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डेली न्यूज़


शासन व्यवस्था

स्थानीय सरकार

  • 12 May 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

स्थानीय सरकारें, 73वाँ संविधान संशोधन, 74वाँ संशोधन अधिनियम (1992)।

मेन्स के लिये:

पंचायती राज संस्थान, शहरी स्थानीय निकाय।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि देश भर के राज्य चुनाव आयोगों द्वारा हर पाँच वर्ष में स्थानीय निकायों के चुनाव कराने के अपने संवैधानिक दायित्वों को अच्छे से निभाना चाहिये।

  • चुनाव आयोग चुनाव कराने की जल्दबाज़ी के कारण परिसीमन की प्रक्रिया या नए वार्डों के गठन जैसे आधारों को रद्द नहीं कर सकता है
  • न्यायालय ने पाया कि 23,000 ग्रामीण स्थानीय निकायों के अलावा मध्य प्रदेश में 321 शहरी स्थानीय निकायों में 2019-2020 के बाद से चुनाव नहीं हुए।

स्थानीय सरकार: 

  • परिचय: 
    • स्थानीय स्वशासन ऐसे स्थानीय निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन है जिसके सदस्य  स्थानीय लोगों द्वारा चुने जाते हैं।
    • स्थानीय स्वशासन में ग्रामीण और शहरी दोनों सरकारें शामिल हैं।
    • यह सरकार का तीसरा स्तर है।
    • स्थानीय सरकारें 2 प्रकार की होती हैं - ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें और शहरी क्षेत्रों में नगर पालिकाएँ
  • ग्रामीण स्थानीय निकाय:
    • पंचायती राज संस्था (PRIs) भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की एक प्रणाली है।
    • पीआरआई को 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को साकार करने के लिये संवैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया गया और इसे देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
      • इस अधिनियम ने भारत के संविधान में एक नया भाग-IX जोड़ा है। इस भाग में  'पंचायतों' के लिये किये (अनुच्छेद 243 से 243-O तक) गए प्रावधान शामिल हैं।
      • इसके अलावा अधिनियम ने संविधान में एक नई ग्यारहवीं अनुसूची भी जोड़ी है। इस अनुसूची में पंचायतों की 29 कार्यात्मक मदें शामिल हैं। यह अनुच्छेद 243-G से संबंधित है।
    • अपने वर्तमान स्वरूप और संरचना में PRIs ने अपने अस्तित्व के 30 वर्ष पूरे कर लिये हैं। हालाँकि ज़मीनी स्तर पर विकेंद्रीकरण और लोकतंत्र को मजबूत करने के लिये आगे बहुत कुछ किया जाना बाकी है। 
  • 'शहरी स्थानीय निकाय: 
    • शहरी स्थानीय निकायों की स्थापना लोकतांत्रिक वेकेंद्रीकरण के उद्देश्य से की गई है।
    • भारत में आठ प्रकार के शहरी स्थानीय निकाय विद्यमान हैं- नगर निगम, नगर पालिका, अधिसूचित क्षेत्र समिति, नगर क्षेत्र समिति, छावनी बोर्ड, टाउनशिप, बंदरगाह ट्रस्ट, विशेष प्रयोजन एजेंसी।  
    • केंद्रीय स्तर पर 'नगरीय स्थानीय शासन या निकाय' का विषय निम्नलिखित तीन मंत्रालयों द्वारा देखा जाता है।
      • वर्ष 1985 में शहरी विकास मंत्रालय (अब आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय) को एक अलग मंत्रालय के रूप में बनाया गया था।
      • छावनी बोर्डों के मामले में रक्षा मंत्रालय।
      • केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में गृह मंत्रालय। 
    • वर्ष 1992 में शहरी स्थानीय सरकार से संबंधित 74वांँ संशोधन अधिनियम पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा प्रस्तुत किया गया जो 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
      • इसके द्वारा सविधान में भाग IX-A को जोड़ा गया जिसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं।
      • जोड़ा गया भाग IX-A और इसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं।
      • संविधान में 12वीं अनुसूची जोड़ी गई। इसमें नगर पालिकाओं से संबंधित 18 विषय शामिल हैं तथा ये अनुच्छेद 243-W से संबंधित हैं।

73वें संविधान संशोधन की मुख्य विशेषताएंँ:

  • अनिवार्य प्रावधान:
    • ग्राम सभाओं का गठन
    • ज़िला, ब्लॉक और ग्राम स्तर पर त्रिस्तरीय पंचायती राज संरचना का निर्माण
    • लगभग सभी पद, सभी स्तरों पर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा भरे जाएंगे
    • पंचायती राज संस्थाओं का चुनाव लड़ने हेतु न्यूनतम आयु 21वर्ष होनी चाहिये
    • ज़िला एवं प्रखंड स्तर पर अध्यक्ष का पद अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरा जाना चाहिये।
    • पंचायतों में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये उनकी जनसंख्या के अनुपात में और पंचायतों में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें आरक्षित होनी चाहिये
    • पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव कराने के लिये प्रत्येक राज्य में राज्य चुनाव आयोग का गठन किया जाएगा
    • पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल पांँच वर्ष है, यदि इन्हें पहले भंग कर दिया जाता है, तो छह महीने के भीतर नए चुनाव कराने होंगे
    • प्रत्येक पांँच वर्ष में प्रत्येक राज्य में एक राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाना।
  • स्वैच्छिक प्रावधान:
    • इन निकायों में केंद्र और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को मतदान का अधिकार देना
    • पंचायती राज संस्थाओं को कर, शुल्क आदि के संबंध में वित्तीय अधिकार दिये जाने चाहिये तथा पंचायतों को स्वायत्त निकाय बनाने का प्रयास किया जाएगा।

74वें संशोधन अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ:

  • अनिवार्य: 
    • छोटे, बड़े और बहुत बड़े शहरी क्षेत्रों में क्रमशः नगर पंचायतों, नगर परिषदों व नगर निगमों का गठन।
    • अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये शहरी स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण मोटे तौर पर उनकी आबादी के अनुपात में।
    • एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित;
    • पंचायती राज निकायों में चुनाव कराने के लिये गठित राज्य निर्वाचन आयोग (73वाँ संशोधन) शहरी स्थानीय स्वशासी निकायों के लिये भी चुनाव कराएगा।
    • पंचायती राज निकायों के वित्तीय मामलों से निपटने के लिये गठित राज्य वित्त आयोग स्थानीय शहरी स्वशासी निकायों के वित्तीय मामलों को भी देखता है।
    • शहरी स्थानीय स्वशासी निकायों का कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित किया गया है और पहले विघटन के मामले में छह महीने के भीतर नए चुनाव होते हैं।
  • स्वैच्छिक: 
    • इन निकायों में संघ और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों को मतदान का अधिकार देना।
    • पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण प्रदान करना।
    • करों, शुल्कों, टोल और शुल्कों आदि के संबंध में वित्तीय अधिकार देना।
    • नगर निकायों को स्वायत्त बनाना और इन निकायों को इस अधिनियम के माध्यम से संविधान में जोड़ी गई बारहवीं अनुसूची में शामिल कुछ या सभी कार्यों को करने और/या आर्थिक विकास के लिये योजनाएँ तैयार करने की शक्तियाँ प्रदान करना।

प्रश्न. स्थानीय स्वशासन किस गुण की सर्वाधिक सटीक व्याख्या करता है? (2017) 

(a) संघवाद
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
(c) प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र

उत्तर: (b) 

स्रोत: द हिंदू

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