बन का कम उत्सर्जन होता है।
    • ऊर्जा दक्षता: इसमें कम ऊर्जा की आवश्यकता के साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है।
    • जल का कम उपयोग: इसमें जल का अधिक कुशलतापूर्वक उपयोग होता है, जिससे यह जल की कमी वाले क्षेत्रों के लिये लाभदायक है।
  • बायोमाइनिंग की चुनौतियाँ:
    • धीमी निष्कर्षण दर: पारंपरिक खनन की तुलना में बायोमाइनिंग एक धीमी प्रक्रिया है, जिससे यह बड़े पैमाने पर संचालन के लिये कम उपयुक्त है।
    • सीमित दायरा: सभी अयस्क जैवखनन के लिये उपयुक्त नहीं होते हैं, विशेष रूप से वे जिनमें ऐसी धातुएँ नहीं होती हैं जिन्हें सूक्ष्मजीवों द्वारा आसानी से ऑक्सीकृत किया जा सके।
    • तकनीकी चुनौतियाँ: इस प्रक्रिया के लिये सूक्ष्म जीव विज्ञान से संबंधित तकनीकी की आवश्यकता होती है और इसमें जटिल परिचालन स्थितियाँ शामिल हो सकती हैं, जिससे इसका संचालन जटिल हो जाता है।

इलेक्ट्रोकाइनेटिक प्रौद्योगिकी

  • परिचय:
    • इलेक्ट्रोकाइनेटिक माइनिंग (EKM) दुर्लभ मृदा तत्त्वों के निष्कर्षण के लिये एक नवीन, पर्यावरण-अनुकूल तकनीक है। 
    • इसमें विद्युत का उपयोग करके कुशलतापूर्वक माइनिंग को सक्षम किया जाता है।
  • महत्त्व:
    • इससे निक्षालन एजेंट का उपयोग 80% तथा ऊर्जा खपत 60% कम हो जाती है तथा इसमें 95% से अधिक की रिकवरी दर प्राप्त होती है, जो धारणीय खनन में एक महत्त्वपूर्ण सफलता है। 
    • यह नवाचार पर्यावरणीय अनुकूल होने के साथ दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REE) की पुनःप्राप्ति को सक्षम बनाता है।

Electrokinetic_Technology

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में रैट-होल खनन से उत्पन्न पर्यावरणीय और सुरक्षा चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इन मुद्दों को कम करने एवं धारणीय खनन प्रथाओं को बढ़ावा देने के उपाय बताइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

Q. “पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन अभी भी विकास के लिये अपरिहार्य है” चर्चा कीजिये। (2017)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की कराधान प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ और सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

वस्तु एवं सेवा कर (GST), कर, निवेश, न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT), पूंजीगत लाभ कर, प्रतिभूति लेनदेन कर, कॉर्पोरेट कर, लाभांश, 101वाँ संशोधन अधिनियम 2016, GST परिषद, वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग केस, 2012, इनपुट टैक्स क्रेडिट, कर चोरी

मेन्स के लिये:

GST, भारत की कराधान प्रणाली से संबंधित चुनौतियाँ और सुधार।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

वर्तमान कर प्रणाली (विशेष रूप से वस्तु एवं सेवा कर ढाँचे के तहत) विकास को धीमा करने एवं व्यापार विकास तथा उपभोग में बाधक होने के साथ भारत की निवेश प्रतिष्ठा के प्रतिकूल है। 

भारत में कर प्रणाली किस प्रकार की है?

  • परिचय: कर, अनिवार्य वित्तीय शुल्क है जो सरकार द्वारा सार्वजनिक सेवाओं एवं सरकारी कार्यों के वित्तपोषण के लिये व्यक्तियों, व्यवसायों या संपत्ति पर लगाए जाते हैं।
    • करदाता और सार्वजनिक प्राधिकरण के बीच कोई लेन-देन नहीं होता है।
    • भारत में कर प्रणाली में प्रत्यक्ष कर, अप्रत्यक्ष कर और अन्य करों का मिश्रण शामिल है। 
  • करों के प्रकार: 
    • प्रत्यक्ष कर: ये कर व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा सरकार को अदा किये जाते हैं तथा इन्हें दूसरों को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है।
    • अप्रत्यक्ष कर: ये वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए जाते हैं और यह बिक्री पर बिचौलियों द्वारा उपभोक्ताओं से वसूले जाते हैं और सरकार को अदा किये जाते हैं।
    • अन्य कर: ये कर विशिष्ट उद्देश्यों के लिये लगाए जाते हैं (अक्सर बुनियादी ढाँचे या कल्याण कार्यक्रमों के वित्तपोषण के लिये)। 
  • प्रत्यक्ष कर: 
    • आयकर: यह प्रगतिशील प्रकृति की आय पर लगाया जाता है, जिसमें विभिन्न करदाता श्रेणियों के लिये अलग-अलग स्लैब होते हैं।
    • पूंजीगत लाभ कर: यह निवेश से प्राप्त लाभ पर कर है, जिसकी दरें अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक होल्डिंग्स के आधार पर अलग-अलग होती हैं।
    • प्रतिभूति लेनदेन कर: यह शेयर बाज़ार में प्रतिभूतियों से जुड़े लेनदेन पर आरोपित कर है।
    • अनुलाभ कर: यह नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को प्रदान किये गए लाभों पर कर (जैसे, आवास, कार) है।
    • कॉर्पोरेट टैक्स: यह कंपनियों द्वारा अपनी कमाई पर दिया जाने वाला कर है, जिसमें विभिन्न आय स्तरों के लिये अलग-अलग स्लैब होते हैं।
      • न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT): MAT से यह सुनिश्चित होता है कि कंपनियाँ न्यूनतम कर (जो 18.5% निर्धारित है) का भुगतान करें।
      • फ्रिंज बेनिफिट टैक्स (FBT): यह नियोक्ताओं द्वारा प्रदान किये गए गैर-नकद लाभों पर कर (वर्ष 2009 में समाप्त) है।
      • लाभांश वितरण कर (DDT): यह कंपनियों द्वारा भुगतान किये गये लाभांश पर कर है।
      • बैंकिंग नकद लेनदेन कर: यह बैंकिंग लेनदेन पर कर (वर्ष 2009 में समाप्त) है।
  • अप्रत्यक्ष कर: 
    • GST: यह वस्तुओं और सेवाओं पर उपभोग आधारित मूल्यवर्द्धित कर (मूल्यानुसार कर) है, जो आपूर्ति शृंखला के प्रत्येक चरण पर लगाया जाता है। 
      • यह कर प्रतिगामी प्रकृति का है क्योंकि यह सभी व्यक्तियों पर आय से परे समान दर से लगाया जाता है।
    • मूल्यवर्द्धित कर (VAT): यह बेची गई वस्तुओं पर कर है जो आपूर्ति शृंखला के प्रत्येक चरण पर लगाया जाता है। यह उन वस्तुओं पर लगाया जाता है जिन्हें GST व्यवस्था से बाहर (जैसे मादक पेय पदार्थ, पेट्रोलियम उत्पाद आदि) रखा गया है।
    • सीमा शुल्क एवं चुंगी: आयातित वस्तुओं पर सीमा शुल्क तथा राज्य की सीमाओं को पार करने वाली वस्तुओं पर चुंगी कर लगता है।
    • उत्पाद शुल्क: यह भारत के अंदर निर्मित वस्तुओं पर कर है। 
  • अन्य शुल्क (उपकर): 
    • शिक्षा उपकर: यह शैक्षणिक पहलों (जैसे कक्षाएँ, पुस्तकालय विकसित करना, छात्रवृत्ति प्रदान करना आदि का वित्तपोषण) के लिये लिया जाने वाला 2% कर है।
    • स्वच्छ भारत उपकर: यह स्वच्छ भारत मिशन जैसी स्वच्छता पहलों को वित्तपोषित करने के लिये वर्ष 2015 में शुरू किया गया कर है।
    • कृषि कल्याण उपकर: यह सिंचाई परियोजनाओं, सब्सिडी वाले बीज आदि जैसे कृषि कल्याण कार्यक्रमों का समर्थन करने के लिये वर्ष 2016 में शुरू किया गया कर है।

वस्तु एवं सेवा कर (GST) क्या है?

  • परिचय: यह एक मूल्यवर्द्धित कर है जो घरेलू उपभोग के लिये वस्तुओं एवं सेवाओं पर लगाया जाता है।
    • यह एक अप्रत्यक्ष कर है तथा वस्तु और सेवाओं को बेचने वाले व्यवसायों द्वारा एकत्र किया जाता है और सरकार को दिया जाता है।
  • विधायी आधार: 101वें संशोधन अधिनियम, 2016 से विभिन्न करों को समाहित करके पूरे देश के लिये एकल अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था शुरू करने के क्रम में GST प्रणाली की शुरुआत की गई।
    • GST के अंतर्गत सम्मिलित केंद्रीय करों में केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि शामिल हैं।
    • GST के अंतर्गत सम्मिलित राज्य कर हैं- राज्य वैट (मूल्य वर्द्धित कर), केंद्रीय बिक्री कर, लक्ज़री टैक्स आदि।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • आपूर्ति पक्ष: GST विनिर्माण, बिक्री या प्रावधान पर पुराने कर के विपरीत, वस्तु और सेवाओं की आपूर्ति पर लागू होता है।
    • गंतव्य-आधारित कराधान: GST मूल-आधारित प्रणाली के विपरीत, गंतव्य-आधारित उपभोग कराधान का अनुसरण करता है।
    • दोहरा जीएसटी: केंद्र (सीजीएसटी) और राज्य (एसजीएसटी) दोनों एक ही आधार पर कर लगाते हैं।
    • आपूर्ति पक्ष: विनिर्माण, बिक्री या प्रावधान पर पिछले कर के विपरीत, GST वस्तु और सेवाओं की आपूर्ति पर लागू होता है। 
    • गंतव्य-आधारित कराधान: मूल-आधारित प्रणाली के विपरीत, GST एक गंतव्य-आधारित उपभोग कर है। 
    • ड्यूल GST: कराधान राज्यों (SGST) और केंद्र (CGST) द्वारा साझा आधार पर आरोपित किया जाता है।
      • वस्तुओं या सेवाओं के आयात को अंतर-राज्यीय आपूर्ति माना जाता है तथा वे लागू सीमा शुल्क के साथ एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (IGST) के अधीन होते हैं।
    • GST परिषद: GST परिषद की सिफारिशों के आधार पर केंद्र और राज्यों द्वारा CGST, SGST और IGST दरें पारस्परिक रूप से तय की जाती हैं।
    • विभिन्न दरें: GST पाँच दरों पर आरोपित किया जाता है, अर्थात 0% (शून्य दर), 5%, 12%, 18% और 28%, जिनका वस्तु वर्गीकरण GST परिषद द्वारा निर्धारित किया जाता है।
  • GST परिषद: अनुच्छेद 279A GST परिषद की स्थापना करता है, जिसका अध्यक्ष केंद्रीय वित्तमंत्री होगा, जिसमे राज्य द्वारा नामित मंत्री शामिल होंगे। 
    • केंद्र के पास 1/3 तथा राज्यों के पास 2/3 मतदान की शक्ति है, तथा निर्णय 3/4 बहुमत से लिये जाते हैं।

वर्तमान कर प्रणाली के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?

  • पूर्वव्यापी कराधान: 55वीं जीएसटी परिषद की पूर्वव्यापी कर संशोधन की सिफारिश एक प्रतिगामी कदम है, जो सर्वोच्च न्यायालय (SC) के फैसलों की अवहेलना करता है।
    • वोडाफोन मामले में फैसले को रद्द करने के लिये गलत पूर्वव्यापी संशोधन के परिणामस्वरूप 8000 करोड़ रुपए का अंतर्राष्ट्रीय जुर्माना लगा, जिसे भारत को अदा करना पड़ा।
      • वर्ष 2014 में पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पूर्वव्यापी कराधान को “कर आतंकवाद” कहा था।
    • इससे निवेशकों का विश्वास कम होता है तथा दीर्घकालिक निवेश हतोत्साहित होता है, क्योंकि कंपनियाँ सुसंगत नियमों पर भरोसा नहीं कर सकतीं। 
  • राजस्व अधिकतमीकरण: GST परिषद का राजस्व अधिकतमीकरण पर एकमात्र ध्यान केंद्रित करने के परिणामस्वरूप मनमाना और अतिरंजित कर मांगें सामने आती हैं, जिससे व्यवसाय में निराशा और अकुशलता उत्पन्न होती है।
  • इनपुट टैक्स क्रेडिट से इनकार: व्यवसायों को इनपुट टैक्स क्रेडिट से इनकार करना, विशेष रूप से रियल एस्टेट जैसे क्षेत्रों में, आर्थिक रूप से हानिकारक है। 
    • इससे उपभोक्ताओं के लिये अंतिम कीमत बढ़ जाती है, बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा विकृत हो जाती है, तथा वे क्षेत्र प्रभावित होते हैं जो विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
    • केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर के मुख्य आयुक्त एवं अन्य बनाम सफारी रिट्रीट्स केस, 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि रियल एस्टेट क्षेत्र किराये या पट्टे के प्रयोजनों के लिये उपयोग किये जाने वाले वाणिज्यिक भवनों के निर्माण लागत पर इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा कर सकता है, जिसकी पहले अनुमति नहीं थी।
  • जटिल कर संरचना: अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष करों में विभिन्न कर दरें, जटिल कर अधिसूचनाएँ, छूट और रियायतों की जटिल प्रणाली, तथा परिपत्रों के कारण ऐसा वातावरण बनता है, जिससे व्यवसायों के बजाय  कर पेशेवरों को लाभ होता है।
  • कम प्रत्यक्ष कर संग्रह: निगम, विशेष रूप से बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, उच्च-कर वाले क्षेत्रों से कम-कर वाले क्षेत्रों में मुनाफे को स्थानांतरित करने के लिये स्थानांतरण मूल्य निर्धारण का उपयोग करती हैं, जिससे उनकी कर देनदारियाँ कम हो जाती हैं।
    • कुछ निगम अपनी कर देयता को कम करने के लिये अपनी आय को कम या अपने व्यय को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं।
    • प्रत्यक्ष कर संग्रह इतना कम होने के कारण सरकार को उच्च अप्रत्यक्ष कर दर, अधिभार और उपकर जैसे अन्य स्रोतों से राजस्व उत्पन्न करने के लिये मज़बूर होना पड़ता है।

जटिल कर संरचना के परिणाम क्या हैं?

  • आयात पर निर्भरता: बोझिल कर प्रणाली आयातित वस्तुओं की तुलना में घरेलू विनिर्माण को कम प्रतिस्पर्द्धी बना देती है, जिससे विदेशी उत्पादों पर अत्यधिक निर्भरता बढ़ जाती है।
    • उदाहरण के लिये, चीन से आयात वर्ष 2018-19 में 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।
    • इससे विपरीत शुल्क संरचना को भी बढ़ावा मिलता है, जहाँ प्रयुक्त इनपुट पर कर की दर तैयार वस्तु पर कर की दर से अधिक होती है।
      • भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा 15% से कम हो गया है। 
  • मुद्रा अवमूल्यन: चूँकि व्यवसायों को उच्च लागत, कम प्रतिस्पर्द्धा और दमित वृद्धि का सामना करना पड़ता है, इसलिये इससे भारतीय रुपए का अवमूल्यन होता है और व्यापार घाटा बढ़ता है।
  • निवेश में बाधा: अस्पष्ट संरचनाओं और पूर्वव्यापी संशोधनों के साथ एक जटिल कर प्रणाली, निवेशकों के लिये अनिश्चितता उत्पन्न करती है और सुकर व्यापार प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।
  • कम राजस्व संग्रहण: व्यवसायों को जटिल कर प्रणाली से निपटने में कठिनाई होती है, जिसके परिणामस्वरूप या तो कर कम बताया जाता है या कर चोरी होती है। 
    • कम राजस्व संग्रह से सरकार राजकोषीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिये उच्च कर लगाने के लिये विवश होती है, जिससे गतिरोध का चक्र शुरू हो जाता है।
  • अधोमुखी आर्थिक चक्र: निम्न वृद्धि, कम निवेश और बढ़ते आयात से एक दुष्चक्र बनता है जो दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है और अकुशलता को बनाए रखता है।

आगे की राह

  • GST को सरल एवं कारगर बनाना: व्यापार में आसानी सुनिश्चित करने के लिये, विशेष रूप से रियल एस्टेट और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों में, अधिक सरलीकृत और एकसमान कर दर संरचना शुरू की जानी चाहिये।
    • भारत को दरों को तर्कसंगत बनाकर कर ढाँचे को सरल बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। उदाहरण के लिये, पॉपकॉर्न पर तीन GST दरें यानी, अनलेबल (5%), लेबल्ड रेडी-टू-ईट (12%) और कैरामेलाइज़्ड (18%)।
  • कर निश्चितता: बार-बार संशोधन या मनमाने कर मांगों का परिहार किया जाना चाहिये, जो स्पष्ट और सुसंगत कर नियमों को स्थापित करने के लिये आवश्यक हैं।
    • पूर्वव्यापी कराधान को समाप्त किये जाने की आवश्यकता है जो निवेशकों के विश्वास के लिये  हानिकारक रहा है।
  • राजस्व संग्रह का अनुकूलन: कर संग्रह दक्षता में सुधार और कर चोरी को रोकने के लिये डिजिटल प्लेटफॉर्म और कृत्रिम बुद्धिमत्ता को उपयोग में लाया जाना चाहिये।
    • प्रौद्योगिकी कर विसंगतियों की पहचान करने, व्यवसायों द्वारा सटीक रिपोर्ट सुनिश्चित करने तथा कम रिपोर्ट किये जाने का समाधान करने में मदद कर सकती है।
  • आर्थिक विकास की कार्यनीति: कर प्रणाली में राजस्व अधिकतमीकरण की तुलना में दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, क्योंकि विकासोन्मुख नीतियों से भविष्य में कर आधार का विस्तार होता है।
  • कॉर्पोरेट कर संग्रह में सुधार: संभावित कम रिपोर्टिंग, चोरी या धोखाधड़ी की पहचान करने के लिये कॉर्पोरेट कर फाइलिंग का नियमित और गहन ऑडिट आयोजित किया जाना चाहिये।
    • कंपनियों को समय पर कर का भुगतान करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु कर त्रुटियों अथवा लोप के बारे में शीघ्र स्वैच्छिक प्रकटीकरण के लिये शीघ्र भुगतान पर छूट या कम दंड जैसे प्रोत्साहन प्रदान किये जाने चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत की अर्थव्यवस्था की कार्य- पद्धति पर जटिल कराधान प्रणाली के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये और इसकी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के सुधारों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित मदों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. छिलका उतरे हुए अनाज़
  2.  मुर्गी के अंडे पकाए हुए
  3.  संसाधित और डिब्बाबंद मछली
  4.  विज्ञापन सामग्री युक्त समाचार पत्र

उपर्युक्त मदों में से कौन-सी वस्तु/वस्तुएँ जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के अंतर्गत छूट प्राप्त है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'वस्तु एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज़ टैक्स/GST)' के क्रियान्वित किये जाने का/के सर्वाधिक संभावित लाभ क्या है/हैं? (2017)

  1. यह भारत में बहु-प्राधिकरणों द्वारा वसूल किये जा रहे बहुल करों का स्थान लेगा और इस प्रकार एकल बाज़ार स्थापित करेगा।
  2.  यह भारत के 'चालू खाता घाटे' को प्रबलता से कम कर विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने हेतु इसे सक्षम बनाएगा।
  3.  यह भारत की अर्थव्यवस्था की संवृद्धि और आकार को वृहद् रूप से बढ़ाएगा और उसे निकट भविष्य में चीन से आगे निकलने में सक्षम बनाएगा।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


मेन्स

प्रश्न. वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 के तर्काधार की व्याख्या कीजिये। कोविड-19 ने कैसे वस्तु एवं सेवा कर क्षतिपूर्ति निधि को प्रभावित किया है और नए संघीय तनावों को उत्पन्न किया है? (2020)

प्रश्न. उन अप्रत्यक्ष करों को गिनाइये जो भारत में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सम्मिलित किये गए हैं। भारत में जुलाई 2017 से क्रियान्वित जीएसटी के राजस्व निहितार्थों पर भी टिप्पणी कीजिये। (2019)

प्रश्न. संविधान (101वाँ संशोधन) अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये। क्या आपको लगता है कि यह "करों के प्रपाती प्रभाव को दूर करने और वस्तुओं और सेवाओं के लिये सामान्य राष्ट्रीय बाज़ार प्रदान करने" हेतु पर्याप्त रूप से प्रभावी है? (2017)


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