सबसे पुराने महाद्वीपीय भूभाग का उदय

प्रिलिम्स के लिये:

‘महाद्वीपीय विस्थापन’ सिद्धांत

मेन्स के लिये: 

प्रारंभिक भूभाग का निर्माण और जीवों के विकास की प्रक्रिया

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन में जानकारी दी गई है कि विश्व के सबसे पहले महाद्वीपीय भूभाग का निर्माण 2.5 बिलियन वर्ष पूर्व (‘महाद्वीपीय विस्थापन’ सिद्धांत के अनुसार) नहीं, बल्कि 3.2 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ था।

  • यह अध्ययन भारत, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के शोधकर्त्ताओं द्वारा किया गया था।

‘महाद्वीपीय विस्थापन’ सिद्धांत:

  • ‘महाद्वीपीय विस्थापन’ सिद्धांत महासागरों और महाद्वीपों के वितरण से संबंधित है। यह पहली बार वर्ष 1912 में एक जर्मन मौसम विज्ञानी अल्फ्रेड वेगेनर द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
  • इस सिद्धांत के मुताबिक, मौजूदा सभी महाद्वीप अतीत में एक बड़े भूखंड- ‘पैंजिया’ से जुड़े हुए थे और उनके चारों ओर एक विशाल महासागर- पैंथालसा मौजूद था।
  • लगभग 200 मिलियन वर्ष पहले पैंजिया विभाजित होना शुरू हुआ और क्रमशः उत्तरी एवं दक्षिणी घटकों का निर्माण करते हुए लारेशिया तथा गोंडवानालैंड के रूप में दो बड़े महाद्वीपीय भूभागों में टूट गया।
  • इसके बाद लारेशिया और गोंडवानालैंड विभिन्न छोटे महाद्वीपों में टूटते रहे जो क्रम आज भी जारी है।

Landmass

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • इस अध्ययन ने व्यापक रूप से स्वीकृत इस दृष्टिकोण को चुनौती देने का प्रयास किया है कि महाद्वीपों का निर्णय लगभग 2.5 बिलियन वर्ष पूर्व महासागरों से हुआ था।
    • इस अध्ययन के मुताबिक, महाद्वीपीय भूभागों का निर्माण लगभग 700 मिलियन वर्ष यानी लगभग 3.2 बिलियन वर्ष पूर्व हुआ था और इस अवधि के दौरान प्रारंभिक महाद्वीपीय भूभाग का निर्माण झारखंड के ‘सिंहभूम’ क्षेत्र में हुआ होगा।
      • हालाँकि प्रारंभिक महाद्वीपीय भूमि के हिस्से ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में भी मौज़ूद हैं।
      • भूवैज्ञानिक समानताओं ने सिंहभूम क्रेटन को दक्षिण अफ्रीका और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के क्रेटन से जोड़ा है।
  • प्रमुख निष्कर्ष:
    • नदी चैनल, ज्वारीय मैदान और समुद्र तट:
      • वैज्ञानिकों ने माना कि जब पहली बार भूमि का निर्माण हुआ, तो यह ‘सिंहभूम’ के उत्तरी क्षेत्र की तलछटी चट्टानों के रूप में था। वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रकार की तलछटी चट्टानें खोजी हैं, जिन्हें ‘बलुआ पत्थर’ (Sandstones) कहा जाता है।
      • वैज्ञानिकों ने यूरेनियम और छोटे खनिजों की लेड कंटेंट का विश्लेषण करके इनकी आयु का पता लगाया।
      • ये चट्टानें 3.1 बिलियन वर्ष पुरानी थीं और इनका निर्माण प्राचीन नदियों, समुद्र तटों और उथले समुद्रों में हुआ था।
      • ये सभी जल निकाय केवल महाद्वीपीय भूमि होने पर ही अस्तित्व में हो सकते थे। इस प्रकार निष्कर्ष निकाला गया कि सिंहभूम क्षेत्र 3.1 बिलियन वर्ष पूर्व समुद्र के ऊपर था।
    • वृहत् ज्वालामुखी गतिविधियाँ:
      • शोधकर्त्ताओं ने ‘सिंहभूम’ क्षेत्र की महाद्वीपीय परत बनाने वाले ग्रेनाइटों का भी अध्ययन किया।
      • ये ग्रेनाइट 3.5 से 3.1 बिलियन वर्ष पुराने हैं और इनका निर्माण वृहत् ज्वालामुखी गतिविधियों के माध्यम से हुआ था तथा यह प्रक्रिया सैकड़ों-लाखों वर्षों तक जारी रही, जब तक कि ‘मैग्मा’ एक मोटी महाद्वीपीय परत बनाने के लिये ठोस नहीं हो गए।
      • मोटाई और कम घनत्व के कारण महाद्वीपीय क्रस्ट आसपास के समुद्री क्रस्ट के ऊपर ‘आधिक्य’ (फ्लोट करने में सक्षम होने की गुणवत्ता) के कारण उभरा।
  • जीवों का विकास:
    • महाद्वीपों के शुरुआती उद्भव ने प्रकाश संश्लेषक जीवों के प्रसार में योगदान दिया होगा, जिससे वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ गया होगा।
    • क्रेटन के अपक्षय से पोषक तत्त्वों का अपवाह होता है , जिससे प्रारंभिक जीवन के लिये समुद्र को फॉस्फोरस और अन्य बिल्डिंग ब्लॉक्स की आपूर्ति हुई।
      • क्रेटन, महाद्वीप का एक स्थिर आंतरिक भाग है जो विशेष रूप से प्राचीन क्रिस्टलीय चट्टान से बना है।
  • महत्त्व:
    • ऐसे समय में जब पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन को लेकर बहस चल रही है, यह समझना बहुत ज़रूरी है कि हमारा वातावरण, महासागर और जलवायु किस प्रकार अस्तित्व में आए तथा किस प्रकार उन्होंने हमारे ग्रह को रहने योग्य बनाने के लिये पृथ्वी के अंदर महत्त्वपूर्ण भूवैज्ञानिक बदलाव किये।
    • यह हमें पृथ्वी के आंतरिक भाग को इसके बाहरी भाग से जोड़ने की अनुमति देगा।
      • भारत में तीन अन्य प्राचीन महाद्वीपीय खंड- धारवाड़, बस्तर और बुंदेलखंड भी मौजूद हैं। उनके विकास को समझने के लिये इनका अध्ययन महत्त्वपूर्ण है।

Deccan-Besalt

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस