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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

OPEC+ ने उत्पादन में कटौती की योजना बनाई

  • 04 Sep 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन, ओपेक+, नवीकरणीय ऊर्जा

मेन्स के लिये:

भारत के ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत के ऊर्जा परिवर्तन को आकार देने वाली पहल

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (Organization of the Petroleum Exporting Countries- OPEC)+ देशों द्वारा तेल उत्पादन में कटौती की हाल की घोषणा से वैश्विक तेल बाज़ार और भारत की ऊर्जा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ गई हैं।

  • भारत की ईंधन खपत जो वर्ष 2024 में लगभग 4.8 मिलियन बैरल प्रतिदिन है, वर्ष 2028 तक 6.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँचने की उम्मीद है, ये कटौतियाँ भारतीय रिफाइनरों को अमेरिका से अधिक कच्चा तेल खरीदने के लिये प्रेरित कर सकती हैं, जो वैश्विक तेल व्यापार में बदलाव को उजागर करती हैं।

पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) क्या है?

  • परिचय:
    • पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) एक स्थायी, अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1960 में बगदाद सम्मेलन में ईरान, इराक, कुवैत, सऊदी अरब और वेनेजुएला द्वारा की गई थी। 
    • इसका मुख्यालय वियना, ऑस्ट्रिया में स्थित है।
  • उद्देश्य:
    • इस संगठन का उद्देश्य अपने सदस्य देशों की पेट्रोलियम नीतियों का समन्वय और एकीकरण करना है तथा उपभोक्ताओं को पेट्रोलियम की कुशल, आर्थिक एवं नियमित आपूर्ति, उत्पादकों को स्थिर आय व पेट्रोलियम उद्योग में निवेश करने वालों के लिये पूंजी पर उचित रिटर्न सुनिश्चित करने हेतु तेल बाज़ारों का स्थिरीकरण सुनिश्चित करना है।
  • सदस्य:
    • वर्तमान में संगठन के कुल 12 सदस्य देश हैं: अल्जीरिया, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेज़ुएला।
      • कतर ने 1 जनवरी, 2019 को अपनी सदस्यता समाप्त कर दी। अंगोला ने 1 जनवरी, 2024 से अपनी सदस्यता वापस ले ली।
    • ओपेक देश विश्व के लगभग 30% कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं।
      • सऊदी अरब इस समूह में सबसे बड़ा एकल तेल आपूर्तिकर्त्ता है, जो प्रतिदिन 10 मिलियन बैरल से अधिक तेल का उत्पादन करता है।
    • ओपेक की रिपोर्ट के अनुसार इसके सदस्य देश वैश्विक कच्चे तेल निर्यात का लगभग 49% प्रतिनिधित्व करते हैं तथा विश्व के प्रमाणित तेल भंडार का लगभग 80% हिस्सा उनके पास है।
  • ओपेक+:
    • वर्ष 2016 में अमेरिकी शेल तेल उत्पादन में वृद्धि के कारण तेल की कीमतों में गिरावट आई, जिसकी प्रतिक्रिया में ओपेक ने 10 अतिरिक्त तेल उत्पादक देशों के साथ गठबंधन बनाया, जिसके परिणामस्वरूप ओपेक+ की स्थापना हुई।
      • ओपेक+ में अब अज़रबैजान, बहरीन, ब्रुनेई, कज़ाखस्तान, मलेशिया, मैक्सिको, ओमान, रूस, दक्षिण सूडान और सूडान के साथ 12 ओपेक सदस्य देश शामिल हैं।
    • ओपेक+ देश विश्व के कुल कच्चे तेल का लगभग 40% उत्पादन करते हैं।

ओपेक+ तेल उत्पादन में कटौती की योजना क्यों बना रहा है?

  • बाज़ार स्थिरीकरण: ओपेक+ का लक्ष्य अस्थिर मांग और अधिक आपूर्ति को ध्यान में रखते हुए उत्पादन में कटौती करके तेल की कीमतों को संयत करना तथा साथ ही कीमतों में वृद्धि करना है। 
    • इस रणनीति का उद्देश्य आर्थिक अनिश्चितताओं और भू-राजनीतिक तनावों के बीच तेल उत्पादक देशों के लिये राजस्व बढ़ाना है।
  • गैर-ओपेक आपूर्ति वृद्धि पर प्रतिक्रिया: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने गैर-ओपेक+ कच्चे तेल की आपूर्ति में उल्लेखनीय वृद्धि का अनुमान लगाया है, विशेष रूप से अमेरिका, कनाडा, ब्राज़ील और गुयाना से।
    • यह अंतर्वाह ओपेक की बाज़ार हिस्सेदारी को चुनौती देता है, जिससे समूह को मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिये उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है।
  • भू-राजनीतिक तनावों पर प्रतिक्रिया: मध्य पूर्व में संघर्ष, शिपिंग मार्गों में व्यवधान तथा रूसी कच्चे तेल निर्यात पर जारी प्रतिबंधों जैसे बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों ने तेल की आपूर्ति और कीमतों को प्रभावित किया है।
    • ओपेक+ का लक्ष्य समन्वित उत्पादन कटौती के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान करना है।
  • दीर्घकालिक रणनीति: ओपेक+ का लक्ष्य उत्पादन के स्थायी स्तर को सुनिश्चित करना और बाज़ार में होने वाली गिरावट को रोकना है, जो आपूर्ति के मांग से अधिक होने पर हो सकती है। उत्पादन को नियंत्रित करके वे अधिक पूर्वानुमानित और स्थिर बाज़ार वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

ओपेक+ तेल उत्पादन में कटौती के क्या निहितार्थ हैं?

  • तेल की वैश्विक कीमतें:
    • ओपेक+ के उत्पादन में कमी से वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बढ़ने की संभावना है। इसके परिणामस्वरूप आयात करने वाले देशों की लागत बढ़ सकती है, जिसका असर मुद्रास्फीति दरों और आर्थिक विकास पर पड़ सकता है।
  • भारत के लिये निहितार्थ:
    • आपूर्ति गतिशीलता में बदलाव: ओपेक+ द्वारा उत्पादन कम करने के कारण भारत अमेरिका, कनाडा, ब्राज़ील और गुयाना जैसे गैर-ओपेक+ देशों से कच्चे तेल का आयात बढ़ा सकता है। यह बदलाव भारत के आयात स्रोतों में विविधता ला सकता है, जिससे पश्चिम एशियाई कच्चे तेल पर निर्भरता कम हो सकती है।
      • यह विविधीकरण रणनीति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिम एशियाई आयात पहले ही वर्ष 2022 में 2.6 mb/d से घटकर वर्ष 2023 में 2 mb/d हो गया है।
    • मूल्य अस्थिरता की संभावना: भारत के लिये आपूर्तिकर्त्ताओं की श्रेणी में विविधता लाने से ऊर्जा सुरक्षा बढ़ सकती है, लेकिन गैर-ओपेक स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता से भारत को इन बाज़ारों में मूल्य में उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से आयात बिल बढ़ सकता है और व्यापार संतुलन प्रभावित हो सकता है।
      • भारत विश्व में कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है (अमेरिका व चीन के बाद) और इसकी आयात निर्भरता का स्तर 85% से अधिक है।
    • आर्थिक विकास: तेल की ऊँची कीमतें भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव डाल सकती हैं, विशेषकर तेल पर निर्भर क्षेत्रों पर। इससे परिवहन लागत और मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे समग्र आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।

भारत में तरल ईंधन की खपत और क्षमता विस्तार में अनुमानित प्रवृत्ति क्या हैं?

  • बढ़ती ईंधन खपत: भारत में तरल ईंधन की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि होने की उम्मीद है। अनुमानों के अनुसार तरल ईंधन की खपत वर्ष 2023 में 5.3 mb/d से बढ़कर वर्ष 2028 तक 6.6 mb/d हो जाएगी, जो पाँच वर्षों में 26% की वृद्धि है।
    • इस वृद्धि का श्रेय विभिन्न आर्थिक कारकों को दिया जाता है, जिसमें जनसंख्या वृद्धि, GDP वृद्धि और प्रति व्यक्ति GDP में वृद्धि शामिल है।
    • EIA का अनुमान है कि वर्ष 2037 तक तरल ईंधन की खपत में वार्षिक वृद्धि औसतन 4% से 5% के बीच होगी।
  • क्षमता विस्तार: भारत ने वर्ष 2011 और 2023 के दौरान अपनी रिफाइनिंग क्षमता में 1.3 mb/d का विस्तार किया है तथा बढ़ती घरेलू ईंधन मांग को पूरा करने के लिये आगे के विस्तार की योजना बना रहा है।
    • वर्ष 2028 तक 1.2 mb/d रत्नागिरी मेगा परियोजना सहित 11 नई कच्चे तेल क्षमता परियोजनाओं की उम्मीद है।

भारत के ऊर्जा क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • ऊर्जा सुरक्षा और आयात निर्भरता तथा भूराजनीति: भारत अपनी तेल ज़रूरतों के 75% से अधिक के लिये आयात पर निर्भर है, जिसके वर्ष 2040 तक 90% से अधिक हो जाने का अनुमान है। अस्थिर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों पर यह बढ़ती निर्भरता बहुत बड़ा जोखिम उत्पन्न करती है।
    • आयातित तेल पर बढ़ती निर्भरता ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को गंभीर संकट में डाल दिया है, साथ ही रूस-यूक्रेन युद्ध तथा रूस पर अमेरिका, ब्रिटेन एवं यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों जैसे भू-राजनीतिक व्यवधानों ने समस्या को और भी बढ़ा दिया है। वित्त वर्ष 2024 में भारत के तेल आयात में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा लगभग 36% था।
    • भारत को नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में परिवर्तन के लिये चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें नवीकरणीय प्रौद्योगिकियों और संबंधित कच्चे माल के लिये चीन पर निर्भरता शामिल है।
  • घरेलू उत्पादन में गिरावट: अन्वेषण और पुराने तेल क्षेत्रों में अपर्याप्त निवेश के कारण वर्ष 2011-12 से भारत के कच्चे तेल के उत्पादन में गिरावट आई है।
    • सरकारी आँकड़ों के अनुसार यह वर्ष 2019-20 में 32.2 मिलियन टन से घटकर वर्ष 2022-23 में 29.2 मिलियन टन रह गया।
  • अवसंरचनात्मक अड़चनें: सीमित पाइपलाइन अवसंरचना और भंडारण सुविधाएँ भारत में कच्चे तेल के कुशल परिवहन एवं वितरण में बाधा डालती हैं।
    • इसमें भूमि अधिग्रहण की अड़चन, विनिवेश, मांग में उछाल, प्रबंधन कौशल की कमी, नियामक मंजूरी में देरी, जलवायु परिवर्तन, कम निवेश की अड़चन आदि जैसे मुद्दे भी शामिल हैं।
  • बढ़ता आयात बिल: भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक तेल मूल्य में उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील है, जिसके परिणामस्वरूप आयात बिल बढ़ रहे हैं जो राजकोषीय स्थिरता को खतरे में डालते हैं।
    • भारत का शुद्ध तेल आयात बिल वित्त वर्ष 2025 में 101-104 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो वित्त वर्ष 2024 में 96.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है, जो वर्तमान खाता घाटे (CAD) को बढ़ाकर अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और यदि उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो संभावित रूप से उच्च मुद्रास्फीति एवं राजकोषीय घाटे का कारण बन सकता है।

आगे की राह 

  • द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना: भारत को स्थिर और अनुकूल आपूर्ति समझौते प्राप्त  करने के लिये अमेरिका में तेल उत्पादक देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • घरेलू रिफाइनरी क्षमता में निवेश: रिफाइनिंग क्षमता में निरंतर निवेश आवश्यक है। वर्ष 2028 तक 11 नई परियोजनाओं की योजना के साथ भारत को आत्मनिर्भरता बढ़ाने और बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये इन विकास परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • रणनीतिक भंडार: रणनीतिक पेट्रोलियम भंडारों का निर्माण आपूर्ति व्यवधानों और मूल्य झटकों(price shocks) के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान कर सकता है, जिससे अस्थिर बाज़ार स्थितियों के दौरान ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हो सकती है।
  • ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: क्रूड आयल के अलावा भारत को जीवाश्म ईंधन पर समग्र निर्भरता को कम करने और ऊर्जा लचीलापन बढ़ाने के लिये नवीकरणीय ऊर्जा सहित वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • वैश्विक प्रवृत्ति की निगरानी: वैश्विक तेल बाज़ार की प्रवृत्ति और ओपेक+ निर्णयों पर कड़ी निगरानी रखने से भारत अपनी ऊर्जा रणनीति को सक्रिय रूप से अनुकूलित करने में सक्षम होगा, जिससे ऊर्जा क्षेत्र में सतत् विकास एवं स्थिरता सुनिश्चित होगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

ओपेक क्या है? विश्लेषण कीजिये कि वैश्विक तेल आपूर्ति गतिशीलता में परिवर्तन, विशेष रूप से गैर-ओपेक+ देशों से, आने वाले वर्षों में भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं आर्थिक विकास को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. वेनेज़ुएला के अलावा दक्षिण अमेरिका से निम्नलिखित में से कौन ओपेक का सदस्य है? (2009)

(a) अर्जेंटीना
(b) ब्राज़ील
(c) इक्वाडोर
(d) बोलीविया

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच अनिवार्य है।" इस संबंध में भारत में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)।

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