भारतीय दूरसंचार क्षेत्र: चुनौतियाँ और संभावनाएँ

यह एडिटोरियल 25/11/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Don’t Wait for a Distress Call” पर आधारित है। इसमें भारतीय अर्थव्यवस्था में दूरसंचार क्षेत्र के महत्त्व के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

जुलाई 2021 में भारत ने वर्ष 1991 के अपने "बिग-बैंग" आर्थिक सुधारों के तीन दशक पूरे कर लिये। इन आर्थिक सुधारों ने देश को समाजवादी अर्थव्यवस्था मॉडल से बाज़ार-उन्मुख अर्थव्यवस्था मॉडल की ओर अग्रसर होने के लिये प्रेरित किया है। 

वर्ष 1991 से पूर्व कराधान और सार्वजनिक क्षेत्र परिचालन, पुनर्वितरण के प्रमुख तरीके माने जाते थे। वर्ष 1991 के बाद यह कराधान, प्रौद्योगिकी, स्मार्टफोन और संबंधित प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) का एक संयोजन के रूप में उभरा है। 

जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास के स्रोत कई हैं, उनमें से कुछ ही ऐसे हैं जिन्होंने पूर्ण सक्षमता से विकास एवं समावेशन के दोहरे उद्देश्यों को संबोधित किया है। दूरसंचार ऐसा ही एक विशिष्ट क्षेत्र है।

दूरसंचार क्षेत्र और आर्थिक विकास

  • दूरसंचार क्षेत्र और भारत: भारत वर्तमान में 1.20 बिलियन से अधिक ग्राहक आधार के साथ विश्व का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाज़ार है और इसने पिछले डेढ़ दशक में मज़बूत विकास दर्ज किया है।   
  • आर्थिक विकास में दूरसंचार का योगदान: दूरसंचार क्षेत्र, सरकार के लिये आयकर के बाद दूसरा सबसे अधिक राजस्व अर्जित करने वाला क्षेत्र है। इसके अलावा, डिजिटल भारत कार्यक्रम लगभग पूरी तरह से दूरसंचार क्षेत्र पर ही निर्भर है।
    • उदाहरण के लिये, दूरसंचार में निवेश में प्रति 10% की वृद्धि से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 3.2% की वृद्धि होती है।  
    • भारतीय दूरसंचार क्षेत्र ने देश के डिजिटल अवसंरचना के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
      • जून 2021 तक देश में 768 मिलियन मोबाइल ब्रॉडबैंड ग्राहक थे, जो तीन वर्ष पहले की तुलना में ग्राहकों की संख्या में दोगुनी वृद्धि को दर्शाते हैं।
    • वर्ष 2018-21 के दौरान मोबाइल डेटा ट्रैफिक में 44% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compound Annual Growth Rate- CAGR) दर्ज की गई।  
      • इसने बड़े पैमाने पर कंटेंट सेवाओं, ई-कॉमर्स, राइड-हेलिंग, हाइपर-लोकल, ई-एजुकेशन और ई-हेल्थकेयर सेवाओं के प्रसार को प्रेरित किया है। 
  • समावेशन के लिये जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी:
    • मोबाइल फोन परिष्कृत वित्तीय एकीकरण के साधन बन गए हैं, जैसा कि प्रीपेड भुगतान साधनों और मोबाइल बैंकिंग के बढ़ते उपयोग से पता चलता है।
    • जन-धन योजना (JDY) प्रौद्योगिकी के माध्यम से हाशिये पर स्थित और बैंक-सुविधा-रहित लोगों के समावेशन का प्रयास करती है।    
      • इसके तहत अक्तूबर 2021 तक कुल 440 मिलियन बैंक खाते खोले गए हैं और 310 मिलियन से अधिक लोगों को RuPay कार्ड जारी किये गए हैं, जो बैंकिंग सेवाओं के लिये वृहत मांग को दर्शाता है।
    • आधार पहचान पत्र को केवाईसी के लिये एकमात्र सत्यापन दस्तावेज़ के रूप में रखा गया है।  इसके अतिरिक्त, बैंक खातों के साथ लिंक्ड किये जाने के साथ यह प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के मेरुदंड के रूप में भी कार्य करता है।    
    • JAM ट्रिनिटी आधार संख्या को एक सक्रिय बैंक खाते से जोड़ता है और इस प्रकार आय हस्तांतरण को अनुमान योग्य और लक्षित बनाता है।
      • आधार-लिंक्ड बैंक खातों ने दक्षता में वृद्धि की है और लीकेज को कम किया है। 
  • दूरसंचार क्षेत्र में हालिया सुधार: हाल में भारत सरकार ने दूरसंचार क्षेत्र में कई संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधारों को मंज़ूरी दी है।  
    • सरकार को देय लाइसेंस शुल्क और जुर्माने के भुगतान पर तत्काल राहत प्रदान करने के अलावा इस पैकेज ने FDI सीमा का विस्तार किया है, लाइसेंस अवधि को 20 से बढ़ाकर 30 वर्ष कर दिया है, स्पेक्ट्रम-शेयरिंग पर से शुल्क हटा दिया है और स्पेक्ट्रम नीलामी के लिये समयसीमा का प्रस्ताव किया है।      

दूरसंचार क्षेत्र के समक्ष विद्यमान समस्याएँ

  • दूरसंचार नीति से संबद्ध मुद्दे: भारत में सुधार प्रायः संकट उत्पन्न होने के बाद लागू किये जाते हैं। दूरसंचार क्षेत्र के साथ भी यही स्थिति रही है। 
    • यद्यपि डिजिटल निवेश का समावेशन और विकास पर लाभकारी प्रभाव पड़ा है, लेकिन उन्होंने ऐसा किसी लहर की तरह शीर्ष-गर्त में उठते-गिरते किया है।
    • यदि दूरसंचार नीति अधिक अनुमान योग्य और कम अनियमित होती तो डिजिटलीकरण के लाभ अधिक वृहत और व्यापक हो सकते थे। 
  • दूरसंचार—एक भारी ऋणग्रस्त उद्योग: पिछले कुछ वर्षों से सरकार इस भारी ऋणग्रस्त उद्योग को उबारने के लिये संघर्षरत है. इसकी ऋणग्रस्तता के कुछ संभावित कारण हैं: 
    • एक तीव्र और दुर्बलकारी ‘प्राइस-वॉर’
    • समायोजित सकल राजस्व (AGR) की अनुपयुक्त परिभाषा 
    • ‘एक्सट्रैक्टिव’ स्पेक्ट्रम नीलामी व्यवस्था
  • दूरसंचार बाजार में संभावित द्वयाधिकार: पिछले 20 वर्षों में दूरसंचार क्षेत्र दो दर्जन से अधिक कंपनियों के लिये कब्रगाह साबित हुआ है, जिससे हितधारकों के लिये मूल्य की भारी गिरावट हुई है। 
    • भारत का दूरसंचार बाज़ार द्वयाधिकावाद (Duopoly) की राह पर जाने की कगार पर है, जहाँ चार प्रमुख ऑपरेटरों में से दो बाज़ार में बने रहने के लिये संघर्षरत हैं।

आगे की राह

  • स्पेक्ट्रम की खरीद के लिये  पूंजी पूल: सरकार दूरसंचार कंपनियों से स्पेक्ट्रम की खरीद के लिये पूंजी के एक पूल (Pool of Capital) का निर्माण कर सकती है, और दूरसंचार कंपनियों के राजस्व के एक हिस्से के लिये इसे कम अवधि के लिये लीज़ पर दे सकती है, जिससे उन्हें स्पेक्ट्रम भुगतान शुल्क की तात्कालिकता से राहत मिलेगी।  
  • स्पेशल ज़ीरो-कूपन बॉण्ड: प्रशासन को उन टेलीकॉम कंपनियों से, फेस वैल्यू पर छूट के साथ, निर्गत किये जाने के समय तुलनीय सॉवरेन बॉण्ड यील्ड के आधार पर, देय पूरी राशि के स्पेशल ज़ीरो-कूपन बॉण्ड स्वीकार करना चाहिये जो AGR वित्तपोषण समस्याओं से घिरे हैं।   
    • ज़ीरो-कूपन संरचना का अर्थ यह होगा कि दूरसंचार कंपनियों पर तत्काल कोई ब्याज़ लागत नहीं लगेगी, इस प्रकार टैरिफ वृद्धि के बिना नकदी प्रवाह पर दबाव कम होगा।  
  • प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाना, द्वयाधिकार को खत्म करना: बाज़ार में पर्याप्त प्रतिस्पर्द्धा का होना अनिवार्य है और द्वयाधिकार की स्थिति प्रतिस्पर्द्धा को अवसर नहीं देगी। 
    • दूरसंचार क्षेत्र में कम-से-कम तीन निजी कंपनियों का होना आवश्यक है।  
    • ‘स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क’ (SUC)—जो उस युग का अवशेष है जब स्पेक्ट्रम आवंटित किया गया था (ऑपरेट करने के लिये लाइसेंस के साथ), में कमी लाना केवल उसी व्यवस्था में तार्किक और उचित होगा जब स्पेक्ट्रम की उच्च कीमतों पर नीलामी की जा रही हो। 
    • अभिनव समाधानों के साथ दूरसंचार कंपनियों के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाना समय की मांग है।

अभ्यास प्रश्न: भारतीय दूरसंचार क्षेत्र ने देश के डिजिटल अवसंरचना के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चर्चा कीजिये।