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जैव विविधता और पर्यावरण

हिमालयी हिमनद झीलों का तीव्र विस्तार

  • 11 Dec 2024
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF), हिंदू कुश हिमालय, सिंथेटिक-एपर्चर रडार इमेजरी

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT), ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), EWS, राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), ITBP  

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने एक समाचार रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए हाल ही में केंद्र सरकार को हिमालयी हिमनद झीलों में होने वाली तीव्र वृद्धि (जिनमें बढ़ते तापमान के कारण पिछले 13 वर्षों में लगभग 10.81% तक की वृद्धि हुई है) के संबंध में नोटिस जारी किया है।

हिमनद झीलें क्या हैं? 

  • परिचय: हिमनद झील, हिमनद से निर्मित होती हैं। यह आमतौर पर हिमनद के आधार पर बनती हैं लेकिन यह हिमनद के ऊपर, अंदर या नीचे भी विकसित हो सकती हैं।
  • निर्माण: हिमनद झीलें तब बनती हैं जब ग्लेशियर द्वारा भूमि का कटाव होता है, जिससे गड्ढे बनते हैं और यह ग्लेशियर के पिघले जल से भर जाते हैं।
    • बर्फ या हिमोढ़ से बने प्राकृतिक बाँध से भी हिमनद झीलों का निर्माण हो सकता है लेकिन ये बाँध अस्थिर होने के साथ इनके फटने की संभावना से बाढ़ आ सकती है।
  • हिमनद झील का विस्तार: NGT ने इस रिपोर्ट के इस निष्कर्ष पर प्रकाश डाला है कि भारत में हिमनद झीलों के सतही क्षेत्र में वर्ष 2011 से 2024 तक 33.7% की वृद्धि हुई है, जिसमें 67 झीलों की पहचान GLOF (ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड) के संदर्भ में उच्च जोखिम के रूप में की गई है।
  • इससे लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे और मानव जीवन के लिये बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है।
  • ग्लेशियल झील विस्तार के कारण:
    • ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय में तापमान में वृद्धि हुई है, जिससे ग्लेशियर पिघलने की गति तीव्र हो रही है।
    • पीछे हटते ग्लेशियर झीलों में जल पहुँचाते हैं और नई भूमि सतह को उजागर करते हैं, जिससे नई हिमनद झीलों के निर्माण में सहायता मिलती है।
    • पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से जल-एकत्रित करने वाले गड्ढे निर्मित होते हैं, तथा हिमनद झीलें विस्तृत होती हैं, क्योंकि इससे प्राकृतिक जल निकासी अवरोध समाप्त हो जाता है।

GLOF क्या है?

  • ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF ) तब होती है जब हिमनद झील का बाँध टूट जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में जल निकलता है, जो प्राय: ग्लेशियर के तीव्रता से पिघलने या भारी वर्षा के कारण  होता है।
  • ये बाढ़ें ग्लेशियर के आयतन में परिवर्तन, झील के जल स्तर में उतार-चढ़ाव और भूकंप के कारण उत्पन्न हो सकती हैं।
  • भारत में जीएलओएफ के मामले
    • जून 2013 में उत्तराखंड में सामान्य से अधिक वर्षा हुई थी, जिसके कारण चोराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया था और मंदाकिनी नदी में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हुई थी।
    • अगस्त 2014 में लद्दाख के ग्या गाँव में एक हिमनद झील के फटने से बाढ़ आई थी।
    • अक्तूबर 2023 में, राज्य के उत्तर-पश्चिम में 17,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित दक्षिण ल्होनक झील, एक हिमनद झील, लगातार वर्षा के परिणामस्वरूप टूट गई।

हिमालय में हिमनदी झीलों के तीव्रता से विस्तार की चिंताएँ क्या हैं?

  • निचले क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों पर प्रभाव: निचले क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों को विस्थापन, जान-माल की हानि और संपत्ति की क्षति का सामना करना पड़ता है, तथा बाढ़ के कारण कृषि भी गंभीर रूप से प्रभावित होती है।
  • कई उच्च जोखिम वाली झीलों में निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणालियों का अभाव है, जिसके कारण समुदाय तैयार नहीं हो पाते। 
    • NGT ने लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में 67 झीलों के लिये इस मुद्दे को प्रदर्शित किया, तथा आपदा तैयारी कानूनों के कमज़ोर प्रवर्तन को इंगित किया।
  • फीडबैक लूप: वैश्विक तापमान में वृद्धि से हिमनदों का तीव्रता से निवर्तन हो रहा है जिससे हिमनदीय झीलों का विस्तार हो रहा है और जोखिम बढ़ रहा है। 
    •  IPCC की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में हिमालय के हिमनदों के निवर्तन की तीव्र दर पर प्रकाश डाला गया है, जिससे जलवायु जनित खतरे और भी गंभीर हो रहे हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की सुभेद्यता: सड़कें, पुल और जलविद्युत संयंत्र जैसे महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे GLOF-जनित बाढ़ के प्रति सुभेद्य हैं, जिससे गंभीर क्षति, आर्थिक नुकसान और विकास में देरी होती है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र और जैवविविधता में व्यवधान: हिमनदीय झीलों से जनित बाढ़ से तलछट तथा जल प्रवाह में परिवर्तन होता है, जिससे जलीय जैवविविधता प्रभावित होती है और आवासों में व्यवधान उत्पन्न होता है, जैसा कि 2023 में सिक्किम में जनित बाढ़ में देखा गया था, जिससे नदी के अनुप्रवाह क्षेत्र का  पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हुआ था।
  • अन्य आपदाओं की उत्पत्ति: हिम गलन और जल के बढ़ते दबाव के कारण ढालों में होने वाली अस्थिरता से भूस्खलन हो सकता है। GLOF और भूस्खलन के अतिरिक्त, हिमनदीय झीलों के तेज़ी से विस्तार से भी निम्नवत घटनाएँ हो सकती हैं:
    • मलवा प्रवाह: हिमनदों के निरंतर निवर्तन से अससंजक पदार्थों का उद्भासन होता है, जिनका भीषण वर्षा अथवा भूकंपी सक्रियता के दौरान संचलन हो सकता है जिससे मलवा प्रवाह की उत्पत्ति हो सकती है जो लोगों के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
    • क्षरण: हिमनद झीलों में जल स्तर बढ़ने से तट का क्षरण बढ़ सकता है, जिससे आवास नष्ट हो सकता है और कृष्य भूमि का नुकसान हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन प्रभाव: हिमनद झीलों का विस्तार प्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से तापमान वृद्धि के कारण, जिससे हिमनदों का गलन तीव्र हो रहा है। 
    • हिमालय के ग्लेशियर, जो यांग्त्ज़ी और गंगा जैसी नदियों के लिये महत्वपूर्ण हैं, एक अरब से अधिक लोगों को पोषण प्रदान करते हैं, तथा जल संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण पर्यावरणीय परिवर्तनों को उजागर करते हैं।
    • यांग्त्ज़ी और गंगा जैसी नदियों के लिये महत्त्वपूर्ण हिमालय के हिमनद, एक अरब से अधिक लोगों को सहायता प्रदान करते हैं, जो दर्शाता है कि पर्यावरणीय परिवर्तनों से जल संसाधन और पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित होते हैं।

हिमनदीय झीलों के विस्तार को रोकने हेतु कौन-सी जोखिम न्यूनीकरण कार्यनीति अपनाई जा सकती है?

  • उन्नत निगरानी प्रणाली: हिमनदीय झीलों के लिये व्यापक निगरानी प्रणाली स्थापित करना महत्त्वपूर्ण है। इसमें झील के आयतन और सतह क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को ट्रैक करने के लिये उपग्रह अनुवीक्षण और थल आधारित आकलन शामिल है, जिससे उभरते खतरों के लिये समय पर अनुक्रिया करना संभव हो सकेगा।
    • मानसून के महीनों के दौरान नई झीलों के निर्माण सहित जल निकायों में होने वाले परिवर्तनों का स्वचालित रूप से पता लगाने के लिये सिंथेटिक-एपर्चर रडार इमेजरी (रडार का एक रूप जिसका उपयोग दो-आयामी चित्र बनाने हेतु किया जाता है) के उपयोग को बढ़ावा देना।
  • प्रारंभिक चेतावनी तंत्र: GLOF के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने से आपदा जोखिम में उल्लेखनीय कमी आ सकती है। इन प्रणालियों को संभावित विस्फोट घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने और स्थानीय समुदायों को प्रभावी ढंग से जोखिमों के बारे में बताने के लिये मौसम संबंधी डेटा को हाइड्रोलॉजिकल मॉडल के साथ एकीकृत करना चाहिये।
  • सीमापार जल प्रबंधन: चूंकि कई हिमालयी नदियाँ राष्ट्रीय सीमाओं को पार करती हैं, इसलिये हिमनद परिवर्तनों से प्रभावित जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। 
    • सहयोगात्मक ढाँचे पड़ोसी देशों के बीच डेटा, सर्वोत्तम प्रथाओं और संसाधनों को साझा करने में मदद कर सकते हैं।
  • वित्तपोषण और संसाधन जुटाना: वित्तपोषण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ मिलकर काम करने से बुनियादी ढाँचे के विकास को समर्थन मिल सकता है, जिसका उद्देश्य हिमनद झील के विस्तार से जुड़े आपदा जोखिमों को कम करना है। 
  • स्थानीय जनशक्ति को प्रशिक्षण: राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) जैसे विशेष बलों को शामिल करने के अलावा NDMA प्रशिक्षित स्थानीय जनशक्ति की आवश्यकता पर बल देता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न: हिमालय की ग्लेशियल झीलों के तेज़ी से विस्तार के कारण भारत में प्राकृतिक आपदा जोखिम पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये। पर्यावरणीय नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए इन जोखिमों को कम करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: जब आप हिमालय की यात्रा करेंगे, तो आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)

  1. गहरे खड्डे
  2. U धुमाव वाले नदी-मार्ग
  3. समानांतर पर्वत श्रेणियाँ
  4. भूस्खलन के लिये उत्तरदायी तीव्र ढाल प्रवणता

उपर्युक्त में से कौन-से हिमालय के तरुण वलित पर्वत (नवीन मोड़दार पर्वत) के साक्ष्य कहे जा सकते हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न: बाँधों की विफलता हमेशा प्रलयकारी होती है, विशेष रूप से नीचे की ओर, जिसके परिणामस्वरूप जीवन और संपत्ति का भारी नुकसान होता है। बाँधों की विफलता के विभिन्न कारणों का विश्लेषण कीजिये। बड़े बाँधों की विफलताओं के दो उदाहरण दीजिये। (2023)

प्रश्न: पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013)

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