प्रारंभिक परीक्षा
मनरेगा के तहत बेरोज़गारी लाभ संवितरण
- 14 Feb 2024
- 6 min read
स्रोत: डाउन टू अर्थ
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), 2005 भारत में ग्रामीण श्रमिकों के लिये एक अत्यावश्यक जीवन रेखा के रूप में भूमिका निभाता है। हालाँकि ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज पर संसदीय स्थायी समिति की एक हालिया रिपोर्ट ने इस योजना के कार्यान्वयन के संबंध में एक चिंताजनक मुद्दे पर प्रकाश डाला है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- लाभ का सीमित वितरण:
- रिपोर्ट के अनुसार विगत पाँच वर्षों में 7,124 पात्र श्रमिकों में से केवल 258 को इस योजना के तहत लाभ प्राप्त हुआ जो कुल पात्र श्रमिकों का लगभग 3% हिस्सा है।
- मनरेगा, 2005 की धारा 7(1) के अनुसार, 15 दिनों के भीतर कार्य में नियोजित नहीं होने वाले श्रमिकों को दैनिक बेरोज़गारी भत्ता प्रदान करने की अनिवार्यता है।
- रिपोर्ट के अनुसार विगत पाँच वर्षों में 7,124 पात्र श्रमिकों में से केवल 258 को इस योजना के तहत लाभ प्राप्त हुआ जो कुल पात्र श्रमिकों का लगभग 3% हिस्सा है।
- राज्य-विशेष डेटा:
- योजना के तहत राज्य सरकारें अपनी आर्थिक क्षमता के आधार पर बेरोज़गारी भत्ता प्रदान करने के लिये उत्तरदायी होती हैं।
- कर्नाटक में योजना के तहत पात्र श्रमिकों की संख्या सबसे अधिक (2,467) दर्ज की गई किंतु किसी को भी इस योजना के तहत लाभ प्राप्त नहीं हुआ।
- 1,831 पात्र श्रमिकों के साथ राजस्थान दूसरे स्थान पर रहा जिनमें से केवल नौ श्रमिकों को लाभ प्राप्त हुआ।
- बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश में भी संबद्ध रिकॉर्ड चिंतनीय रहा।
- इन राज्यों में श्रमिक उक्त योजना हेतु पात्र थे किंतु उन्हें या तो अपर्याप्त लाभ मिला या बिल्कुल नहीं मिला।
- विलंबित वेतन के लिये लंबित मुआवज़ा:
- समिति को सूचित किया गया कि वित्तीय वर्ष 2018-19 से 21 नवंबर, 2024 तक मुआवज़े के लिये कुल 13 करोड़ रुपए से अधिक की मंज़ूरी दी गई थी और केवल लगभग 10 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था, जिससे एक बड़ी राशि लंबित रह गई थी।
- ग्रामीण विकास विभाग के अनुसार, ब्याज भुगतान की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की है।
- मनरेगा में कहा गया है कि यदि मस्टर रोल बंद होने के 15 दिनों के भीतर मज़दूरी का भुगतान नहीं किया जाता है, तो श्रमिक देरी के लिये मुआवज़े के हकदार हैं। मुआवज़ा मस्टर रोल बंद होने के सोलहवें दिन से अधिक विलंब के दिन अवैतनिक मज़दूरी का 0.05% है।
- समिति को सूचित किया गया कि वित्तीय वर्ष 2018-19 से 21 नवंबर, 2024 तक मुआवज़े के लिये कुल 13 करोड़ रुपए से अधिक की मंज़ूरी दी गई थी और केवल लगभग 10 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया था, जिससे एक बड़ी राशि लंबित रह गई थी।
- समिति की सिफारिशें:
- समिति ने लाभों का उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिये केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग और राज्य सरकारों के बीच समन्वित प्रयासों की सिफारिश की।
- बेरोज़गारी लाभ का भुगतान न होने की समस्या से निपटने के लिये उपाय किये जाने चाहिये।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA):
- MGNREGA ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2005 में शुरू किये गए विश्व के सबसे बड़े रोज़गार गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- यह योजना न्यूनतम वेतन पर सार्वजनिक कार्यों से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम एक सौ दिनों के रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
- यह आजीविका सुरक्षा प्रदान करता है जिसका अर्थ है कि जब बेहतर रोज़गार के अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं तो ग्रामीण परिवारों के पास आय के वैकल्पिक स्रोत होते हैं।
- 14.32 करोड़ पंजीकृत जॉब कार्ड हैं जिनमें से 68.22% सक्रिय जॉब कार्ड हैं और कुल 25.25 करोड़ श्रमिक, जिनमें से 56.83% सक्रिय श्रमिक हैं।
- वर्ष 2022-23 में मनरेगा की उपलब्धियाँ:
- इससे देशभर में लगभग 11.37 करोड़ परिवारों को रोज़गार मिला है।
- इसमें से 289.24 करोड़ व्यक्ति-दिवस रोज़गार उत्पन्न हुआ है, जिसमें:
- 56.19% महिलाएँ
- 19.75% अनुसूचित जाति (SC)
- 17.47% अनुसूचित जनजाति (ST)
और पढ़े: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स: प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभ पाने के पात्र हैं? (2011) (A) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के परिवारों के वयस्क सदस्य। उत्तर: (D) |