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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस में तुर्की का रुख- यूक्रेन संकट

  • 30 Dec 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नाटो, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र, तुर्की, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन, मिन्स्क शांति प्रक्रिया, काला सागर क्षेत्र और इसके आसपास के देश।

मेन्स के लिये:

रूस का वैश्विक प्रभाव- यूक्रेन संकट और भारत पर इसका प्रभाव, ऐसी स्थितियों में भारत जो भूमिका निभा सकता है, रूस-यूक्रेन संकट में अमेरिका की भूमिका।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तुर्की ने रूस से उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और यूक्रेन के संबंध में अपनी एकतरफा मांगों को छोड़ने का आग्रह किया।

  • तुर्की ने रूस से पश्चिमी गठबंधन (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) के साथ अपनी मांगों में एक उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने का भी अनुरोध किया।
  • इससे पहले अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों में कहा गया था कि रूस-यूक्रेन सीमा पर तनाव क्षेत्र एक बड़ा सुरक्षा संकट है।

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प्रमुख बिंदु 

  • पृष्ठभूमि:
    • इतिहास:
      • यूक्रेन और रूस सैकड़ों वर्षों से सांस्कृतिक, भाषायी और पारिवारिक संबंध साझा करते रहे हैं।
      • रूस और यूक्रेन के जातीय रूप से रूसी भागों में कई लोगों के लिये, देशों की साझा विरासत एक भावनात्मक मुद्दा है जिसका चुनावी और सैन्य उद्देश्यों के लिये प्रयोग किया गया है।
      • सोवियत संघ के हिस्से के रूप में यूक्रेन रूस के बाद दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था और रणनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण था।
    • संघर्ष:
      • जब से यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ है, रूस और पश्चिमी देशों ने इस क्षेत्र में शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में बनाए रखने के लिये और यूक्रेन में अधिक प्रभाव हेतु संघर्ष किया है।
      • साथ ही काला सागर क्षेत्र का अद्वितीय भौगोलिक स्थिति रूस को कई भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करता है।
      • पूर्वी यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र (डोनेट्स्क और लुहान्स्क क्षेत्र) वर्ष 2014 से रूस समर्थक अलगाववादी आंदोलन का सामना कर रहा है।
      • वर्ष 2014 में, रूस ने यूक्रेन से क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था, जो विश्व युद्ध-2 (1939-1945) के बाद एक यूरोपीय देश द्वारा किसी अन्य देश के क्षेत्र पर सबसे बड़ा कब्जा था।
      • वर्ष 2015 में रूस, यूक्रेन, यूरोप में सुरक्षा और सहयोग संगठन (ओएससीई) के प्रतिनिधियों और मध्यस्थता के तहत दो रूसी समर्थक अलगाववादी क्षेत्रों के नेताओं द्वारा फ्राँस और जर्मनी की मध्यस्थता से 'मिन्स्क II' शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद एक खुला संघर्ष टल गया था।
      • हाल ही में यूक्रेन ने नाटो से गठबंधन में अपने देश की सदस्यता हेतु तेज़ी लाने का आग्रह किया।
      • रूस ने इस तरह के एक कदम को "रेड लाइन" घोषित कर दिया क्योंकि वह अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधनों के विस्तार के परिणामों से चिंतित था।
  • वर्तमान स्थिति:
    • रूस अमेरिका से आश्वासन मांग रहा है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल नहीं किया जाएगा। हालाँकि अमेरिका ऐसा कोई आश्वासन देने को तैयार नहीं है।
    • पश्चिमी देशों से प्रतिबंधों में राहत और अन्य रियायतें प्राप्त करने के लिये रूस यूक्रेन की सीमा पर तनाव बढ़ा रहा है।
    • रूस के खिलाफ अमेरिका या यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा किसी भी प्रकार की सैन्य कार्रवाई पूरी दुनिया के लिये एक बड़ा संकट पैदा करेगी।
    • हालाँकि अमेरिका ने रूस की चिंताओं को कम करने के लिये नाटो गठबंधन और रूस के बीच बातचीत को फिर शुरू करने की पेशकश की है।
      • जनवरी 2022 के लिये नाटो-रूस परिषद की एक बैठक प्रस्तावित की गई है, हालाँकि यूक्रेन सार्वजनिक रूप से सहमत नहीं हुआ है।
  • तुर्की का पक्ष:
    • तुर्की ने यूक्रेन को लड़ाकू ड्रोन की आपूर्ति करके रूस को चिढ़ाया है और रूस को डर है कि यूक्रेन द्वारा पूर्वी क्षेत्रों में अलगाववादियों के साथ संघर्ष में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • साथ ही तुर्की ने रूस से एक उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणाली प्राप्त करके अमेरिका और नाटो को भी परेशान किया है जिसके परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका ने उस पर प्रतिबंध लगा दिये थे।
    • तुर्की ने रूस और पश्चिमी रक्षा गठबंधन से नाटो प्रमुख ‘जेन्स स्टोलटेनबर्ग’ द्वारा प्रस्तावित प्रत्यक्ष वार्ता के माध्यम से अपने मतभेदों को दूर करने का आग्रह किया है।
  • भारत का पक्ष
  • भारत, पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं हुआ और उसने इस मुद्दे पर एक तटस्थ स्थिति बनाए रखी।
  • नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा की गई थी। भारत ने इस मुद्दे पर पुराने सहयोगी रूस का समर्थन किया था। 

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन

  • नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों के ज़रिये सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
  • संधि के एक प्रमुख प्रावधान (अनुच्छेद 5) में कहा गया है कि यदि गठबंधन के एक सदस्य पर हमला किया जाता है, तो इसे सभी सदस्यों पर किये गए हमले के रूप में देखा जाएगा। इसने पश्चिमी यूरोप को अमेरिका के ‘परमाणु छत्र’ के तहत प्रभावी रूप से सुरक्षित किया है।
  • अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के हमलों के बाद सितंबर 2001 में नाटो ने केवल एक बार अनुच्छेद 5 को लागू किया है।
  • वर्ष 2019 तक इसमें 29 सदस्य राज्य हैं और ‘मोंटेनेग्रो’ वर्ष 2017 में गठबंधन में शामिल होने वाला नवीनतम सदस्य बन गया है।
  • ‘सुरक्षा और यूरोप में सहयोग के लिये संगठन’ (OSCE)
  • इसे वर्ष 1972 में स्थापित किया गया था और इसके पहले सम्मेलन (1973-75) में यूरोप के सभी 33 देशों (अल्बानिया के अपवाद के साथ) और संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा ने भाग लिया था।
  • ‘सुरक्षा और यूरोप में सहयोग के लिये संगठन’ (OSCE) विश्व का सबसे बड़ा सुरक्षा-उन्मुख अंतर-सरकारी संगठन है। इसके जनादेश (Mandate) में हथियार नियंत्रण, मानवाधिकारों को बढ़ावा देना, प्रेस की स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनाव जैसे मुद्दे शामिल हैं।
  • भाग लेने वाले सभी सभी 57 राज्यों को समान दर्जा प्राप्त है और निर्णय राजनीतिक रूप से सर्वसम्मति से लिये जाते हैं, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते हैं।
  • भारत इसका भागीदार देश नहीं है।
  • ओपन स्काईज़ कंसल्टेटिव कमीशन की नियमित रूप से वियना में OSCE के सचिवालय में बैठक होती है।
  • यह ओपन स्काईज़ संधि का कार्यान्वयन निकाय है, जिसने वर्ष 2002 में अपने 33 हस्ताक्षरकर्त्ताओं के क्षेत्र में निहत्थे हवाई अवलोकन उड़ानों हेतु एक नियामक शासन स्थापित किया था।

आगे की राह

  • स्थिति का एक व्यावहारिक समाधान ‘मिन्स्क शांति प्रक्रिया’ को पुनर्जीवित करना है। इसलिये पश्चिम देशों (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) को दोनों पक्षों को बातचीत फिर से शुरू करने तथा सीमा पर सापेक्ष शांति बहाल करने के लिये मिन्स्क समझौते के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने हेतु प्रेरित करना चाहिये।
  • यूरोपीय सुरक्षा को हो रहे नुकसान और यूक्रेन की संप्रभुता के लिये खतरे को रोकने हेतु अमेरिका को सभी पक्षों से OSCE-मध्यस्थता प्रक्रिया में शामिल होने हेतु समझौता करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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