शासन व्यवस्था
SAFE आवास - विनिर्माण विकास के लिये श्रमिक आवास सुविधा
प्रिलिम्स के लिये:नीति आयोग, श्रम गतिशीलता, आर्थिक सर्वेक्षण, नोमिनल GVA, सेमीकंडक्टर, विशेष आर्थिक क्षेत्र, फ्लोर एरिया रेशियो, न्यूनतम मज़दूरी, व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण, श्रमबल। मेन्स के लिये:विनिर्माण क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने हेतु श्रमिकों के लिये आवास सुविधाओं की आवश्यकता। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग ने SAFE आवास - विनिर्माण विकास के लिये श्रमिक आवास सुविधा पर एक रिपोर्ट जारी की, यह व्यापक रिपोर्ट भारत के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने में औद्योगिक श्रमिकों के लिये सुरक्षित, सस्ती, लचीली और कुशल (SAFE) आवास की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालती है।
- यह रिपोर्ट प्रमुख चुनौतियों की पहचान करती है, कार्यान्वयन योग्य समाधान प्रस्तुत करती है तथा देश भर में ऐसी आवास सुविधाओं को बढ़ाने के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेपों पर प्रकाश डालती है।
नोट: SAFE आवास का मूल अर्थ है सुरक्षित, सस्ते, लचीले और कुशल आवास।
SAFE आवास क्या है?
- SAFE आवास: SAFE आवास एक अवधारणा है जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को उनके कार्यस्थल के निकट, आमतौर पर औद्योगिक या कारखाना स्थलों के निकट आवास सुविधाएँ प्रदान करना है।
- सुविधाएँ: इसमें दीर्घकालिक छात्रावास-शैली (Dormitory-Style) आवास शामिल है, जो सीधे श्रमिकों या उनके नियोक्ताओं को किराए पर दिया जाता है।
- इसमें जल, विद्युत, स्वच्छता सुविधाएँ और भोजन, वस्त्र धोने तथा औषधालय जैसी अन्य बुनियादी सेवाएँ शामिल हैं।
- इसमें पारिवारिक आवास शामिल नहीं है।
- उद्देश्य:
- विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये SAFE आवास के माध्यम से श्रम गतिशीलता और उत्पादकता को सुविधाजनक बनाना।
- निर्माण और संचालन के लिये अनुकूलित विनियमों के साथ श्रमिकों के आवास को महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के रूप में नामित करना।
- निजी डेवलपर्स के लिये आकर्षक रिटर्न के साथ किफायती आवास उपलब्ध कराने हेतु बाज़ार संचालित पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना।
नोट: छात्रावास-शैली (Dormitory-Style) आवास कई कमरों वाला एक बड़ा स्थान होता है जहाँ लोग सोते हैं। इसका अर्थ लोगों के रहने के लिये कई बिस्तरों वाले कमरे से भी हो सकता है।
विनिर्माण वृद्धि में कौन-से SAFE आवास सहायक हैं?
- विनिर्माण विकास: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये भारत को वर्ष 2030 तक प्रत्येक वर्ष 7.85 मिलियन रोज़गार जोड़ने की आवश्यकता है।
- कार्य स्थलों के निकट औपचारिक आवास इस विस्तार को समर्थन देने के लिये आवश्यक कार्यबल को आकर्षित और बनाए रख सकते हैं।
- महिला सशक्तीकरण: चीन में महिलाएँ 61% श्रम भागीदारी दर के साथ सकल घरेलू उत्पाद में 41% का योगदान देती हैं, जो भारत के 18% सकल घरेलू उत्पाद योगदान और न्यूनतम भागीदारी से लगभग दोगुना है।
- SAFE आवास कार्यक्रम महिलाओं के लिये सुरक्षित आवास सुनिश्चित कर सकता है तथा उनके लिये रोज़गार और अवसर उत्पन्न कर सकता है।
- क्षेत्रीय परिवर्तन: विनिर्माण क्षेत्र में 11% कार्यबल कार्यरत है और मौद्रिक GVA में इसका योगदान 14% है, जबकि कृषि क्षेत्र में 46% कार्यबल कार्यरत है लेकिन GVA में इसका योगदान केवल 18% है।
- SAFE आवास की सुविधा से कृषि से उद्योग में अधिशेष श्रमबल को स्थानांतरित करने में मदद मिल सकती है।
- भारत का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण के योगदान को 25% तक करना है। हालाँकि वित्त वर्ष 2012 से यह 14 से 16% के बीच रहा है।
- मेक इन इंडिया को समर्थन: विशिष्ट औद्योगिक केंद्र उभर रहे हैं, जैसे कि तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में असेंबली और पैकेजिंग उद्योग, तमिलनाडु के होसुर में इलेक्ट्रिक वाहन (EV) केंद्र तथा गुजरात के धोलेरा में सेमीकंडक्टर केंद्र।
- SAFE आवास व्यवस्था एक ही स्थान पर पर्याप्त कार्यबल को सुरक्षित करने में मदद कर सकती है, जिसमें प्रायः प्रवासी श्रमिक शामिल होंगे।
- आवास की बढ़ती मांग: भारत को विकसित भारत के लक्ष्यों की पूर्ति हेतु और अधिक रोज़गार सर्जन के लिये प्रतिवर्ष 9.4% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से आर्थिक विकास की आवश्यकता है।
- यह मानते हुए कि वर्ष 2033 तक, लगभग 20% कार्यबल वहनीय औपचारिक आवासन को प्राथमिकता देगा तो इस दृष्टि से विनिर्माण श्रमिकों के लिये 25 मिलियन आवास इकाइयों की आवश्यकता होगी।
- उत्पादकता और प्रतिधारण में वृद्धि: निकटस्थ और सुव्यवस्थित रूप से डिज़ाइन किये गए आवासों से श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है, कार्य में लगने वाला यात्रा समय कम हो सकता है तथा समग्र उत्पादकता में बढ़ोतरी हो सकती है।
- इससे कर्मचारियों की छंटनी की दर और भर्ती लागत कम हो जाती है, जिससे कारखानों के लिये एक स्थिर तथा कुशल कार्यबल सुनिश्चित होता है।
- वैश्विक निवेश आकर्षित करना: बहुराष्ट्रीय निगम श्रमिक कल्याण और दक्षता को प्राथमिकता देते हैं, तथा इस दृष्टि से गुणवत्तापूर्ण आवास की सुविधा प्रदान कर भारत एक पसंदीदा विनिर्माण केंद्र बन सकता है।
- यह वैश्विक श्रम मानकों के अनुरूप है जिनमें पर्याप्त और सुरक्षित श्रमिक आवास को प्राथमिकता दी गई है।
SAFE आवास के वैश्विक उदाहरण
- चीन: अधिकांश प्रवासी कारखाना श्रमिकों को नियोक्ताओं द्वारा निर्मित श्रमिक शयनगृह में आवास की सुविधा प्रदान की गई, जो प्रायः स्थानीय सरकारों द्वारा निशुल्क उपलब्ध कराई गई भूमि पर निर्मित थे।
- चीन के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में कार्यरत तीस मिलियन असेंबली लाइन श्रमिकों में से लगभग 80% महिलाएँ हैं, जिन्हें आंतरिक प्रांतों के ग्रामीण क्षेत्रों से नियोजित किया गया है।
- यहाँ आवास प्रायः रोज़गार करार का हिस्सा होता है।
- जापान: प्रारंभिक जापानी औद्योगीकरण में दूरवर्ती ग्रामों से आई महिला श्रमिकों को शयनगृह में आवास की सुविधा प्रदान की जाती थी।
- सिंगापुर: सिंगापुर में प्रवासी आवास के लिये एक अलग अधिनियम है जिसे विदेशी कर्मचारी शयनगृह अधिनियम, 2015 कहते हैं तथा श्रमिकों के शयनगृहों के लिये अलग भवन विनियम हैं।
- वियतनाम: वियतनाम ने शहरी क्षेत्रों में निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों तथा औद्योगिक पार्कों में काम करने वाले श्रमिकों के लिये 10 लाख सामाजिक आवास इकाइयों के निर्माण की योजना को स्वीकृति दी थी, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों से महिला श्रमिकों के नियोजन में सुविधा हो सके।
श्रमिक आवासन की सुविधा बढ़ाने में क्या चुनौतियाँ शामिल हैं?
- प्रतिबंधात्मक क्षेत्रीकरण विधि: औद्योगिक क्षेत्रों में आवासीय विकास पर प्रायः प्रतिबंध होता है, जब तक कि स्पष्ट रूप से अनुमति न दी जाए, जिससे श्रमिकों को अपने कार्यस्थलों से दूर रहने के लिये विवश होना पड़ता है।
- इससे यात्रा का समय और लागत बढ़ जाती है, जिससे उत्पादकता तथा प्रतिधारण प्रभावित होता है।
- रूढ़िवादी भवन उपविधि: निम्न तल क्षेत्र अनुपात (FAR) और अन्य अकुशल भूमि उपयोग नियम उपलब्ध भूमि पर उच्च क्षमता वाले आवास की संभावना को सीमित करते हैं।
- उच्च परिचालन लागत: औद्योगिक क्षेत्रों में आवसन को अक्सर वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिसके कारण संपत्ति कर और उपयोगिता दरें अधिक हो जाती हैं।
- लागतों में ये वृद्धि निजी क्षेत्र की भागीदारी को हतोत्साहित करती हैं।
- वित्तीय व्यवहार्यता: उच्च पूंजी लागत और कम रिटर्न के कारण व्यापक स्तर पर श्रमिक आवास परियोजनाएँ निजी डेवलपर्स के लिये अनाकर्षक हो जाती हैं।
- बुनियादी ढाँचा निवेशकों को 80 वर्ग फीट के लिये प्रति श्रमिक 4,000 रुपए का लीज रेंट चाहिये, जो न्यूनतम मज़दूरी वाले श्रमिक के वेतन का लगभग 30% है, जिससे यह कई लोगों के लिये वहनीय नहीं है।
- समन्वय: समन्वय संबंधी चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं, क्योंकि औद्योगिक केंद्रों को सफल होने के लिये आवास, बुनियादी ढाँचे और उद्योगों में समन्वित निवेश की आवश्यकता होती है।
आगे की राह
- नियामक अनुशंसाएँ:
- श्रमिक आवासों का पुनर्वर्गीकरण करना: SAFE आवासों को एक अलग आवासीय श्रेणी के रूप में नामित करना, यह सुनिश्चित करना कि आवासीय संपत्ति कर, विद्युत और जल के शुल्क लागू हों, साथ ही आवासों के लिये GST छूट भी हो।
- उदाहरण के लिये, लगातार 90 दिनों तक रहने पर प्रति व्यक्ति 20,000 रुपए।
- पर्यावरणीय मंज़ूरी: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा जारी मसौदा अधिसूचना में औद्योगिक शेड, स्कूल, कॉलेज तथा छात्रावासों के लिये प्रदान की गई छूट के अंतर्गत सुरक्षित आवास को शामिल करना।
- लैंगिक-समावेशी नीतियाँ: श्रमिकों के लिये उपयुक्त आवास के विकास को प्रोत्साहित करना, उनकी विशिष्ट सुरक्षा और कल्याण आवश्यकताओं को संबोधित करना।
- सुनम्य क्षेत्रीय कानून: औद्योगिक केंद्रों के निकट मिश्रित उपयोग वाले विकास की अनुमति देने के लिये क्षेत्रीय विनियमों में संशोधन करना, कार्यस्थलों के निकट श्रमिकों के आवास की सुविधा प्रदान करना।
- श्रमिक आवासों का पुनर्वर्गीकरण करना: SAFE आवासों को एक अलग आवासीय श्रेणी के रूप में नामित करना, यह सुनिश्चित करना कि आवासीय संपत्ति कर, विद्युत और जल के शुल्क लागू हों, साथ ही आवासों के लिये GST छूट भी हो।
- वित्तीय अनुशंसाएँ:
- व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF): VGF समर्थन के माध्यम से परियोजना लागत (भूमि को छोड़कर) का 30% -40% तक प्रदान किया जाता है।
- इसमें आर्थिक मामलों के विभाग (DEA) की ओर से 20% और प्रायोजक नोडल मंत्रालय की ओर से 10% तथा राज्य सरकारों की ओर से अतिरिक्त योगदान शामिल है।
- प्रतिस्पर्द्धी बोली: VGF समर्थन निर्धारित करने के लिये पारदर्शी बोली प्रक्रियाओं को लागू करना, दक्षता और लागत प्रभावशीलता सुनिश्चित करना।
- मौजूदा सुविधाओं का नवीनीकरण: ब्राउनफील्ड श्रमिकों के आवासों को उन्नत करने के लिये VGF का लाभ उठाना, जिससे उनकी सुरक्षा, क्षमता और उपयोगिता में वृद्धि होगी।
- व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF): VGF समर्थन के माध्यम से परियोजना लागत (भूमि को छोड़कर) का 30% -40% तक प्रदान किया जाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में महिलाओं की कार्यबल भागीदारी को बेहतर बनाने में SAFE आवास किस प्रकार योगदान दे सकता है? उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में सम्मिलित है? (2020)
नीचे दिये गए कोड का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. बेहतर नगरीय भविष्य की दिशा में कार्यरत संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम में संयुक्त राष्ट्र पर्यावास (UN-Habitat) की भूमिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न 1. भारत में नगरीय जीवन की गुणता की संक्षिप्त पृष्ठभूमि के साथ, ‘स्मार्ट नगर कार्यक्रम’ के उद्देश्य और रणनीति बताइये। (2016) प्रश्न 2. भारत में तीव्र शहरीकरण प्रक्रिया ने जिन विभिन्न सामाजिक समस्याओं को जन्म दिया, उनकी विवेचना कीजिये। (2013) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
राज्य वित्त 2024-25 पर RBI की रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक, कर संग्रहण में उछाल, सकल घरेलू उत्पाद, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन, केंद्र प्रायोजित योजनाएँ, राज्य माल एवं सेवा कर मेन्स के लिये:राज्यों की राजकोषीय स्थिति पर सब्सिडी का प्रभाव, सतत् विकास के लिये राजकोषीय अनुशासन, राज्य बजट |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) राज्य वित्त: 2024-25 के बजट का अध्ययन, विषयक रिपोर्ट जारी की, जिसमें राजकोषीय समेकन में राज्य सरकारों द्वारा की गई प्रगति पर प्रकाश डाला गया और साथ ही उच्च ऋण स्तर तथा बढ़ती सब्सिडी जैसी गंभीर चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला गया।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- महामारी के बाद राज्यों का प्रदर्शन:
- बेहतर कर राजस्व: औसत कर संग्रहण में उछाल (आर्थिक विकास दर में परिवर्तन के प्रति कर राजस्व की अनुक्रियाशीलता) 0.86 (2013 से 2020 के दौरान) से बढ़कर 1.4 (2021-25 के दौरान) हो गई, जो कर संग्रह में बेहतर दक्षता को दर्शाती है।
- उच्च कर राजस्व से राज्यों द्वारा राजमार्गों और पुलों सहित परिसंपत्ति निर्माण के लिये अधिक धनराशि आवंटित करने में सहायता प्राप्त हुई है।
- पूंजीगत व्यय: राज्यों ने व्यय की गुणवत्ता में लगातार सुधार किया है, पूंजीगत व्यय 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 2.4 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 2.8 प्रतिशत हो गया तथा इसके लिये 2024-25 में जीडीपी का 3.1 प्रतिशत बजट किया गया है।
- इससे विकास को बढ़ावा देने वाले निवेश के साथ व्यय की गुणवत्ता में सुधार लाने पर निरंतर ध्यान केंद्रित करने का संकेत मिलता है।
- राजकोषीय अनुशासन: राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा 2024-25 के लिये सकल घरेलू उत्पाद का 3.2% निर्धारित किया गया है, जो 2023-24 (2.9%) के स्तर में साधारण वृद्धि है।
- राज्यों का राजस्व व्यय वित्त वर्ष 25 में बढ़कर 47.5 ट्रिलियन रुपए होने का अनुमान है, जो सकल घरेलू उत्पाद का 14.6% है, जबकि वित्त वर्ष 24 में यह 39.9 ट्रिलियन रुपए या सकल घरेलू उत्पाद का 13.5% था।
- बेहतर कर राजस्व: औसत कर संग्रहण में उछाल (आर्थिक विकास दर में परिवर्तन के प्रति कर राजस्व की अनुक्रियाशीलता) 0.86 (2013 से 2020 के दौरान) से बढ़कर 1.4 (2021-25 के दौरान) हो गई, जो कर संग्रह में बेहतर दक्षता को दर्शाती है।
- उधार पर निर्भरता: राज्यों की बाज़ार उधार पर निर्भरता बढ़ गई है, जो वित्त वर्ष 2025 में सकल राजकोषीय घाटे (GFD) का 79% था।
- वित्त वर्ष 2023-24 में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सकल बाज़ार उधारी 32.8% बढ़कर 10.07 ट्रिलियन रुपये हो गई।
- उन्नत ऋण स्तर: राज्यों का ऋण-से-GDP अनुपात (आर्थिक उत्पादन की तुलना में ऋण का सापेक्ष माप) मार्च 2021 में GDP के 31.0% से घटकर मार्च 2024 में 28.5% हो गया, लेकिन मार्च 2019 में महामारी-पूर्व स्तर 25.3% से अधिक रहा।
- राज्यों का ऋण स्तर राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन समिति द्वारा 2023 तक 60% तक ऋण-से-GDP अनुपात की सिफारिश से अधिक है (जिसमें केंद्र सरकार के लिये 40% और राज्य सरकारों के लिये 20%)।
- अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे राज्यों ने उच्च राजकोषीय घाटे का अनुमान लगाया है, जबकि गुजरात तथा महाराष्ट्र जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में घाटा कम है।
- विद्युत वितरण कंपनियाँ (DISCOM) राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव बना रही हैं तथा इनका संचित घाटा वर्ष 2022-23 तक 6.5 लाख करोड़ रुपए (भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 2.4%) तक पहुँच गया।
- राज्यों के बजट से संबंधित चिंताएँ:
- सब्सिडी का बढ़ता बोझ: विभिन्न राज्यों ने “कृषि ऋण माफी, मुफ्त/सब्सिडी वाली सेवाएँ (जैसे- कृषि और घरों के लिये विद्युत, परिवहन, गैस सिलेंडर तथा किसानों, युवाओं एवं महिलाओं को नकद हस्तांतरण)” की घोषणा की है।
- इन उपायों से महत्त्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक बुनियादी ढाँचे के लिये निर्धारित धनराशि के खत्म होने का जोखिम है।
- महिलाओं के लिये आय हस्तांतरण (लगभग 2 लाख करोड़ रुपए, सकल घरेलू उत्पाद का ~0.6%) जैसी सब्सिडी योजनाएँ राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव डालती हैं।
- राजस्व सृजन: वित्त वर्ष 2025 में गैर-कर स्रोतों और केंद्रीय अनुदानों से राजस्व में कमी का अनुमान है।
- राज्य कर राजस्व के प्राथमिक स्रोत, राज्य वस्तु एवं सेवा कर (SGST) की वृद्धि की गति धीमी हो गई है।
- राजकोषीय पारदर्शिता का अभाव: बजट से इतर देनदारियों की अपर्याप्त रिपोर्टिंग वास्तविक राजकोषीय स्थिति को अस्पष्ट कर देती है।
- सब्सिडी का बढ़ता बोझ: विभिन्न राज्यों ने “कृषि ऋण माफी, मुफ्त/सब्सिडी वाली सेवाएँ (जैसे- कृषि और घरों के लिये विद्युत, परिवहन, गैस सिलेंडर तथा किसानों, युवाओं एवं महिलाओं को नकद हस्तांतरण)” की घोषणा की है।
राज्य वित्त पर RBI की सिफारिशें क्या हैं?
- ऋण समेकन: ऋण में कमी के लिये स्पष्ट, पारदर्शी और समयबद्ध मार्ग स्थापित करना। राजकोषीय जवाबदेही में सुधार के लिये देनदारियों की एक समान रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना।
- रिपोर्ट में "अगली पीढ़ी" के राजकोषीय नियमों का आह्वान किया गया है, जो राज्यों को आघातों से निपटने के लिये लचीलापन प्रदान करते हैं, साथ ही मध्यम अवधि की राजकोषीय स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।
- व्यय दक्षता: परिणाम-आधारित और जलवायु-संवेदनशील बजट पर ध्यान केंद्रित करना।
- राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं के लिये संसाधनों को मुक्त करने और राजकोषीय तनाव को कम करने के लिये केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) को प्रभावी ढंग से युक्तिसंगत बनाना ।
- सब्सिडी को युक्तिसंगत बनाना: सब्सिडी को अधिक उत्पादक व्यय पर हावी होने से रोकने के लिये उसे नियंत्रित और अनुकूलित करना।
- प्रभावी बाज़ार ऋण: राजकोषीय घाटे का प्रबंधन करने और वित्तीय कमज़ोरियों को न्यूनतम करने के लिये बाज़ार ऋण पर अत्यधिक निर्भरता को कम करना।
- राजस्व सृजन: SGST, स्टांप ड्यूटी और अन्य प्रमुख राजस्व स्रोतों के लिये संग्रह तंत्र को मज़बूत करना। बाज़ार ऋण पर निर्भरता कम करने के लिये गैर-कर राजस्व तथा अनुदान में वृद्धि करना।
नोट: सब्सिडी एक सरकारी लाभ है जो व्यक्तियों या संस्थाओं को प्रत्यक्ष रूप से (नकद भुगतान) या अप्रत्यक्ष रूप से (कर छूट) प्रदान किया जाता है, जिसका उद्देश्य भार को कम करना और सामाजिक या आर्थिक लक्ष्यों को बढ़ावा देना है।
सब्सिडी और राजकोषीय अनुशासन में संतुलन की क्या आवश्यकता है?
- सब्सिडी का महत्त्व:
- मानव विकास: सब्सिडी, स्वास्थ्य देखभाल और आय हस्तांतरण जैसे कल्याणकारी कार्यक्रम सुभेद्द आबादी को सहायता प्रदान करते हैं।
- उदाहरण के लिये, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) गरीब परिवारों को सब्सिडी वाले LPG कनेक्शन प्रदान करती है, जिससे पारंपरिक खाना पकाने से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरे कम होते हैं।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) निम्न आय वाले परिवारों को सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न उपलब्ध कराती है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण के लिये, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) गरीब परिवारों को सब्सिडी वाले LPG कनेक्शन प्रदान करती है, जिससे पारंपरिक खाना पकाने से होने वाले स्वास्थ्य संबंधी खतरे कम होते हैं।
- आर्थिक समानता: सब्सिडी धन का पुनर्वितरण करके आय असमानता को कम करने में मदद करती है, जो अधिक समावेशी विकास में योगदान दे सकती है।
- सब्सिडी गरीबों पर बाज़ार की ताकतों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने में मदद करती है तथा आर्थिक संकट के समय सुरक्षा कवच प्रदान करती है।
- मानव विकास: सब्सिडी, स्वास्थ्य देखभाल और आय हस्तांतरण जैसे कल्याणकारी कार्यक्रम सुभेद्द आबादी को सहायता प्रदान करते हैं।
- राजकोषीय अनुशासन का महत्त्व:
- स्थायी सार्वजनिक वित्त: उचित वित्तपोषण के बिना अत्यधिक कल्याणकारी व्यय से उच्च घाटा और सार्वजनिक ऋण बढ़ सकता है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
- राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने से सरकारी व्यय स्थायी रहता है तथा अत्यधिक घाटे से बचाव होता है।
- निवेशकों का विश्वास: राजकोषीय अनुशासन बनाए रखना यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि बाज़ार और विदेशी निवेशक देश को एक विश्वसनीय आर्थिक साझेदार के रूप में देखते रहें।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) और राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, 2013 जैसी योजनाओं के माध्यम से राजकोषीय समेकन पर सरकार का ध्यान स्थिर राजकोषीय प्रबंधन सुनिश्चित करता है।
- आर्थिक विकास: उत्पादक निवेश की कीमत पर कल्याणकारी व्यय पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करने से आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है तथा सतत् विकास के लिये उपलब्ध संसाधन कम हो सकते हैं।
- सब्सिडी और राजकोषीय अनुशासन में संतुलन:
- लक्षित कल्याण कार्यक्रम: किसानों के लिये प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान) और कुशल सब्सिडी वितरण के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना जैसे लक्षित कल्याण व्यय, यह सुनिश्चित करते हैं कि संसाधन ज़रूरतमंदों तक पहुँचें, प्रभाव को अधिकतम करें और अपव्यय को न्यूनतम करें।
- डिजिटल इंडिया और आधार से जुड़े लाभों के माध्यम से कल्याणकारी कार्यक्रमों को सुव्यवस्थित करने से सब्सिडी दक्षता में सुधार होता है, लीकेज कम होती है, तथा बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश के लिये संसाधन उपलब्ध होते हैं।
- राजस्व वृद्धि: GST के माध्यम से कर आधार को मज़बूत करने से राजस्व संग्रह में वृद्धि होती है। उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) जैसी पहलों का विकास, जो अतिरिक्त सब्सिडी के बजाय दीर्घकालिक आय प्रदान कर सकते हैं, कल्याण और निवेश दोनों के लिये राजकोषीय स्थान बनाता है।
- आर्थिक स्थिरता: राजकोषीय अनुशासन बनाए रखने से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने, सार्वजनिक ऋण को कम करने और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने में सहायता मिलती है।
- लक्षित कल्याण कार्यक्रम: किसानों के लिये प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान) और कुशल सब्सिडी वितरण के लिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना जैसे लक्षित कल्याण व्यय, यह सुनिश्चित करते हैं कि संसाधन ज़रूरतमंदों तक पहुँचें, प्रभाव को अधिकतम करें और अपव्यय को न्यूनतम करें।
- स्थायी सार्वजनिक वित्त: उचित वित्तपोषण के बिना अत्यधिक कल्याणकारी व्यय से उच्च घाटा और सार्वजनिक ऋण बढ़ सकता है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
निष्कर्ष
भारत के विकास पथ को बनाए रखने के लिये राजकोषीय अनुशासन के साथ सब्सिडी को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण है। संसाधनों का कुशल आवंटन, कल्याणकारी व्यय और राजस्व सृजन में रणनीतिक सुधारों के साथ, एक स्थिर और समृद्ध अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: कल्याणकारी व्यय और राजकोषीय अनुशासन के बीच संतुलन बनाने में भारतीय राज्यों के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सQ1. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव में सर्वाधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है? (2021) (a) सार्वजनिक ऋण की चुकौती उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न 3. निम्नलिखित में से किसको/किनको भारत सरकार के पूंजी बजट में शामिल किया जाता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
कृषि
भारत के FPO का वैश्वीकरण
प्रिलिस्म के लिये:किसान उत्पादक संगठन, भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद, लघु कृषक कृषि व्यापार संघ, सहकारी समिति, लघु और सीमांत किसान, FSSAI, BIS, APEDA, मसाला बोर्ड, ONDC, eNAM, कंधमाल हल्दी, स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी उपाय मेन्स के लिये:किसान उत्पादक संगठनों (FPO) संबंधी चुनौतियाँ और अवसर |
स्रोत: फाइनेंशियल एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) ने भारत के किसान उत्पादक संगठनों (FPO) की समस्याओं का विश्लेषण किया और सुधार के सुझाव दिये।
- ICRIER (1981) एक प्रमुख भारतीय नीति अनुसंधान प्रबुद्ध मंडल है जो कृषि, जलवायु परिवर्तन, डिजिटल अर्थव्यवस्था, आर्थिक विकास आदि क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखता है।
एक कृषक उत्पादक संगठन क्या होता है?
- परिचय: FPO एक प्रकार का उत्पादक संगठन (PO) है, जिसके सदस्य किसान होते हैं।
- लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (SFAC) FPO के संवर्द्धन में सहायता प्रदान करता है।
- PO किसी भी उत्पाद के उत्पादकों के संगठन के लिये एक सामान्य नाम है, जैसे- कृषि, गैर-कृषि उत्पाद, शिल्पकारी उत्पाद, इत्यादि।
- PO एक उत्पादक कंपनी, एक सहकारी समिति या कोई अन्य विधिक रूप हो सकता है जो सदस्यों के बीच लाभ/हितलाभ को साझा करने का प्रावधान करता है।
- FPO की आवश्यकता: लघु और सीमांत किसानों को व्यापक स्तर के लाभ प्राप्त करने में मदद करना, सामूहिक रूप से संवाद करके उनकी सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ाना, उनकी आय को दोगुना करना एवं वैश्विक बाज़ारों में उनकी पहुँच बढ़ाना।
- भारत में 86% किसान लघु और सीमांत किसान हैं।
- स्वामित्व: FPO का स्वामित्व उसके सदस्यों के पास होता है। यह उत्पादकों का, उत्पादकों द्वारा तथा उत्पादकों के लिये एक संगठन है।
- FPO के विधिक स्वरूप: FPO को निम्नलिखित के तहत पंजीकृत किया जा सकता है:
- कंपनी अधिनियम, 1956 और कंपनी अधिनियम, 2013।
- सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के अंतर्गत पंजीकृत सोसायटी
- भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के तहत पंजीकृत लोक न्यास
PO और सहकारी समितियों में अंतर:
मापदंड |
सहकारी समिति |
उत्पादक संगठन |
उद्देश्य |
एकल उद्देश्य |
मल्टी ऑब्जेक्ट |
सदस्यता |
व्यक्ति एवं सहकारी समितियाँ |
कोई भी व्यक्ति, समूह, संघ, वस्तुओं या सेवाओं का उत्पादक |
सरकारी नियंत्रण |
हस्तक्षेप के विषय में अत्यधिक संरक्षित |
न्यूनतम, वैधानिक आवश्यकताओं तक सीमित |
प्रारक्षित निधि |
लाभ होने पर निर्मित किया जाता है |
प्रत्येक वर्ष निर्मित किया जाना अनिवार्य |
भारत के FPO को कौन-सी समस्याएँ परेशान कर रही हैं?
- सीमित बाज़ार संपर्क: लगभग 80% FPO खरीदारों, विनिर्माताओं, प्रसंस्करणकर्त्ताओं और निर्यातकों की पहचान करने तथा उन तक पहुँचने में असमर्थ हैं।
- उत्पाद संबंधी जानकारी का अभाव: यद्यपि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर 8,000 से अधिक FPO पंजीकृत हैं, लेकिन इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि वे किन उत्पादों की आपूर्ति करते हैं।
- जानकारी के अभाव के कारण कंपनियाँ और विदेशी अभिकर्त्ता व्यापारियों तथा पारंपरिक मंडियों के माध्यम से सामान खरीदने में रुचि रखते हैं।
- जटिल विनियमन:
- मानकों की बहुलता: FSSAI, BIS, APEDA और मसाला बोर्ड जैसी विभिन्न एजेंसियाँ अलग-अलग मानक प्रदान करती हैं, जिससे FPO अनुपालन तथा बाज़ार पहुँच के बारे में भ्रमित हो जाते हैं।
- सूचना का अभाव: लगभग 72% FPO को घरेलू मानक-निर्धारण प्रक्रिया बहुत जटिल लगती है, उन्हें निर्यात मानकों और आवश्यकताओं के बारे में पर्याप्त जानकारी का अभाव रहता है।
- आयातक देशों द्वारा अस्वीकृति: बहुत कम देशों ने भारत के साथ मानकों के लिये पारस्परिक मान्यता समझौते किये हैं।
- यद्यपि हमारे मानक अच्छे हैं, फिर भी आयातक देशों द्वारा उन्हें शायद ही कभी स्वीकार किया जाता है।
- ट्रेसेबिलिटी संबंधी मुद्दे: वैश्विक खरीदार उत्पाद संबंधी ट्रेसेबिलिटी चाहते हैं, कई FPO को यह नहीं पता कि इसे कैसे लागू किया जाए।
- उत्पाद संबंधी ट्रेसिबिलिटी प्रत्येक चरण पर विनिर्माण डेटा को लॉग करती है साथ ही मॉनिटर करके आपूर्ति शृंखला के माध्यम से उत्पादों को ट्रैक करती है।
- ई-कॉमर्स को सीमित रूप से अपनाना: ONDC और E-नाम जैसी सरकारी पहलों के बावजूद, FPO के पास ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों का प्रभावी ढंग से लाभ उठाने के लिये जागरूकता तथा क्षमता सीमित है।
- उदाहरण के लिये नवंबर 2024 तक कोई भी टर्मरिक FPO ONDC पर सूचीबद्ध नहीं है।
भारत में FPO की सफलता की कहानी
- ओडिशा में कंधमाल हल्दी को बढ़ावा देने के लिये कंधमाल एपेक्स स्पाइसेस एसोसिएशन फॉर मार्केटिंग (KASAM) की स्थापना की गई है। यह ओडिशा सरकार के तहत 61 मसाला विकास समितियों का सहयोग है।
- इसने किसान साथी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत किसान साथी दो KASAM FPO - गुमापदार FPC लिमिटेड और शास्त्री FPC लिमिटेड के साथ कार्य कर रहा है - ताकि उन्हें वैश्विक बाज़ारों तक पहुँचने में मदद मिल सके।
- गुमापदर FPC लिमिटेड नीदरलैंड से नेडस्पाइस ग्रुप को कंधमाल हल्दी का निर्यात कर रहा है।
- इसने किसान साथी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत किसान साथी दो KASAM FPO - गुमापदार FPC लिमिटेड और शास्त्री FPC लिमिटेड के साथ कार्य कर रहा है - ताकि उन्हें वैश्विक बाज़ारों तक पहुँचने में मदद मिल सके।
- यह दर्शाता है कि रणनीतिक साझेदारी और समन्वित प्रयासों से FPO बाज़ार की बाधाओं को पार कर सकते हैं, जो वैश्विक भी हो सकते हैं।
वैश्विक सफलता की कहानियाँ
- मेक्सिको (एजिडो प्रणाली): एजिडो सामुदायिक कृषि प्रणाली है, जहाँ भूमि का स्वामित्व और प्रबंधन सामूहिक रूप से समुदायों द्वारा किया जाता है।
- इससे किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों तक पहुँचने में मदद मिली, विशेष रूप से एवोकाडो और बेरी जैसी फसलों में।
- थाईलैंड: थाईलैंड में कृषि सहकारी समितियों का एक मज़बूत नेटवर्क है, विशेष रूप से चावल उत्पादन में।
- "एक तांबून (गाँव) एक उत्पाद" जैसे कार्यक्रम अद्वितीय स्थानीय कृषि उत्पादों को बढ़ावा देते हैं।
- चीन: चाय, फल और जलीय कृषि जैसे क्षेत्रों में कृषक व्यावसायिक सहकारी समितियों (FPC) ने सफलतापूर्वक वैश्विक बाज़ारों में प्रवेश किया है।
- अलीबाबा जैसे प्लेटफॉर्म ने सहकारी समितियों को सीधे उपभोक्ताओं को विक्रय करने में सक्षम बनाया है ।
आगे की राह
- FPO का डेटाबेस: FPO का विस्तृत, उत्पाद-विशिष्ट डेटाबेस विकसित करना, ताकि वैश्विक कंपनियाँ प्रासंगिक FPO का पता लगा सकें और उनके साथ जुड़ सकें।
- बेहतर मूल्य प्राप्ति के लिये दृश्यता (Visibility) और साझेदारी को बढ़ावा देना तथा उत्पाद का पता लगाने की कमी जैसी बाधाओं को दूर करना।
- ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म: FPO को ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर लाने के लिये अधिक समर्थन की आवश्यकता है, साथ ही किसानों को ई-नाम जैसे सरकारी प्लेटफॉर्म का उपयोग करने के बारे में शिक्षित करने की भी आवश्यकता है ताकि उन्हें बाज़ार तक पहुँच बढ़ाने में मदद मिल सके।
- वैश्विक अनुपालन मानक: भारत के कृषि उत्पादों को अस्वीकार किये जाने से बचाने के लिये स्वच्छता और पादप स्वच्छता उपायों, अधिकतम अवशेष स्तरों तथा व्यापार में तकनीकी बाधाओं जैसे वैश्विक अनुपालन मानकों पर ज्ञान का हस्तांतरण महत्त्वपूर्ण है।
- उत्पाद-विशिष्ट प्रशिक्षण: प्रमुख बाज़ारों के लिये अनुपालन मानकों और विनियमों से संबंधित उत्पाद-विशिष्ट प्रशिक्षण तथा दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है ।
- सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देना: कंधमाल हल्दी FPO जैसे सफल केस स्टडीज़ की पहचान करना और संरचित ज्ञान-साझाकरण तंत्र के माध्यम से इन मॉडलों को दोहराना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में FPO के सामने आने वाली प्रमुख चुनौतियों की जाँच कीजिये और किसानों की बाज़ार पहुँच बढ़ाने में उन्हें अधिक प्रभावी बनाने के लिये सुधार सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(b) प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न: "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014) |
जैव विविधता और पर्यावरण
18वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023
प्रिलिम्स के लिये:भारत वन स्थिति रिपोर्ट, भारतीय वनविज्ञानी, कार्बन स्टॉक, पश्चिमी घाट ज्वालामुखी-संवेदनशील क्षेत्र, मैंग्रोव, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, कार्बन डाईऑक्साइड, क्षरित भूमि, बॉन चैलेंज, वैश्विक वन स्रोत आकलन, FAO, वन वर्गीकरण, राष्ट्रीय कृषि आयोग, UNDP, विकृति स्वास्थ्य, जैवविविधता, पेरिस समझौता। मेन्स के लिये:भारत में वन एवं वृक्ष आवरण की स्थिति। |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 शृंखला की 18वीं रिपोर्ट (ISFR 2023) जारी की।
- ISFR को भारतीय वन विज्ञानी (F-असोसिएटर) द्वारा वर्ष 1987 में द्विवार्षिक आधार पर प्रकाशित किया गया था।
ISFR 2023 के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- वन एवं वृक्ष क्षेत्रफल: देश का कुल वन वृक्ष क्षेत्रफल 8,27,356.95 वर्ग किमी है, जो देश का भौगोलिक क्षेत्र (GA) का 25.17% है।
- कुल वन क्षेत्रफल 7,15,342.61 वर्ग किलोमीटर ( 21.76%) है, जबकि वृक्ष क्षेत्रफल 1,12,014.34 वर्ग किलोमीटर (3.41%) है।
वर्ग |
क्षेत्रफल (किमी.²) |
भौगोलिक क्षेत्र (GA) का प्रतिशत |
वन आवर्द्धन |
7,15,342.61 |
21.76% |
वृक्षारोपण |
1,12,014.34 |
3.41% |
कुल वन एवं वृक्ष क्षेत्रफल |
8,27,356.95 |
25.17% |
स्क्रब |
43,622.64 |
1.33% |
गैर वन क्षेत्र |
24,16,489.29 |
73.50% |
देश का भौगोलिक क्षेत्र |
32,87,468.88 |
100.00% |
- वन एवं वृक्षावरण में वृद्धि: देश के वन एवं वृक्षावरण में 1,445.81 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है, जिसमें वर्ष 2021 की तुलना में वनावरण में 156.41 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
- अधिकतम वृद्धि (वन एवं वृक्षावरण): छत्तीसगढ़ (684 वर्ग किमी.) उसके बाद उत्तर प्रदेश (559 वर्ग किमी.), ओडिशा (559 वर्ग किमी.) तथा राजस्थान (394 वर्ग किमी.)।
- अधिकतम वृद्धि (वनावरण): मिज़ोरम (242 वर्ग किमी.) उसके बाद गुजरात (180 वर्ग किमी.) और ओडिशा (152 वर्ग किमी.)।
- सबसे ज़्यादा कमी: मध्यप्रदेश (612.41 वर्ग किमी.) उसके बाद कर्नाटक (459.36 वर्ग किमी.), लद्दाख (159.26 वर्ग किमी.) और नगालैंड (125.22 वर्ग किमी.)।
- क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे अधिक वन क्षेत्र वाले शीर्ष तीन राज्य मध्यप्रदेश (77,073 वर्ग किमी.) हैं, जिसके बाद अरुणाचल प्रदेश (65,882 वर्ग किमी.) और छत्तीसगढ़ (55,812 वर्ग किमी.) हैं।
- कुल भौगोलिक क्षेत्र के संबंध में वनावरण के प्रतिशत की दृष्टि से, लक्षद्वीप (91.33%) में सबसे अधिक वनावरण है, जिसके बाद मिज़ोरम (85.34%) और अंडमान एवं निकोबार द्वीप (81.62%) का स्थान है।
- उच्च वनावरण: 19 राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में 33% से अधिक भौगोलिक क्षेत्र वनावरण के अंतर्गत है।
- इनमें से आठ राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों अर्थात् मिज़ोरम, लक्षद्वीप, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय, त्रिपुरा और मणिपुर में वन क्षेत्र 75% से अधिक है।
- कार्बन स्टॉक: देश का वन कार्बन स्टॉक 7,285.5 मिलियन टन अनुमानित है, जो वर्ष 2021 की तुलना में 81.5 मिलियन टन अधिक है।
- शीर्ष 3: अरुणाचल प्रदेश (1,021 मीट्रिक टन) उसके बाद मध्य प्रदेश (608 मीट्रिक टन), छत्तीसगढ़ (505 मीट्रिक टन) और महाराष्ट्र (465 मीट्रिक टन)।
- भारत का कार्बन स्टॉक 30.43 बिलियन टन CO2 समतुल्य तक पहुँच गया है, जो वर्ष 2005 के आधार वर्ष से 2.29 बिलियन टन अधिक है तथा वर्ष 2030 के 2.5-3.0 बिलियन टन के लक्ष्य के करीब है।
- क्षेत्रीय प्रदर्शन: पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र (WGESA) 60,285.61 वर्ग किमी में फैला हुआ है, जिसमें से 44,043.99 वर्ग किमी. (73%) क्षेत्र वन क्षेत्र के अंतर्गत है।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में कुल वन एवं वृक्षावरण 1,74,394.70 वर्ग किमी. है, जो इन राज्यों के भौगोलिक क्षेत्र का 67% है।
- मैंग्रोव आवरण: भारत का मैंग्रोव आवरण 4,991.68 वर्ग किमी. है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15% है, जिसमें 2021 से 7.43 वर्ग किमी. की कमी आई है।
- गुजरात में मैंग्रोव आवरण में 36.39 वर्ग किमी. की कमी देखी गई, जबकि आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में क्रमशः 13.01 वर्ग किमी. और 12.39 वर्ग किमी. की वृद्धि देखी गई।
- वनाग्नि: वर्ष 2023-24 सीज़न में सबसे अधिक आग की घटनाओं वाले शीर्ष तीन राज्य उत्तराखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ हैं।
नोट
- पेरिस समझौता: पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते में की गई राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रतिबद्धताओं में, भारत ने वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वनावरण और वृक्षावरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक बनाने का संकल्प लिया है।
- बॉन चैलेंज: भारत ने बॉन चैलेंज के भाग के रूप में वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि को पुनर्स्थापन के अंतर्गत लाने का भी संकल्प लिया है।
- आजीविका: भारत के वन वैश्विक मानव आबादी के लगभग 17% और विश्व के कुल पशुधन के 18% की आजीविका का समर्थन करते हैं।
- वैश्विक स्थिति: FAO द्वारा प्रकाशित वैश्विक वन संसाधन आकलन (GFRA, 2020) के अनुसार, भारत वन क्षेत्र के मामले में विश्व के शीर्ष 10 देशों में शामिल है और वर्ष 2010-2020 के बीच वन क्षेत्र में उच्चतम वार्षिक शुद्ध वृद्धि के लिये तीसरे स्थान पर है।
भारतीय वन सर्वेक्षण
- स्थापना: इसकी स्थापना 1 जून, 1981 को हुई, जो वर्ष 1965 में शुरू किये गए वन संसाधनों के पूर्व निवेश सर्वेक्षण (PISFR) का स्थान लेता है।
- वर्ष 1976 में राष्ट्रीय कृषि आयोग (NCA) ने राष्ट्रीय वन सर्वेक्षण संगठन की स्थापना की सिफारिश की, जिसके परिणामस्वरूप FSI का निर्माण हुआ ।
- PISFR की शुरुआत वर्ष 1965 में भारत सरकार द्वारा FAO और UNDP के प्रायोजन से की गई थी।
- मूल संगठन: पर्यावरण और वन मंत्रालय, भारत सरकार।
- प्राथमिक उद्देश्य: भारत के वन संसाधनों का नियमित रूप से आकलन और निगरानी करना।
- इसके अलावा, यह प्रशिक्षण, अनुसंधान और विस्तार की सेवाएँ भी प्रदान करता है।
- कार्यप्रणाली: FSI का मुख्यालय देहरादून में है तथा शिमला, कोलकाता, नागपुर और बंगलूरू में चार क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ इसकी उपस्थिति संपूर्ण भारत में है।
- पूर्वी क्षेत्र का एक उपकेंद्र बर्नीहाट (मेघालय) में है।
वर्ष 2013 से 2023 के बीच वानिकी मापदंडों की क्या स्थिति रही?
- वन क्षेत्र में वृद्धि: देश के वन क्षेत्र में 16,630.25 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
- वृक्षावरण में 20,747.34 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई।
- देश के मैंग्रोव आच्छादन में 296.33 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई।
- मृदा स्वास्थ्य: मृदा स्वास्थ्य में सामान्य सुधार हुआ है (वर्ष 2013 में 83.53% की तुलना में उथली से गहन मृदा में 87.16%), जो ह्यूमस में सुधार से परिलक्षित होता है।
- मृदा कार्बनिक कार्बन 55.85 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 56.08 टन प्रति हेक्टेयर हो गया है।
- मृदा कार्बनिक कार्बन का तात्पर्य मृदा कार्बनिक पदार्थ में निहित कार्बन है जो मृदा एकत्रीकरण में योगदान देता है, जिससे मृदा संरचना एवं स्थिरता बढ़ती है।
- मृदा कार्बनिक कार्बन 55.85 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 56.08 टन प्रति हेक्टेयर हो गया है।
- जैविक प्रभाव: वनों पर जीवीय प्रभाव भी वर्ष 2013 के 31.28% से घटकर 26.66% रह गया है, जो प्राणीजात जैवविविधता और वनस्पतिजात जैवविविधता के लिये बेहतर परिवेश सिद्ध होगा।
- जीवीय प्रभाव का आशय सजीवों पर पड़ने वाले प्रभाव से है। वनों में, जीवीय प्रभावों में चारण, ब्राउज़िंग, मानव जनित अग्नि, पोलार्डिंग, अवैध कर्तन और पातन शामिल हो सकते हैं।
निष्कर्ष
18वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 में वन और वृक्षावरण, कार्बन स्टॉक तथा मृदा स्वास्थ्य में सकारात्मक रुझानों पर प्रकाश डाला गया है और साथ ही वनाग्नि एवं मैंग्रोव की क्षति जैसी चुनौतियों का समाधान किया गया है। पेरिस समझौते और बॉन चैलेंज जैसे वैश्विक जलवायु लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता इसके वर्तमान के संरक्षण प्रयासों के अनुरूप है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. 18वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 (ISFR 2023) के प्रमुख निष्कर्षों का विश्लेषण कीजिये और भारत की पर्यावरणीय संधारणीयता तथा जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों पर इसके प्रभावों का आकलन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित राज्यों पर विचार कीजिये: (2019) 1. छत्तीसगढ़ उपर्युक्त राज्यों के संदर्भ में राज्य के कुल क्षेत्रफल की तुलना में वन आच्छादन की प्रतिशतता के आधार पर निम्नलिखित में से कौन-सा सही आरोही अनुक्रम है? (a) 2, 3, 1, 4 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)
निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक उपर्युक्त दी गईं विशेषताओं से युक्त है? (a) अरुणाचल प्रदेश उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारत के वन संसाधनों की स्थिति एवं जलवायु परिवर्तन पर उसके परिणामी प्रभावों की जाँच कीजिये। (2020) प्रश्न. मैंग्रोवों के रिक्तीकरण के कारणों पर चर्चा कीजिये और तटीय पारिस्थितिकी का अनुरक्षण करने में इनके महत्त्व को स्पष्ट कीजिये। (2019) |