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भूगोल

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस 2024

  • 13 Dec 2024
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय हिमालयी क्षेत्र, संयुक्त राष्ट्र, खाद्य और कृषि संगठन, पर्वत के प्रकार, भारत में पर्वत शृंखलाएँ

मेन्स के लिये:

भारतीय हिमालयी क्षेत्र का भूगोल, पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र, भारतीय पर्वत शृंखलाएँ

स्रोत: पी. आई. बी

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारतीय हिमालयी क्षेत्र (Indian Himalayan Region- IHR) के संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालने के लिये  अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस 2024 (11 दिसंबर) मनाया।

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस क्या है?

  • परिचय: प्रतिवर्ष 11 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस (International Mountain Day) के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस की स्थापना संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2003 में एक प्रस्ताव पारित करके की थी। पृथ्वी पर मौजूद पर्वत प्रकृति के मुख्य अंग हैं, पर्वतों का संरक्षण करते हुए सतत् विकास को प्रोत्साहित करना तथा पर्वतों के महत्त्व को रेखांकित करने हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करना, इसका मुख्य उद्देश्य है।
    • खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) इस अनुष्ठान के समन्वय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • विषय 2024: “एक सतत् भविष्य के लिये पर्वतीय समाधान- नवाचार, अनुकूलन और युवा”
  • पर्वतों का महत्त्व: पर्वत पृथ्वी की सतह के लगभग पाँचवें भाग पर विस्तृत हैं और विश्व की 15% जनसंख्या का आवास स्थान हैं तथा विश्व के आधे जैवविविधता वाले स्थल भी यहीं पर स्थित हैं।
    • यह "वाटर टावर्स" के रूप में कार्य करते हुए आधी आबादी के लिये आवश्यक शुद्ध जल की आपूर्ति करते हैं तथा कृषि, स्वच्छ ऊर्जा और स्वास्थ्य क्षेत्रों को सहायता प्रदान करते हैं।
    • पर्वत पारिस्थितिकीय निधि हैं। इनके बिना कई देशों की भूमि शुष्क और बंजर हो जाएगी। इनका संरक्षण सतत् विकास के लिये आवश्यक है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) के सबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • भौगोलिक विस्तार: IHR 13 भारतीय राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों तक फैला हुआ है, जिनमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल, असम, नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय तथा भूटान के कुछ हिस्से शामिल हैं।
    • यह पश्चिम से पूर्व तक लगभग 2,500 किमी. तक विस्तृत है।
  • टेक्टोनिक/विवर्तनिक गतिविधि: भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के बीच चल रही टक्कर के कारण IHR टेक्टोनिक रूप से सक्रिय है।
    • इससे हिमालय पर्वतों का निर्माण हुआ और यह क्षेत्र की भूवैज्ञानिक विशेषताओं को आकार दे रहा है।
  • भूवैज्ञानिक विविधता: यह क्षेत्र भूवैज्ञानिक विशेषताओं से समृद्ध है, जिसमें विभिन्न चट्टान संरचनाएँ, दोष रेखाएँ और पठार हैं। हिमालय के विभिन्न भागों में आग्नेय, अवसादी और रूपांतरित चट्टानें पाई जाती हैं।
  • महत्त्व: IHR देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 16.2% हिस्सा कवर करता है।
    • यह क्षेत्र एक जैवविविधता वाला हॉटस्पॉट है, जहाँ अनेक पौधों और जानवरों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ स्थानिक या लुप्तप्राय हैं।
    • यह क्षेत्र गंगा, यमुना, सिंधु और ब्रह्मपुत्र सहित प्रमुख नदी प्रणालियों का स्रोत है।
    • इस क्षेत्र में विभिन्न पारिस्थितिक तंत्र हैं, जिनमें समशीतोष्ण वन, अल्पाइन घास के मैदान, ग्लेशियर और बर्फ से ढकी चोटियाँ शामिल हैं।
    • IHR शीतल, शुष्क आर्कटिक पवनों के लिये अवरोधक के रूप में कार्य करके और मानसून पैटर्न को प्रभावित करके भारतीय उपमहाद्वीप की जलवायु को विनियमित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • यह क्षेत्र अपने वनों के माध्यम से कार्बन अवशोषण में भी मदद करता है, जिससे जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वैश्विक युद्ध (Global Fight) में योगदान मिलता है।
    • IHR भारत और चीन, नेपाल, भूटान तथा पाकिस्तान जैसे कई पड़ोसी देशों के बीच एक प्राकृतिक सीमा के रूप में कार्य करता है।
  • चिंताएँ: 
    • असंवहनीय विकास: वनों की कटाई, हिमालय में जलविद्युत परियोजनाएँ और चार धाम परियोजना जैसी अवसंरचनात्मक  परियोजनाएँ पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करती हैं और आपदाओं में योगदान करती हैं।
    • जलवायु परिवर्तन प्रभाव: ग्लेशियरों के पिघलने और झीलों के विस्तार से बाढ़ का खतरा बढ़ता है, जबकि तापमान में वृद्धि से जल संसाधन प्रभावित होते हैं।
      • हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और सिक्किम में हिमनद झीलों के फटने जैसी घटनाएँ इसके दुष्परिणामों को उजागर करती हैं।
    • सांस्कृतिक क्षरण: IHR स्थायी संसाधन प्रबंधन के लिये मूल्यवान पारंपरिक ज्ञान रखने वाले स्वदेशी समुदायों का आवास है, लेकिन आधुनिकीकरण से इन सांस्कृतिक प्रथाओं के नष्ट होने का खतरा है।
    • बढ़ता पर्यटन:  पर्यटन से प्रतिवर्ष 8 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न होता है तथा अनुमान है कि वर्ष 2025 तक 240 मिलियन पर्यटक पर्यटन क्षेत्र में आएंगे। 
      • इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी खतरे में है, क्योंकि पर्वतीय शहरों में निपटान के लिये जगह की कमी के कारण कचरा अक्सर भूमि, जल और वायु को प्रदूषित कर देता है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र की सुरक्षा हेतु क्या किया जा सकता है?

  • सतत् पर्यटन: पारिस्थितिकी पर्यटन को बढ़ावा देना, वहन क्षमता सीमा लागू करना तथा पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करते हुए स्थानीय लोगों के लिये आय उत्पन्न करने हेतु जागरूकता बढ़ाना।
  • हिमनद जल संग्रहण: कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र को सहारा देने के लिये शुष्क अवधि के दौरान उपयोग हेतु हिमनद पिघले जल को संगृहीत करने तथा संगृहीत करने की विधियों को लागू करना।
  • आपदा तैयारी: क्षेत्र के लिये आपदा प्रबंधन योजनाएँ विकसित करना, जिसमें भूस्खलन, हिमस्खलन और हिमनद झील विस्फोट से होने वाली बाढ़ पर ध्यान केंद्रित किया जाए तथा पूर्व चेतावनी प्रणाली एवं सामुदायिक प्रशिक्षण दिया जाए।
  • ग्रेवाटर पुनर्चक्रण: कृषि उपयोग के लिये घरेलू ग्रेवाटर को पुनर्चक्रित करने हेतु प्रणालियाँ स्थापित करना, जिससे जल सुरक्षा और फसल उत्पादन में वृद्धि हो।
  • जैव-सांस्कृतिक संरक्षण क्षेत्र: प्राकृतिक जैवविविधता और स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाओं दोनों को संरक्षित करने के लिये क्षेत्रों को नामित करना।
  • एकीकृत विकास: पूरे क्षेत्र में सतत् विकास लक्ष्यों के समन्वित विकास और निगरानी के लिये एक “हिमालयी प्राधिकरण” की स्थापना करना।

पर्वतों का निर्माण कैसे होता है?

  • निर्माण: पर्वतों का निर्माण पृथ्वी की पर्पटी के अंदर हलचल से होता है, जिसमें पिघले हुए मैग्मा पर तैरती टेक्टोनिक प्लेटें होती हैं। 
    • ये प्लेटें समय के साथ खिसकती और टकराती रहती हैं, जिससे दबाव बढ़ता है, जिसके कारण पृथ्वी की सतह मुड़ जाती है या बाहर निकल आती है, जिससे पर्वतों का निर्माण होता है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • ऊँचाई: पहाड़ आमतौर पर आसपास की भूमि से ऊँचे होते हैं, जिनकी ऊँचाई अक्सर 600 मीटर से अधिक होती है।
    • खड़ी ढलानें: पहाड़ों में आमतौर पर खड़ी ढलानें होती हैं, हालाँकि कुछ अधिक धीमी हो सकती हैं।
    • शिखर/पीक: किसी पर्वत के शीर्ष को शिखर कहा जाता है, जो प्रायः सबसे ऊँचा बिंदु होता है।
    • पर्वत शृंखला: ऊँचे मैदानों से जुड़े पर्वतों की शृंखला या समूह पर्वत शृंखला बनाते हैं।

पर्वत कितने प्रकार के होते हैं?

  • उत्पत्ति के आधार पर:
    • ज्वालामुखी पर्वत: पृथ्वी की पपड़ी से मैग्मा के विस्फोट से निर्मित, हवाई और फिजी जैसी चोटियों का निर्माण।
    • वलित पर्वत: टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव और वलित होने से निर्मित, जैसे हिमालय और एण्डीज।
    • ब्लॉक पर्वत: ये पर्वत पृथ्वी की पपड़ी के बड़े खंडों के खिसकने और भ्रंश के कारण बनते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सिएरा नेवादा जैसे उभरे या गिरे हुए खंड बनते हैं।
    • गुंबदाकार पर्वत: मैग्मा द्वारा पृथ्वी की पर्पटी को ऊपर की ओर धकेलने से निर्मित, गुंबदाकार संरचना का निर्माण, जो अक्सर ब्लैक हिल्स (अमेरिका) की तरह कटाव के बाद उजागर हो जाती है।
    • पठारी पर्वत: ये पर्वत गुंबदाकार पर्वतों जैसे दिखते हैं, लेकिन इनका निर्माण टेक्टोनिक प्लेटों के टकराने से होता है, जो भूमि को ऊपर धकेलते हैं, तथा अपक्षय और अपरदन के कारण इनका आकार बनता है।
  • उत्पत्ति की अवधि के आधार पर:
    • प्रीकैम्ब्रियन पर्वत: प्रीकैम्ब्रियन पर्वत, प्रीकैम्ब्रियन युग (4.6 अरब से 541 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान निर्मित प्राचीन श्रेणियाँ हैं।
      • अरबों वर्षों में इनका व्यापक क्षरण और कायापलट हुआ है, जिसके कारण ये अपने पीछे अवशिष्ट संरचनाएँ (जैसे, भारत में अरावली) छोड़ गए हैं।
    • कैलेडोनियन पर्वत: लगभग 430 मिलियन वर्ष पहले (जैसे, अप्पलाचियन) बने।
    • हर्सीनियन पर्वत: इन पर्वतों की उत्पत्ति कार्बोनिफेरस से पर्मियन काल (लगभग 340 मिलियन वर्ष और 225 मिलियन वर्ष) के बीच हुई (जैसे, यूराल पर्वत)।
    • अल्पाइन पर्वत: तृतीयक काल (66 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान निर्मित सबसे युवा पर्वत प्रणालियाँ (जैसे, हिमालय, आल्प्स)।

भारत में पर्वत शृंखलाओं के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • हिमालय: भारत की सबसे प्रसिद्ध और सबसे ऊँची पर्वत शृंखला, जो भारत और तिब्बत की सीमा पर 2,900 किलोमीटर तक फैली हुई है। 
    • हिमालय को तीन मुख्य श्रेणियों में बाँटा गया है, हिमाद्रि (महान हिमालय या आंतरिक हिमालय), हिमाचल (लघु हिमालय), शिवालिक (बाहरी हिमालय)
    • माउंट एवरेस्ट (सागरमाथा/चोमोलुंगमा) हिमालय और विश्व की सबसे ऊँची चोटी है, जो समुद्र तल से 8,848.86 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इस पर्वतमाला की अन्य उल्लेखनीय चोटियों में K2, कंचनजंगा और मकालू शामिल हैं।
  • पश्चिमी घाट: पश्चिमी घाट (सह्याद्रि पहाड़ियाँ) भारत के पश्चिमी तट के समानांतर फैली हुई हैं और इनकी औसत ऊँचाई लगभग 1,200 मीटर है। 
    • सबसे ऊँची चोटी अनमुदी है। पश्चिमी घाट अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिये जाने जाते हैं और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं।
    • पश्चिमी घाट अरब सागर में भूमि के नीचे की ओर खिसकने से निर्मित खंड पर्वत हैं।
    • पूर्वी घाट: पूर्वी घाट भारत के पूर्वी तट के समानांतर चलता है। सबसे ऊँची चोटी 1,680 मीटर ऊँची अरमा कोंडा है। 
  • अरावली पर्वतमाला: विश्व की सबसे पुरानी पर्वतमालाओं में से एक, जो उत्तर-पश्चिमी भारत में लगभग 800 किलोमीटर तक फैली हुई है। सबसे ऊँची चोटी गुरु शिखर है जिसकी ऊँचाई 1,722 मीटर है।
  • विंध्य पर्वतमाला: विंध्य पर्वतमाला मध्य भारत में फैली हुई है और अपने ऐतिहासिक महत्त्व के लिये जानी जाती है। इसका सबसे ऊँचा बिंदु सद्भावना शिखर है जो 752 मीटर ऊँचा है।
    • विंध्य पर्वतमाला मालवा पठार के दक्षिण में स्थित है और नर्मदा घाटी के समानांतर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है।
  • सतपुड़ा पर्वतमाला: मध्य भारत में स्थित इस पर्वतमाला में धूपगढ़ जैसी चोटियाँ हैं, जो 1,350 मीटर ऊँची है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: वलित पर्वतों के विशेष संदर्भ में पर्वत निर्माण की प्रक्रिया तथा भारतीय उपमहाद्वीप के लिये उनके महत्त्व की व्याख्या कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: जब आप हिमालय में यात्रा करेंगे, तो आपको निम्नलिखित को देखेंगें: (2012)

  1. गहरे खड्डे 
  2. U घुमाव वाले नदी-मार्ग 
  3. समानांतर पर्वत शृंखलाएँ
  4. भूस्खलन के लिये उत्तरदायी तीव्र ढाल प्रवणता 

उपर्युक्त में से कौन-से हिमालय के तरुण वलित पर्वत (नवीन मोड़दार पर्वत) के साक्ष्य कहे जा सकता हैं?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 1, 2 और 4 
(c) केवल 3 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (D)


मेन्स

Q. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013)

Q. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भूस्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021)

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