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डेली न्यूज़

  • 04 Oct, 2024
  • 70 min read
शासन व्यवस्था

खाद्य भोजनालयों के संबंध में राज्य विनियमन

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य मिलावट, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI), अनुच्छेद 15, अनुच्छेद 17,  अनुच्छेद 19, भारी धातुएँ, आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थ, जैविक खाद्य पदार्थ। 

मेन्स के लिये:

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, भारत में खाद्य सुरक्षा को मज़बूत बनाना

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, उत्तर प्रदेश (UP) सरकार ने सभी खाद्य दुकानों पर संचालकों, मालिकों, प्रबंधकों और अन्य संबंधित कर्मियों के नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करने को अनिवार्य कर दिया है।

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने नवीनतम आदेशों के लिये खाद्य पदार्थों में मिलावट की घटनाओं की रिपोर्टों का हवाला दिया है, जैसे कि खाद्य पदार्थों का मानव अपशिष्ट या अन्य अखाद्य पदार्थों से संदूषित होना।

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 (FSSA) के अंतर्गत मौजूदा खाद्य सुरक्षा आवश्यकताएँ क्या हैं?

  • पंजीकरण या लाइसेंस: FSSA के अंतर्गत, खाद्य व्यवसाय संचालकों को भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) से पंजीकरण कराना या लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक है।
    • पंजीकरण प्रमाणपत्र या लाइसेंस, जिसमें मालिक की पहचान और प्रतिष्ठान का स्थान दर्शाया गया हो, परिसर में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिये।
  • बिना लाइसेंस के दंड: FSSA की धारा 63 के तहत, बिना लाइसेंस के खाद्य व्यवसाय करने वाले किसी भी संचालक को छह महीने तक की जेल और 5 लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
    • यह प्रावधान उचित लाइसेंसिंग और सूचना के प्रदर्शन के महत्त्व पर बल देता है।
  • FSSA विनियमों का गैर-अनुपालन: यदि कोई खाद्य व्यवसाय संचालक FSSA के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, तो उसे धारा 31 के अंतर्गत ‘इम्प्रूवमेंट नोटिस' प्राप्त हो सकता है।
    • यदि ऑपरेटर, नोटिस के अनुपालन में विफल रहता है, तो उसका लाइसेंस निलंबित या रद्द किया जा सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, धारा 58 में ऐसे उल्लंघनों के लिये 2 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है, जिनके लिये कोई विशिष्ट दंड निर्धारित नहीं है।

FSSA के अंतर्गत नियम बनाने की राज्य सरकारों की शक्तियाँ क्या हैं?

  • राज्य प्राधिकरण: FSSA की धारा 94 राज्य सरकारों को FSSAI की पूर्व स्वीकृति से नियम बनाने की अनुमति प्रदान करती है।
  • अतिरिक्त कार्यों का आवंटन: राज्य सरकारें FSSA की  धारा 30 के तहत नियुक्त खाद्य सुरक्षा आयुक्त को अतिरिक्त कार्य और कर्त्तव्य निर्धारित कर सकती हैं।
    • इसमें राज्य के अधिकार क्षेत्र में  खाद्य सुरक्षा से संबंधित मामलों पर नियम बनाना शामिल है, जो केंद्र सरकार की निगरानी के अधीन होगा।
  • राज्यों द्वारा नियम बनाने की प्रक्रिया: FSSA की धारा 94(3) के अनुसार राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए किसी भी नियम को राज्य विधानमंडल द्वारा प्रकाशित और अनुमोदित किया जाना चाहिये।

ऐसे आदेशों पर सर्वोच्च न्यायालय का क्या रुख है?

  • सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करते हुए वर्ष 2024 की कांवड़ यात्रा के लिये उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पुलिस द्वारा जारी किये गए इसी तरह के आदेशों पर रोक लगा दी, जिसमें खाद्य विक्रेताओं को अपनी पहचान प्रदर्शित करना अनिवार्य था। 
  • हालाँकि न्यायालय ने फैसला सुनाया कि खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम (FSSA) एक "सक्षम प्राधिकारी" को ऐसे आदेश जारी करने की अनुमति दे सकता है, लेकिन पुलिस इस शक्ति का दुरुपयोग नहीं कर सकती।

राज्य सरकार के ऐसे आदेशों को न्यायालय में चुनौती क्यों दी जाती है?

  • अनुच्छेद 15 का उल्लंघन: आलोचकों का तर्क है कि ऐसे आदेश व्यक्तियों को अपनी धार्मिक और जातिगत पहचान प्रकट करने के लिये मज़बूर करते हैं तथा धर्म एवं जाति के आधार पर व्यक्तियों के साथ भेदभाव करते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन है।
    • अनुच्छेद 15(1) में कहा गया है कि राज्य किसी भी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।”
  • अनुच्छेद 17 का उल्लंघन: यह अप्रत्यक्ष रूप से अस्पृश्यता की प्रथा का समर्थन कर सकता है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 17 के तहत समाप्त और निषिद्ध किया गया था।
  • अनुच्छेद 19 का उल्लंघन: आलोचकों का तर्क है कि यह आदेश विशिष्ट समुदाय के पूर्ण आर्थिक बहिष्कार के लिये स्थितियाँ उत्पन्न करता है और अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत किसी भी प्रकार का व्यवसाय करने का अधिकार का उल्लंघन करता है।

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खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006  के तहत खाद्य मिलावट को रोकने के लिये सामान्य प्रावधान क्या हैं?

  • खाद्य योज्यों का उपयोग- किसी खाद्य पदार्थ में कोई खाद्य योज्यक या प्रसंस्करण सहाय्य तब तक अंतर्विष्ट नहीं होगा, जब तक कि वह इस अधिनियम और इसके अधीन बनाए गए विनियमों के उपबंधों के अनुसार न हो।
  • विषैले पदार्थ और भारी धातुएँ- किसी खाद्य पदार्थ में ऐसी मात्रा से (जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए) अधिक मात्रा में संदूषक, प्राकृतिक रूप से व्युत्पन्न होने वाले विषैले पदार्थ, टाक्सिन्स या हार्मोन या भारी धातु नहीं होगी।
  • कीटनाशक, पशु चिकित्सीय औषधि अवशिष्ट- किसी खाद्य पदार्थ में उतनी सहाय्य सीमा से (जो विनियमों द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए) अधिक कीटनाशक, पशु चिकित्सीय औषध अवशिष्ट, प्रतिजैविक अवशिष्ट, विलय अवशिष्ट, भेषजीय रूप से सक्रिय पदार्थ और सूक्ष्मजीव काउंट अतंर्विष्ट नहीं होंगे।
    • कीटनाशी अधिनियम, 1968 के अधीन रजिस्ट्रीकृत और अनुमोदित धूमकों को छोड़कर किसी कीटनाशी का प्रयोग किसी खाद्य पदार्थ पर प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जाएगा।
  • आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थ -इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए विनियमों में जैसा उपंबधित है उसके सिवाय, कोई व्यक्ति कोई आदर्श खाद्य, आनुवंशिक रूप से संशोधित खाद्य पदार्थ, विकिरणित खाद्य, जैविक खाद्य, विशेष आहार उपयोगों के खाद्य, फलीय कृतकारी खाद्य, पोषणीय, स्वास्थ्यपूरक तत्त्व, निजस्वमूलक खाद्य और इसी प्रकार के अन्य खाद्य पदार्थों का विनिर्माण, वितरण, विक्रय या आयात नहीं करेगा।
  • पैकेजिंग और लेबलिंग: खाद्य उत्पादों की निर्दिष्ट विनियमों के अनुसार पैकेजिंग और लेबलिंग की जानी चाहिये।
    • परंतु लेबलों पर ऐसा कोई कथन, दावा, डिज़ाइन या युक्ति अंतर्विष्ट नहीं होगी जो पैकेज में अंतर्विष्ट खाद्य उत्पाद के संबंध में किसी विशिष्टि में मिथ्या या भ्रामक हो।
  • अनुचित व्यापार व्यवहार- किसी ऐसे खाद्य का कोई ऐसा विज्ञापन नहीं दिया जाएगा जो भ्रामक या प्रवंचनापूर्ण हो या इस अधिनियम और उसके अधीन बनाए गए नियमों और विनियमों के उपबंधों का उल्लंघन करने वाला हो।

भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण क्या है?

  • परिचय: FSSAI खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित एक स्वायत्त वैधानिक निकाय है।
    • वर्ष 2006 के अधिनियम में खाद्य पदार्थों से संबंधित विभिन्न कानून शामिल हैं, जैसे कि खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973 आदि।
  • FSSAI के कार्य: FSSAI स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन कार्य करते हुए भारत में खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता को विनियमित करके लोक स्वास्थ्य की रक्षा और संवर्द्धन के लिये ज़िम्मेदार है।
    • परिणामस्वरूप, FSSAI की स्थापना वर्ष 2008 में की गई लेकिन खाद्य प्राधिकरण के अंतर्गत इसका कार्य वर्ष 2011 से शुरू हुआ, जब इसके नियम और प्रमुख विनियमन अधिसूचित किये गए।
  • FSSAI की शक्तियाँ:
    • खाद्य उत्पादों और योजकों के लिये विनियमों तथा मानकों का निर्धारण।
    • खाद्य व्यवसायों को लाइसेंस और रजिस्ट्रीकरण प्रदान करना।
    • खाद्य सुरक्षा कानूनों और विनियमों का प्रवर्तन।
    • खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता की निगरानी तथा पर्यवेक्षण।
    • खाद्य सुरक्षा मुद्दों पर जोखिम मूल्यांकन और वैज्ञानिक अनुसंधान का संचालन करना।
    • खाद्य सुरक्षा और स्वच्छता पर प्रशिक्षण तथा जागरूकता बढ़ाना।
    • खाद्य सुदृढ़ीकरण और जैविक खाद्य पदार्थों को प्रोत्साहन
    • खाद्य सुरक्षा मामलों पर अन्य एजेंसियों और हितधारकों के साथ समन्वय करना।
  • FSSAI की संरचना: FSSAI में एक अध्यक्ष और 22 सदस्य होते हैं, जिनमें से एक तिहाई महिलाएँ होती हैं।
    • FSSAI के अध्यक्ष एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। 
    • इसके अध्यक्ष, भारत सरकार के सचिव के स्तर के होते हैं।
  • FSSAI की पहल: 

निष्कर्ष:

खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (FSSA) के प्रावधान राज्य सरकारों को राष्ट्रीय मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करते हुए खाद्य सुरक्षा को प्रभावी ढंग से विनियमित करने का अधिकार देते हैं। खाद्य योजकों, संदूषकों और विज्ञापन प्रथाओं पर नियम निर्धारित करके, FSSA का उद्देश्य उपभोक्ता स्वास्थ्य की रक्षा करने के साथ खाद्य उद्योग में पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने के लिये खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम (FSSA) के तहत मौजूदा प्रावधानों का परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण की रोकथाम (प्रिवेंशन ऑफ़ फूड एडल्टरेशन) अधिनियम, 1954 को प्रतिस्थापित किया।

 भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (फूड सेफ्टी एण्ड स्टैण्डर्ड्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया) (एफ.एस.एस.ए.आई.) केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के प्रभार में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

मेन्स: 

प्रश्न. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिये भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों के बारे में विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये। (2021)


शासन व्यवस्था

मंदिरों पर राज्य का नियंत्रण

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

धार्मिक स्वतंत्रता, मूल अधिकार,  अनुच्छेद 25

मुख्य परीक्षा के लिये:

पूजा स्थलों पर राज्य नियंत्रण संबंधी मुद्दे, मंदिर प्रशासन में पारदर्शिता और जवाबदेहिता, सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर में चढ़ाए जाने वाले पवित्र प्रसाद के रूप में तिरुपति लड्डू को लेकर हाल ही में हुए विवाद से हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के मुद्दे पर प्रकाश पड़ा है। 

  • लड्डुओं में मिलावटी घी पाए जाने के बाद इन मंदिरों को सरकारी हस्तक्षेप से मुक्त करने की मांग फिर से उठने लगी है।

तिरुमाला वेंकटेश्वर (तिरुपति बालाजी) मंदिर

  • यह तिरुमाला, आंध्र प्रदेश में वेंकट पहाड़ी पर स्थित है, जो तिरुमाला पहाड़ियों की सात पहाड़ियों (सप्तगिरि) में से एक है।
  • यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान वेंकटेश्वर को समर्पित है।
  • इस मंदिर का इतिहास समृद्ध है जिसमें पल्लव, चोल और विजयनगर शासकों सहित विभिन्न दक्षिण भारतीय राजवंशों का प्रमुख योगदान रहा है।
    • इसमें पारंपरिक दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला है जिसमें ऊँचा गोपुरम (प्रवेश द्वार) और जटिल नक्काशी है।
  • इस मंदिर की एक उल्लेखनीय प्रथा यह है कि भक्तगण बाल दान करते हैं।

भारत में पूजा स्थलों का प्रबंधन कैसे किया जाता है?

  • हिंदू मंदिर:
    • सरकारी नियंत्रण: अधिकांश हिंदू मंदिरों का प्रबंधन राज्य के नियमों के तहत किया जाता है, कई राज्यों ने ऐसे कानून बनाए हैं जो मंदिर प्रशासन पर सरकार को अधिकार प्रदान करते हैं। 
      • उदाहरण के लिये, तमिलनाडु का हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) विभाग मंदिर प्रबंधन की देखरेख करता है जिसमें वित्त और मंदिर प्रमुखों की नियुक्तियाँ शामिल हैं।
      • आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा तिरुपति मंदिर के प्रबंधन हेतु उत्तरदायी, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के प्रमुख की नियुक्ति की जाती है।
    • आय का उपयोग: प्रमुख मंदिरों से प्राप्त राजस्व को अक्सर छोटे मंदिरों और सामाजिक कल्याण पहलों जैसे अस्पतालों, अनाथालयों और शैक्षणिक संस्थानों के रखरखाव हेतु आवंटित किया जाता है।
    • विधिक ढाँचा: राज्य को हस्तक्षेप की शक्ति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25(2) से प्राप्त होती है जिससे जवाबदेही सुनिश्चित करने के क्रम में धार्मिक प्रथाओं से संबंधित आर्थिक तथा सामाजिक गतिविधियों के विनियमन की अनुमति मिलती है।
      • भारत में लगभग 30 लाख पूजा स्थलों में से अधिकांश हिन्दू मंदिर हैं (जनगणना 2011)
  • मुस्लिम और ईसाई पूजा स्थल: 
    • सामुदायिक प्रबंधन: मुस्लिम और ईसाई पूजा स्थलों की देखरेख आमतौर पर समुदाय-आधारित बोर्डों या ट्रस्टों द्वारा की जाती है, जो सरकारी नियंत्रण से स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं, जिससे विकेन्द्रीकृत प्रबंधन दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलता है।
  • सिख, जैन और बौद्ध मंदिर:
    • सिख, जैन और बौद्ध मंदिरों का प्रबंधन राज्य स्तर पर सरकारी विनियमन के विभिन्न स्तरों के अधीन है, जबकि सामुदायिक भागीदारी की इनके प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका है।
  • राज्य विधान और हस्तक्षेप:
    • धार्मिक बंदोबस्त और संस्थाओं को संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में सूचीबद्ध किया गया है जिससे केंद्र और राज्य दोनों को इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार है। इससे राज्यों में अलग-अलग विनियामक ढाँचे बन गए हैं।
    • कुछ राज्यों जैसे जम्मू और कश्मीर ने श्री माता वैष्णो देवी श्राइन अधिनियम, 1988 के तहत व्यक्तिगत मंदिरों के लिये विशिष्ट कानून बनाए हैं, जो उनके प्रशासन एवं वित्तपोषण की रूपरेखा तैयार करते हैं।

मंदिरों के संबंध में राज्य विनियमन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि क्या है?

  • औपनिवेशिक कानून: वर्ष 1810 और 1817 के बीच ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, मद्रास और बॉम्बे में कानून बनाए, जिससे आय के दुरुपयोग को रोकने के लिये मंदिर प्रशासन में हस्तक्षेप की अनुमति मिल गई।
  • धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम (1863): ब्रिटिश सरकार के इस अधिनियम का उद्देश्य मंदिर के नियंत्रण को समितियों को हस्तांतरित करके मंदिर प्रबंधन को धर्मनिरपेक्ष बनाना था लेकिन नागरिक प्रक्रिया संहिता और धर्मार्थ तथा धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम (1920) जैसे विधिक ढाँचों के माध्यम से सरकारी प्रभाव को बनाए रखा गया।
  • मद्रास हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती अधिनियम (1925): इसके तहत हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती बोर्ड की स्थापना की गई, जो एक वैधानिक निकाय था। इसके साथ ही प्रांतीय सरकारों को मंदिर के मामलों पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया, जिसमें आयुक्तों के एक बोर्ड को निरीक्षण की अनुमति दी गई।
  • स्वतंत्रता के बाद:
  • लगभग उसी समय धार्मिक संस्थाओं को विनियमित करने के लिये बिहार में बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 पारित किया गया।

धार्मिक मामलों में राज्य के विनियमन से संबंधित संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 25: 
    • अनुच्छेद 25(1) लोगों को अपने धर्म का पालन, प्रचार और प्रसार करने की स्वतंत्रता देता है जो लोक व्यवस्था, नैतिकता तथा स्वास्थ्य के अधीन है। 
    • अनुच्छेद 25(2) राज्य को धार्मिक प्रथाओं से जुड़ी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित करने और सामाजिक कल्याण, सुधार के साथ हिंदू धार्मिक संस्थानों को हिंदुओं के सभी वर्गों के लिये खोलने के लिये कानून बनाने की अनुमति देता है।
      • इसलिये धार्मिक आचरण के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करने का मुद्दा, पूजा तक पहुँच प्रदान करने से अलग है।
  • धार्मिक मामलों में राज्य के विनियमन से संबंधित न्यायिक उदाहरण:
    • शिरूर मठ बनाम आयुक्त, हिंदू धार्मिक बंदोबस्ती, मद्रास मामला, 1954: भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने फैसला दिया कि धार्मिक संस्थाओं को अनुच्छेद 26 (D) के तहत स्वतंत्र रूप से अपने मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार है जब तक कि वे लोक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य के विपरीत नहीं होते हैं। 
      • हालांकि, राज्य धार्मिक या धर्मार्थ संस्थाओं के प्रशासन को विनियमित कर सकता है। इस मामले से भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा के क्रम में महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम हुई।
    • रतिलाल पानाचंद गांधी बनाम बॉम्बे राज्य मामला, 1954: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि धार्मिक प्रथाएँ भी धार्मिक आस्था या सिद्धांतों की तरह ही धर्म का हिस्सा हैं लेकिन यह संरक्षण केवल धर्म के आवश्यक एवं अभिन्न अंगों तक ही सीमित है।
    • पन्नालाल बंसीलाल पित्ती बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामला, 1996: सर्वोच्च न्यायालय ने मंदिर प्रबंधन पर वंशानुगत अधिकारों को समाप्त करने वाले कानून को बरकरार रखा और इस तर्क को खारिज कर दिया कि ऐसे कानून सभी धर्मों पर समान रूप से लागू होने चाहिये।
    • स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामला, 1977:  सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि अनुच्छेद 25 के तहत धर्म का प्रचार करने के अधिकार में जबरन धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है। इस फैसले ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों की वैधता को बरकरार रखा।

मंदिर को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग

  • RSS द्वारा प्रारंभिक प्रस्ताव (1959): राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपना पहला प्रस्ताव पारित किया जिसमें मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की मांग की गई, जिसमें धार्मिक संस्थानों के स्व-प्रबंधन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • काशी विश्वनाथ मंदिर मामला (1959): अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS) ने उत्तर प्रदेश सरकार से काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रबंधन हिंदुओं को वापस करने का आग्रह किया तथा धार्मिक मामलों पर राज्य के एकाधिकार की आलोचना की।
  • हालिया घटनाक्रम (2023): मध्य प्रदेश सरकार ने मंदिरों पर राज्य की निगरानी में ढील देने के लिये कदम उठाए हैं जो धार्मिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण के पुनर्मूल्यांकन की बढ़ती प्रवृत्ति का संकेत है।

पूजा स्थलों पर राज्य के नियंत्रण के पक्ष और विपक्ष में क्या तर्क हैं?

  • राज्य के नियंत्रण के पक्ष में तर्क:
    • कुप्रबंधन को रोकना: सरकारी नियंत्रण से मंदिर के धन के प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित होने के साथ इसके दुरुपयोग में कमी आती है।
    • सभी जातियों को प्रवेश: राज्य पर्यवेक्षण से सामाजिक सुधारों को लागू करने में मदद मिलती है, जैसे सभी जातियों के लोगों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश की अनुमति देना।
    • कल्याणकारी गतिविधियाँ: बड़े मंदिर, अस्पतालों और स्कूलों जैसी कल्याणकारी गतिविधियों के लिये धन मुहैया कराते हैं। सरकारी निगरानी से सुनिश्चित होता है कि इन निधियों का उपयोग सार्वजनिक भलाई के लिये किया जाए।
    • व्यावसायीकरण से संरक्षण: राज्य द्वारा मंदिरों को निहित स्वार्थों से होने वाले शोषण से बचाया जा सकता है।
  • राज्य नियंत्रण के विरुद्ध तर्क:
    • धार्मिक स्वतंत्रता: संविधान का अनुच्छेद 26 धार्मिक संप्रदायों को अपने मामलों का प्रबंधन स्वयं करने के अधिकार की गारंटी देता है और राज्य का अत्यधिक हस्तक्षेप इस अधिकार का उल्लंघन माना जाता है।
    • राजनीतिक हस्तक्षेप: मंदिरों पर राज्य नियंत्रण के परिणामस्वरूप अक्सर राजनीतिक हस्तक्षेप होता है, मंदिर के संसाधनों में हेराफेरी की जाती है और धन का गैर-धार्मिक उद्देश्यों में उपयोग किया जाता है।
    • भेदभावपूर्ण: हिंदू मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण को भेदभावपूर्ण माना जाता है, क्योंकि अन्य धार्मिक पूजा स्थलों पर समान नियंत्रण नहीं लगाया जाता है।
    • सांस्कृतिक स्वायत्तता: मंदिर सांस्कृतिक केंद्र हैं और उनका प्रबंधन स्थानीय समुदाय के हितों (न कि राज्य के) में होना चाहिये

आगे की राह:

  • धार्मिक और प्रशासनिक क्षेत्रों का पृथक्करण: प्रभावी शासन सुनिश्चित करने के लिये धार्मिक कार्यों और धर्मनिरपेक्ष प्रशासनिक कार्यों के बीच स्पष्ट रेखा खींचना आवश्यक है।
  • सुशासन सिद्धांत: राज्य के अधिकारियों से मिलकर एक राज्य स्तरीय मंदिर प्रशासन बोर्ड का गठन किया जा सकता है, जो मंदिर प्रबंधन समिति (TMC) और स्थानीय मंदिर स्तरीय ट्रस्टों के साथ मिलकर कार्य करेगा, जिसमें पुजारी एवं समुदाय के सदस्य शामिल होंगे, ताकि विभिन्न प्रशासनिक कार्यों की देखरेख की जा सके। 
    • हिंदू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट एक्ट, 1991 में भी ऐसे मंदिर प्रशासन बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है।
  • विशेष प्रयोजन वाहन (SPV): सभी मंदिरों के लिये विकास पहलों को संभालने के लिये एक मंदिर विकास और संवर्द्धन निगम (TDC) बनाया जाना चाहिये, जिसमें पर्यटन, मंदिर नेटवर्किंग, अनुसंधान संवर्द्धन, आईटी संवर्द्धन, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना: केरल में देवास्वोम मॉडल, जो जवाबदेही और पारदर्शिता पर ज़ोर देता है, मंदिर प्रबंधन में भ्रष्टाचार को कम करने के लिये एक प्रभावी ढाँचे के रूप में कार्य करता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में पूजा स्थलों पर राज्य के नियंत्रण का धार्मिक स्वतंत्रता, धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन पर पड़ने वाले प्रभाव का परिक्षण कीजिये। संवैधानिक और कानूनी दृष्टिकोण से चर्चा कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

Q. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? चर्चा कीजिये। (2016)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इज़राइल-ईरान संघर्ष के निहितार्थ

प्रारंभिक परीक्षा:

लाल सागर, स्वेज़ नहर, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, G-20, बेल्ट एंड रोड पहल, मुद्रास्फीति, भारतीय शेयर बाज़ार, पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, ओपेक+, संयुक्त राष्ट्र

मुख्य परीक्षा:

इज़रायल और ईरान संघर्ष, इज़रायल-ईरान संघर्ष के निहितार्थ, देशों की नीतियों और राजनीति का भारतीय हितों पर प्रभाव

स्रोत: बिजनेस स्टैण्डर्ड

चर्चा में क्यों? 

इजराइल और ईरान के बीच संघर्ष एक अस्थिर दौर में प्रवेश कर चुका है, जिससे विभिन्न क्षेत्रों, मूलतः व्यापार और अर्थव्यवस्था में चिंताएँ बढ़ गई हैं। जैसे-जैसे तनाव बढ़ रहा है, वैश्विक बाज़ार में उभरते अभिकर्त्ता भारत के लिये व्यापारिक निहितार्थ के रूप में तेजी से महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं। 

इज़राइल-ईरान संघर्ष का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • व्यापार मार्गों में व्यवधान: इस संघर्ष ने यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका और पश्चिम एशिया के साथ भारत के व्यापार के लिये महत्त्वपूर्ण प्रमुख शिपिंग मार्गों पर व्यवधान के जोखिम को बढ़ा दिया है। 
    • लाल सागर और स्वेज़ नहर मार्ग विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि वे प्रतिवर्ष 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य के माल के आवागमन में सहायक होते हैं।
    • इस अस्थिरता से न केवल नौवहन मार्गों को खतरा है, बल्कि समुद्री व्यापार की समग्र सुरक्षा को भी खतरा है।
  • निर्यात पर आर्थिक प्रभाव: संघर्ष के बढ़ने से भारतीय निर्यात पर असर पड़ना आरंभ हो गया है। उदाहरण के लिये अगस्त 2024 में निर्यात में 9% की गिरावट देखी गई, जिसका मुख्य कारण लाल सागर में संकट के कारण पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात में 38% की भारी गिरावट है।
    • ये निर्यात भारत के व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है तथा कुल पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात का 21% यूरोप को प्राप्त होता है।
    • मूलतः चाय उद्योग में कमज़ोरी देखी गई है। ईरान भारतीय चाय के सबसे बड़े आयातकों में से एक है (भारत का निर्यात वर्ष 2024 की शुरुआत में 4.91 मिलियन किलोग्राम तक पहुँच जाएगा), इसलिये शिपमेंट पर संघर्ष के प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हुई हैं।
  • बढ़ती शिपिंग लागत: संघर्ष-संबंधी परिवर्तन के कारण शिपिंग मार्ग लंबे हो जाने से लागत में 15-20% की वृद्धि हुई है। 
    • शिपिंग दरों में इस उछाल से भारतीय निर्यातकों के लाभ मार्जिन पर असर पड़ा है, विशेष रूप से निम्न-स्तरीय इंजीनियरिंग उत्पादों, वस्त्रों और परिधानों का व्यापार करने वाले निर्यातकों के लिये जो माल ढुलाई लागत के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
    • निर्यातकों ने बताया है कि बढ़ती लॉजिस्टिक्स लागत उनके समग्र लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे उन्हें मूल्य निर्धारण रणनीतियों और परिचालन दक्षताओं पर पुनर्विचार करने के लिये बाध्य होना पड़ सकता है।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC): भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान भारत, खाड़ी और यूरोप को जोड़ने वाला एक कुशल व्यापार मार्ग बनाने के लिये IMEC का उद्देश्य स्वेज़ नहर पर निर्भरता को कम करना है, साथ ही चीन की बेल्ट एंड रोड पहल का सामना करना है।
    • हालाँकि, जारी संघर्ष से इस गलियारे की प्रगति और व्यवहार्यता को खतरा है, जिससे भारत और उसके साझेदारों के बीच द्विपक्षीय व्यापार के साथ-साथ क्षेत्रीय आर्थिक गतिशीलता पर भी असर पड़ रहा है।
  • कच्चे तेल की कीमतों पर असर: चल रहे संघर्ष के कारण वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आया है, ब्रेंट क्रूड 75 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुँच गया है। चूँकि ईरान एक प्रमुख तेल उत्पादक है, इसलिये किसी भी सैन्य वृद्धि से तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे कीमतें और भी बढ़ सकती हैं।
  • भारतीय बाज़ारों पर प्रभाव: भारत तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर है (इसकी 80% से अधिक तेल की ज़रूरतों की पूर्ति विदेशों से होती है), जिससे यह कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाता है। तेल की कीमतों में निरंतर वृद्धि से निवेशकों का ध्यान भारतीय इक्विटी से हटकर बॉन्ड या सोने जैसी सुरक्षित परिसंपत्तियों की ओर जा सकता है।
    • भारतीय शेयर बाज़ार पर इसका प्रभाव पहले ही पड़ चुका है, तथा लंबे समय तक संघर्ष चलने की आशंका के बीच सेंसेक्स और निफ्टी जैसे प्रमुख सूचकांक गिरावट के साथ खुले।
  • सुरक्षित परिसंपत्ति के रूप में सोना: भू-राजनीतिक तनाव और निवेश रणनीतियों में बदलाव के कारण सोने की कीमतें नई ऊँचाइयों पर पहुँच गई हैं।
    • अनिश्चितता के समय में निवेशक प्रायः सुरक्षित निवेश के रूप में सोने की ओर आकर्षित होते हैं, जिससे इसकी कीमत और बढ़ सकती है।
  • रसद संबंधी चुनौतियाँ: भारतीय निर्यातक वर्तमान में "प्रतीक्षा और निगरानी" की स्थिति में हैं। कुछ निर्यातक सरकार से विदेशी शिपिंग कंपनियों पर निर्भरता कम करने के लिये एक प्रतिष्ठित भारतीय शिपिंग लाइन विकसित करने में निवेश करने का आग्रह कर रहे हैं, जो प्रायः उच्च परिवहन शुल्क लगाती हैं।

इज़राइल और ईरान के साथ भारत के व्यापार की स्थिति क्या है?

भारत-इज़राइल व्यापार: 

  • उल्लेखनीय वृद्धि: भारत-इज़राइल व्यापार विगत पाँच वर्षों में दोगुना हो गया है, जो वर्ष 2018-19 में लगभग 5.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 10.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 6.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर (रक्षा को छोड़कर) था, जिसमें क्षेत्रीय सुरक्षा स्थिति और व्यापार मार्ग में व्यवधान के कारण गिरावट देखी गई है।
    • भारत एशिया में इज़रायल का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान इज़रायल भारत का 32वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था।
  • प्रमुख निर्यात: भारत से इज़रायल को होने वाले प्राथमिक निर्यात में डीजल, हीरे, विमानन टरबाइन ईंधन और बासमती चावल शामिल हैं, वर्ष 2022-23 में कुल निर्यात में एकमात्र डीज़ल और हीरे का भाग 78% होगा।
  • आयात: भारत मुख्य रूप से इज़रायल से अंतरिक्ष उपकरण, हीरे, पोटेशियम क्लोराइड और यांत्रिक उपकरण आयात करता है।

भारत-ईरान व्यापार:

  • व्यापार मात्रा में गिरावट: इज़रायल के साथ मज़बूत व्यापार के विपरीत, ईरान के साथ भारत के व्यापार में विगत पाँच वर्षों में कमी देखी गई है, वर्ष 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार केवल 2.33 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
    • वित्त वर्ष 2023-24 में पहले 10 महीनों (अप्रैल-जनवरी) के दौरान ईरान के साथ द्विपक्षीय व्यापार 1.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • व्यापार अधिशेष: वर्ष 2022-23 में भारत ने लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार अधिशेष प्राप्त किया, जिसमें ईरान को 1.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के सामान, मुख्य रूप से कृषि उत्पाद, का निर्यात किया गया, जबकि 0.67 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात किया गया। 
  • ईरान को भारत द्वारा किये जाने वाले प्रमुख निर्यात:  बासमती चावल, चाय, चीनी, ताजे फल, दवाएँ/फार्मास्यूटिकल्स, शीतल पेय (शरबत को छोड़कर), कर्नेल एचपीएस, बोनलेस मांस, दालें आदि।
  • ईरान से भारत द्वारा किये जाने वाले प्रमुख आयात: संतृप्त मेथनॉल, पेट्रोलियम बिटुमेन, सेब, द्रवीकृत प्रोपेन, सूखे खजूर, अकार्बनिक/कार्बनिक रसायन, बादाम, आदि।

ईरान-इज़राइल संघर्ष के कारण

  • इज़राइल का गठन (वर्ष 1948): इज़रायल के निर्माण के कारण अरब-इज़रायली युद्ध हुआ। हालाँकि ईरान ने इज़रायल के गठन का विरोध किया और वर्ष 1947 में विभाजन योजना के विरुद्ध मतदान किया, लेकिन उसने वर्ष 1950 में पहलवी शासन (अंतिम ईरानी शाही राजवंश) के अधीन इज़रायल को मान्यता दी, जिससे आर्थिक और सैन्य संबंधों की विशेषता वाले मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा मिला।
    • औपचारिक संबंधों के बावज़ूद, ईरानी समाज के कुछ भाग फिलिस्तीनी मुद्दे के प्रति सहानुभूति रखते हैं। वर्ष 1979 में ईरानी क्रांति ने एक महत्त्वपूर्ण मोड़ दिखाया, जिसने पहलवी शासन को समाप्त कर दिया और इज़रायल-ईरान संबंधों में खटास उत्पन्न कर दी।
  • धार्मिक और वैचारिक मतभेद: शिया इस्लाम द्वारा शासित ईरान और मुख्य रूप से यहूदी राज्य इज़रायल के बीच मौलिक धार्मिक और वैचारिक मतभेद हैं, जो आपसी संदेह और शत्रुता को बढ़ावा देते हैं।
  • वर्ष 1979 की क्रांति के बाद के संबंध: इस्लामिक गणराज्य ने इज़रायल के साथ राजनयिक संबंध तोड़ दिये और उसे "छोटा शैतान" करार दिया। 
    • ईरान में शिया मौलवी येरुशलम के पुराने शहर को एक पवित्र स्थल मानते हैं, इस पर इज़रायल के नियंत्रण का विरोध करते हैं। क्रांति के बाद ईरान ने फिलिस्तीनी राज्य के विचार को बढ़ावा दिया और इज़रायल को एक "अवैध" इकाई करार दिया।
  • इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष: ईरान फिलिस्तीनी मुद्दों का समर्थन करता है, हमास और हिज़बुल्लाह जैसे समूहों का समर्थन करता है, जिन्हें इजरायल आतंकवादी संगठन मानता है। इज़रायल के विनाश के लिये ईरान के आह्वान से तनाव बढ़ता है।
  • परमाणु कार्यक्रम: इज़रायल ईरान की परमाणु महत्त्वाकांक्षाओं को अपने अस्तित्व के लिये खतरा मानता है, साथ ही उसे संभावित परमाणु हथियार विकास का भय भी है। 
  • प्रॉक्सी संघर्ष: ईरान-इज़रायल संघर्ष में विभिन्न समूहों की भागीदारी के साथ महत्त्वपूर्ण प्रॉक्सी संघर्ष देखा गया है। ईरान लेबनान में हिज़्बुल्लाह का समर्थन करता है, जो प्रायः इज़रायल के साथ संघर्ष में शामिल रहता है, और यमन में हूथियों का समर्थन करता है, जिन्होंने लाल सागर में इज़रायली शिपिंग को निशाना बनाया है। 
    • इसके अतिरिक्त इराक में ईरान समर्थित शिया सैन्य बल अमेरिकी सेना के विरुद्ध जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं तथा क्षेत्र में इज़रायल की कार्रवाइयों का भी विरोध कर रहे हैं। 
    • ये छद्म संघर्ष ईरान और इज़रायल को अप्रत्यक्ष युद्ध छेड़ने में सक्षम बनाते हैं, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता जटिल हो जाती है और बढ़ते तनाव के बीच प्रत्यक्ष टकराव का खतरा बढ़ जाता है।
  • क्षेत्रीय शक्ति की गतिशीलता: ईरान और उसके सहयोगी बनाम इज़रायल और उसके सहयोगियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा क्षेत्र में चल रहे तनाव और संघर्ष में योगदान देती है।

इज़रायल-ईरान संघर्ष के वैश्विक निहितार्थ क्या हैं?

  • ऊर्जा आपूर्ति और मूल्य निर्धारण की गतिशीलता: पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) का सदस्य ईरान, प्रतिदिन लगभग 3.2 मिलियन बैरल (BPD) का उत्पादन करता है, जो वैश्विक उत्पादन का  लगभग 3% है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करने के बावज़ूद, ईरान के तेल निर्यात में उछाल आया है, जिसका मुख्य कारण चीन में उठती मांग है। वैश्विक तेल बाज़ार में देश का रणनीतिक महत्त्व अतिरंजित नहीं किया जा सकता है।
    • ओपेक की अतिरिक्त क्षमता: ओपेक+ के पास महत्त्वपूर्ण अतिरिक्त तेल उत्पादन क्षमता है, अनुमान है कि सऊदी अरब प्रतिदिन 3 मिलियन बैरल तक उत्पादन बढ़ा सकता है जबकि यूएई लगभग 1.4 मिलियन बैरल तक उत्पादन बढ़ा सकता है। 
      • यह क्षमता संभावित ईरानी आपूर्ति व्यवधानों के विरुद्ध एक बफर प्रदान करती है, हालाँकि स्थिति कमज़ोर बनी हुई है।
    • दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा: वैश्विक तेल आपूर्ति की बढ़ती विविधता, विशेष रूप से बढ़ते अमेरिकी उत्पादन के कारण, मध्य पूर्व में संघर्षों से संबंधित मूल्य आघातों से कुछ हद तक सुरक्षा प्रदान करती है। 
      • अमेरिका वैश्विक कच्चे तेल का लगभग 13% और कुल तरल उत्पादन का लगभग 20% उत्पादन करता है, जो अनिश्चितताओं के बीच बाज़ार को स्थिर रखने में सहायक है।
    • तनाव बढ़ने की संभावना: इज़रायल ने अभी तक ईरानी तेल कूपों पर हमला नहीं किया है, लेकिन संभावना बनी हुई है। यदि इज़रायल खर्ग द्वीप तेल बंदरगाह जैसे प्रमुख प्रतिष्ठानों पर हमला करता है, तो इससे ईरान की ओर से महत्त्वपूर्ण सैन्य प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है। 
      • ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र में संघर्ष तेजी से बढ़े हैं, जिसके कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर अप्रत्याशित परिणाम सामने आए हैं।
  • भू-राजनीतिक विचार: अमेरिका द्वारा इज़रायल पर बड़े सैन्य तनाव से बचने के लिये दबाव डालने की संभावना है, जिसका उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखना और व्यापक संघर्ष को रोकना है। 
  • यह विदेश नीति के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोण को दर्शाता है, जो इज़रायल के समर्थन को वैश्विक आर्थिक हितों के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है।
  • अन्य वैश्विक देश, मूलतः चीन, जिसके ईरान के साथ महत्त्वपूर्ण ऊर्जा संबंध हैं, घटनाक्रम पर बारीकी से नज़र रखेंगे। 
  • इस संघर्ष का परिणाम अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा रणनीतियों और गठबंधनों को प्रभावित कर सकता है तथा भू-राजनीतिक परिदृश्य को पुनः आकार दे सकता है।
  • मानवीय संकट: व्यापक संघर्ष के कारण शरणार्थियों का आवागमन बढ़ सकता है, जिससे इटली और ग्रीस जैसे भूमध्यसागरीय देश प्रभावित होंगे तथा अंतर्राष्ट्रीय मानवीय संसाधनों पर दबाव पड़ेगा।

ईरान-इज़रायल संघर्ष को कम करने के संभावित समाधान क्या हैं?

  • तत्काल युद्ध विराम समझौता: ईरान और इज़रायल दोनों से तत्काल युद्ध विराम पर सहमत होने का आग्रह, तनाव कम करने और वार्ता को सुविधाजनक बनाने की दिशा में एक आधारभूत कदम के रूप में काम कर सकता है।
    • वैश्विक शक्तियों, विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन को युद्ध विराम के लिये दबाव बनाने तथा संघर्षरत पक्षों के बीच वार्ता को बढ़ावा देने के लिये अपने कूटनीतिक प्रभाव का लाभ उठाना चाहिये।
  • क्षेत्रीय सहयोग: खाड़ी अरब देशों के साथ चर्चा करने से तनाव कम करने के लिये अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाया जा सकता है तथा क्षेत्र में ईरान के प्रभाव के बारे में साझा चिंताओं का समाधान किया जा सकता है।
    • मानवीय सहायता और समर्थन: प्रभावित क्षेत्रों में मानवीय सहायता बढ़ाने से पीड़ा कम हो सकती है और सद्भावना को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे संभवतः शत्रुता कम हो सकती है।
    • अंतर्राष्ट्रीय संगठन: वार्ताओं में मध्यस्थता करने और संघर्ष समाधान प्रयासों को सुविधाजनक बनाने के लिये संयुक्त राष्ट्र जैसे संगठनों को शामिल करना, वार्ता के लिये तटस्थ आधार प्रदान कर सकता है।
  • दीर्घकालिक शांति पहल: क्षेत्रीय शक्तियों को एक व्यापक सुरक्षा ढाँचा स्थापित करने के लिये सहयोग करना चाहिये, जिसमें विश्वास-निर्माण उपाय, हथियार नियंत्रण समझौते और शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान तंत्र शामिल हों। 
  • ऐतिहासिक शिकायतों, क्षेत्रीय विवादों और धार्मिक उग्रवाद जैसे अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने से स्थायी शांति के लिये अनुकूल वातावरण को बढ़ावा मिलेगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: इज़रायल-ईरान संघर्ष का भारतीय व्यापार और आर्थिक हितों पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा कीजिये।

और पढ़ें: ईरान-इज़राइल संघर्ष

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से दक्षिण-पश्चिम एशिया का कौन-सा देश भूमध्य सागर की तरफ नहीं खुलता है? (2015)

(a) सीरिया
(b) जॉर्डन
(c) लेबनान
(d) इज़रायल

उत्तर: (b)


Q. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है। (2018) 

(a) चीन
(b) इज़रायल
(c) इराक
(d) यमन

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न : “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2018)


शासन व्यवस्था

बच्चों के लिये सोशल मीडिया विनियमन

प्रारंभिक परीक्षा के लिए:

डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023, प्रधानमंत्री, उच्च न्यायालय, सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR)बच्चों का ऑनलाइन गोपनीयता संरक्षण अधिनियम (COPPA)

मेन्स के लिये:

भारत में सोशल मीडिया और इसका विनियमन, संबंधित कानून, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के निहितार्थ, आगे की राह

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के उपयोग हेतु न्यूनतम आयु लागू करने की योजना की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य बच्चों को सोशल मीडिया के संभावित खतरों से बचाना है।

  • यह पहल बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में बढ़ती चिंताओं के जवाब में है, विशेष रूप से महामारी के बाद, जिसमें युवाओं के बीच स्क्रीन समय में वृद्धि देखी गई। 
  • शेयरेंटिंग: यह "शेयरिंग" और "पेरेंटिंग" शब्दों का संयोजन है।
  • यह माता-पिता की अपने बच्चों के बारे में फोटो, वीडियो या अन्य जानकारी सोशल मीडिया पर साझा करने की बढ़ती लोकप्रियता को दर्शाता है।

सोशल मीडिया के उपयोग के संबंध में वैश्विक नियामक प्रयास क्या हैं?

सोशल मीडिया:

  • सोशल मीडिया लोगों के बीच संवाद (वेबसाइटों और ऐप्स का संग्रह) के माध्यम को संदर्भित करता है जिसमें वे आभासी समुदायों और नेटवर्क में जानकारी एवं विचारों का निर्माण, साझा और/या आदान-प्रदान करते हैं। उदाहरण: फेसबुक, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन आदि।
  • समाचार पत्र एक प्रकार का प्रिंट मीडिया है जिसे सोशल मीडिया नहीं माना जाता है। यह मीडिया का एक पारंपरिक रूप है जिसमें पत्रिकाएँ, जर्नल और समाचार पत्र शामिल हैं। 

भारत में:

  • डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम (DPDPA) 2023 का उद्देश्य बच्चों के सोशल मीडिया के उपयोग को विनियमित करना है। DPDPA की धारा 9 में 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के डेटा को संभालने के लिये 3 शर्तें बताई गई हैं।
    • सत्यापन योग्य अभिभावकीय सहमति: कंपनियों को माता-पिता या अभिभावक से सहमति प्राप्त करनी होगी।
    • बाल कल्याण के साथ संरेखण: व्यक्तिगत डेटा के प्रसंस्करण में बच्चे के कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • निगरानी और विज्ञापन पर प्रतिबंध: बच्चों पर नज़र रखने, व्यवहारिक निगरानी और लक्षित विज्ञापन पर प्रतिबंध है।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय: स्कूली बच्चों में अत्यधिक लत और इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को वर्ष 2023 में सोशल मीडिया तक पहुँच के लिये 21 वर्ष की आयु सीमा लागू करने का सुझाव दिया।

वैश्विक संदर्भ

  • दक्षिण कोरिया: सिंड्रेला लॉ, जिसे शटडाउन लॉ के नाम से भी जाना जाता है, 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मध्यरात्रि से सुबह 6 बजे के बीच ऑनलाइन गेम खेलने से प्रतिबंधित करता है। 
    • इंटरनेट की लत से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिये वर्ष 2011 में यह कानून पारित किया गया था और अगस्त 2021 में इसे समाप्त कर दिया गया।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका द्वारा बच्चों के लिये ऑनलाइन गोपनीयता संरक्षण अधिनियम (COPPA), 1998 पारित किया गया, जिसके तहत वेबसाइटों को 13 वर्ष से कम आयु के बच्चों से डेटा एकत्र करने से पहले उनके माता-पिता की सहमति लेना आवश्यक है, जिसके कारण कई प्लेटफार्मों ने इस आयु वर्ग के लिये पहुँच को प्रतिबंधित कर दिया है।
    • वर्ष 2000 के बाल इंटरनेट संरक्षण अधिनियम (CIPA) के अनुसार संघीय निधि प्राप्त करने वाले स्कूलों और पुस्तकालयों को हानिकारक ऑनलाइन सामग्री को फिल्टर करना अनिवार्य है।
  • यूरोपीय संघ: वर्ष 2015 में, यूरोपीय संघ ने 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को माता-पिता की सहमति के बिना इंटरनेट तक पहुँच पर प्रतिबंध लगाने वाला कानून प्रस्तावित किया था।
    • जनरल सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) (डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन), 2018 यूरोपीय संघ में सख्त डेटा गोपनीयता मानक निर्धारित करता है, जो उपयोगकर्त्ताओं को उनकी व्यक्तिगत जानकारी पर नियंत्रण प्रदान करता है तथा एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है।
  • यूनाइटेड किंगडम: ब्रिटेन, जब वह यूरोपीय संघ का हिस्सा था, ने माता-पिता की सहमति से इंटरनेट तक ऑनलाइन पहुँच हेतु आयु 13 वर्ष निर्धारित की थी। मई 2024 में, एक सरकारी पैनल ने इसे बढ़ाकर 16 वर्ष करने की सिफारिश की। ब्रिटेन ने ऐज एप्रोप्रियेट डिज़ाइन कोड भी पेश किया, जिसके तहत प्लेटफॉर्म को मज़बूत डिफॉल्ट सेटिंग्स लागू करने के साथ जोखिमों को कम करके बच्चों की सुरक्षा एवं गोपनीयता को प्राथमिकता देने की आवश्यकता होती है।
  • फ्राँस: जुलाई 2023 में, फ्राँस ने एक कानून पारित किया, जिसके तहत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को माता-पिता की अनुमति के बिना 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को ब्लॉक करना होगा, तथा गैर-अनुपालन के लिये वैश्विक बिक्री के 1% तक का जुर्माना लगाया जाएगा।
    • इसके अलावा, यदि 16 वर्ष से कम आयु का कोई बच्चा प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में करता करता है और आय अर्जित करता है, तो उसके माता-पिता उस आय तक तब तक नहीं पहुँच सकते जब तक कि बच्चा 16 वर्ष की आयु का न हो जाए। 
  • चीन: अगस्त 2023 में, चीन ने बच्चों के इंटरनेट के उपयोग पर सख्त सीमाएँ निर्धारित कीं: 16-18 वर्ष की आयु के नाबालिग प्रतिदिन दो घंटे, 8-15 वर्ष की आयु के बच्चे एक घंटे और 8 वर्ष से कम आयु के बच्चे 40 मिनट तक इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं, तथा रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक इसका उपयोग प्रतिबंधित रहेगा। 
    • विकास-केंद्रित ऐप्स के लिये अपवाद लागू होते हैं।
  • ब्राज़ील: नाबालिगों के लिये ऑनलाइन सुरक्षा में सुधार करने हेतु लैटिन अमेरिका में बड़े पहल के हिस्से के रूप में, ब्राज़ील ने अप्रैल 2023 में बच्चों के डेटा की सुरक्षा के लिये नियम पारित किये, जिसमें डिजिटल व्यवसायों द्वारा इस जानकारी को एकत्र करने और प्रबंधित करने के तरीके पर प्रतिबंध लगाए गए।

भारत में डिजिटल साक्षरता की स्थिति:

  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय  (NSSO) वर्ष 2021 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में डिजिटल साक्षरता कम है, केवल 40% भारतीय ही सामान्यतः कंप्यूटर कार्यों को जानते हैं।
  • टियर 2 और टियर 3 शहरों में किये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 80% बच्चे अपने माता-पिता को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर नेविगेट करने में मदद करते हैं, जो डिजिटल अंतर को दर्शाता है। 
  • इसके अतिरिक्त, भारत की भाषाई विविधता और समान डिवाइस-साझाकरण प्रथाओं के कारण समूची आबादी में सुसंगत डिजिटल सुरक्षा उपायों को लागू करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

बच्चों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग को विनियमित करने के क्या कारण हैं?

  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: हानिकारक सामग्री, साइबर धमकी और ऑनलाइन शिकारियों के संपर्क में आने से बच्चों के लिये जोखिम उत्पन्न होता है। 
    • सोशल मीडिया के उपयोग से बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी बढ़ जाती हैं, जिनमें चिंता और अवसाद शामिल हैं।
  • पोर्नोग्राफी:सोशल मीडिया पर स्पष्ट जानकारी की अधिकता युवाओं को ऐसी सामग्री के संपर्क में लाती है जो उनकी उम्र के लिये अनुचित है, जिसका उनके रिश्तों और कामुकता के प्रति दृष्टिकोण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • भ्रामक: सोशल मीडिया भ्रामक जानकारी का स्रोत हो सकता है, बच्चे दुष्प्रचार से प्रभावित होने के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
  • वास्तविक जीवन में संबंधों को बढ़ावा देना: प्रतिबंध से बच्चों को आमने-सामने संवाद करने के लिये प्रोत्साहित किया जाएगा, जिससे बेहतर सामाजिक कौशल और भावनात्मक बुद्धिमत्ता को बढ़ावा मिलेगा।
  • तकनीकी उत्तरदायित्व: ऐसे तर्क दिये जा रहे हैं कि बच्चों के लिये सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण बनाने के लिये तकनीकी कंपनियों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिये, न कि केवल अभिभावकों की निगरानी पर निर्भर रहना चाहिये।

बच्चों के लिये सोशल मीडिया के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने के विरुद्ध मुद्दे क्या हैं?

  • प्रवर्तन संबंधी चुनौतियाँ: डिजिटल वातावरण में प्रतिबंधों को लागू करना मुश्किल है। बच्चे अक्सर आयु प्रतिबंधों को दरकिनार करने के तरीके खोज लेते हैं, जैसा कि दक्षिण कोरिया के सिंड्रेला कानून की विफलता से स्पष्ट है।
  • अभिभावकों पर बोझ: आयु संबंधी प्रतिबंध लागू करने से अभिभावकों पर अनुचित बोझ पड़ता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ डिजिटल साक्षरता कम है। 
    • कई अभिभावकों में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर प्रभावी ढंग से काम करने के कौशल का अभाव हो सकता है, जिससे उनके बच्चों की गतिविधियों पर नज़र रखना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • सकारात्मक सहभागिता की हानि: सोशल मीडिया सीखने, समाजीकरण और रचनात्मकता के लिये मूल्यवान अवसर प्रदान कर सकता है।
    • पूर्ण प्रतिबंध से बच्चे इन लाभों से वंचित हो सकते हैं तथा भविष्य में रोज़गार के लिये आवश्यक डिजिटल कौशल विकसित करने की उनकी क्षमता सीमित हो सकती है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: नाबालिगों को अपनी बात कहने और जानकारी तक पहुँचने का अधिकार है। प्रतिबंध इन अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है, जिससे विविध विचारों और समुदायों के साथ जुड़ने की उनकी क्षमता सीमित हो सकती है।
  • सोशल मीडिया के लाभ: सोशल मीडिया युवाओं को सहायक नेटवर्क से जोड़कर समुदाय निर्माण को बढ़ावा देता है, जो उनकी पहचान की पुष्टि करता है, साथ ही यह युवाओं को वैश्विक मुद्दों और रुझानों से संबंधित जानकारी प्रदान करने और सीखने के लिये एक मूल्यवान उपकरण के रूप में भी कार्य करता है।

आगे की राह

  • शिक्षा और जागरूकता: सुरक्षित ऑनलाइन नेविगेशन, गोपनीयता और जोखिमों को पहचानने की शिक्षा देने के लिये स्कूलों में डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है।
    • इसके अतिरिक्त, सिगरेट की पैकेजिंग की तरह, किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य जोखिमों को उज़ागर करने के लिये सोशल मीडिया ऐप्स पर चेतावनी लेबल होने चाहिये।
  • सुरक्षित प्लेटफॉर्म डिज़ाइन: तकनीकी कंपनियों को सुरक्षात्मक सुविधाओं और उपयोगकर्त्ता-अनुकूल गोपनीयता सेटिंग्स को लागू करके बाल सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • सहयोगात्मक विनियमन: सरकारों, शिक्षकों और तकनीकी फर्मों को ऐसे विनियमों पर सहयोग करना चाहिये, जो डिजिटल जुड़ाव के साथ सुरक्षा को संतुलित करते हों, तथा इसके लिये UK के आयु-उपयुक्त डिज़ाइन कोड जैसे मॉडलों को अपनाना चाहिये।
  • निगरानी और मूल्यांकन: तकनीकी कंपनियों की ओर से पारदर्शिता और जवाबदेहिता सुनिश्चित करते हुए, नियमों और प्लेटफॉर्म के परिवर्तनों का निरंतर मूल्यांकन करना।
  • अभिभावकों की भागीदारी: अभिभावकों को अच्छी ऑनलाइन आदतों को अपनाने तथा अपने बच्चों के साथ डिजिटल अनुभवों पर चर्चा करने के लिये प्रोत्साहित करने तथा उन्हें प्लेटफॉर्म को समझने में सहायता के लिये संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आयु प्रतिबंध लागू करने में चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और बच्चों को ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करने में माता-पिता, शैक्षणिक संस्थानों और तकनीकी कंपनियों की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न 1. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021)

(a) अनुच्छेद 15 
(b) अनुच्छेद 19 
(c) अनुच्छेद 21 
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. निजता के अधिकार को जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार के अंतर्भूत भाग के रूप में संरक्षित किया जाता है। भारत के संविधान में निम्नलिखित में से किससे उपर्युक्त कथन सही एवं समुचित ढंग से अर्थित होता है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 एवं संविधान के 42 वें संशोधन के अधीन उपबंध
(b) अनुच्छेद 17 एवं भाग IV में दिए राज्य की नीति के निदेशक तत्त्व
(c) अनुच्छेद 21 एवं भाग III में गारंटी की गई स्वतंत्रताएँ
(d) अनुच्छेद 24 एवं संविधान के 44 वें संशोधन के अधीन उपबंध

उत्तर: (c)


मुख्य परीक्षा:

Q. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम फैसले के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जांच कीजिए। (2017)


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