अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विश्व थैलेसीमिया दिवस
- 11 May 2018
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चर्चा में क्यों?
8 मई को पूरी दुनिया में विश्व थैलेसीमिया दिवस (World Thalassemia Day) के रूप में मनाया जाता है।
थैलेसीमिया क्या है?
- थैलेसीमिया एक स्थायी रक्त विकार (Chronic Blood Disorder) है। यह एक आनुवंशिक विकार है, जिसके कारण एक रोगी के लाल रक्त कणों (RBC) में पर्याप्त हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता है।
- इसके कारण एनीमिया हो जाता है और रोगियों को जीवित रहने के लिये हर दो से तीन सप्ताह बाद रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है।
- थैलेसीमिया माता-पिता के जींस के माध्यम से बच्चों को मिलने वाला एक आनुवंशिक विकार है।
- प्रत्येक लाल रक्त कण में हीमोग्लोबिन के अणुओं की संख्या 240 से 300 मिलियन के बीच हो सकती है।
- रोग की गंभीरता जीन में शामिल उत्परिवर्तन और उनकी अंतःक्रिया पर निर्भर करती है।
थैलेसीमिया के प्रकार
थैलेसीमिया माइनर- थैलेसीमिया माइनर में, हीमोग्लोबिन जीन गर्भधारण के दौरान विरासत में मिलता है, इसमें एक जीन माँ से और एक पिता से मिलता है। एक जीन में थैलेसीमिया के लक्षण वाले लोगों को वाहक के रूप में जाना जाता है या उन्हें थैलेसीमिया माइनर ग्रस्त कहा जाता है। थैलेसीमिया माइनर कोई विकार नहीं है इसमें व्यक्ति को केवल हल्का एनीमिया होता है।
थैलेसीमिया इंटरमीडिया- ये ऐसे मरीज़ हैं, जिनमें हल्के से लेकर गंभीर लक्षण तक मिलते हैं।
थैलेसीमिया मेजर- यह थैलेसीमिया का सबसे गंभीर रूप है। ऐसा तब होता है, जब एक बच्चे को माता-पिता प्रत्येक से दो उत्परिवर्तित जीन मिलते हैं। थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त बच्चे में जीवन के पहले वर्ष के दौरान गंभीर एनीमिया के लक्षण विकसित होते हैं। जीवित रहने के लिये उन्हें अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (Bone Marrow Transplant) या नियमित रूप से रक्त चढ़ाए जाने की आवश्यकता होती है।
प्रायः थैलेसीमिया के मरीज़ ग्रस्त होते हैं:
- एनीमिया
- कमजोर हड्डियाँ
- देर से या मंद विकास
- शरीर में लौह की अधिकता
- अपर्याप्त भूख
- बढ़ा हुआ प्लीहा या यकृत
- पीली त्वचा
तथ्य एवं आँकड़े
- भारत दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी है, जिसमें 40 मिलियन थैलेसीमिया वाहक हैं और 1,00,000 से अधिक थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त हैं, जिन्हें हर महीने रक्त की आवश्यकता होती है।
- इलाज की कमी के कारण देश भर में 1,00,000 से अधिक मरीज़ 20 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले मर जाते हैं।
- भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था।
- हर साल भारत में थैलेसीमिया मेजर से ग्रस्त 10,000 बच्चे पैदा होते हैं।