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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का दूसरा अंतरिक्ष केंद्र

  • 05 Dec 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

ISRO, भारत का दूसरा अंतरिक्ष केंद्र,

मेन्स के लिये:

दूसरा अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करने का कारण एवं आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) ने तमिलनाडु के कुलसेकरपट्टिनम के पास थूथुकुडी (Thoothukudi) में अपने दूसरे अंतरिक्ष केंद्र के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

प्रमुख बिंदु:

  • अंतरिक्ष के क्षेत्र में प्रगति करने वाले प्रमुख देशों में कई अंतरिक्ष केंद्र हैं।
  • ISRO का पहला और एकमात्र सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (Satish Dhawan Space Centre- SDSC) आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी तथा वर्तमान में यहाँ दो सक्रिय लॉन्चपैड हैं।
  • ISRO यहाँ से अपने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (Polar Satellite Launch Vehicle- PSLV) और जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल Geosynchronous Satellite Launch Vehicle- GSLV) रॉकेट लॉन्च करता है।

भारत को नए अंतरिक्ष केंद्र की आवश्यकता क्यों?

  • नये अंतरिक्ष केंद्र ISRO के आगामी लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle- SSLV) के लॉन्च के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
  • PSLV को उपग्रहों को ध्रुवीय तथा पृथ्वी की कक्षाओं में लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • हालाँकि लॉन्च के बाद यह सीधे ध्रुवीय या पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि रॉकेट के किसी टुकड़े या अवशेष के गिरने की आशंका के कारण इसके प्रक्षेपवक्र (Trajectory) को श्रीलंका के ऊपर उड़ान से बचना होता है।
    • इसलिये एक बार श्रीहरिकोटा से रॉकेट के उड़ान भरने के बाद इसे श्रीलंका से बचाने के लिये पहले यह पूर्व की ओर उड़ान भरता है फिर वापस दक्षिण ध्रुव की ओर बढ़ता है।
    • इस प्रक्रिया में अधिक ईंधन की आवश्यकता होती है
  • थूथुकुडी में नए अंतरिक्ष केंद्र की स्थापना के बाद SSLV लक्षद्वीप के ऊपर से उड़ान भरेगा और अधिक ऊँचाई पर जाने के साथ श्रीलंका के चारों ओर घूमकर जाएगा।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन

(Indian Space Research Organisation- ISRO)

  • भारत की अंतरिक्ष एजेंसी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) की स्थापना वर्ष 1969 में हुई।
  • इसे भारत सरकार के ‘अंतरिक्ष विभाग’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।
  • ISRO का उद्देश्य अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान और ग्रहों की खोज को आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रीय विकास के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग करना है।

अंतरिक्ष केंद्र के रुप में थूथुकुडी का चुनाव ही क्यों?

1. समुद्र तट का सामीप्य (Proximity to Seashore):

  • थूथुकुडी की समुद्र के साथ निकटता रॉकेट को "सीधे दक्षिण की ओर" लॉन्च करने के लिये आदर्श स्थान बनाती है।
    • श्रीहरिकोटा से इस तरह के दक्षिण दिशा की ओर लॉन्च संभव नहीं हैं क्योंकि रॉकेटों को श्रीलंका के चारों ओर से उड़ान भरनी होती है।
  • रॉकेट थूथुकुडी से एक सीधे प्रक्षेपवक्र के अनुसार प्रक्षेपित होने में सक्षम होंगे जो उनके भारी पेलोड ले जाने में सहायक होगा।

2. भूमध्य रेखा से निकटता (Proximity to Equator):

  • थूथुकुडी को SDSC की तरह ही भूमध्य रेखा के निकट होने के कारण एक अंतरिक्ष केंद्र के रूप में चुना गया है।
    • क्योंकि रॉकेट लॉन्च केंद्र पूर्वी तट पर और भूमध्य रेखा के पास होना चाहिये।

3. ढुलाई/संचालन में आसानी (Logistical Ease):

  • ISRO का तिरुनेलवेली ज़िले के महेंद्रगिरि में अपना तरल प्रणोदन प्रणाली केंद्र (Liquid Propulsion Systems Centre- LPSC) है जहाँ PSLV के लिये दूसरे और चौथे चरण के इंजन को असेंबल किया जाता है।
  • दूसरे और चौथे चरण के इंजन को महेंद्रगिरि से श्रीहरिकोटा ले जाने के बजाय, अगर इन्हें कुलसेकरपट्टिनम में बनाया जाएगा तो उन्हें लॉन्च पैड पर स्थानांतरित करना आसान होगा। जो लगभग थूथुकुडी से 100 किमी० की दूरी पर है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया

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