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डेली न्यूज़

  • 27 Jan, 2025
  • 65 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का राजकोषीय समेकन

प्रिलिम्स के लिये:

राजकोषीय घाटा, GDP, राजकोषीय समेकन, राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2003, कर चोरी, मुद्रास्फीति, मुद्रा विनिमय दर, राजस्व घाटा, मध्यम अवधि राजकोषीय नीति विवरण, मैक्रोइकॉनॉमिक फ्रेमवर्क विवरण, राजकोषीय नीति रणनीति विवरण, प्रभावी राजस्व घाटा, एन.के. सिंह समिति, राजकोषीय परिषद, प्राथमिक घाटा, MSME, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

मेन्स के लिये:

अर्थव्यवस्था में राजकोषीय समेकन का महत्त्व, राजकोषीय समेकन में भारत का प्रदर्शन और संबंधित चिंताएँ

स्रोत: लाइव मिंट 

चर्चा में क्यों?

भारत ने अपने राजकोषीय घाटे को वित्त वर्ष 2020-21 में महामारी काल के सकल घरेलू उत्पाद के 9.2% के उच्च स्तर से घटाकर वित्त वर्ष 2023-24 में अनुमानित 5.6% कर दिया है, जबकि वित्त वर्ष 2024-25 में इसे 4.9% किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । 

राजकोषीय समेकन क्या है?

  • राजकोषीय समेकन का तात्पर्य दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये  सरकारी वित्त के विवेकपूर्ण प्रबंधन से है।
    • यह सरकारी राजस्व (कर और गैर-कर प्राप्तियाँ) को व्यय के साथ संतुलित करने पर केंद्रित है, जिसका उद्देश्य राजकोषीय घाटे को न्यूनतम करना, लोक ऋण को नियंत्रित करना और सतत् आर्थिक विकास में सहायता करना है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • विवेकपूर्ण व्यय: बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे आवश्यक, कुशल और उत्पादक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
    • राजस्व अनुकूलन: कर संग्रह को अधिकतम करना, कर चोरी को कम करना और कर आधार को व्यापक बनाना।
    • घाटा नियंत्रण: अत्यधिक उधार लेने से बचने के लिये राजकोषीय घाटे को सीमित किया जाता है।
    • ऋण प्रबंधन: आर्थिक संकटों से बचने के लिये लोक ऋण को धारणीय बनाए रखना।
    • जवाबदेही: अंकेक्षण और विनियमों के अनुपालन के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
  • महत्त्व:
    • समष्टि आर्थिक स्थिरता: इसके माध्यम से सरकारी उधारी में कमी ला कर (मुद्रा का अल्प परिसंचरण) मुद्रास्फीति नियंत्रित होती है, मुद्रा विनिमय दरों में स्थिरता आती है (विनिमय दरों की अस्थिरता में कमी ला कर) और स्थिर आर्थिक विकास सुनिश्चित होता है।
    • ऋण बोझ में कमी: इससे अधारणीय उधारी से बचा जा सकता है, जिससे भावी पीढ़ियों पर बोझ कम हो जाता है।
    • निवेशक विश्वास: घरेलू और विदेशी निवेश आकर्षित करते हुए सुदृढ़ आर्थिक प्रबंधन होता है।
    • कुशल संसाधन उपयोग: इससे व्यर्थ व्यय की रोकथाम होती है और यह सुनिश्चित होता है कि संसाधन विकास प्राथमिकताओं की ओर निर्देशित हों।

राजकोषीय समेकन से आर्थिक स्थिरता और विकास किस प्रकार प्रभावित होता है?

  • मुद्रास्फीति नियंत्रण: FRBM अधिनियम, 2003 के तहत, सरकार की उधारी को कम करते हुए वित्तीय वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा GDP का 3.4% हो गया जो वित्तीय वर्ष 2013-14 में GDP का 4.5% था।
    • अत्यधिक उधारी और सरकारी खर्च पर अंकुश लगाकर, राजकोषीय समेकन कीमतों को स्थिर रखने और मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद करता है। 
  • पूंजीगत व्यय में वृद्धि: कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने MSME और विस्थापित व्यक्तियों जैसे क्षेत्रों पर वित्तीय राहत पर ध्यान केंद्रित किया, जबकि पूंजीगत व्यय को प्राथमिकता दी, जो वित्त वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.6% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 3.2% हो गया।
    • इससे सुभेद्य क्षेत्रों पर नकारात्मक आर्थिक प्रभाव को कम करने में मदद मिली और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे में सुधार हुआ जिससे दीर्घकालिक आर्थिक विकास सुनिश्चित हुआ। 
  • राजस्व संग्रहण: कर प्रणाली के डिजिटलीकरण से कर संग्रह में अधिक दक्षता आई है, जिससे कर प्राप्तियाँ वित्त वर्ष 2014-15 में सकल घरेलू उत्पाद के 10% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023-24 में 11.8% हो गई हैं।
    • कर राजस्व में वृद्धि से सरकार की लोक सेवाओं में निवेश करने की क्षमता का वर्द्धन हुआ।
  • दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार: भारत ने घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना शुरू की।
    • इससे वैश्विक व्यापार व्यवधानों और भू-राजनीतिक तनावों के प्रभावों को कम करने में मदद मिली तथा वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद स्थिर विकास सुनिश्चित हुआ।
  • क्षमता निर्माण: राजकोषीय घाटे में क्रमिक कमी के साथ, भारत निर्यात में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन गया, आयात पर इसकी निर्भरता कम हो गई तथा इसके व्यापार संतुलन में सुधार हुआ। 
    • जैसे-जैसे राजकोषीय घाटा कम हुआ और अर्थव्यवस्था अधिक स्थिर हुई, निर्यात में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हुआ।

FRBM अधिनियम, 2003 क्या है?

  • परिचय: राजकोषीय घाटे को कम करने और राजकोषीय उत्तरदायित्व को बढ़ावा देने के लिये सरकार में वित्तीय समेकन स्थापित करने हेतु वर्ष 2003 में FRBM अधिनियम अधिनियमित किया गया था। 
  • मुख्य विशेषताएँ: संघ और राज्यों द्वारा राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3% (संघ) और GSDP (राज्य) के 3% तक कम करना तथा वर्ष 2008 तक राजस्व घाटे को समाप्त करना।  
    • केंद्रीय बजट के साथ मध्यम अवधि की राजकोषीय नीति, व्यापक आर्थिक ढाँचा और राजकोषीय नीति रणनीति विवरण प्रस्तुत करना।
  • छूट संबंधी खंड: FRBM अधिनियम, 2003 की धारा 4(2) के तहत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा/युद्ध की स्थिति, राष्ट्रीय आपदा आदि जैसी स्थितियों में गंभीर आर्थिक संकट के समय अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सकल घरेलू उत्पाद के 0.5% तक बढ़ा सकती है।
  • संशोधन: वर्ष 2012 में इसमें संशोधन करके 0% राजस्व घाटे की आवश्यकता को हटा दिया गया तथा इसके स्थान पर वर्ष 2015 तक 0% प्रभावी राजस्व घाटा अनिवार्य कर दिया गया।
    • प्रभावी राजस्व घाटा का तात्पर्य राजस्व घाटे में से उस धनराशि को घटाना है जो पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये राज्यों को दी गई है।
    • वर्ष 2016 में इस अधिनियम के लक्ष्यों की कठोरता को देखते हुए इसमें सुधार का सुझाव देने के लिये एन.के. सिंह समिति का गठन किया गया था।

एन.के. सिंह समिति की सिफारिशें: 

  • विचलन: केंद्र और राज्य दोनों सरकारें राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सकल घरेलू उत्पाद के 0.5% तक बढ़ा सकती हैं।
    • 0% का प्राथमिक घाटा लक्ष्य वर्ष 2022-23 तक स्थानांतरित किया गया (पहले के वर्ष 2020-21 से)।
      •  प्राथमिक घाटा सरकार के राजकोषीय घाटे और मौजूदा सार्वजनिक ऋण पर ब्याज भुगतान के बीच का अंतर है।
  • प्राथमिक लक्ष्य के रूप में ऋण: कठोर राजकोषीय घाटे के लक्ष्य के बजाय ऋण में कमी पर ध्यान केंद्रित करना।
  • राजकोषीय परिषद: राजकोषीय नीति की देखरेख के लिये स्वतंत्र सदस्यों वाली एक स्वायत्त राजकोषीय परिषद का गठन।
  • उधार: RBI से उधार लेने पर प्रतिबंध, केवल विशिष्ट मामलों में ही इसकी अनुमति जैसे:
    • प्राप्तियों में अस्थायी कमी को पूरा करना।
    • लक्ष्य से विचलन के क्रम में RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद।
    • कुछ परिस्थितियों में RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों को सब्सक्राइब करना।

भारत के राजकोषीय सुदृढ़ीकरण में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • कल्याण से समझौता: आलोचकों का तर्क है कि राजकोषीय घाटे को कम करने पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने से आर्थिक विकास के लिये आवश्यक खर्च सीमित हो सकता है तथा लोक कल्याण कार्यक्रमों पर नकारात्मक प्रभाव (क्योंकि 3% GDP लक्ष्य बहुत महत्त्वाकांक्षी है) पड़ सकता है।  
  • भू-राजनीतिक तनाव: जटिल विनियमन और टैरिफ के साथ व्यापार की गतिशीलता में बदलाव से राजकोषीय स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है और घरेलू उद्योगों एवं आत्मनिर्भरता का समर्थन करने के क्रम में सरकारी खर्च पर दबाव बढ़ सकता है। उदाहरण के लिये, ट्रंप की टैरिफ संबंधी धमकियाँ।
  • अस्थिर पूंजी प्रवाह: विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ब्याज दरों में वृद्धि के कारण भारत में पूंजी प्रवाह अस्थिर होता है। अप्रत्याशित बहिर्वाह से राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है या मुद्रा स्थिरता पर दबाव पड़ सकता है।
  • राज्यों के घाटे में वृद्धि: कई राज्य बढ़ते राजकोषीय घाटे (जो GSDP के अनुशंसित 3% से अधिक है) से ग्रस्त हैं। उदाहरण के लिये, हिमाचल प्रदेश (4.7%), आंध्र प्रदेश (4.2%)
    • इसके अलावा कई राज्यों में ऋण-GDP अनुपात में वृद्धि देखी जा रही है।
  • पूंजीगत व्यय को बनाए रखना: राजकोषीय घाटे को बढ़ाए बिना पूंजीगत निवेश का 3.2% बनाए रखना उच्च उधार लागत, कम कर अनुपालन एवं संग्रहण आदि के कारण एक चुनौती है।

आगे की राह

  • कर सुधार: कर आधार में सुधार (विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में कर दरों में वृद्धि किये बिना अधिक कर संग्रह करके) तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करके अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक बोझ डाले बिना राजकोषीय लक्ष्यों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • राज्य सरकारों को अपनी विशिष्ट चुनौतियों के अनुरूप राजकोषीय सुधार लागू करने तथा फिजूलखर्ची को कम करने की आवश्यकता है।
  • निवेश बनाम घाटा नियंत्रण: राजकोषीय सुदृढ़ीकरण बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन भारत को इसे दीर्घकालिक विकास की आवश्यकता के साथ संतुलित करना होगा, क्योंकि अत्यधिक सख्त उपाय से निवेश में बाधा आ सकती है।
    • उदाहरण के लिये, 14वें वित्त आयोग (2013-2014) ने दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए संवृद्धि एवं विकास को समर्थन देने के क्रम में राजकोषीय प्रबंधन में अधिक लचीलेपन की सिफारिश की।
  • मौद्रिक एवं राजकोषीय समन्वय: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और सरकार को मुद्रा बाज़ारों में अस्थिरता को प्रबंधित करने तथा मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने के लिये प्रभावी ढंग से समन्वय करना चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत की व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये क्या कदम उठाए गए हैं तथा इसमें कौन सी चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010) 

  1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह को प्रोत्साहित करना
  2.  उच्च शिक्षण संस्थान का निजीकरण 
  3.  नौकरशाही का डाउन-साइजिंग 
  4.  सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों को बेचना/बंद करना

उपर्युक्त में से किसका उपयोग भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में किया जा सकता है? 

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4 

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव में सबसे अधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है? (2021)

(a) सार्वजनिक ऋण की चुकौती
(b) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये जनता से उधार लेना
(c) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये बैंकों से उधार लेना
(d) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये नई मुद्रा का सृजन करना

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (2021)

प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)


शासन व्यवस्था

BOCW अधिनियम, 1996 से संबंधित निधियों का सीमित उपयोग

प्रिलिम्स के लिये:

सूचना का अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, उपकर, मुख्य श्रम आयुक्त, प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PM-SYM), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PM-SBY), आयुष्मान भारत

मेन्स के लिये:

भारत में विनिर्माण श्रमिकों का कल्याण, श्रम कानून और उनकी प्रभावशीलता, भारत में सामाजिक सुरक्षा और कल्याण कार्यक्रम

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

सूचना के अधिकार (RTI) से पता चला है कि विभिन्न राज्यों के कल्याण बोर्ड भवन और अन्‍य सन्‍निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 के तहत एकत्रित 70,744 करोड़ रुपए के कुल उपकर का उपयोग करने में विफल रहे हैं।

BOCW अधिनियम, 1996 क्या है?

  • परिचय: इसका उद्देश्य भारत में भवन एवं अन्‍य सन्‍निर्माण कर्मकारों के अधिकारों, कल्याण एवं कार्य स्थितियों की सुरक्षा करना है। 
    • इसके तहत इनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण संबंधी उपायों पर ध्यान देने के साथ रोज़गार विनियमों को प्रबंधित करना शामिल है जिससे सबसे कमज़ोर श्रम क्षेत्रों में से एक के रूप में इसमें बेहतर कार्य स्थितियाँ सुनिश्चित हो सकें।
    • यह अधिनियम अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सिद्धांतों के अनुसार तैयार (विशेष रूप से विनिर्माण सुरक्षा और स्वास्थ्य पर ILO कन्वेंशन संख्या 167 के अनुरूप) किया गया है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • कल्याणकारी उपाय: सन्‍निर्माण कर्मकारों के कल्याण के लिये राज्य सरकारों को नियोक्ताओं से 1% से 2% तक उपकर एकत्र करने का अधिकार दिया गया है।
    • एकत्रित धनराशि का उद्देश्य स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सामाजिक सुरक्षा जैसे लाभ प्रदान करना है जिसमें अस्थायी आवास, पेयजल एवं शौचालय शामिल हैं।
    • राज्य/संघ राज्य क्षेत्र कल्याण बोर्डों को उपकर निधि का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के क्रम में कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करने हेतु प्रोत्साहित करना।
    • सुरक्षा प्रावधान: इस अधिनियम के तहत 500 से अधिक कर्मकारों को रोज़गार देने वाली साइटों के लिये आपातकालीन कार्य योजना तैयार करने का प्रावधान किया गया है।
      • प्रयोज्यता: यह अधिनियम 10 लाख रुपए से कम लागत वाली निज़ी आवासीय विनिर्माण परियोजनाओं को छोड़कर, 10 या अधिक निर्माण श्रमिकों को रोज़गार देने वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होता है। 
        • नियोक्ताओं को इस अधिनियम के लागू होने के 60 दिनों के भीतर अपने प्रतिष्ठानों को इसके अंतर्गत पंजीकृत कराना अनिवार्य है।
    • प्रवर्तन तंत्र: मुख्य श्रम आयुक्त (केंद्रीय) और उसके क्षेत्रीय कार्यालय अधिनियम के प्रावधानों को लागू करते हैं तथा सुरक्षा और कल्याण उपायों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये नियमित निरीक्षण करते हैं। 
    • इसके अतिरिक्त, राज्य और केंद्रशासित प्रदेश BOCW कल्याण बोर्ड कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित करते हैं और अधिनियम के तहत एकत्रित उपकर निधि का उपयोग करते हैं।

नोट: वर्ष 1988 में अपनाए गए ILO कन्वेंशन संख्या 167 (भारत द्वारा अनुसमर्थित) का उद्देश्य निर्माण स्थलों पर कार्य स्थितियों में सुधार हेतु मानक स्थापित करके विनिर्माण उद्योग में श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करना है।

BOCW अधिनियम, 1996 के संबंध में चिंताएँ क्या हैं?

  • एकत्रित उपकर का न्यूनतम उपयोग: एक प्रमुख चिंता एकत्रित उपकर में 70,744 करोड़ रुपए का न्यूनतम उपयोग है, जो एकत्रित की गई धनराशि और श्रमिकों को आवंटित लाभ के बीच एक महत्त्वपूर्ण अंतर को उज़ागर करता है।
    • महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश ने उपकर से क्रमशः 13,683.18 करोड़ रुपए, 7,921.42 करोड़ रुपए और 7,826.66 करोड़ रुपए खर्च किये, जिससे क्रमशः 9,731.83 करोड़ रुपए, 7,547.23 करोड़ रुपए और 6,506.04 करोड़ रुपए शेष रह गए। 
      • इन राज्यों में उपकर का अधिशेष, श्रमिकों के कल्याण के लिये निधियों का उपयोग करने की उनकी प्रतिबद्धता के बारे में चिंता उत्पन्न करता है।
    • केरल को छोड़कर, अधिकांश राज्य सरकारें और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासनिक भवन एवं अन्य विनिर्माण श्रमिक अधिनियम को लागू नहीं कर रहे हैं।
  • उपकर चोरी और गलत रिपोर्टिंग: नियोक्ताओं और बिल्डरों द्वारा बड़े पैमाने पर उपकर चोरी के बारे में चिंताएँ बनी हुई हैं, महाराष्ट्र का उपकर संग्रह इसकी विनिर्माण गतिविधि के साथ असंगत प्रतीत होता है। 
    • इसके अतिरिक्त, स्वीकृत विनिर्माण परियोजनाओं की वास्तविक लागत के विवरण में पारदर्शिता का अभाव है।
  • विलंबित कल्याणकारी उपाय: श्रमिकों के आवास, जल और स्वच्छता के लिये अधिनियम के प्रावधानों को अनुचित तरीके से लागू किया गया, विशेष रूप से कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, जिससे श्रमिकों को सहायता के बिना रहना पड़ा। 
    • इसके अतिरिक्त, संकट के दौरान वित्तीय सहायता समेत वादा किये गए कल्याणकारी लाभ अभी तक पूरे नहीं हुए हैं, जो अधिनियम की अप्रभावीता को उज़ागर करता है।
  • कार्यान्वयन संबंधी चिंताएँ: केरल को छोड़कर, अधिकांश राज्य और केंद्रशासित प्रदेश BOCW अधिनियम, 1996 को लागू नहीं कर रहे हैं, जिससे निर्धारित लाभ सीमित हो रहे हैं। 
    • कई राज्य कल्याणकारी बोर्डों का पुनर्गठन करने से बच रहे हैं, जिससे ऐसी चिंताएँ बनी हैं कि कल्याणकारी योजनाओं की अप्रयुक्त धनराशि राज्य के खजाने में चली जाएगी।
  • सामाजिक सुरक्षा पर संहिता का प्रभाव: प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा संहिता (CSS), 2020 उपकर संग्रह को कम कर सकती है, क्योंकि यह नियोक्ताओं को उपकर का स्व-मूल्यांकन करने की अनुमति देती है और उपकर की दर तथा ब्याज को कम करती है। 
    • इससे श्रमिकों के अधिकार भी सीमित हो जाते हैं, तथा आवास जैसे आवश्यक लाभ गारंटीकृत होने के बजाय वैकल्पिक हो जाते हैं।

आगे की राह

  • उन्नत निगरानी: उपकर निधि के उपयोग पर नज़र रखने और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये स्वतंत्र अंकेक्षण और पारदर्शी रिपोर्टिंग तंत्र का क्रियान्वन किया जाना चाहिये।
    • उपकर संग्रह, आवंटन और उपयोग पर नज़र रखने के लिये ई-श्रम जैसी पहलों के माध्यम से श्रमिकों के लिये रियल टाइम ऑनलाइन प्लेटफॉर्म विकसित किये जाने चाहिये।
  • राज्य सरकार की जवाबदेही: BOCW अधिनियम, 1996 के उचित कार्यान्वयन और उपकर निधि के प्रभावी उपयोग के लिये राज्यों का उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
    • प्रभावी रूप से धन का उपयोग करने वाले राज्यों को प्राथमिकता देते हुए और निम्न प्रदर्शन करने वाले राज्यों के लिये अतिरिक्त धन आवंटन को अवधारित किये जाने के साथ निष्पादन-आधारित प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
  • CSS 2020 की समीक्षा: प्रस्तावित CSS, 2020 को स्वास्थ्य कवरेज जैसे अनिवार्य श्रमिक अधिकारों को बनाए रखने के लिये संशोधित किया जाना चाहिये। 
  • श्रमिक शिक्षा और जागरूकता: कॉर्पोरेट और निर्माण कंपनियों को BOCW अधिनियम के तहत श्रमिकों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करने, कौशल विकास को बढ़ावा देने और बेहतर सुरक्षा और पारिश्रमिक के लिये गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के साथ सहयोग करने का अधिकार प्रदान किया  जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. श्रमिकों के कल्याण को सुनिश्चित करने में भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (रोज़गार तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 की प्रभावशीलता का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्राचीन भारत में देश की अर्थव्यवस्था में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली ‘श्रेणी’ संगठन के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2012)

  1. प्रत्येक श्रेणी राज्य की एक केंद्रीय प्राधिकरण के साथ पंजीकृत होती थी और प्रशासनिक स्तर पर राजा उनका प्रमुख होता था। 
  2. ‘श्रेणी’ ही वेतन, काम करने के नियमों, मानकों और कीमतों को सुनिश्चित करती थी। 
  3. श्रेणी’ का अपने सदस्यों पर न्यायिक अधिकार होता था।

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. अंग्रेजों द्वारा भारत से अन्य उपनिवेशों में गिरमिटिया मज़दूरों को क्यों ले जाया गया? क्या वे वहाँ अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सक्षम रहे हैं? (2018)

प्रश्न. पिछले चार दशकों में भारत के भीतर और बाहर श्रम प्रवास की प्रवृत्तियों में आए बदलावों पर चर्चा कीजिये। (2015)


भारतीय राजव्यवस्था

उच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय (SC), उच्च न्यायालय, अनुच्छेद 224A, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, कॉलेजियम प्रणाली, नीति आयोग, ज़िला न्यायालय, वाइड एरिया नेटवर्क (WAN), वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR), मध्यस्थता, लोक अदालतें, मध्यस्थता अधिनियम, 2023, मध्यस्थता और सुलह (संशोधन) अधिनियम, 2015, विशेष अनुमति याचिकाएँ (SLP), मलिमथ समिति, भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (NJIAI) ।

मेन्स के लिये:

न्यायपालिका के समक्ष लंबित मामलों को निपटाने में तदर्थ न्यायाधीशों की भूमिका, लंबित मामलों के पीछे के कारण एवं लंबित मामलों को कम करने के लिये आगे की राह।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कई उच्च न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अस्थायी तौर पर तदर्थ (आवश्यकतानुसार) आधार पर सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति करने का सुझाव दिया है।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्तियों को विशिष्ट मामलों तक सीमित करने के अपने वर्ष 2021 के फैसले को संशोधित करने का सुझाव दिया।

उच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीशों के संबंध में मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • परिचय: तदर्थ न्यायाधीश किसी न्यायालय में नियुक्त अस्थायी न्यायाधीश होते हैं, जिन्हें आमतौर पर विशिष्ट आवश्यकताओं (जैसे लंबित मामलों को कम करना या स्थायी न्यायाधीशों के उपलब्ध न होने पर रिक्तियों को भरना) को पूरा करने के लिये नियुक्त किया जाता है।
  • संवैधानिक आधार: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 224A के तहत किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को राष्ट्रपति की मंज़ूरी (सेवानिवृत्त न्यायाधीश की सहमति के साथ) से अस्थायी रूप से सेवा करने के लिये उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को नियुक्त करने की अनुमति दी गई है।
  • प्रक्रिया: यह मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MOP) 1998 में उल्लिखित है, जिसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली के बाद बनाया गया था।
    • MOP में कहा गया है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा नियुक्ति पर सहमति देने के बाद, मुख्य न्यायाधीश को उनका नाम एवं नियुक्ति की अवधि का विवरण राज्य के मुख्यमंत्री को भेजना होगा। 
    • मुख्यमंत्री यह सिफारिश केंद्रीय कानून मंत्री को भेजेंगे, जो सिफारिश और CJI की सलाह को भारत के प्रधानमंत्री को भेजने से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श करेंगे।
    • प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को सलाह देंगे कि उन्हें मंजूरी देनी है या नहीं। 
    • लोक प्रहरी बनाम भारत संघ मामले, 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये सिफारिशें सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम के माध्यम से होनी चाहिये।
      • कॉलेजियम प्रणाली के तहत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये मुख्य न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के कॉलेजियम से परामर्श करना चाहिये।
  • प्रक्रिया की शुरुआत: लोक प्रहरी बनाम भारत संघ मामले, 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने के लिये निम्नलिखित आवश्यकताएँ निर्धारित कीं।
    • रिक्ति सीमा: न्यायाधीशों के स्वीकृत पद के 20% से अधिक पद रिक्त हैं।
    • लंबित मामले: लंबित मामलों में से 10% से अधिक, 5 वर्ष से अधिक पुराने हों।
    • नियमित नियुक्तियाँ:  तदर्थ नियुक्ति प्रक्रिया, नियमित न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही शुरू की जा सकती है।
  • चयन प्रक्रिया: प्रत्येक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को तदर्थ नियुक्तियों के लिये सेवानिवृत्त या जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाले न्यायाधीशों का एक पैनल बनाना चाहिये।
    • चूंकि मनोनीत व्यक्ति पूर्व न्यायाधीश होते हैं इसलिये नियुक्ति प्रक्रिया में खुफिया ब्यूरो की जाँच की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे प्रक्रिया छोटी हो जाएगी।

कार्यकाल: तदर्थ न्यायाधीशों का कार्यकाल आमतौर पर दो से तीन वर्ष निर्धारित है, उच्च न्यायालय में लंबित पदों और रिक्तियों के आधार पर यह दो से पाँच वर्ष तक हो सकता है।

  • भूमिका और कर्तव्य: तदर्थ न्यायाधीश पाँच वर्ष से अधिक पुराने मामलों की सुनवाई कर सकते हैं और वे अन्य विधिक कार्य, जैसे परामर्श, मध्यस्थता या ग्राहक प्रतिनिधित्व किया जाने से प्रतिबंधित किये गए हैं।
  • उपलब्धियाँ और भत्ते: तदर्थ न्यायाधीशों को पेंशन के अतिरिक्त, उस उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के बराबर उपलब्धियाँ और भत्ते प्राप्त होते हैं।
  • पूर्व की नियुक्तियाँ: अनुच्छेद 224A के तहत केवल तीन तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई है और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे "निष्क्रिय प्रावधान" कहा है।
    • न्यायमूर्ति सूरजभान को वर्ष 1972 में चुनाव याचिकाओं की सुनवाई के लिये एक वर्ष के लिये मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया था।
    • वर्ष 1982 में न्यायमूर्ति पी. वेणुगोपाल को मद्रास उच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया जिनका वर्ष 1983 में एक वर्ष के लिये कार्यकाल बढ़ाया गया।
    • अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के लिये न्यायमूर्ति ओपी श्रीवास्तव की वर्ष 2007 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में नियुक्ति की गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश (अनुच्छेद 127)

  • जब सर्वोच्च न्यायालय के किसी सत्र को आयोजित करने या जारी रखने के लिये स्थायी न्यायाधीशों की संख्या पर्याप्त नहीं होती है, तो भारत का मुख्य न्यायाधीश किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अस्थायी अवधि के लिये सर्वोच्च न्यायालय का तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है।
  • वह ऐसा केवल संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श तथा राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के पश्चात् ही कर सकता है। 
  • इस प्रकार नियुक्त न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये अर्हित होना चाहिये। 
  • इस प्रकार नियुक्त न्यायाधीश का यह कर्तव्य है कि वह अपने पद के अन्य कर्तव्यों की अपेक्षा सर्वोच्च न्यायालय की  बैठकों में उपस्थित रहे।
  • इसमें भाग लेने के दौरान, उसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सभी अधिकार क्षेत्र, शक्तियाँ और विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं (और वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करता है)।

collegium system

भारत में लंबित मामलों की स्थिति क्या है?

  • लंबित मामले: वर्ष 2024 तक, भारत के विभिन्न न्यायालयों में 51 मिलियन (5.1 करोड़) से अधिक लंबित मामले हैं, जिनमें ज़िला और उच्च न्यायालय दोनों शामिल हैं। 
    • इस लंबित मामले में 169,000 से अधिक ऐसे मामले शामिल हैं जो 30 वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं।
    • अधिकांश मामले (लगभग 87% या 4.5 करोड़ ) ज़िला न्यायालयों में हैं ।
  • निपटान की दर: नीति आयोग की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार अनुमानित रूप से लंबित मामलों को निपटाने में 324 वर्ष से अधिक का समय लगेगा, जो उस समय 29 मिलियन था।
    • न्यायिक विलंब के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानतः 1.5% से 2% का नुकसान होता है।
  • प्रभाव: न्यायिक प्रणाली में देरी के कारण समय पर न्याय नहीं मिल पाता तथा न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास कम होता है। 
    • विधि नियम सूचकांक, 2023 में भारत नागरिक न्याय में 111 वें तथा आपराधिक न्याय में 93वें स्थान पर है, जो न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी के विषय में वैश्विक चिंताओं को उजागर करता है।
  • मामले लंबित रहने के कारण: 
    • जनवरी 2024 तक भारत के 25 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के स्वीकृत पद 1,114 थे, परंतु वर्तमान में केवल 783 पद ही भरे हुए हैं। वर्ष 2023 तक ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में 5,000 से अधिक रिक्तियाँ थीं।
    • बुनियादी ढाँचे का अभाव: 10 राज्यों के 20 ज़िला न्यायालयों में किये गए अध्ययन में पाया गया कि केवल 45% न्यायिक अधिकारियों के पास इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले सुविधाएँ हैं, तथा 32.7% न्यायालय परिसरों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा नहीं है।
    • न्यायिक जवाबदेही का अभाव: न्यायाधीशों को हटाने के लिये महाभियोग प्रक्रिया का उपयोग शायद ही कभी किया गया है और महाभियोग के दायरे में न आने वाले साधारण मुद्दों के समाधान हेतु अपर्याप्त प्रावधान हैं।
      • कथित भ्रष्टाचार और सेवानिवृत्ति के बाद नियुक्ति संबंधी विवादों से न्यायपालिका में पारदर्शिता की मांग बढ़ गई है।
    • न्याय तक पहुँच में बाधाएँ: वर्ष 2022 तक भारत की जेलों में बंद 76% कैदी विचाराधीन होंगे, जिनमें से अधिकांश वंचित समुदायों से होंगे, जिसका कारण उच्च लागत, जटिल प्रक्रियाएँ और भाषा संबंधी बाधाएँ आती हैं।

लंबित मामलों को कम करने के लिये क्या पहल की गई हैं?

  • न्याय प्रदान करने और कानूनी सुधार हेतु राष्ट्रीय मिशन: अगस्त 2011 में आरंभ की गई इस पहल का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे में सुधार और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाकर न्यायिक विलंब और अधिशेष को कम करना है।
  • ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना: यह न्यायालय प्रक्रियाओं को सक्षम बनाने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिये सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का लाभ उठाती है। प्रमुख घटकों में शामिल हैं:
  • टेली-लॉ प्रोग्राम: वर्ष 2017 में लॉन्च किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, फोन और मोबाइल ऐप के माध्यम से वंचित समुदायों को विधिक सलाह प्रदान करना है।
  • ADR तंत्र: सरकार ने माध्यस्थम, मध्यस्थता और लोक अदालतों जैसे वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्रों को सुदृढ़ किया है ।
  • फास्ट ट्रैक कोर्ट: इनकी स्थापना विशिष्ट मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के लिये की गई थी, जिसमें जघन्य अपराध, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध तथा सांसदों/विधायकों से जुड़े अपराध शामिल थे।

आगे की राह

  • SLP के लिये राष्ट्रीय अपील न्यायालय: बिहार लीगल सपोर्ट सोसाइटी बनाम भारत के मुख्य न्यायाधीश (1986) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने विशेष अनुमति याचिकाओं (SLP) की सुनवाई के लिये राष्ट्रीय अपील न्यायालय की स्थापना का सुझाव दिया था।
    • इससे उच्चतम न्यायालय को केवल संवैधानिक और सार्वजनिक कानून से संबंधित मुद्दों की सुनवाई तक सीमित रहना पड़ेगा, जिससे न्यायालय का कार्यभार काफी कम हो जाएगा और लंबित मामलों का अधिक कुशलतापूर्वक समाधान हो सकेगा।
  • सांविधिक और विधिक प्रभाग: भारत के दसवें विधि आयोग, 1981 ने उच्चतम न्यायालय को दो प्रभागों में विभाजित करने का प्रस्ताव रखा: जिसमें सांविधिक मामलों के लिये एक सांविधिक प्रभाग और अन्य विधिक मुद्दों के लिये एक विधिक प्रभाग शामिल है।
    • इससे सांविधिक मुद्दों को विशेष पीठ को सौंपकर न्यायिक प्रक्रिया को सुचारू बनाया जा सकेगा, जिससे इन मामलों का तेजी से निपटारा सुनिश्चित होगा।
  • कार्यदिवसों की संख्या में वृद्धि: मलिमथ समिति ने लंबित मामलों की संख्या को कम करने के लिये उच्चतम न्यायालय में 206 दिन कार्य करने तथा अवकाश में 21 दिन की कटौती करने की सिफारिश की थी।
    • विधि आयोग की 2009 की 230वीं रिपोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या कम करने के लिये सभी न्यायिक स्तरों पर न्यायालयी अवकाश को 10-15 दिन तक कम करने की सिफारिश की गई थी।
  • न्यायिक अवसंरचना के लिये समर्पित प्राधिकरण: भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने भारत की न्यायिक प्रणाली में महत्त्वपूर्ण अवसंरचना अंतराल को दूर करने के लिये भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (NJIAI) की स्थापना का प्रस्ताव रखा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में विशाल संख्या में लंबित मामलों के पीछे के कारणों की जाँच कीजिये। लंबित मामलों की समस्या से निपटने के लिये आवश्यक प्रमुख सुधारों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न 1. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. भारत के राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा उच्चतम न्यायालय से सेवानिवृत्त किसी न्यायधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के पद पर बैठने और कार्य करने हेतु बुलाया जा सकता है।
  2. भारत में किसी भी उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के पुनर्विलोकन की शक्ति प्राप्त है, जैसा कि उच्चतम न्यायालय के पास है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 व 2 दोनों 
(d) न तो I न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स

Q. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर उच्चतम न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017)


भारतीय इतिहास

76वाँ गणतंत्र दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

गणतंत्र दिवस, पद्म पुरस्कार, वीरता पुरस्कार, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल, भारतीय तटरक्षक बल, वीरता के लिये राष्ट्रपति पदक, जीवन रक्षा पदक पुरस्कार, अर्जुन मेन बैटल टैंक, तेजस MKII लड़ाकू विमान, एटिकोप्पका बोम्मालु

मेन्स के लिये:

भारत के लोकतांत्रिक मूल्य और संविधान, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत ने अपना 76वाँ गणतंत्र दिवस (26 जनवरी 2025) 'स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास' थीम के साथ मनाया, जिसमें सैन्य शक्ति, विकास और सांस्कृतिक विविधता पर प्रकाश डाला गया। इस आयोजन के मुख्य अतिथि इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांटो थे। 

  • भारत में गणतंत्र दिवस एक राष्ट्रीय उत्सव है जो 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान के अंगीकरण के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जिससे भारत एक गणराज्य बना, जो इसके लोकतांत्रिक मूल्यों और समृद्ध विरासत को दर्शाता है।

2025 गणतंत्र दिवस की झाँकी के मुख्य आकर्षण क्या हैं?

राज्यों की झाँकी: 

राज्य/संघ राज्य क्षेत्र

                         विषय

आंध्र प्रदेश

"एटिकोप्पका बोम्मलु- पर्यावरण-अनुकूल लकड़ी के खिलौने"

बिहार

"स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास (नालंदा विश्वविद्यालय)"

चंडीगढ़

“चंडीगढ़: विरासत, नवाचार और स्थिरता का सामंजस्यपूर्ण मिश्रण”

  • फिल्म निर्माण में शहर की भूमिका को दर्शाया गया।

दादरा नगर हवेली तथा दमन और दीव

" कुकरी मेमोरियल के साथ दमन एवियरी बर्ड पार्क- भारतीय नौसेना के बहादुर नाविकों को श्रद्धांजलि"

दिल्ली

"गुणवत्ता की शिक्षा"

गोवा

“गोवा की सांस्कृतिक विरासत” 

  • स्थानीय विरासत के साथ पर्यटन को जोड़ते हुए दिविजा उत्सव और कावी कला रूपों का प्रदर्शन किया गया
  • 'पर्ल ऑफ द ओरिएंट' के नाम से प्रसिद्ध गोवा अपनी सुंदरता, संस्कृति, समुद्र तटों और आतिथ्य के लिये प्रसिद्ध है।

गुजरात

" स्वर्णिम भारत: विरासत और विकास"

हरियाणा

भगवत गीता और कृष्ण के उपदेशों का प्रदर्शन किया गया

कर्नाटक

लक्कुंडी: पत्थर शिल्प का उद्गम स्थल।

  • कर्नाटक के गडग ज़िले में स्थित लक्कुंडी एक महत्त्वपूर्ण जैन केंद्र है। यह एक ऐतिहासिक स्थल है, जहाँ सोमेश्वर और जैन बसदी जैसे प्राचीन मंदिर हैं, जो चालुक्य वंश के समृद्ध विरासत को दर्शाते हैं। 
  • यह राज्य सरकार द्वारा संरक्षित है तथा इसे UNESCO विश्व धरोहर स्थल की अस्थायी सूची में शामिल किये जाने का प्रस्ताव किया गया है।

मध्यप्रदेश

“मध्यप्रदेश का गौरव: कुनो राष्ट्रीय उद्यान- चीतों का स्थल”

पंजाब

“पंजाब ज्ञान और बुद्धि की भूमि है”

त्रिपुरा

“शाश्वत श्रद्धा: त्रिपुरा में 14 देवताओं की पूजा - खर्ची पूजा

उतार प्रदेश

"महाकुंभ 2025 - स्वर्णिम भारत की विरासत और विकास"

उत्तराखंड

“उत्तराखंड: सांस्कृतिक विरासत और साहसिक खेल”

पश्चिम बंगाल

"'लक्ष्मी भंडार' और 'लोक प्रसार प्रकल्प' - बंगाल में जीवन को सशक्त बनाना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना"

76 वें गणतंत्र दिवस की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • पद्म पुरस्कार: 76वें गणतंत्र दिवस पर 139 पद्म पुरस्कार प्रदान किये गए। इसमें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री शामिल हैं। 
    • ‘पद्म विभूषण’ असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिये प्रदान किया जाता है। 
    • उच्च कोटि की विशिष्ट सेवा के लिये पद्म भूषण तथा किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट सेवा के लिये पद्मश्री पुरस्कार दिया जाता है। 
    • पद्म पुरस्कारों की सूची में पद्म विभूषण सर्वोच्च है, इसके बाद पद्म भूषण और पद्म श्री शामिल हैं। इन पुरस्कारों की घोषणा प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर की जाती है।
  • वीरता पुरस्कार और रक्षा अलंकरण: राष्ट्रपति ने सशस्त्र बलों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) के 93 कार्मिकों को वीरता पुरस्कार प्रदान किये।
    • इसमें कीर्ति चक्र, शौर्य चक्र, बार टू सेना पदक, सेना पदक, नौसेना पदक और वायु सेना पदक शामिल हैं।
    • वीरता पुरस्कारों की घोषणा वर्ष में दो बार, गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर की जाती है।
  • वीरता पुरस्कार: 
    • युद्धकालीन पुरस्कार: ये पुरस्कार मुख्य रूप से सशस्त्र बलों के कर्मियों के लिये दुश्मन के सामने बहादुरी के लिये दिये जाते हैं। 
      • उल्लेखनीय पुरस्कारों में परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र शामिल हैं
    • शांतिकालीन पुरस्कार: ये पुरस्कार गैर-युद्धकालीन स्थितियों में बहादुरी को मान्यता देते हैं और इसमें अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र शामिल हैं। 
      • ये पुरस्कार सशस्त्र बलों, अर्द्धसैनिक बलों, पुलिस और नागरिकों को प्रदान किये जा सकते हैं।
    • अन्य वीरता पुरस्कार: सेना पदक (वीरता) भारतीय सेना में विशिष्ट सेवा के लिये दिया जाता है, तथा इसके बाद बहादुरी के कार्यों के लिये सेना पदक (वीरता) भी दिया जाता है।
      • नौसेना पदक (वीरता) नौसेना में साहस या कर्त्तव्य के लिये प्रदान किया जाता है , जबकि वायु सेना पदक (वीरता) वायु सेना में बहादुरी या असाधारण सेवा के लिये प्रदान किया जाता है।

Gallantry_Awards

  • रक्षा अलंकरण: राष्ट्रपति ने परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक, बार टू सेना पदक, सेना पदक (कर्तव्य के प्रति समर्पण) नौ सेना पदक, वायु सेना पदक, बार टू विशिष्ट सेवा पदक और विशिष्ट सेवा पदक समेत 305 रक्षा अलंकरण प्रदान किये जाते हैं।
    • परम विशिष्ट सेवा पदक: असाधारण स्तर की विशिष्ट सेवा करने वाले व्यक्ति को प्रदान किये जाते हैं।
    • उत्तम युद्ध सेवा पदक: युद्ध या संघर्ष के दौरान विशिष्ट सेवा के लिये प्रदान किया जाता है।
    • अति विशिष्ट सेवा पदक: असाधारण स्तर की विशिष्ट सेवा करने वाले व्यक्ति को प्रदान किये जाते हैं।
    • युद्ध सेवा पदक: युद्ध या शत्रुता के दौरान विशिष्ट सेवा के लिये प्रदान किया जाता है।
    • सेना पदक (कर्त्तव्य के प्रति समर्पण): यह सम्मान सेना पदक प्राप्तकर्त्तओं को कर्त्तव्य के अतिरिक्त और अधिक कार्यों के लिये दिया जाता है।
    • विशिष्ट सेवा पदक: उच्च कोटि की सेवा, जिसे एक से अधिक बार सम्मान प्राप्त करने पर रिबन पर एक 'बार' द्वारा अंकित किया जाता हैं।
  • PTM और TM पदक: राष्ट्रपति ने 76 वें गणतंत्र दिवस पर भारतीय तटरक्षक कर्मियों को राष्ट्रपति तटरक्षक पदक (PTM) और तटरक्षक पदक (TM) प्रदान किये।
    • ये पुरस्कार उनकी विशिष्ट वीरता, कर्त्तव्य के प्रति असाधारण समर्पण और विशिष्ट/मेधावी सेवा को मान्यता देते हैं। 
  • सेवा कार्मिक: पुलिस, अग्निशमन सेवा, होम गार्ड एवं नागरिक सुरक्षा (HG&CD), और सुधार सेवाओं के कुल 942 कार्मिकों को वीरता और सेवा पदक से सम्मानित किया गया है।
  • पुलिस वीरता पदक: वर्ष में दो बार घोषित किये जाने वाले ये पदक पुलिस कर्मियों की बहादुरी और अनुकरणीय आचरण के प्रदान किये जाते हैं। 
  • वीरता के लिये राष्ट्रपति पदक जीवन बचाने या अपराध रोकने में असाधारण साहस के लिये प्रदान किया जाता है, जबकि वीरता के लिये पुलिस पदक कर्त्तव्य के दौरान बहादुरी के कार्यों पर प्रदान किया जाता है।
    • विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक (पीएसएम): यह विशिष्ट सेवा रिकॉर्ड के लिए प्रदान किया जाता है।
    • सराहनीय सेवा पदक (MSM): यह पदक कर्त्तव्य के प्रति समर्पण और निष्ठा से युक्त बहुमूल्य सेवा के लिए दिया जाता है।
  • जीवन रक्षा पदक पुरस्कार: 76वें गणतंत्र दिवस पर, जीवन बचाने में नागरिकों की बहादुरी को मान्यता देते हुए 49 जीवन रक्षा पदक पुरस्कार प्रदान किए गए।
    • यह पुरस्कार तीन श्रेणियों में दिए जाते हैं: सर्वोत्तम, उत्तम और जीवन रक्षा पदक।
    • सर्वोत्तम जीवन रक्षा पदक: अत्यंत खतरनाक परिस्थितियों में जीवन बचाने के लिए विशिष्ट साहस हेतु।
    • उत्तम जीवन रक्षा पदक: किसी बड़े खतरे में जीवन बचाने के लिए साहस और त्वरित कार्रवाई हेतु।
    • जीवन रक्षा पदक: गंभीर शारीरिक चोट की स्थिति में जीवन बचाने के लिए साहस और त्वरित कार्रवाई हेतु।

नोट: केरल के मन्नान समुदाय के आदिवासी राजा, रमन राजमन्नन ने कर्त्तव्य पथ पर आयोजित 76वें गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लिया, यह पहला अवसर था जब किसी मन्नान राजा ने इसमें भाग लिया। 

  • मन्नान समुदाय में लगभग 3,000 सदस्य हैं जो मुख्य रूप से केरल के इडुक्की ज़िले में 46 बस्तियों में बँटे हुए हैं।
    • इस समुदाय की उत्पत्ति तमिलनाडु में हुई, जहाँ उनके पूर्वज चोल-पांड्य युद्ध के दौरान भाग गए थे और इडुक्की के जंगलों में शरण ली थी और वहाँ एक छोटा सा राज्य बनाया था।
    • मन्नान समुदाय एक पारंपरिक प्रणाली द्वारा शासित होता है, जिसमें मन्नान राजा शीर्ष पर होता है, जिसे मंत्रिपरिषद (कानी) एवं प्रतिनिधियों (उप राजा) का समर्थन प्राप्त होता है।
    • मन्नान जनजाति में मातृवंशीय प्रणाली का पालन किया जाता है, जिसमें वंश और उत्तराधिकार माँ से प्रेरित होता है। इसमें 36 उप-जातियाँ हैं और सदस्य अक्सर समुदाय के बाहर विवाह करते हैं (बहिर्विवाह)।

गणतंत्र दिवस का क्या महत्त्व है?

  • गणतंत्र दिवस: 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, जिससे देश एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य में परिवर्तित हुआ। 
    • संविधान को संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को अपनाया गया था।
    • यह दिन, संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने तथा भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (INC) द्वारा 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज की घोषणा के उपलक्ष्य में चुना गया था।
  • पूर्ण स्वराज की घोषणा (1930): 19 दिसंबर 1929 को कॉन्ग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में 'पूर्ण स्वराज' (पूर्ण स्वतंत्रता) प्रस्ताव पारित किया।
  • 26 जनवरी 1930 को एक सार्वजनिक घोषणा की गई, जिसमें कॉन्ग्रेस ने भारतीयों से इस दिवस को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का आग्रह किया।
    • वर्ष 1930 से 1947 तक 26 जनवरी को पूर्ण संप्रभुता की प्राप्ति के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता दिवस या पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया गया।
  • ध्वजारोहण: गणतंत्र दिवस पर भारत के राष्ट्रपति राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, जो देश के ब्रिटिश उपनिवेश से संप्रभु गणराज्य में परिवर्तन का प्रतीक है। 
    • झंडे को लपेटकर खंभे के शीर्ष पर लगा दिया जाता है और राष्ट्रपति लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के रूप में इसे फहराते हैं।
    • इसके विपरीत, स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ध्वज को बॉटम से टॉप की ओर फहराते हैं जो औपनिवेशिक शासन के बाद एक नए राष्ट्र, स्वतंत्रता और देशभक्ति के उदय का प्रतीक है।
      • यद्यपि ये कार्य समान हैं, फिर भी ये भिन्न ऐतिहासिक एवं प्रतीकात्मक संदर्भों के परिचायक हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: विश्लेषण कीजिये कि प्रस्तावना में शामिल शब्द 'गणराज्य' भारत की शासन संरचना को किस प्रकार प्रभावित करता है और इसका राष्ट्रीय नीतियों पर क्या प्रभाव पड़ता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संवैधानिक स्थिति क्या थी? (2021)

(a) एक लोकतांत्रिक गणराज्य
(b) एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य
(c) एक संप्रभु धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य
(d) एक संप्रभु समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य

उत्तर: B


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