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कृषि

भारत में MSP को वैध बनाना: चुनौतियाँ और आगे की राह

  • 03 Jul 2024
  • 28 min read

यह एडिटोरियल 01/07/2024 को ‘बिज़नेस लाइन’ में प्रकाशित ’Legal guarantee for MSP is a must’’ लेख पर आधारित है। इसमें खरीफ फसलों के लिये हाल ही में MSP में की गई वृद्धि का आलोचनात्मक परीक्षण किया गया है, जहाँ बढ़ती इनपुट लागत के बीच अपर्याप्त मुआवजे को लेकर किसानों के बीच व्याप्त असंतोष पर बल दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), खरीफ फसलें, एमएस स्वामीनाथन समिति, भारत में किसानों से संबंधित कल्याणकारी योजनाएँ, उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) 

मेन्स के लिये:

भारत में खेती और MSP को वैध बनाने से संबंधित चुनौतियाँ, MSP को वैध बनाने से भारत का कृषि कैसे सुरक्षित हो सकती है

न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices- MSPs) मुक्त बाज़ार के सिद्धांतों के विरुद्ध नहीं है; इसके बजाय, यह बाज़ार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को कम करने में मदद करता है। 14 खरीफ फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य में हाल ही में की गई वृद्धि ने आंदोलनकारी किसानों और किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखने वाले लोगों को निराश किया है। घोषित मूल्य वृद्धि की आलोचना इस बात के लिये की जा रही है कि इसमें विभिन्न कृषि इनपुट में मुद्रास्फीति की स्थिति पर ध्यान नहीं दिया गया है जिसका सामना किसानों को करना पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप, MSP में मामूली वृद्धि उचित मुआवज़ा प्रदान करने में विफल रहती है, क्योंकि यह इनपुट लागत में वृद्धि को आनुपातिक रूप से प्रतिबिंबित नहीं करती है।

उदाहरण के लिये, धान का MSP 2,183 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 2,300 रुपए प्रति क्विंटल किया गया है, जो मात्र 117 रुपए (लगभग 5%) की मामूली वृद्धि को दर्शाता है। यह लाखों धान उत्पादकों के लिये उपयुक्त नहीं है, जिनकी इनपुट लागत वर्ष 2023 में 20% से अधिक बढ़ गई है।

MSP में वृद्धि की ताज़ा घोषणा सरकार की विशेषज्ञ समिति की अनुशंसा (वर्ष 2017) के अनुरूप किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में एक कदम होने के बजाय एक नियमित मौसमी मूल्य संशोधन ही अधिक प्रतीत होती है।

किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में प्रगति का प्रभावी मापन नहीं हो पा रहा है और सरकार MSP को क़ानूनी ढाँचा प्रदान करने में संकोच रख रही है, क्योंकि उसे चिंता है कि इससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है तथा कृषि निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो सकती है।

नोट

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) क्या है?

  • परिचय:
    • MSP व्यवस्था की स्थापना वर्ष 1965 में कृषि मूल्य आयोग (Agricultural Prices Commission- APC) के गठन के साथ बाज़ार हस्तक्षेप के रूप में की गई थी ताकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ाया जा सके और किसानों को बाज़ार मूल्यों में गंभीर गिरावट से बचाया जा सके।
  • MSP की गणना:
    • कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (Commission for Agricultural Costs & Prices- CACP) प्रत्येक फसल के लिये राज्य और अखिल भारतीय औसत स्तर पर तीन प्रकार की उत्पादन लागत की गणना करता है।
      • A2: इसमें किसान द्वारा बीज, उर्वरक, कीटनाशक, मज़दूरी, पट्टे पर ली गई भूमि, ईंधन, सिंचाई आदि पर नकद एवं वस्तु के रूप में सीधे तौर पर किये गए सभी भुगतेय लागत शामिल हैं।
      • A2+FL: इसमें A2 के साथ अवैतनिक पारिवारिक श्रम (Family Labour) का अनुमानित मूल्य शामिल है।
      • C2: यह एक व्यापक लागत है जिसमें A2+FL लागत के साथ स्वामित्व वाली भूमि का अनुमानित किराया मूल्य, स्थायी पूंजी पर ब्याज, पट्टे पर दी गई भूमि के लिये भुगतान किया गया किराया शामिल है
    • सरकार कहती है कि MSP को अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत (CoP) सीओपी ) के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर तय किया गया है, लेकिन यह इस लागत की A2+FL लागत के 1.5 गुना के रूप में गणना करती है।

MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से भारतीय कृषि को किस प्रकार मदद मिलेगी?

  • किसानों के लिये आय सुरक्षा: कानूनी रूप से गारंटीकृत MSP प्रदान करने से किसानों को मूल्य में उतार-चढ़ाव के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त होगी, जहाँ यह सुनिश्चित होगा कि उन्हें उनकी फसलों के लिये न्यूनतम मूल्य की गारंटी प्राप्त है।
    • इससे उनकी आय को स्थिर करने, वित्तीय संकट के जोखिम को कम करने तथा किसानों पर ऋण का बोझ कम करने में मदद मिल सकती है।
      • भारत में कृषि परिवारों की औसत मासिक आय लगभग 10,695 रुपए है, जो प्रायः गरिमापूर्ण जीवन के लिये अपर्याप्त सिद्ध होती है।
      • भारत में औसतन प्रतिदिन 30 किसानों द्वारा आत्महत्या की दुर्भाग्यजनक स्थिति पाई जाती है।
  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: सरकारी खरीद और निजी क्षेत्र के लेन-देन से प्रेरित बेहतर मूल्य प्राप्ति से ग्रामीण समुदायों की क्रय शक्ति बढ़ सकती है, जिससे इन क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधि को बढ़ावा मिल सकता है।
  • FRP मॉडल और प्रत्यक्ष मुआवजे का विस्तार: वर्तमान में निजी मिलों द्वारा आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा निर्धारित उचित एवं लाभकारी मूल्य (Fair and Remunerative Price- FRP) पर या उससे उच्च मूल्य पर गन्ना खरीदना अनिवार्य है।
    • इस मॉडल को MSP के दायरे में शामिल अन्य फसलों पर भी लागू किया जा सकता है। इसके अलावा, यदि किसानों को MSP से कम पर अपनी फसल बेचने के लिये विवश किया जाता है तो उन्हें प्रत्यक्ष मुआवजा मिलना चाहिये ताकि उनके लिये मूल्य के अंतर की भरपाई की जा सके।
  • निजी फसल खरीद के लिये कानूनी अनिवार्यता: निजी खिलाड़ियों के लिये MSP पर या उससे उच्च मूल्य पर फसल खरीद को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया जाना चाहिये, साथ ही सख्त निगरानी प्रणाली और किसी भी उल्लंघन के लिये दंड का प्रावधान होना चाहिये। इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसान फसल खरीद के लिये केवल सरकारी खरीद एजेंसियों पर निर्भर न रहें।
  • निवेश के लिये प्रोत्साहन: सुनिश्चित प्रतिलाभ/रिटर्न के साथ, किसान बेहतर कृषि तकनीकों, उपकरणों एवं इनपुट में निवेश करने के लिये अधिक प्रेरित हो सकते हैं, जिससे उत्पादकता और कृषि विकास में वृद्धि हो सकती है।
  • कॉर्पोरेट-केंद्रित दृष्टिकोण: जब उपभोक्ता मूल्यों और किसान मुआवजे के बीच टकराव की स्थिति बनती है, तब सरकारें कृषि-उत्पाद प्रसंस्करण में शामिल लाभ कमा रहे कॉर्पोरेट के हितों का समर्थन करने की प्रवृत्ति रखती हैं।
    • ये कॉर्पोरेट पहले से ही अपने उत्पादों पर विधि सम्मत अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) का लाभ उठा रहे हैं।
    • इस कॉर्पोरेट-केंद्रित दृष्टिकोण के साथ-साथ बिचौलियों द्वारा कृषि एवं अंतिम उपभोक्ता मूल्य के बीच के मार्जिन के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से पर दावा करने से किसानों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है

उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP):

  • FRP सरकार द्वारा घोषित वह मूल्य है, जिस पर शुगर मिल किसानों से गन्ने की खरीद के लिये कानूनी रूप से बाध्य हैं।
    • इन मिलों के पास किसानों के साथ एक समझौता संपन्न करने का विकल्प मौजूद है, जिससे उन्हें FRP का भुगतान किश्तों में करने की सुविधा प्राप्त होती है।
  • देश भर में FRP का भुगतान गन्ना नियंत्रण आदेश, 1966 द्वारा नियंत्रित होता है, जो आवश्यक वस्तु अधिनियम (ECA), 1955 के तहत जारी किया गया था, जहाँ गन्ने की आपूर्ति की तिथि से 14 दिनों के भीतर भुगतान करना अनिवार्य बनाया गया है।
  • इसका निर्धारण कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की सिफ़ारिश पर किया गया है और आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा इसकी घोषणा की गई है।
    • CACP कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संबद्ध कार्यालय है। यह एक सलाहकार निकाय है जिसकी सिफ़ारिशें सरकार के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।
    • CCEA की अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री करते हैं।
  • FRP ‘गन्ना उद्योग के पुनर्गठन पर रंगराजन समिति रिपोर्ट’ पर आधारित है।

भारत में खेती और MSP को कानूनी ढाँचा प्रदान करने से संबंधित चुनौतियाँ:

  • बजट संबंधी चिंताएँ: MSP को वैध बनाने या कानूनी ढाँचा प्रदान करने के विरुद्ध बहस बढ़ रही है, जहाँ दावा किया जाता है कि इसके लिये कानूनी प्रावधान बनाना व्यावहारिक रूप से असंभव है। MSP के दायरे में आने वाली सभी फसलों का संयुक्त मूल्य 11 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो सकता है, जबकि वर्ष 2023-24 में भारत का कुल बजटीय व्यय लगभग 45 लाख करोड़ रुपए रहा था
    • इस प्रकार, सरकार द्वारा बजट का इतना बड़ा हिस्सा केवल किसानों से फसल खरीद के लिये आवंटित करना अवास्तविक प्रतीत होता है। इसके अलावा, किसान अपनी उपज का लगभग 25% हिस्सा निजी एवं पशुधन उपयोग के लिये रखते हैं, जिससे MSP को वैध बनाने की व्यवहार्यता और भी जटिल हो जाती है।
  • कार्यान्वयन में जटिलता: भारत में फसलों की व्यापक शृंखला और विविध कृषि परिदृश्य के कारण MSP के लिये कानूनी प्रावधान बनाना चुनौतीपूर्ण माना जाता है। पूरे देश में अनुपालन और निष्पक्ष कार्यान्वयन सुनिश्चित करना लॉजिस्टिकल एवं प्रशासनिक चुनौतियों का सामना करेगा।
  • कृषि में बाज़ार मांग असंगति की स्थिति:
    • किसानों के लिये बाज़ार की मांग का अनुमान लगाने और उसके अनुसार अपनी खेती को समायोजित करने के लिये प्रभावी तंत्र का अभाव है। किसानों को प्रायः कीमतों में उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता का सामना करना पड़ता है क्योंकि उनके रोपण निर्णय वास्तविक बाज़ार की मांग के अनुरूप नहीं होते हैं। यह विसंगति ऐसी स्थितियों को जन्म देती है जहाँ उच्च उत्पादन स्तर के परिणामस्वरूप अधिक आपूर्ति होती है और उसके बाद कीमतों में गिरावट आती है, जिससे किसानों की आय पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2016 के खरीफ मौसम में सरकार ने किसानों को कपास की खेती कम करने और दालों की अधिक खेती करने के लिये प्रेरित किया। जिन लोगों ने कपास की खेती जारी रखी, उन्होंने अच्छा लाभ कमाया, लेकिन जिन लोगों ने दालों की खेती की उनमें से अधिकांश को अतिरिक्त आपूर्ति और कीमतों में भारी गिरावट का सामना करना पड़ा।
    • बाज़ार की गतिशीलता पर प्रभाव: आलोचकों का तर्क है कि यदि MSP को सावधानीपूर्वक लागू नहीं किया गया तो यह बाज़ार की गतिशीलता को विकृत कर सकता है और कृषि बाज़ारों की दक्षता को बाधित कर सकता है। कृषि में निजी निवेश और नवाचार के हतोत्साहित होने जैसी चिंताएँ भी मौजूद हैं।
  • उदाहरण के लिये, MSP के कारण गेहूँ और चावल के अलावा अन्य फसलों की खेती में गिरावट आई है, क्योंकि सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिये मुख्य रूप से इन दो फसलों की बड़ी मात्रा में खरीद करती है।
  • APMC कानून की सीमाएँ: कृषि उपज विपणन समिति (APMC) अधिनियम किसानों को अपनी उपज को अपनी निर्धारित मंडी के अलावा किसी अन्य मंडी में बेचने से रोकता है। इससे किसान बिचौलियों और निहित स्वार्थों के प्रति भेद्य हो जाते हैं। वे वैश्विक कीमतों के संपर्क में तो रहते हैं, लेकिन उन्हें लागत-कुशल तकनीक और सूचना प्रणाली तक पहुँच प्रदान नहीं की जाती है। इससे वे अन्य देशों के किसानों के मुकाबले अलाभ की स्थिति में रहते हैं।
    • केवल 15% APMC मंडियों में कोल्ड स्टोरेज की सुविधा उपलब्ध है। केवल 49% मंडियों में वजन तौलने की सुविधा उपलब्ध है।
    • मार्च 2017 तक भारत में 6,630 APMCs थे, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक APMC औसतन 496 वर्ग किलोमीटर के भौगोलिक क्षेत्र में कार्यरत है। यह 80 वर्ग किलोमीटर प्रति APMC के अनुशंसित क्षेत्र (राष्ट्रीय कृषक आयोग 2006 के अनुसार) से अधिक है।

भारत में किसानों से संबंधित कल्याणकारी योजनाएँ:

आगे की राह:

  • स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशें: आयोग की रिपोर्ट में सिफ़ारिश की गई है कि सरकार को ऐसा MSP सुनिश्चित करना चाहिये जो उत्पादन की भारित औसत लागत से कम से कम 50% अधिक हो। इस सिफ़ारिश को ‘C2+50% फॉर्मूला’ भी कहा जाता है, जिसमें किसानों को 50% रिटर्न की गारंटी देने के लिये पूंजी की अनुमानित लागत और भूमि पर किराया (जिसे C2 कहा जाता है) को भी शामिल किया गया है।
    • यह सुझाव दिया गया है कि सरकार C2+50% फॉर्मूले के आधार पर निर्धारित MSP के लिये कानूनी गारंटी लागू करे।
  • अशोक दलवई समिति की सिफ़ारिशें: इसकी रिपोर्ट में हक़ समिति (Haque Committee, 2016) द्वारा प्रस्तावित मॉडल कृषि भूमि पट्टा अधिनियम, 2016 का पालन करने का सुझाव दिया गया है।
    • भारत जैसे विकासशील देशों में किरायेदारी सुधारों का उद्देश्य अनौपचारिक एवं शोषणकारी अनुबंधों को समाप्त करना था ताकि गरीब किरायेदारों को बेदखली से बचाया जा सके और किराये को विनियमित किया जा सके। ‘बाज़ार-प्रेरित कृषि सुधार’ पर आधारित दलवाई रिपोर्ट पट्टादाता और पट्टेदारों (Lessors and Lessees) के बीच समान सौदेबाजी शक्ति की कल्पना करती है।
  • व्यापक नीति ढाँचा: एक समग्र राष्ट्रीय कृषि नीति की आवश्यकता है, जिसमें प्रत्येक अनाज के साथ-साथ FRP पर सब्जियों एवं फलों की प्रभावी और कुशल खरीद नीति शामिल हो।
    • देश भर के किसानों की आजीविका के लिये पाँच ‘Cs’ — जल और मृदा संरक्षण (Conservation of water and soil), जलवायु परिवर्तन प्रतिरोध (Climate change resistance), खेती (Cultivation), उपभोग (Consumption) और वाणिज्यिक व्यवहार्यता (Commercial viability) का होना महत्त्वपूर्ण है
  • APMC अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता: राज्यों को अपने APMC अधिनियमों में संशोधन कर उन्हें मॉडल अधिनियम के अनुरूप बनाना चाहिये और आवश्यक नियमों को शीघ्र अधिसूचित करना चाहिये। छोटे और सीमांत किसानों के लिये इन सुधारों का लाभ अधिकतम करने के लिये, राज्यों को स्वयं सहायता समूहों, किसानों/पण्य हित समूहों तथा इसी तरह के अन्य संगठनों के गठन को भी बढ़ावा देना चाहिये।
  • बाज़ार की शक्तियों और सरकारी सहायता में संतुलन: यह चिह्नित करना होगा कि कुछ कृषि क्षेत्र (जैसे बागवानी फसलें) बाज़ार की शक्तियों के माध्यम से फल-फूल सकते हैं, जबकि अन्य को MSP जैसी व्यवस्थाओं के माध्यम से सरकारी सहायता की आवश्यकता होगी।
    • बागवानी फसलों की वृद्धि पर विचार किया जाए, जिनकी वृद्धि दर पिछले दशक में चावल और गेहूँ की वृद्धि दर से दोगुनी हो गई है, जो इस बात का प्रमाण है कि मांग-संचालित कारक किसानों की आय एवं विकास को महत्त्वपूर्ण रूप से बेहतर बना सकते हैं।
  • किसानों के लिये सुनिश्चित मूल्य (Assured Price to Farmers- APF): एक ऐसी APF प्रणाली लागू करें जिसमें MSP घटक और लाभ मार्जिन दोनों शामिल हों। किसानों के लिये शुद्ध लाभ सुनिश्चित करने के लिये MSP को लागत C2 के बराबर निर्धारित किया जाए, जबकि साथ ही CACP जैसी विशेषज्ञ संस्था द्वारा वार्षिक रूप से निर्धारित अतिरिक्त मार्जिन भी हो। यह मार्जिन लगातार बढ़ते MSP के विपरीत परिवर्तनशील बना रहे।
  • MSP फसलों का वर्गीकरण और कार्यान्वयन: MSP के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये, फसलों को अखिल भारतीय महत्त्व और क्षेत्रीय महत्त्व के आधार पर वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
    • केंद्र सरकार को अखिल भारतीय फसलों के मामले में किसानों के लिये सुनिश्चित मूल्य (APF) का प्रबंधन करना चाहिये, जबकि राज्यों को केंद्र सरकार के साझा वित्तपोषण से क्षेत्रीय रूप से महत्त्वपूर्ण फसलों के लिये APF का प्रबंधन करना चाहिये।
  • कमोडिटी-आधारित किसान संगठनों की स्थापना: कीमतों में गिरावट से बचने के लिये वैश्विक मांग-आपूर्ति अनुमान प्रदान करने, रोपण निर्णयों का मार्गदर्शन करने और रकबे को नियंत्रित करने के लिये ऐसे संगठन का होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त, ऐसे गैर-पक्षपातपूर्ण मंचों की आवश्यकता है, जहाँ किसान नीति-निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और वैज्ञानिकों के साथ निष्पक्ष रूप से जुड़ सकें तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण को राजनीतिक या विशेष हित एजेंडों पर प्राथमिकता दे सकें।
    • कुछ देशों में ऐसे संगठन किसानों को विशिष्ट फसलों की मांग एवं आपूर्ति के वैश्विक अनुमानों पर सलाह देते हैं तथा अनुमानित मांग के अनुरूप क्षेत्रफल को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं।
  • MSP में व्यापक लागत समावेशन: MSP को संशोधित कर इसमें सभी उत्पादन लागतों— जैसे श्रम लागत, व्यय, उर्वरक, सिंचाई, कार्यशील पूंजी पर ब्याज और भूमि किराया को शामिल किया जाना चाहिये। इसमें पारिवारिक श्रम का अनुमानित मूल्य भी शामिल होना चाहिये 
    • MSP गणना में इन व्यापक लागतों को शामिल करते हुए किसानों को ऐसा मूल्य उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखना चाहिये जो न केवल उनके बुनियादी उत्पादन व्यय को पूरा कर सके, बल्कि एक उचित लाभ मार्जिन भी सुनिश्चित कर सके।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों का उपयोग: कर्नाटक ने राज्य की सभी मंडियों को एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म पर एकीकृत किया है और इससे किसानों के बिक्री मूल्यों में 38% तक सुधार हुआ है। यह प्रणाली मूल्य पारदर्शिता और बाज़ार तक पहुँच को बढ़ाती है, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। देश भर में इस मॉडल को अपनाने से देश भर में किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।

निष्कर्ष

कृषि क्षेत्र को गुज़रते समय के साथ विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है और इस संकट से निपटने के लिये MSP की कानूनी गारंटी की सख्त ज़रूरत है। आंदोलनकारी किसानों के साथ समझौते के बावजूद केंद्र सरकार ने पिछले दो वर्षों में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। सरकार को MSP के लिये कानूनी गारंटी और अन्य मुद्दों की मांग को त्वरित रूप से संबोधित करना चाहिये ताकि देश का ध्यान खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा की ओर मोड़ा जा सके।

अभ्यास प्रश्न: भारत के कृषि क्षेत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से संबंधित चुनौतियों और संभावित समाधानों की चर्चा कीजिये। किसानों की आय और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिये इसके निहितार्थों पर प्रकाश डालिये।

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)  

  1. सभी अनाजों, दालों एवं तिलहनों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर प्रापण भारत के किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश (यू.टी.) में असीमित होता है।
  2.  अनाजों एवं दालों का MSP किसी भी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में उस स्तर पर निर्धारित किया जाता है, जिस स्तर पर बाज़ार मूल्य कभी नहीं पहुँच पाते।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

  1. भारत सरकार काले तिल नाइजर (गुइज़ोटिया एबिसिनिका) के बीजों के लिये न्यूनतम समर्थन कीमत उपलब्ध कराती है।
  2.   काले तिल की खेती खरीफ की फसल के रूप में की जाती है।
  3.  भारत के कुछ जनजातीय लोग काले तिल के बीजों का तेल भोजन पकाने के लिये प्रयोग में लाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से आपका क्या तात्पर्य है? एमएसपी किसानों को निम्न-आय के जाल से कैसे बचाएगा? (2018)

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