न्यू ईयर सेल | 50% डिस्काउंट | 28 से 31 दिसंबर तक   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 24 May, 2022
  • 62 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय धातु उद्योग: वर्तमान परिदृश्य और भविष्य के रुझान

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय धातु उद्योग, धातु क्षेत्र से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

भारतीय धातु उद्योग का महत्त्व और संबद्ध चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एसोचैम (ASSOCHAM) ने ‘भारतीय धातु उद्योग: वर्तमान परिदृश्य और भविष्य के रुझान’ (Indian Metal Industry: Current Outlook and Future Trends) नामक एक सम्मेलन का आयोजन किया।

भारतीय धातु उद्योग का वर्तमान परिदृश्य:

  • परिचय:
    • 20वीं शताब्दी की शुरुआत में औद्योगीकरण द्वारा संचालित अर्थव्यवस्थाओं के उद्भव के परिणामस्वरूप ऐसे देश लाभान्वित हुए जिन्होंने विस्तृत रूप में धातु उद्योग की स्थापना कर ली थी। 
    • धातुएँ औद्योगीकरण के प्रमुख चालकों में से एक हैं।
  • आँकड़े:
    • अक्तूबर 2021 तक भारत 9.8 मीट्रिक टन के उत्पादन के साथ कच्चे इस्पात का दुनिया में "दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक" था। वित्तीय वर्ष 2022 (जनवरी तक) में कच्चे इस्पात और तैयार इस्पात का उत्पादन क्रमशः 98.39 मीट्रिक टन एवं 92.82 मीट्रिक टन था।
    • वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत 10% बढ़कर 77 किलोग्राम प्रति व्यक्ति हो गई।
    • अनंतिम अनुमानों के अनुसार, भारत ने वर्ष 2021-22 में 120 मिलियन टन से अधिक कच्चे इस्पात और 113.6 मिलियन टन तैयार इस्पात के रिकॉर्ड उत्पादन के साथ 13.5 मिलियन टन तैयार इस्पात का निर्यात किया है।
  • वृद्धि के प्रमुख कारक:
    • भारतीय इस्पात क्षेत्र में वृद्धि लौह अयस्क और लागत प्रभावी श्रम जैसे कच्चे माल की घरेलू उपलब्धता से प्रेरित है।
    • नतीजतन, भारत के विनिर्माण उत्पादन में इस्पात क्षेत्र का प्रमुख योगदान रहा है।
    • भारतीय इस्पात उद्योग अत्यंत आधुनिक है।
      • इसने हमेशा पुराने संयंत्रों के निरंतर आधुनिकीकरण और उच्च ऊर्जा दक्षता स्तरों के उन्नयन का प्रयास किया है।
  • महत्त्व: 
    • लोहा, कोयला, डोलोमाइट, सीसा, जस्ता, चांदी, सोना आदि के विशाल भंडार के साथ-साथ भारत खनन और धातु उद्योग के लिये एक प्राकृतिक गंतव्य है।
    • धातुओं में इस्पात ने ऐतिहासिक रूप से एक प्रमुख स्थान हासिल किया है। कच्चे माल और मध्यवर्ती उत्पाद के रूप में इस्पात के उत्पादन एवं खपत को व्यापक रूप से आर्थिक प्रगति, औद्योगिक विकास के संकेतक के रूप में माना जाता है, साथ ही साथ यह किसी भी अर्थव्यवस्था के लिये प्रमुख आधार के रूप में कार्य करता है।
    • मेक इन इंडिया अभियान, स्मार्ट सिटी, ग्रामीण विद्युतीकरण जैसे सुधारों और राष्ट्रीय विद्युत नीति के तहत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने के साथ-साथ भारत में धातु एवं खनन क्षेत्र में अगले कुछ वर्षों में बड़े सुधार की उम्मीद है। 
    • वित्त वर्ष 2021-22 में बुनियादी धातुओं के विनिर्माण के औद्योगिक उत्पादन सूचकांक का औसत 177.3 है तथा इसमें 18.4% की वृद्धि हुई है।
    • कोयला खनन में स्थिरता लाने के महत्त्व को स्वीकार करते हुए कोयला खदानों में बेहतर पर्यावरण प्रबंधन प्रथाओं को अपनाने व बढ़ावा देने के लिये कोयला मंत्रालय और सभी कोयला सार्वजनिक उपक्रमों में एक "सतत् विकास प्रकोष्ठ" बनाया गया है।
  • चुनौतियांँ: 
    • पूंजी: धातु उद्योग को विशेष रूप से लोहा और इस्पात के लिये बड़े पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है जिसे भारत जैसे विकासशील देश के लिये वहन कर पाना कठिन है। सार्वजनिक क्षेत्र के कई एकीकृत इस्पात संयंत्र विदेशी सहायता से स्थापित किये गए हैं।
    • कम उत्पादकता: देश में इस्पात उद्योग के लिये प्रति व्यक्ति श्रम उत्पादकता 90-100 टन है जो कि बहुत कम है, जबकि यह कोरिया, जापान और अन्य इस्पात उत्पादक देशों में प्रति व्यक्ति 600-700 टन है।
    • उत्पादन क्षमता का अल्प-उपयोग: दुर्गापुर स्टील प्लांट अपनी क्षमता के लगभग 50% का उपयोग करता है जिसका कारण हड़ताल, कच्चे माल की कमी, ऊर्जा संकट, अक्षम प्रशासन आदि जैसे कारक हैं।
    • भारी मांग: मांगों को पूरा करने के लिये स्टील और अन्य धातुओं का भारी मात्रा में आयात किया जाता है। अतः बहुमूल्य विदेशी मुद्रा को बचाने के लिये उत्पादकता बढ़ाने की आवश्यकता है। 
    • उत्पादों की निम्न गुणवत्ता: कमज़ोर आधारभूत संरचना, पूंजी निवेश तथा अन्य सुविधाएंँ अंततः धातुकर्म प्रक्रिया में अधिक समय लेने के साथ महंँगी होती हैं तथा मिश्र धातुओं की एक निम्न किस्म का उत्पादन करती हैं।

धातु क्षेत्र के लिये सरकार की पहल: 

आगे की राह 

  • उद्योग और अन्य हितधारकों को सामूहिक रूप से उन सभी क्षेत्रों और कारकों की पहचान करने की आवश्यकता है जो इन धातुओं की खपत में वृद्धि हेतु योगदान दे रहे हैं ताकि आम आदमी के लिये सस्ती कीमत पर इनकी उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
  • प्रौद्योगिकी विकास और नवाचार के माध्यम से घरेलू क्षमता को मज़बूत करना आवश्यक है। यह न केवल भारतीय धातु और धातुकर्म क्षेत्र को वास्तव में वैश्विक स्तर पर सक्षम बनाएगा बल्कि भारत को धातु और धातु उत्पादों के लिये एक विनिर्माण केंद्र बनने में भी मदद करेगा। 
  • देश में खनिज भंडार, विशेष रूप से जो खनिज आर्थिक विकास की रीढ़ हैं,  जैसे- लोहा, कोयला, बॉक्साइट, चूना, तांँबा, मैंगनीज़, क्रोमियम आदि के विकास की आवश्यकता को युक्तिसंगत बनाना महत्त्वपूर्ण है।
  • यह ज़रूरी है कि उद्योगों के विभिन्न संघ ग्रामीण भारत के क्षेत्रों में बैठकों या सेमिनारों का आयोजन कर सरकार की योजनाओं के बारे में ग्रामीणों को जानकारी प्रदान करें। साथ ही वहांँ कौशल विकास कार्यक्रम चलाकर राष्ट्र निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • तकनीक और स्मार्ट वर्किंग की शुरुआत करके लागत को कम करना आवश्यक है। 
  • इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क की घरेलू उपलब्धता, मज़बूत घरेलू मांग और युवा कार्यबल की उपलब्धता के परिणामस्वरूप भारत को इस्पात उत्पादन में अपने समकक्षो की तुलना में प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त होगा।
  • भारत की तुलनात्मक रूप से कम प्रति व्यक्ति इस्पात खपत, साथ ही बुनियादी ढांँचे के निर्माण एवं ऑटोमोबाइल और रेलवे क्षेत्रों में खपत में वृद्धि के कारण अपेक्षित वृद्धि के लिये अवसर प्रदान करती है।

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. ताम्र प्रगलन संयंत्रों को लेकर चिंता क्यों है?

  1. वे पर्यावरण में घातक मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड निर्मुक्त कर  सकते हैं।
  2. कॉपर स्लैग पर्यावरण में कुछ भारी धातुओं के निक्षालन  का कारण बन सकता है।
  3. वे प्रदूषक के रूप में सल्फर डाइऑक्साइड निर्मुक्त कर सकते हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: B

व्याख्या:

  • कई अलग-अलग प्रक्रियाएंँ हैं जिनका उपयोग तांँबे के उत्पादन के लिये किया जा सकता है। पारंपरिक प्रक्रियाओं में से एक रेवरबेरेटरी भट्टियों (या अधिक जटिल अयस्कों के लिये इलेक्ट्रिक भट्टियांँ) में गलाने पर आधारित है, जिससे मैट (कॉपर-आयरन सल्फाइड) का उत्पादन होता है। भट्ठी से मैट को कन्वर्टर्स पर चार्ज़ किया जाता है, जहांँ पिघला हुआ पदार्थ हवा की उपस्थिति में लोहे और सल्फर अशुद्धियों (कन्वर्टर स्लैग के रूप में) को हटाने तथा ब्लिस्टर कॉपर बनाने के लिये ऑक्सीकृत होता है।
  • इस प्रक्रिया से उत्सर्जित होने वाले प्रमुख वायु प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड और पार्टिकुलेट मैटर हैं तथा अधिकांश ठोस अपशिष्ट स्लैग को छोड़ दिया जाता है। अत: कथन 3 सही है।
  • उत्पादित स्लैग में संभावित विषैले तत्त्वो जैसे- आर्सेनिक, सीसा, कैडमियम, बेरियम और ज़स्ता की महत्त्वपूर्ण सांद्रता हो सकती है। प्राकृतिक अपक्षय परिस्थितियों के तहत स्लैग इन संभावित ज़हरीले एवं प्रदूषित तत्त्वो को पर्यावरण, मृदा, सतही जल व भूजल में छोड़ सकता है। अतः कथन 2 सही है।
  • चूंँकि स्लैग रासायनिक रूप से निष्क्रिय होता है, इसलिये इसे सीमेंट के साथ मिलाया जाता है और सड़कों एवं रेलरोड बेड बनाने के लिये उपयोग किया जाता है। सैंडब्लास्टिंग इसका एक अन्य अनुप्रयोग है। इसके अलावा इसे रूफिंग सिंगल (छत के रूप में प्रयुक्त धातु की चादरें) में जोड़ा जाता है।
  • कॉपर गलाने से वातावरण में कार्बन मोनोऑक्साइड की घातक मात्रा नहीं निकलती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) चिप्स

प्रिलिम्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एक्टिव न्यूरल नेटवर्क, मशीन लर्निंग

मेन्स के लिये:

आईटी और कंप्यूटर 

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) चिप अपनाने के मामले में वृद्धि हुई है, चिप निर्माताओं ने AI अनुप्रयोगों को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न प्रकार के चिप डिज़ाइन किये हैं।

AI चिप के बारे में:

  • परिचय:
    • AI चिप को एक विशिष्ट आर्किटेक्चर के साथ डिज़ाइन किया गया है और इसमें गहन शिक्षण-आधारित अनुप्रयोगों का समर्थन करने के लिये AI त्वरण को एकीकृत किया गया है।
  • कार्य:
    • यह कंप्यूटर कमांड या एल्गोरिदम की शृंखला को जोड़ती है जो गतिविधि और मस्तिष्क संरचना को उत्तेजित करती है।
    • DNN प्रशिक्षण चरण से गुजरने के दौरान मौज़ूदा डेटा से नए कौशल सीखते हैं।
      • DNN गहन शिक्षण प्रशिक्षण के दौरान सीखी गई क्षमताओं का उपयोग करके पहले के अनदेखे आंँकड़े के विरुद्ध भविष्यवाणी कर सकते हैं।
      • डीप लर्निंग बड़ी मात्रा में आंँकड़े इकट्ठा करने, विश्लेषण और व्याख्या करने की प्रक्रिया को तेज़ एवं सरल बना सकता है।
    • इस तरह के चिप, हार्डवेयर आर्किटेक्चर, पूरक पैकेजिंग, मेमोरी, स्टोरेज और इंटरकनेक्ट सॉल्यूशंस के साथ डेटा को सूचना में और फिर ज्ञान में बदलने के लिये AI  को व्यापक स्पेक्ट्रम में उपयोग हेतु संभव बनाते हैं।
  • AI चिप के प्रकार:
    • एप्लीकेशन-स्पेसिफिक इंटीग्रेटेड सर्किट (ASICs), फील्ड-प्रोग्रामेबल गेट एरेज़ (FPGAs), सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट्स (CPU) और GPU।
  • अनुप्रयोग:
    • AI अनुप्रयोगों में ऑटोमोटिव, आईटी, हेल्थकेयर और रिटेल सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP), कंप्यूटर विज़न, रोबोटिक्स एवं  नेटवर्क सुरक्षा शामिल हैं।
  • उदय का कारण:
    • डेटा केंद्रों में AI चिप की बढ़ती स्वीकार्यता इसके बाज़ार के विकास के लिये प्रमुख कारकों में से एक है।
    • इसके अतिरिक्त स्मार्ट घरों और शहरों की आवश्यकता में वृद्धि तथा AI स्टार्टअप निवेश में वृद्धि से वैश्विक AI चिप बाज़ार के विकास को गति मिलने की उम्मीद है।
      • AI चिप उद्योग का वैश्विक स्तर पर विकास हुआ है। जिसके वर्ष 2020 के 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2030 तक 195 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो वर्ष 2021 से वर्ष 2030 तक 37.4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि  दर (CAGR) से बढ़ रहा है।

The-Gist

सामान्य प्रयोजन वाले हार्डवेयर उपकरणों में AI चिप के अनुप्रयोग का महत्त्व:

  • तीव्र गणना: 
    • परिष्कृत प्रशिक्षण मॉडल और एल्गोरिदम को चलाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता अनुप्रयोगों को आमतौर पर समानांतर गणनात्मक क्षमताओं की आवश्यकता होती है।
    • AI हार्डवेयर की प्रोसेसिंग क्षमता तुलनात्मक रूप से अधिक है, जो समान मूल्य वाले  पारंपरिक अर्द्धचालक उपकरणों की तुलना में AAN अनुप्रयोगों में 10 गुना अधिक प्रोसेसिंग क्षमता का प्रदर्शन करता है।
  • उच्च बैंडविड्थ मेमोरी:  
    • विशिष्ट AI हार्डवेयर,  पारंपरिक चिप की तुलना में 4-5 गुना अधिक बैंडविड्थ आवंटित करने की क्षमता रखता है।
      • समानांतर प्रोसेसिंग की आवश्यकता के कारण AI अनुप्रयोगों के कुशल प्रदर्शन के लिये प्रोसेसर के मध्य काफी अधिक बैंडविड्थ की आवश्यकता होती है।

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता निम्नलिखित में से कौन-से कार्य प्रभावी ढंग से कर सकती है? (2020)

  1. औद्योगिक इकाइयों में बिजली की खपत को कम करना
  2. सार्थक लघु कथाएँ और गीत की रचना
  3. रोग निदान
  4. टेक्स्ट-टू-स्पीच रूपांतरण
  5. विद्युत ऊर्जा का वायरलेस संचरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b) 

व्याख्या:

  • Google अपने डेटा केंद्रों में ऊर्जा की खपत को 30% तक कम करने के लिये डीपमाइंड का अधिग्रहण कर इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग कर रहा है। अत: कथन 1 सही है।
  • संगीत की रचना या संगीतकारों की सहायता के लिये AI को एक उपकरण के रूप में उपयोग करना काफी समय से चलन में है। वर्ष 1990 के दशक में डेविड बॉवी ने वर्बासाइज़र (Verbasizer) को विकसित करने में मदद की, जिसने साहित्यिक स्रोत सामग्री ली तथा नए संयोजन बनाने के लिये शब्दों को बेतरतीब ढंग से फिर से व्यवस्थित किया जिन्हें गीत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता था। चूंँकि AI प्रोग्राम किये गए पारिस्थितिकी तंत्र में काम करता है तथा इसमें भावनाएँ नहीं होती हैं, इसलिये AI के लिये सार्थक लघु कथाएँ और गीतों की रचना करना कठिन होगा। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • रोबोटिक्स और इंटरनेट ऑफ मेडिकल थिंग्स (IoMT) के साथ संयुक्त AI स्वास्थ्य देखभाल के लिये संभावित रूप से नया तंत्रिका तंत्र हो सकता है, जो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के लिये समाधान प्रस्तुत कर सकता है। कैंसर देखभाल में AI प्रौद्योगिकी के एकीकरण से निदान की सटीकता और गति में सुधार हो सकता है, नैदानिक निर्णय लेने में सहायता मिल सकती है तथा बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। अत: कथन 3 सही है।
  • वाक् संश्लेषण (Speech Synthesis) मानव भाषण का कृत्रिम उत्पादन है। यह भाषा को मानव आवाज (या भाषण) में बदलने का एक तरीका है। उदाहरण के लिये Google का असिस्टेंट, Amazon का Echo, Apple का Siri आदि। अतः कथन 4 सही है।
  • ऊर्जा क्षेत्र में AI उपयोग के संभावित मामलों में ऊर्जा प्रणाली मॉडलिंग और पूर्वानुमान में कमी तथा शक्ति संतुलन एवं उपयोग में दक्षता बढ़ाने के लिये किया जा रहा है। हालाँकि इसका उपयोग विद्युत ऊर्जा के संचरण के लिये नहीं किया जा सकता है। अत: कथन 5 सही नहीं है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नागोर्नो-करबख क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

नागोर्नो-करबख क्षेत्र, INSTC

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में,आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच वर्षों से विवादित रहे नागोर्नो-करबख (Nagorno-Karabakh) क्षेत्र पर आर्मेनिया द्वारा संभावित रियायतों का विरोध  बढ़ गया है।

  • विवादित क्षेत्र नागोर्नो-करबख को लेकर 27 सितंबर, 2020 को आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच पुनः संघर्ष शुरू हो गया था, जो वर्ष 1990 के दशक के बाद से सबसे घातक था।

नागोर्नो-करबख क्षेत्र:

  • परिचय
    • नागोर्नो-करबख एक पहाड़ी और भारी वन क्षेत्र है जिसे अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है।  
      • हालाँकि मूल अर्मेनियाई जो वहाँ की अधिकांश आबादी का गठन करते हैं, अज़ेरी शासन (अज़रबैजान की कानूनी प्रणाली) को अस्वीकार करते हैं।
    • वर्ष 1990 के दशक में एक युद्ध के बाद अज़रबैज़ान की सेना को इस क्षेत्र से बाहर धकेल दिये जाने के पश्चात् ये मूल अर्मेनियाई लोग आर्मेनिया के समर्थन से नागोर्नो-करबख के प्रशासनिक नियंत्रण में रह रहे हैं।
  • रणनीतिक महत्त्व:
    • ऊर्जा संपन्न अज़रबैजान द्वारा पूरे काकेशस क्षेत्र (काला सागर और कैस्पियन सागर के बीच का क्षेत्र)  में तुर्की से लेकर यूरोप तक गैस एवं तेल पाइपलाइनों की स्थापना की गई है।
    • इनमें से कुछ पाइपलाइनें संघर्ष क्षेत्र के बहुत ही नज़दीक (सीमा के 16 किमी.) से गुज़रती हैं।
    • दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति में इन पाइपलाइनों को लक्षित किया जा सकता है, जिससे बड़ी दुर्घटना के साथ क्षेत्र से होने वाली ऊर्जा आपूर्ति पर भी प्रभाव पड़ेगा। 

Armenia

संघर्ष का कारण:

  • संघर्ष की पृष्ठभूमि: संघर्ष को पूर्व-सोवियत के दौर में देखा जा सकता है जब यह क्षेत्र ओटोमन, रूसी और फारसी साम्राज्यों की सीमा के मिलन बिंदु पर था।
    • जब 1921 में अज़रबैजान और आर्मेनिया सोवियत गणराज्य बने तो रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने विवादित क्षेत्र में स्वायत्तता के बदले अज़रबैज़ान को नागोर्नो-करबख दे दिया।
    • 1980 के दशक में जैसे-जैसे सोवियत सत्ता कम होती गई नागोर्नो-करबख में अलगाववादी धाराएँ फिर से उभरीं। राष्ट्रीय सभा ने 1988 में क्षेत्र की स्वायत्तता को समाप्त करने और आर्मेनिया में शामिल होने के लिये मतदान किया।
    • हालाँकि अज़रबैज़ान ने ऐसी सूचनाओं को गोपनीय रखा जिसके परिणामस्वरूप एक सैन्य संघर्ष हो गया।
  • संघर्ष का तात्कालिक कारण: सोवियत संघ के सन्निकट पतन की पृष्ठभूमि में सितंबर 1991 में नागोर्नो-करबख द्वारा स्वतंत्रता की स्व-घोषणा के परिणामस्वरूप अज़रबैज़ान और नागोर्नो-करबख के बीच युद्ध हुआ जो आर्मेनिया द्वारा समर्थित था।
  • युद्धविराम: लंबे संघर्ष के बाद रूस की मध्यस्थता के माध्यम से 1994 में युद्धविराम समझौता हुआ। तब से यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (OSCE) मिन्स्क समूह, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस एवं फ्रांँस की सह-अध्यक्षता में संघर्ष को हल करने के लिये अज़रबैज़ान तथा आर्मेनिया के साथ बड़े पैमाने पर काम किया गया है।
    • तब तक आर्मेनिया ने नागोर्नो-करबख पर कब्ज़ा कर लिया था और इसे अर्मेनियाई विद्रोहियों को सौंप दिया था।

भारत की भूमिका:

  • आर्मेनिया के साथ भारत की मित्रता और सहयोग संधि (1995 में हस्ताक्षरित) है, जो भारत द्वारा  अज़रबैजान को सैन्य या कोई अन्य सहायता प्रदान करने के लिये प्रतिबंधित करेगी।
  • अज़रबैजान में ONGC/OVL ने एक तेल क्षेत्र परियोजना में निवेश किया है, जबकि गेल (GAIL)  LNG में सहयोग की संभावनाएँ तलाश रहा है।
    • अज़रबैजान की अवस्थिति अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) मार्ग पर पड़ती है, जो भारत को मध्य एशिया के माध्यम से रूस से जोड़ता है।
    • यह कॉरिडोर बाकू-त्बिलिसी-कार पैसेंजर और फ्रेट रेल लिंक के माध्यम से भारत को तुर्की से भी जोड़ सकता है।
  • आर्मेनिया कश्मीर मुद्दे पर भारत को अपना स्पष्ट समर्थन देता है, जबकि अज़रबैजान न केवल इसका विरोध करता है बल्कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान के वक्तव्यों का समर्थन भी करता है।
  • "नेबरहुड फर्स्ट", "एक्ट ईस्ट" याभारत-मध्य एशिया वार्ता” के विपरीत भारत में दक्षिण काकेशस के लिये सार्वजनिक रूप से स्पष्ट नीति का अभाव है।
  • यह क्षेत्र अपनी विदेश नीति के रडार की परिधि पर बना हुआ है

आगे की राह

  • संघर्ष अनिवार्य रूप से दो अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों के बीच का एक संघर्ष है। क्षेत्रीय अखंडता का सिद्धांत अज़रबैजान द्वारा समर्थित और आत्मनिर्णय के अधिकार का सिद्धांत नागोर्नो-करबख द्वारा लागू किया गया एवं आर्मेनिया द्वारा समर्थित है।
  • भारत के पास अज़रबैजान की क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन नहीं करने के पर्याप्त कारण हैं क्योंकि अज़रबैजान जम्मू-कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान द्वारा भारत की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करने के मामले में पाकिस्तान के रुख का समर्थन करता रहा है।
  • साथ ही भारत के लिये नागोर्नो कारबख का सार्वजनिक रूप से समर्थन करना मुश्किल है, जो भारत के लिये संभावित नतीजों को देखते हुए आत्मनिर्णय के आधार पर सही भी है,  क्योंकि पाकिस्तान जैसे भारत के विरोधी देश न केवल कश्मीर के साथ संबंध स्थापित कर इसका दुरुपयोग कर सकते हैं, बल्कि भारत के कुछ हिस्सों में अलगाववादी आंदोलन को फिर से बढ़ावा दे सकते हैं।

 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  


सामाजिक न्याय

CPWD द्वारा दिव्यांगों के लिये 4% आरक्षण की अनुमति

प्रिलिम्स के लिये:

दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016, पीडब्ल्यूडी, सीपीडब्ल्यूडी से संबंधित विभिन्न योजनाएँ

मेन्स के लिये:

वंचित वर्ग के लिये योजनाएँ , दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD) ने दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) के लिये आरक्षित किये जाने वाले जूनियर इंजीनियर (सिविल और इलेक्ट्रिकल) के 4% पदों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू की है, इस प्रावधान को दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act) द्वारा अनिवार्य बनाया गया है।

 प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय लोक निर्माण एजेंसी ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों को 4% पदों और स्थानों की पहचान करने के लिये  कहा है, जहाँ दिव्यांग व्यक्तियों को नियुक्त किया जा सकता है।
  • CPWD ने क्षेत्रीय केंद्रों को भी PwDs के लिये "उचित आवास" बनाने के निर्देश दिये हैं, जैसा कि RPwD अधिनियम में भी उल्लिखित है।
  • इससे पहले विशेषज्ञ समिति (CPWD के तहत) का मानना था कि PwDs को सर्वप्रथम उस स्थान के  लिये अपेक्षित तकनीकी योग्यता या पद की आवश्यकता है और उसके पश्चात् उन्हें उस पद के लिये चयन प्रक्रिया में प्रतिस्पर्द्धा करनी होगी।
  • बाद में समिति ने CPWD को जेई (सिविल और इलेक्ट्रिकल) की भर्ती के लिये DEPWD की अधिसूचना का पालन करने की सलाह दी।

 दिव्यांगता से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

  • राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के अंतर्गत अनुच्छेद-41 में कहा गया है कि राज्य अपनी आर्थिक क्षमता एवं विकास की सीमा के भीतर कार्य, शिक्षा व बेरोज़गारी, वृद्धावस्था, बीमारी तथा अक्षमता के मामलों में सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिये प्रभावी प्रावधान करेगा। 
  • संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची में 'दिव्यांगों और बेरोज़गारों को राहत' विषय निर्दिष्ट है।

दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016:

  • परिभाषा: 
    • दिव्यांगता को एक विकसित और गतिशील अवधारणा के आधार पर परिभाषित किया गया है।
    • बेंचमार्क दिव्यांगता से तात्पर्य अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त किसी भी प्रकार की कम-से-कम 40% दिव्यांगता से है।
  • प्रकार: 
    • दिव्यांगों के प्रकार को 7 से बढ़ाकर 21 कर दिया गया है।
    • इस अधिनियम में मानसिक बीमारी, ऑटिज़्म, स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर, सेरेब्रल पाल्सी, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, क्रोनिक न्यूरोलॉजिकल बीमारियाँ, भाषा दिव्यांगता, थैलेसीमिया, हीमोफिलिया, सिकल सेल रोग, बहरा, अंधापन, एसिड अटैक पीड़ितों और पार्किंसंस रोग सहित कई दिव्यांगताएँ शामिल हैं।
    • इसके अलावा सरकार को निर्दिष्ट दिव्यांगता की किसी अन्य श्रेणी को अधिसूचित करने के लिये भी अधिकृत किया गया है।
  • आरक्षण: 
    • दिव्यांगों के लिये सरकारी नौकरियों में आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 4% और उच्च शिक्षा संस्थानों में 3% से बढ़ाकर 5% कर दिया गया है।
  • शिक्षा:
    • बेंचमार्क दिव्यांगता वाले 6 से 18 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को मुफ्त शिक्षा का अधिकार है। समावेशी शिक्षा प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा वित्तपोषित एवं मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों की आवश्यकता होगी। 
  • अभिगम्यता:
    • सुगम्य भारत अभियान के साथ-साथ सार्वजनिक भवनों में निर्धारित समय सीमा में पहुंँच सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है।
  • नियामक संस्था:
    • दिव्यांग व्यक्तियों के लिये मुख्य आयुक्त और राज्य आयुक्त अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये नियामक एवं शिकायत निवारण निकायों के रूप में कार्य करेंगे।
  • विशेष कोष:
    • दिव्यांग व्यक्तियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिये एक अलग राष्ट्रीय और राज्य कोष बनाया जाएगा।

PwDs हेतु विभिन्न सरकारी योजनाएंँ:

  • दिशा (DISHA): 
    • यह राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के अंतर्गत आने वाले दिव्यांगों के साथ 10 वर्ष तक के बच्चों के लिये प्रारंभिक हस्तक्षेप और स्कूल तैयारी योजना है।
  • विकास (VIKAAS):
    • ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता, या बहु-दिव्यांगता वाले 10 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिये डे केयर कार्यक्रम ताकि उन्हें अपने पारस्परिक और व्यावसायिक कौशल में सुधार करने में मदद मिल सके।
  • समर्थ (SAMARTH): 
    • अनाथों, संकटग्रस्त परिवारों और बीपीएल और एलआईजी परिवारों के दिव्यांग लोगों (जिनके पास राष्ट्रीय न्यास अधिनियम द्वारा कवर की गई चार दिव्यांगताओं में से कम-से-कम एक है) के लिये राहत गृह प्रदान करने का कार्यक्रम है।
  • घरौंदा (GHARAUNDA):
    • यह योजना ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांग व्यक्ति को जीवन भर आवास और देखभाल सेवाएंँ प्रदान करती है।
  • निरामाया (NIRAMAYA) 
    • यह योजना ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांग व्यक्तियों को किफायती स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने के लिये है।
  • सहयोगी (SAHYOGI):
    • दिव्यांग लोगों (पीडब्ल्यूडी) और उनके परिवारों की कुशल देखभाल करने वालों को प्रशिक्षित करने के लिये देखभालकर्त्ता प्रकोष्ठ (Caregiver Cells-CGCs) स्थापित करने की योजना है।
  • प्रेरणा (PRERNA): 
    • ऑटिज़्म, सेरेब्रल पाल्सी, मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांग व्यक्तियों द्वारा उत्पादित उत्पादों एवं सेवाओं की बिक्री के लिये व्यावहारिक व व्यापक प्रसार चैनल बनाने के लिये एक विपणन योजना।
  • समभाव (SAMBHAV): 
    • यह एड्स, सॉफ्टवेयर और अन्य प्रकार के सहायक उपकरणों को इकट्ठा करने तथा व्यवस्थित करने के लिये प्रत्येक शहर में अतिरिक्त संसाधन केंद्र स्थापित करने की योजना है।
  • बढ़ते कदम (BADHTE KADAM):
    • यह योजना राष्ट्रीय न्यास के पंजीकृत संगठनों (आरओ) को राष्ट्रीय न्यास की अक्षमताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने की गतिविधियों को संचालित करने में सहायता करती है।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण योजनाएंँ:

केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (CPWD)

  • CPWD जुलाई 1854 में अस्तित्व में आया जब लॉर्ड डलहौजी ने सार्वजनिक कार्यों के निष्पादन के लिये एक केंद्रीय एजेंसी की स्थापना की तथा अजमेर प्रांतीय डिवीज़न की नींव रखी। 
  • यह पिछले 164 वर्षों से देश की सेवा कर रहा है।
  • यह अब एक व्यापक निर्माण प्रबंधन विभाग के रूप में विकसित हो गया है, जो परियोजना की अवधारणा से लेकर पूर्णता, परामर्श और रखरखाव प्रबंधन तक सेवाएँ प्रदान करता है।
  • इसकी अध्यक्षता महानिदेशक (DG) द्वारा की जाती है जो भारत सरकार का प्रधान तकनीकी सलाहकार भी हैं। क्षेत्रों और उप-क्षेत्रों का नेतृत्व क्रमशः विशेष महानिदेशक एवं अतिरिक्त महानिदेशक करते हैं, जबकि सभी राज्यों की राजधानियों (कुछ को छोड़कर) के क्षेत्रों का नेतृत्व मुख्य अभियंता करते हैं।
  • CPWD की पूरे भारत में उपस्थिति है तथा यह दुष्कर इलाकों में भी जटिल परियोजनाओं के निर्माण और निर्माण के बाद के चरण में रखरखाव करने की क्षमता रखता है। 
  • CPWD वर्ष 1982 के एशियाई खेलों और वर्ष 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के लिये स्टेडियमों के निर्माण एवं अन्य बुनियादी ढांँचे की आवश्यकताओं की पूर्ति में शामिल था। 

विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न.  भारत लाखों दिव्यांग व्यक्तियों का घर है। कानून के अंतर्गत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)

  1. सरकारी स्कूलों में 18 साल की उम्र तक मुफ्त स्कूली शिक्षा।
  2. व्यवसाय स्थापित करने के लिये भूमि का अधिमान्य आवंटन।
  3. सार्वजनिक भवनों में रैंप।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1                  
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3         
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: d

  • जैसा कि वर्ष 2011 में सवाल पूछा गया था, तब  दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 अस्तित्व में नहीं था। दिव्यांग व्यक्ति (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 दिव्यांग लोगों के लिये समान अवसर व राष्ट्र निर्माण में उनकी पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करता है।
  • अधिनियम दिव्यांग व्यक्तियों के लिये शिक्षा, रोज़गार और व्यावसायिक प्रशिक्षण, आरक्षण, पुनर्वास तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अधिनियम सरकारों और स्थानीय अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि प्रत्येक दिव्यांग बच्चे को 18 वर्ष की आयु तक एक उपयुक्त वातावरण में मुफ्त शिक्षा मिले तथा सामान्य स्कूलों में दिव्यांग छात्रों के समाकलन को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाए, अतः कथन 1 सही है।
  • इसके अलावा अधिनियम सरकारों और स्थानीय प्राधिकरणों को दिव्यांग व्यक्तियों के पक्ष में घर के लिये भूमि के अधिमान्य आवंटन (रियायती दरों पर), व्यवसाय स्थापित करने, विशेष स्कूलों की स्थापना, दिव्यांग उद्यमियों द्वारा कारखानों की स्थापना के लिये योजनाएंँ बनाने का निर्देश देता है। अतः कथन 2 सही है।
  • अधिनियम में अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों आदि सहित सार्वजनिक भवनों में रैंप का प्रावधान है। अतः कथन 3 सही है।

स्रोत : द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

निवेश प्रोत्साहन समझौता (IIA)

प्रिलिम्स के लिये:

निवेश प्रोत्साहन समझौता (IIA), OPIC, हिंद महासागर क्षेत्र, QUAD, मालाबार अभ्यास, BECA, GSOMIA, COMCASA, ISRO, NASA

मेन्स के लिये:

द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत अमेरिका संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका ने टोक्यो, जापान में निवेश प्रोत्साहन समझौते (IIA) पर हस्ताक्षर किये।

निवेश प्रोत्साहन समझौते (IIA) के बारे में:

  • परिचय:
    • यह निवेश प्रोत्साहन समझौता वर्ष 1997 में दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित निवेश प्रोत्साहन समझौते को प्रतिस्थापित करता है
    • वर्ष 1997 में पूर्ववर्ती IIA पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद से महत्त्वपूर्ण विकास हुए हैं, जैसे कि विकास वित्त निगम (DFC) नामक नए संगठन की स्थापना
      • संयुक्त राज्य अमेरिका के हालिया कानून, बिल्ड एक्ट 2018 के अधिनियमन के बाद DFC को पूर्ववर्ती ओवरसीज़ प्राइवेट इन्वेस्टमेंट कॉरपोरेशन (OPIC) की उत्तराधिकारी एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है।  
  • उद्देश्य:
    • DFC द्वारा प्रस्तावित अतिरिक्त निवेश सहायता कार्यक्रमों, जैसे- ऋण, इक्विटी निवेश, निवेश गारंटी, निवेश बीमा या पुनर्बीमा, संभावित परियोजनाओं और अनुदानों के लिये व्यवहार्यता अध्ययन के साथ सामंजस्य स्थापित करना।
    • समझौता DFC के लिये कानूनी आवश्यकता है ताकि भारत में निवेश सहायता प्रदान करने का कार्य जारी रखा जा सके। 
    • यह अपेक्षित है कि IIA पर हस्ताक्षर से भारत में DFC द्वारा प्रदान की जाने वाली निवेश सहायता में वृद्धि होगी, जिससे भारत के विकास में और मदद मिलेगी।

भारत में DFC की स्थिति:

  • DFC या इसकी पूर्ववर्ती एजेंसियांँ भारत में 1974 से सक्रिय रही हैं, जो कुल 5.8 अरब अमेरिकी डॉलर की निवेश सहायता प्रदान कर चुकी हैं, जिसमें से 2.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर अभी भी बकाया है।
  • भारत में निवेश सहायता प्रदान करने के लिये DFC द्वारा 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है।
  • DFC ने उन क्षेत्रों में निवेश सहायता प्रदान की है जो विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं जैसे कि कोविड-19 वैक्सीन निर्माण, स्वास्थ्य संबंधी वित्तपोषण, नवीकरणीय ऊर्जा, लघु और मध्यम उद्यम (SME) वित्तपोषण, वित्तीय समावेशन, बुनियादी ढांँचा आदि।  

भारत-अमेरिका संबंधों की वर्तमान स्थिति:

  • परिचय: 
    • भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध एक "वैश्विक रणनीतिक साझेदारी" के रूप में विकसित हुए हैं, जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं  वैश्विक मुद्दों पर हितों के बढ़ते अभिसरण पर आधारित हैं।
    • वर्ष 2015 में दोनों देशों ने दिल्ली मैत्री घोषणा जारी की और एशिया-प्रशांत तथा हिंद महासागर क्षेत्र के लिये एक संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया।
  • असैन्य-परमाणु समझौता:
  • ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन:
    • ‘साझेदारी से उन्नत स्वच्छ ऊर्जा’ (Partnership to Advance Clean Energy- PACE) पहल के अंतर्गत एक प्राथमिक पहल के रूप में अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DoI) तथा भारत सरकार ने संयुक्त स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान एवं विकास केंद्र (JCERDC) की स्थापना की है, जिसकी  अभिकल्पना स्वच्छ ऊर्जा नवाचारों को बढ़ावा देने के लिये भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है।
    • लीडर्स क्लाइमेट समिट 2021 में यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप’ (SCEP) की शुरुआत की गई।
  • रक्षा सहयोग:
    • वर्ष 2005 में 'भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के लिये नए ढाँचे' पर हस्ताक्षर के साथ रक्षा संबंध भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है, जिसे 2015 में 10 वर्षों के लिये और अद्यतित किया गया था।
    • भारत और अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण रक्षा समझौते किये हैं तथा चार देशों (भारत, अमेरिका, जापान व ऑस्ट्रेलिया) के गठबंधन ‘क्वाड’ को भी औपचारिक रूप दिया है।
      • इस गठबंधन को हिंद-प्रशांत में चीन के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
    • नवंबर 2020 में मालाबार अभ्यास ने भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों को एक अलग आयाम पर पहुँचा दिया,  यह 13 वर्षों में पहली बार था जब क्वाड के सभी चार देश चीन को  सशक्त संदेश देते हुए एक साथ एक मंच पर नज़र आए।
    • भारत के पास अब अफ्रीका में जिबूती से लेकर प्रशांत महासागर में गुआम तक अमेरिकी ठिकानों तक पहुँच है। भारत, अमेरिकी रक्षा में उपयोग की जाने वाली उन्नत संचार प्रौद्योगिकी तक भी पहुँच सकता है।
    • भारत और अमेरिका के बीच चार मूलभूत रक्षा समझौते हुए हैं:
    • भारत-अमेरिका ने आतंकवाद-रोधी सहयोग पहल पर वर्ष 2010 में हस्ताक्षर किये थे ताकि आतंकवाद का मुकाबला करने, सूचना साझा करने और क्षमता निर्माण पर सहयोग का विस्तार किया जा सके।
    • एक त्रि-सेवा अभ्यास- टाइगर ट्रायम्फ नवंबर 2019 में आयोजित किया गया था।
    • द्विपक्षीय और क्षेत्रीय अभ्यासों में शामिल हैं: युद्ध अभ्यास (सेना); वज्र प्रहार (विशेष बल); रिमपैक; रेड फ्लैग
  • व्यापार: 
    • अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है तथा भारत की वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के लिये एक प्रमुख गंतव्य है।
    • अमेरिका ने वर्ष 2020-21 के दौरान भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दूसरे सबसे बड़े स्रोत के रूप में मॉरीशस का स्थान लिया।
    • पिछली अमेरिकी सरकार ने भारत की विशेष व्यापार स्थिति (GSP) को समाप्त कर दिया और कई प्रतिबंध भी लगाए, भारत ने भी 28 अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिबंध के साथ इसका प्रत्युत्तर दिया।
  • विज्ञान प्रौद्योगिकी:

आगे की राह

  • भारत एक अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुज़र रही अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अग्रणी खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है। यह अपनी वर्तमान स्थिति का उपयोग अपने महत्त्वपूर्ण हितों को आगे बढ़ाने के अवसरों का पता लगाने के लिये करेगा।
  • भारत और अमेरिका वर्तमान में सही अर्थों में रणनीतिक साझेदार हैं - परिपक्व शक्तियों के बीच साझेदारी कभी पूर्ण एकरूपता में नहीं परिवर्तित हो पाती. इसका सरोकार निरंतर संवाद के माध्यम से मतभेदों को दूर कर नए अवसर तलाशने से होता है.

 

स्रोत : द हिंदू


सामाजिक न्याय

इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना

प्रिलिम्स के लिये:

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) , शहरी स्थानीय निकाय।

मेन्स के लिये:

इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना और इसके घटक, शहरी क्षेत्रों के लिये सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता।

चर्चा में क्यों? 

राजस्थान सरकार ने अपनी बहुप्रचारित इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार गारंटी योजना के अंतर्गत शामिल रोज़गारों के बारे में विवरण जारी किया है।

  • राजस्थान सरकार ने अपने बजट भाषण में ग्रामीण क्षेत्रों के लिये मनरेगा की तर्ज पर शहरी क्षेत्रों के लिए रोज़गार योजना की घोषणा की थी।
  • मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार उपलब्ध कराता है, जबकि इसके अंतर्गत फुटपाथ विक्रेताओं के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में ढाबों और रेस्तराँ में काम करने वालों के लिये कोई प्रावधान नहीं था।

योजना:

  • परिचय: 
    • योजना के अंतर्गत शहरी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को प्रतिवर्ष 100 दिन का रोज़गार प्रदान किया जाएगा।
    • "सामान्य प्रकृति" के श्रम कार्य के लिये सामग्री की लागत और भुगतान का अनुपात 25:75 के अनुपात में होगा, जबकि विशेष कार्यों के लिये यह अनुपात 75:25 होगा।
    • इसके अंतर्गत अधिक-से-अधिक रोज़गार उपलब्ध कराने पर ज़ोर दिया जा रहा है।
    • दूसरी ओर, संपत्ति के निर्माण के लिये एक उच्च भौतिक घटक की आवश्यकता होगी, अतः  'विशेष कार्यों' के अंतर्गत यह अनुपात 75:25 है।
  • पात्रता:
    • शहरी निकाय सीमा के भीतर रहने वाले सभी 18 से 60 वर्ष की आयु के लोग योजना के लिये पात्र हैं और विशेष परिस्थितियों जैसे कि महामारी या आपदा में प्रवासी मज़दूरों को शामिल किया जा सकता है।
  • घटक:
    • पर्यावरण संरक्षण:
      • सार्वजनिक स्थानों पर वृक्षारोपण, पार्कों का रखरखाव, फुटपाथ और डिवाइडर पर पौधों की सिंचाई, शहरी स्थानीय निकायों (ULBs), वन, बागवानी एवं कृषि विभागों के तहत नर्सरी तैयार करना।
    • जल संरक्षण: 
      • तालाबों, झीलों, बावड़ियों आदि की सफाई और सुधार के लिये वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण, मरम्मत तथा सफाई व जल स्रोतों की बहाली का कार्य कोई भी कर सकता है।
    • स्वच्छता और स्वास्थ्य-रक्षा से संबंधित कार्य: 
      • इसमें ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, श्रम कार्य, जिसमें घर-घर कचरा संग्रहण और पृथक्करण, डंपिंग स्थलों पर कचरे को अलग करना, सार्वजनिक/सामुदायिक शौचालयों की सफाई तथा रखरखाव, नाले/नाली की सफाई के साथ-साथ निर्माण एवं विध्वंस से उत्पन्न कचरे को हटाने से संबंधित कार्य शामिल हैं।
    • संपत्ति के विरूपण से संबंधित कार्य:
      • इसमें अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ अवैध बोर्ड/होर्डिंग/बैनर आदि को हटाने के लिये श्रम कार्य, साथ ही डिवाइडर, रेलिंग, दीवारों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित पेंटिंग शामिल है।
    • अभिसरण:
      • इस योजना के तहत उन लोगों को अन्य केंद्र या राज्य स्तर की योजनाओं में नियोजित किया जा सकता है जिनके पास पहले से ही भौतिक घटक है और श्रम कार्य की आवश्यकता होती है।
    • सेवा: 
      • इसमें गोशालाओं में श्रम कार्य एवं नागरिक निकायों के कार्यालयों में 'मल्टीटास्क सेवाएंँ', रिकॉर्ड कीपिंग आदि शामिल हैं। साथ ही विरासत संरक्षण से संबंधित कार्य भी शामिल हैं।
      • विविध कार्य, जैसे कि सुरक्षा/बाड़ लगाना/चारदीवारी/नगरीय निकायों और सार्वजनिक भूमि की सुरक्षा से संबंधित कार्य, शहरी निकाय की सीमा के भीतर पार्किंग स्थलों का विकास व प्रबंधन, आवारा पशुओं को पकड़ना तथा उनका प्रबंधन करना आदि।

शहरी क्षेत्रों के लिये सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता:

  • अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदानकर्त्ता: शहरी क्षेत्र देश की विकास प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। अधिकांश देशों की तरह भारत के शहरी क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं।
    • भारतीय शहर आर्थिक उत्पादन में लगभग दो-तिहाई का योगदान करते हैं, जनसंख्या के एक बढ़ते हिस्से की मेज़बानी करते हैं और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के मुख्य प्राप्तकर्त्ता हैं। वे नवाचार तथा प्रौद्योगिकी के प्रवर्तक भी हैं।   
  • व्यवसायों के लिये आकर्षण का केंद्र: 
    • शहर आर्थिक गतिविधियों की व्यापक विविधता के लिये एक सामूहिक आकर्षण केंद्र की स्थिति भी रखते हैं।  
    • अनुमापी और संकुलन लाभों (शैक्षिक सुविधाओं की आपूर्ति, आपूर्तिकर्त्ताओं की उपस्थिति आदि) के परिणामस्वरूप शहर व्यवसाय एवं लोगों को अधिक आकर्षित करते हैं।
  • सामाजिक पूंजी का केंद्र: 
    • शहर सामाजिक पूंजी का केंद्र होते हैं। वे सांस्कृतिक या सामाजिक रूप से विविधतापूर्ण समूहों के ‘मिलन बिंदु’ या भिन्न-भिन्न विचारों पर चर्चा का केंद्र होने की स्थिति भी रखते हैं। 
  • शक्ति के केंद्र:   
    • शहर निरंतर विस्तार करने वाले शक्ति के केंद्र होते हैं,जो कस्बों और गाँवों की कीमत पर अपनी स्थिति को सुदृढ़ करते हैं।

शहरी रोज़गार योजनाओं का महत्त्व:

  • ग्रामीण गरीबों के आजीविका आधार को मज़बूत करके सामाजिक समावेशन सुनिश्चित करता है।
  • यह शहरी निवासियों को काम करने का वैधानिक अधिकार देता है और इस तरह संविधान के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) को सुनिश्चित करता है।
    • उदाहरण- मध्य प्रदेश में नई राज्य सरकार ने "युवा स्वाभिमान योजना" शुरू की है
  • यह शहरी युवाओं के बीच कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिये रोज़गार प्रदान करता है और बेरोज़गारी की चिंताओं को दूर करता है।
  • इस तरह के कार्यक्रम कस्बों में बहुत ज़रूरी सार्वजनिक निवेश ला सकते हैं, जो बदले में स्थानीय मांग को बढ़ावा दे सकते हैं, शहरी बुनियादी ढांँचे और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, अर्बन कॉमन्स को बहाल कर सकते हैं, शहरी युवाओं को प्रशिक्षित कर सकते हैं तथा यूएलबी की क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं।

सरकार द्वारा की गईं अन्य पहलें: 

आगे की राह:

  • शहरी क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा तक पहुंँच प्रदान करने की आवश्यकता है
  • मौजूदा वित्तीय क्षेत्र में शहरी आजीविका योजना शुरू की जा सकती है।
    • संघ और राज्य मिलकर संसाधन उपलब्ध करा सकते हैं तथा शहरी स्थानीय निकायों को सशक्त बना सकते हैं।
  • ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिये अलग-अलग न्यूनतम मज़दूरी निर्धारित किये जाने से शहरी क्षेत्रों में पलायन नहीं होगा क्योंकि शहरी क्षेत्रों में रहने की उच्च लागत का ऑफसेट प्रभाव पड़ता है।
  • परिसंपत्ति निर्माण से सेवा वितरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। इसे परिसंपत्ति निर्माण या मज़दूरी-सामग्री अनुपात तक सीमित करना शहरी परिस्थिति में उपानुकूलतम ( Suboptimal) हो सकता है।
    • नगरपालिका सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने पर ध्यान दिया ज़ाना चाहिये।

 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2