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हरित सागर: हरित पत्तन दिशा-निर्देश 2023
प्रिलिम्स के लिये:हरित सागर: हरित पत्तन दिशा-निर्देश 2023, ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य, सागर श्रेष्ठ सम्मान पुरस्कार, ग्रीन रिपोर्टिंग इनीशिएटिव (GRI) मानक मेन्स के लिये:हरित सागर: हरित पत्तन दिशा-निर्देश 2023, ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्रालय ने ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये 'हरित सागर' हरित पत्तन दिशा-निर्देश 2023 लॉन्च किया है।
- विभिन्न परिचालन मापदंडों में असाधारण उपलब्धियों के लिये प्रमुख पत्तनों को सागर श्रेष्ठ सम्मान पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
हरित सागर दिशा-निर्देश 2023:
- परिचय:
- हरित सागर एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है "हरित महासागर"। यह भारत के पत्तनों को पर्यावरण के अधिक अनुकूल और टिकाऊ बनाने के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- यह पत्तनों से संबंधित राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के पहलुओं, हरित हाइड्रोजन सुविधा के विकास, LNG बंकरिंग और अपतटीय पवन ऊर्जा सहित अन्य पहलुओं को भी कवर करता है।
- ये दिशा-निर्देश वैश्विक ग्रीन रिपोर्टिंग इनिशिएटिव (GRI) मानक को अपनाने का प्रावधान भी प्रदान करते हैं।
- उद्देश्य:
- नवीकरणीय ऊर्जा, जल संरक्षण, जैवविविधता संरक्षण और जलवायु लचीलापन जैसे हरित पत्तन विकास और संचालन के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं एवं प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना।
- पत्तन संचालन द्वारा शून्य अपशिष्ट निर्वहन लक्ष्य प्राप्त करने हेतु रिड्यूस, रियूज़, रिपरपोज़ और रिसाईकल के माध्यम से कचरे को कम करना।
- विभिन्न संकेतकों और मापदंडों के आधार पर पत्तनों के पर्यावरणीय प्रदर्शन का आकलन और बेंचमार्किंग निर्धारित करने के लिये एक रेटिंग प्रणाली स्थापित करना।
- पर्यावरणीय उत्कृष्टता और स्थिरता के उच्च मानकों को प्राप्त करने वाले पत्तनों को प्रोत्साहित करना और पहचानना।
- पत्तन के बुनियादी ढाँचे और सेवाओं की योजना, डिज़ाइन, निर्माण, संचालन एवं रख-रखाव में हरित पत्तन सिद्धांतों के एकीकरण की सुविधा प्रदान करना।
- महत्त्व:
- यह पेरिस समझौते एवं सतत् विकास लक्ष्यों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना और स्वच्छ भारत मिशन जैसी राष्ट्रीय नीतियों तथा पहलों के तहत भारत की प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है।
- इसके तहत एक ज़िम्मेदार समुद्री राष्ट्र के रूप में भारत की छवि एवं प्रतिष्ठा को बढ़ाने की अपेक्षा की जाती है जो अपने पर्यावरण और लोगों की परवाह करता है।
- इससे पत्तन क्षेत्र में नवाचार, निवेश, रोज़गार और सहयोग के नए अवसर सृजित होने की उम्मीद है।
- लाभ:
- दक्षता, विश्वसनीयता, सुरक्षा और सेवा की गुणवत्ता में सुधार कर पत्तनों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता और आकर्षण को बढ़ाना।
- संसाधनों के इष्टतम उपयोग और अपशिष्ट को कम करके परिचालन लागत को कम करना तथा पत्तनों की राजस्व अर्जित करने की क्षमता में वृद्धि करना।
- पर्यावरण अनुपालन में सुधार।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण और समुद्री अपशिष्ट को कम करके पर्यावरणीय प्रभावों एवं बंदरगाहों के जोखिम को कम करना।
- कम कार्बन और चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy- CE) में परिवर्तन का समर्थन करके सतत् विकास एवं जलवायु कार्रवाई के राष्ट्रीय तथा वैश्विक लक्ष्यों में योगदान देना।
कार्यान्वयन की चुनौतियाँ और बाधाएँ:
- बंदरगाह हितधारकों के बीच जागरूकता और क्षमता की कमी।
- विभिन्न एजेंसियों और क्षेत्रों के बीच समन्वय एवं सहयोग का अभाव।
- बंदरगाहों के पर्यावरणीय पहलुओं पर अपर्याप्त डेटा और जानकारी।
- पर्यावरण अनुपालन के लिये कमज़ोर प्रवर्तन और निगरानी तंत्र।
हरित पत्तन के विकास हेतु भारत के प्रयास:
- पहल:
- हरित पत्तन पुरस्कार, हरित बंदरगाह पॉलिसी और सागरमाला कार्यक्रम।
- लक्ष्य निर्धारित करना:
- बंदरगाहों में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़ाना, प्रति टन कार्गो के संचालन में कार्बन उत्सर्जन को कम करना और बंदरगाह संचालन के लिये हरित ईंधन एवं प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
- पायलट देश के रूप में चयन:
- ग्रीन शिपिंग से संबंधित एक पायलट परियोजना का संचालन करने के लिये भारत को IMO ग्रीन वॉयज 2050 (Green Voyage 2050) परियोजना के तहत पहले देश के रूप में चुना गया।
सागर श्रेष्ठ सम्मान पुरस्कार:
- भारत में प्रमुख बंदरगाहों को विभिन्न परिचालन मापदंडों में उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिये बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा सागर श्रेष्ठ सम्मान पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
- यह पुरस्कार उन बंदरगाहों को मान्यता देता है जो पर्यावरणीय उत्कृष्टता और स्थिरता के उच्च मानकों को प्रदर्शित करते हैं।
वित्त वर्ष 2022-23 के लिये पुरस्कार:
निष्कर्ष:
- हरित सागर दिशा-निर्देश एक दूरदर्शी पहल है जो भारतीय बंदरगाह क्षेत्र को बदल देगा और इसे बदलती जलवायु और बाज़ार की स्थितियों के मुकाबले अधिक टिकाऊ और लचीला बना देगा।
- दिशा-निर्देशों से न केवल बंदरगाहों बल्कि पर्यावरण और समाज को भी बड़े पैमाने पर लाभ होगा।
- वे एक ज़िम्मेदार समुद्री राष्ट्र के रूप में भारत की छवि और प्रतिष्ठा को भी बढ़ाएंगे जो अपने पर्यावरण और लोगों की परवाह करता है। हरित सागर दिशा-निर्देश का एक उदाहरण यह है कि भारत किस तरह हरित बंदरगाह विकास और संचालन में अग्रणी है।
स्रोत: पी. आई. बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
व्यापार और निवेश पर छठी भारत-कनाडा मंत्रिस्तरीय वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:व्यापार और निवेश पर छठी भारत-कनाडा मंत्रिस्तरीय वार्ता (MDTI), स्वच्छ प्रौद्योगिकी, संसदीय संरचना, सूचना प्रौद्योगिकी, जैव ईंधन, ANTRIX मेन्स के लिये:भारत और कनाडा के बीच सहयोग के क्षेत्र |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कनाडा के ओटावा में व्यापार और निवेश पर छठी भारत-कनाडा मंत्रिस्तरीय वार्ता आयोजित की गई।
प्रमुख बिंदु:
- भारत की G20 अध्यक्षता का समर्थन:
- कनाडा के मंत्री ने G20 अध्यक्ष के रूप में भारत और G20 व्यापार तथा निवेश कार्य समूह में इसकी प्राथमिकताओं पर अपना समर्थन व्यक्त किया।
- उन्होंने अगस्त 2023 में भारत में होने वाली आगामी G20 व्यापार और निवेश मंत्रिस्तरीय बैठक में भाग लेने की इच्छा जाहिर की।
- कनाडा के मंत्री ने G20 अध्यक्ष के रूप में भारत और G20 व्यापार तथा निवेश कार्य समूह में इसकी प्राथमिकताओं पर अपना समर्थन व्यक्त किया।
- सहयोग में वृद्धि:
- मंत्रियों ने बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये स्वच्छ प्रौद्योगिकियों, महत्त्वपूर्ण खनिजों, इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी, नवीकरणीय ऊर्जा/हाइड्रोजन तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में सहयोग के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
- महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला सुनम्यता:
- मंत्रियों ने महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला सुनम्यता को बढ़ावा देने के लिये सरकारों के बीच समन्वय के महत्त्व पर बल दिया।
- उन्होंने आपसी हितों पर चर्चा करने के लिये टोरंटो में प्रॉस्पेक्टर्स एंड डेवलपर्स एसोसिएशन कॉन्फ्रेंस (PDAC) के दौरान आधिकारिक स्तर पर एक वार्षिक संवाद के लिये प्रतिबद्धता जताई।
- मंत्रियों ने महत्त्वपूर्ण खनिज आपूर्ति शृंखला सुनम्यता को बढ़ावा देने के लिये सरकारों के बीच समन्वय के महत्त्व पर बल दिया।
- कनाडा-भारत CEO फोरम:
- मंत्रियों ने नए उद्देश्य और प्राथमिकताओं के साथ कनाडा-भारत CEO फोरम को पुनर्व्यवस्थित और फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की।
- CEO फोरम व्यवसायों के बीच जुड़ाव बढ़ाने के लिये एक मंच के रूप में काम करेगा और इसकी घोषणा सर्वसहमत-निर्धारित तिथि पर की जा सकती है।
- मंत्रियों ने नए उद्देश्य और प्राथमिकताओं के साथ कनाडा-भारत CEO फोरम को पुनर्व्यवस्थित और फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की।
- व्यापार मिशन और प्रतिनिधिमंडल:
- कनाडा के मंत्री ने अक्तूबर 2023 में भारत में टीम कनाडा व्यापार मिशन के अपने नेतृत्व की घोषणा की।
- इस मिशन का उद्देश्य एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ व्यापार और निवेश संबंधों को मज़बूत करना है।
- कनाडा के मंत्री ने अक्तूबर 2023 में भारत में टीम कनाडा व्यापार मिशन के अपने नेतृत्व की घोषणा की।
भारत और कनाडा के बीच सहयोग के क्षेत्र:
- परिचय:
- भारत ने वर्ष 1947 में कनाडा के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। भारत और कनाडा के साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, दो समाजों की बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय एवं बहु-धार्मिक प्रकृति तथा लोगों के बीच संपर्क पर आधारित लंबे समय से मज़बूत द्विपक्षीय संबंध हैं
- भारत ने वर्ष 1947 में कनाडा के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये। भारत और कनाडा के साझा लोकतांत्रिक मूल्यों, दो समाजों की बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय एवं बहु-धार्मिक प्रकृति तथा लोगों के बीच संपर्क पर आधारित लंबे समय से मज़बूत द्विपक्षीय संबंध हैं
- राजनीतिक:
- भारत और कनाडा संसदीय संरचना और प्रक्रियाओं में समानताएँ साझा करते हैं।
- भारत में कनाडा का प्रतिनिधित्व नई दिल्ली में कनाडा के उच्चायोग द्वारा किया जाता है।
- कनाडा में बंगलूरू, चंडीगढ़ और मुंबई में महावाणिज्य दूतावास के साथ-साथ अहमदाबाद, चेन्नई, हैदराबाद तथा कोलकाता में व्यापार कार्यालय भी हैं।
- व्यापार:
- वस्तुओं में भारत-कनाडा द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में लगभग 8.2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021 की तुलना में 25% की वृद्धि दर्शाता है।
- वर्ष 2022 में लगभग 6.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के द्विपक्षीय सेवा व्यापार के साथ, सेवा क्षेत्र को द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में बल दिया गया था।
- कैनेडियन पेंशन फंड ने संचयी रूप से भारत में लगभग 55 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का निवेश किया है और भारत को तेज़ी से निवेश के लिये एक अनुकूल गंतव्य के रूप में देखा जा रहा है।
- भारत में 600 से अधिक कनाडाई कंपनियों की उपस्थिति है और 1,000 से अधिक कंपनियाँ सक्रिय रूप से भारतीय बाज़ार में कारोबार कर रही हैं।
- कनाडा में भारतीय कंपनियाँ सूचना प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर, स्टील, प्राकृतिक संसाधनों और बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
- भारत-कनाडा मुक्त व्यापार समझौते पर भी बातचीत चल रही है।
- भारत और कनाडा के बीच वर्ष 2023 में अर्ली प्रोग्रेस ट्रेड एग्रीमेंट (EPTA) पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है।
- समझौते में वस्तुओं, सेवाओं, निवेश, उत्पत्ति के नियम, स्वच्छता और पादप स्वच्छता उपायों, व्यापार के लिये तकनीकी बाधाओं तथा विवाद निपटान सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा।
- भारत और कनाडा के बीच वर्ष 2023 में अर्ली प्रोग्रेस ट्रेड एग्रीमेंट (EPTA) पर हस्ताक्षर होने की उम्मीद है।
- वस्तुओं में भारत-कनाडा द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022 में लगभग 8.2 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच गया, जो वर्ष 2021 की तुलना में 25% की वृद्धि दर्शाता है।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी:
- भारत के परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) ने परमाणु सुरक्षा और नियामक मुद्दों के अनुभवों का आदान-प्रदान करने के लिये 16 सितंबर, 2015 को कनाडाई परमाणु सुरक्षा आयोग (CNSC) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- भारत-कनाडा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सहयोग मुख्य रूप से औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने पर केंद्रित रहा है जिसमें नए IP, प्रक्रियाओं, प्रोटोटाइप या उत्पादों के विकास की क्षमता विस्तार की संभावना है।
- नवंबर 2017 में नई दिल्ली में आयोजित प्रौद्योगिकी शिखर सम्मेलन में कनाडा भागीदार देश था।
- पृथ्वी विज्ञान विभाग और ध्रुवीय कनाडा (डिपार्टमेंट ऑफ अर्थ साइंस एंड पोलर कनाडा) ने शीत जलवायु (आर्कटिक) अध्ययन पर ज्ञान एवं वैज्ञानिक अनुसंधान के आदान-प्रदान के लिये एक कार्यक्रम शुरू किया है।
- "मिशन इनोवेशन" कार्यक्रम के तहत भारत सतत् जैव ईंधन (IC4) के क्षेत्रों में विभिन्न गतिविधियों हेतु कनाडा के साथ सहयोग कर रहा है।
- ISRO की वाणिज्यिक शाखा ANTRIX (एंट्रिक्स) ने कनाडा से कई नैनो उपग्रह प्रक्षेपित किये हैं।
- 12 जनवरी, 2018 को लॉन्च किये गए अपने 100वें सैटेलाइट PSLV में ISRO ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के भारतीय स्पेसपोर्ट से कनाडा का पहला LEO उपग्रह का भी प्रक्षेपण किया
- 12 जनवरी, 2018 को लॉन्च किये गए अपने 100वें सैटेलाइट PSLV में ISRO ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के भारतीय स्पेसपोर्ट से कनाडा का पहला LEO उपग्रह का भी प्रक्षेपण किया
- शिक्षा और संस्कृति:
- शास्त्री इंडो-कैनेडियन इंस्टीट्यूट (SICI) वर्ष 1968 से भारत और कनाडा के बीच शिक्षा एवं सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने वाला एक अनूठा द्वि-राष्ट्रीय संगठन है।
- नवंबर 2017 में गोवा में आयोजित 48वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कनाडा को केंद्रीय देश के रूप में प्रदर्शित किया गया।
- कनाडा पोस्ट और इंडिया पोस्ट ने वर्ष 2017 में दिवाली के अवसर पर स्मारक डाक टिकट जारी करने हेतु सहयोग किया।
- कनाडा पोस्ट ने वर्ष 2020 और 2021 में पुनः दिवाली टिकट जारी किये।
- अक्तूबर 2020 में कनाडा ने प्राचीन अन्नपूर्णा प्रतिमा के स्वैच्छिक प्रत्यावर्तन की घोषणा की, जिसे एक कनाडाई कलेक्टर द्वारा अवैध रूप से अधिग्रहीत किया गया था और रेजिना विश्वविद्यालय में रखा गया था।
- इस मूर्ति को भारत को सौंप दिया गया है और नवंबर 2021 में वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर रखा गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह में सभी चार देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (a) अर्जेंटीना, मैक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्किये उत्तर: (a) |
स्रोत: पी.आई.बी.
जैव विविधता और पर्यावरण
वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को समाप्त करना
प्रिलिम्स के लिये:मीथेन गैस, संबंधित पहल, COP-28, जलवायु परिवर्तन, शुद्ध शून्य उत्सर्जन मेन्स के लिये:ग्लोबल वार्मिंग पर मीथेन उत्सर्जन के प्रभाव, नई ऊर्जा प्रणालियों के संक्रमण में हाइड्रोकार्बन की भूमिका, जलवायु शमन में जलवायु प्रौद्योगिकियों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COP-28 के नामित अध्यक्ष सुल्तान अहमद अल जाबेर ने तेल और गैस उद्योग से वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन को समाप्त करने एवं वर्ष 2050 तक या उससे पहले व्यापक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन योजनाओं के साथ संरेखित करने का आह्वान किया है क्योंकि मीथेन जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में गंभीर चिंता के रूप में उभरी है।
- जलवायु कार्यवाही और ऊर्जा संक्रमण में विकासशील देशों की समावेशिता एवं सक्रिय भागीदारी के महत्त्व के साथ-साथ जलवायु शमन के लिये प्रौद्योगिकियों को अपनाने पर ज़ोर दिया गया।
- COP-28 या 28वाँ संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 30 नवंबर से 12 दिसंबर के बीच संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित होने वाला है।
मीथेन:
- परिचय:
- मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं।
- यह ज्वलनशील है और इसे विश्व भर में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
- मीथेन शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है।
- वातावरण में अपने जीवन के पहले 20 वर्षों में मीथेन में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में तापन शक्ति 80 गुना से अधिक होती है।
- कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में वातावरण में इसका जीवनकाल कम होता है।
- मीथेन के सामान्य स्रोत तेल और प्राकृतिक गैस प्रणाली, कृषि गतिविधियाँ, कोयला खनन और अपशिष्ट हैं।
- मीथेन सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) होते हैं।
- प्रभाव:
- अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता:
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) की रिपोर्ट के अनुसार, जीवाश्म ईंधन संचालन सभी मानव गतिविधियों से एक-तिहाई से अधिक मीथेन उत्पन्न करता है।
- यह ग्लोबल वार्मिंग क्षमता के मामले में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में लगभग 80-85 गुना अधिक शक्तिशाली है।
- यह अन्य ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के लिये एक साथ काम करते हुए ग्लोबल वार्मिंग को और अधिक तेज़ी से कम करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करती है।
- मीथेन औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक तापमान में लगभग 30% की वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार है।
- क्षोभमंडलीय ओज़ोन के उत्पादन को बढ़ावा:
- इसके बढ़ते उत्सर्जन के कारण क्षोभमंडलीय ओज़ोन वायु प्रदूषण में वृद्धि हो रही है, जिसके कारण सालाना दस लाख से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु होती है।
- अधिक ग्लोबल वार्मिंग क्षमता:
मीथेन से ऊर्जा संक्रमण में हाइड्रोकार्बन की भूमिका:
- संक्रमण में भूमिका:
- हाइड्रोकार्बन ऊर्जा का एक विश्वसनीय और आसानी से उपलब्ध स्रोत प्रदान करके नई ऊर्जा प्रणालियों में बदलाव के दौरान एक संक्रमणकालीन भूमिका निभा सकते हैं।
- सेतु ईंधन की भूमिका:
- ये कार्बन उत्सर्जन को कम कर ऊर्जा की मांग को पूरा करने में मदद करते हुए उच्च कार्बन जीवाश्म ईंधन एवं स्वच्छ विकल्पों के बीच एक सेतु ईंधन के रूप में काम कर सकते हैं।
- ऊर्जा प्रणाली की स्थिरता:
- हाइड्रोकार्बन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने के प्रारंभिक चरणों के दौरान ऊर्जा प्रणाली की स्थिरता को बनाए रखने में योगदान करते हैं।
- मौजूदा बुनियादी ढाँचा:
- हाइड्रोकार्बन निकालने, संसाधित करने और वितरित करने हेतु बुनियादी ढाँचा पहले से ही स्थापित है, जिससे नई ऊर्जा प्रणालियों में सहज संक्रमण हो सकता है।
- कार्बन तीव्रता में कमी:
- उत्पादन और खपत प्रक्रियाओं के दौरान स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं को लागू करके हाइड्रोकार्बन के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
विकासशील देशों को ऊर्जा संक्रमण में शामिल करने के प्रयास:
- वित्तीय सहायता बढ़ाना:
- विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों और प्रौद्योगिकियों को अपनाने हेतु पर्याप्त जलवायु वित्त प्रदान करना।
- तकनीकी हस्तांतरण:
- किफायती और कुशल समाधानों तक पहुँच सुनिश्चित करते हुए विकसित देशों से विकासशील देशों को स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करना।
- क्षमता निर्माण:
- स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को लागू करने और प्रबंधित करने में विकासशील देशों की क्षमता का निर्माण करने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं ज्ञान-साझाकरण पहलों में निवेश करना।
- नीतिगत समर्थन:
- अक्षय ऊर्जा और ऊर्जा-कुशल प्रथाओं को अपनाने को प्रोत्साहित करने वाली सहायक नीतियों एवं विनियमों को विकसित करने तथा लागू करने में विकासशील देशों की सहायता करना।
- सार्वजनिक-निजी साझेदारी:
- विकासशील देशों के ऊर्जा संक्रमण का समर्थन करने में संसाधनों, विशेषज्ञता और नवाचार का लाभ उठाने हेतु सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
जलवायु शमन में जलवायु प्रौद्योगिकियों की भूमिका:
- नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ:
- जलवायु प्रौद्योगिकियाँ सौर, पवन, जल और भूतापीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल करती हैं।
- ये प्रौद्योगिकियाँ स्वच्छ और टिकाऊ ऊर्जा उत्पादन को सक्षम बनाती हैं, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के साथ ही कार्बन उत्सर्जन कम करती हैं।
- ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकियाँ:
- इमारतों, परिवहन और उद्योगों सहित विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता बढ़ाना जलवायु प्रौद्योगिकी के केंद्र में है।
- ऊर्जा प्रदर्शन में सुधार करने वाले स्मार्ट मीटर, ऊर्जा-कुशल उपकरण और इन्सुलेशन जैसी प्रौद्योगिकियों का निर्माण।
- बैटरी और ऊर्जा भंडारण परिवर्तनीय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करना संभव बनाता है तथा विश्वसनीय एवं सुरक्षित ग्रिड संचालन के लिये बैकअप ऊर्जा प्रदान करता है।
- इन प्रौद्योगिकियों का उद्देश्य ऊर्जा की खपत और अपव्यय को कम करना है, इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है।
- कार्बन कैप्चर, उपयोगिता और संग्रहण (CCUS):
- CCUS प्रौद्योगिकियाँ विद्युत संयंत्रों और औद्योगिक ईकाइयों से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करती हैं तथा उन्हें वातावरण में निष्काषित होने से रोकती हैं।
- कैप्चर किये गए कार्बन को भूमिगत रूप से संग्रहीत किया जाता है अथवा अन्य अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है, यह प्रभावी रूप से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करता है।
- CCUS प्रौद्योगिकियाँ विद्युत संयंत्रों और औद्योगिक ईकाइयों से निकलने वाले कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करती हैं तथा उन्हें वातावरण में निष्काषित होने से रोकती हैं।
- सतत् परिवहन प्रौद्योगिकियाँ:
- जलवायु प्रौद्योगिकियाँ इलेक्ट्रिक वाहनों, हाइड्रोजन ईंधन बैटरियों और उन्नत जैव ईंधन जैसे कम कार्बन उत्सर्जन वाले परिवहन संबंधी समाधानों के विकास एवं उन्हें अपनाने को प्रोत्साहित करती हैं।
- ये प्रौद्योगिकियाँ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले परिवहन क्षेत्र से उत्सर्जन को कम करने में मदद करती हैं।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रौद्योगिकियाँ:
- यह संसाधनों के उपयोग को अनुकूलित करती हैं और पुन: उपयोग, मरम्मत, पुनर्नवीनीकरण किये जाने योग्य उत्पादों तथा प्रणालियों को डिज़ाइन करके अपशिष्ट को कम करती हैं।
मीथेन उत्सर्जन में कटौती के लिये पहल:
- भारतीय:
- 'हरित धारा': भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने एंटी-मिथेनोज़ेनिक फीड सप्लीमेंट 'हरित धारा' विकसित की है, जो मवेशी मीथेन उत्सर्जन को 17-20% तक कम कर सकती है और इसके परिणामस्वरूप उच्च दूध उत्पादन भी हो सकता है।
- भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम: विश्व संसाधन संस्थान (WRI) भारत (गैर-लाभकारी संगठन), भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) तथा ऊर्जा और संसाधन संस्थान (TERI) के नेतृत्त्व में भारत GHG कार्यक्रम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को मापने व प्रबंधित करने के लिये उद्योग-आधारित एक स्वैच्छिक ढाँचा है।
- यह कार्यक्रम उत्सर्जन को कम करने और भारत में अधिक लाभदायक, प्रतिस्पर्द्धी व टिकाऊ व्यवसायों एवं संगठनों को चलाने के लिये व्यापक माप तथा प्रबंधन रणनीतियों का निर्माण करता है।
- जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC): NAPCC को वर्ष 2008 में लॉन्च किया गया था जिसका उद्देश्य जनप्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों के बीच जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे एवं इसका मुकाबला करने के लिये जागरूकता पैदा करना है।
- भारत स्टेज-VI मानदंड: भारत स्टेज-IV (BS-IV) के बाद भारत स्टेज-VI (BS-VI) नवीनतम उत्सर्जन संबंधी मानदंड है।
- वैश्विक:
- मीथेन अलर्ट एंड रिस्पांस सिस्टम (MARS):
- MARS बड़ी मात्रा में मौजूदा और भविष्य के उपग्रहों से डेटा एकीकृत करेगा, जो दुनिया में कहीं भी मीथेन उत्सर्जन की घटनाओं का पता लगाने की क्षमता रखता है तथा संबंधित हितधारकों को इस पर कार्रवाई करने के लिये सूचनाएँ भेजता है।
- वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा:
- वर्ष 2021 में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन, CoP26 में लगभग 100 देश स्वैच्छिक प्रतिज्ञा में एक साथ आए थे, जिसे वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा के रूप में संदर्भित किया गया था, इसका उद्देश्य वर्ष 2020 के स्तर से वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में कम-से-कम 30% की कमी करना है।
- ग्लोबल मीथेन इनिशिएटिव:
- मीथेन अलर्ट एंड रिस्पांस सिस्टम (MARS):
UPSC यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन फसल/बायोमास अवशेषों को जलाने के कारण वातावरण में उत्सर्जित होते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
ई-चालान और कर चोरी पर अंकुश
प्रिलिम्स के लिये:ई-चालान, कर चोरी, GST, ऑटोमेटेड रिटर्न स्क्रूटनी मॉडल, ई-वे बिल, इनपुट टैक्स क्रेडिट मेन्स के लिये:ई-चालान की सीमा को कम करना, इसका महत्त्व और संबंधित चिंताएँ, कर चोरी |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने कर चोरी पर अंकुश लगाने और वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) व्यवस्था के तहत अनुपालन बढ़ाने के उद्देश्य से व्यवसाय-से-व्यवसाय (Business-to-Business- B2B) लेन-देन हेतु ई-चालान बनाने की सीमा को 10 करोड़ रुपए से घटाकर 5 करोड़ रुपए कर दिया है।
- सरकार ने केंद्रीय कर अधिकारियों हेतु बैकएंड एप्लीकेशन में GST रिटर्न के लिये ऑटोमेटेड रिटर्न स्क्रूटनी मॉड्यूल (ARSM) भी शुरू किया है।
ऑटोमेटेड रिटर्न स्क्रूटनी मॉड्यूल:
- ARSM केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवा कर स्वचालन (Automation of Central Excise and Service Tax- ACES- GST) बैकएंड एप्लीकेशन का एक हिस्सा है जो GST रिटर्न में जोखिमों एवं विसंगतियों की पहचान करने हेतु डेटा विश्लेषण का उपयोग करता है।
- यह कर अधिकारियों को केंद्र प्रशासित करदाताओं के GST रिटर्न की जाँच करने में मदद करता है, जिन्हें तंत्र द्वारा पहचाने गए जोखिमों के आधार पर चुना जाता है।
- किसी भी गैर-अनुपालन का पता चलने पर मॉड्यूल अलर्ट भी करता है।
- वित्तीय वर्ष 2019-20 हेतु GST रिटर्न की जाँच के साथ ऑटोमेटेड रिटर्न स्क्रूटनी मॉड्यूल पहले ही शुरू हो चुका है, जिसमें कर अधिकारियों के पास पहले से ही अपेक्षित डेटा है।
GST के तहत ई-चालान:
- परिचय:
- ई-चालान एक ऐसी प्रणाली है जहाँ GST पोर्टल पर आगे उपयोग हेतु B2B चालान और कुछ अन्य दस्तावेज़ों को वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (Goods and Service Tax Network- GSTN) द्वारा इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित किया जाता है।
- ई-चालान में एक आम ई-चालान पोर्टल पर पहले से ही उत्पन्न मानक चालान जमा करना, चालान विवरण के एक बार के इनपुट के साथ रिपोर्टिंग को स्वचालित करना शामिल है।
- चालान पंजीकरण पोर्टल (IRP) द्वारा प्रत्येक चालान पर एक पहचान संख्या जारी की जाती है, जो वास्तविक समय में चालान की जानकारी को GST पोर्टल और ई-वे बिल पोर्टल में स्थानांतरित करती है।
- ई-वे बिल एक अनुपालन प्रणाली है जिसके तहत वस्तुओं की आवाजाही शुरू करने वाली पार्टी माल की आवाजाही शुरू होने से पहले आवश्यक डेटा अपलोड करती है और GST पोर्टल पर ई-वे बिल तैयार करती है जिससे वस्तुओं की तेज़ आवाजाही की सुविधा प्राप्त होती है।
- इसके तहत रिटर्न दाखिल करते समय और ई-वे बिल बनाते समय मैनुअल डेटा प्रविष्टि की आवश्यकता नहीं होती है।
- उद्देश्य:
- GST परिषद ने सितंबर 2019 में अपनी 37वीं बैठक में ई-चालान के मानक को मंज़ूरी दी थी, जिसका प्राथमिक उद्देश्य पूरे GST पारिस्थितिकी तंत्र में अंतर-संचालनीयता को सक्षम करना था।
- महत्त्व:
- एक समान चालान प्रणाली के साथ कर अधिकारी रिटर्न संबंधी समग्र सूचना प्रदान करने और समाधान संबंधित मुद्दों में कमी लाने में सक्षम होते हैं।
- फर्जी चालान और इनपुट टैक्स क्रेडिट की धोखाधड़ी से जुड़े मामलों की एक बड़ी संख्या को देखते हुए GST अधिकारियों ने इस ई-चालान प्रणाली को लागू करने पर ज़ोर दिया है जिससे कर चोरी पर अंकुश लगाने और कर के रूप में धोखाधड़ी को कम करने में मदद मिलने की उम्मीद है। इसमें अधिकारियों के पास वास्तविक समय में डेटा तक पहुँच की भी सुविधा होगी।
ई-चालान की सीमा को कम करने के लाभ:
- ई-चालान की सीमा को कम करना आवश्यक है क्योंकि यह अधिक व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के लिये अनुपालन जनादेश का विस्तार करता है तथा GST राजस्व संग्रह को बढ़ावा देने में मदद करता है।
- इससे कर चोरी पर अंकुश लगाने, GST कर आधार को व्यापक बनाने और बेहतर अनुपालन के लिये कर अधिकारियों को अधिक डेटा प्रदान करने की भी उम्मीद है।
- ई-चालान अपनाने के लिये अधिक व्यवसायों की आवश्यकता का सरकार का उद्देश्य नकली चालानों की उत्पत्ति से जुड़ी बेमेल त्रुटियों और धोखाधड़ी गतिविधियों को कम करना है।
फैसले से जुड़े प्रसंग:
- ई-चालान की सीमा कम करने से व्यवसायों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों (SME) की चिंताएँ बढ़ गई हैं, क्योंकि उन्हें नई आवश्यकताओं को अपनाने और ई-चालान मानदंडों का पालन करने हेतु आवश्यक तकनीक में निवेश करने को लेकर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे उनकी अनुपालन लागत बढ़ सकती है और उनके नकदी प्रवाह पर बोझ पड़ सकता है।
- इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में करदाताओं द्वारा उत्पन्न ई-चालान के बढ़ते भार को संभालने के लिये GST नेटवर्क (GSTN) की क्षमता और तैयारी के संदर्भ में चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसका कारण तकनीकी खामियाँ हो सकती हैं और चालान बनाने में देरी हो सकती है, जो व्यवसायों के सुचारु कामकाज़ को प्रभावित कर सकता है।
- चालान में अधिक धोखाधड़ी B2C (बिज़नेस टू कंज़्यूमर) होती है क्योंकि इसमें कोई ITC (इनपुट टैक्स क्रेडिट) शामिल नहीं है। अभी तक ई-चालान B2C लेन-देन पर लागू नहीं है।
कर चोरी को रोकने के अन्य उपाय:
- भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018
- काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) एवं कर अधिरोपण अधिनियम, 2015
- धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002
आगे की राह
- सरकार छोटे और मध्यम उद्यमों को नई प्रणाली अपनाने में सहायता प्रदान कर सकती है, जिसमें व्यवसायों को नए नियमों का पालन करने में मदद के लिये प्रशिक्षण एवं संसाधन प्रदान करना शामिल है।
- इसके अतिरिक्त डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिये कदम उठाए जा सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि व्यवसाय वास्तविक समय में अपने डेटा को साझा करने में सहज महसूस करें।
- ई-चालान केवल B2B चालानों पर लागू होता है। इस प्रकार डिलीवरी चालान, आपूर्ति बिल, जॉब वर्क और अन्य समान लेन-देन के लिये एक अलग कार्यप्रणाली होनी चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से भारत में काले धन की उत्पत्ति का कौन-सा एक प्रभाव भारत सरकार के लिये चिंता का प्रमुख कारण रहा है? (a) अचल संपत्ति की खरीद और लग्जरी आवास में निवेश के लिये संसाधनों का गठजोड़ करना। उत्तर: (d) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम
प्रिलिम्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्य (SDG), खाद्य और कृषि संगठन, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद, वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम, लघु द्वीप विकासशील राज्य मेन्स के लिये:वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम |
चर्चा में क्यों?
8-12 मई, 2023 तक न्यूयॉर्क में आयोजित वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम के 18वें संस्करण (United Nations Forum on Forests- UNFF18) में सतत् वन प्रबंधन (Sustainable Forest Management- SFM), ऊर्जा और संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्दिष्ट सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDG) के बीच संबंधों पर चर्चा करने के लिये विश्व भर के प्रतिनिधि एकजुट हुए।
UNFF18 के प्रमुख बिंदु:
- उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में सतत् वन प्रबंधन (SFM):
- हालिया विकास पर विशेषज्ञों ने उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में SFM के अभ्यास के महत्त्व को रेखांकित किया है। वर्ष 2013 के बाद से बायो एनर्जी के उपयोग में बढ़ोतरी के कारण उष्णकटिबंधीय लकड़ी की सतत् उपलब्धता की मांग में वृद्धि हुई है, जिससे वनों पर दबाव बढ़ रहा है।
- विश्व भर में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की बढ़ती आवश्यकता के कारण जैव ऊर्जा के बढ़ते उपयोग ने अप्रत्यक्ष रूप से उष्णकटिबंधीय वनों पर दबाव बढ़ा दिया है। ईंधन स्रोत के रूप में लकड़ी के चिप्स और पेल्लेट्स जैसे बायोमास पर बायो एनर्जी की निर्भरता के परिणामस्वरूप इमारती लकड़ी की आवश्यकता बढ़ गई है। इससे सामान्यतः इन क्षेत्रों की स्थिरता, जैवविविधता और वन पारिस्थितिकी प्रणालियों को संभावित नुकसान संबंधी चिंता बढ़ गई है।
- सेलेक्टिव लॉगिंग अभ्यास और वनीकरण जैसी स्थायी प्रथाओं को लागू करके इन वनों के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और जीवन शक्ति की रक्षा की जा सकती है।
- हालिया विकास पर विशेषज्ञों ने उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में SFM के अभ्यास के महत्त्व को रेखांकित किया है। वर्ष 2013 के बाद से बायो एनर्जी के उपयोग में बढ़ोतरी के कारण उष्णकटिबंधीय लकड़ी की सतत् उपलब्धता की मांग में वृद्धि हुई है, जिससे वनों पर दबाव बढ़ रहा है।
- वन पारिस्थितिकी तंत्र और ऊर्जा:
- खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के वानिकी निदेशक ने नवीकरणीय ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये वन पारिस्थितिक तंत्र के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला।
- विश्व भर में पाँच अरब से अधिक लोग गैर-लकड़ी वन उत्पादों से लाभान्वित होते हैं, और वन विश्व की नवीकरणीय ऊर्जा की मांग के 55% को पूरा करते हैं।
- खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के वानिकी निदेशक ने नवीकरणीय ऊर्जा आवश्यकताओं के लिये वन पारिस्थितिक तंत्र के महत्त्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला।
- वन और जलवायु परिवर्तन शमन:
- उत्सर्जन गैप रिपोर्ट के निष्कर्ष वनों की विशाल जलवायु शमन क्षमता को रेखांकित करते हैं। कार्बन पृथक्करण/सीक्वेस्ट्रेशन (Carbon Sequestration) जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, वातावरण से पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और संग्रहीत करते हैं।
- वनों को संरक्षित और स्थायी रूप से प्रबंधित करके राष्ट्र इस प्राकृतिक क्षमता का लाभ उठाकर उत्सर्जन अंतर को पाटने तथा जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं।
- वनों में 5 गीगाटन उत्सर्जन को कम करने की क्षमता है।
- उत्सर्जन गैप रिपोर्ट के निष्कर्ष वनों की विशाल जलवायु शमन क्षमता को रेखांकित करते हैं। कार्बन पृथक्करण/सीक्वेस्ट्रेशन (Carbon Sequestration) जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से वन कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं, वातावरण से पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित और संग्रहीत करते हैं।
- चुनौतियाँ और देशों का परिदृश्य:
- भारत: भारत ने दीर्घकालिक SFM पर UNFF में देश के नेतृत्त्व वाली पहल का मामला पेश किया तथा वनाग्नि और वर्तमान वन प्रमाणन योजनाओं की सीमाओं के बारे में चिंता व्यक्त की।
- सऊदी अरब: सऊदी अरब ने वनाग्नि और शहरी विस्तार के लिये वन क्षेत्रों पर अतिक्रमण रोकने के महत्त्व पर प्रकाश डाला।
- सूरीनाम: सबसे अधिक वनाच्छादित और कार्बन-नकारात्मक देश होने का दावा करने वाले सूरीनाम ने अपने हरित आवरण और पर्यावरण नीतियों को प्रभावित करने वाले आर्थिक दबावों के अपने अनुभव साझा किये।
- देश वर्ष 2025 तक नवीकरणीय स्रोतों से अपनी शुद्ध ऊर्जा का 23% प्राप्त करने और वर्ष 2060 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- कांगो और डोमिनिकन गणराज्य: इन देशों ने वन संरक्षण उपायों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया और जलाऊ लकड़ी पर भारी निर्भरता को देखते हुए आजीविका में सुधार करते हुए प्राकृतिक वनों पर दबाव कम करने के लिये रणनीतियों का आह्वान किया।
- ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया ने उल्लेख किया कि कुछ प्रजातियाँ अंकुरण के लिये आग पर निर्भर करती हैं और उसने यांत्रिक ईंधन भार में कमी हेतु किये गए परीक्षणों पर जानकारी साझा की। देश ने लकड़ी के अवशेष बाज़ारों को वित्तीय रूप से व्यवहार्य बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
- अन्य दृष्टिकोण: झिमिन और सतकुरु जैसे देशों ने ब्रिकेट और छर्रों का उत्पादन करने हेतु कॉम्पैक्ट बाँस या चूरा के अवशेषों के साथ प्लास्टिक की छड़ियों को बदलने का सुझाव दिया, जो ऊर्जा उत्पादन के लिये स्थायी विकल्प प्रदान करता है
वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम:
- परिचय:
- UNFF एक अंतर-सरकारी नीति मंच है, यह "सभी प्रकार के वनों के प्रबंधन, संरक्षण और सतत् विकास को बढ़ावा देता है तथा इसके लिये दीर्घकालिक राजनीतिक प्रतिबद्धता को मज़बूत करता है।
- UNFF की स्थापना वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा की गई थी। फोरम की सार्वभौमिक सदस्यता है और यह संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राज्यों से बना है।
- प्रमुख संबंधित घटनाएँ:
- वर्ष 1992- पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन ने “वन सिद्धांतों के साथ एजेंडा 21 को अपनाया”।
- वर्ष 1995/1997- वर्ष 1995 से 2000 तक वन सिद्धांतों को लागू करने के लिये वनों पर अंतर-सरकारी पैनल (1995) और वनों पर अंतर-सरकारी फोरम (1997) की स्थापना की गई।
- वर्ष 2000- UNFF को संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद के एक कार्यात्मक आयोग के रूप में स्थापित किया गया।
- वर्ष 2006- UNFF वनों पर चार वैश्विक उद्देश्यों पर सहमत हुआ।
- वनों पर चार वैश्विक उद्देश्य:
- स्थायी वन प्रबंधन (SFM) के माध्यम से विश्व भर में वन आवरण को हो रहे नुकसान को परिवर्तित करना।
- वन आधारित आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय लाभों को बढ़ाना।
- स्थायी रूप से प्रबंधित वन क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि।
- SFM के लिये आधिकारिक विकास सहायता में गिरावट की स्थिति में बदलाव लाना।
- SFM के कार्यान्वयन के लिये वित्तीय संसाधनों में वृद्धि।
- वनों पर चार वैश्विक उद्देश्य:
- वर्ष 2007- UNFF ने सभी प्रकार के वनों (वन साधन) पर संयुक्त राष्ट्र के गैर-कानूनी रूप से बाध्यकारी साधन को अपनाया।
- वर्ष 2009- UNFF ने स्थायी वन प्रबंधन के लिये वित्तपोषण पर निर्णय लिया, जो वन वित्तपोषण में 20 साल की गिरावट की स्थिति को बदलने में देशों की सहायता करने के लिये एक सुविधाजनक प्रक्रिया के निर्माण की मांग करता है।
- सुविधा प्रक्रिया का प्रारंभिक ध्यान छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) और कम वन आवरण वाले देशों (LFCC) पर केंद्रित है।
- वर्ष 2011- अंतर्राष्ट्रीय वन वर्ष, "लोगों के लिये वन"।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. FAO पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage System- GIAHS) का दर्जा प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (वर्ष 2021) (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) प्रश्न. भारत के एक विशेष राज्य में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं: (वर्ष 2012)
निम्नलिखित में से किस राज्य में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हैं? (a) अरुणाचल प्रदेश उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में आधुनिक कानून की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संवैधानीकरण है। सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2022) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय राजव्यवस्था
डिफॉल्ट जमानत
प्रिलिम्स के लिये:डिफॉल्ट जमानत, सर्वोच्च न्यायालय, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167(2), अनुच्छेद 21, अनुच्छेद 22, मौलिक अधिकार मेन्स के लिये:डिफॉल्ट जमानत और संबंधित प्रावधान, जमानत के प्रकार |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालतों को आपराधिक मामलों में डिफॉल्ट जमानत याचिका पर उस स्थिति में विचार करने का निर्देश दिया है, जब चार्जशीट 60 या 90 दिनों के अंदर दायर नहीं की जाती है, जिससे उन्हें रितु छाबड़िया बनाम भारत संघ (26 अप्रैल, 2023) मामले में अपने निर्णय पर विश्वास कर स्वतंत्र रूप से डिफॉल्ट जमानत देने की अनुमति मिलती है।
- रितु छाबड़िया के निर्णय को वापस लेने की मांग वाली प्रवर्तन निदेशालय (ED) की अपील पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने ये टिप्पणियाँ कीं।
- रितु छाबड़िया के निर्णय में कहा गया है कि "दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत का अधिकार” केवल एक वैधानिक अधिकार नहीं है, बल्कि एक मौलिक अधिकार है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में आरोपी व्यक्तियों की रक्षा के लिये "राज्य की अबाध और मनमानी शक्ति" में मिलता है"।
डिफॉल्ट जमानत:
- परिचय:
- यह जमानत का अधिकार है जो पुलिस द्वारा न्यायिक हिरासत में लिये गए किसी व्यक्ति के संबंध में एक निर्दिष्ट अवधि के अंदर जाँच पूरी करने में विफल होने पर प्राप्त होता है।
- इसे वैधानिक जमानत के रूप में भी जाना जाता है।
- यह दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 167 (2) में निहित है।
- यह जमानत का अधिकार है जो पुलिस द्वारा न्यायिक हिरासत में लिये गए किसी व्यक्ति के संबंध में एक निर्दिष्ट अवधि के अंदर जाँच पूरी करने में विफल होने पर प्राप्त होता है।
- CrPC की धारा 167(2):
- यदि पुलिस एक निर्दिष्ट अवधि के अंदर जाँच पूरी करने में असमर्थ रहता है, तो न्यायिक हिरासत में व्यक्ति को जमानत मांगने का अधिकार है।
- जब पुलिस 24 घंटे के अंदर जाँच पूरी नहीं कर पाती है, तो वह संदिग्ध को एक मजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है, जो यह तय करता है कि संदिग्ध को पुलिस हिरासत में रखा जाना चाहिये या न्यायिक हिरासत में।
- CrPC की धारा 167 (2) के अनुसार, मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को 15 दिनों तक पुलिस हिरासत में रखने का आदेश दे सकता है। अधिक समय की आवश्यकता होने पर मजिस्ट्रेट आरोपी व्यक्ति को न्यायिक हिरासत में रखने का अधिकार दे सकता है, जिसका अर्थ है जेल। हालाँकि अभियुक्त को निम्न समय-सीमा से अधिक नहीं रखा जा सकता है:
- 90 दिन: अगर जाँच अधिकारी एक ऐसे अपराध की जाँच कर रहा है जो मृत्युदंड, आजीवन कारावास या कम-से-कम दस वर्ष के कारावास से दंडनीय है।
- 60 दिन: अगर जाँच अधिकारी किसी अन्य अपराध की जाँच कर रहा है।
- विशेष स्थितियाँ:
- कुछ विशेष कानून जैसे- नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, जाँच की समय अवधि अलग हो सकती है, जैसे 180 दिन।
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम 1967 में डिफॉल्ट सीमा केवल 90 दिनों की है, जिसे और 90 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
- यह विस्तार केवल लोक अभियोजक की एक रिपोर्ट पर दिया जा सकता है जिसमें जाँच में हुई प्रगति का संकेत दिया गया हो एवं आरोपी को निरंतर हिरासत में रखने के कारण बताए गए हों।
- इन प्रावधानों से पता चलता है कि समय का विस्तार स्वत: नहीं होता है बल्कि इसके लिये न्यायिक आदेश की आवश्यकता होती है।
- यह विस्तार केवल लोक अभियोजक की एक रिपोर्ट पर दिया जा सकता है जिसमें जाँच में हुई प्रगति का संकेत दिया गया हो एवं आरोपी को निरंतर हिरासत में रखने के कारण बताए गए हों।
डिफॉल्ट बेल से संबंधित पूर्व निर्णय:
- CBI बनाम अनुपम जे. कुलकर्णी (1992):
- सर्वोच्च न्यायालय फैसला सुनाया कि एक मजिस्ट्रेट किसी आरोपी की गिरफ्तारी के बाद 15 दिनों तक पुलिस हिरासत को अधिकृत कर सकता है। इस अवधि के बाद किसी भी अतिरिक्त हिरासत को न्यायिक हिरासत में होना चाहिये, जब तक कि वही अभियुक्त किसी विशिष्ट घटना या लेन-देन से उत्पन्न नए मामले में शामिल न हो। ऐसे मामलों में मजिस्ट्रेट एक बार फिर पुलिस हिरासत को अधिकृत करने पर विचार कर सकता है।
- उदय मोहनलाल आचार्य बनाम महाराष्ट्र राज्य (2001):
- सर्वोच्च न्यायालय ने संजय दत्त बनाम राज्य के आधार पर कहा कि अभियुक्त द्वारा डिफॉल्ट जमानत के अपने अधिकार का उपयोग तब माना जाएगा जब उसने इसके लिये आवेदन दायर किया हो, न कि तब जब वह डिफॉल्ट जमानत पर रिहा हुआ हो है।
- यदि अभियुक्त के पक्ष में डिफॉल्ट जमानत का आदेश पारित किया जाता है, लेकिन वह जमानत देने में विफल रहता है और इस बीच आरोप पत्र दायर कर दिया जाता है तो डिफॉल्ट जमानत का अधिकार समाप्त हो जाएगा।
भारत में जमानत के अन्य प्रकार:
- नियमित जमानत: यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा दिया गया एक निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति को रिहा करने हेतु उपलब्ध है। ऐसी जमानत के लिये व्यक्ति CrPC की धारा 437 तथा 439 के तहत आवेदन कर सकता है।
- अंतरिम जमानत: न्यायालय द्वारा अस्थायी और अल्प अवधि हेतु जमानत दी जाती है, यह जमानत तब तक दी जा सकती है जब तक कि नियमित या अग्रिम जमानत हेतु आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित नहीं होता है।
- अग्रिम जमानत या पूर्व-गिरफ्तारी जमानत: यह एक कानूनी प्रावधान है जो आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार होने से पहले जमानत हेतु आवेदन करने की अनुमति देता है। भारत में पूर्व-गिरफ्तारी जमानत का प्रावधान दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 438 में किया गया है। इसे केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा दिया जाता है।
- इस प्रकार की जमानत के लिये कोई व्यक्ति CrPC की धारा 438 के तहत एक आवेदन दायर कर सकता है। यह केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।
गिरफ्तारी से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 22 गिरफ्तार अथवा हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान करता है। नज़रबंदी के प्रकार हैं- दंडात्मक और निवारक।
- दंडात्मक निरोध के तहत किसी व्यक्ति द्वारा किये गए अपराध हेतु उसे न्यायालय में जाँच के बाद दंडित किया जाता है।
- दूसरी ओर, निवारक निरोध का अर्थ किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे और अदालत द्वारा दोषसिद्धि के हिरासत में लेने से है।
- अनुच्छेद 22 के दो भाग हैं- पहला भाग साधारण कानून के मामलों से संबंधित है और दूसरा भाग निवारक निरोध कानून के मामलों से संबंधित है।
दंडात्मक निरोध के तहत दिये गए अधिकार |
निवारक निरोध के तहत दिये गए अधिकार |
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