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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हाल ही में आर्थिक सलाहकार परिषद के गठन के पीछे क्या संभावित कारण हैं ? इसे और अधिक प्रभावी बनाए जाने के उपाय लिखें।

    28 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • आर्थिक सलाहकार परिषद का संक्षिप्त परिचय दें।
    • हाल ही हुए इसके गठन पर प्रकाश डालते हुए इसके गठन के पीछे के कारणों का उल्लेख करें।
    • इसके गठन के प्रभावों को संक्षेप में लिखें।
    • परिषद को और प्रभावी बनाने हेतु उपाय सुझाएँ।
    • निष्कर्ष

    प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद या 'पीएमईएसी' भारत में प्रधानमंत्री को आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली समिति है। इसमें एक अध्यक्ष तथा चार सदस्य होते हैं। इसके सदस्यों का कार्यकाल प्रधानमंत्री के कार्यकाल के बराबर होता है। आमतौर पर प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण के बाद सलाहकार समिति के सदस्यों की नियुक्ति होती है। प्रधानमंत्री द्वारा पदमुक्त होने के साथ ही सलाहकार समिति के सदस्य भी त्यागपत्र दे देते हैं।  

    हाल ही में सरकार द्वारा आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन किया गया है, जो महत्त्वपूर्ण आर्थिक मामलों में सरकार को सलाह देने के साथ-साथ अपने विचारों से अवगत भी कराएगी।  हालाँकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय की अध्यक्षता में आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन संभवत: देर से उठाया गया कदम है। वृद्धि दर में गिरावट, नोटबंदी और जीएसटी के नकारात्मक प्रभावों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर संकट के बदल मंडरा रहे हैं, ऐसे में आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन एक स्वागत योग्य कदम है। लेकिन, डर यह है कि कहीं नीति आयोग और आर्थिक सलाहकार परिषद की भूमिकाओं में दोहराव की स्थिति उत्पन्न न हो जाए।

    आर्थिक सलाहकार परिषद के हालिया गठन के पीछे संभावित कारण-

    आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन इसलिये किया गया है, क्योंकि सरकार को लगातार आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और वे चुनौतियाँ हैं:

    • विकास की धीमी रफ्तार। मुद्रास्फीति में वृद्धि की संभावना। 
    • राजस्व में कमी आने की आशंका।
    • चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को लक्षित दायरे के भीतर रखने की चुनौती। 
    • निर्यात में गिरावट। 
    • चालू खाता घाटे में बढ़ोतरी। 
    • वैश्विक परिवेश में बदलाव के कारण भारतीय रुपए पर दबाव।

    अभी तक आर्थिक मामलों में सरकार पूरी तरह से वित्त मंत्रालय पर निर्भर रही है, लेकिन परिषद के वजूद में आने के बाद इस निर्भरता में गुणात्मक बदलाव आएंगे। परिषद बनने से आर्थिक नीतियों को तय करने में लोक सेवकों के प्रभाव और अर्थशास्त्रियों की राय के बीच आवश्यक संतुलन भी स्थापित हो सकेगा। सरकार के कार्यकाल में पहली बार अर्थशास्त्रियों को आर्थिक मामले तय करने में अहमियत मिलने की संभावना है और इससे होगा यह कि उनकी राय को लोक सेवक आसानी से खारिज़ भी नहीं कर पाएंगे। अतः यह फैसला स्वागत योग्य है।

    •  परिषद को और अधिक प्रभावी बनाने के उपाय-
    • आर्थिक घटनाओं का स्वतंत्र आकलन और उसके लिये ज़रूरी नीतिगत कदमों के बारे में स्वतंत्र परामर्श देना इस परिषद की प्रभावकारिता और विश्वसनीयता तय करने में प्रमुख कारक होगा। 
    • इसे असरदार बनाने में इस पहलू का भी खासा योगदान होगा कि सरकार का इस परिषद के अध्यक्ष और उसके सदस्यों के प्रति कितना भरोसा बना रहता है। विदित हो कि अगर पिछली सरकारों के दौरान गठित सलाहकार परिषदें असरदार और भरोसेमंद तरीके से काम कर पाई थीं तो इसकी वज़ह यह थी कि परिषदों के अध्यक्ष रहे सुखमय चक्रवर्ती, सुरेश तेंडुलकर या सी. रंगराजन सभी को तत्कालीन सरकारों की ओर से पूरी स्वतंत्रता मिली थी। 
    • अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये आर्थिक सलाहकार परिषद जैसी संस्था का गठन कर देना ही काफी नहीं है, इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि उसे काम करने की आज़ादी मिले और उसके सुझावों पर ध्यान दिया जाए। 

    सरकार को आर्थिक सलाह देने के लिये एक विशेषज्ञ परिषद के गठन के बाद नीति आयोग की भूमिका पर प्रश्न उठ रहे हैं। आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा प्रशासनिक एवं बजट संबंधी उद्देश्यों के लिये योजना आयोग पहले एक नोडल एजेंसी का कार्य करता था, लेकिन दोनों की भूमिकाओं में कोई दोहराव नहीं होता था। आर्थिक सलाहकार परिषद अब भी नीति आयोग का इस्तेमाल अपनी नोडल एजेंसी के तौर पर कर सकती है, लेकिन भ्रम और टकराव से बचने के लिये इसके अध्यक्ष एवं सदस्य सचिव की दोहरी भूमिकाओं पर भी गौर करना चाहिये। साथ ही सरकार को आयोग के दायित्यों में स्पष्टता लानी चाहिये, ताकि वह राज्यों के विकास, व्यापक विकास के एजेंडे और परियोजनाओं एवं कार्यक्रमों की निगरानी पर अपना ध्यान केंद्रित कर सके।

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