भारतीय अर्थव्यवस्था
रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण
- 28 Oct 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:RBI, रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण, मौद्रिक नीति मेन्स के लिये:रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण और संबंधित मुद्दे, विकास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के डिप्टी गवर्नर ने रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लाभों और ज़ोखिमों को रेखांकित किया।
रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण:
- रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत सीमा पार लेन-देन में स्थानीय मुद्रा के उपयोग को बढ़ावा देना शामिल है।
- इसमें आयात और निर्यात व्यापार के लिये रुपए को बढ़ावा देना और अन्य चालू खाता लेन-देन के साथ-साथ पूंजी खाता लेन-देन में इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना शामिल है।
- जहाँ तक रुपए का सवाल है, यह पूंजी खाते में आंशिक रूप से जबकि चालू खाते में पूरी तरह से परिवर्तनीय है।
- चालू और पूंजी खाता भुगतान संतुलन के दो घटक हैं। पूंजी खाते में ऋण एवं निवेश के माध्यम से पूंजी की सीमा पार आवाजाही होती है तथा चालू खाता मुख्य रूप से वस्तुओं व सेवाओं के आयात और निर्यात से संबंधित होता है।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण की आवश्यकता क्यों?
- डॉलर का वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार के कारोबार में 88.3% हिस्सा है, इसके बाद यूरो, जापानी येन और पाउंड स्टर्लिंग का स्थान आता है; चूँकि रुपए की हिस्सेदारी मात्र 1.7% है, अतः यह स्पष्ट है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुद्रा को बढ़ावा देने के लिये इस दिशा में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
- डॉलर, जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है, 'अत्यधिक' विशेषाधिकारों के अंतर्गत भुगतान संतुलन संकट से प्रतिरक्षा प्रदान करता है क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका अपने विदेशी घाटे को अपनी मुद्रा के साथ कवर कर सकता है।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के विभिन्न लाभ:
- सीमा पार लेनदेन में रुपए का उपयोग भारतीय व्यापार के लिये मुद्रा जोखिम को कम करता है। मुद्रा की अस्थिरता से सुरक्षा न केवल व्यापार की लागत को कम करती है, बल्कि यह व्यापार के बेहतर विकास को भी सक्षम बनाती है, जिससे भारतीय व्यापार के विश्व स्तर पर बढ़ने की संभावना में सुधार होता है।
- यह विदेशी मुद्रा भंडार रखने की आवश्यकता को कम करता है। जबकि भंडार विनिमय दर की अस्थिरता को प्रबंधित करने और बाहरी स्थिरता को बनाए रखने में मदद करता है, यह अर्थव्यवस्था पर एक लागत आरोपित करता हैं।
- विदेशी मुद्रा पर निर्भरता को कम करने से भारत बाहरी जोखिमों के प्रति कम संवेदनशील हो जाता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका में मौद्रिक नीति सख्त होने और डॉलर को मज़बूत करने के चरणों के दौरान, घरेलू व्यापार की अत्यधिक विदेशी मुद्रा देनदारियों के परिणामस्वरूप वास्तविक घरेलू अर्थव्यवस्था मज़बूत होती है। मुद्रा जोखिम के कम होने से पूंजी प्रवाह के उत्क्रमण को काफी हद तक कम किया जा सकेगा।
- जैसे-जैसे रुपए का उपयोग महत्त्वपूर्ण होता जाएगा, भारतीय व्यापार की सौदेबाज़ी की शक्ति भारतीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने, भारत के वैश्विक कद और सम्मान को बढ़ाने में मदद करेगी।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण में चुनौतियाँ:
- भारत एक पूंजी की कमी वाला देश है इसलिये इसके विकास हेतु विदेशी पूंजी की आवश्यकता है। यदि इसके व्यापार का एक बड़ा हिस्सा रुपए में होगा तो अनिवासियों के पास भारतीय रुपए की शेष राशि होगी जिसका उपयोग भारतीय संपत्ति हासिल करने के लिये किया जाएगा। ऐसी वित्तीय आस्तियों की बड़ी होल्डिंग बाहरी जोखिमों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ा सकती है, जिसके प्रबंधन के लिये अधिक प्रभावी नीतिगत साधनों की आवश्यकता होगी।
- बाहरी लेन-देन में परिवर्तनीय मुद्राओं की कम भूमिका से आरक्षित निधि में कमी आ सकती है। हालाँकि भंडार की आवश्यकता भी उस सीमा तक कम हो जाएगी जिस सीमा तक व्यापार घाटे को रुपए में वित्तपोषित किया जाता है।
- रुपए की अनिवासी होल्डिंग घरेलू वित्तीय बाज़ारों में बाहरी प्रोत्साहन के पास-थ्रू को बढ़ा सकती है, जिससे अस्थिरता बढ़ सकती है। उदाहरण के लिये वैश्विक रूप से कम जोखिम अनिवासियों को अपनी रुपए होल्डिंग्स को परिवर्तित करने और भारत से बाहर भेजने के लिये प्रेरित कर सकता है।
रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये उठाए गए कदम:
- जुलाई 2022 में RBI ने रुपए में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार प्रोत्साहन प्रणाली शुरु की।
- रुपए में बाह्य वाणिज्यिक उधार की सुविधा प्रदान करना (विशेषकर मसाला बांड के संदर्भ में)।
- एशियाई क्लीयरिंग यूनियन, सेटलमेंट के लिये घरेलू मुद्राओं का उपयोग करने की एक योजना के लिये प्रयासरत है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें द्विपक्षीय या व्यापारिक संदर्भ में प्रत्येक देश के आयातकों को घरेलू मुद्रा में भुगतान करने का विकल्प होता है, सभी देशों के इसके पक्ष में होने की संभावना के चलते यह महत्त्वपूर्ण है।
आगे की राह
- रुपए में भुगतान की हालिया पहल एक अलग वैश्विक आवश्यकता और व्यवस्था से संबंधित है लेकिन वास्तविक अंतर्राष्ट्रीयकरण तथा विदेशों में रुपए के व्यापक उपयोग के लिये केवल रुपए में व्यापार समझौता करना पर्याप्त नहीं होगा। भारत व विदेशी बाजारों दोनों में विभिन्न वित्तीय साधनों के संदर्भ में रुपए के और उदारीकृत भुगतान एवं निपटान को अपनाना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
- रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये एक कुशल स्वैप बाज़ार और एक मज़बूत विदेशी मुद्रा बाज़ार की भी आवश्यकता हो सकती है।
- समग्र आर्थिक बुनियादी आयामों में सुधार और वित्तीय क्षेत्र की मज़बूती के साथ सॉवरेन रेटिंग में वृद्धि से भी रुपए की स्वीकार्यता को मज़बूती मिलेगी जिससे इस मुद्रा के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा मिलेगा।
विगत वर्षों के प्रश्नप्र. रुपए की परिवर्तनीयता से क्या तात्पर्य है? (2015) (a) रुपए के नोटों के बदले सोना प्राप्त करना उत्तर: (c) प्र.भुगतान संतुलन के संदर्भ में निम्नलिखित में से किससे/किनसे चालू खाता बनता है? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) |