डेली न्यूज़ (12 Jul, 2024)



हाई सी ट्रीटी

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैवविविधता पर संधि (BBNJ), हाई सी ट्रीटी, समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (UNCLOS), उच्च सागर पर 1958 जिनेवा कन्वेंशन, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, अल नीनो, महासागर अम्लीकरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA), क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास (SAGAR), सतत् विकास लक्ष्य (SDG)

मेन्स के लिये:

हाई सी ट्रीटी, भारत और विश्व के लिये महत्त्व

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैवविविधता (Biodiversity Beyond National Jurisdiction- BBNJ) समझौते, जिसे हाई सी ट्रीटी भी कहा जाता है, का समर्थन और अनुमोदन करने का निर्णय लिया है।

  • यह वैश्विक समझौता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के माध्यम से उच्च सागरीय समुद्री जैवविविधता की सुरक्षा के लिये बनाया गया है और यह समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) के ढाँचे के भीतर संचालित होगा।

हाई सी क्या हैं?

  • परिचय:
    • उच्च सागरों पर 1958 के जेनेवा अभिसमय के अनुसार, समुद्र के वे हिस्से जो किसी देश के प्रादेशिक जल या आंतरिक जल में शामिल नहीं हैं, हाई सी कहलाते हैं।
    • यह किसी देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (जो समुद्र तट से 200 समुद्री मील तक फैला हुआ है) से परे का क्षेत्र है तथा जहाँ तक ​​किसी राष्ट्र का जीवित और निर्जीव संसाधनों पर अधिकार क्षेत्र होता है।
    • कोई भी देश समुद्र में संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण के लिये ज़िम्मेदार नहीं है।
  • महत्त्व:
    • उच्च समुद्र विश्व के 64% महासागरों और पृथ्वी की सतह के 50% भाग को कवर करते हैं, जिससे वे समुद्री जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं।
    • वे लगभग 270,000 ज्ञात प्रजातियों का आवास हैं।
    • उच्च समुद्र जलवायु को नियंत्रित करते हैं, कार्बन को अवशोषित करते हैं, सौर विकिरण को संग्रहित करते हैं तथा ऊष्मा वितरित करते हैं, जो ग्रहीय स्थिरता और जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • वे मानव अस्तित्त्व के लिये आवश्यक हैं तथा समुद्री भोजन, कच्चा माल, आनुवंशिक और औषधीय संसाधन जैसे संसाधन प्रदान करते हैं।
  • संकट:
    • वे वायुमंडल से ऊष्मा अवशोषित करते हैं और अल नीनो तथा महासागरीय अम्लीकरण जैसी घटनाओं से प्रभावित होते हैं, जिससे समुद्री वनस्पतियों एवं जीवों को खतरा हो रहा है।
      • यदि वर्तमान तापमान वृद्धि और अम्लीकरण की प्रवृत्ति जारी रही तो वर्ष 2100 तक कई हजार समुद्री प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा होगा।
    • खुले समुद्र में मानवजनित दबावों में समुद्र तल पर खनन, ध्वनि प्रदूषण, रासायनिक और तेल रिसाव तथा आग, अनुपचारित अपशिष्ट (एंटीबायोटिक सहित) का निपटान, अत्यधिक मछली पकड़ना, आक्रामक प्रजातियों का प्रवेश एवं तटीय प्रदूषण शामिल हैं।
    • इन खतरों के बावजूद, वर्तमान में केवल 1% उच्च समुद्र ही संरक्षित है।

हाई सी ट्रीटी क्या है?

  • परिचय:
    • औपचारिक रूप से इसे राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत् उपयोग पर समझौता कहा जाता है। संक्षेप में इसे BBJN या हाई सी ट्रीटी के रूप में जाना जाता है।
    • यह महासागरों के पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये UNCLOS के अंतर्गत एक नया अंतर्राष्ट्रीय कानूनी ढाँचा है।
    • इस ट्रीटी पर वर्ष 2023 में बातचीत की गई थी और इसका उद्देश्य प्रदूषण को कम करना तथा किसी भी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर समुद्री जल में जैवविविधता एवं अन्य समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग को बढ़ावा देना है।
  • प्रमुख उद्देश्य:
    • समुद्री पारिस्थितिकी का संरक्षण एवं सुरक्षा: इसमें समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (Marine Protected Areas- MPA) की स्थापना शामिल है, जहाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिये गतिविधियों को विनियमित किया जाएगा।
    • समुद्री संसाधनों के लाभों का उचित एवं न्यायसंगत बँटवारा: संधि का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान समुद्री जीवों से प्राप्त लाभ, चाहे वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से हो या वाणिज्यिक दोहन के माध्यम से, सभी देशों के बीच समान रूप से साझा किये जाएँ।
    • अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (Environmental Impact Assessments  - EIA): संधि किसी भी ऐसी गतिविधि के लिये पूर्व पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessments) करना अनिवार्य बनाती है, जो समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को संभावित रूप से प्रदूषित या नुकसान पहुँचा सकती है, भले ही वह गतिविधि किसी देश के राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र में हो, लेकिन उसका प्रभाव उच्च समुद्र में होने की संभावना है।
    • क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकियों का हस्तांतरण: इससे विकासशील देशों को महासागरों के लाभों का पूर्ण उपयोग करने में मदद मिलेगी, साथ ही उनके संरक्षण में भी योगदान मिलेगा।
  • हस्ताक्षर और अनुसमर्थन:
    • जून 2024 तक, 91 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं, जिनमें से 8 ने इसकी पुष्टि की है। 60 देशों द्वारा इसकी पुष्टि किये जाने के 120 दिन बाद यह कानूनी रूप से बाध्यकारी हो जाएगी।
      • अनुसमर्थन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई देश किसी अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों से कानूनी रूप से बंधे होने के लिये सहमत होता है, जबकि हस्ताक्षर करना अनुसमर्थन होने तक कानूनी दायित्व के बिना समझौते को दर्शाता है। अनुसमर्थन की प्रक्रिया अलग-अलग देशों में अलग-अलग होती है।

हाई सी ट्रीटी का महत्त्व क्या है?

  • "वैश्विक साझा" चुनौती का समाधान:
    • महासागर के 64% भाग को कवर करने वाला हाई सी वैश्विक साझी संपदा है, जिसके कारण संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जैवविविधता की हानि और पर्यावरणीय चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
      • संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2021 में लगभग 17 मिलियन टन प्लास्टिक महासागरों में फेंका गया और आने वाले वर्षों में इस मात्रा में वृद्धि होने की उम्मीद है।
    • इस संधि की तुलना जलवायु परिवर्तन पर 2015 के पेरिस समझौते से की जा रही है। इससे विशाल महासागर की सुरक्षा और समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
  • UNCLOS का पूरक: 
    • BBJN, UNCLOS के सिद्धांतों के अनुरूप है, जो महासागरों के लिये व्यापक कानूनी ढाँचा तैयार करता है।
      • UNCLOS महासागरों में समतापूर्ण पहुँच, संसाधन उपयोग और जैवविविधता संरक्षण के लिये सामान्य सिद्धांत निर्धारित करता है, लेकिन इसमें विशिष्ट कार्यान्वयन दिशा-निर्देशों का अभाव है।
      • हाई सी ट्रीटी इस अंतर को दूर करेगी तथा एक बार लागू हो जाने पर यह UNCLOS के तहत कार्यान्वयन समझौते के रूप में कार्य करेगी।
      • यह हाई सी में समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण और प्रबंधन के लिये एक कानूनी तंत्र प्रदान करेगा।
      • यह विकसित और विकासशील देशों के हितों में संतुलन स्थापित करते हुए समुद्री संसाधनों के न्यायसंगत तथा सतत् उपयोग को सुनिश्चित करेगा।
  • उभरते खतरों का मुकाबला:
    • यह ट्रीटी गहरे समुद्र में खनन, महासागरीय अम्लीकरण और प्लास्टिक प्रदूषण जैसी उभरती चुनौतियों से निपटती है, जो उच्च समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य तथा लचीलेपन के लिये गंभीर खतरा उत्पन्न करती हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना:
    • एक मज़बूत संस्थागत ढाँचे और निर्णय लेने की प्रक्रिया की स्थापना करके, हाई सी ट्रीटी  महासागर शासन में अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तथा समन्वय की सुविधा प्रदान करती है।
  • सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में योगदान:
    • इस ट्रीटी के सफल कार्यान्वयन से SDG 14 (जल के नीचे जीवन) की प्राप्ति में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • वैश्विक नेतृत्व: समुद्री प्रशासन एवं समुद्री संसाधन स्थिरता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता, जैसे समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA) की स्थापना, इसके वैश्विक नेतृत्व को रेखांकित करती है और इसे पर्यावरण चैंपियन बनाती है।
    • घरेलू नीति: संधि के EIA में भारत को अपनी समुद्री नीतियों को संरेखित करने तथा उत्तरदायित्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।
    • आर्थिक लाभ: समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ-साझाकरण के प्रावधान भारत की ब्लू इकोनॉमी लक्ष्यों के अनुरूप हैं, जिससे संभावित आर्थिक लाभ प्राप्त होंगे।
    • सामरिक विचार: इस संधि का अनुसमर्थन भारत की हिंद-प्रशांत स्थिति को मज़बूत करेगा तथा SAGAR पहल के माध्यम से सतत् समुद्री पर्यावरण को समर्थन प्रदान करेगा।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (UNCLOS)

  • अप्रैल 1958 में, प्रादेशिक समुद्रों, समीपवर्ती क्षेत्रों, महाद्वीपीय शेल्फ़ों, उच्च समुद्रों(हाई सी), मत्स्य पालन और जीवित समुद्री संसाधनों के संरक्षण पर 4 जिनेवा अभिसमय को अपनाया गया था। इन अभिसमय को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया, जिसे वर्ष 1982 में पुष्ट और अनुमोदित किया गया था। 

  • यह महासागरों को 5 मुख्य क्षेत्रों में विभाजित करता है:

समुद्र संबंधी अन्य अभिसमय कौन-से हैं?

  • महाद्वीपीय मग्नतट (शेल्फ) पर अभिसमय 1964: यह महाद्वीपीय शेल्फ के प्राकृतिक संसाधनों का पता लगाने और उनका दोहन करने वाले राज्यों के अधिकारों को परिभाषित एवं सीमांकित करता है।
  • मत्स्यन और हाई सी के जीवित संसाधनों के संरक्षण पर अभिसमय, 1966: यह हाई सी के जीवित संसाधनों के संरक्षण संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु अभिकल्पित किया गया था क्योंकि इनमें से कुछ संसाधनों पर आधुनिक तकनीकी प्रगति के कारण अतिदोहन का खतरा है।
  • लंदन अभिसमय 1972: इसका लक्ष्य सभी समुद्री प्रदूषण स्रोतों के प्रभावी नियंत्रण को प्रोत्साहित करना और अपशिष्ट एवं अन्य वस्तुओं का सुरक्षित निपटान कर समुद्र को प्रदूषित होने से बचाने के लिये सभी व्यावहारिक कदम उठाना है।
  • MARPOL अभिसमय 1973: इसमें परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा समुद्री पर्यावरण प्रदूषण को शामिल किया गया है।
    • यह तेल, हानिकारक तरल पदार्थ, पैकेज़्ड फॉर्म में हानिकारक पदार्थ, सीवेज़ और जहाज़ों से उत्पन्न अपशिष्ट आदि के कारण होने वाले समुद्री प्रदूषण के विभिन्न रूपों को सूचीबद्ध करता है।

आगे की राह 

  • राष्ट्र की सरकारों को इस संधि का अंगीकार कर इसका अनुसमर्थन करते हुए हाई सी संधि को प्रभावशील बनाना चाहिये। जलीय जीवन और मानव कल्याण के लिये संधि के सफल कार्यान्वयन तथा निगरानी को सुनिश्चित करने हेतु वैश्विक स्तर पर सभी क्षेत्रों में सहयोग महत्त्वपूर्ण है।
  • हाई सी संधि का अंगीकार कर भारत और अन्य देश नौवहन तथा मत्स्यन के प्रभाव को कम कर सकते हैं एवं एक सतत् ब्लू इकॉनमी को बढ़ावा दे सकते हैं जो अर्थव्यवस्था तथा समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र दोनों को लाभ पहुँचाती है।
  • यह संधि भारत को महासागर संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने और विश्व में हाई सी संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करती है।

निष्कर्ष

हाई सी संधि विश्व के महासागर अभिशासन के संबंध में एक ऐतिहासिक समझौता है। इस संधि का अनुसमर्थन करने का भारत का निर्णय एक महत्त्वपूर्ण कदम है जिसके समग्र विश्व में समुद्री संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हाई सी संधि क्या है और यह समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र तथा अर्थव्यवस्था के बेहतर संरक्षण एवं प्रशासन में किस-प्रकार मदद करेगी?

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. 'ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) 

  1. यह चीन और रूस को छोड़कर प्रशांत महासागर तटीय सभी देशों के मध्य एक समझौता है। 
  2. यह केवल तटवर्ती सुरक्षा के प्रयोजन से किया गया सामरिक गठबंधन है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d) 


प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीज़नल को-ऑपरेशन (IOR_ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. इसकी स्थापना हाल ही में घटित समुद्री डकैती की घटनाओं और तेल अधिप्लाव (आयल स्पिल्स) की दुर्घटनाओं के प्रतिक्रियास्वरूप की गई है।  
  2. यह एक ऐसी मैत्री है जो केवल समुद्री सुरक्षा हेतु है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के मामले में समुद्री भू-भागीय विवाद और बढ़ता तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत तथा चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014)


ट्रांस फैट और अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि पर वैश्विक रिपोर्ट

प्रिलिस्म के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), ट्रांस फैट, खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL), ईट राइट मूवमेंट, हार्ट अटैक रिवाइंड, मधुमेह, भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, REPLACE

मेन्स क लिये:

ट्रांस फैट के प्रभाव, ट्रांस फैट को खत्म करने में चुनौतियाँ, ट्रांस फैट को खत्म करने की पहल।

स्रोत: विश्व स्वास्थ्य संगठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने वैश्विक ट्रांस वसा या ट्रांस फैट उन्मूलन की दिशा में प्रगति पर फिफ्ट माइलस्टोन रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें वर्ष 2018-2023 की अवधि शामिल है।

  • एक अन्य घटनाक्रम में, लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में एक लेख प्रकाशित हुआ, जो बताता है कि वर्ष 2022 में भारत में लगभग 50% वयस्क अपर्याप्त स्तर की शारीरिक गतिविधियों में संलग्न होंगे।

ट्रांस फैट पर WHO रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट एसिड (TFA) को हृदय रोग के लिये प्रमुख कारण माना जाता है। TFA से कोई पोषण संबंधी लाभ नहीं मिलता है और यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।
  •  वर्ष 2018 में WHO ने वर्ष 2023 के अंत तक वैश्विक खाद्य आपूर्ति से TFA को खत्म करने का लक्ष्य रखा था। हालाँकि लक्ष्य पूरी तरह से पूरा नहीं हुआ, लेकिन उल्लेखनीय प्रगति हुई है और वर्ष 2025 तक निरंतर उन्मूलन हासिल कर लिया जाएगा।
  • वर्ष 2023 तक, विश्व स्वास्थ्य संगठन के REPLACE एक्शन फ्रेमवर्क ने 53 देशों में सर्वोत्तम अभ्यास नीतियों को व्यापक रूप से अपनाने में मदद की, जिससे 3.7 बिलियन लोग प्रभावित हुए, जो पाँच साल पहले 6% कवरेज से काफी अधिक है।
  • WHO ने TFA उन्मूलन लक्ष्य प्राप्त करने वाले देशों को मान्यता देने के लिये एक सत्यापन कार्यक्रम शुरू किया। डेनमार्क, लिथुआनिया, पोलैंड, सऊदी अरब और थाईलैंड TFA सत्यापन प्रमाण-पत्र प्राप्त करने वाले पहले देश थे।
  • WHO सभी देशों को सर्वोत्तम अभ्यास नीतियों को लागू करने, सत्यापन कार्यक्रम में शामिल होने और कंपनियों को वैश्विक स्तर पर TFA को खत्म तथा उत्पादों को फिर से तैयार करने के लिये प्रोत्साहित करने की सिफारिश करता है।
    • केवल आठ अतिरिक्त देशों (अज़रबैजान और चीन सहित) में सर्वोत्तम अभ्यास नीतियों को लागू करने से वैश्विक TFA बोझ का 90% समाप्त हो जाएगा।

अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि पर लैंसेट पेपर के मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि की परिभाषा यह है कि प्रति सप्ताह कम-से-कम 150 मिनट मध्यम-तीव्रता या 75 मिनट तीव्र-तीव्रता वाली शारीरिक गतिविधि नहीं की जाती।
  • वैश्विक स्तर पर, वर्ष 2022 में लगभग एक तिहाई (31.3%) वयस्क अपर्याप्त रूप से शारीरिक रूप से सक्रिय थे, जबकि वर्ष 2010 में यह संख्या 26.4% थी।
  • वयस्कों में अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि के मामले में दक्षिण एशिया, उच्च आय वाले एशिया प्रशांत क्षेत्र के बाद, विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर है। भारत में, 57% महिलाएँ अपर्याप्त रूप से शारीरिक रूप से सक्रिय पाई गईं, जबकि पुरुषों में यह आँकड़ा 42% था।
    • अनुमानों से पता चलता है कि यदि वर्तमान रुझान जारी रहा तो वर्ष 2030 तक 60% भारतीय वयस्क अपर्याप्त रूप से सक्रिय हो सकते हैं।
  • शारीरिक निष्क्रियता मधुमेह और हृदय रोग जैसी गैर-संचारी रोगों के जोखिम को बढ़ाती है। शारीरिक निष्क्रियता में वृद्धि, साथ ही गतिहीन जीवनशैली, इन रोगों के प्रसार में योगदान देती है और स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर बोझ डालती है।

नोट:

  • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद-भारत मधुमेह (ICMR-INDIAB) द्वारा वर्ष 2023 में किये गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2021 में भारत में:
    • 101 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।
    • 315 मिलियन लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं।
    • 254 मिलियन लोग मोटापे से पीड़ित हैं।
    • 185 मिलियन लोग LDL या 'खराब' कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर से पीड़ित हैं।

ट्रांस फैट

  • ट्रांस फैट या ट्रांस-फैटी एसिड असंतृप्त फैटी एसिड होते हैं जो प्राकृतिक या औद्योगिक स्रोतों से आते हैं।
  • प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला ट्रांस-फैट जुगाली करने वाले पशुओं (गाय और भेड़) से आता है।
  • औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस-वसा एक औद्योगिक प्रक्रिया में बनती है जिसमें वनस्पति तेल में हाइड्रोजन मिलाकर तरल को ठोस में परिवर्तित कर दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप "आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत" तेल बनता है।

Trans_Fatty_acid

स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के लिये भारत की पहल

जनसंख्या के बीच स्वस्थ जीवनशैली सुनिश्चित करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • खाद्य पदार्थों के लेबल पर "आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत तेलों" की जाँच करना, जो ट्रांस फैट का संकेत देते हैं और साथ ही हेल्थी फैट जैसे जैतून का तेल, एवोकाडो, नट्स एवं वसायुक्त मछली का चयन करना।
  • WHO सुझाव के अनुसार सप्ताह कम-से-कम 150 मिनट सामान्य तरीके से व्यायाम या 75 मिनट तेज़ी से व्यायाम करना। दिनभर बैठे रहने वाले व्यक्ति समय को छोटी-छोटी सैर या स्ट्रेचिंग कर सकते हैं।
  • महिलाओं के लिये सुरक्षित पैदल पथ एवं फिटनेस कक्षाओं जैसी शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने के अवसरों को प्रोत्साहित करने के साथ ही विशेष रूप से महिलाओं हेतु व्यायाम के स्वास्थ्य लाभों को बढ़ावा देना।
  • शैक्षणिक अभियानों के माध्यम से ट्रांस फैट के खतरों एवं शारीरिक गतिविधि के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना और साथ ही संदेश के विस्तार हेतु स्कूलों, कार्यस्थलों एवं सामुदायिक केंद्रों के साथ भागीदारी करना।
  • प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में ट्रांस फैट को सीमित करने के लिये मज़बूत सरकारी नियमों का समर्थन करना। पैदल चलने योग्य मार्ग निर्माण एवं सार्वजनिक मनोरंजन सुविधाओं जैसी शारीरिक गतिविधि को बढ़ावा देने वाली नीतियों का समर्थन करना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. आहार उत्पादों के विक्रय में जुटी एक कंपनी यह विज्ञापित करती है कि उसके उत्पादों में ट्रांस-वसा नहीं होती। उसके इस अभियान का ग्राहकों के लिये क्या अभिप्राय है? (2011)

  1. कंपनी के आहार उत्पाद हाइड्रोजनीकृत तेलों से नहीं निर्मित किये जाते। 
  2. कंपनी के आहार उत्पाद पशु उत्पन्न वसा/तेलों से नहीं निर्मित किये जाते। 
  3. कंपनी द्वारा प्रयुक्त तेल संभवतया उपभोक्ताओं के हृदयवाहिका स्वास्थ्य को क्षति नहीं पहुँचाएगा।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


भारत-ऑस्ट्रिया संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

UNFCCC, UNCLOS, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, उद्योग 4.0, यूरोपीय संघ

मेन्स के लिये:

भारत-ऑस्ट्रिया संबंध, द्विपक्षीय संबंध और कूटनीतिक उपलब्धियाँ

स्रोत: पी. आई. बी.

चर्चा में क्यों? 

भारत के प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रिया का आधिकारिक दौरा किया। यह 41 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रिया की पहली यात्रा थी, जो दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 75वें वर्ष का प्रतीक है।

इस यात्रा का उद्देश्य प्रौद्योगिकी, अर्थव्यवस्था और वैश्विक सुरक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाकर द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊँचाइयों पर ले जाना था।

नोट: जून 1955 में, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ऑस्ट्रिया की राजकीय यात्रा की, जो राज्य संधि के समापन के माध्यम से ऑस्ट्रिया को पूर्ण स्वतंत्रता मिलने के लगभग एक महीने बाद की बात है। नेहरू की यह किसी विदेशी नेता की नव-स्वतंत्र ऑस्ट्रिया की पहली राजकीय यात्रा थी।

प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रिया यात्रा की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता के लिये समर्थन: दोनों देशों ने स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की, समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea- UNCLOS) जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने की बात कही।
  • राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग: चर्चाओं में यूरोप और पश्चिम एशिया में विकास का आकलन शामिल था, जिसमें शांति बहाल करने तथा विशेष रूप से यूक्रेन संघर्ष के संबंध में, अंतर्राष्ट्रीय कानून के पालन पर साझा ध्यान केंद्रित किया गया।
  • आर्थिक सहयोग: नेताओं ने हरित और डिजिटल प्रौद्योगिकियों, बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा तथा स्मार्ट शहरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भविष्योन्मुखी आर्थिक साझेदारी पर सहमति व्यक्त की।
    • प्रथम उच्चस्तरीय द्विपक्षीय व्यापार फोरम का आयोजन किया गया, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में साझेदारी को बढ़ावा दिया गया तथा नए अवसरों की खोज के लिये CEO स्तर पर बातचीत को प्रोत्साहित किया गया।
  • जलवायु प्रतिबद्धताएँ: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के तहत अपनी प्रतिबद्धताओं को स्वीकार करते हुए, दोनों देशों ने ऑस्ट्रिया की हाइड्रोजन रणनीति और भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन पर विशेष ध्यान देते हुए नवीकरणीय ऊर्जा पर सहयोग करने का संकल्प लिया।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: स्टार्ट-अप ब्रिज और ऑस्ट्रिया के ग्लोबल इनक्यूबेटर नेटवर्क तथा भारत के स्टार्ट-अप इंडिया के अंतर्गत आदान-प्रदान जैसी पहलों को नवाचार एवं उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण बताया गया।
    • उन्होंने सतत् अर्थव्यवस्था सहित औद्योगिक प्रक्रियाओं (उद्योग 4.0) में डिजिटल प्रौद्योगिकियों के बढ़ते महत्त्व को भी स्वीकार किया।
  • सांस्कृतिक आदान-प्रदान: सांस्कृतिक कूटनीति की भूमिका को स्वीकार करते हुए योग, आयुर्वेद और अन्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के प्रयासों पर बल दिया गया।
  • बहुपक्षीय सहयोग: दोनों नेताओं ने बहुपक्षवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और संयुक्त राष्ट्र के व्यापक सुधारों का समर्थन किया। भारत ने वर्ष 2027-28 की अवधि के लिये ऑस्ट्रिया की UNSC उम्मीदवारी हेतु अपना समर्थन दोहराया, जबकि ऑस्ट्रिया ने वर्ष 2028-29 की अवधि के लिये भारत के  उम्मीदवारी के लिये अपना समर्थन व्यक्त किया।
    • भारत ने नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् विकास में सहयोग पर प्रकाश डालते हुए ऑस्ट्रिया को अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance- ISA) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया।

अब तक भारत-ऑस्ट्रिया संबंध कैसे रहे हैं?

  • राजनीतिक संबंध: राजनयिक संबंध वर्ष 1949 में स्थापित हुए। द्विपक्षीय संबंधों की 75वीं वर्षगाँठ नवंबर 2023 से नवंबर 2024 तक मनाई जाएगी।
    • वर्ष 1955 में ऑस्ट्रिया की स्वतंत्रता के लिये सोवियत संघ के साथ वार्ता में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • आर्थिक सहयोग: यूरोपीय यूनियन के सबसे धनी देशों में से एक ऑस्ट्रिया, यूरोप, विशेषकर मध्य और पूर्वी यूरोप के देशों के साथ भारत के संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
    • वर्ष 1983 में स्थापित भारत-ऑस्ट्रियाई संयुक्त आर्थिक आयोग (Joint Economic Commission- JEC) सरकारी मंत्रालयों और वाणिज्य एवं उद्योग मंडलों के बीच द्विपक्षीय बातचीत के लिये एक मंच प्रदान करता है।
    • वर्ष 2021 में, ऑस्ट्रिया को भारतीय निर्यात कुल 1.29 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जबकि ऑस्ट्रिया से आयात 1.18 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिसके परिणामस्वरूप 2.47 बिलियन अमेरीकी डॉलर का संतुलित द्विपक्षीय व्यापार हुआ।
      • वर्ष 2022 तक द्विपक्षीय व्यापार 2.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14.97% की वृद्धि दर्शाता है।
    • प्रमुख भारतीय निर्यात: इलेक्ट्रॉनिक सामान, परिधान, वस्त्र, जूते, रबर के सामान, वाहन और रेलवे पार्ट्स।
    • भारत को ऑस्ट्रिया से प्रमुख निर्यात: मशीनरी, यांत्रिक उपकरण, रेलवे पार्ट्स, लोहा और इस्पात।
  • अंतरिक्ष: ऑस्ट्रिया के पहले दो उपग्रह, टगसैट-1/ब्राइट और यूनीब्राइट, वर्ष 2013 में भारत के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपित किये गए थे।
  • संस्कृति: भारत-ऑस्ट्रियाई सांस्कृतिक संबंध 16वीं शताब्दी से चले आ रहे हैं, जब बाल्थासार स्प्रिंगर ने वर्ष 1505 में टायरॉल से भारत की यात्रा की थी। वियना विश्वविद्यालय में संस्कृत का शिक्षण वर्ष 1845 में शुरू हुआ और वर्ष 1880 में इंडोलॉजी के लिये एक स्वतंत्र पीठ की स्थापना के साथ यह अपने चरम पर पहुँच गया।
    • नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1921 और 1926 में वियना का दौरा किया था, जहाँ उन्होंने "वन का धर्म" जैसे विषयों पर अपने व्याख्यानों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक तथा बौद्धिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया था, जिसमें उन्होंने प्रकृति, एकता एवं करुणा पर ज़ोर दिया था।
    • आयुर्वेद और योग ने ऑस्ट्रिया में लोकप्रियता हासिल कर ली है तथा वियना में कई योग विद्यालय हैं।

ऑस्ट्रिया: 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत-ऑस्ट्रिया संबंधों के विकास पर चर्चा कीजिये, प्रमुख मील के पत्थर और सहयोग के क्षेत्रों पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

यूरोपीय संघ का 'स्थिरता एवं संवृद्धि विकास समझौता (स्टेबिलिटी एंड ग्रोथ पैक्ट)' ऐसी संधि है जो-

  1. यूरोपीय संघ के देशों के बजटीय घाटे के स्तर को सीमित करती है
  2. यूरोपीय संघ के देशों को अपनी आधारित संरचना सुविधाओं को आपस में बाँटना सुकर बनाती  है
  3. यूरोपीय संघ के देशों के लिये अपनी प्रौद्योगिकियों को आपस में बाँटना सुकर बनाती  है

उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं:

(a) केवल एक
(b) केवल दो
(c) सभी तीन
(d) कोई नहीं

उत्तर: (a)


FY24 में रोज़गार दर में उल्लेखनीय वृद्धि

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India - RBI) के आँकड़ों से भारत की रोज़गार दर में उल्लेखनीय वृद्धि का पता चला है, जो वित्त वर्ष 2023 में 3.2% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 6% हो गई है, जो श्रम बाज़ार में सकारात्मक रुझान को दर्शाता है।

नोट: 

भारत में रोज़गार वृद्धि के बारे में RBI के आँकड़े क्या बताते हैं?

  • समग्र रोज़गार दर: RBI के इंडिया KLEMS [पूंजी (Capital-K), श्रम (Labour- L), ऊर्जा (Energy - E), सामग्री (Material - M) और सेवा (Services  S)] डेटाबेस से पता चला है कि वर्ष 2022-23 में देश में रोज़गार 57.75 करोड़ था, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 56.56 करोड़ था।
    • डेटाबेस में 27 उद्योगों को शामिल किया गया है और व्यापक क्षेत्रीय स्तर तथा अखिल भारतीय स्तर पर अनुमान प्रदान किये गए हैं। इसमें सकल मूल्य वर्द्धन, श्रम रोज़गार, पूंजी स्टॉक और ऊर्जा, सामग्री तथा सेवाओं जैसे इनपुट के उपाय शामिल हैं।
  • महिला बेरोज़गारी: महिला बेरोज़गारी दर में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई, जो जनवरी-मार्च 2023 में 9.2% से घटकर जनवरी-मार्च 2024 में 8.5% हो गई।
    • शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) जनवरी-मार्च 2023 में 20.6% से बढ़कर जनवरी-मार्च 2024 में 23.4% हो गया, जो WPR में सामान्य वृद्धि का संकेत देता है।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण त्रैमासिक बुलेटिन (जनवरी-मार्च 2024)

  • PLFS प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों जैसे श्रम बल भागीदारी दर (LFPR), श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR), बेरोज़गारी दर (UR) आदि और गतिविधि स्थिति- 'सामान्य स्थिति' तथा 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' का अनुमान देता है।
  • शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर जनवरी-मार्च 2023 से जनवरी-मार्च 2024 के दौरान 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये 6.8% से घटकर 6.7% हो गई।
  • जनवरी-मार्च 2023 में महिला बेरोज़गारी दर 9.2% से घटकर जनवरी-मार्च 2024 में 8.5% हो गई।
  • शहरी क्षेत्रों में श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) में 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये जनवरी-मार्च 2023 से जनवरी-मार्च 2024 के दौरान क्रमशः 48.5% से 50.2% तक की वृद्धि का रुझान देखा गया है।
  • शहरी क्षेत्रों में महिला श्रम बल भागीदारी दर जनवरी-मार्च 2023 से जनवरी-मार्च 2024 के दौरान 22.7% से बढ़कर 25.6% हो जाएगी, जो एलएफपीआर में समग्र बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती है।
  • 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) में जनवरी-मार्च 2023 में 45.2% से जनवरी-मार्च 2024 में 46.9% तक की वृद्धि की प्रवृत्ति।
  • जनवरी-मार्च 2023 से जनवरी-मार्च 2024 के दौरान शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिक जनसंख्या अनुपात 20.6% से बढ़कर 23.4% हो गया, जो WPR में समग्र वृद्धि की प्रवृत्ति को दर्शाता है।

नोट: 

संकेतक

परिभाषा 

श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR)

जनसंख्या में श्रम बल (अर्थात् काम करने वाले, काम की तलाश करने वाले या काम के लिये उपलब्ध) में व्यक्तियों का प्रतिशत।

श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR)

जनसंख्या में कार्यरत व्यक्तियों का प्रतिशत।

बेरोज़गारी दर (UR)

श्रम बल में शामिल व्यक्तियों में से बेरोज़गार व्यक्तियों का प्रतिशत।

गतिविधि की स्थिति- Usual Status

गतिविधि स्थिति- सामान्य स्थिति

सर्वेक्षण की तिथि से पहले पिछले 365 दिनों के दौरान व्यक्ति द्वारा की गई गतिविधियों के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

गतिविधि की स्थिति- वर्तमान साप्ताहिक दर्जा

सर्वेक्षण की तिथि से पहले पिछले 7 दिनों के दौरान व्यक्ति द्वारा की गई गतिविधियों के आधार पर निर्धारित किया जाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में रोज़गार और बेरोज़गारी के रुझानों पर चर्चा कीजिये, जैसा कि RBI के आँकड़ों से पता चला है। गुणवत्तापूर्ण नौकरियाँ पैदा करने में चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत में सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)


वर्ष 2050 तक 90% मृदा क्षरण की चेतावनी-UNESCO

प्रिलिम्स के लिये:

यूनेस्को, बायोस्फीयर रिज़र्व कार्यक्रम, मरुस्थलीकरण, खाद्य एवं कृषि संगठन, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, बॉन चैलेंज

मेन्स के लिये:

भारत में मृदा स्वास्थ्य से संबंधित चुनौतियाँ, मृदा क्षरण से संबंधित मुद्दे, संरक्षण

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मोरक्को के अगादीर में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में, संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के महानिदेशक ने अपने 194 सदस्य देशों से मृदा संरक्षण और पुनर्वास में सुधार करने का आग्रह किया, संगठन ने चेतावनी दी है कि वर्ष 2050 तक ग्रह की 90% तक मृदा क्षरण हो सकता है।

  • यह चिंताजनक भविष्यवाणी वैश्विक जैवविविधता और मानव जीवन के लिये एक बड़े संकट को उज़ागर करती है।

वैश्विक मृदा क्षरण पर यूनेस्को की अंतर्दृष्टि क्या है?

  • मृदा क्षरण की वर्तमान स्थिति: यूनेस्को ने कहा है कि मरुस्थलीकरण के विश्व एटलस के अनुसार, 75% मृदा क्षरण पहले ही हो चुका है, जिसका सीधा असर 3.2 बिलियन लोगों पर पड़ रहा है। मौजूदा रुझान के अनुसार वर्ष 2050 तक इसका असर 90% तक बढ़ सकता है।
  • विश्व मृदा स्वास्थ्य सूचकांक: यूनेस्को मृदा की गुणवत्ता माप और तुलना को मानकीकृत करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ एक 'विश्व मृदा स्वास्थ्य सूचकांक' स्थापित करेगा।
    • इससे क्षरण या सुधार और संवेदनशील क्षेत्रों में रुझानों की पहचान करने में सहायता मिलेगी, जिसका उद्देश्य मृदा प्रबंधन प्रथाओं के मूल्यांकन में सुधार करना है।
  • स्थायी मृदा प्रबंधन हेतु पायलट कार्यक्रम: यूनेस्को अपने बायोस्फीयर रिज़र्व कार्यक्रम द्वारा समर्थित दस प्राकृतिक स्थलों में स्थायी मृदा और भूदृश्य प्रबंधन के लिये एक पायलट कार्यक्रम शुरू करेगा।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य प्रबंधन विधियों का मूल्यांकन और सुधार करना तथा विश्व भर में सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम: यूनेस्को सदस्य सरकारी एजेंसियों, स्वदेशी समुदायों और संरक्षण संगठनों को मृदा-संरक्षण उपकरणों तक पहुँच के लिये प्रशिक्षित करेगा।

मृदा क्षरण क्या है?

  • परिभाषा: मृदा क्षरण को मृदा स्वास्थ्य स्थिति में परिवर्तन के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र की अपने लाभार्थियों को वस्तुओं और सेवाएँ प्रदान करने की क्षमता कम हो जाती है। इसमें मृदा की गुणवत्ता में जैविक, रासायनिक और भौतिक क्षरण शामिल है।
    • मृदा क्षरण में कई तरह की प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जो मृदा स्वास्थ्य और इसके पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर ठीक से काम करने की क्षमता को कम करती हैं।
    • यह भूमि क्षरण की LADA (शुष्क भूमि में भूमि क्षरण आकलन) परिभाषा का अनुसरण करता है, जो क्षरण प्रक्रियाओं की जटिलता और विभिन्न हितधारकों द्वारा उनके व्यक्तिपरक मूल्यांकन पर प्रकाश डालता है।
    • यह क्षरण कार्बनिक पदार्थों की हानि, मृदा की उर्वरता में गिरावट, संरचनात्मक क्षति, अपरदन और लवणता, अम्लता या क्षारीयता में प्रतिकूल परिवर्तनों के माध्यम से प्रकट हो सकता है। इसमें विषैले रसायनों, प्रदूषकों या अत्यधिक बाढ़ से होने वाला संदूषण भी शामिल है।
  • मृदा निम्नीकरण की वर्तमान स्थिति: विश्व की लगभग 33% मृदा मध्यम से अधिक निम्नीकृत हैं। यह निम्नीकरण निर्धनता एवं खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त क्षेत्रों को असमान रूप से प्रभावित करती है, जिसमें 40% निम्नीकृत मृदा अफ्रीका में है।
    • वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष लगभग 12 मिलियन हेक्टेयर कृषि मृदा निम्नीकरण के कारण नष्ट हो जाती है।
    • राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण तथा भूमि उपयोग योजना के अनुसार, भारत में 146.8 मिलियन हेक्टेयर अर्थात् लगभग 30% मृदा निम्नीकृत हो चुकी है।
      • इसमें से लगभग 29% समद्र में नष्ट हो जाती है, 61% एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हो जाती है तथा 10% जलाशयों में जमा हो जाती है।
  • कारण: मृदा का निम्नीकरण विभिन्न कारकों के कारण हो सकता है जैसे भौतिक कारक, वर्षा, सतही अपवाह, बाढ़, हवा का कटाव और जुताई। 
    • जैविक कारकों में पौधें एवं मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं जो मृदा की गुणवत्ता को कम करती हैं, जबकि रासायनिक कारकों में क्षारीयता, अम्लीयता या जलभराव के कारण पोषक तत्त्वों में कमी शामिल है।
      • हरित क्रांति ने खाद्य उत्पादन को बढ़ावा दिया, लेकिन मृदा का अत्यधिक निम्नीकरण भी  हुआ।
    • तीव्र शहरीकरण और विकास परियोजनाओं के कारण भूमि का रूपांतरण हुआ।
    • जब वनों और फसलों को गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये हटा दिया जाता है, तो वनों की कटाई मृदा के खनिजों को समाप्त करके मृदा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। नदियों में औद्योगिक अपशिष्ट तथा अनुपचारित सीवेज के निर्वहन से भारी धातु युक्त, विषाक्त जल निर्मित होता है जिससे मृदा गुणवत्ता में कमी हो जाती है।
      • खनन गतिविधियाँ, जैसे कि ओपनकास्ट खनन, भूजल स्तर को बिगाड़ती हैं, मृदा एवं जल को दूषित करती हैं और साथ ही स्थानीय वनस्पतियों एवं जीवों को नष्ट करती हैं। कई राज्यों ने प्रदूषण कानूनों को लागू नहीं किया, जिससे उद्योगों को कृषि भूमि पर विषाक्त अपशिष्ट को डंप करने की अनुमति प्राप्त हो जाती है।
  • प्रभाव: निम्नीकृत होती मृदा के कारण खाद्य उत्पादन में कमी आती है, खाद्य असुरक्षा बढ़ती है तथा पारिस्थितिकी तंत्र में कमी भी होती हैं।
    • मृदा निम्नीकरण भी एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है, जो कार्बन भंडार पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण जलवायु परिवर्तन शमन एवं अनुकूलन को प्रभावित करता है।

नोट: 

  • भूमि निम्नीकरण का दायरा मृदा अपरदन और मृदा निम्नीकरण दोनों की तुलना में अधिक व्यापक है। इसमें जैविक, जल-संबंधी, सामाजिक तथा आर्थिक सेवाओं सहित वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करने हेतु पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता में सभी नकारात्मक परिवर्तन शामिल हैं।
  • मरुस्थलीकरण से तात्पर्य शुष्क भूमि वाले क्षेत्रों में भूमि निम्नीकरण या भूमि की ऐसी अपरिवर्तनीय स्थिति में परिवर्तन से है, जहाँ उसे उसके मूल उपयोग के लिये पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता।

मृदा प्रबंधन से संबंधित पहल क्या हैं?

  • वैश्विक: 
    • वैश्विक मृदा भागीदारी (GSP): वर्ष 2012 में स्थापित GSP का उद्देश्य वैश्विक एजेंडे में मृदा को प्राथमिकता देना और टिकाऊ मृदा प्रबंधन को बढ़ावा देना है।
      • संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) द्वारा आयोजित इस साझेदारी का उद्देश्य उत्पादक मृदाओं के लिये मृदा प्रशासन को बढ़ाना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं शमन तथा सभी के लिये सतत् विकास सुनिश्चित करना है।
    • विश्व मृदा दिवस: स्वस्थ मृदा के महत्त्व के संबंध में जागरूकता बढ़ाने और टिकाऊ मृदा प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिये यह प्रतिवर्ष 5 दिसंबर को मनाया जाता है। इसे आधिकारिक तौर पर 68वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा 2013 द्वारा अपनाया गया था, जिसने 5 दिसंबर, 2014 को पहला आधिकारिक विश्व मृदा दिवस घोषित किया।
    • बॉन चैलेंज: इसका वैश्विक लक्ष्य वर्ष 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर क्षरित एवं वनविहीन भू-क्षेत्र को पुनःस्थापित करना तथा वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भू-क्षेत्र को पुनःस्थापित करना है।
      • इसे जर्मनी सरकार और अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा वर्ष 2011 में लॉन्च किया गया था, इस चैलेंज ने वर्ष 2017 में प्रतिज्ञाओं के लिये 150 मिलियन हेक्टेयर की सीमा को पार कर लिया।
    • भूमि क्षरण तटस्थता (LDN): मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण को रोकना और उसकी स्थिति को उलटना है।
      • LDN को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जहाँ भूमि संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता विशिष्ट समय तथा स्थान के भीतर स्थिर या बढ़ती रहती है तथा पारिस्थितिकी तंत्र, खाद्य सुरक्षा एवं मानव कल्याण को समर्थन प्रदान करती है:
    • सतत् विकास लक्ष्य 15: 2030 एजेंडा के लक्ष्य 15 का उद्देश्य स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के सतत् उपयोग की रक्षा, पुनर्स्थापना और संवर्द्धन करना, वनों का स्थायी प्रबंधन करना, मरुस्थलीकरण से निपटना, भूमि क्षरण को रोकना और उलटना तथा जैवविविधता की हानि को रोकना है।
    • कृषि मृदाओं का पुनः कार्बनीकरण (RECSOIL): इसका नेतृत्व FAO द्वारा किया गया था और इसका उद्देश्य टिकाऊ मृदा प्रबंधन (SSM) प्रथाओं के माध्यम से मृदा कार्बनिक कार्बन (SOC) को बढ़ाकर वैश्विक कृषि मृदाओं को कार्बन मुक्त करना है।
  • भारत:

आगे की राह 

  • पुनर्योजी कृषि: यह फसल चक्र, कवर क्रॉपिंग और कम जुताई जैसी प्रथाओं के माध्यम से मिट्टी के स्वास्थ्य को बहाल करने पर केंद्रित है। ये विधियाँ मिट्टी के कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाती हैं, जल प्रतिधारण में सुधार करती हैं और जैवविविधता को बढ़ाती हैं।
  • मृदा संरचना और उर्वरता में सुधार के लिये बायोचार, खाद तथा अन्य जैविक संशोधनों का विकास तथा उपयोग करना।
  • कृषि वानिकी को बढ़ावा देना: कृषि परिदृश्य में पेड़ों और झाड़ियों को एकीकृत करना। कृषि वानिकी न केवल मिट्टी के कटाव को रोकती है बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बढ़ाती है।
  • मूल्यांकन और मानचित्रण: मृदा स्वास्थ्य निगरानी के मानकीकरण पर एक वैश्विक डेटाबेस बनाएँ, इससे प्रगति पर बेहतर नज़र रखने और लक्षित हस्तक्षेपों को सुविधाजनक बनाने में मदद मिलेगी।
  • हरित अवसंरचना: शहरी नियोजन में हरित छतों, बायोस्वाल और शहरी पार्कों को एकीकृत करना। इससे वर्षा जल का रिसाव कम होगा, अपवाह कम होगा और स्वस्थ मिट्टी के क्षेत्र बनेंगे।
  • शहरी कृषि या हरित स्थानों के लिये परित्यक्त औद्योगिक स्थलों को पुनः प्राप्त करना और सुधारना, जिससे मृदा पुनर्जनन को बढ़ावा मिले।
  • जैविक उपचार: प्रदूषित मिट्टी में प्रदूषकों को तोड़ने या बेअसर करने के लिये सूक्ष्मजीवों और पौधों का उपयोग करें, जिससे प्राकृतिक मिट्टी उपचार को बढ़ावा मिले।
  • फाइटोमाइनिंग: उन विशिष्ट पौधों के उपयोग का पता लगाएँ जो दूषित मिट्टी से धातुओं को अवशोषित और संचित कर सकते हैं, जिससे प्राकृतिक उपचार का दृष्टिकोण प्राप्त हो सके।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

राष्ट्रव्यापी 'मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' का उद्देश्य है:

  1. सिंचाई के तहत कृषि योग्य क्षेत्र का विस्तार करना।
  2. बैंकों को मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर किसानों को दिये जाने वाले ऋणों की मात्रा का आकलन करने में सक्षम बनाना।
  3. खेत में उर्वरकों के अतिप्रयोग को रोकना।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (आई.एफ.एस.) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019)