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जैव विविधता और पर्यावरण

धातु खनन प्रदूषण

  • 09 Oct 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

धातु खनन प्रदूषण, धातु खनन स्थल, धातु अयस्क, अवशेष, अपशिष्ट निपटान, जल प्रदूषण

मेन्स के लिये:

धातु खनन प्रदूषण और पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका प्रभाव

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम के लिंकन विश्वविद्यालय ने एक अध्ययन प्रकाशित किया है, जिसमें विश्व भर की नदियों और बाढ़कृत मैदानों में धातु खनन के कारण होने वाले प्रदूषण के व्यापक प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है।

अध्ययन की अनुसंधान पद्धति:

  • इस अध्ययन में अपशिष्ट भंडारण के लिये इच्छित निपटान स्थल तथा सक्रिय और निष्क्रिय दोनों धातु खनन स्थलों से संदूषण का प्रतिनिधित्व करने वाले महत्त्वपूर्ण तत्त्व शामिल थे।
  • इस अध्ययन में सीसा, जस्ता, तांबा और आर्सेनिक सहित अन्य खतरनाक पदार्थों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया गया।
    • पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिये हानिकारक ये तत्त्व लंबे समय तक खनन स्थलों से उनके निचले भाग में एकत्रित होते रहते हैं।
    • प्रकाशित अध्ययन खनन से होने प्रदूषण के स्थायी और दूरगामी परिणामों पर प्रकाश डालता है।
  • शोध के दौरान कुछ देशों से सीमित डेटा ही प्राप्त हो सका, ऐसे में इस डेटा को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान टीम ने अध्ययन द्वारा प्रस्तुत की गई उनकी जानकारी को अनुमानित माना है
    • इसका मतलब है कि खनन के कारण होने वाले प्रदूषण का प्रभाव और भी अधिक व्यापक होने की संभावना है, यह इसके प्रभावों के गहन मूल्यांकन हेतु व्यापक और सटीक डेटा की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:

  • प्रदूषण संवेदनशीलता स्तर:
    • खनन के दौरान निकलने वाले अपशिष्टों को लगातार नदियों में छोड़े जाने से यह प्रदूषण बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करता है, जो कि टेलिंग डैम (खनन के उपोत्पादों को संग्रहीत करने के लिये उपयोग किया जाने वाला तटबंध) की विफलता से प्रभावित होने वाले लोगों की तुलना में लगभग 50 गुना अधिक होता है।
  • जनसंख्या और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:
    • लगभग 23.48 मिलियन लोगों की एक बड़ी आबादी खनन कार्य के दौरान निकलने वाले अपशिष्ट से प्रभावित बाढ़कृत मैदानों में रहती है, इसके अतिरिक्त इन मैदानों में रहने वाली पशुधन आबादी लगभग 5.72 मिलियन है।
    • इसके अलावा ये क्षेत्र 65,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक सिंचित भूमि को कवर करते हैं।
  • अध्ययन का महत्त्व:
    • यह पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर खनन के दूरगामी प्रभावों का आकलन करने के लिये एक अभूतपूर्व पूर्वानुमान मॉडल प्रदान करता है।
    • यह सरकारों, पर्यावरण विनियामकों, खनन उद्योग और स्थानीय समुदायों को पर्यावरणीय धारणीयता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर बल देते हुए, सूचित निर्णय लेने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन प्रदान करता है।
    • यह शोध खनन के पारिस्थितिक फुटप्रिंट को कम करते हुए हरित ऊर्जा की ओर वैश्विक संक्रमण हेतु काफी महत्त्वपूर्ण है, विशेष रूप से ऐसे आधुनिक युग में जहाँ धारणीय खनन प्रथाओं को तेज़ी से प्राथमिकता दी जा रही है।
  • कार्रवाई की मांग:
    • यह अध्ययन धातु खनन उद्योग के पारिस्थितिक और स्वास्थ्य प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिये उन्नत वैश्विक डेटा संग्रह एवं निगरानी प्रणालियों की आवश्यकता पर बल देता है।
    • यह संबंधित खतरों के प्रभावी निपटान के लिये खनन कार्य से होने वाले प्रदूषण के प्रभावों की अधिक व्यापक समझ की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

धातु खनन प्रदूषण:

  • परिचय:
    • मूल्यवान धातुओं को प्राप्त करने के लिये धातु अयस्कों के निष्कर्षण और प्रसंस्करण के कारण होने वाले प्रदूषण तथा पर्यावरणीय क्षरण को धातु खनन प्रदूषण कहा जाता है।
    • इसमें खनन से जुड़ी विभिन्न गतिविधियाँ शामिल हैं, जिनमें अन्वेषण, निष्कर्षण, परिवहन, प्रसंस्करण एवं अपशिष्ट निपटान शामिल हैं।
    • इन प्रक्रियाओं में अक्सर वायुतंत्र, जलतंत्र और मृदातंत्र में हानिकारक पदार्थ छोड़े जाते हैं जिससे पारिस्थितिक तंत्र, मानव स्वास्थ्य तथा वन्यजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • धातु खनन प्रदूषण के स्रोत:
    • टेलिंग्स: अयस्क से मूल्यवान धातुओं को निकालने के बाद चट्टानों के बचे हुए बारीक कण को टेलिंग्स कहा जाता है। इन अवशेषों में अक्सर पारा, आर्सेनिक, सीसा, कैडमियम और अन्य ज़हरीले पदार्थ जैसे खतरनाक तत्त्व होते हैं जो आस-पास के जल स्रोतों तथा मृदा को दूषित करते हैं।
    • एसिड माइन ड्रेनेज (AMD): खनन की गई चट्टानों में सल्फाइड खनिज के वायु तथा जल के संपर्क में आने से AMD की स्थिति देखी जाती है, जिससे सल्फ्यूरिक एसिड का उत्पादन होता है।
      • यह एसिड/अम्ल नदियों, झरनों तथा भौमजल को दूषित कर सकता है, जिससे जलीय जीवन एवं पारिस्थितिकी तंत्र के लिये एक गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।
    • वायुजनित प्रदूषण: खनन कार्यों के दौरान उत्पन्न धूल तथा कण के वायु में फैलने से भारी धातुएँ एवं अन्य हानिकारक यौगिक जैसे प्रदूषक फैल सकते हैं। ये प्रदूषक खनिकों तथा आस-पास के समुदायों दोनों के लिये स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं।
    • रासायनिक उपयोग: सायनाइड तथा सल्फ्यूरिक एसिड जैसे रसायनों का उपयोग अमूमन धातु निष्कर्षण प्रक्रियाओं में किया जाता है। इन रसायनों के आकस्मिक फैलाव/रिसाव अथवा अपर्याप्त रोकथाम के परिणामस्वरूप मृदा और जल प्रदूषित हो सकता है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय क्षति हो सकती है।

धातु खनन प्रदूषण की रोकथाम हेतु उपाय:

  • कड़े नियम एवं अनुपालन:
    • धातु खनन कार्यों को नियंत्रित करने वाले कठोर पर्यावरणीय नियमों तथा मानकों को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये।
    • इन विनियमों में अनुपालन सुनिश्चित करने तथा प्रदूषण को कम करने के लिये अपशिष्ट का निस्तारण, उत्सर्जन, जल प्रबंधन एवं पुनर्ग्रहण जैसे मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिये।
  • उन्नत अपशिष्ट प्रबंधन:
    • मॉडर्न टेलिंग स्टोरेज फैसिलिटी एवं अपशिष्ट की निस्तारण विधियों के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिये जो प्रदूषण के जोखिम को कम करते हैं। टेलिंग डैम की विफलताओं को रोकने के लिये उचित डिज़ाइन, निगरानी एवं आवधिक मूल्यांकन जैसी रणनीतियों को अपनाना चाहिये।
  • रसायन का ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग:
    • खनन प्रक्रियाओं में रसायनों के ज़िम्मेदारीपूर्ण और नियंत्रित उपयोग को बढ़ावा देना चाहिये। पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये वैकल्पिक, अल्प विषाक्त रसायनों का पता लगाया जाना चाहिये  तथा उनका उपयोग किया जाना चाहिये।  
  • जल प्रबंधन एवं उपचार:
    • खनन कार्यों के दौरान निकलने वाले जल को नियंत्रित तथा उपचारित करने के लिये प्रभावी जल प्रबंधन रणनीतियों को लागू करना चाहिये। इस जल को पर्यावरण में मुक्त करने से पहले इसमें मौजूद हानिकारक पदार्थों को नष्ट करने के लिये जल उपचार तकनीकों का उपयोग करना चाहिये।
  • खदान पुनरूद्धार एवं पुनर्वास:
    • खदान पुनरूद्धार एवं पुनर्वास को खनन कार्यों का एक अभिन्न अंग बनाना चाहिये। पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली तथा जैवविविधता को बढ़ावा देते हुए खनन किये गए क्षेत्रों को पुनः उनकी प्राकृतिक स्थिति में लाने का प्रयास किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्न  

प्रिलिम्स :

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा/से नदी ताल में बहुत अधिक बालू खनन का/के संभावित परिणाम हो सकता है/सकते हैं? (2018) 

  1. नदी की लवणता में कमी
  2. भौमजल का प्रदूषण 
  3. भौम जलस्तर का नीचे चले जाना 

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 तथा 3
(c) केवल 1 तथा 3
(d) 1, 2 तथा 3

उत्तर: (b)

  • बालू खनन नदी तल से अथवा तटीय क्षेत्र से रेत निकालने की प्रक्रिया है।
  • अत्यधिक बालू खनन से जल का पीएच (pH) मान कम होता है, इसमें विभिन्न धातु के ऑक्साइडों का मिश्रण होता है तथा नदी जल में ऑक्सीजन की कमी और वस्तुतः जैविक ऑक्सीजन मांग (BOD) में वृद्धि होती जिसके चलते नदी का जल प्रदूषित होता है। प्रदूषित नदी का जल भौमजल के दूषित होने का कारण बनता है। अत: 2 सही है।
  • धातु के ऑक्साइडों में वृद्धि तथा नदी जल में उनके मिलने से जल की लवणता बढ़ जाती है। अतः 1 सही नहीं है।
  • नदी में जल प्रवाह का आयतन कम हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जल स्तर कम हो जाता है। अत: 3 सही है। अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. तटीय रेत खनन, चाहे कानूनी हो या अवैध, हमारे पर्यावरण के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक है। विशिष्ट उदाहरण देते हुए भारतीय तटों पर रेत खनन के प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2019)

प्रश्न. प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)

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