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ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच

  • 23 Apr 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

वनाच्छादन, खाद्य और कृषि संगठन, कार्बन पृथक्करण, COP26 ग्लासगो 2021, बॉन चैलेंज, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021, वन संरक्षण अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006

मेन्स के लिये:

वनों का महत्त्व, भारत में वनों की स्थिति।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच (GFW) निगरानी परियोजना (Monitoring Project) के नवीनतम आँकड़ों से पता चला है कि भारत में वर्ष 2000 से अब तक 2.33 मिलियन हेक्टेयर वृक्ष क्षेत्र नष्ट हो गए हैं।

  • यह इस अवधि के दौरान वृक्ष आवरण में 6% की कमी के बराबर है।

ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच (GFW) की प्रमुख खोजें क्या हैं?

  • कुल नुकसान: GFW डेटा से पता चलता है कि भारत ने वर्ष 2002 और वर्ष 2023 के बीच 4,14,000 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन (कुल वृक्ष आवरण का लगभग 4.1%) खो दिया है।
    • प्राथमिक वन वे हैं, जो मानव गतिविधि से क्षतिग्रस्त नहीं हुए हैं।
  • कार्बन प्रभाव: इसी अवधि (वर्ष 2001 से 2022 तक) में भारतीय वनों ने वार्षिक रूप से लगभग 51 मिलियन टन कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का उत्सर्जन किया, जबकि प्रत्येक वर्ष अनुमानित रूप से 141 मिलियन टन कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्सर्जन होता है।
    • यह शुद्ध कार्बन संतुलन वार्षिक रूप से लगभग 89.9 मिलियन टन कार्बन सिंक का प्रतिनिधित्व करता है।
  • प्राकृतिक वन: वर्ष 2013 और वर्ष 2023 के बीच भारत में वृक्षावरण का 95% नुकसान प्राकृतिक वनों में हुआ है।
  • पीक वर्ष (Peak Year): विशेष रूप से वर्ष 2017 में 189,000 हेक्टेयर के वृक्षावरण का अधिकतम नुकसान हुआ, इसके बाद वर्ष 2016 में 175,000 हेक्टेयर और वर्ष 2023 में 144,000 हेक्टेयर का नुकसान हुआ, जो विगत छह वर्षों में सबसे अधिक है।
  • राज्य-स्तरीय प्रभाव: वर्ष 2001 और वर्ष 2023 के बीच कुल वृक्षावरण हानि का 60% पाँच राज्यों में देखा गया।
    • असम में सबसे अधिक 324,000 हेक्टेयर (औसतन 66,600 हेक्टेयर की तुलना में) वृक्षावरण का नुकसान हुआ।
    • मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मणिपुर में भी काफी नुकसान देखा गया।
  • वनाग्नि का प्रभाव: वर्ष 2001 और वर्ष 2022 के बीच भारत में 1.6% वृक्षों का नुकसान हुआ, जिसका कारण वनाग्नि थी।
    • वर्ष 2008 में आग के कारण सबसे अधिक 3,000 हेक्टेयर वृक्षों का नुकसान दर्ज किया गया।
    • वर्ष 2001 से 2022 तक ओडिशा में आग के कारण वृक्षों के नुकसान की दर सबसे अधिक थी, प्रतिवर्ष औसतन 238 हेक्टेयर का नुकसान हुआ। 
  • वृक्षावरण हानि और जलवायु परिवर्तन: वन दोहरी भूमिका निभाते हैं, वृक्षावरण के विस्तार या वृक्षों के दोबारा उगने पर ये कार्बन-डाइ-ऑक्साइड को अवशोषित करके एक सिंक के रूप में कार्य करते हैं और नष्ट होने पर एक स्रोत के रूप में कार्य करते हैं।
    • वनों के नष्ट होने से वातावरण में संग्रहीत कार्बन उत्सर्जित होने की वज़ह से जलवायु परिवर्तन में तीव्रता आती है।

वैश्विक स्तर पर वनों की स्थिति:

  • वर्ष 2002 से 2023 तक वैश्विक स्तर पर कुल 76.3 Mha (मिलियन हेक्टेयर एकड़) आर्द्र प्राथमिक वन नष्ट हो गए, जो कुल वृक्षावरण हानि का 16% था।
  • वर्ष 2001 से वर्ष 2023 तक वैश्विक स्तर पर कुल 488 मिलियन हेक्टेयर वृक्षावरण की हानि हुई, जो वर्ष 2000 के बाद से वृक्षावरण में लगभग 12% की कमी है।
  • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2001 से वर्ष 2022 तक 23% वृक्षावरण की हानि उन क्षेत्रों में देखी गई, जहाँ हानि के प्रमुख कारकों में वृक्षों की कटाई करना शामिल था।
  • वैश्विक स्तर पर वर्ष 2010 तक शीर्ष 5 देशों का कुल वृक्षावरण क्षेत्र में 55% का योगदान रहा।
    • रूस में 755 मिलियन हेक्टेयर के साथ सबसे अधिक वृक्षावरण है, जबकि औसत 16.9 मिलियन हेक्टेयर है, इसके बाद ब्राज़ील, कनाडा, अमेरिका, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो का स्थान है।
  • वर्ष 2001 से 2022 तक वैश्विक स्तर पर आग से कुल 126 मिलियन हेक्टेयर और अन्य सभी कारणों से 333 मिलियन हेक्टेयर वृक्षों की हानि हुई। 

  • प्रारंभिक वृक्ष आवरण:
    • वर्ष 2010 में विश्व का वृक्षावरण क्षेत्र लगभग 3.92 बिलियन हेक्टेयर (Gha) तक फैला हुआ था, जो पृथ्वी पर भूमि क्षेत्र का लगभग 30% है।
    • इस व्यापक वृक्ष आवरण में विभिन्न प्रकार के वन, वुडलैंड और पेड़ों के साथ अन्य वनस्पति क्षेत्र शामिल थे।
  • वृक्ष आवरण हानि:
    • वर्ष 2010 और 2023 के बीच वैश्विक वृक्ष आवरण में अत्यधिक हानि दर्ज की गई।
    • इस अवधि के दौरान कुल वैश्विक वृक्ष आवरण हानि 28.3 मिलियन हेक्टेयर (Mha) थी।
    • यह हानि वनों की कटाई, भूमि-उपयोग परिवर्तन और प्राकृतिक घटनाओं सहित विभिन्न कारकों की वज़ह से हुई।

भारत में प्रमुख वन संरक्षण पहलें क्या हैं?

  • भारत में वन आवरण:
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) वर्ष 1987 से वन आवरण का द्विवार्षिक (हर दो वर्ष में एक बार) आकलन कर रहा है और उसके निष्कर्ष भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) में प्रकाशित किये जाते हैं।
    • ISFR 2021 के नवीनतम आकलन के अनुसार, भारत का कुल वन और वृक्ष आवरण 8,09,537 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% है।
    • विशेष रूप से यह ISFR 2019 के मूल्यांकन की तुलना में 2261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्शाता है, जो वन संरक्षण प्रयासों में सकारात्मक प्रगति का संकेत है।
  • वन आवरण को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल:
    • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC): इसे वर्ष 2008 में लॉन्च किया गया था और इसका उद्देश्य जन-प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों तथा उनसे निपटने के उपायों के बारे में जागरूकता बढ़ाना था।
      • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशनयह NAPCC के तहत उल्लिखित आठ मिशनों में से एक है।
        • इसका उद्देश्य सुरक्षा प्रदान करना; भारत के घटते वन आवरण को बहाल करना और बढ़ाना तथा अनुकूलन व शमन उपायों के संयोजन द्वारा जलवायु परिवर्तन का समाधान करना है।
    • नगर वन योजना (NVY): वर्ष 2020 में शुरू की गई NVY का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक अर्बन और पेरी-अर्बन क्षेत्रों में 600 नगर वैन और 400 नगर वाटिका बनाना है।
      • इस पहल का उद्देश्य हरित आवरण को बढ़ाना, जैविक विविधता को संरक्षित करना और शहरी निवासियों की जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
    • प्रतिपूरक वनीकरण निधि (CAMPA): इसका उपयोग विकासात्मक परियोजनाओं के लिये वन भूमि परिवर्तन की भरपाई के लिये प्रतिपूरक वनरोपण हेतु राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा किया जाता है।
      • CAF का 90% धन राज्यों को दिया जाता है, जबकि 10% केंद्र द्वारा रखा जाता है।
    • बहु-विभागीय प्रयास: केंद्रीय पहलों के अलावा संबंधित मंत्रालयों, राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों, गैर-सरकारी संगठनों, नागरिक समाज और कॉर्पोरेट निकायों के विभिन्न कार्यक्रमों एवं योजनाओं के तहत वनीकरण गतिविधियाँ शुरू की जाती हैं।
    • राष्ट्रीय मसौदा वन नीति: राष्ट्रीय वन नीति का एक मसौदा वर्ष 2019 में जारी किया गया था।
      • मसौदे का मुख्य उद्देश्य आदिवासियों और वनों पर निर्भर लोगों के हितों की रक्षा के साथ-साथ वनों का संरक्षण, सुरक्षा और प्रबंधन करना है।

नोट:

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, भारत में "10% से अधिक वृक्ष छत्र घनत्त्व वाले क्षेत्र में एक हेक्टेयर से अधिक के भूमि" 'वन आवरण' कहलाते हैं और “वन आवरण को छोड़कर दर्ज वन क्षेत्रों के बाहर और एक हेक्टेयर के न्यूनतम मानचित्रण योग्य क्षेत्र से कम में पाए जाने वाले क्षेत्र” को वृक्ष आवरण के रूप में परिभाषित किया है।
  • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में सरकारों को टी एन गोदावर्मन मामले में वर्ष 1996 के फैसले में निर्धारित वन की "सविस्तार और सर्वव्यापी" परिभाषा का पालन करने का निर्देश दिया है, जब तक कि देश भर में सभी प्रकार के वनों का एक समेकित रिकॉर्ड तैयार नहीं हो जाता।

भारत में वनों की स्थिति क्या है?

  • भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2021 के अनुसार, भारत में कुल वन और वृक्ष आवरण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62% है। भारत में कुल वन आवरण 21.71% है तथा कुल वृक्ष आवरण 2.91% है।
  • क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा वन क्षेत्र मध्य प्रदेश में है, इसके बाद अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र में हैं।
  • कुल भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में वन आवरण के संदर्भ में शीर्ष पाँच राज्य मिज़ोरम (84.53%), अरुणाचल प्रदेश (79.33%), मेघालय (76.00%), मणिपुर (74.34%) और नगालैंड (73.90%) हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वर्ष 2010 में 6.26 मिलियन लोग भारत के वानिकी क्षेत्र में कार्यरत थे।
  • FAO के अनुसार, वर्ष 2010 में अर्थव्यवस्था में वानिकी क्षेत्र का निवल -690 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान रहा, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग -0.037% है।
  • इस प्रकार 5.92 मेगाहेक्टेयर और कुल भूमि क्षेत्र में 1.9% की हिस्सेदारी के साथ लकड़ी के फाइबर अथवा इमारती लकड़ी का वृक्षारोपण भारत में सबसे बड़े क्षेत्र में किया जाता है।
    • 76% के साथ लक्षद्वीप में भारत में वृक्षारोपण का अनुपात सबसे अधिक है, जिनमें से अधिकांश फलों के बागान हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. सामुदायिक भागीदारी और सरकारी नीतियों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए भारतीय वनों से संबंधित प्रमुख चुनौतियों व संरक्षण प्रयासों पर चर्चा कीजिये। इन मुद्दों का प्रभावी हल निकालने के लिये सतत् वन प्रबंधन प्रथाओं को बेहतर बनाया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? (2021)

(a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
(b) पंचायती राज मंत्रालय
(c) ग्रामीण विकास मंत्रालय
(d) जनजातीय कार्य मंत्रालय

उत्तर: (d)


प्रश्न 2.भारत का एक विशेष राज्य निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त है: (2012)

  1. यह उसी अक्षांश पर स्थित है, जो उत्तरी राजस्थान से होकर जाता है।
  2. इसका 80% से अधिक क्षेत्र वन आवरणांतर्गत है।
  3. 12% से अधिक वनाच्छादित क्षेत्र इस राज्य के रक्षित क्षेत्र नेटवर्क के रूप में है।

निम्नलिखित राज्यों में से कौन-सा एक उपर्युक्त सभी विशेषताओं से युक्त है?

(a) अरुणाचल प्रदेश
(b) असम
(c) हिमाचल प्रदेश
(d) उत्तराखंड

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. "भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संवैधानीकरण है।" सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)

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