भारत में विनिर्माण क्षेत्र की चुनौतियाँ और “मेक इन इंडिया” अभियान”
संदर्भ
- “हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी, प्रतिभावान, अनुशासित और मेहनती युवाशक्ति है और मैं दुनिया के देशों से अपील करता हूँ कि वे आएँ और भारत में बनाएँ”। (come, and make in india)
- ये शब्द हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जो उन्होंने 15 अगस्त 2014 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले के प्राचीर से कहे थे।
- प्रधानमंत्री का पद ग्रहण करने के बाद स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पहली बार राष्ट्र को संबोधित कर नरेन्द्र मोदी ने भारत में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर (विनिर्माण क्षेत्र) की कायापलट के लिये “मेक इन इंडिया” अभियान आरंभ करने की बात कही।
- ‘मेक इन इंडिया’ अभियान के आरंभ हुए अब तक लगभग 3.5 वर्ष बीत चुके हैं और यहाँ से हम पीछे मुड़कर देखते हैं तो इसकी तस्वीर बहुत संतोषजनक नहीं दिखती है।
- इस लेख में हम मेक इन इंडिया अभियान से संबंधित तमाम पहलुओं पर गौर करेंगे, लेकिन पहले यह देखते हैं कि आखिर हमें मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कायापलट करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की कायापलट करने की ज़रूरत क्यों?
- दुनिया के जितने भी बड़े और संपन्न राष्ट्र हैं उनके विकास की कहानी (growth story) पर नज़र दौडाएँ तो ज्ञात होता है कि भारत किन मोर्चों पर पीछे रह गया है।
- दरअसल, औद्योगिक क्रांति ने समूचे विश्व को यह दिखाया कि यदि किसी देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर मज़बूत हो तो वह कैसे उच्च आय वाला देश बन सकता है।
- चीन इसका जीता-जागता उदाहरण है। हालाँकि कुछ ऐसे भी देश रहे हैं जिन्होंने विनिर्माण के बजाय सर्विस सेक्टर (service-sector) को बढ़ावा दिया और बेहतर विकास किया, लेकिन वे देश आकार और जनसंख्या की दृष्टि से काफी छोटे देश हैं।
- भारत एक कृषि-प्रधान देश है जहाँ आजीविका के लिये लगभग आधी आबादी कृषि और कृषि संबद्ध गतिविधियों पर निर्भर है।
- लेकिन यदि भारत के जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद की बात करें तो भारत मुख्य रूप से एक सर्विस इकॉनमी नज़र आता है, सर्विस सेक्टर का सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 60 प्रतिशत का योगदान है।
- ये आँकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था की सरंचनात्मक खामियों को उज़ागर करते हैं जहाँ सेकेंडरी सेक्टर को लांघकर प्राइमरी सेक्टर से सीधे सर्विस सेक्टर की ओर छलांग लगा दी गई है।
केवल सर्विस सेक्टर की उन्नति पर आधारित ग्रोथ पैटर्न उचित क्यों नहीं?
- विदित हो कि भारत का आर्थिक ग्रोथ पैटर्न आर्थिक विकास के स्थापित मानदंडों के सापेक्ष नहीं है।
- दरअसल, यह एक स्थापित मान्यता है कि विकासशील देशों में तेज़ आर्थिक विकास के लिये औद्योगिकीकरण ही एकमात्र रास्ता है और व्यापक वृद्धि की संभावना मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में देखी जा सकती है।
- भारत और चीन की आर्थिक विकास की प्रकृति लगभग एक जैसी ही रही है, फिर भी चीन ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
- ऐसा इसलिये हुआ है क्योंकि कृषि से पलायन कर चुकी जनसंख्या को चीन के समृद्ध मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए।
- जबकि हम अपने देश में ऐसा करने में असफल रहे हैं और रोज़गार सृजन की चुनौती से लेकर किसानों की बदहाली तक लगभग प्रत्येक समस्या की डोर कहीं न कहीं इसी से जुड़ी हुई है।
- अतः मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मज़बूत किये बिना सीधे सर्विस सेक्टर में छलांग लगाना उचित नहीं कहा जा सकता।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर महत्त्वपूर्ण क्यों
- व्यापार संतुलन के लिये आवश्यक:
► हम जितना ही कम विनिर्माण करेंगे हमें उतना ही अधिक आयात करना पड़ेगा।
► आयात और निर्यात के बीच बढ़ती दूरी व्यापार असंतुलन को बढ़ावा देती है।
► अतः व्यापार संतुलन को बनाए रखने में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
- अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर मल्टीप्लायर इफेक्ट:
► मल्टीप्लायर इफेक्ट (Multiplier effect) वह प्रक्रिया है, जिसमें किसी इनपुट में लाए गए बदलाव का आउटपुट पर ज़्यादा प्रभाव देखने को मिलता है।
► जैसे यदि सरकार द्वारा निवेश में वृद्धि की जाती है तो जीडीपी में और भी वृद्धि होगी।
► दरअसल लगभग सभी आर्थिक गतिविधियाँ एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, लेकिन मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की बेहतरी का अन्य गतिविधियों पर व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है।
- कौशल विकास के लिये महत्त्वपूर्ण:
► मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में कार्य करने वाला कार्यबल कौशलयुक्त होता है और तकनीकी विकास के साथ उसके कौशल में और भी वृद्धि होती है।
► यदि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर आगे बढ़ता है तो श्रमबल को बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त करने के अवसरों में भी वृद्धि होती है जिससे वह कौशलयुक्त बनता है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर: आगे की राह
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देने के लिये सरकार के विभिन्न प्रयास
- नई औद्योगिक नीति
► वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) द्वारा मई 2017 में एक नई औद्योगिक नीति (New Industrial Policy) तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।
► वर्ष 1991 में घोषित अंतिम औद्योगिक नीति के बाद से, भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है।
► पिछले तीन सालों में भारत ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, हालाँकि इस संबंध में अभी और भी रणनीतिक कार्य किये जाने की आवश्यकता है।
► नई औद्योगिक नीति के लागू होने के बाद राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (National Manufacturing Policy) को इसके अंतर्गत शामिल कर दिया जाएगा।
- नई रक्षा खरीद नीति:
► केंद्र सरकार ने लगभग एक वर्ष पहले एक नई रक्षा खरीद नीति को मंज़ूरी दी थी, जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ पर पूरा जोर देने के साथ-साथ निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने की बात कही गई है।
► नई नीति में खरीद प्रक्रिया को सरल बनाया गया है और सौदों को पूरा करने में होने वाली देरी को दूर करने के लिये कई उपाय किये गए हैं।
► नई नीति में एक नई श्रेणी भारत में डिज़ाइन और विकसित तथा विनिर्माण (Indigenously Designed Developed and Manufactured-IDMM) को जोड़ा गया है।
► इसके तहत यह सुनिश्चित किया गया है कि सेनाओं के लिये विभिन्न खरीद में भारत में ही डिज़ाइन और विकसित उत्पादों पर ज़ोर दिया जा रहा है और उन्हें प्राथमिकता दी जा रही है।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:
► इस योजना को गैर-कारपोरेट लघु व्यापार क्षेत्र को औपचारिक वित्तीय सुविधाएँ प्रदान करने के लिये अप्रैल 2015 में शुरू किया गया।
► इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था के गैर वित्तपोषित क्षेत्र को प्रोत्साहित करना एवं बैंक वित्तपोषण सुनिश्चित करना है।
‘मेक इन इंडिया’ अभियान
- 'मेक इन इंडिया' के तहत सरकार ने वर्ष 2025 तक जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का हिस्सा बढ़ाकर 25% करने का लक्ष्य रखा है।
- इसका उद्देश्य मुख्यतः देश की विनिर्माण क्षमता को मज़बूत करना है और इसके तहत वर्ष 2022 तक 100 मिलियन रोज़गारों के सृजन का लक्ष्य तय किया गया है।
- यह पहल निम्नलिखित चार स्तम्भों पर आधारित है, जिन्हें न केवल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बल्कि अन्य क्षेत्रों में भी उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये चिन्हित किया गया है:
i) नई प्रक्रियाएँ:
- 'मेक इन इंडिया' उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये 'व्यवसाय करने में आसानी (Ease of Doing Business)' के एक मात्र सबसे महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में पहचान करता है।
- व्यवसाय के वातावरण को आसान बनाने के लिये पहले ही कई पहलें शुरू की जा चुकी हैं।
ii) नई अवसंरचना:
- सरकार औद्योगिक कॉरीडोरों और स्मार्ट सिटी का विकास करने, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से युक्त विश्वस्तरीय अवसंरचना और उच्च गति वाली संचार व्यवस्था का निर्माण करने की इच्छुक है।
- तीव्र पंजीकरण प्रणाली और आईपीआर पंजीकरण हेतु बेहतर अवसंरचना के ज़रिये नवप्रयोग और अनुसंधान क्रियाकलापों को सहायता दी जा रही है।
- उद्योग के लिये कौशल की आवश्यकता को पहचाना जाना है तथा तदनुसार कार्यबल के विकास का कार्य शुरू किया जाना है।
iii) नए क्षेत्र:
- रक्षा उत्पादन, बीमा, चिकित्सा उपकरण, निर्माण और रेलवे अवसंरचना को बड़े पैमाने पर एफडीआई के लिये खोला गया है।
- इसी प्रकार बीमा और चिकित्सा उपकरणों में एफडीआई की अनुमति दी गई है।
iv) नई सोच:
- देश के आर्थिक विकास में उद्योगों को भागीदार बनाने के लिये सरकार सहायक की भूमिका निभाएगी न कि विनियामक की।
हाल ही में चर्चा में क्यों?
- भारत में एक वर्ष में इतने लोग इंजीनियर बनते हैं जितने कि एक साल में चीन और अमेरिका दोनों में नहीं बनते। हालाँकि कई रिपोर्टों से पता चलता है कि भारत के इंजीनियरिंग संस्थान अत्याधुनिक कौशल प्रदान करने में विफल हैं।
- नैसकॉम की वर्ष 2011 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष इंजीनियर बनने वाले स्नातकों में से मात्र 17 प्रतिशत ही रोज़गार प्राप्त करने योग्य हैं।
- इससे मेक इन इंडिया अभियान के तहत वर्ष 2022 तक 100 मिलियन रोज़गार सृजन का लक्ष्य हासिल करना कठिन नज़र आ रहा है।
- मेक इन इंडिया के तहत भारत में "नवाचार को बढ़ावा और कौशल-विकास को बेहतर बनाने की बात की गई है, जबकि भारत में इंजीनियरिंग पेशे की यह हालत चिंताजनक है।
मेक इन इंडिया के तहत अब तक हुई प्रगति का लेखा-जोखा
आगे की राह
- दरअसल, मेक इन इंडिया की सफलता स्किल इंडिया और स्टैंड-अप इंडिया जैसे अभियानों की सफलता से जुड़ी है।
- विनिर्माण का वैश्विक केंद्र बनने के लिये भारत को अपनी कौशल क्षमता में विकास करना होगा।
- देश में पर्याप्त संख्या में वाणिज्यिक अदालतों की स्थापना की जानी चाहिये, ताकि व्यापार से जुड़े कानूनी विवादों का निपटारा जल्द किया जा सके।
- पूंजी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये बैंकों की NPA की समस्या को जल्द ही सुलझाना होगा।
- कारोबार आरंभ करने की प्रक्रिया को आसान बनाने में ई-गवर्नेंस की महत्त्वपूर्ण भूमिका है और इसे और बढ़ावा देना होगा।
- भूमि-आवंटन में भी तेज़ी लानी होगी और इसके लिये भूमि अधिग्रहण कानूनों में सुधार लाना होगा, साथ ही श्रम कानूनों में और भी कई बदलाव करने होंगे।
- कोई शक नहीं है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति की भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका है।