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डेली न्यूज़

  • 08 Jul, 2023
  • 59 min read
कृषि

किसान संकट सूचकांक

प्रिलिम्स के लिये:

किसान संकट सूचकांक, ICAR, PMFBY, PMKSY, e-NAM 

मेन्स के लिये:

किसान संकट सूचकांक

चर्चा में क्यों? 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत आने वाली संस्था केंद्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थान (CRIDA) भारत के लिये अपने तरह के पहले "किसान संकट सूचकांक" नामक एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित कर रहा है।

किसान संकट सूचकांक/फार्मर्स डिस्ट्रेस इंडेक्स:

  • परिचय: 
    • यह सूचकांक कृषि संबंधी संकट का अनुमान लगाने और निम्न स्तर से लेकर गाँव अथवा ब्लॉक स्तर तक किसी भी प्रकार के संकट प्रसार को रोकने का प्रयास करता है।
    • इसकी सहायता से केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों और गैर-सरकारी एजेंसियों जैसी विभिन्न संस्थाओं को किसानों के आसन्न संकट के बारे में प्रारंभिक चेतावनी प्राप्त हो सकेगी ताकि सक्रिय हस्तक्षेप किया जा सके और आवश्यक कदम उठाया जा सके। 
  • उद्देश्य: 
    • इस सूचकांक का लक्ष्य फसल हानि/विफलता तथा आय की हानि के रूप में कृषि संकट को कम करना है।
      • हाल के वर्षों में किसानों को आघात का सामना करना पड़ा है। चरम जलवायु घटनाओं के साथ-साथ बाज़ार में उतार-चढ़ाव और फसल मूल्य में वृद्धि हुई है जिससे अनेक बार किसानों को आत्महत्या के लिये विवश होना पड़ा है।
  • संकट की निगरानी के लिये पद्धति: इस सूचकांक के विकास में अनेक चरण शामिल हैं।
    • किसानों के संकट के उदाहरणों की पहचान करने के लिये स्थानीय समाचार पत्रों, समाचार प्लेटफॉर्मों और सोशल मीडिया की पड़ताल की जाती है जिसमें ऋण चुकाने के मुद्दे, आत्महत्याएँ, कीट का हमला, सूखा, बाढ़ और प्रवासन शामिल हैं।
    • फिर इस जानकारी को क्षेत्र के छोटे, सीमांत और पट्टेदार किसानों के साथ टेलीफोनिक साक्षात्कारों द्वारा पूर्ण किया जाता है।
    • इन साक्षात्कारों में संकट के शुरुआती लक्षणों का पता लगाने के लिये डिज़ाइन किये गए 21 मानकीकृत प्रश्न शामिल हैं।
    • प्रतिक्रियाओं को सात संकेतकों के विरुद्ध मैप किया जाता है, 
      • जोखिमों का खुलासा 
      • ऋृण 
      • अनुकूली क्षमता
      • भूमि अधिग्रहण
      • सिंचाई सुविधाएँ 
      • शमन रणनीतियाँ 
      • तत्काल प्रतिक्रिया
      • सामाजिक-मनोवैज्ञानिक कारक
  • सूचकांक की व्याख्या 
    • एकत्र किये गए डेटा और प्रतिक्रियाओं के आधार पर सूचकांक संकट के स्तर को इंगित करने के लिये 0 और 1 के बीच एक मान निर्दिष्ट करेगा।  
      • 0 से 0.5: कम संकट
      • 0.5 से 0.7: मध्यम संकट
      • 0.7 से ऊपर: गंभीर संकट
    • यदि संकट का स्तर गंभीर है, तो सूचकांक सात संकेतकों में से किसानों के संकट में सबसे अधिक योगदान देने वाले विशिष्ट घटक की पहचान करता है।
  • महत्त्व:  
    • विभिन्न एजेंसियाँ संकट की गंभीरता के आधार पर किसानों को आय की हानि से बचाने के लिये हस्तक्षेप कर सकती हैं।
    • वर्तमान के जिन समाधानों पर विचार किया जा रहा है उनमें प्रत्यक्ष धन हस्तांतरण, फसल खराब होने की स्थिति में सरकार की फसल बीमा योजना के अंतर्गत दावों को मध्यावधि में जारी करना आदि शामिल हैं।
    • उदाहरणतः PMFBY (प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना) के अंतर्गत बीमा दावे केवल तभी दिये जाते हैं जब सर्वेक्षण पूरा हो जाता है, लेकिन इस मामले में यदि सूचकांक आने वाले कुछ सप्ताह में गंभीर संकट का सुझाव देता है, तो सरकार इस योजना के अंतर्गत अंतरिम राहत प्रदान कर सकती है। 

निष्कर्ष: 

सूचकांक के कार्यान्वयन में कृषकों की आय में उतार-चढ़ाव को कम करने और कृषक समुदाय के कल्याण में योगदान करने की क्षमता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

बाल संरक्षण हेतु WHO की खाद्य विपणन अनुशंसाएँ

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन, बाल अधिकारों पर अभिसमय, HFSS खाद्य पदार्थ

मेन्स के लिये:

बच्चों पर खाद्य विपणन का प्रभाव, बच्चों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बच्चों को अस्वास्थ्यकर आहार विकल्पों को बढ़ावा देने वाले खाद्य विपणन के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिये सभी देशों को नीतियाँ बनाने में सहायता करने के लिये नए दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

  • ये दिशा-निर्देश सभी उम्र के बच्चों के लिये संतृप्त फैटी एसिड, उच्च ट्रांस-फैटी एसिड, शर्करा और नमक (HFSS) आदि से युक्त खाद्य पदार्थों और गैर-अल्कोहल पेय पदार्थों के विपणन को प्रतिबंधित करने हेतु अनिवार्य नीतियों के कार्यान्वयन की सिफारिश करते हैं।
  • ये दिशा-निर्देश वर्ष 2010 में जारी WHO के 'बच्चों के लिये खाद्य पदार्थों और गैर-अल्कोहल पेय पदार्थों के विपणन पर सिफारिशें' पर बनाए गए हैं।

बच्चों को खाद्य विपणन से बचाने हेतु नीतिगत सिफारिशें:

  • अनुशंसाएँ: 
    • व्यापक अनिवार्य नीतियाँ:
      • बच्चों की सुरक्षा के लिये HFSS खाद्य पदार्थों और गैर-अल्कोहल पेय पदार्थों के विपणन को प्रतिबंधित करना
      • सभी देशों की नीतियों को टीवी, रेडियो, प्रिंट, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, सोशल मीडिया, मोबाइल डिवाइस, गेम, स्कूल, सार्वजनिक स्थान और पॉइंट-ऑफ-सेल सहित विभिन्न विपणन चैनलों एवं अन्य माध्यमों को कवर करने वाले HFSS खाद्य पदार्थों के विज्ञापनों को प्रतिबंधित करना चाहिये। 
    • आयु सीमा: 
    •  देश के संदर्भ में पोषक तत्त्व प्रोफाइल:  
      • देश के संदर्भ में अनुकूलित वैज्ञानिक मानदंडों के आधार पर HFSS खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों को परिभाषित करने के लिये एक पोषक तत्त्व प्रोफाइल मॉडल का उपयोग किया जाना चाहिये।
      • दिशा-निर्देश नीतियाँ बनाते समय देश के संदर्भ पर विचार करने के महत्त्व पर ज़ोर देते हैं, जिसमें पोषण स्थिति, सांस्कृतिक संदर्भ, स्थानीय रूप से उपलब्ध खाद्य पदार्थ, आहार संबंधी रीति-रिवाज़, उपलब्ध संसाधन एवं क्षमताएँ, मौजूदा शासन संरचनाएँ और तंत्र शामिल हैं।
    • प्रेरक तकनीकें:
      • बच्चों को आकर्षित करने वाली प्रेरक तकनीकों, जैसे- कार्टून, मशहूर हस्तियाँ, खिलौने, खेल, छूट या मुफ्त उपहार पर प्रतिबंध।
      • नीतियों की निगरानी, प्रवर्तन और मूल्यांकन के लिये प्रभावी तंत्र आवश्यक है।
    • हितधारकों की भागीदारी: 
      • नीति विकास एवं कार्यान्वयन में प्रासंगिक हितधारकों की भागीदारी, पारदर्शिता सुनिश्चित करना और हितों के टकराव से बचना।
  • महत्त्व: 
    • साक्ष्य-सूचित मार्गदर्शन:
      • नीति अनुशंसाएँ बच्चों को हानिकारक खाद्य विपणन से बचाने के लिये साक्ष्य-सूचित मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
      • मज़बूत नियमों की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए मौजूदा नीतियाँ कमियों और चुनौतियों का समाधान करती हैं। 
    • तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता:
      • अनुशंसाएँ बचपन में मोटापे और गैर-संचारी रोगों के बढ़ते बोझ के कारण कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता पर प्रतिक्रिया देती हैं।
      • बचपन में मोटापे की दर बढ़ने का अनुमान है, जो एक महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। 
    • दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव: 
      • बचपन में मोटापा, वयस्कता में मृत्यु दर में वृद्धि से जुड़ा है।
      • प्रभावी नीतियों को लागू करने से दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों को कम करने में सहायता मिल सकती है।
    • बच्चों के अधिकारों की रक्षा:
      • अनुशंसाएँ बच्चों के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता देती हैं, उनके स्वास्थ्य और पर्याप्त भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करती हैं।
      • हानिकारक विपणन प्रथाओं पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से बनाई गई नीतियों से बच्चों को लाभ होता है।

बच्चों पर खाद्य विपणन के हानिकारक प्रभाव:  

  • खाद्य विपणन बच्चों के भोजन के प्रति  दृष्टिकोण, प्राथमिकताओं और उपभोग को प्रभावित करने के लिये प्रेरक तकनीकों का उपयोग करता है।
  • HFSS खाद्य पदार्थ (संतृप्त फैटी एसिड, ट्रांस-फैटी एसिड, मुक्त शर्करा और नमक) खाद्य विपणन का केंद्र बिंदु है जो मोटापे, मधुमेह, हृदय रोगों और दंत क्षय के बढ़ते जोखिम से जुड़े हैं।
  • खाद्य विपणन स्वस्थ विकल्पों की तुलना में अस्वास्थ्यकर विकल्पों को बढ़ावा देकर बच्चों के भोजन को प्रभावित करता है। यह उपभोग किये जाने वाले HFSS खाद्य पदार्थों की आवृत्ति और मात्रा को भी बढ़ाता है।
  • खाद्य विपणन फलों और सब्जियों जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों की खपत को विस्थापित करता है और स्वस्थ भोजन पर माता-पिता के प्रभाव को कमज़ोर करता है।
  • खाद्य विपणन बच्चों को HFSS खाद्य पदार्थों की पोषण गुणवत्ता और स्वास्थ्य लाभों के बारे में गुमराह कर सकता है। यह बच्चों के भोजन विकल्पों को प्रभावित करने के लिये भावनात्मक अपील, साथियों के दबाव या सेलिब्रिटी समर्थन का फायदा उठाता है।

बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRC):

  • यह वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाई गई एक संधि है।
  • यह 18 वर्ष से कम आयु के प्रत्येक व्यक्ति को बच्चे के रूप में मान्यता देता  है।
  • यह प्रत्येक नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों को निर्धारित करता है, चाहे उनकी जाति, धर्म या क्षमता कुछ भी हो
  • इसमें शिक्षा का अधिकार, आराम और अवकाश का अधिकार, बलात्कार और यौन शोषण के विरुद्ध सहित मानसिक या शारीरिक दुर्व्यवहार से सुरक्षा का अधिकार, जीवन और विकास का अधिकार जैसे अधिकार समाहित हैं।
  • यह विश्व की सर्वाधिक व्यापक रूप से स्वीकृत मानवाधिकार संधि है।
  • भारत ने वर्ष 1992 में UNCRC का अनुमोदन किया और घरेलू कानूनों, नीतियों एवं कार्यक्रमों के माध्यम से इसके सिद्धांतों तथा प्रावधानों को लागू करने के लिये प्रतिबद्ध है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त अधिकारों में से कौन-सा/से बच्चों से संबंधित है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D

व्याख्या:

  • संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की स्थापना करके बाल अधिकारों के महत्त्व को घोषित करने की दिशा में अपना पहला कदम उठाया। वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया, जिससे यह बच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता को चिह्नित करने वाला पहला संयुक्त राष्ट्र दस्तावेज़ बन गया।
  • बाल अधिकारों पर विशेष रूप से केंद्रित संयुक्त राष्ट्र का पहला दस्तावेज़ बाल अधिकारों की घोषणा था, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ होने के बजाय यह सरकारों के लिये आचरण का नैतिक मार्गदर्शक की तरह था।
  • यह अभिसमय, जो 2 सितंबर, 1990 को लागू हुआ, में जीवन के अधिकार, विकास के अधिकार, खेल और मनोरंजक गतिविधियों में संलग्न होने के अधिकार, सुरक्षा के अधिकार, भागीदारी के अधिकार, अभिव्यक्ति सहित बाल अधिकारों की विभिन्न श्रेणियों को शामिल करते हुए 54 अनुच्छेद शामिल हैं। अत: 1, 2 और 3 सही हैं।

अतः विकल्प D सही उत्तर है।


मेन्स: 

प्रश्न. राष्ट्रीय बाल नीति के मुख्य प्रावधानों का परीक्षण कीजिये तथा इसके कार्यान्वयन की प्रस्थिति पर प्रकाश डालिये। (2016) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

नवजात शिशुओं में संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण

प्रिलिम्स के लिये:

संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण, DNA, जीन, जीनोम

मेन्स के लिये:

संपूर्ण जीनोम अनुक्रम और उसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वस्थ नवजात शिशुओं सहित नवजात शिशुओं में तीव्रता से संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण (Whole-Genome Sequencing- WGS) का उपयोग आनुवंशिक रोगों के निदान और उपचार हेतु एक क्रांतिकारी दृष्टिकोण या उपाय  के रूप में उभरा है।

  • यह तकनीक स्वास्थ्य कर्मियों को शिशु की आनुवंशिक संरचना का व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करके तेज़ी से अधिक प्रभावी निदान प्रदान करने में सक्षम बनाती है, जिससे बेहतर परिणाम मिलते हैं, साथ ही स्वास्थ्य देखभाल लागत में भी कमी आती है।

संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण:

  • परिचय: 
    • सभी जीवों का एक अद्वितीय आनुवंशिक कोड या जीनोम होता है, जो न्यूक्लियोटाइड बेस एडेनिन (A), थाइमिन (T), साइटोसिन (C) और गुआनिन (G) से बना होता है।
    • बेस के क्रम का निर्धारण अनुक्रमण कहलाता है।
    • संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण एक प्रयोगशाला प्रक्रिया है जो एक प्रक्रिया में जीव के जीनोम में बेस के क्रम को निर्धारित करती है।
  • नवजात जीनोम अनुक्रमण का महत्त्व: 
    • मानक जाँच से पता न चलने वाली दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों का त्वरित, सटीक निदान।
    • उपचार योग्य स्थितियों का पता लगाना, शीघ्र हस्तक्षेप या जीन-आधारित उपचारों को सक्षम करना।
    • भविष्य के स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में जानकारी, विकल्पों और निवारक उपायों की सुविधा प्रदान करना।
    • व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्यों हेतु वंश, लक्षण एवं वाहक स्थिति का पता लगाना।

स्वस्थ नवजात शिशुओं के जीनोम अनुक्रमण का कारण: 

  • अमेरिका में बेबीसेक परियोजना नियमित देखभाल हेतु नवजात शिशुओं के अनुक्रमण के संभावित लाभों का पता लगाती है।
  • इस प्रोजेक्ट द्वारा किये गए एक अध्ययन से पता चला है कि 10% से अधिक स्वस्थ शिशुओं में अप्रत्याशित आनुवंशिक रोग संबंधी जोखिम थे।
  • स्वस्थ नवजात शिशुओं का अनुक्रमण उन आनुवांशिक बीमारियों हेतु नवजात शिशुओं की जाँच या परीक्षण के दायरे का विस्तार करता है जिनका मानक जैव रासायनिक परीक्षणों द्वारा पता नहीं लगाया जा सकता है।
  • स्वस्थ नवजात शिशुओं का अनुक्रमण व्यक्ति के भविष्य के स्वास्थ्य जोखिमों और पूर्व निर्धारितताओं के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

जीनोम:

  • जीनोम एक जीव में मौजूद समग्र आनुवंशिक सामग्री को संदर्भित करता है और सभी लोगों में मानव जीनोम अधिकतर समान होता है, लेकिन DNA का एक बहुत छोटा हिस्सा एक व्यक्ति तथा दूसरे के बीच भिन्न होता है।
  • प्रत्येक जीव का आनुवंशिक कोड उसके डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड (DNA) में निहित होता है, जो जीवन के निर्माण खंड होते हैं।
    • वर्ष 1953 में जेम्स वाटसन और फ्राँसिस क्रिक द्वारा "डबल हेलिक्स" के रूप में संरचित DNA की खोज की गई, जिससे यह समझने में मदद मिली कि जीन किस प्रकार जीवन, उसके लक्षणों एवं बीमारियों का कारण बनते हैं।
  • प्रत्येक जीनोम में उस जीव को बनाने और बनाए रखने के लिये आवश्यक सभी जानकारी समाहित होती है।
  • मनुष्यों में पूरे जीनोम की एक प्रति में 3 अरब से अधिक DNA बेस जोड़े होते हैं।

जीनोम और जीन में अंतर:

जीन

जीनोम

जीन DNA अणुओं का एक हिस्सा है

जीनोम कोशिका में मौजूद कुल DNA हैं

आनुवंशिक जानकारी का वंशानुगत तत्त्व

DNA अणु के सभी समूह

प्रोटीन संश्लेषण को एन्कोड करता है

प्रोटीन संश्लेषण के लिये प्रोटीन और नियामक तत्त्वों दोनों को एन्कोड करता है

इसमें लगभग कुछ सौ क्षार जोड़े होते है

एक उच्च जीव के जीनोम में अरब क्षार जोड़े होते हैं

एक उच्च जीव में लगभग हज़ारों जीन होते हैं

प्रत्येक जीव में केवल एक जीनोम होता है

एलील्स नामक जीन की भिन्नता को स्वाभाविक रूप से चुना जा सकता है

क्षैतिज जीन स्थानांतरण और दोहराव जीनोम में बड़े बदलाव का कारण बनते हैं

नवजात जीनोम-अनुक्रमण से जुड़ी चुनौतियाँ:

  • नवजात जीनोम-अनुक्रमण बड़ी मात्रा में व्यक्तिगत और संवेदनशील डेटा उत्पन्न करता है, जो गोपनीयता, सहमति, स्वामित्व, प्रकटीकरण और भेदभाव जैसे नैतिक, कानूनी एवं सामाजिक मुद्दों को उठाता है।
  • यह अनुक्रमण अनिश्चित या आकस्मिक निष्कर्ष भी उत्पन्न कर सकता है जिसका स्पष्ट नैदानिक ​​निहितार्थ या कार्रवाई करने योग्य नहीं हो सकता है, जिससे व्यक्ति या उनके परिवार को चिंता, भ्रम या हानि हो सकती है।
  • यह परिणामों की उचित व्याख्या और संचार सुनिश्चित करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों और जनता के लिये पर्याप्त शिक्षा तथा प्रशिक्षण की भी मांग करता है।

आगे की राह

  • नवजात जीनोम अनुक्रमण में व्यक्तिगत जीनोमिक डेटा से संबंधित गोपनीयता, सहमति, स्वामित्व, प्रकटीकरण और भेदभाव संबंधी चिंताओं के लिये एक मज़बूत नैतिक तथा कानूनी ढाँचे का विकास करना।
  • समन्वय, गुणवत्ता और समानता सुनिश्चित करने के लिये नवजात जीनोम-अनुक्रमण को मौज़ूदा नवजात स्क्रीनिंग कार्यक्रमों, नैदानिक ​​देखभाल तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के साथ भी एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • साक्ष्य-आधारित अभ्यास, नवाचार और सुधार सुनिश्चित करने के लिये नवजात जीनोम-अनुक्रमण का निरंतर अनुसंधान, मूल्यांकन किया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाला 'जीनोम अनुक्रमण' की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017) 

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध क्षमता और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।
  2. यह तकनीक फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने करने में मदद करती है।
  3. इसका उपयोग फसलों में पोषी-रोगाणु संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • चीनी वैज्ञानिकों ने वर्ष 2002 में चावल के जीनोम को डीकोड किया था। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने पूसा बासमती -1 और पूसा बासमती -1121 जैसी चावल की बेहतर किस्मों को विकसित करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया था जो वर्तमान में भारत के चावल निर्यात में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। अनेक ट्रांसजेनिक किस्में भी विकसित की गई हैं जिनमें कीट प्रतिरोधी कपास, शाकनाशी सहिष्णु सोयाबीन और वायरस प्रतिरोधी पपीता शामिल हैं। अतः 1 सही है।
  • पारंपरिक प्रजनन में पादप प्रजनक अपने खेतों की जाँच करते हैं तथा ऐसे पौधों की खोज करते हैं जो वांछनीय लक्षण प्रदर्शित करते हैं। ये लक्षण उत्परिवर्तन नामक प्रक्रिया के माध्यम से अनायास उत्पन्न होते हैं लेकिन उत्परिवर्तन की प्राकृतिक दर उन सभी पौधों के गुणों को उत्पन्न करने के लिये बहुत धीमी एवं अविश्वसनीय है जो प्रजनक देखना चाहते हैं। हालाँकि जीनोम अनुक्रमण में समय कम लगता है इस कारण यह अधिक बेहतर है। अतः 2 सही है।
  • होस्ट-पैथोजन इंटरैक्शन को इस रूप में परिभाषित किया गया है कि कैसे रोगाणु या वायरस आणविक, कोशीय, जीव या जनसंख्या स्तर पर मेज़बान जीवों के भीतर स्वयं को बनाए रखते हैं। जीनोम अनुक्रमण एक फसल के संपूर्ण DNA अनुक्रम का अध्ययन करने में सक्षम है। इस प्रकार यह रोगजनकों के अस्तित्व या प्रजनन क्षेत्र को समझने में सहायता करता है। अतः 3 सही है।

अतः विकल्प (D) सही उत्तर है।


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)

DNA बारकोडिंग किसका उपसाधन हो सकता है:

  1. किसी पादप या प्राणी की आयु का आकलन करने के लिये 
  2. समान दिखने वाली प्रजातियों के बीच भिन्नता जानने के लिये 
  3. प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में अवांछित प्राणी या पादप सामग्री को पहचानने के लिये  

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 3 
(c) केवल 1 और 2
(d) केवल 2 और 3 

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • परमाणु या ऑर्गेनेल जीनोम से लघु DNA अनुक्रमों का उपयोग कर जैविक प्रतिदर्शों की पहचान करने की नई तकनीक को DNA बारकोडिंग कहा जाता है।
  • DNA बारकोडिंग के विभिन्न क्षेत्रों में कई अनुप्रयोग हैं जैसे प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करना, लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करना, कृषि कीटों को नियंत्रित करना, रोग वैक्टर की पहचान करना, पानी की गुणवत्ता की निगरानी करना, प्राकृतिक स्वास्थ्य उत्पादों का प्रमाणीकरण और औषधीय पौधों की पहचान करना।
  • लुप्तप्राय वन्यजीवों की प्रजातियों की पहचान (एक जैसी दिखने वाली प्रजातियों के बीच अंतर), कीट संगरोध और रोग वाहक (अवांछनीय जानवरों/पौधों की पहचान करना) कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें DNA बारकोडिंग शोधकर्त्ताओं, प्रवर्तन एजेंटों एवं उपभोक्ताओं हेतु बहुत कम समय-सीमा में निर्णय लेती है।

अतः कथन 2 और 3 सही हैं, अतः विकल्प (d) सही है।


मेन्स: 

प्रश्न . अनुप्रयुक्त जैव प्रौद्योगिकी में शोध तथा विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के निर्धन वर्गों के उत्थान में किस प्रकार सहायक होंगी ?(250 शब्दों में उत्तर दीजिये) (2021)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण, विधिक निविदा, विमुद्रीकरण, वास्तविक समय सकल निपटान, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

मेन्स के लिये:

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ, रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में कदम

चर्चा में क्यों?  

भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियुक्त कार्य समूह ने रुपए को विशेष आहरण अधिकार (SDR) बास्केट में शामिल करने और रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की गति को तेज़ करने के लिये विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (Foreign Portfolio Investor- FPI) प्रणाली के पुन: आकलन करने की सिफारिश की है।

रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण:

  • परिचय:  
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है। 
    • इसमें आयात और निर्यात व्यापार के लिये रुपए को बढ़ावा देना और अन्य चालू खाता लेन-देन के साथ-साथ पूंजी खाता लेन-देन में इसके उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:  
    • 1950 के दशक में, भारतीय रुपए का संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, बहरीन, ओमान और कतर में कानूनी निविदा के रूप में व्यापक उपयोग किया जाता था।
    • हालाँकि वर्ष 1966 तक भारत की मुद्रा के अवमूल्यन के कारण इन देशों में भारतीय रुपए पर निर्भरता के लिये संप्रभु मुद्राओं की शुरुआत हुई थी। 
  • रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभ: 
    • मुद्रा मूल्य की सराहना करना: इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपए की मांग में सुधार होगा।
      • इससे भारत के साथ काम करने वाले व्यवसायों एवं व्यापारियों के लिये सुविधा बढ़ सकती है तथा लेन-देन लागत कम हो सकती है।
    • विनिमय दर की अस्थिरता में कमी: जब किसी मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण होता है तो उसकी विनिमय दर स्थिर हो जाती है।
      • वैश्विक बाज़ारों में मुद्रा की बढ़ती मांग अस्थिरता को कम करने में सहायता कर सकती है जिससे इसे अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिये अधिक पूर्वानुमानित और विश्वसनीय बनाया जा सकता है।
    • भू-राजनीतिक लाभ: रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत के भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ा सकता है।
      • यह अन्य देशों के साथ आर्थिक संबंधों को सुदृढ़ कर सकता है, द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को सुविधाजनक बना सकता है तथा राजनयिक संबंधों को बढ़ावा दे सकता है।
  • चुनौतियाँ:  
    • सीमित अंतर्राष्ट्रीय मांग:
      • वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में रुपए की दैनिक औसत हिस्सेदारी केवल 1.6% के आसपास है, जबकि वैश्विक माल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी लगभग 2% है।
    • परिवर्तनीयता संबंधी चुनौती: 
      • भारतीय मुद्रा (INR) पूरी तरह से परिवर्तनीय नहीं है जिसका अर्थ है कि पूंजी लेन-देन जैसे कुछ उद्देश्यों के लिये इसकी परिवर्तनीयता पर प्रतिबंध है। यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार एवं वित्त में इसके व्यापक उपयोग को प्रतिबंधित करता है। 
    • विमुद्रीकरण का असर:  
      • वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण, हाल ही में  2,000 रुपए के नोट के प्रयोग पर प्रतिबंध ने रुपए के प्रति विश्वास को प्रभावित किया है, खासकर भूटान और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों में।
    • व्यापार निपटान में चुनौतियाँ: 
      • हालाँकि लगभग 18 देशों के साथ रुपए में व्यापार करने का प्रयास किया गया है, लेकिन लेन-देन सीमित ही रहा है।  
      • इसके अलावा रुपए में व्यापार निपटाने के लिये रूस के साथ बातचीत धीमी रही है, मुद्रा मूल्यह्रास संबंधी चिंताओं और व्यापारियों के बीच अपर्याप्त जागरूकता के कारण इसमें बाधा आ रही है।
  • अंतर्राष्ट्रीयकरण की ओर कदम:  

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण को गति देने हेतु उपाय:   

  • पूर्ण परिवर्तनीयता और व्यापार समझौता: रुपए का लक्ष्य पूर्ण परिवर्तनीयता होना चाहिये, जिससे भारत और अन्य देशों के बीच वित्तीय निवेश की मुक्त आवाजाही संभव हो सके
    • भारतीय निर्यातकों और आयातकों को रुपए में चालान, लेन-देन के लिये प्रोत्साहित करने से व्यापार निपटान औपचारिकता के अनुकूल होगा।
  • तरल बाॅण्ड बाज़ार: RBI को विदेशी निवेशकों और व्यापार भागीदारों के लिये निवेश विकल्प प्रदान करते हुए अधिक तरल रुपए बाॅण्ड बाज़ार विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • RTGS प्रणाली का विस्तार: अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन को निपटाने के लिये रियल-टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) प्रणाली का विस्तार किया जाना चाहिये।
    • साथ ही भारत में रुपए का उपयोग करने वाले विदेशी व्यवसायों को कर प्रोत्साहन प्रदान करने से इसके उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • मुद्रा स्वैप समझौते: जैसा कि श्रीलंका के साथ देखा गया है, मुद्रा स्वैप समझौते बढ़ने से रुपए में व्यापार और निवेश लेन-देन की सुविधा प्राप्त होगी।
    • आत्मविश्वास बनाए रखने के लिये स्थिर विनिमय दर व्यवस्था के साथ-साथ सुसंगत और पूर्वानुमानित मुद्रा जारी करने के साथ पुनर्प्राप्ति आवश्यक है।
  •  SDR बास्केट में शामिल करना: रुपए को विशेष आहरण अधिकार (SDR) में शामिल करने के लिये प्रयास किया जाना चाहिये, जो प्रमुख मुद्राओं की बास्केट के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा बनाई गई एक अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति है।
    • साथ ही भारतीय सरकारी बाॅण्ड (IGBs) को वैश्विक सूचकांकों में शामिल किया जा सकता है, जिससे भारतीय ऋण बाज़ारों में विदेशी निवेश आकर्षित होगा। 
  • चीन के अनुभव से सबक: रॅन्मिन्बी के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये चीन का दृष्टिकोण भारत के लिये मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है:
    • चरणबद्ध दृष्टिकोण: आरक्षित मुद्रा के रूप में इसके उपयोग की दिशा में आगे बढ़ने से पहले चीन ने धीरे-धीरे चालू खाता लेन-देन और चुनिंदा निवेश लेन-देन के लिये रॅन्मिन्बी के उपयोग को सक्षम किया।
    • अपतटीय बाज़ार: डिम सम बॉण्ड और अपतटीय RMBD बॉण्ड बाज़ार जैसे अपतटीय बाज़ारों की स्थापना ने अंतर्राष्ट्रीयकरण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाया।

नोट:  

  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign Portfolio Investment- FPI): इसमें विदेशी निवेशकों द्वारा निष्क्रिय रूप से रखी गई प्रतिभूतियाँ और अन्य वित्तीय संपत्तियाँ शामिल हैं। 
    • यह किसी देश के पूंजी खाते का हिस्सा है और इसे BOP पर प्रदर्शित किया जाता है।
    • यह निवेशक को वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रत्यक्ष स्वामित्व प्रदान नहीं करता है।
    • FPI FDI की तुलना में अधिक तरल, अस्थिर और जोखिमभरा है।
    • इसे अक्सर "हॉट मनी" के रूप में जाना जाता है।
    • उदाहरण - स्टॉक, बॉण्ड, म्यूचुअल फंड, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड। 
  • विशेष आहरण अधिकार: 
    • SDR ,IMF के खाते की इकाई के रूप में कार्य करता है, लेकिन यह न तो मुद्रा है और न ही IMF पर दावा है।
    • मुद्राओं की SDR समूह में अमेरिकी डॉलर, यूरो, जापानी येन, पाउंड स्टर्लिंग और चीनी रॅन्मिन्बी (वर्ष 2016 से) शामिल हैं।

निष्कर्ष:  

राजकोषीय घाटे, मुद्रास्फीति दर और बैंकिंग गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को कम करने सहित तारापोर समिति की सिफारिशों (1997 और 2006 में) को रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में प्राथमिक कदम के रूप में अपनाया जाना चाहिये। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में रुपए को आधिकारिक मुद्रा बनाने के लिये प्रोत्साहित करने से इसका दायरा और स्वीकार्यता बढ़ेगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015)

(a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना
(b) रुपए के मूल्य को बाज़ार की शक्तियों द्वारा निर्धारित होने देना
(c) रुपए को अन्य मुद्राओं में और अन्य मुद्राओं को रुपए में परिवर्तित करने की स्वतंत्र रूप से अनुज्ञा प्रदान करना
(d) भारत में मुद्राओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार विकसित करना

उत्तर: (c)


प्रश्न. भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से किससे/किनसे चालू खाता बनता है? (2014)

  1. व्यापार संतुलन 
  2. विदेशी परिसंपत्तियाँ 
  3. अदृश्यों का संतुलन
  4.  विशेष आहरण अधिकार

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 1, 2 और 4

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

विश्व ज़ूनोसिस दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व ज़ूनोसिस दिवस, ज़ूनोटिक रोग, वन हेल्थ  

मेन्स के लिये:

वन हेल्थ अवधारणा एवं इसका महत्त्व, ज़ूनोटिक रोग और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव 

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के पशुपालन और डेयरी विभाग ने आज़ादी का अमृत महोत्सव पहल के हिस्से के रूप में विश्व ज़ूनोसिस दिवस (6 जुलाई, 2023) पर ज़ूनोटिक रोगों पर एक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया।

  • इस कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को ज़ूनोटिक रोग के जोखिमों एवं रोकथाम के लिये राष्ट्रीय प्रयासों के बारे में शिक्षित करना था। पशुओं के साथ निकट संपर्क के कारण किसानों को ज़ूनोटिक रोग होने का खतरा अधिक होता है।
  • ज़ूनोटिक रोग जोखिमों को संबोधित करने हेतु "वन हेल्थ" अवधारणा के महत्त्व पर बल दिया गया है। 

विश्व ज़ूनोसिस दिवस:

  • इतिहास: 
    • विश्व ज़ूनोसिस दिवस एक ज़ूनोटिक बीमारी के खिलाफ पहले टीकाकरण की वर्षगाँठ का प्रतीक है।
    • 6 जुलाई, 1885 को फ्राँसीसी वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने ज़ूनोटिक रोग का पहला टीका सफलतापूर्वक लगाया।
  • महत्त्व:  
    • विश्व ज़ूनोसिस दिवस लोगों को मानव और पशु स्वास्थ्य पर ज़ूनोटिक रोगों के जोखिमों और प्रभावों के बारे में शिक्षित करता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 60% ज्ञात संक्रामक रोग और 75% उभरते संक्रामक रोग ज़ूनोटिक हैं।

ज़ूनोटिक रोग:

  • परिचय: 
    • ज़ूनोटिक रोग वे बीमारियाँ हैं जो पशुओं  और मनुष्यों के बीच फैल सकती हैं। ये रोग बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या कवक के कारण हो सकते हैं।
  • वर्गीकरण: 
    • रोगजनकों पर आधारित: 
      • बैक्टीरियल ज़ूनोज़: ये रोग जीवाणु संक्रमण के कारण होते हैं जो पशुओं से मनुष्यों में फैल सकते हैं।
      • वायरल ज़ूनोज़: प्रसिद्ध वायरल ज़ूनोटिक  रोगों में रेबीज़, इबोला और कोविड-19 शामिल हैं।
      • परजीवी ज़ूनोज़: टोक्सोप्लासमोसिस और लीशमैनियासिस जैसे रोग इस श्रेणी में आते हैं।  
      • फंगल ज़ूनोज़: दाद जैसे ज़ूनोटिक फंगल संक्रमण, कवक के कारण होते हैं जो जानवरों से मनुष्यों में फैल सकते हैं।
    • पशु प्रजातियों पर आधारित:
      • वन्यजीव ज़ूनोज़: इन बीमारियों में मुख्य रूप से मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच परस्पर क्रिया शामिल होती है, जैसे कि कृन्तकों द्वारा प्रसारित हंतावायरस संक्रमण या जंगली पक्षियों द्वारा फैलने वाली बीमारियाँ, जैसे एवियन इन्फ्लूएंज़ा (Bird Flu)
      • घरेलू पशु ज़ूनोज़: मवेशियों से ब्रुसेलोसिस (Brucellosis )या बिल्लियों से होने वाला टोक्सोप्लासमोसिस (Toxoplasmosis) जैसे रोग इस श्रेणी में आते हैं।
    • ट्रांसमिशन के तरीके के आधार पर:
      • प्रत्यक्ष संपर्क ज़ूनोज़: संक्रमण जो संक्रमित जानवरों, उनके शरीर के तरल पदार्थ या दूषित सतहों के सीधे संपर्क से होता है।
        • उदाहरणों में जानवरों के काटने से फैलने वाला रेबीज़ और संक्रमित पशुओं के संपर्क से क्यू बुखार शामिल हैं।
      • सदिश-जनित ज़ूनोज़ : मच्छरों और किलनी जैसे वाहकों द्वारा फैलने वाले रोग।
        • उदाहरणतः किलनी से फैलने वाला लाइम रोग और मच्छरों से फैलने वाला डेंगू बुखार शामिल हैं।
      • जलजनित ज़ूनोज़: दूषित जल स्रोतों से लेप्टोस्पायरोसिस (Leptospirosis) जलजनित ज़ूनोटिक रोग का एक उदाहरण है।
  • ज़ूनोटिक रोगों का कारण:
    • ज़ूनोटिक रोगों का उद्भव और प्रसार कई कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें पर्यावरणीय परिवर्तन, वन्यजीव संपर्क, पशुधन कृषि  के तरीके और मानव व्यवहार शामिल हैं।
    • प्राकृतिक आवासों में अतिक्रमण, वन्यजीव व्यापार, अपर्याप्त खाद्य सुरक्षा उपाय और अनुचित स्वच्छता ज़ूनोटिक रोगों के संचरण में योगदान करते हैं।
  • रोकथाम रणनीतियाँ: 
    • ज़ूनोटिक  रोगों की रोकथाम और नियंत्रण हेतु बहुक्षेत्रीय सहयोग आवश्यक है।
    • "वन हेल्थ" दृष्टिकोण मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण क्षेत्रों के बीच सहयोग पर ज़ोर देता है।
    • ज़ूनोटिक रोगों की शीघ्र पहचान और निगरानी प्रणालियाँ प्रकोप एवं महामारी को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • हाथ धोने, खाद्य सुरक्षा उपायों और जानवरों की सुरक्षित देख-रेख जैसी स्वच्छता विधियों को बढ़ावा देने से संचरण के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।
    • जानवरों हेतु टीकाकरण कार्यक्रम, विशेष रूप से मनुष्यों के निकट संपर्क में रहने वाले जानवरों में ज़ूनोटिक रोगों को रोकने में प्रभावी हो सकते हैं।
    • ज़ूनोटिक रोगों और उनकी रोकथाम के बारे में सार्वजनिक जागरूकता तथा शिक्षा में सुधार करना ज़िम्मेदार व्यवहार को बढ़ावा देने एवं संचरण के जोखिम को कम करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।

ज़ूनोटिक रोगों से संबंधित भारत की पहल: 

  • राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP):
    • इसने दो प्रमुख ज़ूनोटिक रोगों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई: पैर और मुँह रोग (Foot & Mouth Disease- FMD) एवं ब्रुसेलोसिस।
  • मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ (MVU):
    • MVU को किसानों के दरवाज़े पर पशु चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करने हेतु शुरू किया गया है, जिसमें रोग निदान, उपचार, छोटी सर्जरी और रोगग्रस्त जानवरों के प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना शामिल है।
  • पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2023:
    • ये नियम जनसंख्या स्थिरीकरण के साधन के रूप में आवारा कुत्तों के रेबीज़ रोधी टीकाकरण और बधियाकरण पर केंद्रित हैं।
  • ज़ूनोज़ की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय वन हेल्थ कार्यक्रम:
    • यह अंतर-क्षेत्रीय समन्वय और सहयोग के माध्यम से ज़ूनोटिक रोगों का अनुवीक्षण, निदान, रोकथाम और नियंत्रण तंत्र को मज़बूत करने पर केंद्रित है।
  • टीकाकरण के प्रयास: 
    • भैंस, भेड़, बकरियों और सूअरों की आबादी में 100% FMD वैक्सीन कवरेज़ और साथ ही 4 से 8 महीने की उम्र के बीच के मादा गोजातीय बछड़ों में 100% ब्रुसेलोसिस टीकाकरण का लक्ष्य प्राप्त करना।

वन हेल्थ अवधारणा: 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में ‘सभी के लिये स्वास्थ्य’ को प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय सामुदायिक स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वाप्रेक्षा है। व्याख्या कीजिये।. (2018) 

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

ग्रामोद्योग विकास योजना तथा ग्रामोद्योग

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रामोद्योग विकास योजना (GYY), खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC), खादी विकास योजना (KVY)

मेन्स के लिये:

ग्रामीण विकास को बढ़ावा, ग्रामीण उद्योगों के विकास के लिये पहल, भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रामोद्योग का महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

दिल्ली के उपराज्यपाल ने 'ग्रामोद्योग विकास योजना' के तहत 130 लाभार्थियों को मधुमक्खी बक्से और टूलकिट वितरित किये। 

ग्रामोद्योग विकास योजना (GVY):

  • परिचय: 
  • उद्देश्य: 
    • GVY का लक्ष्य सामान्य सुविधाओं, प्रौद्योगिकी आधुनिकीकरण, प्रशिक्षण आदि के माध्यम से ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देना और विकसित करना है।
  • शामिल गतिविधियाँ: 
    • कृषि आधारित एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (ABFPI)
    • खनिज आधारित उद्योग (MBI)
    • कल्याण एवं सौंदर्य प्रसाधन उद्योग (WCI)
    • हस्तनिर्मित कागज, चमड़ा और प्लास्टिक उद्योग (HPLPI)
    • ग्रामीण इंजीनियरिंग और नई प्रौद्योगिकी उद्योग (RENTI)
    • सेवा उद्योग
  • घटक: 
    • अनुसंधान एवं विकास और उत्पाद नवाचार: अनुसंधान एवं विकास सहायता उन संस्थानों को दी जाती है जो उत्पाद विकास, नए नवाचार, डिज़ाइन विकास, उत्पाद विविधीकरण प्रक्रियाओं आदि को प्रोत्साहित करेगा।
    • क्षमता निर्माण: मौजूदा मास्टर डेवलपमेंट ट्रेनिंग सेंटर (MDTC) और उत्कृष्ट संस्थान मानव संसाधन विकास एवं कौशल प्रशिक्षण घटकों के हिस्से के रूप में कर्मचारियों तथा कारीगरों की क्षमता निर्माण को उजागर करते हैं।
    • विपणन और प्रचार: ग्राम संस्थान उत्पाद सूची, उद्योग निर्देशिका, बाज़ार अनुसंधान, नई विपणन तकनीक, खरीदार-विक्रेता बैठकें, प्रदर्शनियों की व्यवस्था आदि की तैयारी के माध्यम से बाज़ार समर्थन प्रदान करते हैं।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC):

  • KVIC खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
  • KVIC पर जहाँ भी आवश्यक हो, ग्रामीण विकास में लगी अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय में ग्रामीण क्षेत्रों में खादी और अन्य ग्राम उद्योगों के विकास हेतु कार्यक्रमों की योजना, प्रचार, संगठन तथा कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी है।
  • यह MSME मंत्रालय के तहत कार्य करता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में ग्रामोद्योग का महत्त्व 

  • रोज़गार सृजन: ग्रामोद्योग श्रम प्रधान होते हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के पर्याप्त अवसर प्रदान करते हैं। वे विशेषकर ग्रामीण आबादी के बीच बेरोज़गारी और अल्परोज़गार को कम करने में योगदान देते हैं। 
    • ये उद्योग कुशल, अर्द्ध-कुशल और अकुशल श्रमिकों सहित पर्याप्त कार्यबल को अवशोषित करते हैं
  • ग्रामीण विकास: ग्रामोद्योग,ग्रामीण क्षेत्रों के समग्र विकास में योगदान देते हैं। गाँवों में छोटे पैमाने के उद्यम स्थापित करके, वे स्थानीय आर्थिक गतिविधियों को बनाने, शहरी क्षेत्रों में प्रवासन को कम करने और शहरों में आबादी की सघनता को रोकने में मदद करते हैं।
  • गरीबी निर्मूलन: ग्रामोद्योग, ग्रामीण समुदायों के लिये आय उत्पन्न करके गरीबी उन्मूलन में योगदान करते हैं। वे उन लोगों के लिये आजीविका के विकल्प प्रदान करते हैं जिनकी औपचारिक रोज़गार के अवसरों तक सीमित पहुँच है, विशेष रूप से कृषि क्षेत्र  में।
    • उद्यमिता और स्व-रोज़गार को बढ़ावा देकर, ये उद्योग व्यक्तियों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार करने के लिये सशक्त बनाते हैं।
  • स्थानीय संसाधनों का उपयोग: ग्रामोद्योग आमतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध स्थानीय संसाधनों और कच्चे माल का उपयोग करते हैं। इससे सतत् विकास को बढ़ावा देने और बाह्य संसाधनों पर निर्भरता कम करने में मदद मिलती है।
    • यह स्थानीय रूप से उपलब्ध कौशल, पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक सामग्रियों के उपयोग को प्रोत्साहित करता है, इस प्रकार स्थानीय विरासत तथा संस्कृति को संरक्षित करता है।
  • निर्यात क्षमता: कई ग्रामीण उद्योग पारंपरिक शिल्प, हथकरघा, हस्तशिल्प और अन्य अद्वितीय उत्पादों का उत्पादन करते हैं जिनकी घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में उच्च मांग है।
    • इन उत्पादों के निर्यात से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है और देश की वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है। 

ग्रामोद्योग के विकास हेतु अन्य पहल

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में स्मार्ट नगर स्मार्ट गाँवों के बिना नहीं रह सकते हैं। ग्रामीण-नगरी एकीकरण की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। (2015) 

स्रोत: पी.आई.बी.


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