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भारतीय अर्थव्यवस्था

कॉरपोरेट टैक्स में कटौती

  • 23 Sep 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

सरकार ने GST परिषद की बैठक में आर्थिक विकास, निवेश और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कॉरपोरेट कर की दर में कटौती की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु:

  • ये बदलाव कराधान कानून (संशोधन) अध्यादेश 2019 के तहत लागू किये गए हैं। इस अध्यादेश के माध्यम से आयकर अधिनियम, 1961 तथा वित्त अधिनियम, 2019 में बदलाव किये जाएंगे।
  • कंपनियों के लिये कॉरपोरेट कर की आधार दर 30% से घटाकर 22% कर दी गई है। इससे कॉरपोरेट कर की प्रभावी दर 34.94% से कम होकर 25.17% पर आ जाएगी, जिसमें अधिभार और उपकर शामिल हैं। इसके अतिरिक्त इन कंपनियों को न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternative Tax- MAT) देने की भी आवश्यकता नहीं है।
  • विनिर्माण के क्षेत्र में अक्तूबर 2019 या उसके बाद स्थापित होने वाली तथा 31 मार्च, 2023 से पहले उत्पादन शुरू करने वाली कंपनियों के लिये कॉरपोरेट कर की आधार दर 25% से घटाकर 15% कर दी गई है। इससे इन कंपनियों के लिये प्रभावी कॉरपोरेट कर की दर 29.12% से कम होकर 17.01% पर आ जाएगी। इन कंपनियों को भी न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternative Tax- MAT) से छूट प्राप्त है।
  • कर छूट और प्रोत्साहन का लाभ उठा रही कंपनियों को राहत देने के लिये न्यूनतम वैकल्पिक दर (MAT) को 18.5% से घटाकर 15% करने की घोषणा की गई।

इस कदम के निहितार्थ:

देश की विकास दर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में घटकर 5% के स्तर पर पहुँच गई है जो पिछले छह वर्षों में सबसे न्यूनतम स्तर है। कृषि क्षेत्र से लेकर विनिर्माण उद्योग तक अलग-अलग क्षेत्रों में आर्थिक मंदी की स्थिति व्याप्त है। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था में सकारात्मकता लाने के उद्देश्य से यह कदम उठाया गया।

लाभ:

  • निजी क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे राजस्व एवं आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
  • निजी निवेश आकर्षित होगा,जिससे प्रतिस्पर्द्धा और रोज़गार के अवसर सृजित होंगें।
  • पूंजीगत लाभ में वृद्धि होगी, जिससे बचत को बढ़ावा मिल सकता है।

Corporate Tax

  • देश के विनिर्माण क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करना अब कहीं अधिक आसान होगा, जिससे मेक इन इंडिया (Make In India) को बढ़ावा मिलेगा।
  • इस पहल से कुछ क्षेत्र लाभान्वित हो सकते हैं, जैसे- बैंकिंग, ऑटोमोबाइल सेक्टर, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम आदि।
  • गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (Non-Banking Financial Companies- NBFC) से संबंधित क्षेत्रकों में बचत को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है।
  • अमेरिका-चीन के मध्य व्यापार युद्ध से प्रभावित, कंपनियाँ जो नए विकल्प तलाश रहीं हैं, वे भारत की तरफ रुख कर सकतीं हैं।
  • वर्तमान कटौती भारत को दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धी बनाएगी।
  • सरकार की इस पहल का उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र में सकारात्मक असर पड़ सकता है।
  • इससे शेयर बाज़ार के निवेशक सकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकतें हैं। कर में बचत से कंपनियाँ होने वाले लाभों का फायदा अपने निवेशकों को देंगी, जिससे बाज़ार में तेज़ी आएगी।

निगम कर (Corporative Tax):

यह एक प्रकार का प्रत्यक्ष कर है, जो कंपनियों के लाभ पर लगाया जाता है। इसी कारण इसे “कंपनी लाभ कर” भी कहा जाता है। कॉरपोरेट टैक्स केंद्र सरकार द्वारा आरोपित एवं एकत्रित किया जाता है। यह राज्यों के मध्य विभाजित नहीं होता है।

  • वर्तमान में निगम कर भारत सरकार के राजस्व प्राप्त करने का सबसे बड़ा स्रोत बना हुआ है।
  • भारत में 1960-61 के पूर्व कंपनियों पर जो कर लगता था, उसे ‘सुपर टैक्स’ (Super Tax) कहा जाता था। 1960-61 में इसे समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर कंपनियों के निवल लाभ पर जो कर लगाया गया उसे ‘निगम कर’ कहा जाने लगा।
  • इसे कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत पंजीकृत निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्रकार की कंपनियों एवं निगमों पर लगाया जाता है।

न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternative Tax) :

इसके तहत किसी कंपनी को अपने पिछले वर्ष के संदर्भ में प्राप्त आय पर कर देना होता है, जहाँ लेखा पुस्तक की आय को कंपनी की कुल आय माना जाता है और कंपनी की उस आय पर न्यूनतम वैकल्पिक कर (MAT) देय होता है।

चुनौतियाँ:

  • इस प्रोत्साहन से मध्यावधि में निवेश को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन इससे होने वाले राजस्व नुकसान से केंद्र के राजकोषीय घाटे की स्थिति खराब हो सकती है।
  • कॉरपोरेट क्षेत्र में कटौती पूरी तरह से आपूर्ति वाले पक्ष के लिये उठाया गया कदम है, जबकि वास्तविक समस्या मांग की कमी को दूर करना है।
  • लाभ प्राप्त करने वाली कंपनियों को शर्तों का पालन करना होगा, जिससे कानूनी समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • कॉरपोरेट कर में कटौती के चलते केंद्र से राज्यों को मिलने वाले कर में कटौती आएगी, इससे राज्यों का राजकोषीय घाटा नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकता है।
  • निजी पूंजी निवेश चक्र बहाल होने में देरी हो सकती है।
  • व्यक्तिगत आमदनी न बढ़ने से मांग के स्तर पर तत्काल लाभ सीमित रहेंगे।

आगे की राह

  • मांग की कमी को दूर करने के लिये सार्वजनिक क्षेत्र में बुनियादी ढाँचे पर भारी निवेश करना होगा।
  • अवसरंचनात्मक सुधारों के माध्यम से आर्थिक मंदी को दूर किया जा सकता है।
  • छोटे व्यवसायों में भी कर कटौती को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
  • लंबित पड़े श्रम सुधारों एवं औद्योगिक विवाद से जुड़े जटिल कानूनों में सुधार किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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