शासन व्यवस्था
चिन-कुकी-मिज़ो समूह द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ
- 30 Jan 2023
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प्रिलिम्स के लिये:भारत में शरणार्थी, वर्ष 1951 का शरणार्थी सम्मेलन, वर्ष 1946 का विदेशी अधिनियम, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA), रोहिंग्या शरणार्थी, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त। मेन्स के लिये:चिन-कुकी-मिज़ो समूह द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ, शरणार्थी संकट, भारत की शरणार्थी नीति। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चिन-कुकी-मिज़ो समुदायों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले ज़ो रीयूनिफिकेशन ऑर्गनाइज़ेशन (ZORO) ने बांग्लादेश के चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (CHT) में रहने वाले जातीय अल्पसंख्यकों के "उन्मूलन की नीति" को समाप्त करने में भारत से मदद की मांग की है।
- बांग्लादेश की सेना द्वारा रोहिंग्या मुस्लिम चरमपंथी समूह, अराकान आर्मी की मिलीभगत से एक कथित हमले की घटना के बाद नवंबर 2022 से मिज़ोरम के लॉन्गतलाई ज़िले में शरण लेने वाले चिन-कुकी-मिज़ो समूह से जुड़े लोगों की संख्या 300 से अधिक है।
बांग्लादेश में चिन-कुकी-मिज़ो समूह द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दे:
- बांग्लादेशी सेना द्वारा इन्हें खत्म करने की नीति के कारण चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (CHT) में स्वदेशी कुकी-चिन जनजातियों के संवैधानिक और मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
- CHT दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश में 13,000 वर्ग किमी. का पहाड़ी और जंगली क्षेत्र है, जो भारत के मिज़ोरम एवं त्रिपुरा तथा म्याँमार के चिन व रोहिंग्याओं से बसे हुए रखाइन राज्य की सीमा से लगा हुआ है।
- ब्रिटिश पूर्व चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स में स्वशासी सरदार और सरदारनियाँ थीं (Self-governing Chiefdoms and Chieftaincies)। इन समूहों की आबादी को या तो ख्यौंगथा के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जो जनजातियाँ नदी के किनारे रहती हैं, या तोंगथा, जो पहाड़ियों के घने जंगलों में रहती हैं।
- ये जनजातियाँ हिंदू राजाओं और मुस्लिम नवाबों के नियंत्रण से बाहर रहीं, लेकिन वर्ष 1860 में अंग्रेज़ों द्वारा CHT पर कब्ज़े ने उन्हें बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील बना दिया।
- अंग्रेज़ों ने जनजातियों की पहचान, रीति-रिवाजों, संस्कृति, परंपरा एवं पैतृक भूमि की रक्षा के लिये CHT को विशेष संवैधानिक दर्जा दिया। हालाँकि प्रतिबंधात्मक कानूनों को वर्ष 1903 तक निरस्त कर दिया गया था ताकि मैदानी क्षेत्र के निवासियों को उच्च क्षेत्रों में प्रवेश मिल सके।
- स्थानीय लोगों की अपेक्षाओं के विपरीत CHT को वर्ष 1947 में पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया गया था जिससे सभी स्थानीय जनजातियों को जीवन के सभी पहलुओं में भेदभाव का सामना करना पड़ा।
- जबकि CHT की जनजातीय आबादी में भारी गिरावट आई है, बांग्लादेश सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर स्थानीय जनजातियों विशेष रूप से कुकी-चिन लोगों की पैतृक भूमि पर अतिक्रमण कर लिया।
उनकी मांगें:
- CHT की कुकी-चिन जनजातियाँ पहाड़ियों में बड़े पैमाने पर गैर-आदिवासी लोगों की आमद के कारण एक अलग राज्य की मांग कर रही हैं लेकिन बांग्लादेश सरकार ने अपने दमनकारी उपायों को जारी रखने का फैसला किया है।
- ज़ोरो (ZORO) ने भारत से कहा है कि वह अपने बांग्लादेशी समकक्ष को कुकी-चिन राष्ट्रीय सेना (KNA) के साथ संघर्ष विराम की घोषणा करने तथा CHT में कुकी-चिन लोगों के अधिकारों का दुरुपयोग बंद करने की सलाह दे।
- संगठन ने भारत से गृह मंत्रालय एवं सीमा सुरक्षा बल को यह निर्देश देने की भी अपील की कि बांग्लादेश से भागकर मिज़ोरम में अपनी "स्वजातियों" के बीच शरण लेने वाले कुकी-चिन लोगों को न भगाया जाए।
भारत की शरणार्थी नीति:
- शरणार्थियों की बढ़ती आमद के बावजूद भारत में शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिये विशिष्ट कानून का अभाव है।
- भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का पक्षधर नहीं है, जो शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज़ हैं।
- हालाँकि शरणार्थी संरक्षण के मुद्दे पर भारत का शानदार रिकॉर्ड रहा है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।
- इसके अलावा भारत का संविधान मनुष्यों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का भी सम्मान करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य (1996) मामले में कहा कि “विदेशी नागरिकों सहित सभी नागरिक समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार के हकदार हैं।”
- इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 21 में गैर-प्रत्यावर्तन के अधिकार को शामिल किया गया है।
- गैर-प्रत्यावर्तन अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक सिद्धांत है जो कहता है कि अपने देश में उत्पीड़न से भागने वाले व्यक्ति को स्वयं के देश लौटने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।
भारत में शरणार्थियों की स्थिति:
- अपनी स्वतंत्रता के बाद से भारत ने पड़ोसी देशों के शरणार्थियों के विभिन्न समूहों को स्वीकार किया है, जिनमें शामिल हैं:
- 1947 में पाकिस्तान से शरणार्थियों का पलायन।
- तिब्बती शरणार्थी जो 1959 में पहुँचे।
- 1960 के दशक की शुरुआत में चकमा और हाजोंग वर्तमान बांग्लादेश से।
- 1965 और 1971 में अन्य बांग्लादेशी शरणार्थी।
- 1980 के दशक के श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी।
- म्याँमार से रोहिंग्या शरणार्थी।
शरणार्थियों को नियंत्रित करने हेतु वर्तमान विधायी ढाँचा:
- 1946 का विदेशी अधिनियम: धारा 3 के तहत केंद्र सरकार को अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने का अधिकार है।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920: धारा 5 के तहत अधिकारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 258(1) के तहत किसी अवैध विदेशी को बलपूर्वक हटा सकते हैं।
- विदेशी नागरिक पंजीकरण अधिनियम,1939: इसके तहत एक अनिवार्य आवश्यकता यह है कि दीर्घकालिक वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों (भारत के विदेशी नागरिकों को छोड़कर) को भारत आने के 14 दिनों के भीतर पंजीकरण अधिकारी के साथ खुद को पंजीकृत करना आवश्यक है।
- विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939 और विदेशियों के पंजीकरण के नियम, 1992 विदेशी पंजीकरण को अनिवार्य और विनियमित करते हैं।
- नागरिकता अधिनियम, 1955: इसमें अस्वीकार करने, समाप्ति और नागरिकता से वंचित करने का प्रावधान है।
- इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) केवल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना चाहता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत की सुरक्षा को गैर-कानूनी सीमा पार प्रवसन किस प्रकार खतरा प्रस्तुत करता है? इसे बढ़ावा देने के कारणों को उजागर करते हुए ऐसे प्रवसन को रोकने की रणनीतियों का वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |