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भूगोल

भू-विज्ञान में नई अंतर्दृष्टि

  • 13 Jul 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भौतिक भूगोल, भू-विज्ञान, ज्वालामुखी, पृथ्वी की संरचना, टेक्टोनिक प्लेट्स के मूल तत्त्व

मेन्स के लिये:

ज्वालामुखी के निर्माण में मैग्मा की भूमिका, पृथ्वी की संरचना में विभिन्न परतें, टेक्टोनिक प्लेट्स की गति का प्रभाव, महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय घटना

चर्चा में क्यों?

गोवा स्थित नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR) के वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन ने पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटों की गति में शामिल महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं के बारे में नई अंतर्दृष्टि प्रदान की है।

नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च (NCPOR):

  • NCPOR की स्थापना 25 मई, 1998 को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (पूर्व में महासागर विकास विभाग) के एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास संस्थान के रूप में की गई थी।
  • इसे अंटार्कटिक में भारत के स्थायी स्टेशन के रखरखाव सहित भारतीय अंटार्कटिक कार्यक्रम के समन्वय और कार्यान्वयन के लिये नोडल संगठन के रूप में नामित किया गया है।
  • अंटार्कटिक में दो भारतीय स्टेशनों (मैत्री और भारती) का साल भर रखरखाव इस केंद्र की प्राथमिक ज़िम्मेदारी है।
    • ध्रुवीय अनुसंधान के सभी विषयों में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अनुसंधान करने के लिये मैत्री (1989) और भारती (2011) की स्थापना की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • पृथ्वी के आंतरिक भाग से सतह की ओर गर्म और निम्न-घनत्व वाले मैग्मा या प्लम के उछाल से व्यापक ज्वालामुखी और समुद्र तल के ऊपर समुद्री पर्वतों और ज्वालामुखी शृंखलाओं का निर्माण होता है।
      • हालाँकि कई बार मैग्मा का उत्प्लावक बल स्थलमंडल को भेदने के लिये पर्याप्त नहीं होता है।
        • ऐसे मामलों में प्लम सामग्री को उप-लिथोस्फेरिक गहराई पर डंप करते हैं। जब स्थलमंडल के ऊपर स्थित टेक्टोनिक प्लेट्स हिलती हैं, तो वे अपने साथ जमा हुई सामग्री को खींचती है।
    • एक मौलिक प्रश्न जो पृथ्वी की प्रक्रियाओं को समझने में अभी बाकी है, वह यह है कि प्लम के साथ प्रारंभिक प्रभाव के बाद एक टेक्टोनिक प्लेट प्लम सामग्री को उसके आधार पर कितनी दूर खींच सकती है।
  • अध्ययन के बारे में:
    • वैज्ञानिकों ने इंटरनेशनल ओशन डिस्कवरी प्रोग्राम (IODP) के तहत एक अभियान के दौरान हिंद महासागर में नाइंटी ईस्ट रिज के पास से एकत्र किये गए आग्नेय चट्टानों के नमूनों का अध्ययन किया।
      • नाइंटी ईस्ट रिज हिंद महासागर में लगभग 90 डिग्री पूर्वी देशांतर के समानांतर स्थित एक एसिस्मिक रिज है। इसकी लंबाई लगभग 5,000 किमी. है और इसकी औसत चौड़ाई 200 किमी. है।
      • आग्नेय चट्टान, या मैग्मैटिक चट्टान, तीन मुख्य चट्टान प्रकारों में से एक है, अन्य अवसादी और कायांतरित हैं।
        • यह मैग्मा या लावा के ठंडा होने और जमने से बनता है।
    • जांँच से पता चला कि कुछ बेसाल्टिक नमूने अत्यधिक क्षारीय थे और उनमें केर्ज्यूलेन हॉटस्पॉट (दक्षिणी हिंद महासागर में केर्ज्यूलेन पठार पर ज्वालामुखीय हॉटस्पॉट) के नमूनों के समान संयोजन था।
      • इसके अलावा क्षारीय नमूनों की न्यूनतम आयु लगभग 58 मिलियन वर्ष थी, जो नाइंटी ईस्ट रिज के आसपास के समुद्री क्रस्ट (लगभग 82-78 मिलियन वर्ष पुराना) से बहुत कम थी।
    • इस अध्ययन का दावा है कि भारतीय टेक्टोनिक प्लेट जो समकालीन में बहुत तेज़ गति से उत्तर की ओर बढ़ रही थी, ने भारतीय स्थलमंडल के नीचे 2,000 किमी से अधिक गहराई से काफी मात्रा में केर्ज्यूलेन प्लम सामग्री को खींच लिया था।
    • गहरे भ्रंसन के बाद पुनः सक्रियण से अंतर्निहित प्लम सामग्री पर कम दबाव ने इसे पिघलने से रोक दिया जिससे लगभग 58 मिलियन वर्ष पहले नाइंटी ईस्ट रिज के पास मैग्मैटिक सिल्स और लावा प्रवाह के रूप में स्थापित हो सकता है।

पृथ्वी की आतंरिक संरचना:

  • भू-पर्पटी/क्रस्ट:
    • पृथ्वी की बाहरी सतह की परत को "क्रस्ट" कहा जाता है। महाद्वीपीय क्षेत्रों में क्रस्ट को दो परतों में विभाजित किया जा सकता है।
      • ऊपरी परत जिसकी विशेषता कम घनी और दानेदार होती है, उसे "सियाल" के रूप में जाना जाता है, जबकि निचली परत जो बेसाल्टिक होती है उसे "सिमा" के रूप में जाना जाता है।
    • यह महाद्वीपों के नीचे 30 या 40 किलोमीटर तक और महासागरीय घाटियों के नीचे लगभग 10 किमी. तक फैली है।
  • मेंटल:
    • मेंटल पृथ्वी की पपड़ी के नीचे स्थित है और इसकी मोटाई लगभग 2900 किमी. है।
    • इसे दो परतों में विभाजित किया गया है: (i) ऊपरी मेंटल और (ii) निचला मेंटल।
    • इनके बीच की सीमा लगभग 700 किमी. गहराई पर है।
    • ऊपरी मेंटल में सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जिसे "एस्थेनोस्फीयर" कहा जाता है। यह 50 से 100 किमी. की गहराई पर स्थित है।
    • यह क्षेत्र ज्वालामुखी विस्फोट के लिये लावा प्रदान करता है।
  • कोर:
    • कोर (आंतरिक कोर और बाह्य कोर) पृथ्वी के आयतन का लगभग 16% लेकिन पृथ्वी के द्रव्यमान का 33% है।
    • मेंटल की तरह कोर को भी दो परतों में विभाजित किया जा सकता है, अर्थात् बाह्य कोर और आंतरिक कोर।
    • बाह्य कोर निकेल के साथ मिश्रित लोहे से बना है और हल्के तत्त्वों की मात्रा का पता लगाता है।
    • बाह्य कोर में पर्याप्त दबाव नहीं है कि वह ठोस में परिवर्तित हो जाए , यही कारण है कि यह तरल अवस्था में है, भले ही इसकी संरचना आंतरिक कोर के समान हो।

Geology

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. बैरेन द्वीप ज्वालामुखी भारतीय क्षेत्र में स्थित एक सक्रिय ज्वालामुखी है।
  2. बैरेन द्वीप ग्रेट निकोबार से लगभग 140 किमी. पूर्व में स्थित है।
  3. पिछली बार वर्ष 1991 में बैरन द्वीप ज्वालामुखी विस्फोट हुआ था और तब से यह निष्क्रिय है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1 और 3

उत्तर: A

व्याख्या:

  • बैरेन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है जो अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में स्थित है। अत: कथन 1 सही है।
  • यह अंडमान सागर में अंडमान द्वीप के दक्षिणी भाग पोर्ट ब्लेयर से लगभग 140 किमी. की दूरी पर स्थित है। बैरेन द्वीप से ग्रेट निकोबार के बीच की दूरी दी गई दूरी से अधिक है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • ज्वालामुखी का पहला रिकॉर्डेड विस्फोट वर्ष 1787 में हुआ था। पिछले 100 वर्षों में इसमें कम-से-कम पाँच बार विस्फोट हो चुका है। फिर अगले 100 वर्षों तक यह शांत रहा। वर्ष 1991 में बड़े पैमाने पर फिर से इसमें विस्फोट हुआ  तथा तब से हर दो-तीन वर्षों में इसमें विस्फोट दर्ज किया गया है, इस शृंखला में नवीनतम विस्फोट फरवरी 2016 में हुआ था। अत: कथन 3 सही नहीं है।

अतः विकल्प (a) सही है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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