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पेपर 3


जैव विविधता और पर्यावरण

ओज़ोन क्षरण

  • 22 Jul 2019
  • 7 min read

संदर्भ

  • कुछ मानवीय क्रियाकलापों के कारण ओज़ोन परत को क्षति पहुँच रही है। ओज़ोन परत में छिद्रों का निर्माण, पराबैंगनी विकिरण को आसानी से पृथ्वी के वायुमंडल में आने का मार्ग प्रदान कर देता है।
  • पराबैंगनी विकिरण मनुष्य, जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिये अत्यंत हानिकारक है। इसके अलावा यह पेड़-पौधों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचाती है।
  • जब नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन सूर्यताप के साथ प्रतिक्रिया करते हैं तो ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण होता है।
  • वाहनों और फैक्टरियों से निकलने वाली कार्बन मोनोऑक्साइड व अन्य गैसों की रासायनिक क्रिया भी ओज़ोन प्रदूषक कणों का निर्माण करती है।
  • ओज़ोन परत में हो रहे क्षरण के लिये क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस प्रमुख रूप से उत्तरदायी है। इसके अलावा हैलोजन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड आदि रासायनिक पदार्थ भी ओज़ोन को नष्ट करने में योगदान दे रहे हैं।
  • क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस का उपयोग हम मुख्यत: अपनी दैनिक सुख सुविधाओं के उपकरणों में करते हैं, जिनमें एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर, फोम, रंग, प्लास्टिक इत्यादि शामिल हैं।

ओज़ोन कैसे नष्ट होती है?

  • बाह्य वायुमंडल की पराबैंगनी किरणें CFC से क्लोरीन परमाणुओं को पृथक कर देती हैं। मुक्त क्लोरीन परमाणु ओज़ोन के अणुओं पर आक्रमण कर इसे तोड़ देते है। इसके ऑक्सीजन अणु तथा क्लोरीन मोनोऑक्साइड का निर्माण करते है।
  • वायुमंडल का एक मुक्त ऑक्सीजन परमाणु क्लोरीन मोनोऑक्साइड पर आक्रमण करता है तथा एक मुक्त क्लोरीन परमाणु और एक ऑक्सीजन अणु का निर्माण करता है।
  • क्लोरीन इस क्रिया को 100 वर्षों तक दोहराने के लिये मुक्त है।

क्या है क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs)?

  • क्लोरोफ्लोरोकार्बन-11 (Chloroflurocarbon-11)CFC-11, जिसे ट्राइक्लोरोफ्लोरोमीथेन के रूप में भी जाना जाता है, कई क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) रसायनों में से एक है, जिन्हें 1930 के दशक के दौरान शुरू में शीतलक के रूप में विकसित किया गया था। CFCs समतापमंडलीय ओज़ोन क्षरण हेतु ज़िम्मेदार प्रमुख पदार्थ है।
  • जब वायुमंडल में CFC के अणु टूट जाते हैं, तो वे क्लोरीन परमाणुओं को छोड़ते हैं जो ओज़ोन परत (जो हमें पराबैंगनी किरणों से बचाती है) को तेजी से नष्ट करने में सक्षम होते हैं।
  • एक टन CFC-11 लगभग 5,000 टन कार्बनडाइ ऑक्साइड के बराबर होता है, जिससे न केवल ओज़ोन परत का ह्रास हुआ है, बल्कि पृथ्वी के समग्र तापमान में भी वृद्धि हुई है।
  • ये क्लोरिन, फ्लोरिन एवं कार्बन से बने होते हैं। इसका व्यापारिक नाम फ्रेऑन (Freon) है।
  • ये क्षोभमंडल में मानव द्वारा मुक्त किये जाते है एवं यादृच्छिक (Random) तरीके से विसरण द्वारा ऊपर की ओर चले जाते हैं।
  • यहाँ पर ये 65 से 110 साल तक ओज़ोन अणुओं का क्षरण करते रहते हैं। चूँकि ये उष्मीय रूप से स्थिर होते हैं, अत: ये क्षोभमंडल में उपस्थित रह पाते हैं। परंतु समतापमंडल में पराबैंगनी विकिरण द्वारा ये नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार मुक्त क्लोरीन परमाणु ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाते हैं। इसे ओज़ोन क्षरण कहते हैं।
  • इनका प्रयोग रेफ्रीजरेटर एवं वातानुकूलन युक्तियो में प्रशीतकों के रूप में, आग बुझाने वाले कारकों के रूप में, फोमिंग एजेंट, प्रणोदक इत्यादि के रूप में किया जाता है।

ओज़ोन प्रदूषण का प्रभाव:

  • त्वचा कैंसर की संभावना।
  • मुनष्यों और पशुओं की DNA संरचना में बदलाव तथा मनुष्यों की प्रतिरोधक क्षमता में कमी।
  • मोतियाबिंद और आँंखों की बीमारी तथा संक्रामक रोगों में वृद्धि।
  • श्वास रोग, हृदय रोग, ब्रोंकाइटिस और अस्थमा पीड़ितों के लिये बेहद खतरनाक।
  • पेड़-पौधों के प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया पर नकारात्मक असर।
  • सूक्ष्म जलीय पौधों के विकास की गति धीमी होने से स्थलीय खाद्य-शृंखला प्रभावित।
  • मक्का, चावल, गेहूँ, मटर आदि फसलों के उत्पादन में कमी।

वियना सम्मेलन (Vienna Convention)

  • ओज़ोन क्षरण के मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते हेतु अंतर-सरकारी वार्ता वर्ष 1981 में प्रारंभ हुई। मार्च, 1985 में ओज़ोन परत के संरक्षण के लिये वियना में एक विश्वस्तरीय सम्मेलन हुआ, जिसमें ओज़ोन संरक्षण से संबंधित अनुसंधान पर अंतर-सरकारी सहयोग, ओज़ोन परत का सुव्यवस्थित तरीके से निरीक्षण, क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैसों की निगरानी और सूचनाओं के आदान-प्रदान जैसे मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा की गई।
  • इस सम्मेलन में मानव स्वास्थ्य और ओज़ोन परत में परिवर्तन करने वाली मानवीय गतिविधियों की रोकथाम करने के लिये प्रभावी उपाय अपनाने पर सदस्य देशों ने प्रतिबद्धता व्यक्त की।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (Montreal Protocol)

  • ओज़ोन परत को नुकसान पहुँचाने वाले विभिन्न पदार्थों के उत्पादन तथा उपभोग पर नियंत्रण के उद्देश्य के साथ विश्व के कई देशों ने 16 सितंबर, 1987 को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये थे। जिसे आज विश्व का सबसे सफल प्रोटोकॉल माना जाता है।
  • गौरतलब है कि इस प्रोटोकॉल पर विश्व के 197 पक्षकारों ने हस्ताक्षर किये हैं। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत तीन पैनल आते हैं-

1. वैज्ञानिक आकलन पैनल।

2. प्रौद्योगिकी और आर्थिक आकलन पैनल।

3. पर्यावरणीय प्रभाव आकलन पैनल।

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