भूगोल
डायनासोर और यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क टैग
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण, यूनेस्को वैश्विक जियो पार्क, क्रिटेशियस काल, मंगोलियाई गोबी रेगिस्तान, भू-विरासत स्थल, भू-आकृतियाँ, पर्वत शृंखलाएँ, हिमनद, मेसोज़ोइक युग, पैंजिया, युकाटन प्रायद्वीप। मेन्स के लिये:भारत के भू-विरासत स्थल और यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क टैग। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा गुजरात के रायोली गाँव में स्थित डायनासोर जीवाश्म पार्क एवं संग्रहालय, को यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क का दर्जा प्राप्त कराने का प्रयास किया जा रहा है।
गुजरात के डायनासोर जीवाश्म पार्क और संग्रहालय के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
- भू-वैज्ञानिक महत्त्व: वर्ष 1980 के दशक के प्रारंभ में भू-वैज्ञानिकों ने डायनासोर की हड्डियों और अंडों के जीवाश्म की खोज की थी।
- ये हड्डियाँ राजासौरस नर्मदेंसिस (Rajasaurus Narmadensis) और राहियोलिसौरस गुजरातेंसिस (Rahiolisaurus Gujaratensis) की हैं, जो लेट क्रेटेशियस पीरियड (लगभग 67 मिलियन वर्ष पूर्व) के माँसाहारी डायनासोर थे।
- वैश्विक स्थिति: यह विश्व में सबसे बड़ी डायनासोर एग हैचरी में से एक है, जो ऐक्स-एन-प्रोवेंस (फ्राँस) और मंगोलियाई गोबी रेगिस्तान के बाद विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है।
- अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व: वर्ष 1990 के दशक में इस स्थल ने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया, जब 50 जीवाश्म वैज्ञानिकों का एक दल डायनासोर के अंडों का अध्ययन करने के लिये यहाँ आया।
भारत में डायनासोर का इतिहास क्या है?
- डायनासोर की खोज: एशिया में सर्वप्रथम डायनासोर की हड्डियाँ भारत में वर्ष 1828 में जबलपुर, मध्य प्रदेश में कैप्टन विलियम हेनरी स्लीमन द्वारा खोजी गई थीं, जिन्हें बाद में वर्ष 1877 में टाइटेनोसॉरस इंडिकस (Titanosaurus indicus) नाम दिया गया था।
- टाइटेनोसॉरस, एक विशाल शाकाहारी डायनासोर था जिसका उद्भव क्रिटेशियस काल के अंत हुआ था।
- डायनासोर जीवाश्म: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात प्रमुख जीवाश्म समृद्ध क्षेत्र हैं जहाँ से बहुटी से डायनासोर के कंकाल और अंडे प्राप्त हुए हैं।
- इस क्षेत्र में कई महत्त्वपूर्ण प्रजातियाँ खोजी गई हैं, जैसे बारापासोरस (शाकाहारी), आइसिसोरस (शाकाहारी), इंडोसुचस (मांसाहारी), और राजसौरस नर्मदेंसिस (माँसाहारी)।
- डायनासोर हैचरी: माना जाता है कि भारत विश्व की सबसे बड़ी डायनासोर हैचरी में से एक है, जहाँ जबलपुर (म.प्र.), बालासिनोर (गुजरात) और धार ज़िले (म.प्र.) जैसे क्षेत्रों में प्रमुख डायनासोर हैचरी स्थल पाए गए हैं।
यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क (भू-विरासत स्थल) क्या हैं?
- परिचय: यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण भू-वैज्ञानिक स्थलों के साथ एकीकृत ऐसे भौगोलिक क्षेत्र हैं जिन्हें संरक्षण, शिक्षा और सतत् विकास हेतु समग्र दृष्टिकोण के साथ प्रबंधित किया जाता है।
- भू-विरासत स्थल ऐसे भौगोलिक क्षेत्र हैं जो अपनी विशिष्ट चट्टानी संरचनाओं, जीवाश्मों, खनिज संग्रहण या भू-आकृतियों के कारण भू-वैज्ञानिक महत्त्व के होते हैं।
- पदनाम प्रक्रिया: यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्कों को चार वर्षों के लिये नामित किया जाता है, जिसके बाद उनका पुनर्मूल्यांकन किया जाता है।
- ग्रीन कार्ड: यदि कोई क्षेत्र संबंधित मानदंडों को पूरा करता है तो यह कार्ड प्रदान किया जाता है।
- पीला कार्ड: यदि कोई क्षेत्र संबंधित मानदंडों को पूरा नहीं करता है तो यह कार्ड जारी किया जाता है तथा इसमें सुधार के लिये दो वर्ष का समय दिया जाता है।
- लाल कार्ड: यदि कोई क्षेत्र पीला कार्ड जारी होने के बाद दो वर्षों के अंदर संबंधित मानदंडों को पूरा करने में विफल रहता है तो यह कार्ड जारी किया जाता है, जिससे उस क्षेत्र का दर्जा समाप्त हो जाता है।
- वैश्विक स्थिति: अब तक 48 देशों में कुल 213 यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क हैं लेकिन भारत में कोई ग्लोबल जियोपार्क नहीं है। उदाहरण के लिये, चीन में डाली-कांगशान यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क।
- विविधता: ऐसे भू-विरासत स्थलों में ज्वालामुखी संरचनाएँ, जीवाश्म समृद्ध क्षेत्र, गुफाएँ, पर्वत श्रृंखलाएँ, हिमनद विशेषताओं के साथ खनिज समृद्ध क्षेत्र शामिल हो सकते हैं।
डायनासोर के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- डायनासोर प्रागैतिहासिक काल के सरीसृप हैं जो लगभग 245 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी पर थे।
- नॉन-एवियन डायनासोर (Non-Avian Dinosaurs) के साथ पूर्वजों की समानता के कारण आधुनिक पक्षियों को डायनासोर का एक प्रकार माना जाता है।
- डायनासोर का आकार: कुछ डायनासोर विशालकाय (जैसे अर्जेंटीनोसॉरस, जिनका वजन 110 टन तक था) थे।
- सबसे छोटी प्रजातियाँ जैसे कि हमिंगबर्ड, डायनासोर का एवियन वंशज है।
- वर्गीकरण: डायनासोर को तीन प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया गया है।
- ऑर्निथिस्किया: इसमें पौधे खाने वाले एवं चोंच वाले डायनासोर (जिनमें स्टेगोसॉरस और ट्राइसेराटॉप्स शामिल हैं) शामिल हैं।
- सॉरोपोडोमोर्फा: इसमें डिप्लोडोकस जैसे लंबी गर्दन वाले एवं विशालकाय शाकाहारी डायनासोर शामिल हैं।
- थेरोपोडा: इसमें टायरानोसॉरस रेक्स और वेलोसिरैप्टर जैसे माँसाहारी डायनासोर (जिनमें आधुनिक पक्षियों के पूर्वज भी शामिल हैं) शामिल हैं।
- समयावधि: अधिकांश डायनासोर मेसोज़ोइक युग (245 से 66 मिलियन वर्ष पूर्व) से संबंधित थे, जिसे तीन अवधियों में विभाजित किया गया है।
- ट्राइऐसिक (252-201 मिलियन वर्ष पूर्व): सुपरकॉन्टिनेंट पैंजिया पर सरीसृपों का डायनासोर के रूप में विकास हुआ।
- जुरासिक (201-145 मिलियन वर्ष पूर्व): इस अवधि में पृथ्वी ठंडी हो गई, जिससे पौधे और डायनासोर का विकास हुआ, जिनमें ब्रैकियोसौरस भी शामिल था।
- क्रटेशियस (145-66 मिलियन वर्ष पूर्व): इस दौरान अधिक महाद्वीपों का निर्माण होने के साथ डायनासोर की विविधता में वृद्धि हुई, जिसमें टायरानोसॉरस रेक्स एवं वेलोसिरैप्टर शामिल थे।
- आहार और गतिविधि: माँसाहारी दो पैरों पर चलते थे और अकेले या समूह में शिकार करते थे जबकि वनस्पति खाने वाले दो या चार पैरों पर चलते थे और पौधों पर निर्भर थे।
- विशेषता: इनकी प्रमुख विशेषता (जो डायनासोर को अन्य सरीसृपों से अलग करती है) में कूल्हे के सॉकेट में एक छेद का होना था जिससे वह सीधे चल सकते थे।
- टेरोसॉर्स (उड़ने वाले सरीसृप) और प्लेसिओसॉर्स (समुद्र में रहने वाले सरीसृप) में कूल्हे के सॉकेट जैसी विशेषता न मिलने के कारण इन्हें डायनासोर की श्रेणी में नहीं रखा जाता है।
- विलुप्ति: क्रटेशियस काल (145 मिलियन से 66 मिलियन वर्ष पूर्व) के दौरान एक विशाल क्षुद्रग्रह के प्रभाव के बाद लगभग 66 मिलियन वर्ष पूर्व डायनासोर विलुप्त हो गए थे।
- पृथ्वी के साथ क्षुद्रग्रह की टक्कर से युकाटन प्रायद्वीप में 110 मील (180 किमी) चौड़ा एक गड्ढा बन गया, जो अब मैक्सिको में स्थित है।
निष्कर्ष
गुजरात का डायनासोर जीवाश्म पार्क प्रमुख डायनासोर जीवाश्मों एवं उनके अंडों को प्रदर्शित करने वाला एक महत्त्वपूर्ण स्थल है, जिससे भारत की समृद्ध जीवाश्म विरासत प्रदर्शित होती है। अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के साथ यह यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क पदनाम हेतु अनुकूल है, जो न केवल भू-पर्यटन एवं स्थानीय विकास में योगदान देने बल्कि पृथ्वी के भू-वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक इतिहास को संरक्षित करने पर केंद्रित है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत में पाए गए डायनासोर जीवाश्म के भू-वैज्ञानिक और पुरावैज्ञानिक महत्त्व को बताते हुए भू-पर्यटन पर इसके संभावित प्रभावों का मूल्यांकन कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:Q. "छठा व्यापक विलोप /छठा विलोप" यह शब्द किसकी विवेचना के संदर्भ में समाचारों में प्रायः उल्लिखित होता है? (2018) (a) विश्व के बहुत से भागों में कृषि में व्यापक रूप मेंएकधान्य कृषि प्रथा और बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक कृषि के साथ रसायनों के अविवे की प्रयोग के परिणामस्वरूप अच्छे देशी पारितंत्र की हानि। उत्तर: (d) |
कृषि
भारत में कृषि निर्यात संवृद्धि की स्थिरता संबंधी चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:चाय, चीनी, फसल प्रतिरूप, राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY), कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना। मेन्स के लिये:भारत में सतत् कृषि से संबंधित चुनौतियाँ, सतत् कृषि से संबंधित सरकारी पहल। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के कृषि निर्यात (विशेष रूप से चाय और चीनी) में वृद्धि से भारत की आर्थिक संवृद्धि में योगदान मिला है। हालाँकि इस तीव्र वृद्धि से पर्यावरणीय प्रभाव, संसाधन प्रबंधन एवं श्रम स्थितियों के संबंध में स्थिरता संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
नोट: भारत, विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पाद निर्यातकों (जिसका निर्यात वर्ष 2022-2023 में 53.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो वर्ष 2004-2005 के 8.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से काफी अधिक है) में से एक है, जिसमें दो दशकों से भी कम समय में छह गुना की वृद्धि हुई है।
- यह निर्यात भारत की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में निर्णायक है लेकिन इसमें तीव्र वृद्धि से उत्पादन, प्रसंस्करण एवं वितरण प्रणालियों की स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।
कृषि में स्थिरता का क्या तात्पर्य है?
- आर्थिक स्थिरता: निर्यात आर्थिक रूप से लाभकारी है लेकिन इसमें स्थिरता आवश्यक है। इसमें संसाधनों को कम किये बिना दीर्घकालिक उत्पादकता बनाए रखना शामिल है।
- पारिस्थितिकी स्थिरता: प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना, रसायनों के उपयोग को न्यूनतम करना तथा जल संसाधनों का प्रभावी प्रबंधन करना यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि कृषि प्रणालियों से पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे।
- सामाजिक स्थिरता: श्रम अधिकार, न्यूनतम मजदूरी और सुरक्षित कार्य स्थितियों जैसे मुद्दों को हल करना, न्यायसंगत एवं धारणीय कृषि प्रणालियों के लिये आवश्यक है।
- समयावधि दृष्टिकोण: किसी फसल की संपूर्ण समयावधि (बुवाई पूर्व से लेकर कटाई के बाद के चरणों तक) में स्थिरता पर विचार किया जाना चाहिये, न कि केवल उत्पादन के दौरान।
चाय और चीनी उद्योग से इस स्थिरता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- चाय:
- निर्यात वृद्धि: भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा (जिसका निर्यात वर्ष 2022-2023 में 793.78 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा) चाय निर्यातक है। इसका निर्यात मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात, रूस, ईरान, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं यूनाइटेड किंगडम में हुआ।
- चाय उत्पादन में स्थिरता संबंधी चिंताएँ:
- मानव-वन्यजीव संघर्ष: 70% चाय बागान वनों के निकट हैं जिसके कारण हाथियों जैसे वन्यजीवों के साथ अक्सर संघर्ष होने से फसलों एवं बागानों को नुकसान होता है।
- रासायनिक उपयोग: चाय की खेती में सिंथेटिक कीटनाशकों के व्यापक उपयोग, जिसमें डाइक्लोरोडाइफेनिलट्राइक्लोरोइथेन (Dichlorodiphenyltrichloroethane- DDT) और एंडोसल्फान जैसे हानिकारक रसायन शामिल हैं, से स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं और अंतिम उत्पाद में रासायनिक अवशेष बढ़ जाते हैं।
- श्रम मुद्दे: चाय बागान श्रमिकों में आधे से अधिक महिलाएँ हैं, इसलिये कम वेतन, खतरनाक कार्य स्थितियाँ और श्रम कानूनों का अपर्याप्त प्रवर्तन महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- बागान श्रम अधिनियम, 1951 में श्रमिकों की सुरक्षा को अनिवार्य बनाया गया है, लेकिन इसके प्रावधानों को शायद ही कभी पूरी तरह से लागू किया जाता है।
- चीनी:
- निर्यात वृद्धि: विश्व का दूसरा सबसे बड़ा चीनी उत्पादक देश भारत, जिसका वैश्विक उत्पादन में लगभग 20% का योगदान है।
- चीनी निर्यात वित्त वर्ष 2013-14 में 1,177 मिलियन अमेरिका डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2021-22 में 4,600 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया, जो 64.90% की वृद्धि को दर्शाता है। यह 121 देशों को चीनी निर्यात करता है।
- आर्थिक प्रभाव: लगभग 50 मिलियन किसानों और चीनी मिलों में 500,000 अतिरिक्त श्रमिकों को रोज़गार प्रदान करता है। नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) के अनुसार, इस उद्योग का वार्षिक कारोबार लगभग 1 लाख करोड़ रुपए है।
- चीनी उद्योग में स्थिरता संबंधी चिंताएँ:
- जल प्रबंधन: गन्ने की फसल को प्रति किलोग्राम चीनी के लिये 1,500 से 2,000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है, जो भारत के जल संसाधनों पर दबाव डालता है। फसल क्षेत्र के 25% हिस्से को कवर करने के बावजूद, गन्ना और धान 60% सिंचाई जल का उपभोग करते हैं, जिससे अन्य फसलों के लिये उपलब्धता सीमित हो जाती है।
- जैव विविधता पर प्रभाव: कर्नाटक और महाराष्ट्र में गन्ने की व्यापक खेती ने घास के मैदानों और सवाना के मैदानों का स्थान ले लिया है, जिससे जैव विविधता को नुकसान पहुँचा है और वन्यजीवों के आवासों में व्यवधान उत्पन्न हुआ है।
- श्रम और कार्य परिस्थितियाँ: चीनी उद्योग के कर्मचारी अक्सर कर्ज के चक्र में फँस जाते हैं, उन्हें कठोर परिस्थितियों में लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है। बढ़ता तापमान उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत को और भी खराब कर देता है।
स्थिरता संबंधी चुनौतियों से निपटने के लिये क्या किया जाना चाहिये?
- चाय उद्योग में स्थिरता: जलवायु-प्रतिरोधी चाय किस्मों का उपयोग करना तथा जलवायु जोखिमों को कम करने के लिये कृषि वानिकी प्रथाओं को लागू करना।
- यह सुनिश्चित करना कि किसानों को प्रत्यक्ष बाज़ार पहुँच और प्रमाणित उत्पादों के लिये प्रीमियम के माध्यम से लाभ का उचित हिस्सा मिले।
- बागानों के आसपास मानव-वन्यजीव संपर्क को प्रबंधित करने के लिये बेहतर तरीके अपनाए जाने चाहिये। स्वस्थ्य चाय उत्पादन के लिये अधिकतम अवशेष सीमा की सख्त निगरानी की आवश्यकता है।
- उपज में सुधार लाने और पर्यावरणीय क्षति को न्यूनतम करने के लिये सटीक कृषि, कृषि वानिकी और एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) जैसी संधारणीय कृषि तकनीकों को एकीकृत करना।
- चीनी उद्योग में स्थिरता: जल संरक्षण के लिये ड्रिप सिंचाई जैसी सतत् सिंचाई पद्धतियों को अपनाना।
- ड्रिप सिंचाई अपनाने से पानी का उपयोग 40-50% तक कम हो सकता है, जिससे खेती अधिक संसाधन-कुशल हो जाएगी।
- गन्ने के उप-उत्पादों जैसे खोई (जैव ऊर्जा के लिये), विनसे (उर्वरक के रूप में) और गन्ने का अवशेष (बायोमास या पशु आहार के लिये) का उपयोग करने से अपशिष्ट में कमी आती है और संसाधन दक्षता में सुधार होता है, जिससे चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है।
- चीनी मीलों को बायोरिफाइनरियों में परिवर्तित कर अपशिष्ट उत्पादों का उपयोग ऊर्जा उत्पादन के लिये किया जा सकता है, जिससे उद्योग अधिक आत्मनिर्भर बन जाएंगे और गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- कृषि मज़दूरों और मिल श्रमिकों के लिये बेहतर कार्य स्थितियाँ, उचित मजदूरी, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करना।
सतत् कृषि आर्थिक विकास प्राप्त करने हेतु क्या किया जा सकता है?
- सतत् फसल चयन को प्रोत्साहित करना: कदन्न (मिल्लेट्स) जैसी कठोर परिस्थितियोंअन में अनुकूल फसलों को बढ़ावा देना, जो घरेलू उपयोग और निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक संधारणीय विकल्प हैं, मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि कर न्यूनतम इनपुट के साथ पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
- भारत का कदन्न निर्यात वर्ष 2020-21 में 26.97 मिलियन अमेरिका डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 75.45 मिलियन अमरीकी डॉलर हो गया, जो आर्थिक विकास को समर्थन देने वाली पर्यावरण अनुकूल फसल के रूप में उनके मूल्य को रेखांकित करता है।
- दोहरी मांग आधारित प्रबंधन: भारत का कृषि क्षेत्र एक बड़े घरेलू बाज़ार और बढ़ते निर्यात बाज़ार का समर्थन करता है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है। प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव या विशिष्ट वस्तुओं पर अत्यधिक निर्भरता से बचने के लिये घरेलू ज़रूरतों के साथ निर्यात को संतुलित करना।
- आपूर्ति शृंखला निर्भरता को मज़बूत करना: स्थिरता को प्रभावित करने वाली आपूर्ति शृंखला निर्भरता को मज़बूत करना। शृंखला में स्थिरता लक्ष्यों को एकीकृत करने के लिये सहयोग और पारदर्शिता को बढ़ावा देना।
- पर्यावरणीय सुरक्षा: प्राकृतिक संसाधनों को समाप्त किये बिना सतत् उत्पादन स्तर बनाए रखने के लिये पर्यावरण संरक्षण पर ज़ोर देना।
- पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को लागू करना, जैसे कि जल का कम उपयोग, जैविक खेती की विधियाँ और मृदा स्वास्थ्य संरक्षण।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: निर्यात-संचालित विकास की आवश्यकता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, भारत कृषि में सतत् आर्थिक विकास को किस प्रकार प्राप्त कर सकता है? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किस/कि पद्धति/यों को पारितंत्र-अनुकूली कृषि माना जाता है ? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1,2 और 3 उत्तर: (A) मेन्स:Q. भारत अलवणजल (फ्रैश वाटर) संसाधनों से सुसंपन्न है। समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या कारण है कि भारत इसके बावजूद जलाभाव से ग्रसित है। (2015) |
भारतीय इतिहास
जनजातीय गौरव दिवस
प्रिलिम्स के लिये:जनजातीय गौरव दिवस, बिरसा मुंडा, संथाल, प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान, वन धन विकास केंद्र, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह, राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति मेन्स के लिये:जनजातीय विकास पहल, जनजातीय आंदोलन और भारत का स्वतंत्रता संग्राम |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
विशेष रूप से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समुदायों के योगदान को सम्मानित करने के क्रम में प्रतिवर्ष 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है।
- यह दिन एक सम्मानित जनजातीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती का प्रतीक है। भारत के प्रधानमंत्री ने बिरसा मुंडा के सम्मान में एक स्मारक सिक्का तथा डाक टिकट जारी किया, जो उनकी स्थायी विरासत को श्रद्धांजलि देता है।
जनजातीय गौरव दिवस क्या है?
- पृष्ठभूमि: पहली बार वर्ष 2021 में मनाया जाने वाला यह दिवस भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाए जाने वाले आज़ादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को मान्यता देने के लिये स्थापित किया गया था।
- संथाल, तमाड़, भील, खासी और मिज़ो सहित जनजातीय समुदायों ने बिरसा मुंडा के उलगुलान (क्रांति) जैसे अनेक उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिसमें उल्लेखनीय साहस और बलिदान का प्रदर्शन किया गया।
- जातीय गौरव दिवस 2024 की मुख्य विशेषताएँ:
- PM-JANMAN: प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM-JANMAN) के तहत 11,000 घरों के उद्घाटन में भाग लिया।
- दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की पहुँच में सुधार के लिये 23 मोबाइल मेडिकल यूनिट (Mobile Medical Units- MMU) शुरू की गईं।
- DAJGUA: धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान (Dharti Aaba Janjatiya Gram Utkarsh Abhiyan- DAJGUA) के तहत अतिरिक्त 30 एमएमयू का उद्घाटन किया गया।
- जनजातीय उद्यमिता और शिक्षा: प्रधानमंत्री ने जनजातीय छात्रों के लिये 300 वन धन विकास केंद्रों (Van Dhan Vikas Kendras- VDVK) और 10 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (Eklavya Model Residential Schools- EMRS) का उद्घाटन किया, साथ ही 25 और EMRS की आधारशिला भी रखी।
- सांस्कृतिक संरक्षण: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और जबलपुर में दो जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों का उद्घाटन किया गया साथ ही जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर तथा सिक्किम के गंगटोक में दो जनजातीय अनुसंधान संस्थानों का भी उद्घाटन किया गया।
- PM-JANMAN: प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान (PM-JANMAN) के तहत 11,000 घरों के उद्घाटन में भाग लिया।
बिरसा मुंडा कौन थे?
- प्रारंभिक जीवन: बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को हुआ, वे छोटा नागपुर पठार की मुंडा जनजाति से संबंधित थे।
- बचपन में उन्होंने अपने माता-पिता के साथ गाँवों के बीच घूमते हुए आदिवासी समुदायों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का प्रत्यक्ष अनुभव किया।
- बिरसाइत संप्रदाय के संस्थापक: मुंडा ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत जनजातीय लोगों को धर्मांतरित करने के मिशनरी प्रयासों के बारे में संज्ञान लिया।
- बिरसा मुंडा ने बिरसाइत संप्रदाय की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासी पहचान को पुनर्जीवित करना तथा धर्मांतरण का विरोध करना था।
- इन्होने मुंडा और उरांव समुदायों (झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ राज्यों में रहने वाले जनजातीय समूह) को औपनिवेशिक और मिशनरी नियंत्रण के खिलाफ एकजुट किया।
- जनजातीय लामबंदी में भूमिका: वर्ष 1886 से 1890 तक झारखंड के चाईबासा में वह सरदारों के आंदोलन से प्रभावित हुए।
- वह ब्रिटिश विरोधी और मिशनरी विरोधी गतिविधियों में गहराई से शामिल हुए, जिससे आदिवासी अधिकारों के लिये लड़ने का उनका संकल्प मज़बूत हुआ।
- इन्होने ब्रिटिशों को चुनौती देने के साथ जनजातीय भूमि तथा संस्कृति की रक्षा के लिये जनजातीय समुदायों को संगठित किया।
- वर्ष 1899 में उन्होंने उलगुलान (महान कोलाहल) आंदोलन शुरू किया, जिसमें ब्रिटिश सत्ता का विरोध करने और "बिरसा राज" के रूप में ज्ञात एक स्वशासित आदिवासी राज्य की स्थापना को बढ़ावा देने के क्रम में गुरिल्ला युद्ध रणनीति को अपनाया गया था।
- गिरफ्तारी और मृत्यु: वर्ष 1900 में ब्रिटिश पुलिस द्वारा जामकोपाई जंगल में उन्हें उनके गुरिल्ला समूह के साथ गिरफ्तार किया गया।
- 9 जून 1900 को 25 वर्ष की अल्पायु में राँची जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।
- विरासत: उन्हें औपनिवेशिक सरकार पर जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा हेतु कानून बनाने के लिये दबाव डालने के लिये जाना जाता है।
- जनजातीय अधिकारों और स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को सम्मान देते हुए वर्ष 2000 में उनकी जयंती पर झारखंड राज्य की स्थापना की गई।
सरदारी आंदोलन
- सरदारी आंदोलन (1858-90) छोटानागपुर में सामाजिक-आर्थिक शोषण के खिलाफ़ एक प्रतिक्रिया थी, जो जबरन मज़दूरी (भिखारियों) और बिचौलियों द्वारा अवैध किराया वृद्धि पर कृषि असंतोष से शुरू हुई थी। सरदारों के नेतृत्व में इस आंदोलन का उद्देश्य इन दमनकारी प्रथाओं का विरोध करना था।
जनजातीय विकास को समर्थन देने वाली भारत की प्रमुख पहल क्या हैं?
- वित्तीय एवं सामाजिक पहल:
- बुनियादी ढाँचागत सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिये लगभग 36500 गाँवों की पहचान की गई है, जिनमें 50% जनजातीय आबादी और 500 अनुसूचित जनजाति (ST) हैं, जिनमें नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) द्वारा पहचाने गए आकांक्षी ज़िलों के गाँव भी शामिल हैं।
- वित्तीय प्रतिबद्धताएँ: केंद्रीय बजट ने 2024-25 में जनजातीय कार्य मंत्रालय को 13,000 करोड़ रुपए आवंटित किये, जो वर्ष 2023-24 से 73.6% की वृद्धि दर्शाता है।
- DAJGUA: जनजातीय क्षेत्रों में सामाजिक बुनियादी ढाँचे की कमी को दूर करने के लिये 79,156 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ शुरू की गई, जिससे 63,843 गाँवों के 5.38 करोड़ से अधिक लोग लाभान्वित होंगे।
- DAJGUA: वर्ष 2023 में स्वास्थ्य देखभाल, वित्तीय समावेशन और सामुदायिक समर्थन सहित लक्षित योजनाओं के साथ विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) का समर्थन करने के लिये शुरू किया गया।
- प्रधानमंत्री आदि आदर्श ग्राम योजना: PMAAGY का उद्देश्य महत्त्वपूर्ण जनजातीय आबादी वाले गाँवों में बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराना है।
- शिक्षा:
- EMRS: दूरदराज के क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये स्थापित, शैक्षिक अंतराल को पाटने में मदद करना।
- आदिवासी शिक्षा ऋण योजना (ASRY): उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले आदिवासी छात्रों के लिये आसान ऋण प्रदान करती है।
- जनजातीय छात्रों के लिये छात्रवृत्ति: छात्रवृत्ति में प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति, अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा के लिये राष्ट्रीय विदेशी छात्रवृत्ति और उच्च शिक्षा में वित्तीय सहायता के लिये राष्ट्रीय फैलोशिप शामिल हैं।
- आय सृजन योजनाएँ: सावधि ऋण योजना 90% तक व्यवसाय ऋण प्रदान करती है, आदिवासी महिला सशक्तीकरण योजना उद्यमिता का समर्थन करने हेतु आदिवासी महिलाओं के लिये रियायती ऋण प्रदान करती है और माइक्रो क्रेडिट योजना 5 लाख रुपए तक के ऋण के साथ आदिवासी समूहों का समर्थन करती है।
- स्वास्थ्य एवं कल्याण पहल:
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के आदिवासी समुदायों ने देश के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में विभिन्न आदिवासी समूहों के योगदान पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) (a) PVTG 18 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में निवास करते हैं। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा सही है? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा सही सुमेलित है? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017) |
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-रूस के बीच 100 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार लक्ष्य
प्रिलिम्स के लिये:उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, उत्तरी समुद्री मार्ग, यूरोपीय संघ, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा, यूरेशियन आर्थिक संघ, वोस्ट्रो खाता, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर बोर्ड, द्विपक्षीय निवेश संधि मेन्स के लिये:भारत-रूस संबंधों का महत्त्व, आर्थिक कूटनीति और रणनीतिक साझेदारी, भारत का व्यापार असंतुलन |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री और रूस के प्रथम उप प्रधान मंत्री ने नई दिल्ली में व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग (IRIGC-TEC) पर भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग के 25वें सत्र की सह-अध्यक्षता की।
- चर्चा में दोनों देशों के बीच व्यापार संबंधों में उल्लेखनीय प्रगति और विभिन्न क्षेत्रों में रणनीतिक सहयोग पर प्रकाश डाला गया।
नोट: IGC दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग के क्षेत्रों में द्विपक्षीय प्रगति की नियमित निगरानी के लिये एक तंत्र है, जिसे वर्ष 1992 में हस्ताक्षरित व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग पर अंतर-सरकारी आयोग के समझौते द्वारा स्थापित किया गया था।
- इसमें विविध क्षेत्रों में 14 कार्य समूह और 6 उप-समूह शामिल हैं।
IRIGC-TEC के 25वें सत्र के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार लक्ष्य प्राप्त करना: भारत और रूस वर्ष 2030 के लक्ष्य से काफी पहले 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार लक्ष्य प्राप्त करने के प्रति आशावादी हैं।
- दोनों पक्ष अधिक संतुलित व्यापार संबंध की आवश्यकता तथा वर्तमान बाधाओं को दूर करने के प्रयासों को स्वीकार करते हैं।
- व्यापार और विविधीकरण में प्रगति: भारत और रूस ने भुगतान तथा रसद चुनौतियों पर काबू पाने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, भारत-रूस व्यापार का लगभग 90% अब स्थानीय या वैकल्पिक मुद्राओं में किया जाता है, जबकि शेष लेनदेन अभी भी मुक्त रूप से परिवर्तनीय मुद्राओं (अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन के लिये व्यापक रूप से प्रयुक्त) में हो रहा है।
- दोनों देश कच्चे तेल के अलावा कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, औद्योगिक उपकरण और प्रौद्योगिकी को भी व्यापार में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
- व्यापार विविधीकरण पर ध्यान: दोनों देश वर्तमान असंतुलन को कम करने के लिये व्यापार में विविधता लाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जो मुख्य रूप से रूस से भारत के बड़े पैमाने पर कच्चे तेल के आयात से प्रेरित है।
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कृषि, फार्मास्यूटिकल्स, औद्योगिक उपकरण और प्रौद्योगिकी में व्यापार के विस्तार पर ज़ोर।
कनेक्टिविटी और प्रतिभा गतिशीलता में वृद्धि: व्यापार और लॉजिस्टिक्स में सुधार के लिये विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC), चेन्नई-व्लादिवोस्तोक गलियारे और उत्तरी समुद्री मार्ग के माध्यम से कनेक्टिविटी बढ़ाने पर विशेष महत्त्व दिया गया है।
- बैठक में रूस की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रतिभा गतिशीलता और कौशल विकास को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया गया, साथ ही द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये शिक्षा और कार्यबल सहयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया।
- आर्थिक सहयोग के लिये भावी कदम: कार्य समूहों और उप-समूहों को वर्ष 2030 तक की अवधि के लिये आर्थिक सहयोग कार्यक्रम को अंतिम रूप देने में तेज़ी लाने का कार्य सौंपा गया।
- एजेंडे में बाज़ार पहुँच बढ़ाना तथा सेवाओं, निवेश एवं प्रौद्योगिकी विनिमय पर चर्चा को आगे बढ़ाना शामिल है।
भारत-रूस व्यापार की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- व्यापार लक्ष्य: प्रारंभ में, भारत और रूस ने वर्ष 2025 तक द्विपक्षीय निवेश को 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर और द्विपक्षीय व्यापार को 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
- हालाँकि, वित्त वर्ष 2023-24 के लिये द्विपक्षीय व्यापार 65.70 बिलियन अमेरिका डॉलर के अभूतपूर्व उच्च स्तर पर पहुँच गया, जिसमें भारत का निर्यात 4.26 बिलियन अमेरिका डॉलर तथा रूस से आयात 61.44 बिलियन अमेरिका डॉलर था।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 से पहले रूस के साथ 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार लक्ष्य हासिल करना है।
- आयात और निर्यात: रूस से आयात में तेल और पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, खनिज, बहुमूल्य पत्थर और धातुएँ, तथा वनस्पति तेल शामिल हैं; रूस को निर्यात में फार्मास्यूटिकल्स, कार्बनिक रसायन, विद्युत मशीनरी, यांत्रिक उपकरण, तथा लोहा एवं इस्पात शामिल हैं।
- भारत में प्रमुख रूसी निवेश: तेल और गैस, पेट्रोकेमिकल्स, बैंकिंग, रेलवे और इस्पात।
- रूस में प्रमुख भारतीय निवेश: तेल और गैस, तथा फार्मास्यूटिकल्स।
भारत-रूस व्यापार में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- व्यापार असंतुलन: भारत को रूस के साथ लगभग 57 बिलियन अमेरिकी डॉलर के व्यापार घाटे का सामना करना पड़ रहा है, जिसका मुख्य कारण रूसी कच्चे तेल का आयात है, तथा व्यापार असंतुलन रूस के पक्ष में है, क्योंकि भारत का रूस को निर्यात तुलनात्मक रूप से कम है।
- भू-राजनीतिक कारण: अमेरिका और क्वाड के साथ भारत के बढ़ते संबंध, विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में, रूस के साथ गहन रणनीतिक सहयोग को सीमित कर सकते हैं।
- चीन के साथ रूस के मज़बूत संबंधों से भारत और चीन के हितों में संतुलन स्थापित करने की उसकी क्षमता और कम हो गई है, जिससे बहुपक्षीय मंचों पर भारत की स्थिति कमज़ोर हो गई है।
- प्रतिबंध और अनुपालन संबंधी मुद्दे: यूरोपीय संघ और पश्चिमी शक्तियों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भारत के साथ व्यापार संबंधों को जटिल बना दिया है, और अब कुछ भारतीय कंपनियाँ भी निशाना बन रही हैं।
- इससे भारत के सामने कठिन स्थिति उत्पन्न हो गई है, क्योंकि उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों का पालन करते हुए रूस के साथ अपने रक्षा और ऊर्जा संबंधों में संतुलन बनाए रखना है।
- ट्रेड बास्केट में विविधता (Diverse Trade Basket): ऊर्जा वाणिज्य, विशेषकर सस्ते कच्चे तेल में वृद्धि हुई है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और ऑटो पार्ट्स जैसे उद्योगों में विविधता लाने के प्रयास सुस्त रहे हैं।
- रूस की गिरती अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के कारण, नए आर्थिक क्षेत्रों में भारत के साथ भागीदारी करने की उसकी क्षमता सीमित हो गई है।
- इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत के बढ़ते आर्थिक संबंध, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और विनिर्माण के क्षेत्र में रूस के साथ नए रणनीतिक सहयोग के अवसरों को सीमित कर रहे हैं।
- प्रतिबंध और अनुपालन संबंधी मुद्दे: यूरोपीय संघ और पश्चिमी शक्तियों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने भारत के साथ व्यापार संबंधों को जटिल बना दिया है, और अब कुछ भारतीय कंपनियाँ भी निशाना बन रही हैं।
- कनेक्टिविटी परियोजनाओं में चुनौतियाँ: INSTC और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर जैसी परियोजनाएँ भारत-रूस व्यापार महत्वाकांक्षाओं के लिये केंद्रीय हैं।
- हालाँकि, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर जैसे अन्य संपर्क मार्गों के लिये भारत का बढ़ता उत्साह INSTC के रणनीतिक महत्त्व को कमज़ोर कर सकता है, जिससे इन पहलों के प्रदर्शन में कमी आ सकती है, जिनके लिये रूस के प्रत्यक्ष रूप से सहयोग की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा:
- INSTC के बारे में: INSTC 7,200 किलोमीटर लंबा बहुविधीय पारगमन मार्ग है जो हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को कैस्पियन सागर से जोड़ता है, तथा रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से होते हुए उत्तरी यूरोप तक फैला हुआ है।
- इसे वर्ष 2000 में ईरान, रूस और भारत के बीच त्रिपक्षीय समझौते के तहत शुरू किया गया था।
- यह भारत, ईरान, अज़रबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच जहाज़, रेल और सड़क मार्गों को जोड़ता है।
- INSTC मध्य एशिया और यूरेशियाई क्षेत्र के साथ भारत की कनेक्टिविटी को बढ़ावा दे सकता है, तथा इसमें शामिल देशों के भू-रणनीतिक और आर्थिक महत्त्व का लाभ उठा सकता है।
- सदस्यता: भारत, ईरान, रूस, अज़रबैजान, आर्मेनिया, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान और सीरिया तथा बुल्गारिया पर्यवेक्षक राज्य के रूप में शामिल हुआ है।
भारत और रूस व्यापार चुनौतियों का समाधान किस प्रकार कर रहा है?
- स्पेशल रूपी-वॉस्ट्रो अकाउंट फैसिलिटी: भारत ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों से उत्पन्न चुनौतियों पर काबू पाने और भारतीय तथा रूसी व्यवसायों के बीच स्थानीय मुद्राओं में भुगतान की सुविधा के लिये स्पेशल रूपी-वॉस्ट्रो अकाउंट फैसिलिटी की शुरुआत की।
- मुक्त व्यापार समझौता (FTA) और निवेश: दोनों पक्ष भारत और यूरेशियन आर्थिक संघ (EEU) के बीच FTA की दिशा में कार्य कर रहे हैं, जिससे व्यापार को और अधिक सुव्यवस्थित किया जा सकेगा तथा बाधाओं को कम किया जा सकेगा।
- अप्रैल, 2024 में मॉस्को में प्रथम द्विपक्षीय निवेश फोरम के शुभारंभ तथा द्विपक्षीय निवेश संधि पर चल रही वार्ता से अधिक आर्थिक भागीदारी को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- व्यावसायिक उद्यमों को सुविधाजनक बनाना: रूस ने भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम में रुचि दिखाई है, जिससे संयुक्त उद्यमों और आर्थिक सहयोग के नए अवसर उत्पन्न हो सकते हैं।
- द्विपक्षीय समझौते: दोनों देशों के बीच अधिकृत आर्थिक ऑपरेटर कार्यक्रम पर द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर व्यापार प्रक्रियाओं को सरल बनाने और व्यापारिक आदान-प्रदान को बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड तथा संघीय सीमा शुल्क सेवा, रूस ने आयातक देश के सीमा शुल्क प्राधिकारियों द्वारा माल निकासी के दौरान दोनों हस्ताक्षरकर्त्ताओं के विश्वसनीय निर्यातकों को पारस्परिक लाभ प्रदान करने के लिये AEO समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
- ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग: परमाणु क्षेत्र में विकास, सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन प्रौद्योगिकी में सुधार सहित बड़े पैमाने पर ऊर्जा पहल पर विशेष ध्यान दिया गया है ।
- रूसी व्यापार केंद्र: नई दिल्ली में रूसी व्यापार केंद्र का उद्देश्य व्यापारिक बातचीत, क्षेत्रीय मिशनों, मंचों को सुविधाजनक बनाने और विश्लेषणात्मक सहायता प्रदान करके भारत-रूस आर्थिक संबंधों को मज़बूत करना है।
निष्कर्ष:
भारत और रूस की पूरक अर्थव्यवस्थाएँ मज़बूत सहयोग की संभावनाएँ प्रदान करती हैं, भारत की वृद्धि एवं रूस के संसाधन भविष्य की साझेदारी का मार्ग प्रशस्त करते हैं। जैसे-जैसे रूस एशिया और विश्व बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, दोनों देशों को आपसी लाभ के लिये संबंधों को मज़बूत करना चाहिये।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारत-रूस व्यापार संबंधों का विश्लेषण कीजिये। इस साझेदारी को आगे बढ़ाने वाले प्रमुख क्षेत्रों और इसे मज़बूत करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ ‘नाभिकीय क्षेत्र में सहयोग क्षेत्रों के प्राथमिकीकरण और कार्यान्वयन हेतु कार्ययोजना’ नामक सौदे पर हस्ताक्षर किये हैं? (2019) (A) जापान उत्तर: B मेन्स:प्रश्न 1. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में चर्चा कीजिये। (2020) |