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PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना
प्रिलिम्स के लिये:PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना, अक्षय ऊर्जा सेवा कंपनी (RESCO) मॉडल, यूटिलिटी लेड एसेट (ULA) मॉडल, नेट मीटरिंग, सोलर रूफटॉप सिस्टम, मॉडल सोलर विलेज, शहरी स्थानीय निकाय, पंचायती राज संस्थान, डक कर्व (Duck Curve) मेन्स के लिये:ऊर्जा सुरक्षा के लिये सौर ऊर्जा का महत्त्व, सौर ऊर्जा से जुड़ी चुनौतियाँ |
स्रोत: लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना के लिये केंद्रीय वित्तीय सहायता और भुगतान सुरक्षा तंत्र हेतु प्रारूप दिशानिर्देश जारी किये हैं।
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2024 में 1 करोड़ परिवारों को लाभान्वित करने के लिये 75,000 करोड़ रुपए की PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना को मंज़ूरी दी थी।
प्रारूप दिशानिर्देशों के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- मॉडल: प्रारूप दिशानिर्देश अक्षय ऊर्जा सेवा कंपनी (RESCO) मॉडल और रूफटॉप सोलर पैनल- 'PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना' के यूटिलिटी लेड एसेट (ULA) मॉडल के तहत जारी किये गए हैं।
- अक्षय ऊर्जा सेवा कंपनी (RESCO) मॉडल: RESCO उपभोक्ता की रूफटॉप सोलर पैनल का विकास और स्वामित्व कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये वैधता बनाए रखती है।
- RESCO आवश्यकतानुसार संयंत्र के रखरखाव के लिये आवश्यक सभी परिचालन व्यय भी करती है।
- ग्राहक उत्पादित बिजली के लिये RESCO को भुगतान करते हैं और अपने बिजली बिल पर नेट मीटरिंग का लाभ प्राप्त करते हैं।
- ग्रिड को उत्पादित बिजली की बिक्री करने के लिये RESCO और वितरण कंपनी (Discom) के बीच विद्युत क्रय समझौता (PPA) किया जा सकता है।
- उपयोगिता आधारित परिसंपत्ति (ULA) मॉडल: इस मॉडल में परियोजना के दौरान रूफटॉप इनस्टॉल्ड सोलर पैनल का स्वामित्व कम-से-कम पाँच वर्षों की परियोजना अवधि के लिये राज्य वितरण कंपनी डिस्कॉम (Discom) के पास रहता है, तदोपरांत स्वामित्व घर को अंतरित कर दिया जाता है।
- अक्षय ऊर्जा सेवा कंपनी (RESCO) मॉडल: RESCO उपभोक्ता की रूफटॉप सोलर पैनल का विकास और स्वामित्व कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये वैधता बनाए रखती है।
- केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) के लिये पात्रता:
- आवासीय भवनों की छतों, छज्जों, बालकनियों और ऊँचे अवसंरचना/ढाँचों पर स्थापित सौर पैनल, जो ग्रिड से जुड़े होते हैं।
- समूह नेट मीटरिंग और वर्चुअल नेट मीटरिंग जैसे मीटरिंग तंत्र के अंतर्गत स्थापना।
- अपवर्जन: जिन घरों में पहले से ही रूफटॉप सोलर पैनल स्थापित है, वे प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना के लिये RESCO और ULA मॉडल के अंतर्गत पात्र नहीं हैं।
- भुगतान सुरक्षा तंत्र: भुगतान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये 100 करोड़ रुपए का कोष स्थापित किया जाएगा, जिसका प्रबंधन एक राष्ट्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन एजेंसी द्वारा किया जाएगा।
- भुगतान सुरक्षा कोष के निर्माण से सौर परियोजनाओं के लिये वित्तीय स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना क्या है?
- परिचय: यह पर्याप्त वित्तीय सब्सिडी प्रदान करके और इनस्टॉलेशन में सुविधा सुनिश्चित करके सोलर रूफटॉप सिस्टम को अपनाने को बढ़ावा देने के लिये एक केंद्रीय योजना है।
- उद्देश्य: इसका लक्ष्य भारत में एक करोड़ परिवारों को मुफ्त विद्युत ऊर्जा उपलब्ध कराना है, जो रूफटॉप सोलर पैनल वाली बिजली इकाइयाँ स्थापित करना चाहते हैं।
- परिवारों को प्रत्येक महीने 300 यूनिट बिजली मुफ्त मिल सकेगी।
- कार्यान्वयन एजेंसियाँ: योजना का क्रियान्वयन दो स्तरों पर किया जाएगा।
- राष्ट्रीय स्तर: राष्ट्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन एजेंसी (NPIA) द्वारा प्रबंधित।
- राज्य स्तर: राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों (SIA) द्वारा प्रबंधित, जो संबंधित राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों की वितरण उपयोगिताएँ (डिस्कॉम) या विद्युत/ऊर्जा विभाग हैं।
- डिस्कॉम की भूमिका: SIA के रूप में डिस्कॉम रूफटॉप सौर ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा देने की दिशा में विभिन्न उपायों को सुविधाजनक बनाने के लिये उत्तरदायी हैं, जिसमें नेट मीटर की उपलब्धता सुनिश्चित करना, समय पर निरीक्षण करना एवं प्रतिष्ठानों को चालू करना शामिल है।
- सब्सिडी संरचना: यह योजना सोलर रूफटॉप सिस्टम इनस्टॉलेशन की लागत को कम करने के लिये सब्सिडी प्रदान करती है। सब्सिडी अधिकतम 3 किलोवाट क्षमता तक सीमित है।
- 2 किलोवाट क्षमता तक के सोलर सिस्टम के लिये 60% सब्सिडी।
- 2 किलोवाट से 3 किलोवाट क्षमता के बीच सोलर सिस्टम के लिये 40% सब्सिडी।
- योजना की अतिरिक्त विशेषताएँ:
- आदर्श सौर गाँव: प्रत्येक ज़िले में एक ‘मॉडल सोलर विलेज’ विकसित किया जाएगा, जो एक प्रदर्शन परियोजना के रूप में कार्य करेगा तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर सिस्टम अपनाने को बढ़ावा देगा।
- स्थानीय निकायों के लिये प्रोत्साहन: शहरी स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थान को अपने-अपने क्षेत्रों में छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
प्रधानमंत्री सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना के अपेक्षित लाभ क्या हैं?
- आर्थिक लाभ: परिवारों को बिजली बिल में कमी का लाभ मिलेगा और वे वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को अधिशेष विद्युत की बिक्री कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकेंगे।
- 3 किलोवाट की रूफटॉप सोलर सिस्टम प्रति माह 300 यूनिट से अधिक बिजली उत्पादन कर सकती है, जो योजना के उद्देश्यों के अनुसार मुफ्त बिजली उपलब्ध कराती है।
- सौर ऊर्जा उत्पादन: इस योजना से भवन की छतों पर सोलर सिस्टम इनस्टॉलेशन के माध्यम से 30 गीगावाट सौर क्षमता के लाभ की उम्मीद है, जिससे सोलर सिस्टम के 25 वर्ष के जीवनकाल में 1000 बिलियन यूनिट (BU) बिजली का उत्पादन होगा।
- कम कार्बन उत्सर्जन: इससे CO2 समतुल्य उत्सर्जन में 720 मिलियन टन की कमी आएगी, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
- रोजगार सृजन: इस योजना से विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, बिक्री, स्थापना, संचालन और रखरखाव (O&M) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 17 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होने का अनुमान है।
योजना के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ हैं?
- घरेलू अनिच्छा: एक महत्त्वपूर्ण चुनौती यह है कि कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा मुफ्त बिजली उपलब्ध कराए जाने के कारण घरेलू परिवार रूफटॉप सोलर सिस्टम इनस्टॉल करने में रूचि नहीं दिखाते हैं।
- सीमित स्थान उपयोग: सीमित छत स्थान, असमान भू-भाग, छाया, कम संपत्ति स्वामित्व तथा सौर पैनलों की चोरी या तोड़फोड़ जैसे जोखिमों के कारण 1-2 किलोवाट सेगमेंट को सुविधा मुहैया कराना जटिल है।
- डिस्कॉम पर परिचालन संबंधी दबाव: वर्तमान नेट मीटरिंग प्रणाली डिस्कॉम के लिये वित्तीय रूप से बोझिल है, जो पहले से ही भारी घाटे का सामना कर रही है।
- डिस्कॉम उन गृहस्वामियों के लिये अवैतनिक भंडारण सुविधाएँ बन जाती हैं, जो दिन में तो सौर ऊर्जा आधारित बिजली का उत्पादन करते हैं, लेकिन अन्य समय में विशेषकर रात के दौरान ग्रिड से ऊर्जा का उपभोग करते हैं।
- भंडारण एकीकरण: रूफटॉप सोलर सिस्टम इनस्टॉल करने वाली भंडारण प्रणालियों के लिये अधिदेश की कमी से ‘डक कर्व’ जैसी ग्रिड प्रबंधन समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- डक कर्व उन दिनों में ग्रिड से बिजली की मांग का ग्राफिकल प्रतिनिधित्व है, जब सौर ऊर्जा का उत्पादन अधिक होता है और ग्रिड में मांग कम होती है।
- गुणवत्ता आश्वासन चुनौतियाँ: ग्राहकों को प्रायः स्थापित प्रणालियों की गुणवत्ता का आकलन करने में कठिनाई होती है, जिससे वे निम्न स्तरीय सेवा और प्रदर्शन के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं।
सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिये सरकार की अन्य पहलें क्या हैं?
- एक सूर्य, एक विश्व, एक ग्रिड
- प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (SAUBHAGYA)
- राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन (NSGM) और स्मार्ट मीटर राष्ट्रीय कार्यक्रम
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)
- राष्ट्रीय सौर मिशन
- सौर पार्क योजना
- किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (PM-KUSUM)
आगे की राह
- लक्षित लाभार्थी तक पहुँच सुनिश्चित करना: स्थानीय निकायों के साथ साझेदारी करके उन आर्थिक रूप से वंचित परिवारों तक पहुँच बनाने के लिये रणनीति विकसित करने की आवश्यकता है, जो मासिक 200-300 यूनिट से कम बिजली की खपत करते हैं।
- सामुदायिक सौर परियोजनाएँ: सामुदायिक सौर परियोजनाओं के विकास को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये जो एक केंद्रीय संयंत्र से साझा सौर उत्पादन की अनुमति देती हैं, जिससे निम्न-आय वाले और ग्रामीण परिवार लाभान्वित होते हैं, जो रूफटॉप सोलर सिस्टम इनस्टॉल नहीं कर सकते हैं।
- नेट मीटरिंग में संशोधन: समय-उपयोग (TOU) मूल्य निर्धारण जैसे विकल्पों पर विचार किया जाना चाहिये, जहाँ उपभोक्ताओं से ऊर्जा उपभोग के समय के आधार पर शुल्क लिया जाता है, ताकि दिन के समय अतिरिक्त सौर ऊर्जा उत्पादन से ग्रिड पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सके।
- भंडारण एकीकरण की अनिवार्यता: ग्रिड स्थिरता को बढ़ाने और अधिशेष सौर ऊर्जा के उपयोग को अनुकूलित करने के लिये सभी रूफटॉप सोलर सिस्टम के लिये भंडारण एकीकरण को अनिवार्य करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में छोटे परिवारों के बीच सौर ऊर्जा उत्पादन को अपनाने से जुड़ी चुनौतियों और अवसरों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी लिमिटेड (IREDA) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |
न्यायिक नियुक्तियों में “प्रभावी परामर्श”
प्रिलिम्स के लिये:कॉलेजियम प्रणाली, भारत के मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय। मेन्स के लिये:कॉलेजियम व्यवस्था का विकास और इसकी आलोचना, सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अपने फैसले में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति में वरिष्ठता और प्रभावी परामर्श के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय कॉलेजियम से जुड़े एक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि न्यायिक नियुक्तियों में 'प्रभावी परामर्श का अभाव' न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है।
- न्यायालय ने प्रक्रियागत अनुपालन के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए पदोन्नति हेतु अनुशंसित दो न्यायिक अधिकारियों पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि और सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?
- पृष्ठभूमि:
- दिसंबर, 2022 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने दो ज़िला न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत करने की सिफारिश की थी।
- हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने इस पर पुनर्विचार का अनुरोध किया, जिससे आगामी समीक्षा की आवश्यकता हुई।
- बाद में उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने दो अन्य न्यायिक अधिकारियों की सिफारिश की। शुरू में सिफारिश किये गए न्यायाधीशों ने इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसमें यह तर्क दिया गया कि उनकी वरिष्ठता को अनदेखा किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- स्थिरता: सर्वोच्च न्यायालय ने द्वितीय और तृतीय न्यायाधीश मामलों को आधार बनाते हुए यह मूल्यांकन किया कि क्या उसके पास नियुक्ति संबंधी सिफारिशों की समीक्षा करने का क्षेत्राधिकार है।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि इसकी समीक्षा केवल इस बात पर केंद्रित थी कि क्या सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम के प्रस्ताव के बाद "प्रभावी परामर्श" उम्मीदवारों की "योग्यता" या "उपयुक्तता" का मूल्यांकन किये बिना हुआ था।
- उचित प्रक्रिया : सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिशों को अस्वीकार करते हुए इसके नामों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात की जाँच की कि क्या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के साथ "प्रभावी परामर्श" किया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह प्रस्ताव हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को संबोधित होने के बावजूद वे स्वतंत्र रूप से सिफारिशें नहीं कर सकते। निर्णय लेने में मुख्य न्यायाधीश और हाईकोर्ट के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के बीच "सामूहिक परामर्श" शामिल होना चाहिये।
- स्थिरता: सर्वोच्च न्यायालय ने द्वितीय और तृतीय न्यायाधीश मामलों को आधार बनाते हुए यह मूल्यांकन किया कि क्या उसके पास नियुक्ति संबंधी सिफारिशों की समीक्षा करने का क्षेत्राधिकार है।
- यह निर्णय न्यायिक नियुक्तियों में स्थापित प्रक्रियाओं के अनुपालन की आवश्यकता पर बल देता है तथा वरिष्ठता के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जिससे न्यायाधीशों की पदोन्नति में निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित होती है।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है?
- प्रक्रिया: उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम व्यवस्था पर आधारित प्रक्रिया का पालन करती है, जिसे विभिन्न ऐतिहासिक मामलों के माध्यम से स्थापित किया गया था, जैसे कि द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993) तथा तृतीय न्यायाधीश मामला (1998) में इसे और स्पष्ट किया गया था।
- कॉलेजियम व्यवस्था न्यायपालिका को सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की सिफारिश करने का अधिकार देती है, जिसमें सरकार की भूमिका सीमित होती है।
- तीसरे न्यायाधीश मामले (1998) के बाद, केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय ने प्रक्रिया ज्ञापन (MOP) के माध्यम से उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियों को औपचारिक रूप दिया।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति:
- उच्च न्यायालयों में नियुक्तियों के लिये कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- यह कॉलेजियम उच्च न्यायालय में नियुक्ति के लिये अनुशंसित व्यक्ति के बारे में राय बनाएगा, जिसमें संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीशों तथा उस उच्च न्यायालय के मामलों से परिचित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के विचारों को ध्यान में रखा जाएगा।
- उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये प्रक्रिया ज्ञापन (MOP):
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिश: उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, उस न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से नियुक्ति के लिये नामों की सिफारिश करता है।
- राज्य स्तरीय समीक्षा: सिफारिशें मुख्यमंत्री और राज्यपाल के पास उनके विचार जानने के लिये भेजी जाती हैं, हालाँकि उनके पास सिफारिश को अस्वीकार करने का अधिकार नहीं है।
- केन्द्र सरकार की प्रक्रिया: राज्यपाल सिफारिशों को केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री के पास भेजते हैं, जो पृष्ठभूमि की जाँच करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम समीक्षा: इसके बाद सिफारिशें मुख्य न्यायाधीश को भेजी जाती हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम से परामर्श करते हैं। यदि इसके लिये स्वीकृति मिल जाती है, तो नाम अंतिम स्वीकृति के लिये राष्ट्रपति के पास भेजे जाते हैं।
- सरकार की भूमिका नियुक्तियों में देरी करने या चिंता जताने तक सीमित है, लेकिन वह कॉलेजियम की सिफारिशों को अस्विकार नहीं कर सकती।
न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम व्यवस्था क्या है?
- परिचय: यह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की व्यवस्था है, जो संसद के अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा नहीं बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
- कॉलेजियम व्यवस्था का विकास:
- प्रथम न्यायाधीश मामला (1981): इसे एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ (1981) के नाम से भी जाना जाता है।
- इसमें कहा गया कि न्यायिक नियुक्तियों और स्थानांतरणों पर CJI की सिफारिशों को “तर्कपूर्ण (मज़बूत) कारणों” के आधार पर खारिज किया जा सकता है।
- इस निर्णय से अगले 12 वर्षों तक न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका को न्यायपालिका पर प्राथमिकता मिल गयी।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993): सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1993) में सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम व्यवस्था की शुरुआत की, जिसमें कहा गया कि "परामर्श" का सही अर्थ "सहमति" है।
- इस निर्णय ने सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम की सिफारिशों को केंद्र सरकार के लिये बाध्यकारी बना दिया और न्यायपालिका को उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण का अधिकार प्रदान किया।
- इसमें यह भी कहा गया कि यह मुख्य न्यायाधीश की व्यक्तिगत राय नहीं है, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से बनाई गई संस्थागत राय है।
- तृतीय न्यायाधीश मामला (1998): राष्ट्रपति के संदर्भ (अनुच्छेद 143) पर सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम को 5 सदस्यीय निकाय में विस्तारित किया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश और उनके 4 वरिष्ठतम सहयोगी शामिल थे।
- इसमें सिफारिश को चुनौती देने के लिये दो सीमित आधार भी बताए गए हैं।
- प्रासंगिक व्यक्तियों या संस्थाओं के साथ "प्रभावी परामर्श" का अभाव।
- संविधान के अनुच्छेद 217 (उच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 124 (सर्वोच्च न्यायालय) में निर्दिष्ट योग्यताओं के आधार पर उम्मीदवार की अयोग्यता।
- कॉलेजियम व्यवस्था के प्रमुख:
- सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्व CJI (भारत के मुख्य न्यायाधीश) करते हैं और इसमें न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस उच्च न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
- उच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिये अनुशंसित नाम मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा अनुमोदन के बाद ही सरकार के समक्ष पहुँचते हैं।
- उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति केवल कॉलेजियम व्यवस्था के माध्यम से की जाती है और कॉलेजियम द्वारा नाम तय किये जाने के बाद ही उसमें सरकार की भूमिका होती है।
नियुक्ति |
परामर्श |
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति |
सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश |
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति |
2 सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश |
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का स्थानांतरण |
दोनों उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के साथ सर्वोच्च न्यायालय के 4 वरिष्ठतम न्यायाधीश। |
कॉलेजियम व्यवस्था के दोष क्या हैं?
- पारदर्शिता का अभाव: इस व्यवस्था की आलोचना इसकी अपारदर्शिता के कारण की जाती है तथा नियुक्ति प्रक्रिया के बारे में जनता की जानकारी सीमित होती है।
- भाई-भतीजावाद: ऐसी चिंता है कि न्यायपालिका के भीतर व्यक्तिगत सम्पर्क और संबंध (अंकल जज सिंड्रोम) नियुक्तियों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे संभावित रूप से पक्षपात हो सकता है।
- अकुशलता: न्यायिक नियुक्तियों के लिये स्थायी आयोग की अनुपस्थिति रिक्तियों को भरने में देरी और अकुशलता का कारण बन सकती है।
निष्कर्ष
भारत में न्यायिक नियुक्तियों को लेकर चल रही चर्चा पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता बढ़ाने के लिये कॉलेजियम व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करती है। राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को संशोधित करने या तुलनीय सुधारों को अपनाने जैसे उपायों को लागू करने से इन चिंताओं को प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है तथा न्यायपालिका के संचालन के समग्र सुधार में योगदान दिया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. भारत में उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।(2017) |
तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन
प्रिलिम्स के लिये:तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत पाइपलाइन, प्राकृतिक गैस, एशियाई विकास बैंक, कोयला, नवीकरणीय ऊर्जा, शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य, ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) पाइपलाइन, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा मेन्स के लिये:क्षेत्रीय सहयोग और विकास, मध्य एशिया के विकास में भारत की भूमिका, एशियाई विकास बैंक और बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
अफगानिस्तान लंबे समय से प्रतीक्षित तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन पर कार्य शुरू करने के लिये तैयार है, जो 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की एक ऐतिहासिक परियोजना है और क्षेत्रीय ऊर्जा संपर्क को बढ़ाने एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने को प्रतिबद्ध है।
- यह घटनाक्रम मुख्यतः अफगानिस्तान में सुरक्षा चिंताओं के कारण वर्षों के विलंब के बाद संभव हुआ है।
तापी पाइपलाइन क्या है?
- तापी पाइपलाइन के संदर्भ में: TAPI पाइपलाइन एक प्रमुख बुनियादी अवसंरचना परियोजना है जिसे तुर्कमेनिस्तान के गल्किनिश गैस क्षेत्र से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के माध्यम से प्राकृतिक गैस के परिवहन के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- यह पाइपलाइन लगभग 1,814 किलोमीटर लंबी होगी और इससे प्रतिवर्ष लगभग 33 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) प्राकृतिक गैस मिलने की उम्मीद है।
- अपनी 30 वर्ष की परिचालन अवधि के दौरान यह अफगानिस्तान (5%), पाकिस्तान (47.5%) और भारत (47.5%) को गैस की आपूर्ति करेगी।
- क्षेत्रीय सहयोग और स्थिरता को बढ़ावा देने की क्षमता के कारण इस पाइपलाइन को 'Peace Pipeline’ अर्थात् ‘शांति पाइपलाइन' के नाम से भी जाना जाता है।
- इस परियोजना की शुरुआत 1990 के दशक में हुई थी, जिसमें वर्ष 2003 में एशियाई विकास बैंक (ADB) के सहयोग से महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई थी। भारत वर्ष 2008 में इस परियोजना में शामिल हुआ, जो इसके विकास में एक प्रमुख उपलब्धि सिद्ध हुई।
- TAPI पाइपलाइन कंपनी लिमिटेड (TPCL) इस पाइपलाइन के निर्माण और संचालन के लिये उत्तरदायी है। यह कंपनी तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत का संयुक्त उद्यम है, जिनमें से प्रत्येक की इस परियोजना में हिस्सेदारी है।
महत्त्व:
- पर्यावरणीय प्रभाव: यह पाइपलाइन कोयले के लिये एक महत्त्वपूर्ण विकल्प प्रदान करती है, जो कोयला आधारित ऊर्जा उत्पादन की तुलना में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करती है।
- भारत के लिये, जो कोयले पर बहुत अधिक निर्भर है, TAPI स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण को सुगम बना सकती है तथा इसके महत्त्वाकांक्षी उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्यों (नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य) को पूरा करने में सहायता कर सकती है।
- TAPI पाइपलाइन स्वच्छ ऊर्जा विकल्प प्रदान करके दिल्ली, मुंबई, कराची और इस्लामाबाद जैसे प्रमुख शहरों में वायु प्रदूषण की समस्या को कम करने में सहायता कर सकती है।
- आर्थिक लाभ: ऊर्जा आपूर्ति के अतिरिक्त यह पाइपलाइन पारगमन/ट्रांज़िट शुल्क और रोज़गार सृजन के माध्यम से अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आर्थिक विकास के अवसर प्रदान कर सकती है। यह इन देशों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश को भी बढ़ावा दे सकती है।
- सामरिक प्रभाव: मध्य एशिया में प्रभाव के लिये व्यापक भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा के लिये TAPI एक महत्त्वपूर्ण अवयव है। अमेरिका इस पाइपलाइन को ईरान-पाकिस्तान-भारत (IPI) पाइपलाइन के लिये एक रणनीतिक प्रतिद्वंदी के रूप में देखता है, जिसे ईरान और रूस का समर्थन प्राप्त है।
- तुर्कमेनिस्तान के लिये, TAPI अपने निर्यात बाज़ारों में विविधता लाने तथा चीन व रूस के लिये मौजूदा मार्गों पर निर्भरता कम करने का एक अवसर प्रस्तुत करती है।
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) में चीन का निवेश इस क्षेत्र में ऊर्जा अवसंरचना परियोजनाओं की प्रतिस्पर्द्धी प्रकृति को उजागर करता है। TAPI चीनी प्रभाव के प्रतिकार के रूप में काम कर सकती है, विशेषकर पाकिस्तान में।
- यह पाइपलाइन मध्य और दक्षिण एशियाई देशों के बीच सहयोग को बढ़ाती है तथा ऊर्जा, संचार एवं परिवहन में सहयोग को बढ़ावा देती है।
- भारत के लिये यह पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान को एक महत्त्वपूर्ण ऊर्जा साझेदार के रूप में स्थापित करती है, जिससे मध्य एशिया के साथ भारत का संपर्क बढ़ेगा। यह क्षेत्रीय संपर्क और ऊर्जा सुरक्षा में सुधार की भारत की व्यापक रणनीति के अनुरूप है।
TAPI पाइपलाइन से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- सुरक्षा चिंताएँ: पाइपलाइन का अधिकतर हिस्सा अफगानिस्तान से होकर गुज़रेगा, जो राजनीतिक अस्थिरता और मानवीय संकट जैसी चुनौतियों के लिये जाना जाता है। परियोजना का सुचारू कार्यान्वयन सुनिश्चित करना एक पुनरावर्ती मुद्दा रहा है।
- वित्तपोषण और प्रशासन: पर्याप्त वित्तपोषण प्राप्त करना एक बड़ी बाधा बनी हुई है। एशियाई विकास कोष से एक छोटा सा अंश प्राप्त होने की उम्मीद है, जबकि शेष राशि निजी निवेशकों से प्राप्त की जाएगी।
- इसके अतिरिक्त पाइपलाइन का प्रशासन चार अलग-अलग पाइपलाइन कंपनियों की साझेदारी (प्रत्येक भागीदार देश के लिये एक) के कारण जटिल बन गया है।
- निवेश का माहौल: तुर्कमेनिस्तान की बंद अर्थव्यवस्था और वैश्विक बाज़ार में सीमित एकीकरण निवेश को आकर्षित करने में महत्त्वपूर्ण बाधाएँ उत्पन्न करते हैं। भ्रष्टाचार एवं शासन संबंधी मुद्दे निवेश परिदृश्य को और भी जटिल बनाते हैं।
- पाकिस्तान के साथ भारत के विवाद: पाकिस्तान के साथ भारत के अपने विवाद TAPI पाइपलाइन के प्रति उसकी दीर्घकालिक प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करते हैं। दोनों देशों के बीच राजनीतिक तनाव परियोजना के सहयोग और सुचारू संचालन में बाधा डाल सकता है।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: हालाँकि प्राकृतिक गैस कोयले की तुलना में अधिक स्वच्छ है (तुलनात्मक रूप से संयंत्र में प्रयुक्त कोयले की तुलना में प्राकृतिक गैस 50 से 60% कम CO2 उत्सर्जित करती है), फिर भी इसमें पर्यावरणीय समस्याएँ हैं।
- प्राकृतिक गैस के निष्कर्षण और परिवहन में जल एवं मृदा प्रदूषण तथा फ्रैकिंग से भूकंप की संभावना जैसे जोखिम शामिल हैं।
भारत की अन्य द्विपक्षीय/बहुपक्षीय ऊर्जा अवसंरचना परियोजनाएँ
- भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन
- मोतिहारी-अमलेखगंज पाइपलाइन (भारत-नेपाल)
- बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC)
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC)
भारत मध्य एशिया में अपना प्रभाव किस प्रकार बढ़ा रहा है?
- व्यापार मार्गों की सुरक्षा: मध्य एशिया की रणनीतिक स्थिति इसे वैश्विक शक्तियों के लिये केंद्र बिंदु बनाती है। भारत की भागीदारी का उद्देश्य अपने क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ाना और महत्त्वपूर्ण व्यापार मार्गों की सुरक्षा करना है।
- इस क्षेत्र के संसाधन भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण हैं तथा मध्य एशियाई देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करना इसके आर्थिक हितों और दीर्घकालिक विकास रणनीतियों के अनुरूप हैं।
- आर्थिक उपस्थिति में वृद्धि: ईरान के साथ 10-वर्षीय चाबहार बंदरगाह समझौता भारत को पारंपरिक समुद्री अवरोधों से बचने में सक्षम बनाता है, जिससे ईरान के माध्यम से दक्षिण काकेशस एवं मध्य एशिया तक व्यापार में सुविधा होगी।
- इस रणनीतिक कदम का उद्देश्य क्षेत्र में सैन्य दक्षता में सुधार लाना तथा आर्थिक संबंधों का विस्तार करना है।
- भारत आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ करने और यूरेशियाई बाज़ारों तक पहुँच बनाने के लिये यूरेशियाई आर्थिक संघ (EAEU) के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता कर रहा है।
- यह प्रयास क्षेत्रीय व्यापार नेटवर्क में अधिक गहराई से एकीकरण करने तथा EAEU सदस्य देशों के साथ आर्थिक अवसरों का लाभ उठाने की भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- कोविड-19, अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे वैश्विक संकटों ने भारत को अपने व्यापार मार्गों एवं रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये प्रेरित किया है।
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) का विकास और संभावित EAEU सदस्यता, व्यापार मार्गों में विविधता लाने तथा उन्हें सुरक्षित बनाने के भारत के प्रयासों के लिये केंद्रित हैं।
- कोविड-19, अफगानिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और रूस-यूक्रेन संघर्ष जैसे वैश्विक संकटों ने भारत को अपने व्यापार मार्गों एवं रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिये प्रेरित किया है।
- सैन्य और सुरक्षा पहल: भारत ताजिकिस्तान में सैन्य अड्डे (फरखोर एयर बेस और अयनी एयर बेस) बनाए हुए है और उज़्बेकिस्तान (सैन्य अभ्यास: दुस्तलिक) जैसे देशों के साथ नियमित रूप से संयुक्त अभ्यास करता है, जो इस क्षेत्र में इसके सामरिक हितों और रक्षा साझेदारी बनाने के प्रयासों को उजागर करता है।
- चुनौतियाँ और भू-राजनीतिक विचार: चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) परियोजना मध्य एशिया में अपनी व्यापक बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के साथ एक चुनौती पेश करती है, जो संभवतः भारत के निवेश को प्रभावित कर सकती है।
- मध्य एशियाई देशों के साथ चीन के बढ़ते व्यापारिक संबंध, इस क्षेत्र में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त को प्रभावित कर सकते हैं।
- पड़ोसी प्रतिद्वंद्वियों पाकिस्तान और चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों के कारण भारत के स्थलीय व्यापार मार्ग सीमित हो गए हैं, जिससे वैकल्पिक समुद्री मार्गों एवं क्षेत्रीय गठबंधनों पर निर्भरता आवश्यक हो गई है।
आगे की राह
- एशियाई विकास कोष के अलावा वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों जैसे: निजी क्षेत्र का निवेश, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान और सरकारी अनुदान का पता लगाने की आवश्यकता है।
- विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये कर छूट, सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन प्रदान किये जाने चाहिये। स्पष्ट एवं स्थिर विनियामक ढाँचे से भी निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
- रोज़गार सृजन करने, आर्थिक गतिविधि उत्पन्न करने और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं में विविधता लाने के लिये पाइपलाइन मार्ग पर औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
- आम मुद्दों को हल करने और पाइपलाइन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्रीय सुरक्षा सहयोग को सुदृढ़ किया जाना चाहिये। परियोजना की देखरेख के लिये एक केंद्रीय समन्वय निकाय की स्थापना करने की आवश्यकता है, जिससे सुव्यवस्थित निर्णय लेने और कुशल प्रबंधन सुनिश्चित हो सके।
- पाइपलाइन मार्ग पर स्थानीय समुदायों के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखना चाहिये ताकि उनका समर्थन प्राप्त किया जा सके और सुरक्षा जोखिम न्यूनतम हो सके।
- पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने और प्रदूषण को रोकने के लिये प्राकृतिक गैस निष्कर्षण एवं परिवहन के लिये सर्वोत्तम विधियों को लागू किया जाना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत (TAPI) पाइपलाइन के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। यह पाइपलाइन भारत की ऊर्जा सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव को किस प्रकार प्रभावित करती है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह विकसित करने का क्या महत्त्व है? (2017) (a) अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापार में अपार वृद्धि होगी। उत्तर: (C)
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भारत में परिवर्तित होते खाद्य उपभोग स्वरुप
प्रिलिम्स के लिये :प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM), न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) प्लेटफाॅर्म, राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन, कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), राष्ट्रीय बागवानी मिशन । मेन्स के लिये :भारत में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों में खाद्य उपभोग स्वरूप में परिवर्तन का सरकारी कल्याण नीतियों पर प्रभाव। |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा प्रकाशित एक कार्य-पत्र में कहा गया है कि वर्ष 1947 के बाद पहली बार भारत में खाद्य पर औसत घरेलू व्यय आधे से भी कम रह गया है।
- 'भारत के खाद्य उपभोग में परिवर्तन एवं नीतिगत निहितार्थ: घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2022-23 और 2011-12 का व्यापक विश्लेषण' शीर्षक वाले इस कार्य-पत्र में भारत के खाद्य उपभोग पैटर्न में हो रहे परिवर्तनों का विश्लेषण किया गया है।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM)
- यह एक गैर-संवैधानिक, गैर-वैधानिक, स्वतंत्र निकाय है, जिसका गठन भारत सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री को आर्थिक मुद्दों पर सलाह देने के लिये किया गया है।
- यह परिषद तटस्थ दृष्टिकोण से भारत सरकार के समक्ष प्रमुख आर्थिक मुद्दों को उजागर करने का कार्य करती है।
- यह मुद्रास्फीति, माइक्रोफाइनेंस और औद्योगिक उत्पादन जैसे आर्थिक मुद्दों पर प्रधानमंत्री को सलाह देती है।
- प्रशासनिक, संभार-तंत्र, योजना और बजटीय उद्देश्यों के लिये नीति आयोग EAC-PM के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
- आवधिक रिपोर्ट:
- वार्षिक आर्थिक परिदृश्य
- अर्थव्यवस्था की समीक्षा
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में भोजन पर कुल घरेलू व्यय का हिस्सा काफी स्तर तक कम हो गया है।
- यह पहली बार है कि आधुनिक भारत में औसत परिवार अपने कुल मासिक बजट का आधे से भी कम हिस्सा भोजन पर खर्च करता है।
- ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में अनाज पर व्यय का हिस्सा काफी कम हो गया है और यह कमी अत्यधिक गरीब परिवारों जो देश की जनसंख्या का 20% हिस्सा है, के बीच सबसे अधिक देखी गई है।
- अनाज पर खर्च में तीव्र गिरावट ने परिवारों को अपने आहार में विविधता लाने में सक्षम बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप दूध, फल, अंडे, मछली और माँस पर अधिक खर्च हुआ है।
- आहार विविधता में वृद्धि (विशेष रूप से सबसे गरीब 20% परिवारों के बीच) यह दर्शाती है कि बेहतर बुनियादी ढाँचे, परिवहन और भंडारण ने ताजे फल, अंडे, मछली, माँस एवं डेयरी को अधिक सुलभ व किफायती बना दिया है। यह पिछले दशक में देश में समावेशी विकास का एक सकारात्मक संकेत है।
- लौह और जस्ता जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का औसत दैनिक सेवन वर्ष 2011-12 से वर्ष 2022-23 तक कम हो गया है, विशेष रूप से अनाज से।
- हालाँकि, विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों तक बेहतर पहुँच के कारण, विशेष रूप से सबसे गरीब 20% लोगों के बीच आहार विविधता में सुधार देखा गया है।
- यह प्रवृत्ति संभवतः भारत सरकार की प्रभावी खाद्य सुरक्षा नीतियों को प्रतिबिंबित करती है, जो लाखों लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध कराती है, विशेष रूप से सबसे कमज़ोर आबादी को लक्ष्य करके।
परिवर्तित होते खाद्य उपभोग पैटर्न विभिन्न नीतियों के लिये क्या निहितार्थ रखते हैं?
- कृषि नीति और खाद्य सुरक्षा के लिये निहितार्थ: आहार में अनाज के स्थान पर फलों, डेयरी, अंडो, मछली और माँस को शामिल किया जा रहा है जो कृषि नीति में परिवर्तन की आवश्यकता को चिह्नित करता है जिसमें इन खाद्य पदार्थों के लिये समर्थन भी शामिल हो।
- यह परिवर्तन भविष्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसे मूल्य समर्थन तंत्र की आवश्यकता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है, जो मुख्य रूप से अनाजों पर केंद्रित होता है।
- कल्याणकारी नीतियों पर प्रभाव: प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) जैसे कल्याणकारी कार्यक्रम, जो मुफ्त खाद्यान्न प्रदान करते हैं, ने राजकोषीय प्रोत्साहन के रूप में कार्य किया है।
- अनाज की लागत कम करके, इन कार्यक्रमों ने परिवारों, विशेष रूप से निचले 50% लोगों को, विविध आहार पर अधिक खर्च करने की अनुमति दी है, जिससे आहार विविधता में सुधार हुआ है।
- पोषण एवं सूक्ष्मपोषक नीति: निष्कर्ष पोषण नीति में आहार विविधता को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल देते हैं।
- हालाँकि आयरन की मात्रा बढ़ाने के लिये अनाज का सेवन बढ़ाने से एनीमिया से निपटने में सीमित सफलता मिली है, लेकिन विविधतापूर्ण आहार पर ध्यान केंद्रित करना अधिक प्रभावी हो सकता है। इसमें बेहतर उपभोक्ता शिक्षा और विविध खाद्य पदार्थों तक बेहतर पहुँच शामिल है।
- लक्षित पोषण हस्तक्षेप: विभिन्न आय समूहों और राज्यों में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के सेवन तथा आहार विविधता में बड़े अंतर लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
- यहाँ तक कि अधिक आय वाले व्यक्तियों में भी, आयरन की कमी और आहार विविधता है, जिससे उनमें एनीमिया का जोखिम बढ़ जाता है। बेहतर परिणामों के लिये पोषण कार्यक्रमों को इन समूहों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अनुकूलित करने की आवश्यकता है।
खाद्यान्न व्यय पैटर्न में परिवर्तन से राष्ट्र की स्वास्थ्य और पोषण रणनीतियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
- पोषण संतुलन और स्वास्थ्य परिणाम:
- आहार में विविधता बढ़ने से समग्र पोषण संतुलन में सुधार होने की संभावना है, जिससे सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी दूर होगी तथा बेहतर स्वास्थ्य परिणाम प्राप्त होंगे।
- नीति समायोजन:
- व्यय पैटर्न में परिवर्तन के कारण कृषि और खाद्य सुरक्षा नीतियों का पुनर्मूल्यांकन आवश्यक हो गया है। नीति निर्माताओं को नई मांग को पूरा करने तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये विविध खाद्य पदार्थों के उत्पादन और आपूर्ति शृंखलाओं का समर्थन करने की आवश्यकता हो सकती है।
- आहार विविधता पर ध्यान दें:
- यह परिवर्तन स्वास्थ्य और पोषण रणनीतियों के एक भाग के रूप में आहार विविधता को बढ़ावा देने के महत्त्व को उजागर करता है।
- बेहतर भंडारण और परिवहन जैसे बुनियादी ढाँचे में सुधार जारी रखने की आवश्यकता है तथा विभिन्न प्रकार के पौष्टिक खाद्य पदार्थों तक पहुँच को सुविधाजनक बनाना जारी रखना होगा।
- सरकारी एजेंसियों को बदलते खाद्य उपभोग पैटर्न को प्रतिबिंबित करने के लिये आहार संबंधी दिशा-निर्देशों को अद्यतन करना चाहिये तथा आहार विविधता के महत्त्व पर ज़ोर देना चाहिये।
- यह परिवर्तन स्वास्थ्य और पोषण रणनीतियों के एक भाग के रूप में आहार विविधता को बढ़ावा देने के महत्त्व को उजागर करता है।
सरकार द्वारा शुरू की गई विभिन्न खाद्य सुरक्षा नीतियाँ क्या हैं?
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA)
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन
- अंत्योदय अन्न योजना
- राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन,
- कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: खाद्य व्यय पैटर्न में परिवर्तन देश की स्वास्थ्य और पोषण रणनीतियों के निर्माण तथा प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. जलवायु-अनुकूलन कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये, भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मुख्य:प्रश्न. खाद्यान्न वितरण प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये सरकार द्वारा कौन-से सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं? (2019) |