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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एक्ट ईस्ट पॉलिसी: कितनी सार्थक!

  • 27 May 2021
  • 8 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 26/05/2021 को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित लेख “What’s going wrong with India’s Act East policy?” पर आधारित है। इस एडिटोरियल में हालिया घटनाक्रमों के कारण दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में भारतीय कूटनीति कितनी सार्थक है, इसपर चर्चा की गई है।

संदर्भ

नई दिल्ली के मुख्यमंत्री की हालिया टिप्पणी, जिसमें उन्होंने कोविड के सिंगापुर संस्करण के बारे में बात कही, के कारण, भारत और सिंगापुर का संबंध तनावपूर्ण हो गया है।

  • हालाॅंकि विदेश मंत्रालय ने आलोचनात्मक टिप्पणियों को तुरंत खारिज कर दिया। साथ ही, कई भारतीय नीति निर्माताओं और विदेश नीति विश्लेषकों ने समग्र रूप से दक्षिण पूर्व एशिया में भारत के सामने अधिक बड़ी चुनौती पेश की।
  • पिछले पाॅंच वर्षों में तीन घटनाक्रम दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय कूटनीति की अग्निपरीक्षा ले रही हैं। 
    • पहला, चीन की बढ़ती शक्तियों के साथ चीन-भारत के बढ़ते तनाव; 
    • दूसरा, आर्थिक रूप से भारत के खराब प्रदर्शन से इस क्षेत्र में निराशा; और 
    • तीसरा, इस क्षेत्र में अपने अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों के प्रति भारत के दृष्टिकोण के कारण बढ़ती चिंता।

ये घटनाक्रम एक तरह से घरेलू राजनीति की समीक्षा करते हैं और यह भारत की एक्ट ईस्ट नीति को प्रभावित कर रहे हैं।

एक्ट ईस्ट पॉलिसी का विकास

  • वर्ष 1992 के बाद जब प्रधान मंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये "पूर्व की ओर देखो नीति" की घोषणा की तब से भारत इस क्षेत्र के साथ सभी मोर्चों जैसे - राजनयिक और सुरक्षा, आर्थिक और सामाजिक स्तर पर साथ खड़ा रहा है।
  • प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव द्वारा स्थापित की नींव पर निर्माण किया और दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान) के साथ एक मजबूत संबंध बनाया। यह संबंध इतना प्रगाढ़ हुआ कि वर्ष 2007 में सिंगापुर के संस्थापक-संरक्षक, ली कुआन यू, जो भारत के प्रति एक लंबे समय से संशयवादी थे, ने चीन और भारत को एशियाई आर्थिक विकास का दो इंजन बताया।
  • इसी दृष्टिकोण को आगे बढ़ाते हुए, वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 'लुक ईस्ट' को 'एक्ट ईस्ट' पॉलिसी में रूपांतरित कर दिया।

एक्ट ईस्ट पॉलिसी की हालिया चुनौतियाॅं

  • आर्थिक स्तर पर भारत का कमज़ोर प्रदर्शन: वर्ष 2008-09 के ट्रांस-अटलांटिक वित्तीय संकट के बाद से चीन की त्वरित वृद्धि और बढ़ती मुखरता ने शुरू में इस क्षेत्र में भारत के लिये मजबूत समर्थन की भावना उत्पन्न की, जिसमें कई आसियान देश चाहते थे कि भारत चीन की बढ़ी हुई शक्ति को संतुलित करे।
  • हिंदू बहुसंख्यकवाद के बारे में चिंताएॅं: अधिकांश आसियान देशों की जनसंख्या नृजातीय चीनी, इस्लाम, बौद्ध या ईसाई धर्म का पालन करते हैं।
    • भारत में हिंदू बहुसंख्यकवाद के बारे में बढ़ती चिंता ने इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड और सिंगापुर जैसे देशों में नागरिक समाज के रवैये को प्रभावित किया है।
    • इसके अलावा, भारत ने "बौद्ध कूटनीति" को सॉफ्ट पावर रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन इस क्षेत्र में अंतर-धार्मिक तनाव बढ़ने के कारण इसकी तरफ आसियान देशों का आकर्षण अधिक नहीं हुआ है।
  • कोविड -19 महामारी का प्रभाव: महामारी की चुनौती को चीन ने कुशलता से संभाला है जबकि भारत में स्थिति बिगड़ती जा रही है।
    • इस कारण क्षेत्र के नृजातीय चीनी समुदायों और चीन के प्रति आसियान देशों में तेज़ी से उदार दृष्टिकोण का विकास हो रहा है एवं इन देशों में चीन समर्थक भावना उत्पन्न हुई है।
  • संयुक्त प्रभाव: इन सभी घटनाक्रमों ने भारत और आसियान के बीच व्यापार-से-व्यवसाय (B2B) और लोगों से लोगों (P2P) के संबंध को कमज़ोर कर दिया, बावजूद इसके कि सरकार-से-सरकार (G2G) के संबंध को बनाए रखने के लिये राजनयिकों ने बहुत प्रयास किया है।

आगे की राह

  • RCEP में लिये गए निर्णय की समीक्षा: भारत की आर्थिक शक्ति और बाज़ार का महत्त्व स्वीकार करते हुए, आरसीईपी सदस्यों ने भारत को पर्यवेक्षक सदस्य बनने के लिये आमंत्रित किया है और इसमें शामिल होने के लिये दरवाज़ा खुला छोड़ दिया है।
    • वर्तमान समय और निकट भविष्य में वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए, RCEP पर अपनी स्थिति की निष्पक्ष समीक्षा करना और संरचनात्मक सुधार करना भारत के हित में होगा।
  • सॉफ्ट पावर का लाभ उठाना: एक्ट ईस्ट पॉलिसी का पालन करते हुए सांस्कृतिक संबंध बनाए रखने में भारत का विशिष्ट लाभ हैं।
    • इस प्रकार, नीति निर्माताओं को ऐसी नीतियों से बचना चाहिये जो प्रकृति में बहुसंख्यकवादी प्रतीत होती हैं।
  • चीन से प्रतिस्पर्द्धा: जिस तरह चीन हिंद महासागर में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है, उसी तरह भारत को भी दक्षिण चीन सागर में अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिये।
    • इस संदर्भ में क्वाड और आसियान देशों के साथ भारत का जुड़ाव सही दिशा में एक कदम है।
    • हाल ही में भारतीय प्रधान मंत्री ने सुरक्षित एवं स्थिर समुद्री क्षेत्र के लिये "सागर (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा एवं विकास) (Security and Growth for All in the Region- SAGAR)) पहल" का प्रस्ताव रखा। यह समुद्र में आपदा के रोकथाम और संसाधनों का सतत उपयोग को बढ़ावा देते हुए समुद्री सुरक्षा बढ़ाने में इच्छुक राज्यों के बीच साझेदारी बनाने पर केंद्रित है।

निष्कर्ष

हाल के रुझानों से पता चलता है कि एक्ट ईस्ट पॉलिसी में निहित बेहतरीन इरादों के बावजूद, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की स्थिति और छवि को नुकसान पहुॅंचा है। इसलिये भारतीय कूटनीति को अपनी एक्ट ईस्ट नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: हाल के घटनाक्रम दक्षिण पूर्व एशियाई क्षेत्र में भारतीय कूटनीति और एक्ट ईस्ट नीति का परीक्षण कर रहे हैं। चर्चा कीजिये।

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