नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

बजट 2024: राजकोषीय विवेकशीलता और रणनीतिक निवेश

  • 25 Jul 2024
  • 25 min read

यह एडिटोरियल 24/07/2024 को ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ में प्रकाशित“Of prudence and plumbing: The Budget is fiscally and financially prudent and correctly focuses on fixing the economy’s plumbing ” लेख पर आधारित है। इसमें नवीनतम बजट की राजकोषीय एवं वित्तीय रणनीतियों के बारे में चर्चा की गई है और चुनौतीपूर्ण वैश्विक आर्थिक परिदृश्य के बीच बजट की विवेकशीलता की प्रशंसा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय बजट, संसद, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY), मुद्रा ऋण, राजकोषीय समेकन, पीएम गतिशक्ति, सार्वजनिक ऋण/सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), सीमा शुल्कप्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN), कृषि-तकनीक नवाचार। 

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये राजकोषीय विवेक और सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों का महत्त्व।

वैश्विक आर्थिक उथल-पुथल और घरेलू राजकोषीय चुनौतियों के इस दौर में बजट 2024 राजकोषीय विवेक और रणनीतिक दूरदर्शिता का प्रतीक है, जिसका उद्देश्य भारत के आर्थिक आधार को सुदृढ़ करना है।

नवीनतम बजट में बहुआयामी रणनीति अपनाई गई है, जहाँ घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.9% (जो पिछले अनुमानों से कम है) तक सीमित रखते हुए राजकोषीय समेकन का लक्ष्य तय किया गया है, जबकि आर्थिक उछाल के बीच रूढ़िवादी राजस्व मान्यताओं को बनाए रखा गया है।

मज़बूत घरेलू विकास के बावजूद, भारत का बढ़ता सार्वजनिक ऋण/सकल घरेलू उत्पाद अनुपात सतर्क राजकोषीय प्रबंधन की अनिवार्यता को रेखांकित करता है, जिससे फिर विस्तारवादी नीतियों के लिये अवसर सीमित हो जाते हैं।

राजकोषीय एवं ऋण संबंधी बाधाओं के कारण सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश के अपनी सीमा तक पहुँच जाने के साथ स्वस्थ कॉर्पोरेट बैलेंस शीट से प्रेरित निजी क्षेत्र आर्थिक विस्तार को गति देने की ज़िम्मेदारी उठाने के लिये तैयार है, हालाँकि इसके लिये बेहतर मांग दृश्यता की आवश्यकता होगी।

इस प्रकार, वैश्विक चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने और उभरते अवसरों का लाभ उठाने के लिये भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये त्वरित कार्यान्वयन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये बजट 2024 की मुख्य बातें:

  • मुद्रास्फीति प्रबंधन: भारत की मुद्रास्फीति निम्न एवं स्थिर बनी हुई है और 4% के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है, जो व्यापक आर्थिक स्थिरता (macroeconomic stability) का संकेत है।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: विभिन्न क्षेत्रों में सीमा शुल्क में कटौती का उद्देश्य निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है। बजट को व्यापार सिद्धांत के अनुरूप रखा गया है, जिसमें इस बात पर बल दिया गया है कि आयात शुल्क में कमी करना प्रभावी रूप से निर्यात संवर्द्धन रणनीति के रूप में कार्य कर सकता है।
  • कृषि और ग्रामीण विकास: फसलों की 109 उच्च उपज देने वाली और जलवायु-अनुकूल किस्मों की पेशकश की गई है, जबकि इस वर्ष कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के लिये 1.52 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
  • रोज़गार और कौशल: 5 वर्षों में 4.1 करोड़ युवाओं को रोज़गार, कौशल और अवसर प्रदान करने के लिये 2 लाख करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ 5 योजनाओं के प्रधानमंत्री पैकेज की पेशकश की गई है।
  • मानव संसाधन विकास: कार्यबल को सशक्त बनाने के लिये शिक्षा, कौशल विकास और स्वास्थ्य सेवा में निवेश का प्रस्ताव किया गया है।
  • शहरी विकास संबंधी पहलें: शहरी गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों की आवास आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये 10 लाख करोड़ रुपए के निवेश के साथ प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी 2.0 का शुभारंभ किया गया है।
  • ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना: ऊर्जा संरक्षण, नवीकरणीय स्रोतों और संवहनीय ऊर्जा अभ्यासों पर केंद्रित नीतियों की पेशकश की गई है।
  • महिला सशक्तीकरण: महिलाओं और बालिकाओं को लाभ पहुँचाने वाली योजनाओं के लिये 3 लाख करोड़ रुपए से अधिक का आवंटन किया गया है।

राजकोषीय विवेकशीलता क्या है?

  • राजकोषीय विवेकशीलता (Fiscal prudence) से तात्पर्य सरकारी वित्त के सावधानीपूर्वक प्रबंधन से है जिसका उद्देश्य राजकोषीय अनुशासन, संवहनीयता और स्थायित्व बनाए रखना है।
    • इसमें व्यापक आर्थिक स्थिरता और दीर्घकालिक आर्थिक स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिये सार्वजनिक व्यय, राजस्व सृजन, उधार और ऋण प्रबंधन के संबंध में ज़िम्मेदार निर्णय लेना शामिल है।

बजट 2024 के संदर्भ में राजकोषीय विवेक का क्या महत्त्व है?

  • समष्टि-स्तर पर प्रभाव:
    • ऋण संवहनीयता: वित्त वर्ष 2023-24 के लिये भारत का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.9% तक रखने का लक्ष्य तय किया गया है (जो पिछले अनुमानों से कम है), जो घाटे को कम करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। राजकोषीय स्वास्थ्य और ऋण संवहनीयता बनाए रखने के लिये यह कमी लाना महत्त्वपूर्ण है।
      • इसके लिये किये जाने वाले उपायों में ऋण का पुनर्वित्तपोषण, ऋण परिपक्वता अवधि को बढ़ाना और वित्तपोषण के महंगे रूपों पर निर्भरता को न्यूनतम करना शामिल हो सकता है।
    • निवेशक विश्वास: विवेकपूर्ण राजकोषीय प्रबंधन वित्तीय स्थिरता और सतत विकास के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता का संकेत देकर निवेशक विश्वास को बढ़ाता है।
    • क्रेडिट रेटिंग: कम राजकोषीय घाटा और अनुशासित राजकोषीय नीतियों से क्रेडिट रेटिंग में सुधार हो सकता है, जिससे सरकार और निजी क्षेत्र दोनों के लिये उधार लेने की लागत कम हो सकती है।
  • आर्थिक स्थिरता:
    • मुद्रास्फीति नियंत्रण: सरकार घाटे का प्रबंधन कर अत्यधिक सार्वजनिक व्यय से उत्पन्न होने वाले मुद्रास्फीति संबंधी दबावों को कम कर सकती है।
    • प्रोत्साहन प्रभावशीलता: विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि आर्थिक मंदी के दौरान प्रदान किया गया कोई भी राजकोषीय प्रोत्साहन प्रभावी सिद्ध हो और इससे दीर्घकालिक राजकोषीय असंतुलन पैदा न हो।
  • संतुलित बजट: यह आर्थिक चक्र में सरकारी राजस्व और व्यय के बीच संतुलन प्राप्त करने का प्रयास करता है।
    • इसमें आर्थिक मंदी के दौरान विकास एवं रोज़गार को प्रोत्साहित करने के लिये बजट घाटा चलाना तथा ऋण को कम करने के लिये आर्थिक विस्तार की अवधि के दौरान अधिशेष द्वारा इसे संतुलित करना शामिल हो सकता है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: राजकोषीय विवेकशीलता नागरिकों और निवेशकों के बीच विश्वास के निर्माण के लिये राजकोषीय नीतियों एवं अभ्यासों में पारदर्शिता बनाए रखती है।
    • सरकारी वित्त की नियमित लेखापरीक्षा और रिपोर्टिंग जैसी जवाबदेही की व्यवस्थाएँ यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं कि सार्वजनिक धन का कुशलतापूर्वक और प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाए।

बजट 2024 में राजकोषीय विवेक और आर्थिक विकास के लिये सरकार की क्या रणनीतियाँ हैं?

  • राजस्व अनुमान और व्यय प्रबंधन:
    • राजस्व अनुमान: सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिये 10.5% की नॉमिनल जीडीपी वृद्धि दर के मुकाबले 10.8% की कर राजस्व वृद्धि दर का अनुमान लगाया है।
      • इस सतर्क अनुमान का उद्देश्य आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच यथार्थवादी राजस्व लक्ष्य सुनिश्चित करना है।
    • व्यय की गुणवत्ता: राजस्व व्यय के सापेक्ष पूंजीगत व्यय बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इस बदलाव का उद्देश्य उत्पादकता बढ़ाना, दीर्घकालिक परिसंपत्तियों का निर्माण करना और प्रमुख अवसंरचना क्षेत्रों में विकास को प्रोत्साहित करना है।
  • संरचनात्मक सुधार और क्षेत्रवार फोकस:
    • क्षेत्रवार निवेश (Sectoral Investments): बजट 2024 अवसंरचना, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक निवेश पर बल देता है।
      • ये निवेश उत्पादकता, प्रतिस्पर्द्धात्मकता और समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • निर्यात संवर्द्धन: विभिन्न क्षेत्रों में सीमा शुल्क में कमी का उद्देश्य निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाज़ारों में अधिक प्रभावी ढंग से एकीकृत करना है।
  • वित्तीय विवेकशीलता और बाज़ार स्थिरता:
    • वित्तीय क्षेत्र में सुधार: बजट में नियामक ढाँचे को मज़बूत करने, पारदर्शिता बढ़ाने और वित्तीय बाज़ारों से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये वित्तीय क्षेत्र में सुधारों की रूपरेखा प्रदान की गई है।
    • बाज़ारोन्मुख नीतियाँ: शुल्क (टैरिफ) को युक्तिसंगत बनाने और कारोबार सुगमता को बढ़ाने के उद्देश्य से लाई गई नीतियाँ निजी क्षेत्र के निवेश और आर्थिक विकास के लिये अनुकूल वातावरण के निर्माण में योगदान करती हैं।
  • दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति:
    • प्रतिस्पर्द्धात्मकता और समानता: नवीनतम बजट घटक बाज़ारों (भूमि, श्रम एवं पूंजी) में संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के महत्त्व को रेखांकित करता है। इस रणनीति का उद्देश्य समतामूलक विकास को बढ़ावा देना और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करना है।
    • भूमि सुधार (जैसे भूमि अधिग्रहण कानून, भूमि स्वामित्व और पंजीकरण एवं पट्टा कानून), श्रम सुधार (जैसे श्रम कानूनों का संहिताकरण, सामाजिक सुरक्षा जाल) और पूंजीगत सुधार (जैसे वित्तीय क्षेत्र में सुधार, कर सुधार और निवेश माहौल को सुगम बनाना) पर बल दिया गया है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में वर्तमान आर्थिक चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता:
    • व्यापार प्रभाव: वैश्विक व्यापार तनाव, भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक नीतियों में बदलाव भारत के निर्यात प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिये, अमेरिका और चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार तनाव तथा रूस-यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित किया है, जिससे भारत के निर्यात-संचालित क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।
    • निवेश प्रवाह: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह वैश्विक आर्थिक स्थितियों से प्रभावित होता है। वैश्विक बाज़ारों में अनिश्चितताओं के कारण FDI प्रवाह में अस्थिरता आ सकती है, जिसका असर विदेशी निवेश पर निर्भर क्षेत्रों पर पड़ सकता है।
    • पण्य/कमोडिटी मूल्य: वैश्विक कमोडिटी मूल्य, विशेष रूप से कच्चे तेल एवं धातुओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव, भारत के आयात बिल और मुद्रास्फीति दरों को प्रभावित करते हैं। इससे घरेलू उपभोग पैटर्न और समग्र आर्थिक स्थिरता प्रभावित होती है।
  • घरेलू विकास में मंदी:
    • संरचनात्मक बाधाएँ: अवसंरचनात्मक कमी, नौकरशाही की अक्षमताएँ और विनियामक जटिलताएँ आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न करती हैं। परियोजना कार्यान्वयन में देरी और अपर्याप्त लॉजिस्टिक्स अवसंरचना से विनिर्माण एवं निर्यात प्रतिस्पर्द्धा प्रभावित होती है।
    • सुधारों के बावजूद, मौसम में उतार-चढ़ाव, अपर्याप्त अवसंरचना और बाज़ार पहुँच संबंधी समस्याओं के प्रति कृषि क्षेत्र संवेदनशील बना हुआ है।
  • बेरोज़गारी और रोज़गार गुणवत्ता:
    • युवा बेरोज़गारी: ILO की रिपोर्ट के अनुसार, बेरोज़गार शिक्षित युवाओं का अनुपात वर्ष 2000 में 35.2 प्रतिशत से लगभग दोगुना होकर वर्ष 2022 में 65.7 प्रतिशत हो गया।
      • भारत की युवा आबादी में बेरोज़गारी की दर उच्च बनी हुई है, जो कौशल असंतुलन तथा औपचारिक क्षेत्रों में अपर्याप्त रोज़गार सृजन के कारण और भी बढ़ गई है।
    • अनौपचारिक क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत का लगभग 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है, जिसके पास रोज़गार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ और कौशल विकास के अवसरों तक पहुँच का अभाव है।
  • राजकोषीय बाधाएँ:
    • राजकोषीय घाटा: वित्त वर्ष 2023-24 के लिये राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद का 6.8% अनुमानित है, जो राजस्व बाधाओं के बीच व्यय प्रबंधन के लिये सरकार के प्रयासों को परिलक्षित करता है।
    • सार्वजनिक ऋण स्तर: भारत का सार्वजनिक ऋण-जीडीपी अनुपात बढ़ गया है (वर्ष 2022 में 81%), जिससे सार्वजनिक निवेश और सामाजिक व्यय के लिये राजकोषीय अवसर सीमित हो गया है। उच्च ऋण स्तर व्यापक आर्थिक स्थिरता और ऋण संवहनीयता के लिये जोखिम पैदा करते हैं।
    • राजस्व जुटाना: कर संग्रह को बढ़ाने और कर आधार को व्यापक बनाने के प्रयास (राजकोषीय अनुशासन से समझौता किये बिना) राजकोषीय घाटे को कम करने और विकास प्राथमिकताओं के वित्तपोषण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?

  • व्यापार साझेदारी और ‘हेजिंग’ रणनीतियों का विविधीकरण: किसी क्षेत्र विशेष पर निर्भरता को कम करने के लिये अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे विविध बाज़ारों में निर्यात अवसरों का विस्तार किया जाए। नए निर्यात अवसरों के लिये ब्राज़ील और वियतनाम जैसे देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ किया जाए।
    • स्थिर कारोबारी माहौल और पूर्वानुमानित नीतियों को सुनिश्चित कर नवीकरणीय ऊर्जा और डिजिटल अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में दीर्घकालिक FDI आकर्षित करने के प्रयास जारी रखे जाएँ।
    • वैश्विक बाज़ार में उतार-चढ़ाव के विरुद्ध कमोडिटी की कीमतों को स्थिर रखने और ऊर्जा आवश्यकताओं को सुरक्षित करने के लिये रणनीतिक भंडार एवं अग्रिम अनुबंध जैसे उपायों को लागू किया जाए।
  • राजकोषीय सुधार और राजकोषीय अनुशासन:
    • संवहनीय सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करने के लिये राजकोषीय अनुशासन बनाए रखें। बजट 2024 में राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.9% पर रखने का लक्ष्य रखा गया है, जो राजकोषीय समेकन की दिशा में जारी प्रयासों को प्रकट करता है।
    • राजस्व को बढ़ावा देने के लिये कर अनुपालन को बढ़ाना और कर आधार को व्यापक बनाना आवश्यक है। डिजिटल कराधान और जीएसटी सुधार जैसी पहलों का उद्देश्य कर प्रशासन को सुव्यवस्थित करना और कर संग्रहण को बढ़ाना है।
  • अवसंरचनात्मक विकास:
    • परिवहन, ऊर्जा और डिजिटल अवसंरचना में सार्वजनिक एवं निजी निवेश बढ़ाया जाए। बजट 2024 में पीएम गतिशक्ति जैसी पहलों के तहत अवसंरचना परियोजनाओं के लिये बड़ी धनराशि आवंटित की गई है ।
    • तीव्र शहरीकरण को समर्थन देने तथा जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिये स्मार्ट सीटीज़, शहरी परिवहन एवं सस्ते आवास पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
  • विनिर्माण और औद्योगिक विकास:
    • इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स एवं टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना और ‘मेक-इन-इंडिया’ पहल के माध्यम से विनिर्माण को सुदृढ़ किया जाए।
    • कारोबारी सुगमता (Ease of Doing Business): उद्यमशीलता और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिये नियामक ढाँचे को सरल बनाना, अनुपालन बोझ को कम करना और MSMEs को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  • कृषि सुधार और ग्रामीण विकास:
    • ई-नाम (e-Nam) के माध्यम से बाज़ार सुधारों को लागू किया जाए, कृषि अवसंरचना में सुधार लाया जाए और सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जाए। बजट 2024 में पीएम-किसान जैसी पहलों के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने और एग्री-टेक नवाचारों एवं कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund- AIF) को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
      • AIF पोस्ट-हार्वेस्ट प्रबंधन अवसंरचना और समुदाय के लिये व्यवहार्य परियोजनाओं में निवेश के लिये मध्यम से लेकर दीर्घकालिक ऋण वित्तपोषण सुविधा प्रदान कर सकता है।
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाने और क्षेत्रीय असमानताओं को कम करने के लिये प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) जैसी योजनाओं के तहत ग्रामीण सड़कों, विद्युतीकरण और कनेक्टिविटी का विकास किया जाए।
  • रोज़गार-संबद्ध प्रोत्साहन योजनाएँ: बजट 2024 में घोषित इन सभी योजनाओं को रोज़गार सृजन की वृद्धि के लिये गंभीरता से लागू करने की आवश्यकता है। बजट 2024 में तीन रोज़गार-संबद्ध प्रोत्साहन (Employment-linked incentives) योजनाओं की घोषणा की गई है और अगले पाँच वर्षों में रोज़गार सृजन के लिये 2 लाख करोड़ रुपए आवंटित किये जाएँगे।
    • योजना A में EPF में पहली बार पंजीकृत कर्मियों के लिये 1 माह के वेतन (15,000 रुपए तक की 3 किस्तों में) के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण का उपबंध किया गया है।
    • योजना B विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार सृजन के लिये प्रोत्साहन देने पर केंद्रित है, जो कर्मचारियों और नियोक्ताओं दोनों को उनके EPFO के अनुसार प्रत्यक्ष रूप से प्रदान किया जाएगा।
    • योजना C में नियोक्ताओं के लिये समर्थन शामिल है। प्रत्येक अतिरिक्त कर्मचारी के लिये नियोक्ताओं को उनके EPFO अंशदान के लिये 2 वर्षों तक 3,000 रुपए प्रति माह तक की प्रतिपूर्ति की जानी है।

अभ्यास प्रश्न: भारतीय अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिये आवश्यक रणनीतिक सुधारों और आर्थिक लक्ष्यों की चर्चा कीजिये। वर्तमान आर्थिक चुनौतियों को संबोधित करने और सतत विकास को बढ़ावा देने में इन सुधारों की क्या भूमिका होगी?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अंतर्वाह को प्रोत्साहन देना 
  2. उच्च शैक्षिक संस्थानों का निजीकरण करना 
  3. अधिकारी तंत्र की डाउन-साइज़िंग करना 
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों की बिक्री/ऑफलोडिंग

उपर्युक्त में से किसका उपयोग भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में किया जा सकता है?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (2021)

प्रश्न.क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow